Thursday, 18 July 2013

राजनैतिक सत्ताओ के हितो से राष्ट्रहित महत्वपूर्ण है....

राष्ट्र साधारण नहीं होता, प्रलय एवं निर्माण उसकी गोद में खेलते है.....

आप एवं परिषद् तो गौरव घोषित तब होंगे, जब ये राष्ट्र गौरवशाली होगा और ये राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब ये राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों एवं परम्पराओ का निर्वाह करने में सफल व सक्षम होगा. और ये राष्ट्र सफल व सक्षम तब होगा जब आप अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने सफल होंगे और आप  सफल तब कहा जायेगें जब प्रत्येक व्यक्ति अपने में रास्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में सफल हो.

यदि व्यक्ति राष्ट्र भाव से शुन्य है राष्ट्र भाव से हीन है अपनी राष्ट्रयिता के प्रति सजग नहीं है तो यह उसकी की असफलता है, और इतिहास साक्षी है कि चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है. इतिहास बताता है कि शस्त्र के पहेले हम शास्त्र के अभाव में पराजित हुए है. हम शस्त्र और शास्त्र धारण करने वालो को राष्ट्रीयता का बोध नहीं कर पाए और व्यक्ति से पहेले खंड खंड हमारी राष्ट्रीयता हुई. हम इस राष्ट्र की राष्ट्रीयता व् सामर्थ को जाग्रत करने में असफल रहें.

यदि मन पराजय स्वीकार कर ले तो पराजय का वह भाव राष्ट्र के लिए घटक होता है अतः वेद वंदना के साथ राष्ट्र वंदना का स्वर भी दशो दिशाओ में गुंजना आवश्यक है. आवश्यक है व्यक्ति व्यवस्था को यह आभास करना कि यदि व्यक्ति की राष्ट्र की उपासना में आस्था नहीं रही तो वासना के अन्य मार्ग भी संघर्ष मुक्त नहीं रहे पाएंगे. अतः व्यक्ति से व्यक्ति , व्यक्ति से समाज व् समाज से राष्ट्र का एकीकरण आवश्यक है. अतः शीग्रही व्यक्ति समाज व् राष्ट्र को एक सूत्र में बांधना होगा और वह सूत्र राष्ट्रीयता ही हो सकती है.

आप इस चुनोती को स्वीकार करें व् शीग्रही राष्ट्र का नवनिर्माण करने के लिए सिद्ध हो. संभव है की मार्ग में बाधाये आएँगी पर आपको उनपर विजय पानी होगी और आवशकता पड़े तो आप शस्त्र उठाने में भी पीछे न हठे. यह सर्वविदित है की संस्कृति का समर्थ शास्त्र है पैर यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हो और राष्ट्र मार्ग में कंटक सिर्फ शस्त्र की ही भाषा समझते हो तो आप उन्हें अपने सामर्थ का परिचय अवश्य दें. अन्यथा सामर्थहीन व्यक्ति अपनी स्वयं की भी रक्षा नहीं कर पायेगा.

संभव है की राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने की लिए आपको सत्ताओ से भी लड़ना पड़े पर इस्मरण रहे की सत्ताओ से राष्ट्र महत्वपूर्ण है. राजनैतिक सत्ताओ के हितो से राष्ट्रहित महत्वपूर्ण है अतः राष्ट्र की बेदी पर सत्ताओ की आहुति देनी पड़े तो भी आप संकोच न करें. इतिहास साक्षी है की सत्तावत स्वार्थ की राजनीती ने इस राष्ट्र का अहित किया है. हमें अब सिर्फ इस राष्ट्र का विचार करना है.

यदि शाशन सहयोग दे तो ठीक अन्यथा हमें अपने पूर्वजो के पुण्य व् कीर्ति का इस्मरण कर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सिद्ध हो, विजय निश्चित है. सप्तसिन्धु की संस्कृति की विजय निश्चित है, विजय निश्चित है इस राष्ट्र के जीवन मूल्यों की, विजय निश्चित है इस राष्ट्र की, आव्यशकता मात्र आवाहन की है. 

आव्हान करें राष्ट्र निर्माण का, अगर आज भी इन लोभी विदेशी सत्ताओ के सामने आप झुक गए तो याद रहे पूर्वजो की कीर्ति को अपकीर्ति में बदलते देर न लगेगी. और यह सर्व सत्य है की उस वृक्ष का तना भी हरा नहीं रहता जिसकी जड़ में ही जीवन की छमता न बची हो. खंड खंड हो जाएगी ये सप्तसिंधु सभ्यता.

अब फैसला आपका है .....

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