Friday, 5 July 2013

खुद शान से झूठ बोलते हैं, परन्तु श्री मोदी के सच को झूठ बता कर उन्हें फैंकू कहते हैं

देश की राजनीति इतनी गंदी हो गयी है कि इसके बारें में बात करते हुए घिन्न आती हैं। कभी राजनेताओ को ले कर मन मे श्रद्धा का भाव उमड़ता था, आज मन वितृष्णा से भर जाता है। क्या यही दिन दिखाने के लिए शहीदों ने अपने जीवन की आहूति दी थी कि स्वतंत्र भारत की बागड़ोर ऐसे निकृष्टतम चरित्र के लोगों के हाथों मे आ जायेगी, जो देश को स्वच्छन्द हो कर लूटेंगे और इस उपक्रम में वे ब्रिटिश साम्राज्य को भी पीछे छोड देंगे? क्या यही सोच कर हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान की रचना की थी कि लोकतांत्रिक भारत में विचारधारा का लोप हो जायेगा। राजनैतिक पार्टियां विचारधारा के आधार पर एक दूसरे का विरोध नहीं करेगी, अपितु पार्टियां गौर व्यक्तिवादी  हो जायेगी और उनके व्यवहार में एक दूसरे के प्रति व्यक्तिगत शत्रुता होगी। देश में घटित किसी दुखद त्रासदी के समय एक हो कर मानवीय सेवा में लगने के बजाय वे एक दूसरे के प्रति अपनी भडास निकालेंगे। ऐसे मौके पर विरोधी पार्टी को साथ लेने के बजाय उसे नीचा दिखाने की कोशिश की जायेगी। जो विरोधी पार्टी में होते हैं, वे क्या जनता के दुश्मन होते हैं? क्या जनता उनके पक्ष में वोट नहीं देती ? क्या सता पर नियंत्रण होने पर यह आवश्यक है कि विपक्षी पार्टी  के जनप्रतिनिधियों के साथ शत्रुता निभायी जाये? क्या यह उन्हीं गांधी की कांग्रेस है, जो कहते थे कि यदि आपके गाल पर कोई एक तमाचा मारे तब दूसरा गाल सामने कर दों। परन्तु अब तो गांधी की कांग्रेस  की प्रवृति हो गयी है कि कोई कुछ कहे नहीं उसके पहले ही उसके गाल पर तडातड तमाचे झड़ दो।
उतराखंड प्राकृतिक आपदा भारत में अब तक घटित हुई विभत्स त्रासदी में एक है। भारी जन हानि हुई है। यह स्थान हिन्दूओं की श्रद्धा से जुड़ा हुआ है, अत: जून माह में देश भर से प्रति वर्ष लाखों श्रद्धालु केदारनाथ जाते हैं। यदि मौसम विभाग मौसम के अनुकूल नहीं रहने की घोषणा कर देता, तो श्रद्धाल अपनी यात्रा निरस्त कर देते। आपदा के समय एक लाख से अधिक व्यक्ति ऊंचाई पर स्थित मंदिर में थे। निश्चय ही, इतने अधिक व्यक्तियों को दुर्गम स्थान पर एक साथ नहीं भेजना था और उनकी संख्या को नियंत्रित करना था। दूसरा लाखों व्यक्तियों को प्रशासनिक सुविधा देने के लिए कम से दो तीन हजार सरकारी कर्मचारी नियुक्त करने थे। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया। आपदा आ गयी। हजारों लोग इसमें फंस गये। हजारों श्रद्धालुओं की इस आपदा में मौत हो गयी। इनमें से आधे से अधिक व्यक्तियों की मौत समय पर सरकारी सहायता नहीं मिलने से हुई। उनका जीवन बचाया जा सकता था, यदि घायल व्यक्तियों को तुरन्त चिकित्सा सुविधा मिल जाती। मलबे में दब कर कराह रहे व्यक्तियों को बाहर निकालने की कोशिश की जाती। कई व्यक्ति भूख प्यास से तड़फ-तड़फ कर मर गये, क्योंकि सेना और प्रशासनिक मशीनरी के त्वरित तालमेल की कमी से कई दिनो तक भोजन नहीं पहुंचाया जा सकता था। नि:संदेह सरकार की अक्षमता, निष्क्रियता और आपदा से निपटने के लिए उसकी प्रशासनिक प्रतिबद्धता की कमी  के कारण हजारों श्रद्धालुओं की मौत हुई है, इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता।
