इस लेख माला- ‘राजनेताओं से सवाल -तलब’ में पहला
प्रश्न पूछा गया था-’ यदि आपको देश की जनता सता सौंपती है, तो आप पूरे देश
में व्याप्त भ्रष्टाचार पर प्रदत कानूनों के तहत ही कैसे अंकुश लगाओंगे ?
कितनी अवधि में आप भारत को भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बना दोगे ?’
इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला। अपने विरोधियों पर कटाक्ष करने की प्रतिस्पर्धा में लगे राजनेता इस विषय में चुप्पी ही साधे रहे। वास्तविकता यह है कि वे जनता के सवालों के जवाब देना अपनी तौहीन समझते हैं। बड़ी-बड़ी आदर्शवादी, किन्तु हवाई बाते करने वाले नेता के पास ऐसे उत्तर देने का समय नहीं है। वे सभ्रांत लोगों के बीच बोलते हैं। उनके अनुयायी अपने नेताओं को महान विचारक सिद्ध करने की कोशिश में लगे हुए हैं। मीडिया के जरिये जनता को यह भी संदेश देने की कोशिश करते हैं कि आपको देश इन्हें ही सौंपना है, क्योंकि उनके विचार कितने ऊंचे हैं। भले ही उनकी पार्टी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है। उनके नेताओं के भ्रष्ट आचारण साबित हो गये हैं। और उनके आराध्य नेता, इस विषय पर मौन साधे हुए भ्रष्टगंगोत्री की मुख्य धारा में तेर रहे हैं।
परन्तु दुखद पहलू यह भी है कि देश की दूसरी बड़ी पार्टी भी भ्रष्टाचार के मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि भ्रष्टाचार के कारण ही इस पार्टी की कर्नाटक में नैया डूबी । इस पार्टी के नेता यह कहने का भी साहस नहीं कर पा रहे हैं कि भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करने के कारण ही हमने एक प्रभावी नेता के बागी तेवर झेलने की जोखिम उठायी । यदि हमें देश सौंपा जाता है, तब हम जनता को आश्वस्त करना चाहते हैं कि भविष्य में भी हम अपने नेताओं के भ्रष्ट आचरण को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
परन्तु दुर्भाग्य से पार्टी के नेता आत्मबल जुटाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। भ्रष्टाचार के संबंध में भविष्य में भी पार्टी की क्या नीति होगी? वे बताने से कतरा रहे हैं। जबकि आज की परिस्थितियों में पार्टी के प्रत्येक नेता को मुखर हो कर भ्रष्टाचार पर बोलना चाहिये। देश को भरोसा दिलाना चाहिये कि हमे सता सौंपियें- हम भारत को भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनाने का वचन देते हैं।
भ्रष्टाचार को ले कर आरम्भ हुआ अन्ना आंदोलन यद्यपि अपने मार्ग से भटक गया है, तथापि भारत की जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक निर्णायक लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। अगले चुनावों में जनता उसी पार्टी को सता सौंपेगी, जो भ्रष्टाचार के संबंध में अपनी नीति घोषित करेगी। भ्रष्टाचार ही प्रत्यासियों को परखने का मुख्य आंकलन होगा। जो पार्टी अपने प्रत्यासियों के चयन में सर्तकता रखेगी, उसे ही महत्व दिया जायेगा ।
अत: देश की सर्वाधिक भ्रष्ट पार्टी के नेताओं से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए कोई सार्थक नीति बनायेंगे और इस विषय में कुछ बोलेंगे। पार्टी के नेताओं के पास यह बताने के लिए तो समय ही नहीं है कि हमें देश की जनता ने शासन करने के लिए दस साल दियें और इन दस सालों में हमने ये उपलब्धियां प्राप्त की है। इन उपलब्धियों के आधार पर हमें जनता से शासन करने के लिए और पांच साल का अधिकार चाहिये। परन्तु अपनी दुर्बलताओं को छुपा कर विरोधियों को बारें में जनता को समझा रहे हैं कि उनसे दूर ही रहना, क्योंकि वे मौत के सौदागर है, यमराज है, पूरे देश में आग लगा देंगे। जिनके पास कहने को कुछ नहीं हो , वे और क्या कह सकते हैं।
देश की जनता भारत की दूसरी बड़ी पार्टी से यह तो अपेक्षा कर ही सकती है कि जहर बूझे शब्द बाणों का जवाब, उसी तरह के शब्दों बाणों से नहीं दें। इसके प्रत्युत्तर में देश के लिए नयी सार्थक नीतियां बनाने की घोषणाओं से करें। अपमानजनक भाषा के प्रतिवाद में मौन रहना, शालिनता की निशानी है और इससे नेताओं का चरित्र ऊंचा उठता है।
अत: मेरा बीजेपी के नेताओं से दूसरा प्रश्न है- ‘ जिन प्रदेशों में बीजेपी की सरकार है, यह कहा जाता है कि ये प्रदेश, विकास में दूसरे प्रदेशों से आगे हैं और विकास का रोल मॉडल कहे जाते हैं। किन्तु पार्टी के नेता यह क्यों नहीं कहते हैं कि हमारे प्रदेश- भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश है? यदि भाजपा शासित प्रदेशों में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है, तो पार्टी भविष्य में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए क्या नीति बनाने वाली है?
