Sunday, 21 July 2013

एक भ्रष्ट पार्टी की रणनीति असफल होगी, देश को एक परिवार की परतंत्रता से मुक्ति मिलेगी।

सड़ांध मार रही भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था और इससे जुड़े हुए राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के भाग्य का फैंसला भारत की जनता अगले लोकसभा चुनावों में सुना देगी। या तो वह इन्हें स्वीकार कर भ्रष्टाचार को  मान्यता दे देगी या एक नयी राजनीतिक व्यवस्था के पक्ष में मतदान करेगी। यदि भ्रष्ट आचरण में आकंठ डूबी एक पार्टी और इसके गठबंधन को पुन: जनादेश मिल जाता है, तो यह इस तथ्य को पुष्ट कर देगा कि भ्रष्टाचार और महंगाई  भारतीय जनता के लिए कोई  मुख्य मुद्धा नहीं  है और वह धर्म और जाति की संकीर्णता से अपने आपको मुक्त नहीं कर पा रही है।  यदि ऐसा होता है तो वे राजनीतिक दल अपने मिशन में सफल माने जायेंगे, जो धर्म और जाति के मकड़जाल मे जनता को उलझाते हैं।  उसकी दुर्बलता का लाभ उठा कर चुनावी समीकरण बनाते हैं। चुनाव जीतते हैं और सरकारे बनाते हैं।
परन्तु पूरे देश में महंगाई को ले कर जनता का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। सरकार की भ्रष्ट नीतियों से वह क्रुध है। अत: अगले चुनावों में महंगाई और भ्रष्टाचार यदि मुख्य मुद्धा बन गया, तब सरकार की तुष्टिकरण और प्रलोभन दे कर जनता को भ्रमित करने वाली नीतियां काम नहीं आयेगी। ऐसा होने पर  एक भ्रष्ट राजनीतिक पार्टी और उसका कुनबा सारी कलाबाजियां भूल जायेगा। उसकी तिकड़म और धूर्त रणनीति निष्फल हो जायेगी। जनता उन्हें धूल चटा देगी।   अपने मतलब के लिए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो पार्टियां  एक भ्रष्ट सरकार को बचा रही थी, उन राजनीतिक दलों और उनके नेताओं  का असली चेहरा जनता पहचान चुकी है। इन दोगले और अवसरवादी नेताओं को भी जनता सबक सिखा देगी। इन पार्टियों के आधा दर्जन नेता, जो प्रधानमंत्री बनने का सपना संजो रहें हैं, उनके सारे सपने हवा हो जायेंगे।
इस समय भारत के सभी राजनीतिक विश्लेषक यही अनुमान लगा रहे हैं कि यद्यपि कांग्रेस के सांसदों की संख्या अगले चुनावों में घट जायेगी, परन्तु यूपीए-3 सबसे बड़ा गठबंधन बन कर उभरेगा। सरकार बनाने के लिए इसे बाहर से भी अन्य दलों का समर्थन मिल जायेगा। वहीं भाजपा के सांसदों की सख्या बढ़ जायेगी, किन्तु राजग के सांसदों की संख्या कम होगी और सरकार बनाने के लिए किसी अन्य दल  का बाहर से समर्थन नही मिलेगा। सम्भवत: इसीलिए  कांग्रेसी नेता विचित्र  आत्माभिमान से गर्वित हो रहे हैं।  अपने करमों से न तो उन्हें पश्चाताप है और न ही दु:ख।  उन्हें पूरी आशा है कि उन्होंने देश की जनता के साथ चाहे जितना बड़ा छल किया हो, सरकार वे ही बनायेंगे। क्योंकि तुष्टिकरण नाम का ऐसा तुरुप का इक्का उनके हाथ में हैं, जिससे हर हारी हुई बाजी जीती जा सकती है। भारत की राजनीतिक परिस्थितियों और जनता के मिजाज का उन्हें पूर्वाभास है। इस समय उनका एक ही मिशन है-तुष्टिकरण के नाम पर सारे राजनीतिक दलों को अपने साथ जोड़ो और प्रतिद्वंद्वी को  राजनीतिक अछूत बना कर उसे सब से अलग-थलग कर दो।
शायद ही कोई राजनीतिक विश्लेषक इस बात को मानने के लिए तैयार होगा कि यूपीए-तीन के सांसदों की  संख्या इतनी अधिक कम जायेगी कि वह सरकार बनाने का दावा ही नहीं कर पायेगा। उसके संकट मोचक राजनीतिक दल सिकुड़ जायेंगे। उनके सांसदों की संख्या  अनुमान से आधि रह जायेगी। दूसरी ओर राजग में राजनीतिक दल कम होंगे,  उनके सांसदों की संख्या अधिक होगी। यद्यपि इनके पास सरकार बनाने का स्पष्ट बहुमत नहीं होगा, परन्तु तब वे अछूत नहीं कहलायेगें। कई राजनीतिक दल स्वत: ही उनसे जुड़ जायेंगे।
अगर ऐसी परिस्थितियां बनी, तो इसे एक राजनीतिक चमत्कार ही कहा जायेगा। परन्तु ऐसा चमत्कार होने की आशा बलवत हो जा रही है। परिस्थितियां दिन प्रति दिन एक राजनीतिक दल के विरुद्ध होती जा रही। जनता भ्रष्ट और अर्कमण्य राजनेताओं से निपटने का मूड बना बैठी है। भारतीय जनता महंगाई के भारी भरकम बोझ को सहते-सहते इतनी टूट गयी है कि वह अब एक पार्टी को अभयदान देने वाली नहीं है।
