देश आपसे सवाल पूछ रहा है- ‘आपने लोकपाल बिल से अपना जन आंदोलन आरम्भ किया
था, फिर राजनीति में कैसे चले आयें ?’ राजनीति तो एक दलदल है, जिसमें
धंसने के बाद फिर जमीन पर आना सम्भव नहीं रहता। जबकि आप जनआंदोलन के ठोस
धरातल पर चल रहे थे, जिसकी व्यापकता थी। उसके पीछे पवित्र उद्धेश्य था। जो
जनता को आकृषित कर रहा था। जनता आप लोगों से जुड़ रही थी। आपको सम्मान दे
रही थी। आपकी राहों में फूल बिछा रही थी। जनता के व्यापक सहयोग से एक
अभिमानी सरकार को आपके आंदोलन ने झुकने के लिए बाध्य किया था। एक जन
आंदोलन, जो जनता के दिलों से जुड़ गया था, प्रारम्भ होते ही समाप्त क्यों
हो गया ? दुनिया भर में जो भी क्रांतियां या जन आंदोलन हुए हैं, वे सभी
परिणाम आने तक निरन्तर जारी रहे थे। न तो जन आंदोलन समाप्त होते हैं और न
ही स्थगित होते हैं। और न ही इनका स्वरुप बदलता है। हॉं, यदि इससे जुड़े
लोगों के मन में मेल आ जाता है, तो आंदोलन भटक जरुर जाता है।
राजनीति में आने के जो तर्क आप लोग दे रहे हैं, उसे देश का आम आदमी स्वीकार नहीं कर रहा है। क्षमा करें, आम आदमी वे नहीं हैं, जो केवल सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं। आम आदमी इस देश के गांवों और शहरों की गलियों में रहता है। आपका आदमी सिर्फ दिल्ली में रहता है। किन्तु दिल्ली पूरा भारत नहीं है। आपका आदमी फेस बुक और ट्वीटर पर ट्वीट करता है, किन्तु भारत के साढ़े छ: लाख गांवों में इंटरनेट नहीं पहुंचा है। इंटरनेट से भारत की कुल आबादी की दो प्रतिशत जनता ही जुड़ी हुई है।
का यह तर्क भी नहीं माना जा सकता कि आप देश की लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवायेंगे और राजनीति का शु़िद्धकरण करेंगे। दबाव बना कर भ्रष्टाचार निरोधक कानून बनवायेंगे। आपकी पार्टी में फिलहाल इतनी साम्मर्थय नहीं है कि लोकसभा की सौ- पचास सीटे जीत सके और दिल्ली के अलावा देश की किसी भी विधानसभा में एक-दो सीटें भी जीत सके। यदि ऐसा सम्भव हो जाता, तो सम्भवत: आप राजनीतिक दलों पर दबाव बना कर उन्हें सुधार सकते हैं। आप समझदार व्यक्ति है और आपको अपनी क्षमता का अहसास हैं, फिर आप किस उद्धेश्य को ले कर राजनीति कर रहे हैं? कहीं यह तो नहीं कि आप भ्रष्टाचार को आमदनी का माध्यम बना बैठे हैं? अन्ना आंदोलन के समय ही आपने करोड़ो रुपया का चंदा एकत्रित कर लिया था। सम्भवत: राजनीतिक दल बना कर इसमें आपने कई गुणा वृद्धि कर ली होगी। निश्चय ही यदि आप सर्विस में रहते, तो इतने रुपये के कभी दर्शन भी नहीं कर पाते।
