Sunday 21 April 2013

NATHURAM GOTSE

दोस्तो, मेरी इस बात को मेरे वे सभी मित्र बिना कुतर्क किये शान्ति से सुनें, जो किसी आरक्षित वर्ग से सम्बंधित रखते हैं | दोस्तों, सत्ता मुट्ठी में आने पर कांग्रेस ने चुनावी गणित के आधार पर हमेशा बहुमत में रहने के लिए दो चालें चलीं - (१) मुसलमानों का तुष्टीकरण - ताकि मुसलमान हमेशा उनके वोटर बने रहें और (२) आरक्षण द्वारा लगभग ३५ % हिन्दुओं को अन्य हिन्दुओं से अलग करना | जबकि वास्तव में इन ६५ वर्षों में यदि साफ़ नीयत से देश का विकास होता तो आज हमारे देश में रोज़गार के इतने अवसर होते की हम सभी भारतवासी ही नहीं बल्कि अन्य देश के नागरिक भी हमारे देश में आकर रोज़गार पाते | किन्तु ऐसा कुछ नहीं किया गया | बल्कि केवल हमारे बीच एक दीवार खींची गयी जिसके एक तरफ कुछ लोग स्वयं को आरक्षित कहकर क़ैद हैं तो दूसरी तरफ कुछ लोग स्वयं को अनारक्षित कहकर क़ैद हैं | इस दीवार ने हम दोनों को ही बेरोजगार, कमज़ोर, गरीब और शोषित बना रखा है जबकि हम सब एक होकर खुद को ऐसी ताक़त बना सकते हैं जो सत्ताधारियों को तेज़ी से देश का विकास कर के हम सब की बेरोजगारी और गरीबी दूर करने के लिए विवश कर सकती है | यह संभव है जिसे - गुजरात में नरेन्द्र मोदी ने सिद्ध किया है और केवल १० वर्ष में मोदी ने गुजरात को देश के अन्य सभी राज्यों से आगे कर दिया है | अब गुजरात में बेरोजगारी मात्र २ % के करीब है | यदि गुजरात के रेगिस्तान कुछ प्राकृतिक आपदाएं पैदा न करते तो अब तक गुजरात १०० % बेरोजगारी मुक्त प्रदेश बन जाता | इसी आधार पर मेरा आप सब से आग्रह है कि - हम सब एकजुट होकर मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए आवाज़ उठायें , जिससे ईमानदार-राष्ट्रभक्त मोदी का भ्रष्टाचार मुक्त शासन भारत को तेज़ी से विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा सके | हमें यह आवाज़ उठाना है कि हमें आरक्षण का प्रमाणपत्र नहीं रोज़गार चाहिए और हमें केवल अपने लिए नहीं बल्कि देश के सारे बेरोजगारों के लिए रोज़गार चाहिए ताकि हमारा प्यारा हिन्दुस्तान देश का सबसे संपन्न और शक्तिशाली राष्ट्र बन सके.........जय हिन्द .......वन्दे मातरम्...... जय श्रीराम.......NATHURAM GOTSE

Saturday 20 April 2013

कालमान एवं तिथिगण्ना किसी भी देश की ऐतिहासिकता की आधारशीला होती है। किंतु जिस तरह से हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व धूमिल कर रहा है,कमोवेश यही हश्र हमारे राष्ट्रीय पंचांग,मसलन कैलेण्डर का भी है। किसी पंचांग की कालगण्ना का आधार कोर्इ न कोर्इ प्रचलित संवत होता है। हमारे राष्ट्रीय पंचांग का आधार शक संवत है। हालांकि शक संवत को राष्ट्रीय संवत की मान्यता नहीं मिलनी चाहिए थी, क्योंकि शक परदेशी थे और हमारे देश में हमलावर के रूप में आए थे। हालांकि यह अलग बात है कि शक भारत में बसने के बाद भारतीय संस्कृति में ऐसे रच बस गए कि अनकी मूल पहचान लुप्त हो गर्इ। बावजूद शक संवत को राष्ट्रीय संवत की मान्यता नहीं देनी चाहिए थी। क्योंकि इसके लागू होने बाद भी हम इस संवत अनुसार न तो कोर्इ राष्ट्रीय पर्व व जयंतिया मानते हैं और न ही लोक परंपरा के पर्व। तय है, इस संवत का हमारे दैनंदिन जीवन में कोर्इ महत्व नहीं रह गया है। इसके वनिस्वत हमारे संपूर्ण राष्ट्र के लोक व्यवहार में है,विक्रम संवत के आधार पर तैयार किया गया पंचांग। हमारे सभी प्रमुख त्यौहार और तिथियां इसी पंचांग के अनुसार लोक मानस में मनाए जाते हैं। इस पंचांग की विलक्षण्ता है कि यह र्इसा संवत से तैयार ग्रेगेरियन कैलेंडर से भी 57 साल पहले वर्चस्व में आ गया था,जबकि शक संवत की शुरूआत र्इसा संवत के 78 साल बाद हुर्इ थी। मसलन हमने कालगणना में गुलाम मानसिकता का परिचय देते हुए पिछड़ेपन को ही स्वीकारा।

प्रचीन भारत और मघ्यअमेरिका दो ही ऐसे देश थे, जहां आधुनिक सैकेण्ड से सूक्ष्मतर और प्रकाशवर्ष जैसे उत्कृष्ठ कालमान प्रचलन में थे। अमेरिका में मयसभ्यता का वर्चस्व था। में संस्कृति में शुक्रग्रह के आधार पर कालगण्ना की जाती थी। विश्वकर्मा मय,दानवों के गुरू शुक्राचार्य का पौत्र और शिल्पकार त्वष्टा का पुत्र था। मय के वंशजो ने अनेक देशों में अपनी सभ्यता को विस्तार दिया। इस सभ्यता की दो प्रमुख विशेषताएं थीं, स्थापत्य कला और दूसरी सूक्ष्म ज्योतिष व खगोलीय गण्ना में निपुण्ता। रावण की लंका का निर्माण इन्हीं गय दानवों ने किया था। प्रचीन समय में युग,मनवन्तर,कल्प जैसे महत्तम और कालांश लधुतम समय मापक विधियां प्रचलन में थीं। समय नापने के कालांश को निम्न नाम दिए गए हैं, 14 निमेष यानी 1 तुट, 2 तुट यानी 1 लव,2 लव यानी 1 निमेष, 5 निमेष यानी एक काष्ठा, 30 काष्ठा यानी 1 कला, 40 कला यानी 1 नाडि़का,2 नाडि़का यानी 1 मुहुर्त, 15 यानी 1 अहोरत्र, 15 अहोरात्र यानी 1 पक्ष, 7 अहोरत्र यानी 1 सप्ताह, 2 सप्ताह यानी 1 पक्ष, 2 पक्ष यानी 1 मास, 12 मास यानी 1 वर्ष। र्इसा से 1000 से 500 साल पहले ही भारतीय ़ऋृषियों ने अपनी आश्चर्यजनक ज्ञानशकित द्वारा आकाश मण्डल के उन समस्त तत्वों का ज्ञान हासिल कर लिया था,जो कालगण्ना के लिए जरूरी थे,इसिलिए वेद,उपनिषद्र आयुर्वेद,ज्योतिष और ब्राह्राण संहिताओं में मास,ऋतु,अयन,वर्ष,युग,ग्रह,ग्रहण,ग्रहकक्षा,नक्षत्र,विषव और दिन-रात का मान तथा उसकी वृद्धि-हानि संबंधी विवरण पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।

ऋृगवेद में वर्ष को 12 चंद्रमासों में बांटा गया है। हरेक तीसरे वर्ष चंद्र और सौर वर्ष का तालमेल बिठाने के लिए एक अधिकमास जोड़ा गया। इसे मलमास भी कहा जाता है। ऋृगवेद की ऋचा संख्या 1,164,48 में एक पूरे वर्ष का विविरण इस प्रकार उल्लेखित है-

द्वादश प्रघयश्चक्रमेंक त्रीणि नम्यानि क उ तशिचकेत।

तसिमन्त्साकं त्रिशता न शंकोवो•र्पिता: षषिटर्न चलाचलास:।

इसी तरह प्रश्नव्याकरण में 12 महिनों की तरह 12 पूर्णमासी और अमावस्याओं के नाम और उनके फल बताए गए हैं। ऐतरेय ब्राह्राण में 5 प्रकार की ऋतुओं का वर्णन है। तैत्तिरीय ब्राह्राण में ऋतुओं को पक्षी के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया गया है-

तस्य ते वसन्त: शिर:। ग्रीष्मो दक्षिण: पक्ष: वर्ष: पुच्छम।

शरत पक्ष:। हेमान्तो मघ्यम।

अर्थात वर्ष का सिर वसंत है। दाहिना पंख ग्रीष्म। बायां पंख शरद। पूंछ वर्षा और हेमन्त को मघ्य भाग कहा गया है। मसलन तैत्तिरीय ब्राह्राण काल में वर्ष और ऋतुओं की पहचान और उनके समय का निर्धारण प्रचलन में आ गया था। ऋतुओं की सिथति सूर्य की गति पर आधारित थी। एक वर्ष में सौर मास की शुरूआत,चंद्रमास के प्रारंभ से होती थी। प्रथम वर्ष के सौर मास का आरंभ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को और आगे आने वाले तीसरे वर्ष में सौर मास का आरंभ कृष्ण पक्ष की अष्ठमी से होता था। तैत्तिरीय संहिता में सूर्य के 6 माह उत्तारयण और 6 माह दक्षिणायन रहने की सिथति का भी उल्लेख है। दरअसल जम्बू द्वीप के बीच में सुमेरू पर्वत है। सूर्य और चन्द्र्रमा समेत सभी ज्योर्तिमण्डल इस पर्वत की परिक्रमा करते हैं। सूर्य जब जम्बूद्वीप के अंतिम आभ्यातंर मार्ग से बाहर की ओर निकलता हुआ लवण समुद्र्र की ओर जाता है,तब इस काल को दक्षिणायन और जब सूर्य लवण समुद्र्र के अंतिम मार्ग से भ्रमण करता हुआ जम्बूद्वीप की ओर कूच करता है,तो इस कालखण्ड को उत्तरायण कहते हैं।

