श्री राजनाथ जी,
बहुधा राजनेता अपनी ही बनायी दुनियां में मस्त रहते हैं और आम आदमी के बारें में दूसरों के द्वारा उपलब्ध करायी गयी जानकारी के आधार पर ही अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं। इस पत्र के माध्यम से एक आम आदमी, भारत की एक शीर्षस्थ राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष से जुड़ने का प्रयास कर रहा है। मैंने इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है। फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि मेरी बात आप तक नहीं पहुंचेगी और यदि पहुंच भी गयी तो आप इसे गम्भीरता से नहीं लेंगे। सोशल मीडिया जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय सूचना प्रेषण माध्यम से भी यदि कोर्इ आम भारतीय अपने नेताओं से नहीं जुड़ पाता है, तो फिर दिल्ली से सैंकड़ो किलोमिटर दूर किसी सुदूर गांव में बैठा भारतीय नागरिक अपनी पीड़ा किसी राजनीतिक सख्शियत तक निश्चित रुप से नहीं पहुंचा सकता।
भाजपा भारत का एक बड़ा राजनीतिक दल है। देश भर में इसके करोड़ो वोटर है, लाखों कार्यकर्ता हैं, हज़ारो जन प्रतिनिधि हैं। किन्तु भाजपा का अध्यक्ष पद इतना शक्तिशाली नही है, जितना कांगे्रस अध्यक्षा का है। जहां भाजपा अध्यक्ष को अपने वरिष्ठ नेताओं से परामर्श और उचित मार्ग निर्देश लेना पड़ता है। अपने विचारो से उन्हें सहमत करने के लिए उनसे आग्रह करना पड़ता है। उनके विरोध का आदरपूर्वक सम्मान करना पड़ता है। इसी तरह अपने समकक्ष और कनिष्ठ नेताओं को भी अपने विचारों और विरोध को अध्यक्ष के सामने रखने का अधिकार होता है। परन्तु दूसरी ओर कांगे्रेस अध्यक्षा के निर्णय और आदेश को सिर्फ सुना जाता है ओैर उसका अक्षरश: पालन किया जाता। विरोध और प्रतिप्रश्न का वहां कोर्इ सवाल ही नहीं उठता। कांग्रेस अध्यक्षा का पद सर्वोच्च है। इसकी सर्वोच्चता को न तो चुनौती दी जा सकती है न ही उन्हें लोकतांत्रित परम्परा से बदला जा सकता है। निस्सदेंह उन्हें निरंकुश अधिकार है। इन्हीं निरंकुश अधिकारों ने कांग्रेस को सता तक पहुंचाया। किन्तु इसी निरंकुशता के कारण आज पार्टी के पास ऐसे नेताओं की भरमार हो गयी है, जिन्होंने योग्यता से नहीं, वरन पार्टी अध्यक्षा की चापलुसी और वफादारी से बहुत ऊंचा स्थान बना लिया है। ये अभिमानी नेता सार्वजनिक रुप से जिस तरह निरर्थक बयानबाजी कर रहे हैं उससे लगता हैं एक पार्टी न केवल विचारधाराविहिन हो गयी है, वरन उसमें योग्य और अनुशासित नेताओं का भी अकाल पड़ गया है।
एक अक्षम, अकुशल, असफल व अलोकप्रिय तथा अति भ्रष्ट सरकार का कार्यकाल बेहद असंतोषप्रद और विवादास्पद रहा है, किन्तु कांग्रेस अध्यक्षा की शक्तियों में कोर्इ कमी नहीं आर्इ है। कोर्इ अपने नेता से असुंष्ट और नाराज नही है। पार्टी के किसी भी नेता ने अपने पार्टी के शासन के संबंध में कोर्इ सवाल नहीं उठाया है और न ही विरोध किया है। सम्भवत: इसीलिए पार्टी के नेता अपनी नेता के प्रति समपर्ण का भाव रखते हुए अगला चुनाव जीतने की तैयारी में लगे हुए हैं।
