महान क्रांतिकारी मंगल पांडे
Mangal Pandey Biography in
Hindi
कोलकाता में हुगली नदी के किनारे
बैरकपुर नगर में अंग्रेज सेना की बंगाल छावनी थी। सेना की वर्दी में सिपाही परेड
करते रहते थे। यहाँ एक बहुत शांत और गंभीर स्वभाव का सिपाही भर्ती हुआ था।
उसे केवल सात रूपये महीना वेतन मिलता था। उसके एक सिपाही मित्र ने एक दिन कहा, ” अरे ! अधिक धन
कमाना है तो अपना देश छोड़कर अंग्रेज सेना में भर्ती हो जाओ।”
उस सिपाही ने उत्तर दिया -” नहीं, नहीं ! मैं अधिक धन
कमाने के लालच में अपना देश छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा।”
देश के लिए अपने
निजी स्वार्थ को त्यागने वाला यह देशभक्त सिपाही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का
प्रथम यौद्धा बना। इस सिपाही का नाम मंगल पांडे था।क्रांतकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई सन 1827 को फ़ैजाबाद जिले के नागवा बलिया गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम
दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था। मंगल पांडे बहुत ही साधारण परिवार के
थे। उनकी वाणी में अवधि भाषा की मिठास थी। वे अपने माता-पिता का बहुत आदर व सम्मान
करते थे।
मंगल पांडे जैसे शांत और सरल स्वभाव
का व्यक्ति प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम यौद्धा कैसे बना, इसके पीछे एक कहानी
है।
एक बार मंगल पांडे किसी काम से
अकबरपुर आये थे। उसी समय कम्पनी की सेना बनारस से लखनऊ जा रही थी। मंगल पांडे सेना
का मार्च देखने के लिए कौतुहलवश सड़क के किनारे आकर खड़े हो गये। एक सैनिक अधिकारी ने मंगल
पांडे को हृष्टपुष्ट और स्वस्थ देखकर सेना में भर्ती हो जाने का आग्रह किया, और वे राजी हो गये।
वे 10 मई सन 1846 में 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कम्पनी
की सेना में भर्ती हुए।जब वे बंगाल छावनी में थे तो एक दिन सिपाही ने बताया की ऐसी
चर्चा है कि बन्दूक में जो कारतूस भरने के लिए दी जाती है उसके खोल में गाय और
सूअर की चर्बी लगी है। कारतूस भरने से पहले उन्हें मुँह से खीच कर खोलना
पड़ता था। यह हिन्दुओ और मुसलमानों दोनों के लिए धर्म के विरुद्ध कार्य था। इस
सूचना से सभी सिपाहियों के ह्रदय में घृणा भर गयी। इसी रात बैरकपुर की कुछ
इमारतों में आग की लपटें देखी गयी।
वह आग किसने लगायी थी, कुछ पता न चल सका।
बन्दूक की कारतूस में गाय व सूअर की चर्बी होने की बात सैनिक छावनियो तक ही सीमित
नहीं रही बल्कि सारे उत्तर भारत में फ़ैल गयी। सभी स्थानों में इसकी चर्चा होने
लगी। ईस्ट इंडिया कम्पनी की नीतियों को लेकर भारतीयों में असंतोष की भावना पहले से
ही थी
इस खबर ने आग में घी का काम किया।
बैरकपुर छावनी में भारतीय सैनिको ने संघर्ष छेड़ दिया। बैरकपुर की 16 नवम्बर की पलटन को
नए कारतूस प्रयोग करने के लिए दिए गये। सिपाहियों ने उन्हें प्रयोग करने से इंकार
कर दिया। अंग्रेज अधिकारियो ने तुरंत ही उस पलटन के हथियार रखवा लिए और