यदि भाजपा, भारत पर शासन करने का जनादेश चाहती है, तो उसे भ्रष्टाचार के संबंध में अपना मौन तोड़ कर अतिशीघ्र किसी सार्थक नीति की घोषणा करनी चाहिये और जहां पार्टी की सरकारें हैं, उन सभी प्रदेशों को भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने का संकल्प लेना चाहिये। यह पार्टी की अग्नि परीक्षा होगी। इसमें यदि वह खरी उतरेगी, तो निश्चय ही, जनता का दिल जीत लेगी। क्योंकि अन्ना आंदोलन के साथ ही भ्रष्टाचार का मुद्धा समाप्त नहीं हुआ है। जनता के मन में भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्ति के लिए तड़फ है। यदि भाजपा इस संबंध में किसी भी सार्थक नीति की घोषणा करने में असमर्थ रही और भ्रष्टाचार के प्रति आक्रामक नहीं हो पायी, तो उसे पूरे देश में उसे जनसमर्थन नहीं मिलेगा। एक त्रिशंकु लोकसभा अस्तित्व में आयेगी। अति भ्रष्ट नेता फिर राजनीति में प्रभावी होंगे। जनता की समस्याएं घटने के बजाय बढ़ जायेगी। अत: यदि भाजपा नेता इस देश की जनता का भला चाहते हैं, तो उन्हें भ्रष्टाचार के संबंध में पूछे गये प्रश्न का उत्तर देना चाहिये।
इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला। अपने विरोधियों पर कटाक्ष करने की प्रतिस्पर्धा में लगे राजनेता इस विषय में चुप्पी ही साधे रहे। वास्तविकता यह है कि वे जनता के सवालों के जवाब देना अपनी तौहीन समझते हैं। बड़ी-बड़ी आदर्शवादी, किन्तु हवाई बाते करने वाले नेता के पास ऐसे उत्तर देने का समय नहीं है। वे सभ्रांत लोगों के बीच बोलते हैं। उनके अनुयायी अपने नेताओं को महान विचारक सिद्ध करने की कोशिश में लगे हुए हैं। मीडिया के जरिये जनता को यह भी संदेश देने की कोशिश करते हैं कि आपको देश इन्हें ही सौंपना है, क्योंकि उनके विचार कितने ऊंचे हैं। भले ही उनकी पार्टी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है। उनके नेताओं के भ्रष्ट आचारण साबित हो गये हैं। और उनके आराध्य नेता, इस विषय पर मौन साधे हुए भ्रष्टगंगोत्री की मुख्य धारा में तेर रहे हैं।
परन्तु दुखद पहलू यह भी है कि देश की दूसरी बड़ी पार्टी भी भ्रष्टाचार के मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि भ्रष्टाचार के कारण ही इस पार्टी की कर्नाटक में नैया डूबी । इस पार्टी के नेता यह कहने का भी साहस नहीं कर पा रहे हैं कि भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करने के कारण ही हमने एक प्रभावी नेता के बागी तेवर झेलने की जोखिम उठायी । यदि हमें देश सौंपा जाता है, तब हम जनता को आश्वस्त करना चाहते हैं कि भविष्य में भी हम अपने नेताओं के भ्रष्ट आचरण को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
परन्तु दुर्भाग्य से पार्टी के नेता आत्मबल जुटाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। भ्रष्टाचार के संबंध में भविष्य में भी पार्टी की क्या नीति होगी? वे बताने से कतरा रहे हैं। जबकि आज की परिस्थितियों में पार्टी के प्रत्येक नेता को मुखर हो कर भ्रष्टाचार पर बोलना चाहिये। देश को भरोसा दिलाना चाहिये कि हमे सता सौंपियें- हम भारत को भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनाने का वचन देते हैं।
