मुल्क को बांटा। लाखों मरे, करोड़ो को बेघरबार किया। लोगों को अपनी
पुरखों की ज़मीन से बेदखल किया गया। उन्हें समझाया, अब यह ज़मीन आपकी नहीं
रही- यहां पाकिस्तान बन गया है। आपका हिन्दुस्तान यहां से दूर चला गया है।
या उन्हें कहा गया- छोड़ दो यह जम़ीन। ये घर-बार। यह तहज़ीब। उधर चले जाओं,
जहां तुम्हारा अपना मुल्क बना है। यह हिन्दुस्तान है, तुम्हारा पाकिस्तान
उधर है। चाहें तुम्हारे पुरखे यहीं दफनायें गये हों, चाहे तुमने मां की
कोख से बाहर आ कर यहीं खुली हवा में सांस ली हो। चाहे पहली बार इसी धरती पर
तुम अपने नन्हें पावों से खड़े हो कर इतराये हो, पर अब यहां सब कूछ
तुम्हारा नहीं रहा।
भारतीय इतिहास के इस क्रूर मज़ाक के गुनहगारों ने आज तक माफी नहीं मागी। अलबता उन्होंने उस दुखद घड़ी में जब देश में कत्ले आम हो रहा था। करोड़ो लोग आंखों में आंसू लिए बदहवाश हो कर इधर से उधर अपनी जान बचा कर भाग रहे थे- ये बड़ी बेशर्मी से लाल किले पर तिरंगा पहरा रहे थे। यह घटना इस बात की साक्षी है कि इन्होंने मानवीय पीड़ा के प्रति हमदर्दी जताने के बजाय अपने सियासी सुखों को ज्यादा अहमियत दी है।
बंटवारे के बाद की सबसे बड़ी सौगात इन्होंने देश को दी, वह है -कश्मीर का अन्र्तराष्ट्रीयकरण। कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा। धारा-370 अर्थात कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग कहा जायेगा, पर व्यवहार में ऐसा होगा नहीं। क्या यह देश की सम्प्रभुता के साथ किया गया छल नहीं था ? क्या कश्मीर को विवादास्पद बना कर पाकिस्तान के शासकों को दुश्मनी निभाने का मौका नहीं दिया गया? कश्मीर के नाम पर चार युद्ध लड़ लिए। पिछले पच्चीस वर्षों से पाकिस्तान भारत के साथ एक छद्म युद्ध लड़ रहा है, जिसमें न किसी की जीत होती है, न हार होती है और न ही युद्ध विराम होता है। अंदाज लगाईए- पाकिस्तान के साथ लड़े गये युद्धों में कितने सैनिक हताहत हुए? कितने अरब रुपये इन युद्धों में फूंके गये? पिछले पच्चीस वर्षों से दहशतगर्दी का जो खेल पाकिस्तान खेल रहा है, उसमें हज़ारों निर्दोष नागरिक मारे गये हैं। इस सब घटनाओं का अंतत: दोषी कौन है?
दरअसल कश्मीर समस्या पैदा कर अप्रत्यक्षरुप से पाकिस्तान का अस्तित्व बनाये रखने में मददगार बने थे। कश्मीर के बहाने ही एक कृत्रिम राष्ट्र नफरत की दीवार को अक्षुण्ण बनाये हुए हैं। यदि कश्मीर समस्या नहीं होती, तो नफरत की दीवार पांच वर्षों में ही ढ़ह जाती। करोड़ो नागरिकों की जिंदगी खुशहाल होती। हमे गरीबी और पिछड़ेपन से मुक्ति मिलती। हमारी सम्मिलित ताकत का लोहा दुनिया मानती। क्योंकि तब हमरी पहचान अन्र्तराष्टी्रय जगत में एक निर्धन, समस्याग्रस्त और बेबस राष्ट्र के रुप में नहीं होती। एक शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र के रुप में दुनियां में अपनी पहचान बनाते।
देश के साथ इतना बड़ा छल जिस पार्टी के नेताओं ने किया हो, उस पार्टी ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया और न ही इसके दुखद परिणामों के लिए देश से माफी मांगी। देश टूट गया। भारतीय उपमाद्वीप की जनता बंटवारें के परिणामों के दंश झेल रही है, परन्तु गुनहगारों को न तो इस बात का कभी अफसोस हुआ और न ही रंज।
सियासी सुखों भोगने में इतने तल्लीन रहें कि केवल पंचशील के कबूतर उड़ाने से ही फुर्सत नहीं मिली और देखते ही देखते हज़ारों एकड़ ज़मीन चीन ने हडप्प ली। भारत की युद्ध में
शर्मनाक पराजय हुई, किन्तु पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने पद से त्यागपत्र नहीं दिया।
1965 और 1971 का युद्ध हमारे जवानो के शौर्य और वीरता का उदाहरण बना, परन्तु उनके बलिदान पर तब पानी फिर गया, जब राजनेता ताशकंद और शिमला समझौता कर टेबल पर जवानों द्वारा जीता गया युद्ध हार गये। राजीव गांधी ने श्रीलंका में तमिलों का संहार करने के लिए भारतीय सेना को भेजा और बेवजह हज़ारों सैनिकों को अपने जीवन आहूति देनी पड़ी।