ऋगवेद में युग का कालखण्ड 5 वर्ष माना गया है। इस पांच साला युग के पहले वर्ष को संवत्सर,दूसरे को परिवत्सर,तीसरे को इदावत्सर,चौथे को अनुवत्सर और पांचवें वर्ष को इद्वत्सर कहा गया है। इन सब उल्लेखों से प्रमाणित होता है कि ऋगवैदिक काल से ही चन्द्र्रमास और सौर वर्ष के आधार पर की गर्इ कालगणना प्रचलन में आने लगी थी, जिसे जन सामान्य ने स्वीकार कर लिया था। चंद्रकला की वृद्धि और उसके क्षय के निष्कर्षां को समय नापने का आधार माना गया। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के आधार पर उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की विधिवत शुरूआत की। इस दैंनंदिन तिथी गण्ना को पंचांग कहा गया। किंतु जब स्वतंत्रता प्रापित के बाद अपना राष्ट्रीय संवत अपनाने की बात आर्इ तो राष्ट्रभाषा की तरह सांमती मानसिकता के लोगों ने विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत की मान्यता देने में विवाद पैदा कर दिए। कहा गया कि भारतीय कालगणना उलझाऊ है। इसमें तिथियों और मासों का परिमाप धटता-बढ़ता है,इसलिए यह अवैज्ञानिक है। जबकि राष्ट्रीय न होते हुए भी सरकारी प्रचलन में जो ग्रेगेरियन कैलेंडर है,उसमें भी तिथियों का मान धटता-बढ़ता है। मास 30 और 31 दिन के होते हैं। इसके अलावा फरवरी माह कभी 28 तो कभी 29 दिन का होता है। तिथियों में संतुलन बिठाने के इस उपाय को ‘लीप र्इयर यानी ‘अधिक वर्ष कहा जाता है। ऋगवेद से लेकर विक्रम संवत तक की सभी भारतीय कालगाण्नाओं में इसे अधिकमास ही कहा गया है। ग्रेगेरियन केलैंण्डर की रेखाकिंत कि जाने वाली महत्वपूर्ण विसंगति यह है कि दुनिया भर की कालगण्नाओं में वर्ष का प्रारंभ वसंत के बीच या उसके आसपास से होता है,जो फागुन में अंगडार्इ लेता है। इसके तत्काल बाद ही चैत्र मास की शुरूआत होती है। इसी समय नर्इ फसल पक कर तैयार होती है,जो एक ऋतुचक्र समाप्त होने और नये वर्ष के ऋतुचक्र के प्रारंभ का संकेत है। दुनिया की सभी अर्थ व्यवस्थाएं और वित्तीय लेखे-जोखे भीइसी समय नया रूप लेते हैं। अंग्रेजी महीनों के अनुसार वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च का होता है। ग्राम और कृषि आधारित अर्थ व्यवस्थाओं के वर्ष का यही आधार है। इसलिए हिंदी मास या विक्रम संवत में चैत्र और वैशाख महिनों को मधुमास कहा गया है। इसी दौरान चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा से नया संवत्सर प्रारंभ होता है। जबकि ग्रेगेरियन में नए साल की शुरूआत पौष मास अर्थात जनवरी से होती है,जो किसी भी उल्लेखनीय परिर्वतन का प्रतीक नहीं है।

विक्रम संवत की उपयोगिता ऋतुओं से जुड़ी थी,इसलिए वह ऋगवैदिक काल से ही जनसामान्य में प्रचलन में थी। बावजूद हमने शक संवत को राष्ट्रीय संवत के रूप में स्वीकारा,जो शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है। क्योंकि शक विदेशी होने के साथ आक्रांता थे। चंद्रगुप्त द्वितीय ने उन्हें उज्जैन में परास्त कर उत्तरी मघ्य भारत में शकों का अंत किया और विक्रमादित्य की उपधि धारण की। यह ऐतिहासिक धटना र्इसा सन से 57 साल पहले धटी और विक्रमादित्य ने इसी दिन से विक्रम संवत की शुरूआत की। जबकि इन्हीं शकों की एक लड़ाकू टूकड़ी को कुषाण शासक कनिष्क ने मगध और पाटलीपुत्र में र्इसा सन के 78 साल बाद परास्त किया और शक संवत की शुरूआत की। विक्रमादित्य को इतिहास के पन्नों में ‘शकारी भी कहा गया है,अर्थात शकों का नाश करने वाला शत्रु। शत्रुता तभी होती है जब किसी राष्ट्र की संप्रभुता और संस्कृति को क्षति पहुंचाने का दुश्चक्र कोर्इ विदेशी आक्रमणकारी रचता है। इस सब के बावजूद राष्ट्रीयता के बहाने हमें र्इसा संवत को त्यागना पड़ा तो विक्रम संवत की बजाए शक संवत को स्वीकार लिया। मसलन पंचांग यानी कैलेंडर की दुनिया में 57 साल आगे रहने की बजाए हमने 78 साल पीछे रहना उचित समझा ? अपनी गरिमा को पीछे धकेलना हमारी मानसिक गुलामी की विचित्र विडंबना है, जिसका स्थायीभाव नष्ट नहीं होता।

Monday 15 April 2013

media

क्या आप जानते है की कोई मीडिया समूह हिन्दू या हिन्दू संघठनो के
प्रति इतना बैरभाव क्यों रखती है ??

भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं…
सन २००५ में एक फ़्रांसिसी पत्रकार भारत दौरे पर आया उसका नाम फ़्रैन्कोईस था उसने
भारत में हिंदुत्व के ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में अध्ययन किया और उसने फिर बहुत हद
तक इस कार्य के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहराया.
फिर उसने पता करना शुरू किया तो वह आश्चर्य चकित रह गया की भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल,
अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं… फीर मैंने एक लम्बा अध्ययन किया उसमे निम्नलिखित जानकारी निकल कर आई जो मै आज सार्वजानिक कर रहा हु.
विभिन्न मीडिया समूह और उनका आर्थिक श्रोत……

१- दि हिन्दू … जोशुआ सोसाईटी, बर्न, स्विट्जरलैंड, इसके संपादक एन राम, इनकी पत्नी ईसाई में बदल चुकी है.

२- एन डी टी वी… गोस्पेल ऑफ़ चैरिटी, स्पेन, यूरोप

३- सी.एन.एन, आई.बी.एन.७, सी.एन.बी.सी… १००% आर्थिक सहयोग द्वारा साउदर्न बैपिटिस्ट चर्च

४- दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया, नवभारत, टाइम्स नाउ… बेनेट एंड कोल्मान द्वारा संचालित,
८०% फंड वर्ल्ड क्रिस्चियन काउंसिल द्वारा, बचा हुआ २०% एक अँगरेज़ और
इटैलियन द्वारा दिया जाता है. इटैलियन व्यक्ति का नाम रोबेर्ट माइन्दो है जो यु.पी.ए.
अध्यक्चा सोनिया गाँधी का निकट सम्बन्धी है.

५-हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान… मालिक बिरला ग्रुप लेकिन टाइम्स ग्रुप के
साथ जोड़ दिया गया है...

६- इंडियन एक्सप्रेस… इसे दो भागो में बाट दिया गया है, दि इंडियन एक्सप्रेस और न्यू
इंडियन एक्सप्रेस (साउदर्न एडिसन) - Acts Ministries has major stake in the Indian
express and later is still with the Indian कौन्तेर्पर्त

७- दैनिक जागरण ग्रुप… इसके एक प्रबंधक समाजवादी पार्टी से राज्य सभा में सांसद
है… यह एक मुस्लिम्वादी पार्टी है.

८- दैनिक सहारा .. इसके प्रबंधन सहारा समूह देखती है इसके निदेशक सुब्रोतो राय
भी समाजवादी पार्टी के बहुत मुरीद है

९- आंध्र ज्योति..हैदराबाद की एक मुस्लिम पार्टी एम् आई एम् (MIM ) ने इसे कांग्रेस के
एक मंत्री के साथ कुछ साल पहले खरीद लिया

१०- स्टार टीवी ग्रुप…सेन्ट पीटर पोंतिफिसिअल चर्च, मेलबर्न,ऑस्ट्रेलिया

११- दि स्टेट्स मैन… कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया द्वारा संचालित

इस तरह से एक लम्बा लिस्ट हमारे सामने है
जिससे ये पता चलता है की भारत
की मीडिया भारतीय बिलकुल भी नहीं है..
और जब इनकी फंडिंग विदेश से होती है है
तो भला भारत के बारे में कैसे सोच सकते है...
अपने को पाक साफ़ बताने वाली मीडिया के
भ्रस्ताचार की चर्चा करना यहाँ पर
पूर्णतया उचित ही होगा,,,,

बरखा दत्त जैसे लोग जो की भ्रस्ताचार का रिकार्ड कायम किया है उनके भ्रस्ताचरण की चर्चा दूर दूर
तक है, इसके अलावा आप लोगो को सायद न मालूम हो पर आपको बता दू की ये १००%
सही बात है की NDTV की एंकर बरखादत्त ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है....

प्रभु चावला जो की खुद रिलायंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैसला फिक्स कराते हुए पकडे
गए उनके सुपुत्र आलोक चावला, अमर उजाला के बरेली संस्करण में घोटाला करते हुए पकडे गए.

दैनिक जागरण ग्रुप ने अवैध तरीके से एक ही रजिस्ट्रेसन नो. पर बिहार में कई जगह
पर गलत ढंग से स्थानीय संस्करण प्रकाशित किया जो की कई साल बाद में पकड़ में आया और
इन अवैध संस्करणों से सरकार को २०० करोड़ का घटा हुआ....

दैनिक हिन्दुस्तान ने भी जागरण के नक्शेकदम पर चलते हुए यही काम किया उसने भी २००
करोड़ रुपये का नुकशान सरकार को पहुचाया इसके लिए हिन्दुस्तान के मुख्य संपादक सशी शेखर के ऊपर मुक़दमा भी दर्ज हुआ है..

शायद यही कारण है की भारत की मीडिया भी काले धन, लोकपाल जैसे मुद्दों पर सरकार के साथ ही भाग लेती है.....
सभी लोगो से अनुरोध है की इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो के पास पहुचाये ताकि दूसरो को नंगा करने वाले मीडिया की भी सच्चाई का पता लग सके....