विश्व में जहां भी स्वस्थ लोकतंत्र है, जनादेश पाने के पहले राजनीतिक पार्र्टियां मुख्यत:- सुदृढ आर्थिक नीति, तीव्र औद्योगिकरण, बेरोजगारी उन्मूलन, विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा पर अपनी पार्टी की नीतियों को जनता के समक्ष स्पष्ट करती है। इसके समर्थन में तर्क प्रस्तुत करती है। प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल के साथ खुली बहस करती है। यदि वर्तमान समय में उस दल की सरकार है, तो वह अपनी उपलब्धियों को गिनाती है और जनता से आग्रह करती है कि यदि उन्हें पुन: जनादेश मिला, तो वह अपनी उन्हीं नीतियों को आगे बढ़ायेगी।
परन्तु हमारे देश में ऐसी स्वस्थ परम्परा का अभाव है। जिन राजनेताओं के पास सता संचालन के पूरे अधिकार हैं और जिन्होंने अपने अधिकारों का भरपूर उपयोग किया है, अपनी उपल​िब्ध्यां गिनाने के लिए जनता के सामने नहीं आते। किसी सार्वजनिक बहस में भाग ले कर अपने पक्ष में कोर्इ तर्क नहीं प्रस्तुत करते। दरअसल उन्हें ऐसा आत्माभिमान है कि ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं।  उपल​िब्ध्यां शून्य और नाकामियों का अम्बार हों, किन्तु उनका ऐसा मानना है कि सता पाने का हक उनका ही है, क्योंकि भारत की जनता के पास उनका कोई विकल्प नहीं है। उनकी सोच में भारत की अधिकांश जनता अत्यधिक भोली है।  वह  अशिक्षित और मूर्ख हैं। प्रलोभन दे कर उनके वोटो को खरीदा जा सकता है या धर्म के नाम पर उन्हें उतेजित कर अपने पक्ष में किया जा सकता है।
सम्भवत: यही उद्धेश्य ले कर एक भ्रष्ट राजनीतिक दल अगला लोकसभा चुनाव  जीतने की रणनीति बना रहा है। जो रणनीति के सूत्रधार हैं, वे हमेशा पर्दे के पीछे रहते हैं और अपने अनुयायियों के माध्य से अपनी कुटिल नीतियों को अंजाम देते हैं। इस समय एक निश्चित उद्धेश्य पर अनुयायी काम कर रहे हैं। वह उद्धेश्य है- अपने प्रतिद्वंद्वी पर निरन्तर जहर बूझे शब्द तीरों से आक्रमण करों। वे जो भी कहें उसकी बात का  बतंगड़ बनाओं। ऐसा प्रपोगंड़ा करते रहो कि चुनाव आते-आते अल्पसंख्यक समुदाय के बीच प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल की  एक कट्टर छवि बन जाय और वह एकजुट हो कर उनके पक्ष में मतदान करने को विवश हो जाय। इन अनुयायियों ने भारत के टीवी चेनलो को अपने प्रपोगंड़ा का मंच बना रखा है और ये समाचार चेनल इन्हें अपेक्षित सहयोग कर रहे हैं।
रणनीति का दूसरा भाग है-भारत की निर्धन जनता के वोट पाने के लिए सरकारी खजाने से इतना धन बांटों कि वह अपने सारे दुखों और तक़लीफों को भूल कर पार्टी के पक्ष में मतदान करें। ऐसा करने पर खजाना खाली हो जाय, उसकी परवाह मत करों। देश आर्थिक दृष्टि से तबाह हो जाय और अर्थव्यवस्था एक भयानक आर्थिक संकट में फंस जाय, पर इसकी चिंता मत करों। दरअसल हमे देश से कोई मतलब नही है।  जनता के दु:ख-दर्द से हमें कोई लेना नही है। देश चाहे डूब जाय, चाहे जनता पर मुसिबतों के पहाड़ टूट पड़े,  हमे किसी भी कीमत पर सता चाहिये।
पार्टी के रणनीतिकार सम्भवत: यह मान बैठे हैं कि उनकी रणनीति सफल होगी। सता पर पुन: उनका अधिकार होगा। पांच साल यदि और मिल गये, तो इस देश को पूरी तरह से बरबाद करने में कोई कसर नहीं बाकी नहीं रखेंगे। देश बरबाद हो जायेंगा, किन्तु हम इतने धनवान हो जायेंगे कि बाकी बची जिंदगी दुनियां किसी कोने में बैठ कर आराम से गुजार लेंगे। वैसे भी हमे इस देश से और देश की जनता से कोई मतलब नहीं है। हमें तो मात्र इस देश की जनता के भोलेपन और मूर्खता का लाभ उठाना है।
जनता उनकी कुटिल नीति और नीयत भांप रही  है। वह उन्हें पूरी तरह ठुकरा देगी। भारतीय लोकतंत्र एक परिवार की परतंत्रता से मुक्त हो जायेगा। वह शुभ दिन अवश्य आयेगा, यदि जिन्हें यह जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिला है वे अपने वैचारिक द्वंद्व और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को एक ओर रख, कठोर परिश्रम से देश को जगाने का उपक्रम करें।

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