Wednesday, 9 March 2016

अश्वगंधा:बलवर्धक एवं वात रोगों की विशेष औषधि

अश्वगंधा, कहने को तो एक जंगली पौधा है किंतु औषधीय गुणों से भरपूर है। इसे आयुर्वेद में विशेष महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है अश्व अर्थात् घोड़ा, गंध अर्थात् बू अर्थात् घोड़े जैसी गंध।
अश्व गंधा के कच्चे मूल से अश्व के समान गंध आती है इसलिए इसका नाम अश्वगंधा रखा गया। इसे असगंध बराहकर्णी, आसंघ आदि नामों से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे बिटर चेरी कहते हैं। यह सारे भारत में पाया जाता है, पर पश्चिम मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले तथा नागौर (राजस्थान) की अश्वगंधा प्रसिद्ध व गुणकारी है। इसका झाड़ीदार क्षुप लगभग 2 से 4 फुट बहुशाखा युक्त होता है। पत्ते सफेद रोमयुक्त अखंडित अंडाकार होते हैं। फूल पीला हरापन लिए चिलम के आकार के होते हैं एवं शरद ऋतु में निकलते हैं। फल गोलाकार रसभरी के फलों के समान होेते हैं। फल के अंदर कटेरी के बीजों के समान पीत-श्वेत असंख्य बीज होते हैं। इसका मूल ही प्रयुक्त होता है, जिसे जाड़े में निकालकर छाया में सूखाकर सूखे स्थान पर रखा जाता है। बरसात में इसके बीज बोए जाते हैं।
जड़ी-बूटियों की दुकान या पंसारी की दुकान से मिलने वाले शुष्क जड़ छोटे-बड़े टुकड़ों के रूप में मिलती है। यह प्रायः खेती किए हुए पौधे की जड़ होती है। जंगली पौधे की अपेक्षा इनमें स्टार्च आदि अधिक होता है। आंतरिक प्रयोग के लिए खेती वाले पौधे की जड़ तथा लेप आदि जंगली पौधे की जड़ से ठीक रहती है।
अश्वगंधा एक बलवर्धक रसायन है। इसके इस सामथ्र्य के चिर पुरातन से लेकर अब तक सभी चिकित्सकों ने सराहना की है। आचार्य चरक ने असगंध को उत्कृष्ट बल्य माना है।
सुश्रुत के अनुसार यह औषधि किसी भी प्रकार की दुर्बलता कृशता में गुणकारी है। पुष्टि-बलवर्धन की इससे श्रेष्ठ औषधि आयुर्वेद के विद्व ान कोई और नहीं मानते। चक्रदत्त के अनुसार अश्वगंधा का चूर्ण 15 दिन दूध, घृत अथवा तेल या जल से लेने पर बालक का शरीर पुष्ट होता है। अश्वगंधा की प्रशंसा में विद्वानों का मत है कि जिस तरह वर्षा होने पर सुखी जमीन भी हरी हो जाती है और फसलों की पुष्टि होती है वैसे ही इसके सेवन से कमजोर, मुरझाये शरीर भी पुष्ट हो जाते हैं। यही नहीं सर्द ऋतु में कोई वृद्ध इसका एक माह भी सेवन करता है, तो इसके लिए बहुत फायदेमंद होता है।
यह औषधि मूलतः कफ-वात शामक, बलवर्धक रसायन है। अश्वगंधा को सभी प्रकार के जीर्ण रोगों, क्षय शोथ आदि के लिए श्रेष्ठ द्रव्य माना गया है। यह शरीर धातुओं की वृद्धि करती है एवं मांस मज्जा का शोधन करती है। मेधावर्द्धक तथा मस्तिष्क के लिए तनाव शामक भी। मूर्छा, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, शोध विकार, श्वास रोग, शुक्र दौर्बल्य, कुष्ठ सभी में समान रूप से लाभकारी है। यह एक प्रकार के कामोत्तेजक की भूमिका निभाती है परंतु इसका कोई अवांछनीय प्रभाव शरीर पर नहीं देखा गया है। यह ज़रा नाशक है। एजिंग को यह रोकती है व आयु बढ़ाती है।
एक शोध से पता चला है कि अश्वगंधा की जड़ में कुछ ऐसे तत्व भी हैं जिसमें कैंसर के ट्यूमर की वृद्धि को रोकने की पर्याप्त क्षमता होती है। इस जड के जलीय एवं अल्कोहलिक फाॅर्मूला का शरीर पर कम विषैला प्रभाव पड़ता है एवं उसमंे ट्यूमर विरोधी गुण प्रबल रूप से पाए जाते हैं। ऐसी प्रबल संभावना है कि अश्वगंधा कैंसर से छुटकारा दिलाने में बहुत सहायक है।
यदि अश्वगंधा का सेवन लगातार एक वर्ष तक नियमित रूप से किया जाए तो शरीर से सारे विकार बाहर निकल जाते हैं। समग्र शोधन होकर दुर्बलता दूर हो जाती है व जीवन शक्ति बढ़ती है। सर्दी में इसका सेवन विशेष लाभकारी है।
यूनानी में अश्वगंधा को वहमनेवरों के नाम से लाना जाता है। हब्ब असगंध इसका प्रसिद्ध योग है। इसका गुण बाजीकरण, बलवर्धन, शुक्र, वीर्य पुष्टिकर है। महिलाओं को प्रसवोपरांत देने से बल प्रदान करता है।
अश्वगंधा शरीर में सात्मीकरन लाकर जीवनी शक्ति बढ़ाने तथा शक्ति देेने वाले कायाकल्प के लिए चिर प्रचलित रसायन है। यह शरीर के सारे संस्थानों पर क्रियाशील माना गया है।

