आखिर शिक्षा हम क्यों प्राप्त करते हैं? शिक्षा प्राप्त करने का हमारा उद्देश्य क्या है? हम विद्यालयों या विश्वविद्यालयों में जाकर क्यों पढ़ते हैं? क्यों अपने जीवन के महत्वपूर्ण सालों को विश्वविद्यालय की चहारदीवारी में कुर्बान करते हैं? ऐसा इसलिए, क्योंकि हम अपने शेष जीवन में फूल खिलाना चाहते हैं। हम अपने जीवन-उद्यान को सुरभित और आनंदित करना चाहते हैं और अपनी भावी पीढ़ी को भी उसी सुगंध में सराबोर करना चाहते हैं। इसलिए हमें इस बात की खोज करनी चाहिए कि वह कौन-सी शिक्षा है जो हमारे जीवन को सफलताओं से भर सकती है और हमारी जीवन-बगिया को सुरभित और पुष्पित कर सकती है। क्या हमारी वर्तमान शिक्षा वैसी है, क्या वह हमारी आशाओं और अपेक्षाओं की कसौटी पर खरी उतरती है? यदि नहीं तो उसके स्थान पर किसी दूसरी शिक्षा पद्धति की बात हमें अवश्य सोचनी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि शिक्षा का अर्थ ही होता है-प्रकाश, सफलता और उत्कृष्टता। तभी तो हमारे मनीषियों ने 'तमसो मा ज्योतिर्गमयÓ की परिकल्पना की थी, जो आज के परिवेश में कहीं भी साकार होती हुई नहीं दिखती। शिक्षा का संबंध ज्ञान से और ज्ञान का संबंध हमारे विवेक से है। ये तीनों शब्द सदैव एक ही पंक्ति में खड़े प्रतीत होते हैं।
आज हम लोगों ने शिक्षा को केवल विषयों से जोड़ दिया है। अब आप ही बताएं कि किसी एक विषय का स्नातक व्यक्ति भला शिक्षाविद् कैसे हो सकता है। शिक्षाविद् तो वह व्यक्ति कहलाएगा जिसे जीवनोपयोगी तमाम विद्याओं की समझ हो, क्योंकि शिक्षा का अर्थ कभी भी भौतिकी, रसायन, हिंदी, अंगे्रजी व गणित की पुस्तकों का पढऩा मात्र नहीं होता। ये तो सिर्फ विषय हैं, न कि संपूर्ण शिक्षा। इस दृष्टि से हम उस शिक्षा को अपने जीवन में उतारें जिससे तमाम विषयों और व्यवहारों का एक सुंदर स्वरूप तैयार हो सके। आत्म-ज्ञान एक ऐसी शिक्षा है, जिससे आप अपने आंतरिक व्यक्तित्व के बारे में जान सकते हैं। आपको शायद यह मालूम है कि आपके आंतरिक व्यक्तित्व में ऊर्जा का अक्षय भंडार निहित है। सद्गुरु के सानिध्य में रहकर आत्म-ज्ञान रूपी शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। ध्यान (मेडिटेशन) के निरंतर अभ्यास से भी आप आत्मज्ञान को उपलब्ध हो सकते हैं।
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