Wednesday 10 July 2013

खाद्य सुरक्षा अध्यादेश : जनता को ठगने की धूर्त कोशिश

ऐसे समय में जब देश दिवालिया बनने के कगार पर खड़ा है। भारतीय मुद्रा की निरन्तर बिगड़ती सेहत अर्थव्यवस्था की तबाही के संकेत दे रही है। ऐसे  कठिन समय में भ्रष्ट सरकार अपने निकम्मेपन को छुपाने के लिए देश की जनता को खाद्य सुरक्षा की गारंटी दे रही है। सरकार को लग रहा है कि घोटालों के जो पाप किये हैं, उससे जनता के कष्ट बहुत बढ़ गये है। महंगाई के असहनीय बोझ से वह त्राहि-त्राहि कर रही है। सरकार की नीति और नीयत से वह रुष्ट है। जनता का दिल जीतने के लिए सरकार खाद्य सुरक्षा का ब्रह्मास्त्र चलाने की तैयारी कर रही है। अब देश की अस्सीं करोड़ जनता को दो रुपया किलो गेंहूं दिया जायेगा। प्रति व्यक्ति, प्रति माह पांच किलो गेंहू मात्र- दस रुपये मे। जनता गद-गद हो जायेगी।  परोपकारी सरकार को वोट दे देगी।
बीस रुपये किलो भाव के गेंहूं दो रुपयें में। जनता की जेब से मात्र दो रुपये लिए जायेंगे और राजकोष से अठारह रुपये निकाले जायेंगे। अप्रत्यक्ष रुप से अठारह रुपये का भार जनता को ही ढोना पड़ेगा। क्योंकि जीवन गुज़ारने की अन्य आवश्यक चीजों के भाव बढ़ जायेंगे। डीजल, पेट्रोल, रसोईगेस, दाले, खाद्य तेल, चीनी, दूध, मसाले, कपड़ा, साबुन और अन्य आवश्यक उपभोग की वस्तुऐं मंहगी कर अठारह रुपये वसूल कर लिए जाएंगे। उद्धेश्य स्पष्ट है- मूर्ख बन कर हाथ के निशानपर बटन दबाओं और एक अन्य हाथ से महंगाई का थप्पड़ खाओ।
क्या यह जनता को ठगने की धूर्त और निर्लज्ज कोशिश नहीं है? देश को दिवालियां करने की कीमत पर चुनाव जीतना क्या सरकार की नीयत पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रहा है? निश्चय ही, जो लोग एक पार्टी की कमान सम्भाले हुए हैं, वे बहुत चतुर और चालाक है। भारतीय जनता को कैसे मूर्ख बना कर चुनाव जीता जा सकता है, इस कला में वे माहिर है। वे भारतीय जनता को भेड़ो के झूंड़ के अलावा कुछ नहीं समझते। ऐसी भेड़े जिन्हें चुनाव के वक्त लालच दे कर अपनी ओर आकृषित किया जा सकता है।
यदि पार्टी की नीयत सही होती तो इस बिल को 2009-10 में ही लाया जा सकता था। ऐसा होने पर जो दुष्परिणाम प्राप्त होते, उससे जनता अवगत हो जाती और सराकर की पोल खुल जाती। 2013 में यह कानून इसलिए बनाया जा रहा है, ताकि 2014 के चुनावों को जीतने तक इसके दुष्परिणामों को जनता से छुपाया जा सके। जब पार्टी की सरकार बन जायेगी, फिर जनता भले ही रोये, इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
एक भ्रष्ट व निकम्मी प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा देश के अस्सीं करोड़ लोगों को अनाज कैसे बांटा जायेगा, इस संबंध मे सरकार कुछ भी नहीं बता पा रही है। देश के प्रत्येक गांवों और शहरों तक अनाज के परिवहन की व्यवस्था करना अत्यन्त खर्चिला काम है, इसका भार भी अंतत: जनता पर ही डाला जायेगा। पूरे देश में अनाज के भंडारन व वितरण के लिए स्टोर खोलने पड़ेंगे और कर्मचारियों को रखना पडे़गा। इसका अतिरिक्त भार भी जनता को उठाना पडे़गा। कुल मिला कर देखा जाय तो सरकार ने जितना प्रावधान रखा है, उसका दुगुना भार राजकोष पर पडे़गा। निश्चय ही यह कानून देश की अर्थव्यवस्था को बदहाल कर देगा।
अस्सीं करोड़ भारतीयों को यह लाभ मिलेगा और चालिस करोड़ इस लाभ से वंचित रह जायेंगे। नागरिकों को किस आधार पर विभाजित किया जायेगा? इस बारे में सरकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। दरअसलस, यह बहुत ही जटिल प्रक्रिया होगी और इसे सरकारी मशीनरी पूरी पारदर्शिता और र्इमानदारी से लागू नहीं कर पायेगी। चूंकि सरकार इस कानून को जल्दबाजी में जनता पर थोप रही है, अत: गड़बड़िया खूब होगी। घपले होंगे। अनाज लोगों के खाते में चढ़ जायेगा, परन्तु मिली-भगत से इसे बाजार में बेच दिया जायेगा। सरकारी गोदामों से निकल कर गेहूं बाजार में पहुंच जायेगा। गेंहू के भाव अचानक इतने गिर जायेंगे