Sunday 14 April 2013

GUJRAT DANGA KA SACH

गुजरात दंगे का सच
क्या है.....??????
क्या आप सचमुच में जानते हैं कि.....
गुजरात
दंगे का सच क्या है.....??????
यह सच हर हिंदू
को पता होना चाहिए... एक बार
इसे पढ़े जरुर.....
दरअसल ..... आज
जहाँ देखो वहाँ गुजरात के दंगो के
बारे में ही सुनने और देखने
को मिलता है... फिर चाहे वो गूगल
हो या फेसबुक .. हो या फिर
टीवी...! रोज नए-नए खुलासे हो रहे
हैं..... रोज गुजरात की सरकार
को कटघरे में खड़ा किया जाता है...!
असल में..... सबका निशाना केवल एक
नरेन्द्र भाई मोदी.....क्योंकि, वे हम
हिन्दुओं के चहेते हैं... जिस कारण
मुस्लिम तथा सेकुलर जी-जान से इस
काम में जुटे हैं...! जिसे देखो... वो अपने
को जज दिखाता है....
हर कोई सेकुलरता के नाम पर एक
ही स्वर में गुजरात
दंगो की भर्त्सना करते हैं.....
हालाँकि, मै भी दंगो को गलत
मानता हूँ क्योंकि दंगे सिर्फ दर्द दे
कर जाते हैं ...!
लेकिन...... सबसे बड़ा सवाल यह है
कि.....गुजरात दंगा हुआ क्यों..........?
27 फरवरी २००२
को साबरमती ट्रेन के S6
बोगी को गोधरा रेलवे स्टेशन से
करीब 826 मीटर की दुरी पर
जला दिया गया था....जिसमे 57
मासूम, निहत्थे और निर्दोष हिन्दू
कारसेवकों की मौत हो गयी थी... !
प्रथम द्रष्टा रहे वहाँ के 14 पुलिस
के जवान जो उस समय स्टेशन पर
मौजूद थे.. और उनमे से 3 पुलिस वाले
घटना स्थल पर पहुंचे और साथ
ही पहुंचे अग्नि शमन दल के एक जवान
सुरेशगिरी गोसाई जी....! अगर हम
इन
चारो लोगों की मानें
तो "म्युनिसिपल काउंसिलर
हाजी बिलाल" भीड़ को आदेश दे रहे
थे.... ट्रेन के इंजन को जलाने का......!
साथ ही साथ.... जब ये जवान
आगबुझाने की कोशिश कर रहे थे.....
तब भीड़ के द्वारा ट्रेन पर
पत्थरबाजी चालू कर दी गई ......!
अब इसके आगे बढ़ कर देखें तो.... जब
गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम
पहुंची तब 2 लोग 10 ,000 की भीड़
को उकसा रहे थे.... ये थे म्युनिसिपल
प्रेसिडेंट मोहम्मद कलोटा और
म्युनिसिपल काउंसिलर
हाजी बिलाल.....!अब सवाल
उठता है कि..... मोहम्मद कलोटा और
हाजी बिलाल को किसने
उकसाया और ये ट्रेन को जलाने
क्यों गए......????? सवालो के बाढ़
यही नहीं रुकते हैं.....
बल्कि सवालो की लिस्ट
अभी काफी लम्बी है......
अब सवाल उठता है कि ....
क्यों मारा गया ऐसे राम
भक्तो को......??? कुछ मीडिया ने
बताया की ये मुसलमानों को उकसाने
वाले नारे लगा रहे….अब क्या कोई
बताएगा कि .....क्या भगवान राम के
भजन मुसलमानों को उकसाने वाले
लगते हैं......?????
लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ
27 फ़रवरी 2002 को सुबह 7 .43
मिनट 4 घंटे की देरी से जैसे
ही साबरमती ट्रेन चली और
प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो... प्लेटफ़ॉर्म से
100 मीटर की दुरी पर ही 1000
लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर
चलाने चालू कर दिए .....! पर,
यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़
को तितर- बितर कर दिया और ट्रेन
को आगे के लिए रवाना कर दिया.....!
लेकिन, जैसे ही ट्रेन मुश्किल से 800
मीटर चली...... अलग-अलग
बोगियों से कई बार चेन
खींची गई....! बाकी की कहानी जिस
पर बीती उसकी जुबानी.......... उस
समय
मुश्किल से से 15-16
की बच्ची की जुबानी.........
ये बच्ची थी कक्षा 11 में पढने
वाली गायत्री पंचाल जो कि उस
समय अपने परिवार के साथ
अयोध्या से लौट रही थी ....
उसकी मानें तो... ट्रेन में राम धुनचल
रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से
आगे बढ़ी ..... एक दम से चेन खींच कर
रोक दिया गया ...! उसके बाद देखने
में आया कि ... एक भीड़ हथियारों से
लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़
रही है.....! हथियार भी कैसे.......
लाठी- डंडा नहीं बल्कि.... तलवार,
गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड
बम और पता नहीं क्या क्या.........!
भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार
यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद
कर लिए.......! पर भीड़ में से
जो अन्दर घुस आए थे ...वो कार
सेवको को मार रहे थे और उनके
सामानों को लूट रहे थे और साथ
ही बाहर खड़ी भीड़ मारो -काटो के
नारे लगा रही थी....! एक लाउड
स्पीकर जो कि पास के मस्जिद पर
था........... उससे बार बार ये आदेश
दिया जा रहा था कि ..... “मारो...
काटो.. लादेन ना दुश्मनों ने
मारो” !
इसके साथ ही.... साथ ही बहार
खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग
लगाना चालू कर दिया... जिससे
कोई जिन्दा ना बचे....! ट्रेन
की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल
भरा हुआ था....! दरवाजे बाहर से बंद
कर दिए गए थे ,
ताकि कोई बाहर ना निकल सके...!
एस-6 और एस-7 के वैक्यूम पाइप काट
दिए गए थे ...... ताकि ट्रेन आगे बढ़
ही नहीं सके......! जो लोग
जलती ट्रेन से किसी प्रकार बाहर
निकल भी गए तो.... उन्हें तेज
हथियारों से
काट दिया गया .... कुछ गहरे घाव
की वजह से वहीँ मारे गए और कुछ
बुरी तरह घायल हो गए....!
अब सवाल उठता है कि.... हिन्दुओं ने
सुबह 8 बजे ही दंगा क्यों नहीं शुरू कर
किया बल्कि हिन्दू उस दिन दोपहर
तक शांत बना रहा (ये बात आज तक
किसी को नहीं दिखी है)....????????
असल में..... हिन्दुओं ने जवाब देना तब
चालू किया जब उनके घरों , गावों ,
मोहल्लो में वो जली और
कटी फटी लाशें पहुंची......! क्या ये
लाशें हिन्दुओं
को को मुसलमानों की तरफ से गिफ्ट
थी जो हिन्दुओं को शांत
बैठना चाहिए था .....सेकुलर बन
कर ???????
हिन्दू सड़क पर उतरे 27
फ़रवरी 2002 की दोपहर से.....! पुरे
एक दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठे
रहे....|
@@@@@ अगर वो दंगा हिन्दुओं ने
या मोदी ने करना था तो 27
फ़रवरी 2002 की सुबह 8 बजे से
ही क्यों नहीं चालू हुआ....???
जबकि मोदी ने 28 फ़रवरी 2002
की शाम को ही आर्मी को सडको पर
लाने का आदेश दिया जो कि अगले
ही दिन १ मार्च २००२
को हो गया और सडको पर
आर्मी उतर आयी ..... गुजरात
को जलने से बचाने के
लिए....!
पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम पड़
रही थी तो १ मार्च २००२
को ही मोदी ने अपने
पडोसी राज्यों से
सुरक्षा कर्मियों की मांग करी...! ये
पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र
(कांग्रेस शासित- विलास राव
देशमुख -मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश
(कांग्रेस शासित- दिग्विजय सिंह -
मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस
शासित- अशोक गहलोत- मुख्य
मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित-
अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) ...!
क्या कभी किसी ने भी.......... इन
माननीय
मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा है
कि ........ अपने
सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात
में जबकि गुजरात ने आपसे
सहायता मांगी थी..........???????
या ये एक सोची समझी गूढ़
राजनितिक विद्वेष का परिचायक
था.... इन प्रदेशो के
मुख्यमंत्रियों का गुजरात
को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना..
.???? उसी 1 मार्च 2002 को हमारे
राष्ट्रीय मानवाधिकार (National
Human Rights) वालो ने
मोदी को अल्टीमेटम दिया ३ दिन
में पुरे घटनाक्रम का रिपोर्ट पेश
करने के लिए ...!
लेकिन... कितने आश्चर्य की बात है
कि...यही राष्ट्रीय मानवाधिकार
वाले २७ फ़रवरी २००२ और २८
फ़रवरी २००२ को गायब रहे ..... इन
मानवाधिकार वालो ने तो पहले
दिन के ट्रेन के फूंके जाने पर ये
रिपोर्ट
भी नहीं माँगा कि क्या कदम
उठाया गया गुजरात सरकार के
द्वारा...!
एक ऐसे ही सबसे बड़े घटना क्रम में
दिखाए गए या कहे तो बेचे गए........
“गुलबर्ग सोसाइटी” के जलने की.......
इस गुलबर्ग सोसाइटी ने पुरे
मीडिया का ध्यान अपने तरफ खींच
लिया | यहाँ एक पूर्व सांसद
एहसान जाफरी साहब रहते थे......!
इन महाशय का ना तो एक भी बयान
था २७ फरवरी २००२ को और
ना ही ये डरे थे उस समय तक.......!
लेकिन...... जब २८ फरवरी २००२
की सुबह जब कुछ लोगो ने इनके घर
को घेरा जिसमे कुछ कुछ तथाकथित
मुसलमान भी छुपे हुए थे.....
तो एहसान जाफरी जी ने भीड़ पर
गोली चलवा दिया ........ अपने
लोगो से
जिसमे 2 हिन्दू मरे और 13 हिन्दू
गंभीर रूप से घायल हो गए.....!
जब इस घटनाक्रम के बाद इनके घर
पर भीड़ बढ़ने लगी तो ये अपने यार-
दोस्तों को फ़ोन करने लगे और
तभी गैस सिलिंडर के फटने से कुल 42
लोगों की मौत हो गयी....!
यहाँ शायद भीड़ के आने पर
ही एहसान
साहब को पुलिस को फ़ोन
करना चाहिए था ना कि खुद के
बन्दों के
द्वारा गोली चलवाना चाहिए
था....!
पर इन्होने गोली चलाने के बाद
फ़ोन किया डाइरेक्टर जेनेरल ऑफ़
पुलिस (DGP ) को......!
यहाँ एक और झूठ सामने आया..... जब
अरुंधती रॉय जैसी लेखिका तक ने
यहाँ तक लिख दिया कि ... एहसान
जाफरी की बेटी को नंगा करके
बलात्कार के बाद मारा गया और
साथ ही एहसान जाफरी को भी.....!
लेकिन..... यहाँ एहसान जाफरी के बड़े
बेटे ने ही पोल खोल दी कि .... जिस
दिन उसके पिता की जान गई उस
दिन उसकी बहन तो अमेरिका में
थी और अभी भी रहती है.....!
तो यहाँ.......... कौन किसको झूठे केस
में
फंसाना चाह रहा है ये साफ़ है....! अब
यहाँ तक तो सही था..............
पर.............
गोधरा में साबरमती को कैसे इस दंगे
से अलग किया जाता और हिन्दुओं
को इसके लिए आरोपित
किया जाता ...! इसके लिए लोग
गोधरा के दंगे को ऐसे तो संभाल
नहीं सकते थे ...अपने शब्दों से....
तो एक कहानी प्रकाश में आई.....!
कहानी थी कि .... कारसेवक
गोधरा स्टेशन पर चाय पीने उतरे
और चाय देने वाला जो कि एक
मुसलमान था उसको पैसे नहीं दिए…
जबकि गुजराती अपनी ईमानदारी
के लिए ही जाने जाते हैं…!
चलिए छोडिये ये
धर्मान्धो की कहानी में
कभी दिखेगा ही नहीं.... आगे बढ़ते
हैं...| अब कारसेवको ने
पैसा तो दिया नहीं बल्कि मुसलमान
की दाढ़ी खींच कर उसको मारने लगे
तभी उस बूढ़े मुसलमान
की बेटी जो की 16 साल की बताई
गई वो आई तो कारसेवको ने
उसको बोगी में खींच कर
बोगी का दरवाजा अन्दर से बंद कर
लिया ..!
और इसीके के प्रतिफल में.......
मुसलमानों ने ट्रेन में आग लगा दी और
58 लोगो को मार दिया.....
जिन्दा जलाकर या काट कर.....!
अब अगर इस मनगढ़ंत
कहानी को मान भी लें तो कई सवाल
उठते हैं:- क्या उस बूढ़े मुसलमान चाय
वाले ने रेलवे पुलिस
को इत्तिला किया...??????? रेलवे
पुलिस उस ट्रेन को वहाँ से जाने
नहीं देती या लड़की को उतार
लिया जाता.....
उस बूढ़े चाय वाले ने 27 फ़रवरी 2002
को कोई FIR क्यों नहीं दाखिल
किया...????? 5 मिनट में
ही सैकड़ो लीटर पेट्रोल और
इतनी बड़ी भीड़ आखिर
जुटी कैसे....???????? सुबह 8 बजे
सैकड़ो लीटर पेट्रोल आखिर
आया कहाँ से...................?????????
एक भी केस 27 फ़रवरी २००२
की तारीख में मुसलमानों के
द्वारा क्यों नहीं दाखिल
हुआ..........???????
अब रेलवे पुलिस कि जांच में ये बात
सामने आई कि ...... उस दिन
गोधरा स्टेसन पर कोई
ऐसी घटना हुई ही नहीं थी...!
ना तो चाय वाले के साथ कोई
झगडा हुआ था और
ना ही किसी लड़की के साथ में कोई
बदतमीजी या अपहरण
की घटना हुई.....!
इसके बाद आयी नानावती रिपोर्ट
में कहा गया है कि .... जमीअत-
उलमा-इ-हिंद का हाथ था उन 58
लोगो के जलने में और ट्रेन के जलने
में....! उससे भी बड़ी बात कि.....दंगे में
720 मुसलमान मरे तो 250 हिन्दू
भी मरे.....! मुसलमानों के मरने
का सभी शोक मनाते हैं........चाहे
वो सेकुलर हिन्दू हो.... चाहे
वो मुसलमान हो या चाहे
वो राजनेता या मीडिया हो !
पर दंगे में 250 मरे हुए हिन्दुओं और
साबरमती ट्रेन में मरे ५८
हिंदुवो को कोई
नहीं पूछता है....कोई बात तक
नहीं करता है ..! सभी को केवल मरे
हुए मुसलमान ही दिखते हैं...! एक और
बात काबिले गौर है
क्या किसी भी मुस्लिम लीडर
का बयान आया था साबरमती ट्रेन
के जलने पर....???????
क्या किसी मुस्लिम लीडर ने
साबरमती ट्रेन को चिता बनाने के
लिए खेद प्रकट किया.....?????????
इसीलिए सच को जानिए...... और
जो भी गुजरात दंगे की बात करे
अथवा नरेन्द्र मोदी के बारे में
बोले....... उसे उसी की भाषा में
जबाब दें....! गुजरात दंगा.....
मुस्लिमों के द्वारा शुरू
किया गया था..... और हम हिन्दुओं
को उनसे इस बात का जबाब
मांगना चाहिए..... और उन्हें
जिम्मेदार ठहराना चाहिए....!
अथवा... क्या वे लाशें हिन्दुओं
को को मुसलमानों की तरफ से गिफ्ट
थी जो हिन्दुओं को शांत
बैठना चाहिए था .

