क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है?
कठिनाई यह है कि धर्म-निरपेक्ष कहलाना आज का भारतीय फैशन है। कथित हिन्दुओं की पीड़ा को आप रेखांकित करें, हिन्दू धर्म-संस्कार की बात आप करें, हिन्दुओं के तीर्थों की चर्चा करें, हिन्दू रीति-रिवाज का अनुसरण करें, तो आप सांप्रदायिक हैं। विवेकानन्द ने कहा था-’गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’, सच्चाई यह है कि इस माहौल में अपने को हिन्दू कहते भय होता है। ऐसे में अश्विनी कुमार की प्रमाण-पुष्ट, आंखें खोलने वाली किताब ‘क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है’ पर विचार करते समय भी ‘सांप्रदायिक’ होने का ठप्पा लग जाने का डर लगता है। अश्विनी कुमार (पंजाब केसरी के संपादक) में सच कहने का साहस और हिन्दुओं की पीड़ा को रेखांकित करने का मनोबल उनके रक्त में, उनके संस्कार में है। यह सच बोलने की कीमत उनके पितामह और पिता (क्रमश: अमर शहीद लाला जगत नारायण तथा अमर शहीद श्री रमेशचन्द्र) ने अपने प्राण उत्सर्ग करके चुकाई थी। ‘पंजाब केसरी’ में केसरी का गर्जन करने की ताकत यों ही नहीं है।प्रस्तुत पुस्तक की अधिकांश सामग्री समय-समय पर ‘पंजाब केसरी’ में विशेष संपादकीय आलेख के तौर पर धारावाहिक रूप से प्रकाशित हो चुकी है। अखबार के पृष्ठों में यह मूल्यवान् दस्तावेज खो ही न जाए, सो उचित ही उस पूरी शोधपरक सामग्री को पुस्तकाकार प्रकाशित कर दिया गया है। यह किताब केवल भावनात्मक ज्वार में रचित नहीं है, जो भी कहा गया है वह प्रमाणों से और तर्कों से पुष्ट किया गया है। और लेखक का नीर-क्षीर विवेक यह कि गांधीजी को भी यह किताब बख्शती नहीं है। पंडित नेहरू से लेकर आजकल के महाप्राण नेताओं के एकांगी वोट-बटोरू फैसलों को तो रेखांकित करती ही है। मैं सोचता हूं, कई-कई देश घोषित रूप से इस्लामी हैं, कई-कई देशों का राजधर्म ईसाई है और हिन्दू? एक नेपाल कभी हिन्दू देश था, अब वह प्रगतिशील (?) मार्क्सवादी देश है। रहा भारत, सो यहां भी वस्तुत: हिन्दू दोयम दर्जे का नागरिक है। आखिर हिन्दुओं का अपना देश इस धरती पर कौन-सा है। ‘आर्यावर्त’, ‘हिन्दुस्तान’ से हिन्दुस्थान बना फिर इंडिया और हमारा संविधान इस देश को ‘इंडिया’ ही कहता है, इंडिया जो भारत है!