विभिन्न रोगों में अश्वगंधा का उपयोग

आयुर्वेद में विस्तृत उल्लेख प्राप्त है। उष्ण वीर्य एवं मधुर विपाक वाला यह पौधा वात, कफ शामक तथा नाड़ी बल्य, दीपन, बृहण एवं श्रेष्ठ वाजीकरण होता है। विभिन्न रोगों में इसका अन्य सहयोगी औषधियों के साथ प्रयोग:

वात विकार

अश्वगंधा चूर्ण दो भाग, सोंठ एक भाग तथा मिश्री तीन भाग अनुपात में मिलाकर सुबह-शाम भोजनोपरांत गर्म जल से सेवन करें। यह अनुप्रयोग आमवात संधिवात, निबंध, गैस तथा उदर के अन्यान्य विकारों में लाभप्रद पाया जाता है।

सूखा रोग

सूखा रोग से ग्रस्त बालक को इसका क्षीर पाक सेवन कराएं। स्वाद की वजह से बच्चा अरूचि दिखाए, तो अश्वगंधा चूर्ण 250 मि. ग्राम भीेगे हुए बादाम की एक गिरी को पीसकर दूध के साथ पिलाने से कुछ समय में ही बालक का शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाता है तथा वजन बढ़कर शरीर कांतिमय बन जाता है।

क्षीर पाक बनाने की विधि

अश्वगंधा का बारीक चूर्ण 10 ग्राम, दूध 250 मिली, पानी 250 मिली. मिलाकर किसी कांच के बर्तन में मंद अग्नि पर उबालें, जब जल उड़ जाए और आधा रह जाए तो मानो क्षीर तैयार है।

अनिद्रा रोग में

अश्वगंधा स्वाभाविक नींद लाने के लिए एक अच्छी दवा है, जिन्हें गहरी नींद नहीं आती या फिर जो नींद नहीं आने के रोग से परेशान हैं उन्हें इसका क्षीर पाक बनाकर सेवन करना चाहिए।

स्त्री रोगों में

श्वेत प्रदर में इसका चूर्ण 2 ग्राम के साथ, 1/2 ग्राम वंशलोचन मिलाकर सेवन करें। अल्प विकसित स्तनों के विकास के लिए शतावरी चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिए।

वजन वृद्धि के लिए

नागौरी असगंध, ईसबगोल, छोटी हरड़, शतावरी प्रत्येक 2 तोला तथा श्वेत लोध्र एक तोला, मिश्री 8 तोला लेकर चूर्ण बनाकर 12 ग्राम की मात्रा में चांदी के वर्क के साथ या चांदी की भस्म के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

दुर्बलता

कमजोर एवं दुर्बल शरीर वाले व्यक्तियों को इसका 5 से 10 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिलाकर दूध के साथ या शहद में मिलाकर दूध के साथ सेवन करना चाहिए।
अश्वगंधा चूर्ण 100 ग्राम को 20 ग्राम घी में मिलाकर कांच के बर्तन में जमा दें। प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में दूध से सेवन करें, कुछ ही दिनों में असर नजर आयेगा।
दुर्बलता निवारण के लिए इसका सेवन निरंतर 6 माह तक करें। खटाई एवं अधिक तली-भुनी वस्तुओं का सेवन न करें तथा इसके सेवन के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।

नेत्र ज्योति वर्धक

यदि अश्वगंधा, मुलहठी और आंवला तीनों को समान मात्रा लेकर चूर्ण बनाकर एक चम्मच नियमित रूप से सेवन किया जाये तो नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।

नासूर

यदि नासूर हो जाए तो अश्वगंधा चूर्ण को तेल या छाछ में मिलाकर लगाने से लाभ होता है। अश्वगंधा चूर्ण का सेवन भी करें ताकि नासूर को मिटाने की प्रक्रिया अंदर से भी शुरू हो।

घाव

घावों में अश्वगंधा चूर्ण लगाने से घावों में मवाद आदि नहीं होते और घाव जल्द ठीक हो जाता है।

सावधानी

उपर्युक्त सभी प्रयोग किसी वैद्य या विशेषज्ञ के परामर्श से करें। गलत तरीके से किए उपयेाग हानि भी पहुंचा सकते हैं।

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