जब पूरे देश से आये श्रद्धालुओं में से अधिकांश श्रद्धालु अपने घर पहुंच चुके हैं और वे रो-रो कर सरकारी अक्षमता को बयां कर रहे हैं, किन्तु सरकार अब झूठे विज्ञापनों का सहारा ले कर अपनी छवि चमकाने की कोशिश कर रही है। अर्थात विपदा और मातम को राजनीतिक रंग देने का यह घृणित प्रयास है। किन्तु सब से दुखद बात यह है कि ऐसे समय में जब हजारों श्रद्धालु अभी फंसे हुए है, जिन्हें सुरक्षित निकालना बाकी है। मौसम के प्रतिकूल होने से उन्हें भारी परेशानी हो रही है। मलबे में दबी हुई और इधर-बिखरी लाशो की पहचान कर, उनका अंतिम संस्कार करना बाकी है। पूरे देश से नागरिक अपने खोये हुए परिजनों के संबंध में जानकारी मांग रहे हैं, उन्हें संतुष्ट करना बाकी है। ऐसी दुखद विपदा की घडी में एक सताधारी पार्टी के शीर्षस्थ नेता जनता का ध्यान हटाने के लिए श्री नरेन्द्र मोदी को गालिया दे रहे हैं। यह तो ऐसा ही हो गया कि किसी घर में मातम मनाया जा रहा हो, वहां शोक व्यक्त करने के बजाय अपने किसी दुश्मन को जोर जोर से चिल्ला कर अपशब्द कहों। जबकि प्राकृतिक आपदा के दोषी श्री नरेन्द्र मोदी नहीं है। सरकार की प्रशासनिक अक्षमता के दोषी भी श्री मोदी नहीं है, क्योंकि  हजारों लोगों को बचाया जा सकता था, यदि सरकार सक्रिय और मुस्तैद रहती।
श्री नरेन्द्र मोदी का दोष यह था कि वे आपदा स्थल पर गये और लोगों से मिले। वे पीडितों से मिलने वहां भी जाना चाहते थे, जहां लोग फंसे हुए थे, परन्तु उन्हें यह कह कर रोक दिया कि इससे राहत कार्य प्रभावित होता है। इसके प्रतिवाद में उन्होंने कुछ नहीं कहा। वे दो दिन रुके अपने साथ लाये विशेष राहत दल और प्रशासनिक अधिकारियों की मदद से गुजराती श्रद्धालुओं को ढूंढा और उन्हें वाहनों में बिठा कर अपने घर भेज दिया। जितने वाहन रवाना हुए थे, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में होगी। क्या उनका यह उपक्रम गलत था। एक प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते क्या वे अपने प्रदेश के नागरिकों की मदद करना उनका राजधर्म नहीं है? उनके इस प्रयास की क्यों आलोचना की जा रही है? क्यों उन्हें फैंकू और झूठा कहा जा रहा है? क्यों उन्हें रावण और रेनबो कहा जा रहा है? क्या वैचारिक क्षुद्रता और ओछेपन की यह  पराकाष्ठा नहीं है।
श्री मोदी राहत कार्य अपने हाथ में लेने और केदारनाथ का भव्य मंदिर बनाने की इच्छा इसलिए अभिव्य की थी कि उन्हें आपदा प्रबन्धन का प्रशासनिक अनुभव है। गुजरात में भूकंप के बाद मौरवी, भूज और आस पास के गांवों को बहुत कम समय में नया रुप दे दिया गया था, जिसकी तारीफ पूरे विश्व ने की थी। परन्तु प्रश्न यह है कि उन्होंने ऐसी क्या गलत बात कह दी, जिससे आसमान टूट पड़ा और सारे के सारे कांग्रेसी नेता उन्हें फैंकूं और झूठा कहने की प्रतिस्पर्धा में लग गये। जबकि झूठे तो वे स्वयं हैं, जो झूठ भी हैकड़ी से बोलते हैं। कुछ उदाहरण प्रस्तुत है:-
