Thursday 23 January 2014

अगले लोकसभा चुनाव में हमारा एक एक वोट नये भारत की तकदीर लिखेगा

अगले लोकसभा चुनाव में हमारा एक एक वोट नये भारत की तकदीर लिखेगा


आपका वोट बहुत कीमती है, इसे व्यर्थ नहीं गवाएं, क्योंकि अगले लोकसभा चुनाव में हमारा एक एक वोट हमारे भविष्य की इबारत है, जो नये भारत की तकदीर लिखेगा। अत: यदि हमने भावुकता में बह कर बिना सोचे विचारे अविश्वसनीय पार्टी  के पक्ष में अपना वोट दे दिया, तो इसकी भारी कीमत देश को चुकानी पडेगी। क्योंकि एक ऐसी पार्टी जो जनता का भरोसा तोड़ चुकी है, षडयंत्र के जरिये देश को अस्थिर राजनीतिक व्यवस्था में झोंकने की रणनीति बना रही है। इस पार्टी को उन सभी पार्टियों का चुनावों के बाद सहयोग मिलेगा, जो अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की जनता को धोखा देने के लिए तैयार बैठी है।
केजरीवाल, मुलायम सिंह यादव, मायावती, नीतीश कुमार और लालू यादव दोगली राजनीतिक मन:स्थिति के राजनेता है, जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। ये सभी कांग्रेसी  थेली के चटेबट्टे हैं। एक दूसरे के विरोध में चुनाव लड़ेंगे और चुनावों के बाद अपने स्वार्थ के लिए साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर रखने के नाम पर एक हो जायेंगे। इनकी पॉकेट पार्टियों के पक्ष में गिरे सभी वोट कांग्रेस को ही दिये हुए माने जायेंगे। अत: बाद में पछताने से अच्छा है कि हम पहले से ही सतर्क हो जायें। कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए यदि आक्रोशित हैं, तो उन्हें भी तिरस्कृत कर दें, जो कांग्रेस के भावी सत्ता षड़यंत्र के प्रमुख पात्र बनने वाले हैं।
दिल्ली की साठ विधानसभा के मतदाताओं ने कांग्रेस के विपक्ष में वोट दिये थे, किन्तु केजरीवाल ने साठ विधानसभा के मतदाताओं को धोखा देते हुए आठ कांग्रेसी विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की ही डुप्लीकेट सरकार बना ली। निश्चय ही यदि दिल्ली की जनता को यह पता होता होता कि केजरीवाल ऐसा खेल खेलने वाला है, तो उसकी पार्टी के पक्ष में वोट देने के पहले जनता हजार बार सोचती। जनता ने उस व्यक्ति पर इसलिए विश्वास किया था क्योंकि उसने कसम खायी थी कि कांग्रेस के समर्थन से कभी सरकार नहीं बनायेगा। अठाईस  सीटें जीतने के बाद भी विपक्ष में बैठने या फिर जनादेश की बात करते हुए वह व्यक्ति चुपचाप कांग्रेस की गोद में बैठ गया। कांग्रेस के भ्रष्टाचार को उजागर करने और कांग्रेसियों को जेल भेजने का वचन देने वाला व्यक्ति एक भी भ्रष्टाचारी कांग्रसी तीतर को पकड़ कर पींजरे में बंद नहीं कर पाया है।
दिल्ली छोटा प्रदेश है। इस प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास विशेष अधिकार व शक्तियां नहीं है।  किन्तु केन्द्र में  सत्ता षडयंत्र से ऍसी सरकार  बन गयी, तो उसका क्या हश्र होगा, इसकी कल्पना से ही एक कंपकंपी छूट जाती है। मन वितृष्णा से भर जाता है। क्योंकि एक सौ बीस करोड़ नागरिकों का भाग्य केन्द्र की सरकार से बंधा रहता है। देश की अर्थ,, गृह,रक्षा, विदेश व औद्योगिक नीति पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। हमारी आंतरिक सुरक्षा प्रभावित होती है। दुश्मन राष्ट्र राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठा कर अपने घृणित मकसद को कामयाब करने में लग जाते हैं।
तीस सांसदों के मु​खिया वाली सरकार तीस दिन चले या एक दिन वह हर पल अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए भयभीत रहती है। ऐसी सरकारे वे महत्वकांक्षी राजनेता तो पसंद करेंगे जिनके लिए देश से बढ़ कर अपना राजनीतिक स्वार्थ हैं, किन्तु जनता क्यों इनके दुष्चक्र में फंसे ? अत: जनता से चुनावों से पहले उन्हें सीधा सवाल पूछना चाहिये- क्या आपकी पार्टी में इतनी क्षमता है कि वह लोकसभा की दो सौ बहतर सीटे जीत सके ? यदि नहीं है तो हम आपकी पार्टी के पक्ष में वोट नहीं देंगे। हम उस पार्टी को वोट देंगे जो यह क्षमता रखती है। आपकी पार्टी के पक्ष में वोट देने से उस पार्टी की क्षमता घट जायेगी, जो शासन करने का अधिकार रखती है। हम उस पार्टी को इतनी सशक्त बनायेंगे कि उसे  धूर्त और स्वार्थी राजनेताओं के समर्थन की आवश्यकता नहीं पड़े। जनता के समर्थन से ही वह सरकार बना लें और पूरी जवाबदेही से सरकार चला सकें।