जो कुछ घटित हुआ था, वो इतिहास की इबारत बन गया है, जो काच की तरह साफ है। यह सही है कि महात्मा गांधी की कांग्रेस ने देश को आज़ादी दिलाई, किन्तु पंड़ित जवाहर लाल नेहरु की कांग्रेस ने देश को कई बड़ी और जटिल समस्याओं का उपहार दिया है। मसलन इंदिरा जी ने पंजाब में अकालियों को मात देने के लिए 49 पतिशत हिदुओं के वोट पाने के लिए हिन्दू कार्ड खेला, जिसके भयानक परिणाम सामने आये। पंजाब जल उठा। अंतत: ब्लयू स्टार ऑपरेशन उसी भिंड़रवाला के लिए किया गया, जिसका भूत कांग्रेस ने ही तैयार किया था, किन्तु वह नियंत्रण से बाहर हो गया। इस घटनाक्रम के बाद इंदिरा जी को अपनी शहादत देनी पड़ी। जवाब में देश भर में सिखों का कत्लेआम किया गया। किन्तु दु:खद घटनाक्रम पर यह कर अफसोस जता दिया गया कि कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तब जमीन तो कांपती ही है। फिर गोधरा कांड़ के बाद जो कुछ हुआ इस पर इतना शोर क्यों मचाया जा रहा है? जबकि सिखों का कत्लेआम करने वाले अपराधियों को सरकार आज तक बचा रही है और गुजरात में पूरी सरकारी मशीनरी और जांच एजंसिया और मानवाधिकार को छोड़ कर निरपराध व्यक्तियओं को फंसाने का षड़यंत्र कर रही है। एक ही देश में ऐसा दोहरा माप दंड़ अपनाने की आखिर वजह क्या है? क्या यह नही कि उनका छोटा सा अपराध भी माफ नहीं किया जा सकता, किन्तु हमारे बड़े-बड़े अपराधों को नज़रअंदाज किया जाना आवश्यक हैं।
साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की बाते करते नहीं थकने वालों के पास क्या इस बात का जवाब है कि शांत पंजाब में जानबूझ कर आग क्यों लगाई गयी? रामजन्म भूमि के ताले खोलने के पीछे उनका क्या घृणित उद्धेश्य था? दोनो घटनाओं के बाद देश अशांत हुआ और देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। जिस पार्टी के माथे पर साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने का कलंक लगा हो, उसे इस बारें में कुछ भी बोलने का नैतिक अधिकार नहीं हैं।
सरकार की अक्षमता के कारण 1992 में हुए बम्बई के साम्प्रदायिक दंगों में भारी जन हानि हुई थी। यही नहीं देश भर में जितने बड़े साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं, वे सभी कांग्रेस शासित राज्य सरकारों के शासन के दौरान ही हुए हैं। 2002 के गुजरात दंगो के अलावा गुजरात में पिछले ग्यारह साल से कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ। इसी तरह जब भी राज्यों में अन्य पार्टियां या भाजपा सतारुढ़ रही, दंगों की संख्या नगन्य बनी रही। ऐसा क्यों है? क्या सही नहीं कि कांग्रेस के खाने के दांत दूसरे और दिखाने के अलग हैं।
1992 के बम्बई बम विस्फोट के अपराधियों को न केवल बचाया गया, वरन उन्हें आसानी से देश से भागने में सहायता दी। ये अपराधी आज भी विदेशों में बैठे हुए भारत में आंतकवाद को बढ़ाने का षड़यंत्र कर रहे हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी तरह अक्षम साबित हुए हैं। देश भर में पिछले दस वर्षों से कई आतंकी घटनाएं हुई, किन्तु एक आध को छोड़ कर आज तक कोई अपराधी पकड़ा नहीं गया। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि छद्म धर्मनिरपेक्षता की नीति के कारण भारत आतंकवादियों को शह और प्रश्रय मिल रहा है।
भ्रष्टतंत्र का बिजारोहण नेहरु युग में हो गया था। अब यह वटवृक्ष बन गया है। इस वटवृक्ष को हमेशा कांग्रेसी सरकारों ने सींचा है। पिछले पांच साल में हुए एतिहासिक आर्थिक घोटाले एक सरकार का बहुत ही घिनौना चेहरा देश के सामने उजागर हुआ है। घोटालों के कारण देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है और जनता को भारी महंगाई बोझ सहना पड़ रहा है।