16 sanskar

सनातन परम्परा के १६ संस्कार ...

सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।

प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है।ये निम्नानुसार हैं...

1.गर्भाधान संस्कार
2. पुंसवन संस्कार
3.सीमन्तोन्नयन संस्कार
4.जातकर्म संस्कार
5.नामकरण संस्कार
6.निष्क्रमण संस्कार
7.अन्नप्राशन संस्कार
8.मुंडन/चूडाकर्म संस्कार
9.विद्यारंभ संस्कार
10.कर्णवेध संस्कार
11. यज्ञोपवीत संस्कार
12. वेदारम्भ संस्कार
13. केशान्त संस्कार
14. समावर्तन संस्कार
15. विवाह संस्कार
16.अन्त्येष्टि संस्कार/श्राद्ध संस्कार

1.गर्भाधान संस्कार...

हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। गार्हस्थ्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तानोत्पत्ति है। उत्तम संतति की इच्छा रखनेवाले माता-पिता को गर्भाधान से पूर्व अपने तन और मन की पवित्रता के लिये यह संस्कार करना चाहिए। दैवी जगत् से शिशु की प्रगाढ़ता बढ़े तथा ब्रह्माजी की सृष्टि से वह अच्छी तरह परिचित होकर दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करे यही इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है।विवाह उपरांत की जाने वाली विभिन्न पूजा और क्रियायें इसी का हिस्सा हैं...


गर्भाधान मुहूर्त---

जिस स्त्री को जिस दिन मासिक धर्म हो,उससे चार रात्रि पश्चात सम रात्रि में जबकि शुभ ग्रह केन्द्र (१,४,७,१०) तथा त्रिकोण (१,५,९) में हों,तथा पाप ग्रह (३,६,११) में हों ऐसी लग्न में पुरुष को पुत्र प्राप्ति के लिये अपनी स्त्री के साथ संगम करना चाहिये। मृगशिरा अनुराधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में षष्ठी को छोड कर अन्य तिथियों में तथा दिनों में गर्भाधान करना चाहिये,भूल कर भी शनिवार मंगलवार गुरुवार को पुत्र प्राप्ति के लिये संगम नही करना चाहिये।

2.पुंसवन संस्कार...

गर्भ ठहर जाने पर भावी माता के आहार, आचार, व्यवहार, चिंतन, भाव सभी को उत्तम और संतुलित बनाने का प्रयास किया जाय ।हिन्दू धर्म में, संस्कार परम्परा के अंतर्गत भावी माता-पिता को यह तथ्य समझाए जाते हैं कि शारीरिक, मानसिक दृष्टि से परिपक्व हो जाने के बाद, समाज को श्रेष्ठ, तेजस्वी नई पीढ़ी देने के संकल्प के साथ ही संतान पैदा करने की पहल करें । उसके लिए अनुकूल वातवरण भी निर्मित किया जाता है। गर्भ के तीसरे माह में विधिवत पुंसवन संस्कार सम्पन्न कराया जाता है, क्योंकि इस समय तक गर्भस्थ शिशु के विचार तंत्र का विकास प्रारंभ हो जाता है । वेद मंत्रों, यज्ञीय वातावरण एवं संस्कार सूत्रों की प्रेरणाओं से शिशु के मानस पर तो श्रेष्ठ प्रभाव पड़ता ही है, अभिभावकों और परिजनों को भी यह प्रेरणा मिलती है कि भावी माँ के लिए श्रेष्ठ मनःस्थिति और परिस्थितियाँ कैसे विकसित की जाए ।

क्रिया और भावना...

गर्भ पूजन के लिए गर्भिणी के घर परिवार के सभी वयस्क परिजनों के हाथ में अक्षत, पुष्प आदि दिये जाएँ । मन्त्र बोला जाए । मंत्र समाप्ति पर एक तश्तरी में एकत्रित करके गर्भिणी को दिया जाए । वह उसे पेट से स्पर्श करके रख दे । भावना की जाए, गर्भस्थ शिशु को सद्भाव और देव अनुग्रह का लाभ देने के लिए पूजन किया जा रहा है । गर्भिणी उसे स्वीकार करके गर्भ को वह लाभ पहुँचाने में सहयोग कर रही है ।

ॐ सुपर्णोऽसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो, गायत्रं चक्षुबरृहद्रथन्तरे पक्षौ । स्तोमऽआत्मा छन्दा स्यङ्गानि यजूषि नाम । साम ते तनूर्वामदेव्यं, यज्ञायज्ञियं पुच्छं धिष्ण्याः शफाः । सुपर्णोऽसि गरुत्मान् दिवं गच्छ स्वःपत॥

3.सीमन्तोन्नयन...

सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण अथवा सीमन्त संस्कार भी कहते हैं। सीमन्तोन्नयन का अभिप्राय है सौभाग्य संपन्न होना। गर्भपात रोकने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा करना भी इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। इस संस्कार के माध्यम से गर्भिणी स्त्री का मन प्रसन्न रखने के लिये सौभाग्यवती स्त्रियां गर्भवती की मांग भरती हैं। यह संस्कार गर्भ धारण के छठे अथवा आठवें महीने में होता है।

4.जातकर्म...

नवजात शिशु के नालच्छेदन से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इस दैवी जगत् से प्रत्यक्ष सम्पर्क में आनेवाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये स्वर्ण खण्ड से मधु एवं घृत गुरु मंत्र के उच्चारण के साथ चटाया जाता है। दो बूंद घी तथा छह बूंद शहद का सम्मिश्रण अभिमंत्रित कर चटाने के बाद पिता बालक के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की प्रार्थना करता है। इसके बाद माता बालक को स्तनपान कराती है।

5.नामकरण संस्कार...

नामकरण शिशु जन्म के बाद पहला संस्कार कहा जा सकता है । यों तो जन्म के तुरन्त बाद ही जातकर्म संस्कार का विधान है, किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में वह व्यवहार में नहीं दीखता । अपनी पद्धति में उसके तत्त्व को भी नामकरण के साथ समाहित कर लिया गया है । इस संस्कार के माध्यम से शिशु रूप में अवतरित जीवात्मा को कल्याणकारी यज्ञीय वातावरण का लाभ पहँुचाने का सत्प्रयास किया जाता है । जीव के पूर्व संचित संस्कारों में जो हीन हों, उनसे मुक्त कराना, जो श्रेष्ठ हों, उनका आभार मानना-अभीष्ट होता है । नामकरण संस्कार के समय शिशु के अन्दर मौलिक कल्याणकारी प्रवृत्तियों, आकांक्षाओं के स्थापन, जागरण के सूत्रों पर विचार करते हुए उनके अनुरूप वातावरण बनाना चाहिए । शिशु कन्या है या पुत्र, इसके भेदभाव को स्थान नहीं देना चाहिए । भारतीय संस्कृति में कहीं भी इस प्रकार का भेद नहीं है । शीलवती कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है । 'दश पुत्र-समा कन्या यस्य शीलवती सुता ।' इसके विपरीत पुत्र भी कुल धर्म को नष्ट करने वाला हो सकता है । 'जिमि कपूत के ऊपजे कुल सद्धर्म नसाहिं ।' इसलिए पुत्र या कन्या जो भी हो, उसके भीतर के अवांछनीय संस्कारों का निवारण करके श्रेष्ठतम की दिशा में प्रवाह पैदा करने की दृष्टि से नामकरण संस्कार कराया जाना चाहिए । यह संस्कार कराते समय शिशु के अभिभावकों और उपस्थित व्यक्तियों के मन में शिशु को जन्म देने के अतिरिक्त उन्हें श्रेष्ठ व्यक्तित्व सम्पन्न बनाने के महत्त्व का बोध होता है । भाव भरे वातावरण में प्राप्त सूत्रों को क्रियान्वित करने का उत्साह जागता है । आमतौर से यह संस्कार जन्म के दसवें दिन किया जाता है । उस दिन जन्म सूतिका का निवारण-शुद्धिकरण भी किया जाता है । यह प्रसूति कार्य घर में ही हुआ हो, तो उस कक्ष को लीप-पोतकर, धोकर स्वच्छ करना चाहिए । शिशु तथा माता को भी स्नान कराके नये स्वच्छ वस्त्र पहनाये जाते हैं । उसी के साथ यज्ञ एवं संस्कार का क्रम वातावरण में दिव्यता घोलकर अभिष्ट उद्देश्य की पूर्ति करता है । यदि दसवें दिन किसी कारण नामकरण संस्कार न किया जा सके । तो अन्य किसी दिन, बाद में भी उसे सम्पन्न करा लेना चाहिए । घर पर, प्रज्ञा संस्थानों अथवा यज्ञ स्थलों पर भी यह संस्कार कराया जाना उचित है ।

6.निष्क्रमण् ...