पूरी पुस्तक 05 शीर्षकों में विभाजित है। ‘क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है’ में कश्मीर की आज की स्थिति के कारक इतिहास को खंगाला गया है। पाकिस्तान हमारे कश्मीर का 2/5 भाग दबाए क्यों बैठा है? लेखक ने बताया है कि पाकिस्तान की बलात्कारी फौज को जवाब देने के लिए हमारी सेना माजूद थी, घनसारा सिंह और ब्रिगेडियर परांजपे मौजूद थे, लेकिन झंझट यह था कि भारतीय सेना के आगे बढ़ने का अधिकार केवल शेख अब्दुल्ला के हाथ में विशेष आदेश के द्वारा नेहरू ने दे रखा था।
1965 के पाक आक्रमण का जवाब देते हुए हमारी सेना लाहौर तक पहुंच गई थी, लेकिन ताशकंद समझौता हो गया। हमारी सेना लौट आई। पाकिस्तान ने कच्छ में हमारी जमीन आज तक नहीं छोड़ी। शिमला समझौते में हम अपना कश्मीर वापस ले सकते थे, पर धर्मनिरपेक्षता फिर आड़े आ गई। ‘थ्री हंड्रेड रामायण’ की विवादित सामग्री लम्बे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती रही। प्रफुल्ल विदवई ने अपनी किताब ‘फाइट हिन्दुत्व हेड ऑन’ (हिन्दुत्व से आमने-सामने की लड़ाई लड़ो) में ‘जहरीला हिन्दुत्व शब्दों का इस्तेमाल किया। सायरा बानो प्रकरण में शाहबानो केस की नजीर की गई। ऐसे अनेक प्रसंगों के द्वारा लेखक ने दिखाया है ‘धर्मनिरपेक्षता’ का सच और हिन्दुओं के साथ हो रहा पक्षपात।
दूसरा अध्याय है ‘वतन की फिक्र कर नादां’। लेखक ने बताया है-’1971 में 90 हजार पाकिस्तानी युध्दबंदी फौजियों ने हाथ उठा कर कसमें खाई थीं-’हमें एक बार वापस जाने दो। अल्ला रसूल की कसम, हम कभी मुड़ कर हिन्द की ओर नहीं देखेंगे। हम ही क्या, हम कुरान शरीफ की कसम खाकर कहते हैं कि हमारी नस्लें भी इस ओर नहीं देखेंगी।’ इस इकरार के बाद हुए 26/11 को आप क्या कहेंगे। पाकिस्तान की छोड़िए, ‘भारत की सीमा के अन्दर 55 उग्रवादी कैम्प चल रहे हैं।’ लेखक ने चेताया है कि इरादे नेक नहीं चीन के।’ वह हमारी जमीन हड़पे बैठा है और कई-कई क्षेत्रों पर उसकी गिध्द-दृष्टि है। ‘चीन और पाक में गोपनीय समझौता है।’ कैलाश-मानसरोवर को चीन ने सैनिक अड्डे में बदल दिया है। जिस बांग्लादेश को आजाद कराया, जिनके शरणार्थियों को भारत ने शरण दी, अन्न-जल दिया, उसी बांग्लादेश को आज चीन छोटे हथियारों का सप्लायर बन गया है।-ऐसा बहुत कुछ और बहुत महत्वपूर्ण इस अध्याय में है।
तीसरा अध्याय है ‘रोम-रोम में राम।’ राम भारत की संस्कृति और अस्मिता के प्रतीक हैं। भारत की पहचान हैं और राम के स्मृति-चिह्नों के साथ कैसे बरता जा रहा है यह जग-जाहिर है। ‘प्रगतिशीलों’ के देखें, राम कवि के दिमाग की कल्पना है। ‘रामसेतु’ केवल समुद्री तरंगों से इकट्ठा हो गया बालू का ढेर है। राममंदिर का पुनरुध्दार नहीं हो सकता। इतिहास-पुराण की सारी उक्तियां इन ‘प्रगतिशीलों’ के लिए कोई अर्थ नहीं रखतीं। सिर्फ एक-आध उध्दरण देता हूं। लेखक ने कहा है-’इस संदर्भ में मैं पहला नाम लिखना चाहूंगा कलंदर शाह का। वह 16वीं सदी के प्रसिध्द सूफी संत थे। वह जानकी बाग में रहते थे। मूलत: अरब से आए थे। कहते हैं उन्हें यहां माता सीता के साक्षात् दर्शन हुए और यहीं रह गए। निष्कर्ष-रूप में लेखक का मंतव्य है-’मुस्लिम बंधु मात्र एक स्थान को स्वेच्छा से मंदिर-निर्माण हेतु दे दें तो राष्ट्रीय एकता की मिसाल कायम होगी और सियासत करने वालों के नापाक इरादे मिट्टी में मिल जाएंगे।’