परन्तु दुर्भाग्य हमारा यह है कि एक अपने अपराधों के लिए उस पार्टी के नेताओं ने कभी माफी नहीं मांगी, किन्तु देश की जनता ने हमेशा उन्हें माफ कर दिया। देश की दुर्गति का यही मूल कारण है।
भारतीय इतिहास के इस क्रूर मज़ाक के गुनहगारों ने आज तक माफी नहीं मागी। अलबता उन्होंने उस दुखद घड़ी में जब देश में कत्ले आम हो रहा था। करोड़ो लोग आंखों में आंसू लिए बदहवाश हो कर इधर से उधर अपनी जान बचा कर भाग रहे थे- ये बड़ी बेशर्मी से लाल किले पर तिरंगा पहरा रहे थे। यह घटना इस बात की साक्षी है कि इन्होंने मानवीय पीड़ा के प्रति हमदर्दी जताने के बजाय अपने सियासी सुखों को ज्यादा अहमियत दी है।
बंटवारे के बाद की सबसे बड़ी सौगात इन्होंने देश को दी, वह है -कश्मीर का अन्र्तराष्ट्रीयकरण। कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा। धारा-370 अर्थात कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग कहा जायेगा, पर व्यवहार में ऐसा होगा नहीं। क्या यह देश की सम्प्रभुता के साथ किया गया छल नहीं था ? क्या कश्मीर को विवादास्पद बना कर पाकिस्तान के शासकों को दुश्मनी निभाने का मौका नहीं दिया गया? कश्मीर के नाम पर चार युद्ध लड़ लिए। पिछले पच्चीस वर्षों से पाकिस्तान भारत के साथ एक छद्म युद्ध लड़ रहा है, जिसमें न किसी की जीत होती है, न हार होती है और न ही युद्ध विराम होता है। अंदाज लगाईए- पाकिस्तान के साथ लड़े गये युद्धों में कितने सैनिक हताहत हुए? कितने अरब रुपये इन युद्धों में फूंके गये? पिछले पच्चीस वर्षों से दहशतगर्दी का जो खेल पाकिस्तान खेल रहा है, उसमें हज़ारों निर्दोष नागरिक मारे गये हैं। इस सब घटनाओं का अंतत: दोषी कौन है?
दरअसल कश्मीर समस्या पैदा कर अप्रत्यक्षरुप से पाकिस्तान का अस्तित्व बनाये रखने में मददगार बने थे। कश्मीर के बहाने ही एक कृत्रिम राष्ट्र नफरत की दीवार को अक्षुण्ण बनाये हुए हैं। यदि कश्मीर समस्या नहीं होती, तो नफरत की दीवार पांच वर्षों में ही ढ़ह जाती। करोड़ो नागरिकों की जिंदगी खुशहाल होती। हमे गरीबी और पिछड़ेपन से मुक्ति मिलती। हमारी सम्मिलित ताकत का लोहा दुनिया मानती। क्योंकि तब हमरी पहचान अन्र्तराष्टी्रय जगत में एक निर्धन, समस्याग्रस्त और बेबस राष्ट्र के रुप में नहीं होती। एक शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र के रुप में दुनियां में अपनी पहचान बनाते।
देश के साथ इतना बड़ा छल जिस पार्टी के नेताओं ने किया हो, उस पार्टी ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया और न ही इसके दुखद परिणामों के लिए देश से माफी मांगी। देश टूट गया। भारतीय उपमाद्वीप की जनता बंटवारें के परिणामों के दंश झेल रही है, परन्तु गुनहगारों को न तो इस बात का कभी अफसोस हुआ और न ही रंज।
सियासी सुखों भोगने में इतने तल्लीन रहें कि केवल पंचशील के कबूतर उड़ाने से ही फुर्सत नहीं मिली और देखते ही देखते हज़ारों एकड़ ज़मीन चीन ने हडप्प ली। भारत की युद्ध में
शर्मनाक पराजय हुई, किन्तु पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने पद से त्यागपत्र नहीं दिया।
1965 और 1971 का युद्ध हमारे जवानो के शौर्य और वीरता का उदाहरण बना, परन्तु उनके बलिदान पर तब पानी फिर गया, जब राजनेता ताशकंद और शिमला समझौता कर टेबल पर जवानों द्वारा जीता गया युद्ध हार गये। राजीव गांधी ने श्रीलंका में तमिलों का संहार करने के लिए भारतीय सेना को भेजा और बेवजह हज़ारों सैनिकों को अपने जीवन आहूति देनी पड़ी।