निष्क्रमण का अभिप्राय है बाहर निकलना। इस संस्कार में शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। भगवान् भास्कर के तेज तथा चन्द्रमा की शीतलता से शिशु को अवगत कराना ही इसका उद्देश्य है। इसके पीछे मनीषियों की शिशु को तेजस्वी तथा विनम्र बनाने की परिकल्पना होगी। उस दिन देवी-देवताओं के दर्शन तथा उनसे शिशु के दीर्घ एवं यशस्वी जीवन के लिये आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। जन्म के चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है। तीन माह तक शिशु का शरीर बाहरी वातावरण यथा तेज धूप, तेज हवा आदि के अनुकूल नहीं होता है इसलिये प्राय: तीन मास तक उसे बहुत सावधानी से घर में रखना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे उसे बाहरी वातावरण के संपर्क में आने देना चाहिए। इस संस्कार का तात्पर्य यही है कि शिशु समाज के सम्पर्क में आकर सामाजिक परिस्थितियों से अवगत हो।

7.अन्नप्राशन संस्कार...

बालक को जब पेय पदार्थ, दूध आदि के अतिरिक्त अन्न देना प्रारम्भ किया जाता है, तो वह शुभारम्भ यज्ञीय वातावरण युक्त धर्मानुष्ठान के रूप में होता है । इसी प्रक्रिया को अन्नप्राशन संस्कार कहा जाता है । बालक को दाँत निकल आने पर उसे पेय के अतिरिक्त खाद्य दिये जाने की पात्रता का संकेत है । तदनुसार अन्नप्राशन ६ माह की आयु के आस-पास कराया जाता है । अन्न का शरीर से गहरा सम्बन्ध है । मनुष्यों और प्राणियों का अधिकांश समय साधन-आहार व्यवस्था में जाता है । उसका उचित महत्त्व समझकर उसे सुसंस्कार युक्त बनाकर लेने का प्रयास करना उचित है । अन्नप्राशन संस्कार में भी यही होता है । अच्छे प्रारम्भ का अर्थ है- आधी सफलता । अस्तु, बालक के अन्नाहार के क्रम को श्रेष्ठतम संस्कारयुक्त वातावरण में करना अभीष्ट है । हमारी परम्परा यही है कि भोजन थाली में आते ही चींटी, कुत्ता आदि का भाग उसमें से निकालकर पंचबलि करते हैं । भोजन ईश्वर को समर्पण कर या अग्नि में आहुति देकर तब खाते हैं । होली का पर्व तो इसी प्रयोजन के लिए है । नई फसल में से एक दाना भी मुख डालने से पूर्व, पहले उसकी आहुतियाँ होलिका यज्ञ में देते हैं । तब उसे खाने का अधिकार मिलता है । किसान फसल मींज-माँड़कर जब अन्नराशि तैयार कर लेता है, तो पहले उसमें से एक टोकरी भर कर धर्म कार्य के लिए अन्न निकालता है, तब घर ले जाता है । त्याग के संस्कार के साथ अन्न को प्रयोग करने की दृष्टि से ही धर्मघट-अन्नघट रखने की परिपाटी प्रचलित है । भोजन के पूर्व बलिवैश्व देव प्रक्रिया भी अन्न को यज्ञीय संस्कार देने के लिए की जाती है...

8 मुंडन/चूड़ाकर्म संस्कार...

इस संस्कार में शिशु के सिर के बाल पहली बार उतारे जाते हैं । लौकिक रीति यह प्रचलित है कि मुण्डन, बालक की आयु एक वर्ष की होने तक करा लें अथवा दो वर्ष पूरा होने पर तीसरे वर्ष में कराएँ । यह समारोह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि मस्तिष्कीय विकास एवं सुरक्षा पर इस सयम विशेष विचार किया जाता है और वह कार्यक्रम शिशु पोषण में सम्मिलित किया जाता है, जिससे उसका मानसिक विकास व्यवस्थित रूप से आरम्भ हो जाए, चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते रहने के कारण मनुष्य कितने ही ऐसे पाशविक संस्कार, विचार, मनोभाव अपने भीतर धारण किये रहता है, जो मानव जीवन में अनुपयुक्त एवं अवांछनीय होते हैं । इन्हें हटाने और उस स्थान पर मानवतावादी आदर्शो को प्रतिष्ठापित किये जाने का कार्य इतना महान् एवं आवश्यक है कि वह हो सका, तो यही कहना होगा कि आकृति मात्र मनुष्य की हुई-प्रवृत्ति तो पशु की बनी रही ।हमारी परम्परा हमें सिखाती है कि बालों में स्मृतियाँ सुरक्षित रहती हैं अतः जन्म के साथ आये बालों को पूर्व जन्म की स्मृतियों को हटाने के लिए ही यह संस्कार किया जाता है...

9.विद्यारंभ संस्कार...

जब बालक/ बालिका की आयु शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाय, तब उसका विद्यारंभ संस्कार कराया जाता है । इसमें समारोह के माध्यम से जहाँ एक ओर बालक में अध्ययन का उत्साह पैदा किया जाता है, वही अभिभावकों, शिक्षकों को भी उनके इस पवित्र और महान दायित्व के प्रति जागरूक कराया जाता है कि बालक को अक्षर ज्ञान, विषयों के ज्ञान के साथ श्रेष्ठ जीवन के सूत्रों का भी बोध और अभ्यास कराते रहें ।

10.कर्णवेध संस्कार...

हमारे मनीषियों ने सभी संस्कारों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के बाद ही प्रारम्भ किया है। कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक की शारीरिक व्याधि से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है। प्रकृति प्रदत्त इस शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं। कान हमारे श्रवण द्वार हैं। कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं तथा श्रवण शक्ति भी बढ़ती है। इसके साथ ही कानों में आभूषण हमारे सौन्दर्य बोध का परिचायक भी है।

यज्ञोपवीत के पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर है।

11.यज्ञोपवीत/उपनयन संस्कार...

यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है । मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं।

सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, यज्ञसूत्र

यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण कये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता। यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

12.वेदारम्भ संस्कार...

ज्ञानार्जन से सम्बन्धित है यह संस्कार। वेद का अर्थ होता है ज्ञान और वेदारम्भ के माध्यम से बालक अब ज्ञान को अपने अन्दर समाविष्ट करना शुरू करे यही अभिप्राय है इस संस्कार का। शास्त्रों में ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं समझा गया है। स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यह संस्कार मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखता था। यज्ञोपवीत के बाद बालकों को वेदों का अध्ययन एवं विशिष्ट ज्ञान से परिचित होने के लिये योग्य आचार्यो के पास गुरुकुलों में भेजा जाता था। वेदारम्भ से पहले आचार्य अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य व्रत कापालन करने एवं संयमित जीवन जीने की प्रतिज्ञा कराते थे तथा उसकी परीक्षा लेने के बाद ही वेदाध्ययन कराते थे। असंयमित जीवन जीने वाले वेदाध्ययन के अधिकारी नहीं माने जाते थे। हमारे चारों वेद ज्ञान के अक्षुण्ण भंडार हैं।

13.केशान्त संस्कार...

गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था। वस्तुत: यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम है। वेद-पुराणों एवं विभिन्न विषयों में पारंगत होने के बाद ब्रह्मचारी के समावर्तन संस्कार के पूर्व बालों की सफाई की जाती थी तथा उसे स्नान कराकर स्नातक की उपाधि दी जाती थी। केशान्त संस्कार शुभ मुहूर्त में किया जाता था।

14.समावर्तन संस्कार...

गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व शिष्य का समावर्तन संस्कार होता था। इस संस्कार से पूर्व ब्रह्मचारी का केशान्त संस्कार होता था और फिर उसे स्नान कराया जाता था। यह स्नान समावर्तन संस्कार के तहत होता था। इसमें सुगन्धित पदार्थो एवं औषधादि युक्त जल से भरे हुए वेदी के उत्तर भाग में आठ घड़ों के जल से स्नान करने का विधान है। यह स्नान विशेष मन्त्रोच्चारण के साथ होता था। इसके बाद ब्रह्मचारी मेखला व दण्ड को छोड़ देता था जिसे यज्ञोपवीत के समय धारण कराया जाता था। इस संस्कार के बाद उसे विद्या स्नातक की उपाधि आचार्य देते थे। इस उपाधि से वह सगर्व गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का अधिकारी समझा जाता था। सुन्दर वस्त्र व आभूषण धारण करता था तथा आचार्यो एवं गुरुजनों से आशीर्वाद ग्रहण कर अपने घर के लिये विदा होता था।

15.विवाह संस्कार...

हिन्दू धर्म में; सद्गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है । भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है । इसलिए कहा गया है ... 'धन्यो गृहस्थाश्रमः' ...

सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं । वहीं अपने संसाधनों से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रमों के साधकों को वाञ्छित सहयोग देते रहते हैं । ऐसे सद्गृहस्थ बनाने के लिए विवाह को रूढ़ियों-कुरीतियों से मुक्त कराकर श्रेष्ठ संस्कार के रूप में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्क है । युग निर्माण के अन्तर्गत विवाह संस्कार के पारिवारिक एवं सामूहिक प्रयोग सफल और उपयोगी सिद्ध हुए हैं ।

16. अन्त्येष्टि संस्कार/श्राद्ध संस्कार...

