Thursday, 4 July 2013

आतंकी शहीद और पुलिस अपराधी, सियासत के गंदे खेल की अजीब कहानी

लश्कर के तीन आतंकी पाकिस्तान से आये थे और अपने  साथ बम्बई की एक लड़की को फियादिन बना कर अहमदाबाद लाये थे। वह लड़की हिन्दुस्तानी थी और वे पाकिस्तानी। पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्करे तैयबा ने एक मिशन के लिए इन्हें अहमदाबाद भेजा था। मिशन था – श्री नरेन्द्र मोदी की हत्या करना। भारत की प्रमुख गुप्तचर संस्था ने  गुजरात पुलिस और भारत के गृहमंत्रालय को इसकी सूचना दे दी थी। आतंकवादियों को गुजरात पुलिस ने उस जगह जा कर मार दिया, जहां वे छुपे हुए थे।
नो वर्ष पूर्व घटित हुई यह एक सत्य कहानी है। यहां तक सभी पक्ष सहमत है, किन्तु इस मामले में टवीस्ट जब आया, तब इस लड़की की मां ने कहा कि मेरी लड़की आतंकवादी नहीं है। कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसके विरोध में आंदोलन भी किया था। उसकी मां कुछ हद तक सही थी, क्योंकि बेटी ने एक गिरोह में भर्ती होने से पूर्व मां से अनुमति नहीं ली थी। आतंकवादी अपने मिशन को गोपनीय रखते हैं और इसकी  जानकारी किसी के साथ शेयर नहीं करने की  कड़ी चेतावनी गिरोह के सदस्यों को देते हैं।
इशरत जहां एक निर्धन परिवार से ताल्लुक रखती थी। उसके वालिद का इंतकाल हो चुका था। छ: भाई-बहनों में वह सबसे बड़ी थी। मात्र उन्नीस वर्ष की वय में वह परिवार की  जिम्मेदारियां ओढ रही थी। आतंकी संगठनों को ऐसे ही मोहरों की तलाश रहती है, जिन्हें धन के लालच से अपने वश में किया जा सकता है। इशरत को अहमदाबाद जाने के पहले मिशन के मकसद के बारे में  पूरी जानकारी नहीं होगी। उसे इतना ही बताया गया होगा, जितना आवश्यक समझा होगा।
सम्भवत: इसी आधार पर सीबीआई ने यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि वह आतंकवादी नहीं थी।  वह लश्कर तैयाब से जुड़ गयी थी, यह बात उसकी मां, रिश्तेदार और मोहल्ले में रहने वाले लोगों की जानकारी में नहीं थी। क्योंकि आतंकवादी संगठन अपने गिरोह के सदस्यों की सूची को प्रकाशित नहीं करते और अपने मिशन के बारें में ढिंढोरा नहीं पिटते। हालांकि घटना के बाद लश्करे तैयबा ने उसे अपना फियादिन बताया था और गृहमंत्रालय को भी इसकी जानकारी थी, परन्तु धर्मनिरपेक्ष सरकार इस बात को क्यों माने? उसे इस बात को ले कर एतराज है कि मुस्लिम समुदाय इस घटना को ले कर आक्रोशित है और उन्हें नाराज़ नहीं किया जा सकता। इसलिए लड़की चाहे लश्करे तैयाबा के  आतंकवादियों के साथ थी, परन्तु वह आतंकवादी नहीं थी।
चूंकि पुलिस गुजरात सरकार की थी, इसलिए उन आतंकवादियों  को पकड़ना था, मारना नहीं था। मारने का मतलब है – फर्जी मुठभेड़। पुलिसकर्मी उन्हें पकड़ने की कोशिश करते और आतंकवादियों की गोली से मारे जाते तो ठीक था, क्योंकि ऐसा होने से फर्जी मुठभेड़ का आरोप उस पर नही लगता। पुलिस ने जघन्य पाप किया है और इसका परिणाम उसे भुगतना पड़ेगा। साथ ही जिन्होंने पुलिस को ऐसा करने का निर्देश दिया था, चाहे वह गृहमंत्री हो या मुख्यमंत्री उन्हें बख्सा नहीं जायेगा। उनकी सफेद और काली दाढ़ी में हमेशा तिनके दिखायी देंगे, क्योंकि ये दोनो महाशय अल्पसंख्यक समुदाय के विलेन हैं।
यदि ये चारों आतंकी अपने मिशन में सफल हो कर भाग जाते, तो वे आतंकवादी कहलाते, परन्तु उनका मिशन सफल नही हो पाया और पुलिस के हाथों मारे गये, इसलिए वे शहीद बन गये।  वे पुलिसकर्मी, जिन्होंने अपना कर्तव्य निभाया और एक आतंकी हमले को टाल दिया, वे अपराधी बन गये। कल्पना कीजिये यदि मुख्यमंत्री के काफिल के भीतर घुस कर वह युवती फियादीन हमला करती और वे युवक मशीनगनो से नागरिकों को भुन देते, तो एक विभत्स हत्याकांड होता, जिसमें सैंकड़ो लोग मारे जाते। इस मिशन को निष्फल करने में जिन अधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, उन्हें पुरष्कृत करने के बजाय प्रताड़ित किया जा रहा है। दुनिया के इतिहास में यह एक अनूठा उदाहरण बन गया है। विश्व के सभी देशों में आतंकवाद को कुचलने के लिए दहशतगर्दों को गोलियों से भुना जाता है। उनके साथ सख्ती से निपटा जाता है। उनसे लेशमात्र भी  सहानुभूति नहीं रखी जाती।  भारत के अलावा दुनिया में ऐसा कोर्इ देश नहीं हैं, जहां आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति रखी जाती है।