वहीं दूसरी और भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र से पार्टी अध्यक्ष को कार्य करने में काफी दिक्कते आ रही है। सभी को संतुष्ट करना और साथ ले कर चलना, उनके लिए काफी दुरुह कार्य बन गया है। अत: जब से आप अध्यक्ष बने हैं, इस दुरुह कार्य को सुगम बनाने में लगे हुए हैं। इस कवायद में आपका काफी समय खराब हो गया है।
यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगला लोकसभा चुनाव भारत के संसदीय लोकतांत्रिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण चुनाव बनने जा रहा है। यह चुनाव भाजपा के साथ-साथ भारत की जनता के भाग्य का फैंसला करेगा। निस्संदेह भारतीय जनता अगले लोकसभा को बहुत गम्भीरता से लेगी। किन्तु दुर्भाग्य से भाजपा जैसी सशक्त पार्टी, जो एक भ्रष्ट सरकार को पुन: सता में आने से रोकने में सक्षम हैं, आने वाले चुनावों के लिए जितनी गम्भीरता दिखानी चाहिये, उतनी नहीं दिखा पा रही है। पार्टी के सभी नेता अब तक एकजुट नहीं हो पाये है। नेताओं के मध्य बन रहे वैचारिक द्वंद्व, संशय और अपने कद को दूसरे से बड़ा बताने की दुविधा ने पार्टी को एक असंमजस पूर्ण स्थिति में डाल दिया है। अधिकांश नेता आधे-अधुरे मन से ही चुनावों की तैयारी में लगे हुए हैं। शायद वे यह समझने में भूल कर रहे हैं कि पार्टी में आस्था रखने वाले मतदाताओं और समर्पित कार्यकर्ताओं ने ही उन्हें वहां तक पहुंचाया है। मतदाता और पार्टी का कद उनसे बड़ा है, वे उसके समक्ष बहुत ही बौने हैं।
मेरे जैसे करोड़ो भारतीय किसी भी हालत में उस राजनीतिक दल को पुन: सता में नहीं देखना चाहते, जिस दल के नेताओं ने बड़ी ही निर्लज्जता से देश के संसाधनों को लूटा है और बहुत ही दम्भपूर्ण तरीके से अपराध छुपाने का प्रयास कर रहे हैं। यह पार्टी सारे गलत और सही तरीके अपना कर पुन: सता पाने के लिए व्यग्र है, जबकि पार्टी के पास ऐसी कोर्इ उपलिब्ध्यां नहीं है, जिसके आधार पर यह पुन: जनादेश पाने का अधिकार रखती है।
अपनी सरकार की साख बचाने के लिए राजनीतिक दलों से सरकार के पक्ष में समर्थन जुटाने की जो क्षुद्र कोशिश की जा रही है, उससे सरकार से जुड़े राजनेताओं की नीति और नीयत की झलक साफ दिखार्इ दे रही है। निश्चय ही चुनावों के बाद भाजपा सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी बन कर उभरेगी, किन्तु सारी अवसरवादी और भ्रष्ट पार्टियां अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए धर्मनिरपेक्षता का चोगा पहन कर एक हो जायेगी और भाजपा को सता में नहीं आने देगी। दरअसल, प्रादेशिक राजनीतिक दलों को जो नेता संचालित कर रहे हैं, उन्हें देश की भ्रष्ट व्यवस्था को सुधारने और राष्ट्र की ज्वलन्त समस्याओं को सुलझाने में कोर्इ दिलचस्पी नहीं है। वे राजनीति की प्रदुषित गंगा को कभी पवित्र नहीं करना चाहते, क्योंकि यि वह पवित्र हो गयी, तो उनका राजनीतिक जीवन समाप्त हो जायेगा।
