भारत 1947 में आज़ाद हुआ, और आज़ादी के तुरंत बाद तत्कालीन भारतीय नेताओ
ने एक जादूगर की तरह चमकीले चोगे में लोकतंत्र को पेश किया, हमारी सारी
समस्याओ को छु-मंतर करने के लिए | आज आज़ादी के 65 साल बाद भी समस्याएं ऐसी
है की मिटने का नाम नहीं लेती | मिटना तो दूर, अपितु उनमे वृद्धि ही हुई
है |
कहा जाता है की भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद, जिसे हम संविधान कहते है, को
तैयार करने में लगभग दो वर्ष लगे थे | न जाने कितने ही शिक्षित व विकसित
देशों के संविधानों का अध्ययन कर बनाया गया था, हमारा संविधान | न जाने
कितने ही जागरूक व अत्यधिक शिक्षित व्यक्तित्वों के मनो-मश्तिस्कों का सार
है, हमारा संविधान | और हाल ही एक विश्व-विख्यात अंतरराष्ट्रीय संस्था ने
भी भारतीय संविधान को विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान घोषित किया है | तो
फिर, कमी कहाँ पर रह गयी, क्यों हम आज भी त्रस्त और असहाय से , ताकते रहते
है शुन्य में | क्यों हमे अपना ही देश, अपना होते हुए भी अपना सा नहीं
लगता, और क्यों दिखाई देते है हम, एक हारे हुए सिपाही की तरह, हर मोर्चे पर
प्रताड़ित होने के बाद भी |
लोकतंत्र एक बहुत ही आधुनिक और शिक्षित किस्म की व्यवस्था है | "जनता का,
जनता के लिए, जनता के द्वारा" शासन | मतलब वह व्यवस्था जिसके संचालन की
जवाबदारी जनता की है | जनता वह, जो शिक्षित हो, समझती हो अपनी जिम्मेदारी
को, अपने अधिकारों को और आगे आकर पहल करने को तैयार रहे | जनता वह, जो
जागरूक रहे, और तैयार रहे अपना सर्वस्व बलिदान करने को देश की खातिर | यहाँ
पर लाचार, बेकार जनता का कोई अस्तित्व नहीं है, इस व्यवस्था में |
भारतीय लोकतंत्र के साथ विडंबना यही है की एक अशिक्षित व पिछड़े समाज
(1947 का भारत) पर एक शिक्षित व्यवस्था थोप दी गयी है | वह व्यवस्था, जिसका
ज्ञान, न तो जनता को है, और न ही उनके चुने हुए नेताओ को | जनता आज भी
अपने नेताओ द्वारा की जा रही मनमानी और अत्याचारों को अपना जन्मसिद्ध
अधिकार समझते हुए, सह रही है | विडंबना यही है की हमने सर्वाधुनिक व
सर्वश्रेष्ठ भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था को राजशाही में परिवर्तित कर
दिया और उससे भी बड़ी विडंबना यहाँ है की हम इसी राजसी-लोकतान्त्रिक
व्यवस्था को बड़ी शिद्दत के साथ सींच भी रहे है |
यह भारतीय जनमानस ही है, जो नेता पिता के बाद उसके पुत्र में भी नेता
ढूंढता है, और चाहे जान ही क्यों न निकल जाये, मुह से आवाज़ तक नहीं
निकलती, सहनशील भारतीय जनमानस की |
इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का हथियार है - शिक्षा |
भारतीय नेताओ के निजिगत स्वार्थो ने भारतीय शिक्षा पद्धति को भी विकलांग
बना दिया है, जिससे शिक्षित व्यक्ति इस दोगली व्यवस्था पर निर्भर होता सा
दिखाई देता है | शिक्षा में राष्ट्रवाद, स्वाभिमान, इमानदारी, दया समभाव,
जिम्मेदारी आदि का स्थान भेदभाव, भ्रष्टाचार, घृणा, मक्कारी, लालच आदि बुरी
बलाओं ने ले लिया है, जिसे हर बच्चे के मनो-मष्तिस्क में बचपन से ही घोला
जा रहा है और एक ऐसी नस्ल तैयार की जा रही रही, जिसमे स्वयं की सोच नहीं,
जागरूकता नहीं, बस निर्भरता है इस दोगली व्यवस्था पर, दोगले चरित्रों पर, व
उधार लिए हुए मानसिकता और विचारों पर |
यह भारतीय शिक्षा व हमारे संस्कारों में व्याप्त खामी ही है, जो हमे
राष्ट्र द्वारा भयंकर आपदाओं से घिरे होने के बाद भी खामोश रखती है, हमारे
मनो-मष्तिस्क को कुंठित कर हमारे व्यक्तिगत व्यक्तित्व को समूल ही नष्ट कर
देता है, और परिवर्तित कर देता है, हमे मशीन में, बिलकुल रोबोट की तरह | आप
स्वयं सोचें, आपका पूरा व्यक्तित्व, पूरी विचारशैली, क्या आपकी स्वयं की
है या उधार ली है, किसी से आपने |
एक ऐसी विकलांग पीढ़ी के सहारे, हम भारत की, भारतीय लोकतंत्र की सुखद
तस्वीर देखते है, जिसे आलस्य व लापरवाही हेतु ही तैयार किया गया है | यह
ठीक वैसा ही है जैसे उत्तराखंड आपदा के दौरान राहुल गाँधी का चमत्कारिक
सहयोग |
ऐसा नहीं है की भारतीय व्यवस्था में परिवर्तन की गुंजाइश नहीं है,
परिवर्तन होगा परन्तु उसकी शुरुआत हमसे होनी चाहिए | कर्मो से पहले हमे
अपने विचारों में परिवर्तन लाना होगा, कब तक हम कांग्रेस की, भाजपा की, संघ
की या अन्य किसी की विचारधारा को ढोकर अपने व पुरे समाज के स्वप्निल
भविष्य के साथ खेल खेलते रहेंगे, और कब जहर घोलते रहेंगे अपनी ही आने वाली
पीढ़ी के जीवन में | हमे ढूँढना होगा अपने स्वयं के व्यक्तित्व को, अपने
अंतर्मन की आवाज़ को, सुनना होगा उसे, तराशना होगा उसे, और साथ ही मदद भी
करनी होगी, दुसरो की इस कठिन पथ पर | याद रहें विकास एक प्रक्रिया है, यदि
वर्तमान आपको सुरक्षित नहीं लगता, तो भविष्य कहाँ से सुरक्षित होगा, इस
प्रक्रिया में हमे एक सच्चे व सही मार्ग की आवश्यकता है, जिस पर पूर्ण
हिम्मत के साथ बढ़ा जा सकें, अन्यथा अगले 60 वर्ष तो क्या, अगले 600 वर्षों
तक भी हम कही भी नहीं पहुँच पाएंगे |
जय भारती ! जय हिन्द !! जय श्री कृष्णा !!!
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