पहला झूठ: सरकार नब्बे हजार नागरिकों को बाहर निकालने का दावा कर इसे विज्ञापित कर रही है। यह संख्या कहां से जुटाई गयी? जबकि त्रासदी के तुरन्त बाद हजारों नागरिक स्वयं दुर्गम रास्तों से निकल आये थे अपने खर्चे से  घर पहुंच गये थे। पीड़ितो को घर तक पहुंचाने के लिए वाहनों की व्यवस्था भारी किरकिरी होने के बाद सरकार अब कर रही है। पांच-छ’ दिन तक सरकार ने पीड़ितों की कोई सहायता नहीं की।
दूसरा झूठ: गृहमंत्री ने श्री मोदी को आपदा स्थल पर यह कह कर जाने से रोक दिया कि इससे राहत कार्य प्रभावित होते हैं, जबकि श्री राहुल गांधी को जाने के लिए यह कह कर नियम बदल दिये कि अब वहां राहत कार्य प्रभावित नहीं होंगे। जबकि राहत कार्य कई घंटों तक रुके रहे हैं और यदि वे नहीं जाते, तो इस अवधि में अनेको पीड़ितो को बाहर निकला जा सकता था।
तीसरा झूठ: श्रीमती रेणुका चौधरी कहती हैं कि श्री राहुल विआईपी नहीं है, वे एक पार्टी के साधारण उपाध्यक्ष है, उनके साथ मात्र दो प्राईवेट वाहन थे। जबकि पूरा देश जानता है कि वे किसी सरकारी पद पर नहीं है, किन्तु अति विशिष्ट व्यक्ति हैं। उन्हे जेड सुरक्षा दी गयी है। उनकी सुरक्षा का भारी इंतजाम किया जाता है।  उनके साथ सरकारी वाहनों का काफिला चलता है।
चोथा झूठ: मान्यवर दिग्विजय सिंह कहते हैं कि वे सड़क मार्ग से ही पीड़ितो से मिलने गये, जबकि उन्होंने हैलिकाप्टर का उपयोग किया था, जिसकी झलक टीवी पर पूरे देश ने देखी है।
पांचवा झूठ: श्री राहुल गांधी ने पीडि़तो को बताया कि राहत कार्य प्रभावित होते हैं, इसलिए वे उनसे मिलने पहले  नहीं आये। यह झूठ था। वे विदेश में थे और त्रासदी की जानकारी मिलने के बाद भी जानबूझ कर स्वदेश नहीं आये। वे उस स्थान पर गये जहां दूसरों का जाने से रोका जा रहा था। उनकी सुरक्षा को लेकर सरकारी एजंसिया सक्रिय हो गयी थी, जिससे कई घंटो तक राहत कार्य प्रभावित हुआ था।
वे कुछ भी कहें वह पुण्य है और वे कुछ न कहे वह पाप है। गंदी राजनीति की यह एक भोंड़ी  मिशाल है। जब भी मौका मिले श्री मोदी को कोसते रहो। यह एक पार्टी की अघोषित नीति है। मौत का सौदागर, भष्मासुर, बंदर, रावण, रेनबो, फैंकू तो कह ही दिया है और भी कई विशेषण भविष्य में लगा देगे। इनको  यह भ्रम है कि भारत का मुस्लिम समुदाय ऐसा करने से उन्हें शाबासी देगा। मुस्लिम भी भारतीय नागरिक है, उनके पास भी विवेक है। वे भी जानते है कि क्या गलत है और क्या सही है। उनका दिल जीतना है तो कुछ काम कर के दिखाओ। औछी हरकतों और छिछली बातों से उनका दिल जीतने का घृणित प्रयास एक राष्ट्रीय पार्टी के नेताओं को शोभा नहीं देता ।

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