भारत विभिन्नताओं वाला बहुत बड़ा देश है। दो चार व्यक्ति मिल कर कोई राजनीतिक दल नहीं खड़ा कर सकते। एक राजनीतिक दल बनाने के लिए हजारों नेता और लाखों कार्यकर्ता चाहिये । वर्षों की तपस्या और धैर्य चाहिये। उदाहरण के लिए बीजेपी, जो कभी जनसंध थी, पूरे देश में उसका मजबूत संगठन था, उसे लोकसभा की सौ सीटे जीतने में पच्चीस वर्ष लगे। वह भी तब, जब उसे आपात काल की पीड़ा सहनी पड़ी। उसे जेपी आंदोलन का सम्बल मिल गया और जनसंघ को जनता पार्टी में विलय होना पड़ा। उस समय जनसंघ के पास तपे तपाये नेता थे, उनमें एक भी नेता का चरित्र दागदार नहीं था। इन नेताओं का भारत के शहरों में काफी प्रभाव था, फिर भी जनसंघ अपनी सीटों की संख्या चालिस से ज्यादा नहीं बढा़ सका था।
राममनोहर लोहिया बहुत अच्छे विचारक थे। उन्होंने समाजवादी आंदोलन की नींव रखी। इनके साथ भी जनाधार वाले नेता थे, किन्तु लोहिया जी अपने जीवन में कभी सता के नजदीक नहीं आ पाये। वर्षों के परिश्रम के बाद भी अपने सांसदों की संख्या पंद्रह बीस से ज्यादा नहीं बढ़ा पाये। काफी परिश्रम करने के उपरांत भी केन्द्र में गैरकांग्रेसी सरकार नहीं बनवा पाये।
काशीराम -मायवती ने भारत के दलितो के नाम पर बहुजन समाज पार्टी बनायी। पूरे देश में दलित समुदाय पूरी आबादी का बीस प्रतिशत से अधिक हैं, जो शताब्दियों से शोषित और उपेक्षित रहा हैं। इस समुदाय में अपनी पैठ बनाने और उनका विश्वास जीतने में इस दल को बीस वर्ष लगें। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज के इस दल को थोक वोट मिलते हैं। किन्तु मायावती को अकेले अपने दम पर बहुमत प्राप्त करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग करनी पड़ी और ब्राहमण वोटों को साथ जोड़ना पड़ा।
अब बताईये, आपके पास ऐसे कितने विचारक है? कितने ऐसे नेता हैं, जिनका पूरे देश में जनाधार हैं। आपके पास कितने कार्यकर्ता हैं, जो आपकी पार्टी को वोट दिला सकते हैं। सोशल मीडिया में आपके पक्ष में ,जो लोग प्रचार कर रहे हैं, उन्हें कार्यकर्ता नहीं कह सकते। सोशल मीडिया में चाहे आप अपने लाखों समर्थक बना लें, किन्तु मतपेटियों में लाखों वोट नहीं डलवा सकते। जबकि चुनाव वोटों से ही जीता जाता है, ट्वीट करने से नहीं।
अंत में कुछ सवाल आप से और पूछना चाहता हूं- ‘ आम आदमी पार्टी ‘ केवल दिल्ली के लिए बनी है या पूरे भारत के लिए। यदि भ्रष्टाचार उन्मूलन आपकी पार्टी का उद्धेश्य है, किन्तु भ्रष्टाचार तो पूरे देश में हैं, फिर केवल दिल्ली को ही अपनी कर्मभूमि क्यों बना रखा है? बिजली-पानी की समस्या भी पूरे भारत में हैं, फिर आप पूरे देश में इस मामले को क्यों नहीं उठा रहे हैं ? लगभग भारत की सभी पार्टियां भ्रष्टाचार से अछूती नहीं है, फिर आपने इन दिनों अपना पूरा फोकस बीजेपी पर ही क्यों केन्द्रीत कर रखा है? क्या आपको मायावती के स्वास्थय घोटाले के बारें में जानकारी नहीं है? आपने कभी भी इस घोटाले का ज़िक्र क्यों नहीं किया?