लश्करे तैयबा का एक  महत्वपूर्ण मिशन सफल नहीं हो पाया, इसका  अफसोस उस आतंकी संगठन,आईएसआई  के साथ-साथ  भारत की धर्मनिरपेक्ष सरकार को भी है। सम्भवत: इसीलिए नो वर्ष बाद, लोकसभा चुनावों के ठीक पहले, इस केस की  पर्ते उखाड़ी जा रही है। उद्धेश्य स्पष्ट है- देश की सुरक्षा की कीमत पर धर्म निरपेक्षता को प्रमाणित करना। पुलिसकर्मियों का मनोबल गिरा कर वोट बैक पक्का करना। क्योंकि एक राजनीतिक पार्टी के लिए देश हित से बढ़ कर सत्ता सुख है। दुखद बात है कि सरकार की एक घृणित कोशिश का विरोध कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं कर रही है, क्योंकि सभी को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र लेना है।
विश्व के अन्य देशों में एक आतंकी घटना के बाद सरकारे इतनी कठोर हो जाती है कि वहां एक घटना के बाद दूसरी आतंकी घटना नहीं घटती। परन्तु भारत इस मामले में उदार देश हैं। यहां एक आतंकी घटना को देश भूला ही नहीं पाता और दूसरी घट जाती है। वजह यह है कि हम भारतीयों का जीवन बहुत सस्ता है। हमारे खून की कोई कीमत नहीं हैं। बेकसूर लोग मारे जायेंगे। राजनेता झूठी तसल्ली देने के लिए घटना स्थल पर जायेंगे। अस्पतालों में पड़े हुए घायलों से मिलेंगे। दोषियों को पकड़ने की कसमें खायेंगे और होगा कुछ नहीं। न तो अब आतंकवादी पकड़े जाते हैं ओर न ही उनकी हरकतों को रोकने के लिए सरकार चिंतित है। देश की जनता की भगवान रक्षा कर रहा है। धर्म निरपेक्ष सरकार ने अपने आपको इस दायित्व से मुक्त कर लिया है।
देश की गुप्तचर संस्था ज्यादा सक्रियता दिखा कर अपने लिए मुसिबत मोल नहीं लेगा। क्योंकि क्या पता कभी उस अधिकारी को भी राजेन्द्र सिंह राठौड की तरह सीबीआई के समक्ष अपराधी बन कर खड़ा रहना पड़ें। आतंकवादी पिकनिक मनाने के लिए भारत में प्रवेश करते रहेंगे। यहां के युवकों को आतंकवाद की टे्रनिंग देंगे। बम विस्फोटो की योजना बनायेंगे। देश के किसी शहर के भीड़ भाड़ वाले क्षेत्र में बम विस्फोट कर के आराम से टहलते हुए वहां से चले जायेंगे।  पुलिस ने उन्हें देख भी लिया, तो भी उन पर गोली नहीं चलायेगी। पुलिस के समक्ष दो ही विकल्प रहेंगे- मशीनगन से लेश आतंकियों को पकड़ने की कोशिश करते हुए शहीद होना या आंखें बंद कर अपनी गर्दन घुमा देना। निश्चय ही पुलिसकर्मी दूसरे विकल्प को ही मानेंगे।
सीबीआई द्वारा इशरत जहां केस की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल करने के बाद भारत के बिके हुए टीवी चेनल इस तरह जोर शोर से प्रचार कर रहे हैं, जैसे गुजरात पुलिस के अफसरों ने आतंकवादियों का मार कर बहुत बड़ा अपराध किया हो। अब श्री नरेन्द्र मोदी और श्री अमित शाह की खैर नहीं। एक दिन सीबीआर्इ उन तक पहुंचेगी। वैसे सबूत और गवाह खरीदे जा रहे हैं और सीबीआई अपने मकसद में कामयाब भी हो सकती है। क्योंकि सियासी खेल जब बहुत गंदा होता है। इस खेल के कोई नियम नहीं होते। इसमें सब जायज हैं।
परन्तु पाकिस्तानी की आईएसआई और आतंकी संगठन  भारत में खेले जा रहे इस सियासी ड्रामे को देख कर जश्न मना रहें हैं।  अब उनके बहुत सारे मिशन को अंजाम देने  का सही वक्त आ गया है।  उनके रास्ते की सारी रुकावटे हट गयी है। क्योंकि भारत की गुप्तचर संस्थाएं और पुलिस अब पूरी तरह निष्क्रिय हो जायेगी। वे नाचते हुए खुदा से यही अर्ज कर रहे हैं-  भारत में धर्मनिरपेक्ष सरकारे बनती रहें, ताकि उनके मिशन कामयाब होते रहें।

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