भाजपा को कांग्रेस के साथ-साथ क्षत्रपों का कद भी घटाना होगा, अन्यथा उसके पास अगली लोकसभा में सब से ज्यादा सांसद भले ही क्यों न हो, पार्टी को विपक्ष में ही बैठना होगा। इस अप्रिय स्थिति को टालने के लिए भाजपा नेताओं को असंमजसपूर्ण स्थिति को त्याग कर देश और पार्टी हित में एक-एक लोकसभा सीट को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। मीडिया में बयानबाजी करने से चुनाव नहीं जीते जाते। चुनाव जीतने के लिए दूर देहात में बैठे हुए प्रत्येक मतदाता से जुड़ना रहता है। उसको अपनी बात सरल भाषा में समझाने की कोशिश करनी पड़ती है, क्योंकि भारत का अधिकांश मतदाता अखबार नहीं पढ़ता और टीवी पर समाचार नहीं सुनता। वह कुंठित है। राजनीतिक व्यवस्था से चिढ़ा हुआ है। उसका भारत की राजनीति और राजनेताओं पर से विश्वास उठ गया है। उसका विश्वास जीतने की कवायद करनी होगी। उसके कष्टों को पहले समझना होगा और उसका निदान उसे समझाना होगा। उसे भरोसा दिलाना होगा, तभी वह आपको वोट देगा।
यदि भाजपा नेता जनता का दिल जीतने में कामयाब हो जायेंगे, उन्हें जो सफलता मिलगी वो चौंकाने वाली होगी। ऐसी सफलता का आज तक कोर्इ राजनीतिक विश्लेषक अनुमान नहीं लगा पाया हैं। परिवर्ततन की एक ऐसी लहर भीतर ही भीतर बह रही है, उसे यदि कोर्इ राजनीतिक दल मोड़ने में सक्षम हो जायेगा, वह भारत का भाग्य विधाता बन जायेगा।
राजनाथ जी, आपको एक एतिहासिक दायित्व निभाना है। पार्टी को एक कीजिये। महासमर को जीतने के लिए आज से ही कमर कस लीजिये। यदि समय का सही उपयोग नहीं किया, तो समय लौट कर वापस नहीं आयेगा।
बहुधा राजनेता अपनी ही बनायी दुनियां में मस्त रहते हैं और आम आदमी के बारें में दूसरों के द्वारा उपलब्ध करायी गयी जानकारी के आधार पर ही अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं। इस पत्र के माध्यम से एक आम आदमी, भारत की एक शीर्षस्थ राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष से जुड़ने का प्रयास कर रहा है। मैंने इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है। फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि मेरी बात आप तक नहीं पहुंचेगी और यदि पहुंच भी गयी तो आप इसे गम्भीरता से नहीं लेंगे। सोशल मीडिया जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय सूचना प्रेषण माध्यम से भी यदि कोर्इ आम भारतीय अपने नेताओं से नहीं जुड़ पाता है, तो फिर दिल्ली से सैंकड़ो किलोमिटर दूर किसी सुदूर गांव में बैठा भारतीय नागरिक अपनी पीड़ा किसी राजनीतिक सख्शियत तक निश्चित रुप से नहीं पहुंचा सकता।
भाजपा भारत का एक बड़ा राजनीतिक दल है। देश भर में इसके करोड़ो वोटर है, लाखों कार्यकर्ता हैं, हज़ारो जन प्रतिनिधि हैं। किन्तु भाजपा का अध्यक्ष पद इतना शक्तिशाली नही है, जितना कांगे्रस अध्यक्षा का है। जहां भाजपा अध्यक्ष को अपने वरिष्ठ नेताओं से परामर्श और उचित मार्ग निर्देश लेना पड़ता है। अपने विचारो से उन्हें सहमत करने के लिए उनसे आग्रह करना पड़ता है। उनके विरोध का आदरपूर्वक सम्मान करना पड़ता है। इसी तरह अपने समकक्ष और