आप इस तथ्य से अच्छी तरह से वाकिब है कि बिजली-पानी के संवेदनशील मु़द्धों को उभार कर सता विरोधी वोट, जो कि दिल्ली के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी को मिल सकते हैं, उन में सेंध लगा सकते हैं। आपको यह भी मालूम है कि ऐसा करने से आपकी पार्टी और बीजेपी नहीं जीतेगी, परन्तु कांग्रेस को पुन: सता मिल जायेगी। उसी कांग्रेस को, जिसके ऊपर आप भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। निश्चय ही, ऐसी राजनीति करने से आपको थोड़ा बहुत आर्र्थिक लाभ तो मिल ही जायेगा, किन्तु यदि जनता को पर्दे के पीछे छुपी हुई राजनीति जब समझ आ जायेगी, उस दिन आपका राजनीतिक जीवन शुरु होने से पहले ही समाप्त हो जायेगा। और एक आंदोलन, जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रारम्भ हुआ था, भ्रष्टाचार के समक्ष नतमस्तक होता दिखाई देगा ।
2011 के अन्ना आंदोलन में इतनी क्षमता थी कि यदि वह दिल्ली से सीघा देश के गांवों और शहरों की ओर मुड़ जाता तो 2014 तक देश की राजनीति की तस्वीर बदल देता। इस आंदोलन के नेता राजनेता नहीं बनते, परन्तु देश की राजनीति का शु़िद्धकरण करने में सफल हो जाते। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया और इस आंदोलन से जुड़े नेता गांवों और शहरों में जाने के बजाय मीडिया और सोशल मीडिया से जुड़े रहे। अंतत: 2012 में फिर अनशन का नाटक किया और पूरी योजना के अनुसार आम आदमी पार्टी को जन्म दे दिया। एक जन आंदोलन, जनता से विमुख हो कर राजनीति के दलदल में धंस गया।
शुभेक्छु सुशील कश्यप
राजनीति में आने के जो तर्क आप लोग दे रहे हैं, उसे देश का आम आदमी स्वीकार नहीं कर रहा है। क्षमा करें, आम आदमी वे नहीं हैं, जो केवल सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं। आम आदमी इस देश के गांवों और शहरों की गलियों में रहता है। आपका आदमी सिर्फ दिल्ली में रहता है। किन्तु दिल्ली पूरा भारत नहीं है। आपका आदमी फेस बुक और ट्वीटर पर ट्वीट करता है, किन्तु भारत के साढ़े छ: लाख गांवों में इंटरनेट नहीं पहुंचा है। इंटरनेट से भारत की कुल आबादी की दो प्रतिशत जनता ही जुड़ी हुई है।
का यह तर्क भी नहीं माना जा सकता कि आप देश की लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवायेंगे और राजनीति का शु़िद्धकरण करेंगे। दबाव बना कर भ्रष्टाचार निरोधक कानून बनवायेंगे। आपकी पार्टी में फिलहाल इतनी साम्मर्थय नहीं है कि लोकसभा की सौ- पचास सीटे जीत सके और दिल्ली के अलावा देश की किसी भी विधानसभा में एक-दो सीटें भी जीत सके। यदि ऐसा सम्भव हो जाता, तो सम्भवत: आप राजनीतिक दलों पर दबाव बना कर उन्हें सुधार सकते हैं। आप समझदार व्यक्ति है और आपको अपनी क्षमता का अहसास हैं, फिर आप किस उद्धेश्य को ले कर राजनीति कर रहे हैं? कहीं यह तो नहीं कि आप भ्रष्टाचार को आमदनी का माध्यम बना बैठे हैं? अन्ना आंदोलन के समय ही आपने करोड़ो रुपया का चंदा एकत्रित कर लिया था। सम्भवत: राजनीतिक दल बना कर इसमें आपने कई गुणा वृद्धि कर ली होगी। निश्चय ही यदि आप सर्विस में रहते, तो इतने रुपये के कभी दर्शन भी नहीं कर पाते।
भारत विभिन्नताओं वाला बहुत बड़ा देश है। दो चार व्यक्ति मिल कर कोई राजनीतिक दल नहीं खड़ा कर सकते। एक राजनीतिक दल बनाने के लिए हजारों नेता और लाखों कार्यकर्ता चाहिये । वर्षों की तपस्या और धैर्य चाहिये। उदाहरण के लिए बीजेपी, जो कभी जनसंध थी, पूरे देश में उसका मजबूत संगठन था, उसे लोकसभा की सौ सीटे जीतने में पच्चीस वर्ष लगे। वह भी तब, जब उसे आपात काल की पीड़ा सहनी पड़ी। उसे जेपी आंदोलन का सम्बल मिल गया और जनसंघ को जनता पार्टी में विलय होना पड़ा। उस समय जनसंघ के पास तपे तपाये नेता थे, उनमें एक भी नेता का चरित्र दागदार नहीं था। इन नेताओं का भारत के शहरों में काफी प्रभाव था, फिर भी जनसंघ अपनी सीटों की संख्या चालिस से ज्यादा नहीं बढा़ सका था।