हिंदूओं में किसी की मृत्यु हो जाने पर उसके मृत शरीर को वेदोक्त रीति से चिता में जलाने की प्रक्रिया को अन्त्येष्टि क्रिया अथवा अन्त्येष्टि संस्कार कहा जाता है। यह हिंदू मान्यता के अनुसार सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है।

श्राद्ध... हिन्दूधर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता,पूर्वजों को नमस्कार प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। इस धर्म मॆं, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध,तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं। यदि कोई कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है |

Thursday 11 April 2013

10 lies of bharat






आइये भारत के 10 बड़े झूट पर फिर से नज़र डालते है..
झूट न. 1. भारत 1947 में आज़ादहुआ !!
सत्य- Indian independence act के अंतर्गत सिर्फ TRANSFER OF POWER agreement हुआ था ..जिसमे हमारे देश को सिर्फ 99 साल के लिए सत्ता का हस्तांतरण हुआ ..आजादी नहीं मिली
झूट न. 2.जरमनी के हिटलर की वजह से विश्व युद्ध हुआ !!
सत्य - भारत से चुराई गई तकनीक का experiment करने के लिए पश्चिमी देशो ने आपस में युद्ध लडे ...दोनों विश्व युद्ध में किसी ने किसी को नहीं कब्जाया..नौटंकी - करने के बाद सब सामान्य हो गया
झूट न.3. गांधी जी ने आज़ादी दिलाई !!
सत्य -भगत सिंह को फांसी लगने के बाद देश के नौजवानों में उबाल आया उनमें से कुछ INA में भरती हुए ... जब सुभाष चन्द्र बोस ने लड़ाई लड़ी ..तब देश का नौजवान झल्ला गया...और ब्रिटेन की सेना में काम करने वाले भारतीय सैनिक
बगावत पर उतर आए ..और ब्रिटेन को सर पर हाथ रख कर भागना पडा
झूट न. 4 .भारत गरीब देश था, जातिवाद था ...अंग्रेज यहाँ तकनीक लेकर आए !!
सत्य --अंग्रेज चोर थे और सिर्फ चोरी करते थे...तकनीक हमारी थी उलटे उन्हों ने हमारे ग्रन्थ चुरा कर अपने पेटेंट करा लिया..आज भी वो हल्दी पर पेटेंट करा रहे हैं ... भारत से अंग्रेज 900 पानी के जहज सोना लूट कर ले गए ..जातिवाद भारत में अंग्रेज लाए....सभी जातीयाँ एक दुसरे का सम्मान करती थी..इतना कि एक दुसरे का काम भी मुफ्त में कर दिया जाता था
झूट.न.5. विदेशी MNC कंपनिया भारत में रोजगार देती है !!
सत्य -ये कमपनिया अगर 10 लोगो को रोजगार देती है तो 1000 का रोजगार छीन लेती है...भारत सेल्समैन का देश बनता जा रहा है
झूट.न.6 बच्चे के जन्म के बाद टीकाकरण जरूरी है,,बिनाउसके भारत में बच्चे मर जाते थे !!
सत्य- टीके लुटेरी कंपनियों की साजिश है .... इन टीको की वजह से व्यक्ति की immunity कम होती है और 100 साल के बजाय सिर्फ60-70 साल ही जी पाता है ...भारत में बच्चे कभी नहीं मरते थे..बल्कि आज ज्यादा मरते हैं
झूट .न. 7. भारत के राजा लड़ते थे आपसमें !!
सत्य -भारत का चक्रवर्ती सम्राट पूरी पृथ्वी पर राज्य करता था...उसके छोटे छोटे हिस्से छोटे मोटे राजा सम्हालते थे ......आज भी कबोदिया में अंकोरवाट साम्राज्य इसकी गवाही देता है .. भारत का बुरा समय भारत के राजा द्वारा अरब के कुर्वंशियो-मुस्लिमो को माफ़ कर देने के कारण शुरू हुआ
झूट न.8 अंगरेजी इंटरनेशनल भाषा है ...!!
सत्य-पूरे विश्व में अंग्रजी बोलने वाले देश बहुत कम है ..सबकी अपनी स्वयं के देश की भाषा है..स्वयं अंगरेजी का स्वरुप अलग अलग जगह पर अलग अलग
है...बस भारतीय उसका देदनादन रट्टा मारते है
झूट.न. 9. 9/11 का हमला लादेन ने करवाया !!
सत्य -अमेरिका को हथियार बेचने के लिए विश्व में अशांति फैलानी होती है और आतंकियों को बढ़ावा दिया जाता है... उसने अफगान तेल कुए कब्जाने के लिए खुद पर ये हमला करवाया ... सारे कैमरामैन पहले से वहा थे ... और जहाज टकराने से पहले ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में विस्फोट कर दिया गया..
(गलती से) ..जो विडियो में साफ़ दिखता है
झूट. न.10. विश्व में अलग अलग देश की अपनी अपनी सरकारे है !!
सत्य-विश्व में सिर्फ एक संगठन जो बहुत ताकतवर है..और इटली के पोप व ब्रिटेन की महारानी भी उसमे शामिल है...विश्व के ज्यादातर देशो की सरकारों को आदेश देता है...नाम है illuminati आधे विश्वको अप्रत्यक्ष रूप से कब्जा चुका है ...भारत की कांग्रेस सरकार illuminati के लिए काम करती है!!

Friday 5 April 2013

Cognitive Sciences and the Gayatri Mantra

Cognitive Sciences and the Gayatri Mantra

COGNITIVE STATES OF MIND AS REVEALED IN THE GAYATRI MANTRA
By Dr Varanasi Ramabrahmam
Cognitive sciences often rediscover philosophical analyses after great effort has been expended.  A better policy would be first to learn what philosophy can teach us and then move on to experimentation and model-building within the scope of positive science.  In this article an attempt is made to combine the ideas of the mind existing and revealed in ancient Indian wisdom contained in the Gayatri Mantra, Upanishads, Advaita philosophy and Sabdabrahma siddhata, as well as to explore the possible application of such a combination in the fields of cognitive.
     Chanting and meditating on the Gayatri Mantra is part of the spiritual ritual of many traditionalists.  This is an important phase of Sandhya Vandanam. The profound meaning of Gayatri Mantra and the meditative insight contained in the performance of Sandhya Vandanam is very interesting, revealing and beneficiary.
 Gayatri Mantra
 Aum bhoor bhuvah ssuvah Aum tat savitur vareanyam bhargo devasya dhimahi dhiyo yo nah prachodayat
Purport/Tatparya:
     May the Divine Luminescence which causes the conscious states/phases of mind- bhooh (jagrat/ wakeful/ awakened), bhuvah (swapna/dream) and suvah (sushupti/deep sleep)- illuminate and inspire our intellect.
We also have:
i.   Aum bhooh Aum bhuvah  Aum suvah Aum mahah Aum janah Aum tapah Ogum satyam
ii.  Aum tat savitur varenyam bhargo devasya dhimahi dhiyo yo nah prachodayat
iii. Aum aapo jothi rasomrutam brahma bhoorbhuvassuvah Aum 
Purport/ Tatparya 
     Pranavam is Aumkaaram. Pranavam is contained in everything as pranava sakti.  Everything is  a manifestation of pranavam. Sapta lokas (lokyate iti lokah- what is seen is loka) —  Laukika Jnanadayakaroopa Bhooloka (jagrat/ awakened/wakeful conscious/mental state) and Bhuvarloka (swapna/dream conscious/mental state), the swararoopa suvarloka (sushupti/deep sleep conscious/mental unawareness state), buddhiroopa maharloka (phase of intellectual operations), pranayuta ahamkaararoopa janoloka (origin, form, structure, cessation and re-creation of egoistic mind state), tapoloka (one-pointed meditative mental state) and Sat-Chit-Ananda roopa (eternal awareness) –  producing Satyaloka (egoless/ego-transcending conscious state, which exists in all the conscious/mental states and at all times-physical or psychological) – are manifestations of  and contained in and by Brahman/Atman .
ii. May such Brahman/Atman, responsible (upanadana karana) for our mind and associated functions illuminate our intellect to enable it to acquire real knowledge (jnana).  We pray to that Divine Luminescence and meditate on it.
iii. Ap (rajo guna), jothi (sattva guna) and the rasaswaroopam (tamo guna), amritam (essence of meaningful experience or experienced meaning, beyond or transcending jeeva sthiti), and the conscious/mental states bhoor-bhuvah-suvah lokas are all manifestations of the same pranavam-the Brahmaswaroopam.  This is also called savita -the cause and creator of all these.
     Chanting these mantras and meditation on their meaning is the chief phase in the performance of Sandhya Vandanam. . Sandhya means antarmukha dristi samayam/awareness within the mental phase. Sandhya Vandnam means  atmaanusandhana prayatnavidhi. Divam means bahirmukha dristi samayam/ aatmaanubhava vismarana samayam/ awareness without the mental phase. Rathri or Nisa means visranta dristi samayam/aatmanbhava samayam, the state of peace, silence and bliss-the state of cessation of all mental cognitions (maanasika kaaryakalaapaanaaam viraama samayam / raama samayam).
     These purports can further be interpreted by making use of Upanishadic wisdom, Advaita philosophy and Sabdabrahma Siddhata as follows.
Upanishadic Wisdom
     Ancient Indian wisdom as revealed in the Upanishads has a lot to say about human consciousness1-11. Ramabrahmam provided a scientific awareness of mind, its form, structure, function, thoughts, understanding and other mental  processes and their cessation from the psychological point of view, thinking of Upanishadic wisdom as manastattva sastra2-11. The Upanishads are source-books of Atmajnana, the Knowledge of the Self. The Upanishads construe the state of Atman as the real ‘I’ state. They understood the Self i.e., human consciousness, to be unoccupied (mental) awareness and the natural, original and ground state of human mind.
      Atman is the result of the breathing process 14,15.  Srestaprana, (most possibly O2) is given as the body (tanu) of AtmanAtman is in motion always (yasya gamanam satatam tat atma – that which moves incessantly is Atman) and in modern scientific terms can be termed as a bio-oscillator issuing out pulses of psychic (chit) energy in a time period of 10-1  second, the time required to pronounce a short syllable  like ‘a‘(laghu akshara) .
      Atman provides us with the mental energy whose presence and transformations of its virtual form (maya also known as chidabhasa or pranavam), give us mental time-space and states of consciousness   respectively (Concept Diagram I), to be aware of the body, within the body, without the body and also a state that transcends both body and mind consciousnesses2-11. Maya is the virtual mental energy flowing throughout the body which provides us with sensations.  Maya, the virtual psychic energy and its transformations provide the current of awareness and hence consciousness to us. Conscious states are the phases of mind in the awareness of Atman.  Conscious state of cessation of mental activities, similar to zero in the number system and the concept of a vacuum in physical sciences, is the unique proposition of Upanishadic wisdom which has a profound role in human cognition processes.
Advaita Philosophy and Sabdabrahma Siddhanta
     Advaita Philosophy is an offshoot of Upanishadic awareness. Advaita Philosophy is more popular as Vedanta.  And it is known to Sanskrit grammarians that Advaita philosophy is best suited for understanding language learning and communication skills.   Patanjali, Bhartruhari, etal., proposed and nurtured Sabdabrahma Siddhanta while attempting to understand language learning, comprehension and communication processes and the formulation of the grammar  rules for Sanskrit, making use of Brahmajnana or Atmajnana and Advaita philosophy.
      As stated above the presence of Atman and transformations of maya give rise to four conscious states in us.  The wakeful-sleep ( Jagrat Sushupti) and deep sleep (Sushupti) conscious states are the advaita  (literally ‘no duality’, only Aham – Aham series – here Aham relates to unoccupied awareness or pure consciousness without any mental cognitions taking place) conscious states.  Wakeful ( Jagrat)  and dream (Swapna) conscious states are dvaita (literally ‘duality’ – aham – idam serieshere idam relates to mental cognitions and  functions in the awareness aham/atman ) conscious states7.  These conscious states alternately and simultaneously   rise and set in us helping us to cognise/know/learn, perceive, reason, think, experience/understand, speak/teach, read and write and thus be aware of various disciplines and skills, master and use them through the medium of language or otherwise by the simultaneous use of antahkaranas (inner mental tools– manas, buddhi, chittam and ahamkaram), sense organs and action organs.
    According to the Upanishads knowledge is of two kinds- (i) that acquired through the combined operation of  sense organs, action organs and inner mental tools in the awareness of Atman ( Maitra Jnana ) and (ii) that is inherent / genetic  (Varuna Jnana)5-7,14. All our acquisitions of knowledge come under Maitra Jnana and the in-built urges, volitions, body and mental abilities, capabilities, nature etc., come under Varuna Jnana.
     To put it simply, according to the Upanishads, our mental functions are the forward and backward transformations of chidabhasa or maya – transformed by energies sensed through sense organs or the stored information as potential energies retrieved (as vasanas first and then prapancham as feelings/thoughts/perceptions) and transformed in the reverse direction to give us knowledge, experiences etc. The transformation of maya, reverse transformation of maya and cessation of transformation of maya – the dvaita and advaita conscious states respectively- taking place simultaneously, consecutively and alternately is the structure, form, function, state and essence of human consciousness, mental functions and cognitive  processes.
     The above discussion and propositions about mind and its functions in terms of Atman and maya can be extended and used to understand language learning and communication processes.  It is mentioned above that maya is also known as pranavam, the primordial sound.
     Bhakti (defined as swa swaroopa anusandhanam  bhaktirityabhidhiyate- tuning the mind to its natural state of mind i.e., the state of Self-  or cheto vrittirupetya tisthati sadaa saa bhaitirityuchyate- the state when cheto vritti- antahkarana parinama-ceases to take place) is another name for the state of Atman or Brahman- the advaita state.  In this state the pranavam or virtual chit -energy (termed as maya by Vedantins)- does not transform into antahkaranas - no vivartanam  (two-way transformation of maya and antahkaranas) , meaning no antahkarana parinama or vritti ( transformation of inner mental tools causing cognitions) takes place
     The transformation of pranavam (maya) as antahkaranas and pancha pranas (prana,apaana,vyana,udana and samana) and thence activating sense and action organs respectively and simultaneously (wakeful and dream phases of mind) is the vibhakti or dvaita state or the state of ego- jivatma -the state of I-, my- feelings, thoughts and perceptions.  All kinds of knowing/learning/expression/teaching take place in this vibhakti state making use of every mental tool in the awareness of Atman. Sabdabrahma Siddhatanta, taking this advaita/dvaita concept and a theory of language learning/teaching, speaking/understanding in the four modes of mind (para, pasyanti, madhyama and vaikhari) is developed using sphota vada, a consequence of Sabdabrahma Siddhanta.
     According to this theory human language communication process is a combination and quick successive reversible transformations of four modes i.e., I Speaker/Teacher: (a) Purport/Awareness (Meaningful Experience or Experienced Meaning- para) (b) Understanding/ Experience/ Sense/ Mood/Volition/ Intuition (pasyanti) (c) Perception/Thinking/Feeling (madhyama) (d) Utterance /Expression (vaikhari)   II  Knower/ Listener/ Learner: (a) Knowing (through sense organs)- vaikhari (b) Perception/Thinking – madhyama (c) Understanding/ Experience -pasyanti (d) Purport (Meaningful Experience/ Experienced Meaning)/Awareness- para.
     When the physical structure of the mind and its function as revealed in the Gayatri Mantra as sapta lokas is compared and combined with the knowledge of conscious states/phases of mind and mental functions provided by Upanishadic wisdom and language learning, comprehending and communication modes as worked out by Sanskrit grammarians together with Advaita Philosophy and Sabdabrahma Siddhanta a working model of the human mind can be built.
      The insights of Upanishadic wisdom on human cognitive processes and the physical structure of the mind as revealed in the Gayatri Mantra  as lokas can be used to propose a human cognitive process model; the ultimate aim being the development of a software which would perform the tasks of the mind. These understandings in modern scientific terms about the mind, its phases in the form of conscious states/lokas can be further used to develop the software to model human mental processes and language learning/communication processes going on within us and compare and club them with the mind-machine model-building attempts and working of the bio-chemicals and the energy transitions and transformations associated with them.