सैनिको को बर्खास्त कर दिया। कुछ ने तो चुपचाप हथियार अर्पित कर दिए किन्तु अधिकतर
सैनिक क्रांति के लिए तत्पर हो उठे। 26
मार्च सन 1857 को परेड के मैदान
में मंगल पांडे ने खुले रूप से अपने साथियों के समक्ष क्रांति का आह्वान किया।
इस पर अंग्रेज सार्जेन्ट मेजर ह्यूसन
ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने की आज्ञा दी, परन्तु कोई भी सिपाही आज्ञा पालन करने
के लिए आगे न बढ़ा। इतने में मंगल पांडे ने अपने बन्दुक की गोली से तुरंत सार्जेन्ट मेजर ह्यूसन
को वहीं पर ढेर कर दिया। इस पर एक दूसरा अफसर लेफ्टिनेन्ट बाघ अपने घोड़े पर आगे लपका तभी मंगल
पाण्डे ने एक ऐसा निशाना साधा की एक ही गोली पर घोडा और सवार दोनों जमीन पर आ
गिरे। मंगल पांडे ने तीसरी बार अपनी बंदूक भरने का इरादा किया।
लेफ्टिनेन्ट बाघ ने उठकर पांडे पर गोली चलायी पर पाण्डे बच गये। मगर यह अंग्रेज
अफसर पाण्डे की तलवार की वार से बच न सका। पांडे ने उसे भी समाप्त कर दिया।
अंग्रेज अधिकारियो में दहशत फ़ैल गयी। अंत में ज़नरल हियरसे ने चालाकी से मंगल पांडे के पीछे से आकर
उसकी कनपटी पर अपनी पिस्तौल तान दी। जब उन्होंने अनुभव किया की अंग्रेजो से बचना
मुश्किल है, तब उन्होंने अंग्रेजो का कैदी बनने के बजाय स्वयं को गोली
मारना बेहतर समझा और अपनी छाती पर गोली चला दी। लेकिन वे बच गये और मूर्छित होकर
गिर पड़े। अंत में घायलावस्था में उन्हें गिरफ्तार किया गया।
मंगल पाण्डे पर सैनिक अदालत में
मुकदमा चला। 8 अप्रैल का दिन फांसी के लिए नियत किया गया। किन्तु बैरकपुर भर में
कोई भी मंगल पाण्डे को फाँसी देने के लिए राजी न हुआ। अंत में कोलकाता से
चार आदमी इस काम के लिए बुलाये गये। 8 अप्रैल सन 1857 को अंग्रेजो ने
पूरी रेजिमेन्ट के सामने मंगल पांडे को फाँसी दे दी।
अंग्रेज लेखक चार्ल्स बॉल और रोबर्ट्स
दोनों ने लिखा है की उसी दिन से सन 1857-58 के समस्त क्रांतकारी सिपाहियों को ”पाण्डे” के नाम से पुकारा
जाने लगा। मंगल पांडे के इस बलिदान से क्रांति की अग्नि और भड़क उठी। उसकी
लपटें सारे देश में फ़ैल गयी।
एक अंग्रेज लेखक मार्टिन ने लिखा है-
मंगल पाण्डे को जब से फाँसी दे दी गयी
तब से समस्त भारत की सैनिक छावनियो में जबरदस्त विद्रोह प्रारम्भ हो गया है।
बैरकपुर के अलावा मेरठ, दिल्ली, फिरोजपुर, लखनऊ, बनारस, कानपूर, फ़ैजाबाद आदि
स्थानों पर भारतीय सैनिको ने विद्रोह किया जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से
प्रसिद्ध है। इस क्रांति का नेतृत्व बहादुरशाह जफ़र, नाना साहब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, राजा कुंवर सिंह, मौलवी लियाकत अली, बेगम जीनत महल व बेगम
हजरत महल जैसे नेताओ ने अलग-अलग स्थानों पर किया। इस संग्राम ने अंग्रेजी हुकूमत
की नीव हिला दी और उन्हें भारतीय क्रांतिकारियों की शक्ति का एहसास करा दिया।
धन्यवाद !
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