राममनोहर लोहिया बहुत अच्छे विचारक थे। उन्होंने समाजवादी आंदोलन की नींव रखी। इनके साथ भी जनाधार वाले नेता थे, किन्तु लोहिया जी अपने जीवन में कभी सता के नजदीक नहीं आ पाये। वर्षों के परिश्रम के बाद भी अपने सांसदों की संख्या पंद्रह बीस से ज्यादा नहीं बढ़ा पाये। काफी परिश्रम करने के उपरांत भी केन्द्र में गैरकांग्रेसी सरकार नहीं बनवा पाये।
काशीराम -मायवती ने भारत के दलितो के नाम पर बहुजन समाज पार्टी बनायी। पूरे देश में दलित समुदाय पूरी आबादी का बीस प्रतिशत से अधिक हैं, जो शताब्दियों से शोषित और उपेक्षित रहा हैं। इस समुदाय में अपनी पैठ बनाने और उनका विश्वास जीतने में इस दल को बीस वर्ष लगें। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज के इस दल को थोक वोट मिलते हैं। किन्तु मायावती को अकेले अपने दम पर बहुमत प्राप्त करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग करनी पड़ी और ब्राहमण वोटों को साथ जोड़ना पड़ा।
अब बताईये, आपके पास ऐसे कितने विचारक है? कितने ऐसे नेता हैं, जिनका पूरे देश में जनाधार हैं। आपके पास कितने कार्यकर्ता हैं, जो आपकी पार्टी को वोट दिला सकते हैं। सोशल मीडिया में आपके पक्ष में ,जो लोग प्रचार कर रहे हैं, उन्हें कार्यकर्ता नहीं कह सकते। सोशल मीडिया में चाहे आप अपने लाखों समर्थक बना लें, किन्तु मतपेटियों में लाखों वोट नहीं डलवा सकते। जबकि चुनाव वोटों से ही जीता जाता है, ट्वीट करने से नहीं।
अंत में कुछ सवाल आप से और पूछना चाहता हूं- ‘ आम आदमी पार्टी ‘ केवल दिल्ली के लिए बनी है या पूरे भारत के लिए। यदि भ्रष्टाचार उन्मूलन आपकी पार्टी का उद्धेश्य है, किन्तु भ्रष्टाचार तो पूरे देश में हैं, फिर केवल दिल्ली को ही अपनी कर्मभूमि क्यों बना रखा है? बिजली-पानी की समस्या भी पूरे भारत में हैं, फिर आप पूरे देश में इस मामले को क्यों नहीं उठा रहे हैं ? लगभग भारत की सभी पार्टियां भ्रष्टाचार से अछूती नहीं है, फिर आपने इन दिनों अपना पूरा फोकस बीजेपी पर ही क्यों केन्द्रीत कर रखा है? क्या आपको मायावती के स्वास्थय घोटाले के बारें में जानकारी नहीं है? आपने कभी भी इस घोटाले का ज़िक्र क्यों नहीं किया?
आप इस तथ्य से अच्छी तरह से वाकिब है कि बिजली-पानी के संवेदनशील मु़द्धों को उभार कर सता विरोधी वोट, जो कि दिल्ली के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी को मिल सकते हैं, उन में सेंध लगा सकते हैं। आपको यह भी मालूम है कि ऐसा करने से आपकी पार्टी और बीजेपी नहीं जीतेगी, परन्तु कांग्रेस को पुन: सता मिल जायेगी। उसी कांग्रेस को, जिसके ऊपर आप भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। निश्चय ही, ऐसी राजनीति करने से आपको थोड़ा बहुत आर्र्थिक लाभ तो मिल ही जायेगा, किन्तु यदि जनता को पर्दे के पीछे छुपी हुई राजनीति जब समझ आ जायेगी, उस दिन आपका राजनीतिक जीवन शुरु होने से पहले ही समाप्त हो जायेगा। और एक आंदोलन, जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रारम्भ हुआ था, भ्रष्टाचार के समक्ष नतमस्तक होता दिखाई देगा ।
2011 के अन्ना आंदोलन में इतनी क्षमता थी कि यदि वह दिल्ली से सीघा देश के गांवों और शहरों की ओर मुड़ जाता तो 2014 तक देश की राजनीति की तस्वीर बदल देता। इस आंदोलन के नेता राजनेता नहीं बनते, परन्तु देश की राजनीति का शु़िद्धकरण करने में सफल हो जाते। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया और इस आंदोलन से जुड़े नेता गांवों और शहरों में जाने के बजाय मीडिया और सोशल मीडिया से जुड़े रहे। अंतत: 2012 में फिर अनशन का नाटक किया और पूरी योजना के अनुसार आम आदमी पार्टी को जन्म दे दिया। एक जन आंदोलन, जनता से विमुख हो कर राजनीति के दलदल में धंस गया।
शुभेक्छु सुशील कश्यप
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