APPENDIX I
Manas. Buddhi, Chittam and Ahamkaram( egoistic mind) are antahkaranas.  They are manifestations (vibhutis) of jnanasakti. They activate sense organs.
Prana, Apana, Vyana, Udana and Samana are panchapranas.  They are manifestations (vibhutis) of pranasakti.  They activate action organs.
The mind is a combined operation of Atman, Maya, Antahkaranas, sense and action organs.
The mind and its activities are cognitive elements to consciousness and mind becomes Atman in Jagrat Sushupti consciousness state when all mental cognitions cease to be.
APPENDIX II
PHYSICAL STRUCTURE AND PHASES OF MIND AS REVEALED IN GAYATRI MANTRA
Sapta Lokas : (Seven Conscious states of mind)
1. Seer Atman/Brahman           ADVAITA STATE                 BEING
   Satya loka   :  Aham -Aham      Jagrat  Sushupti       Wake ful Sleep      Peace Silence Bliss
                           Egoless /ego-transcending conscious state.    Visranta Dristi
                          Awareness   +   Chidakasa      Maya not transformed       Srasta   Rasa
                          Awareness   +    Icha-jnana-kriya sakti pravaham / Nirvishaya/nirvishayaanubhava pravaham                                       
                          Atmanubhava Samayam    Bhakti,      Para    Tatparya,    Sat-Chit-Ananda                Sat/Chit
2. Seer: Antahkaranas – manas, buddhi, chittam and ahamkaram       DVAITA STATES     BECOMING      
  (a)  Tapo loka   :  Aham+Chidabhasa   Chittakasa       Swapna     Maya     transformed     Samvit
                           Meditative state if Mind    Single object in awareness           Antakmukha Dristi
  (b)  Jano loka   :    Aham+Vasana         Rajomayakasa   Jagrat and/ or Swapna  Wakeful/Awakened and/or Dream                           
                          Antarmukha Dristi     State of  egoistic   mind.      First  transformation of maya 
                          Awareness   +   Mood   Pasyanti    Artha      Experience   Intuition    Sense    Understanding   Urge                           
    ©  Maharloka    :   Aham+ Divya, Swara  Saktis   Jagrat and/or   Swapna   Mental state of Intellectual operations  
                          Antarmukha Dristi
                          Awareness  +     Akasa and Vayu    Bifurcation of maya into jnasakti  and  prana sakti                           
  (d) Survarloka  :   Aham+ Nirvishaya/Nirvishayaaanubhavam        Sushupti      Deep  Sleep 
                          Awareness+ Tamas       Maya not bifurcated and not transformed      suddhavasana   pravaham
 (e)  Bhuvarloka :    Aham+Idam   Bhutakasa           Swapna     Dream    State of awareness of within
                           Awareness   +   Second transformation of maya    Srusti        Vibhakti         Madh yama  
                           Antahkarana parimanatakes place   Only action organs are active       Sense organs are  dormant
  (f)  Bhooloka    :   Aham+Idam      Jagrat   Wakeful/awakened    State of mental cognition  knowing/Expressing     
                           Bahirmukha Dristi
                           Awareness +   Bhutakasa         Second Transformation of maya /Transformation of maya  into sound,  gesture,  expression etc.,            Vibhakti   Vaikhari   Both  sense  and action  organs are active


APPENDIX III:              
Measurement of   Time based on Surya Siddhanta.
1 Day= 60 Nadigas;
1 Nadiga=60 Vinadigas;
1 Vinadiga=6 Pranas;
1 Prana=10 Deergha Aksharas (Long Syllable);
1 Deergha Akshara=4 Laghu Aksharas (Short Syllable).
1 PRANA= Time taken to pronounce 40 Laghu Aksharas (Short Syllables).
The length of the day is divided into 864,000 parts. This corresponds to 1/10th of the Western second.  The   length of the day is equal to the time taken to pronounce   864,000 Laghu Aksharas ( SHORT  SYLLABLES).
References:
1. Ramabrahmam, V., The physical structure and function of mind: A modern scientific translation of Advaita philosophy with implications and application to cognitive sciences and natural language comprehension, Paper presented at national seminar on Sanskrit in the Modern Context conducted by Department of Sanskrit Studies and the School of humanities, University of Hyderabad between11-13,
42 Ramabrahmam, V., Presentation at the Third Vedic Science Conference on Chemical Sciences and Technology in Ancient India held at Bangalore on 23rd, 24th & 25th, January, 2009 by National Institute of Vedic Sciences, Bangalore.  Title: THE PHYSICOCHEMICAL NATURE OF THOUGHTS AND IDEAS: AN ANCIENT INDIAN INSIGHT
3. Ramabrahmam, V Proceedings of Presentations  at International Conference on Photonics, Nano-technology and Computer Applications (ICOPNAC- 2009), 25-28 February 2009 held at Center for Research and Development, PRIST UNIVERSITY, West Campus, Trichy Main Road, Vallam, Tanjavur- 613 403, Tamilnadu, INDIA. Title: THE INFRASONICS AND ELECTRONICS OF BIONICS, Volume IIpp: 20-39.

Wednesday 3 April 2013

क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है?