कनिष्ठ नेताओं को भी अपने विचारों और विरोध को अध्यक्ष के सामने रखने का अधिकार होता है। परन्तु दूसरी ओर कांगे्रेस अध्यक्षा के निर्णय और आदेश को सिर्फ सुना जाता है ओैर उसका अक्षरश: पालन किया जाता। विरोध और प्रतिप्रश्न का वहां कोर्इ सवाल ही नहीं उठता। कांग्रेस अध्यक्षा का पद सर्वोच्च है। इसकी सर्वोच्चता को न तो चुनौती दी जा सकती है न ही उन्हें लोकतांत्रित परम्परा से बदला जा सकता है। निस्सदेंह उन्हें निरंकुश अधिकार है। इन्हीं निरंकुश अधिकारों ने कांग्रेस को सता तक पहुंचाया। किन्तु इसी निरंकुशता के कारण आज पार्टी के पास ऐसे नेताओं की भरमार हो गयी है, जिन्होंने योग्यता से नहीं, वरन पार्टी अध्यक्षा की चापलुसी और वफादारी से बहुत ऊंचा स्थान बना लिया है। ये अभिमानी नेता सार्वजनिक रुप से जिस तरह निरर्थक बयानबाजी कर रहे हैं उससे लगता हैं एक पार्टी न केवल विचारधाराविहिन हो गयी है, वरन उसमें योग्य और अनुशासित नेताओं का भी अकाल पड़ गया है।
एक अक्षम, अकुशल, असफल व अलोकप्रिय तथा अति भ्रष्ट सरकार का कार्यकाल बेहद असंतोषप्रद और विवादास्पद रहा है, किन्तु कांग्रेस अध्यक्षा की शक्तियों में कोर्इ कमी नहीं आर्इ है। कोर्इ अपने नेता से असुंष्ट और नाराज नही है। पार्टी के किसी भी नेता ने अपने पार्टी के शासन के संबंध में कोर्इ सवाल नहीं उठाया है और न ही विरोध किया है। सम्भवत: इसीलिए पार्टी के नेता अपनी नेता के प्रति समपर्ण का भाव रखते हुए अगला चुनाव जीतने की तैयारी में लगे हुए हैं।
वहीं दूसरी और भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र से पार्टी अध्यक्ष को कार्य करने में काफी दिक्कते आ रही है। सभी को संतुष्ट करना और साथ ले कर चलना, उनके लिए काफी दुरुह कार्य बन गया है। अत: जब से आप अध्यक्ष बने हैं, इस दुरुह कार्य को सुगम बनाने में लगे हुए हैं। इस कवायद में आपका काफी समय खराब हो गया है।
यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगला लोकसभा चुनाव भारत के संसदीय लोकतांत्रिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण चुनाव बनने जा रहा है। यह चुनाव भाजपा के साथ-साथ भारत की जनता के भाग्य का फैंसला करेगा। निस्संदेह भारतीय जनता अगले लोकसभा को बहुत गम्भीरता से लेगी। किन्तु दुर्भाग्य से भाजपा जैसी सशक्त पार्टी, जो एक भ्रष्ट सरकार को पुन: सता में आने से रोकने में सक्षम हैं, आने वाले चुनावों के लिए जितनी गम्भीरता दिखानी चाहिये, उतनी नहीं दिखा पा रही है। पार्टी के सभी नेता अब तक एकजुट नहीं हो पाये है। नेताओं के मध्य बन रहे वैचारिक द्वंद्व, संशय और अपने कद को दूसरे से बड़ा बताने की दुविधा ने पार्टी को एक असंमजस पूर्ण स्थिति में डाल दिया है। अधिकांश नेता आधे-अधुरे मन से ही चुनावों की तैयारी में लगे हुए हैं। शायद वे यह समझने में भूल कर रहे हैं कि पार्टी में आस्था रखने वाले मतदाताओं और समर्पित कार्यकर्ताओं ने ही उन्हें वहां तक पहुंचाया है। मतदाता और पार्टी का कद उनसे बड़ा है, वे उसके समक्ष बहुत ही बौने हैं।