कि किसान हताश हो कर गेंहूं बोने ही बंद कर देगा। मान लीजिये गेहूं का उत्पादन कम हो गया और सरकार अगले साल तीस या चालिस रुपये में गेहूं खरीद कर दो रुपये में बांट  पायेगी ? यह एक नितांत अव्यवहारिक नीति है, जिसे गहन विचार-विमर्श से लागू करना आवश्यक है। चूंकि इसका अतिरिक्त भार राजकोष पर पड़ेगा, अत: देश जब भयानक आर्थिक संकट से गुजर रहा हो, जल्दबादी में ऐसा कानून बना कर देश की अर्थव्यवस्था को और कमजोर करने का प्रयास पूर्णतया गलत है। देश की जनता को इसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करना चाहिये। देश भर में इस कानून को लागू करने के पहले एक प्रबल जनआंदोलन छेड़ना चाहिये।
जानबूझ कर एक अध्यादेश के माध्यम से एक महत्वपूर्ण  बिल संसद में पेश करने का घृणित उद्धेश्य स्पष्ट है- इसके प्रावधानों  पर बहस से बचने की कोशिश। दो बैसाखियों के सहारे सरकार चला रही सरकार ने एक और मजबूत बैसाखी का जुगाड़ कर लिया है। अवसरवादी अतिमहत्वाकांक्षी नीतीश कुमार को अपने पाले में ला कर यह जता दिया है कि हमे राजनैतिक नैतिका और आदर्शो से परहेज हैं। न केवल हम पैसे और ताकत के बल पर सांसद खरीद सकते हैं, वरन गठबंधन तुड़वा कर पूरी की पूरी पार्टी भी खरीदने की साम्मर्थय रखते हैं। नीतीश कुमार के रुप में एक ऐसा तुरुप का इक्का हाथ लग गया है, जिसके सहारे माया और मुलायम की हैकड़ी को नियंत्रित किया जा सकता है। करुणानिधि ने भले ही गठबंधन से अलग होने का फैंसला किया हो, किन्तु उसकी बेटी को राज्यसभा सांसद बनवा कर यह सिद्ध कर दिया है कि हम भ्रष्ट राजनेता और भ्रष्टाचार से को मान्यता देने में कभी संकोच नहीं करते।
खाद्य सुरक्षा बिल में चाहे कई खामियां हो, परन्तु उसे पास कराने की तैयारी कर ली गयी है। वजह यह है कि राजनेता देश की जनता के हित के बजाये अपने राजनीतिक स्वार्थ को ज्यादा अहमियत देते हैं। ठीक उसी तरह जैसे ईस्ट इंडिया कम्पनी का साथ देने के लिए राजा-महाराजा अपने स्वार्थ के लिए जनता और देश के हित को भूल जाते थे। निश्चय ही भारतीय इतिहास की पुनरावृति हो रही है। जो राजनेता आज ईस्ट  सोनिया कम्पनी के साथ है, वे दरअसल उन सरकारी अफसरों की तरह है, जो अपनी देश भक्ति और स्वाभिमान को छोड़ कर अंग्रेजो का साथ दे रहे थे। और इस सरकार को बचाने और पुन: सता में लाने के लिए जो पार्टियां साथ दे रही है, वे सभी उन भारतीय राजाओं-महाराजाओं की तरह हैं, जो  अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए अंधे भिखारी बन गये हैं, जिन्हें सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा है,  किन्तु जानबूझ कर वे अंधे बनने का ढोंग कर रहे हैं।
एक राजनीतिक पार्टी, जिसने पिछले नो वर्षों में देश को आर्थिक दृष्टि से बरबाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। जिसके कुशासन में देश की आतंरिक सुरक्षा संकट में पड़ गयी है। पड़ोसी देश हमारी दुर्बलताओं का लाभ उठा कर आंखे दिखा रहे हैं। ऐसी पार्टी किसी भी तरह पुन: सता में आने के लिए लालायित हैं। खाद्य सुरक्षा को कानून बना कर वह एक ऐसा राजनीतिक खेल खेलने के लिए तैयार हो गयी है, जिसे जीतने की उसे पूरी आशा है। उसे इस कानून के दुष्परिणामों की चिंता नहीं है। वजह यह है कि देश चाहे बरबार हो जाये, देश की जनता को चाहे असहनीय कष्ट उठाने पड़े, उसे सता चाहिये। क्योंकि पुन: सता मिलने पर ही उन ऐतिहासिक घोटालों पर पर्दा डाल पायेंगी, जिसमें खरबों रुपये के सार्वजनिक धन की हेराफेरी हुई है। एक पार्टी को चला रहे, अति चालाक किस्म के लोग इस बात पर भी भयभीत हैं कि भारत में  कभी ऐसी सरकार बन जायेगी, जो विदेशों में जमा काले धन को देश में लाने का  र्इमानदार प्रयास करेगी, तब सारा खेल बिगड़ जायेगा। पोल खुल जायेगी। असली सूरत सामने आ जायेगी। तब देश की जनता से मुंह छुपा कर विदेश भागने की अलावा कोई चारा ही नहीं बचेगा।

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