चौथे अध्याय का शीर्षक है-’ राष्ट्रवादियों को आतंकवादी मत बनाओ।’ लेखक ने स्मरण दिलाया है कि कभी गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् ने भगवा आतंकवाद का मिथक खड़ा करने का प्रयास किया था। वर्तमान गृहमंत्री फिर से वही दुहराते हैं। लेखक ने जो साक्ष्य रखे हैं उसे पढ़ने के लिए मैं आपको आमंत्रित करता हूं। कभी चंद्रशेखर आजाद को बापू ने ‘आतंकवादी’ कहा था।
लॉर्ड इरविन ने बापू से पूछा था कि क्या वे भगत सिंह आदि को छुड़ाना चाहते हैं, तो बापू का उत्तर था-’ … हिंसा के किसी भी पूजक को छोड़ने की पैरवी मैं नहीं कर सकता।’ लेखक ने बताया है-’महात्मा गांधी कांग्रेसी मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए मोपला विद्रोह को अंग्रेजों के विरुध्द विद्रोह बता कर आततायियों को स्वाधीनता सेनानी सिध्द करने का प्रयास कर रह थे जबकि मोपला में लाखों हिन्दुओं की नृशंस हत्या की गई और 20,000 हिन्दुओं को धर्मांतरित कर मुस्लिम बनाया गया। अध्याय के अन्त में लेखक ने चेताया है-’सत्ता में आसीन लोगों को याद रखना होगा कि श्री राम और श्री कृष्ण की भूमि पर सैलाब में सब कुछ अपने साथ बहा ले जाने की शक्ति होती है और पीछे जमीन को फिर से उर्वर बनाने की भी। सभी को राष्ट्र की शक्ति को पहचानना होगा।’
आखिरी (पांचवां) अध्याय है ‘षड्यंत्र-षड्यंत्र-षड्यंत्र’। इस अध्याय में कश्मीर में धारा 370 लगाने के उल्लेख के साथ कश्मीरी पंडितों की व्यथा-कथा है। पंजाब को अशांत बनाया गया। असम को अशांत बनाया गया और वहां की अशांति के नाम पर पिछले दिनों मुम्बई को दहलाने की कोशिश की गई। ऐसे अनगिनत प्रसंगों का उल्लेख लेखक ने किया है। असम की जनसंख्या के बढ़ते जाने के तिलस्म को भी तोड़ा गया है। जिन्ना और भुट्टो तक की नजरें असम पर टिकी थीं। इसका रास्ता उन्हें यह दिख रहा था कि इसे मुस्लिम बहुल बना दिया जाए। लेखक ने ठीक लिखा है-’वोट बैंक की राजनीति का परिणाम राष्ट्र को भुगतना होगा।’
पुस्तक के अन्त में दिए गए चित्रों से इसका आकर्षण बढ़ा है। हां, पुस्तक-प्रकाशन में थोड़ी और सावधानी बरती जानी चाहिए थी। कवर पर जब ‘हिन्दुस्तान’ है तो भीतर के पहले दूसरे पृष्ठ पर ‘हिन्दुस्थान’ क्यों है? किताब के नाम में संज्ञा तो एक होनी चाहिए। संपादक ने भूमिका अच्छी लिखी है, लेकिन अखबारी लेखों को जब पुस्तकाकार छापा जा रहा था तब बीच-बीच में, ‘आज की बात यही खत्म करता हूं, कल के आलेख में आगे की बातें लिखूंगा’ जैसी पंक्तियां क्यों हैं? इन्हें हटा दिया जाना चाहिए था। प्रूफ की जो थोड़ी अशुध्दियां हैं उन्हें दूर करना चाहिए था।
बहरहाल, यह किताब हर राष्ट्रभक्त को पढ़नी चाहिए।
प क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? प अश्विनी कुमार, संपादक, पंजाब केसरी प संपादन-महेश समीर, प संपादन-सहयोग-दीपक डुडेजा प सांस्कृतिक गौरव संस्थान, सत्यकिरण, सुभाष चौक, सोनीपत (हरियाणा) प संस्करण-सितम्बर 2012 ङ मूल्य-रु. 90.00 (पेपर बैक, डिमाई, 158 पृष्ठ)।
No comments:
Post a Comment