इस समय भाजपा और कांग्रेस दो ही ऐसी  राजनीतिक पार्टियां हैं, जो दो सौ बहतर का आंकड़ा छू सकती है, किन्तु इसमे से एक- कांग्रेस वह क्षमता खो चुकी है। दस वर्ष के कुशासन ने उसे ऐसी स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया है कि उसके सांसदों की संख्या सौ से भी कम हो जायेगी। इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं होगा कि उसकी संख्या पचास -साठ के आस पास ही पहुंच जाय। ऐसी स्थिति में वह सरकार बनाने में समर्थ नहीं होगी, किन्तु षडयंत्र के जरिये केजरीवाल या अन्य क्षत्रप को प्रधानमंत्री बना देगी। यह स्थिति ठीक वैसी ही होगी, जैसी दिल्ली प्रदेश में बनी है। सत्ता पर कोई अन्य बैठा होगा, किन्तु सरकार की डोर कांग्रेस के हाथ में होगी। कांग्रेस भले ही देश को सुशासन और जवाबदेय प्रशासन देने में समर्थ नहीं हो, किन्तु राजनीतिक षडयंत्र रचने और जनता के साथ विश्वासघात करने में निष्णात है। राजनीतिक रंगमंच पर रोज तमाशे होंगे। जनता के पास एक वितृष्णा के साथ इन्हें देखने के अलावा कोई चार नहीं बचेगा।
एक राजनीतिक षड़यंत्र के तहत ही केजरीवाल की आप पार्टी चार सौ लोकसभा की सीटो पर प्रत्यासी खड़े करने की योजना बना रही है। दिल्ली में पावं उखड़ रहे हैं, किन्तु पूरे देश में पावं जमाने की हड़बड़ी हैं। जबकि हालत यह है कि देश के प्रत्येक प्रदेश, शहर और गांव में इस पार्टी का नेटवर्क नहीं है। पार्टी के पास दस अनुभवी नेता नहीं है, वे चार सौं सांसदों का जुगाड़ कैसे करेंगे? यह समझ के परे हैं। लोकसभा का क्षेत्र बहुत विस्तृत होता है। वही व्यक्ति हर गांव के मतदाता तक पहुंच सकता है, जो उस क्षेत्र में लोकप्रिय हो या जिसकी एक राष्ट्रीय छवि हो। निश्चय ही आप पार्टी के पास इतनी क्षमता और साम्मर्थय नहीं है। सम्भव है अपने राजनीतिक षडयंत्र को सफल करने के लिए कांग्रेस प्रचार का सारा खर्च उठा लें, ताकि आप पार्टी के प्रत्यासी जीतेंगे तो नहीं, किन्तु इतने वोट जरुर प्राप्त कर लेंगे, जिससे भाजपा को नुकासान हो। कांगेस लगभग तीस-चालिस भाजपा की सीटे कम करना चाहती हैं, वो भी अपनी क्षमता के बेहतर प्रदर्शन से नहीं, वरन एक राजनीतिक षड़यंत्र के जरिये। ऐसी धूर्त नीति देश के लिए बहुत घातक होगी। जिन लोगों की निष्ठा ही संदेहास्पद हों, उन पर विश्वास करना अपने आपको धोखा देना ही है।
अपने घपले और घोटालों के लिए कुख्यात कांग्रेस को दस वर्ष बाद महंगाई और भ्रष्टाचार की चिंता हुई है। अब शब्द आडम्बर से जनता की फटी जेब को सीने की निष्फल कोशिश कर रही है। लेकिन इससे क्या वह धन वापिस आ जायेगा, जो कोलगेट व टूजी स्पेक्ट्रम जैसे भारी भरकम घोटाले कर के लूटा गया था। यदि घोटाले नहीं होते, तो राजकोषीय घाटा नहीं बढ़ता और इसकी पूर्ति के लिए महंगाई बढ़ा कर जनता की जेब नही काटी जाती। जनता को अरबो रुपये की चपत देने के बाद अब समाज को बांटने वाले लोगों से दूर रहने की नसीहत दी जा रही है। जनता को नसीहत देने के पहले अपने कर्मों का हिसाब दीजिये। देश की जनता को तीन हजार वर्ष पूर्व का इतिहास याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है। जनता आपके दस वर्ष के शासन को अच्छी तरह भोग चुकी है, जो आपको पुन: सत्ता पाने के लिए अयोग्य साबित करता है। अत: अशोक और अकबर की तुलना अपने आपसे मत कीजिये। महान सम्राटों ने जनता का दिल जीतने के लिए छल, कपट और धूर्त नीतियों का सहारा नहीं लिया था।