जो कुछ घटित हुआ था, वो इतिहास की इबारत बन गया है, जो काच की तरह साफ है। यह सही है कि महात्मा गांधी की कांग्रेस ने देश को आज़ादी दिलाई, किन्तु पंड़ित जवाहर लाल नेहरु की कांग्रेस ने देश को कई बड़ी और जटिल समस्याओं का उपहार दिया है। मसलन इंदिरा जी ने पंजाब में अकालियों को मात देने के लिए 49 पतिशत हिदुओं के वोट पाने के लिए हिन्दू कार्ड खेला, जिसके भयानक परिणाम सामने आये। पंजाब जल उठा। अंतत: ब्लयू स्टार ऑपरेशन उसी भिंड़रवाला के लिए किया गया, जिसका भूत कांग्रेस ने ही तैयार किया था, किन्तु वह नियंत्रण से बाहर हो गया। इस घटनाक्रम के बाद इंदिरा जी को अपनी शहादत देनी पड़ी। जवाब में देश भर में सिखों का कत्लेआम किया गया। किन्तु दु:खद घटनाक्रम पर यह कर अफसोस जता दिया गया कि कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तब जमीन तो कांपती ही है। फिर गोधरा कांड़ के बाद जो कुछ हुआ इस पर इतना शोर क्यों मचाया जा रहा है? जबकि सिखों का कत्लेआम करने वाले अपराधियों को सरकार आज तक बचा रही है और गुजरात में पूरी सरकारी मशीनरी और जांच एजंसिया और मानवाधिकार को छोड़ कर निरपराध व्यक्तियओं को फंसाने का षड़यंत्र कर रही है। एक ही देश में ऐसा दोहरा माप दंड़ अपनाने की आखिर वजह क्या है? क्या यह नही कि उनका छोटा सा अपराध भी माफ नहीं किया जा सकता, किन्तु हमारे बड़े-बड़े अपराधों को नज़रअंदाज किया जाना आवश्यक हैं।
साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की बाते करते नहीं थकने वालों के पास क्या इस बात का जवाब है कि शांत पंजाब में जानबूझ कर आग क्यों लगाई गयी? रामजन्म भूमि के ताले खोलने के पीछे उनका क्या घृणित उद्धेश्य था? दोनो घटनाओं के बाद देश अशांत हुआ और देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। जिस पार्टी के माथे पर साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने का कलंक लगा हो, उसे इस बारें में कुछ भी बोलने का नैतिक अधिकार नहीं हैं।
सरकार की अक्षमता के कारण 1992 में हुए बम्बई के साम्प्रदायिक दंगों में भारी जन हानि हुई थी। यही नहीं देश भर में जितने बड़े साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं, वे सभी कांग्रेस शासित राज्य सरकारों के शासन के दौरान ही हुए हैं। 2002 के गुजरात दंगो के अलावा गुजरात में पिछले ग्यारह साल से कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ। इसी तरह जब भी राज्यों में अन्य पार्टियां या भाजपा सतारुढ़ रही, दंगों की संख्या नगन्य बनी रही। ऐसा क्यों है? क्या सही नहीं कि कांग्रेस के खाने के दांत दूसरे और दिखाने के अलग हैं।
1992 के बम्बई बम विस्फोट के अपराधियों को न केवल बचाया गया, वरन उन्हें आसानी से देश से भागने में सहायता दी। ये अपराधी आज भी विदेशों में बैठे हुए भारत में आंतकवाद को बढ़ाने का षड़यंत्र कर रहे हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी तरह अक्षम साबित हुए हैं। देश भर में पिछले दस वर्षों से कई आतंकी घटनाएं हुई, किन्तु एक आध को छोड़ कर आज तक कोई अपराधी पकड़ा नहीं गया। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि छद्म धर्मनिरपेक्षता की नीति के कारण भारत आतंकवादियों को शह और प्रश्रय मिल रहा है।
भ्रष्टतंत्र का बिजारोहण नेहरु युग में हो गया था। अब यह वटवृक्ष बन गया है। इस वटवृक्ष को हमेशा कांग्रेसी सरकारों ने सींचा है। पिछले पांच साल में हुए एतिहासिक आर्थिक घोटाले एक सरकार का बहुत ही घिनौना चेहरा देश के सामने उजागर हुआ है। घोटालों के कारण देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है और जनता को भारी महंगाई बोझ सहना पड़ रहा है।
परन्तु दुर्भाग्य हमारा यह है कि एक अपने अपराधों के लिए उस पार्टी के नेताओं ने कभी माफी नहीं मांगी, किन्तु देश की जनता ने हमेशा उन्हें माफ कर दिया। देश की दुर्गति का यही मूल कारण है।
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