कठिनाई यह है कि धर्म-निरपेक्ष कहलाना आज का भारतीय फैशन है। कथित हिन्दुओं की पीड़ा को आप रेखांकित करें, हिन्दू धर्म-संस्कार की बात आप करें, हिन्दुओं के तीर्थों की चर्चा करें, हिन्दू रीति-रिवाज का अनुसरण करें, तो आप सांप्रदायिक हैं। विवेकानन्द ने कहा था-’गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’, सच्चाई यह है कि इस माहौल में अपने को हिन्दू कहते भय होता है। ऐसे में अश्विनी कुमार की प्रमाण-पुष्ट, आंखें खोलने वाली किताब ‘क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है’ पर विचार करते समय भी ‘सांप्रदायिक’ होने का ठप्पा लग जाने का डर लगता है। अश्विनी कुमार (पंजाब केसरी के संपादक) में सच कहने का साहस और हिन्दुओं की पीड़ा को रेखांकित करने का मनोबल उनके रक्त में, उनके संस्कार में है। यह सच बोलने की कीमत उनके पितामह और पिता (क्रमश: अमर शहीद लाला जगत नारायण तथा अमर शहीद श्री रमेशचन्द्र) ने अपने प्राण उत्सर्ग करके चुकाई थी। ‘पंजाब केसरी’ में केसरी का गर्जन करने की ताकत यों ही नहीं है।
प्रस्तुत पुस्तक की अधिकांश सामग्री समय-समय पर ‘पंजाब केसरी’ में विशेष संपादकीय आलेख के तौर पर धारावाहिक रूप से प्रकाशित हो चुकी है। अखबार के पृष्ठों में यह मूल्यवान् दस्तावेज खो ही न जाए, सो उचित ही उस पूरी शोधपरक सामग्री को पुस्तकाकार प्रकाशित कर दिया गया है। यह किताब केवल भावनात्मक ज्वार में रचित नहीं है, जो भी कहा गया है वह प्रमाणों से और तर्कों से पुष्ट किया गया है। और लेखक का नीर-क्षीर विवेक यह कि गांधीजी को भी यह किताब बख्शती नहीं है। पंडित नेहरू से लेकर आजकल के महाप्राण नेताओं के एकांगी वोट-बटोरू फैसलों को तो रेखांकित करती ही है। मैं सोचता हूं, कई-कई देश घोषित रूप से इस्लामी हैं, कई-कई देशों का राजधर्म ईसाई है और हिन्दू? एक नेपाल कभी हिन्दू देश था, अब वह प्रगतिशील (?) मार्क्सवादी देश है। रहा भारत, सो यहां भी वस्तुत: हिन्दू दोयम दर्जे का नागरिक है। आखिर हिन्दुओं का अपना देश इस धरती पर कौन-सा है। ‘आर्यावर्त’, ‘हिन्दुस्तान’ से हिन्दुस्थान बना फिर इंडिया और हमारा संविधान इस देश को ‘इंडिया’ ही कहता है, इंडिया जो भारत है!
पूरी पुस्तक 05 शीर्षकों में विभाजित है। ‘क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है’ में कश्मीर की आज की स्थिति के कारक इतिहास को खंगाला गया है। पाकिस्तान हमारे कश्मीर का 2/5 भाग दबाए क्यों बैठा है? लेखक ने बताया है कि पाकिस्तान की बलात्कारी फौज को जवाब देने के लिए हमारी सेना माजूद थी, घनसारा सिंह और ब्रिगेडियर परांजपे मौजूद थे, लेकिन झंझट यह था कि भारतीय सेना के आगे बढ़ने का अधिकार केवल शेख अब्दुल्ला के हाथ में विशेष आदेश के द्वारा नेहरू ने दे रखा था।
1965 के पाक आक्रमण का जवाब देते हुए हमारी सेना लाहौर तक पहुंच गई थी, लेकिन ताशकंद समझौता हो गया। हमारी सेना लौट आई। पाकिस्तान ने कच्छ में हमारी जमीन आज तक नहीं छोड़ी। शिमला समझौते में हम अपना कश्मीर वापस ले सकते थे, पर धर्मनिरपेक्षता फिर आड़े आ गई। ‘थ्री हंड्रेड रामायण’ की विवादित सामग्री लम्बे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती रही। प्रफुल्ल विदवई ने अपनी किताब ‘फाइट हिन्दुत्व हेड ऑन’ (हिन्दुत्व से आमने-सामने की लड़ाई लड़ो) में ‘जहरीला हिन्दुत्व शब्दों का इस्तेमाल किया। सायरा बानो प्रकरण में शाहबानो केस की नजीर की गई। ऐसे अनेक प्रसंगों के द्वारा लेखक ने दिखाया है ‘धर्मनिरपेक्षता’ का सच और हिन्दुओं के साथ हो रहा पक्षपात।
दूसरा अध्याय है ‘वतन की फिक्र कर नादां’। लेखक ने बताया है-’1971 में 90 हजार पाकिस्तानी युध्दबंदी फौजियों ने हाथ उठा कर कसमें खाई थीं-’हमें एक बार वापस जाने दो। अल्ला रसूल की कसम, हम कभी मुड़ कर हिन्द की ओर नहीं देखेंगे। हम ही क्या, हम कुरान शरीफ की कसम खाकर कहते हैं कि हमारी नस्लें भी इस ओर नहीं देखेंगी।’ इस इकरार के बाद हुए 26/11 को आप क्या कहेंगे। पाकिस्तान की छोड़िए, ‘भारत की सीमा के अन्दर 55 उग्रवादी कैम्प चल रहे हैं।’ लेखक ने चेताया है कि इरादे नेक नहीं चीन के।’ वह हमारी जमीन हड़पे बैठा है और कई-कई क्षेत्रों पर उसकी गिध्द-दृष्टि है। ‘चीन और पाक में गोपनीय समझौता है।’ कैलाश-मानसरोवर को चीन ने सैनिक अड्डे में बदल दिया है। जिस बांग्लादेश को आजाद कराया, जिनके शरणार्थियों को भारत ने शरण दी, अन्न-जल दिया, उसी बांग्लादेश को आज चीन छोटे हथियारों का सप्लायर बन गया है।-ऐसा बहुत कुछ और बहुत महत्वपूर्ण इस अध्याय में है।
तीसरा अध्याय है ‘रोम-रोम में राम।’ राम भारत की संस्कृति और अस्मिता के प्रतीक हैं। भारत की पहचान हैं और राम के स्मृति-चिह्नों के साथ कैसे बरता जा रहा है यह जग-जाहिर है। ‘प्रगतिशीलों’ के देखें, राम कवि के दिमाग की कल्पना है। ‘रामसेतु’ केवल समुद्री तरंगों से इकट्ठा हो गया बालू का ढेर है। राममंदिर का पुनरुध्दार नहीं हो सकता। इतिहास-पुराण की सारी उक्तियां इन ‘प्रगतिशीलों’ के लिए कोई अर्थ नहीं रखतीं। सिर्फ एक-आध उध्दरण देता हूं। लेखक ने कहा है-’इस संदर्भ में मैं पहला नाम लिखना चाहूंगा कलंदर शाह का। वह 16वीं सदी के प्रसिध्द सूफी संत थे। वह जानकी बाग में रहते थे। मूलत: अरब से आए थे। कहते हैं उन्हें यहां माता सीता के साक्षात् दर्शन हुए और यहीं रह गए। निष्कर्ष-रूप में लेखक का मंतव्य है-’मुस्लिम बंधु मात्र एक स्थान को स्वेच्छा से मंदिर-निर्माण हेतु दे दें तो राष्ट्रीय एकता की मिसाल कायम होगी और सियासत करने वालों के नापाक इरादे मिट्टी में मिल जाएंगे।’
चौथे अध्याय का शीर्षक है-’ राष्ट्रवादियों को आतंकवादी मत बनाओ।’ लेखक ने स्मरण दिलाया है कि कभी गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् ने भगवा आतंकवाद का मिथक खड़ा करने का प्रयास किया था। वर्तमान गृहमंत्री फिर से वही दुहराते हैं। लेखक ने जो साक्ष्य रखे हैं उसे पढ़ने के लिए मैं आपको आमंत्रित करता हूं। कभी चंद्रशेखर आजाद को बापू ने ‘आतंकवादी’ कहा था।
लॉर्ड इरविन ने बापू से पूछा था कि क्या वे भगत सिंह आदि को छुड़ाना चाहते हैं, तो बापू का उत्तर था-’ … हिंसा के किसी भी पूजक को छोड़ने की पैरवी मैं नहीं कर सकता।’ लेखक ने बताया है-’महात्मा गांधी कांग्रेसी मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए मोपला विद्रोह को अंग्रेजों के विरुध्द विद्रोह बता कर आततायियों को स्वाधीनता सेनानी सिध्द करने का प्रयास कर रह थे जबकि मोपला में लाखों हिन्दुओं की नृशंस हत्या की गई और 20,000 हिन्दुओं को धर्मांतरित कर मुस्लिम बनाया गया। अध्याय के अन्त में लेखक ने चेताया है-’सत्ता में आसीन लोगों को याद रखना होगा कि श्री राम और श्री कृष्ण की भूमि पर सैलाब में सब कुछ अपने साथ बहा ले जाने की शक्ति होती है और पीछे जमीन को फिर से उर्वर बनाने की भी। सभी को राष्ट्र की शक्ति को पहचानना होगा।’
आखिरी (पांचवां) अध्याय है ‘षड्यंत्र-षड्यंत्र-षड्यंत्र’। इस अध्याय में कश्मीर में धारा 370 लगाने के उल्लेख के साथ कश्मीरी पंडितों की व्यथा-कथा है। पंजाब को अशांत बनाया गया। असम को अशांत बनाया गया और वहां की अशांति के नाम पर पिछले दिनों मुम्बई को दहलाने की कोशिश की गई। ऐसे अनगिनत प्रसंगों का उल्लेख लेखक ने किया है। असम की जनसंख्या के बढ़ते जाने के तिलस्म को भी तोड़ा गया है। जिन्ना और भुट्टो तक की नजरें असम पर टिकी थीं। इसका रास्ता उन्हें यह दिख रहा था कि इसे मुस्लिम बहुल बना दिया जाए। लेखक ने ठीक लिखा है-’वोट बैंक की राजनीति का परिणाम राष्ट्र को भुगतना होगा।’
पुस्तक के अन्त में दिए गए चित्रों से इसका आकर्षण बढ़ा है। हां, पुस्तक-प्रकाशन में थोड़ी और सावधानी बरती जानी चाहिए थी। कवर पर जब ‘हिन्दुस्तान’ है तो भीतर के पहले दूसरे पृष्ठ पर ‘हिन्दुस्थान’ क्यों है? किताब के नाम में संज्ञा तो एक होनी चाहिए। संपादक ने भूमिका अच्छी लिखी है, लेकिन अखबारी लेखों को जब पुस्तकाकार छापा जा रहा था तब बीच-बीच में, ‘आज की बात यही खत्म करता हूं, कल के आलेख में आगे की बातें लिखूंगा’ जैसी पंक्तियां क्यों हैं? इन्हें हटा दिया जाना चाहिए था। प्रूफ की जो थोड़ी अशुध्दियां हैं उन्हें दूर करना चाहिए था।
बहरहाल, यह किताब हर राष्ट्रभक्त को पढ़नी चाहिए।
प क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? प अश्विनी कुमार, संपादक, पंजाब केसरी प संपादन-महेश समीर, प संपादन-सहयोग-दीपक डुडेजा प सांस्कृतिक गौरव संस्थान, सत्यकिरण, सुभाष चौक, सोनीपत (हरियाणा) प संस्करण-सितम्बर 2012 ङ मूल्य-रु. 90.00 (पेपर बैक, डिमाई, 158 पृष्ठ)।