Wednesday 22 January 2014

कहीं केजरीवाल स्टंट देश के लिए संकट नहीं बन जाय

कहीं केजरीवाल स्टंट देश के लिए संकट नहीं बन जाय


अनीति के खेल में निष्णात कांग्रेस अपने ही कर्मो पर आज शिर्मंदा हो रही है। जो फसल बोई थी, उसके फल इतने जल्दी लग जायेंगे, ऐसी आशा कांग्रेस के उन नेताओं को नहीं थी, जो केजरीवाल को एक तुरुप का इक्का बना कर नरेन्द्र मोदी की बढ़त को रोकने का ख्वाब देख रहे थे। मोदी की लोकप्रियता के रथ को केजरीवाल रोकेंगे या नहीं, यह तो समय ही बतायेगा, किन्तु कांग्रेस की रही सही प्रतिष्ठा इस व्यक्ति ने धूल में मिला दी है। शिंदे को खलनायक बना कर पूरे देश में प्रचारित करने से कांग्रेस की ही किरकिरी हो रही है। कांग्रेसी नेताओं को अब तो समझ आ गया होगा कि जिस व्यक्ति की महत्वाकांक्षाएं पहाड़ जितनी बढ़ गयी हों, उस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। दिल्ली के आठो विधायक केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के समर्थक नहीं थे, उन्होंने बड़े बे मन से हाईकमान के आदेश को माना था। किन्तु पूरे देश के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को पार्टी का निर्णय पसंद नहीं आया था, क्योंकि जिस व्यक्ति ने पूरे देश में पार्टी की प्रतिष्ठा बिगाड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, उसकी ही सरकार बनाना उन्हें जंचा नहीं था। अब सांप निकल जाने के बाद लाठी पिटने से कुछ हांसिल भी होने वाला नहीं है। सिर पकड़ कर रोने के अलावा कांग्रेस के पास कोई चारा ही नहीं बचा है।
केजरीवाल ने बहुत सोच समझ प्रपोगंड़ा कर रहे हैं। वे शीला दीक्षित के धोटालों में हाथ डालना नहीं चाहते, क्योंकि एक आध महीने में उन्हें कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है। वे जानते हैं कि उनकी सरकार की उम्र छ: माह से ज्यादा नहीं है और वे जांच बिठायेंगे उसके परिणाम आने में देर लगेगी। जनता से किये गये वादे भी पूरे करने में सक्षम नहीं है। प्रदेश की वित्तीय हालत बहुत खराब है, लोकलुभावन वादे पूरे करने के लिए पैसा कौन देगा ? बिजली -पानी की दरे तो आवेश में आ कर घटा दी, परन्तु जो उलझने आ रही है उन्हें सुलझा नहीं पा रहे हैं। भारी टीवी प्रचार के माध्यम से भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैल्पलाईन  की घोषणा तो कर दी, परन्तु परिणाम सिफर ही रहा। पूरे देश के किसी भी कार्यालय में कोई भी अफसर कहीं पर भी सीधे रिश्वत नहीं लेता है। सारा काम दलालों के माध्यम से होता है, अत: कानूनों में सुधार किये बिना रिश्वत नहीं रोक सकते। भ्रष्टाचार रोकने का केजरीवाल का दावं भी फैल हो गया है। वे अब तक एक भी भ्रष्टाचार का प्रकरण पकड़ नहीं पाये हैं।
अपने अनुभवहीन नौसिखिये मंत्रियों के बल पर केजरीवाल सरकार चलाने में असमर्थ हैं। दूसरी ओर उन्हें मालूम है कि बिन्नी कांग्रेसी पृष्ठभूमि के व्यक्ति है, जो पार्टी का विभाजन भी कर सकते है। परन्तु सारा खेल लोकसभा के चुनावों के बाद खेला जायेगा, जब केजरीवाल का तिलस्म समाप्त हो जायेगा और चौबेजी से छब्बे जी बनने के लालच के कारण दूबे जी ही बन कर रह जायेंगे। निष्कर्ष यह है कि केजरीवाल सरकार की उम्र अधिक नहीं है। कांग्रेस किसी भी क्षण समर्थन ले सकती है और केजरीवाल की स्वयं की पार्टी टूट सकती है।