भ्रष्टाचार को ले कर आरम्भ हुआ अन्ना आंदोलन यद्यपि अपने मार्ग से भटक गया है, तथापि भारत की जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक निर्णायक लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। अगले चुनावों में जनता उसी पार्टी को सता सौंपेगी, जो भ्रष्टाचार के संबंध में अपनी नीति घोषित करेगी। भ्रष्टाचार ही प्रत्यासियों को परखने का मुख्य आंकलन होगा। जो पार्टी अपने प्रत्यासियों के चयन में सर्तकता रखेगी, उसे ही महत्व दिया जायेगा ।
अत: देश की सर्वाधिक भ्रष्ट पार्टी के नेताओं से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए कोई सार्थक नीति बनायेंगे और इस विषय में कुछ बोलेंगे। पार्टी के नेताओं के पास यह बताने के लिए तो समय ही नहीं है कि हमें देश की जनता ने शासन करने के लिए दस साल दियें और इन दस सालों में हमने ये उपलब्धियां प्राप्त की है। इन उपलब्धियों के आधार पर हमें जनता से शासन करने के लिए और पांच साल का अधिकार चाहिये। परन्तु अपनी दुर्बलताओं को छुपा कर विरोधियों को बारें में जनता को समझा रहे हैं कि उनसे दूर ही रहना, क्योंकि वे मौत के सौदागर है, यमराज है, पूरे देश में आग लगा देंगे। जिनके पास कहने को कुछ नहीं हो , वे और क्या कह सकते हैं।
देश की जनता भारत की दूसरी बड़ी पार्टी से यह तो अपेक्षा कर ही सकती है कि जहर बूझे शब्द बाणों का जवाब, उसी तरह के शब्दों बाणों से नहीं दें। इसके प्रत्युत्तर में देश के लिए नयी सार्थक नीतियां बनाने की घोषणाओं से करें। अपमानजनक भाषा के प्रतिवाद में मौन रहना, शालिनता की निशानी है और इससे नेताओं का चरित्र ऊंचा उठता है।
अत: मेरा बीजेपी के नेताओं से दूसरा प्रश्न है- ‘ जिन प्रदेशों में बीजेपी की सरकार है, यह कहा जाता है कि ये प्रदेश, विकास में दूसरे प्रदेशों से आगे हैं और विकास का रोल मॉडल कहे जाते हैं। किन्तु पार्टी के नेता यह क्यों नहीं कहते हैं कि हमारे प्रदेश- भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश है? यदि भाजपा शासित प्रदेशों में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है, तो पार्टी भविष्य में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए क्या नीति बनाने वाली है?
यदि भाजपा, भारत पर शासन करने का जनादेश चाहती है, तो उसे भ्रष्टाचार के संबंध में अपना मौन तोड़ कर अतिशीघ्र किसी सार्थक नीति की घोषणा करनी चाहिये और जहां पार्टी की सरकारें हैं, उन सभी प्रदेशों को भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने का संकल्प लेना चाहिये। यह पार्टी की अग्नि परीक्षा होगी। इसमें यदि वह खरी उतरेगी, तो निश्चय ही, जनता का दिल जीत लेगी। क्योंकि अन्ना आंदोलन के साथ ही भ्रष्टाचार का मुद्धा समाप्त नहीं हुआ है। जनता के मन में भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्ति के लिए तड़फ है। यदि भाजपा इस संबंध में किसी भी सार्थक नीति की घोषणा करने में असमर्थ रही और भ्रष्टाचार के प्रति आक्रामक नहीं हो पायी, तो उसे पूरे देश में उसे जनसमर्थन नहीं मिलेगा। एक त्रिशंकु लोकसभा अस्तित्व में आयेगी। अति भ्रष्ट नेता फिर राजनीति में प्रभावी होंगे। जनता की समस्याएं घटने के बजाय बढ़ जायेगी। अत: यदि भाजपा नेता इस देश की जनता का भला चाहते हैं, तो उन्हें भ्रष्टाचार के संबंध में पूछे गये प्रश्न का उत्तर देना चाहिये।
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