मेरे जैसे करोड़ो भारतीय किसी भी हालत में उस राजनीतिक दल को पुन: सता में नहीं देखना चाहते, जिस दल के नेताओं ने बड़ी ही निर्लज्जता से देश के संसाधनों को लूटा है और बहुत ही दम्भपूर्ण तरीके से अपराध छुपाने का प्रयास कर रहे हैं। यह पार्टी सारे गलत और सही तरीके अपना कर पुन: सता पाने के लिए व्यग्र है, जबकि पार्टी के पास ऐसी कोर्इ उपलिब्ध्यां नहीं है, जिसके आधार पर यह पुन: जनादेश पाने का अधिकार रखती है।
अपनी सरकार की साख बचाने के लिए राजनीतिक दलों से सरकार के पक्ष में समर्थन जुटाने की जो क्षुद्र कोशिश की जा रही है, उससे सरकार से जुड़े राजनेताओं की नीति और नीयत की झलक साफ दिखार्इ दे रही है। निश्चय ही चुनावों के बाद भाजपा सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी बन कर उभरेगी, किन्तु सारी अवसरवादी और भ्रष्ट पार्टियां अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए धर्मनिरपेक्षता का चोगा पहन कर एक हो जायेगी और भाजपा को सता में नहीं आने देगी। दरअसल, प्रादेशिक राजनीतिक दलों को जो नेता संचालित कर रहे हैं, उन्हें देश की भ्रष्ट व्यवस्था को सुधारने और राष्ट्र की ज्वलन्त समस्याओं को सुलझाने में कोर्इ दिलचस्पी नहीं है। वे राजनीति की प्रदुषित गंगा को कभी पवित्र नहीं करना चाहते, क्योंकि यि वह पवित्र हो गयी, तो उनका राजनीतिक जीवन समाप्त हो जायेगा।
भाजपा को कांग्रेस के साथ-साथ क्षत्रपों का कद भी घटाना होगा, अन्यथा उसके पास अगली लोकसभा में सब से ज्यादा सांसद भले ही क्यों न हो, पार्टी को विपक्ष में ही बैठना होगा। इस अप्रिय स्थिति को टालने के लिए भाजपा नेताओं को असंमजसपूर्ण स्थिति को त्याग कर देश और पार्टी हित में एक-एक लोकसभा सीट को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। मीडिया में बयानबाजी करने से चुनाव नहीं जीते जाते। चुनाव जीतने के लिए दूर देहात में बैठे हुए प्रत्येक मतदाता से जुड़ना रहता है। उसको अपनी बात सरल भाषा में समझाने की कोशिश करनी पड़ती है, क्योंकि भारत का अधिकांश मतदाता अखबार नहीं पढ़ता और टीवी पर समाचार नहीं सुनता। वह कुंठित है। राजनीतिक व्यवस्था से चिढ़ा हुआ है। उसका भारत की राजनीति और राजनेताओं पर से विश्वास उठ गया है। उसका विश्वास जीतने की कवायद करनी होगी। उसके कष्टों को पहले समझना होगा और उसका निदान उसे समझाना होगा। उसे भरोसा दिलाना होगा, तभी वह आपको वोट देगा।
यदि भाजपा नेता जनता का दिल जीतने में कामयाब हो जायेंगे, उन्हें जो सफलता मिलगी वो चौंकाने वाली होगी। ऐसी सफलता का आज तक कोर्इ राजनीतिक विश्लेषक अनुमान नहीं लगा पाया हैं। परिवर्ततन की एक ऐसी लहर भीतर ही भीतर बह रही है, उसे यदि कोर्इ राजनीतिक दल मोड़ने में सक्षम हो जायेगा, वह भारत का भाग्य विधाता बन जायेगा।
राजनाथ जी, आपको एक एतिहासिक दायित्व निभाना है। पार्टी को एक कीजिये। महासमर को जीतने के लिए आज से ही कमर कस लीजिये। यदि समय का सही उपयोग नहीं किया, तो समय लौट कर वापस नहीं आयेगा।