दिल्ली में सरकार बनाने से उन्हें इतना मजा नहीं आया, जितना उन्होंने सोचा था। मीडिया भी अब धीरे-धीरे दूर होने लगा था। सभी चेनल उनके समाचारों को कम दिखा रहे थे। जो व्यक्ति मीडिया के भरोसे ही पूरे देश में अपनी छवि चमकाने को व्यथित नज़र आ रहा था, उसे यह सब कुछ सहन नहीं हुआ और अंतत: नये स्टंट की आवश्यकता आ पड़ी। सड़क स्टंट में सफल रहते हैं, क्योंकि सड़कों पर मीडिया के केमरे आ ही जाते हैं। मीडिया के केमरे के सामने झूठ बोलना, अपनी बात पर पलट जाना और कांग्रेस और बीजेपी को मिला हुआ बताने में उन्हें कभी संकोच नहीं होता। आज उन्होंने कुछ मीडिया के समाचार चेनलों को मोदी और कांग्रेस का एजेंट भी बता दिया, क्योंकि उनके झूठ को पकड़ कर वे सबूत दे रहे थे। जबकि उनके चहेते चेनल उनके झूठ को महिमामंडित कर रहे थे।
पूरे देश की जनता केजरीवाल के स्टंट से बोर होने लगी है। वे उन चेनल को बदल देते हैं, जिसमें केजरीवाल से संबंधित खबरे ही आती है। अत: आंदोलन के समर्थन और विपक्ष में जो आंकड़े चेनल जुटाते हैं, वे सभी इन्हीं के लोगो द्वारा भेजे जाते हैं। पूरे देश की जनता उसमें भाग नहीं लेती। समाचार चेनल यदि निरन्तर पूरे देश में घटित हो रहे समाचारों को उपेक्षित कर केजरीवाल के ही समाचार देंतें रहेंगे, तो उनकी टीआरपी बढ़ने के बजाय घटने लगेगी। वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया में इस पार्टी की अत्यधिक सक्रियता है। कई लोग इसी काम में लगे हुए हैं, जो निरन्तर भ्रम और झूठी खबरे देश भर में फैला रहे हैं।
केजरीवाल झूठ, स्टंट, नौटंकी और प्रपोगंड़ा में सिद्धहस्त हो गये हैं। समाचार मीडिया और सोशल मीडिया में अपने प्रचार के लिए भारी धन राशि खर्च कर रहे हैं। फलत: देश विदेश से भारी धन राशि चंदे के रुप में उनके पास आ रही है। यह भी सम्भव है कि जो देश भारत की प्रगति पसंद नहीं करते तथा जो भारत के साथ परम्परागत दुश्मनी निभा रहे हैं, वे भारत में स्थिर और सुदृढ़ सरकार नहीं चाहते है। वे यह भी नहीं चाहते हैं कि कोई योग्य प्रशासक भारत की सरकार का संचालन करें। ऐसी भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि उन देशों से इस व्यक्ति को अपनी राजनीति चमकाने के लिए भारी धन राशि दी जा सकती है।
यदि ऐसा होता है, तो यह बहुत ही दुर्भाग्यजनक स्थिति होगी। क्योंकि जो व्यक्ति जिममेदार पद पर बैठ कर अपने स्वार्थ के लिए संवैधानिक संस्थाओं और लोकतांत्रिक परम्पराओं को तोड़ने में बिल्कुल भी संकोच नहीं कर रहा है, हर सांस में झूठ बोल रहा है, उस पर किसी भी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता। अत: देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को केजरीवाल के राजनीतिक स्टंट को बहुत गम्भीरता से लेना पहोगा, क्योंकि अब वे सारी हदे पार कर चुके हैं। देश हित में इस व्यक्ति के प्रपोगंड़ा का विरोध करना चाहिये। कहीं ऐसा नहीं हो कि अपने झूठ और स्टंट के बल पर भारतीय जनता को मूर्ख बनाने में सफल हो जाय, जिसका खामियाजा राष्ट्र की सार्वभौमिकता और सुरक्षा को चुकाना पड़े। अभी तो दिल्ली प्रदेश की सरकार को संकट झेलना पड़ रहा है, किन्तु केन्द्र सरकार पर केजरीवाल का नियंत्रण हो गया तो क्या होगा ? इसकी कल्पना से कंप-कंपी छूट जाती है। अच्छा है, कांग्रेस नेताओं की अपनी अनीति जिसे कूटनीति समझ रहें है, उसके दुष्परिणामों को भांप कर इस बिगडै़ घोड़े पर दावं नहीं लगायेंगे। बिगड़े घोड़े निश्चय ही बीच में पटक देते हैं। भारी दुर्घटना से अपने अस्तित्व पर संकट खड़ा करने की जोखिम कांग्रेस नेताओं को नहीं लेनी चाहिये।