Sunday 6 March 2016

जिन्हें शहीदों के शवों पर फूल चढ़ाने की फुर्सत नहीं, वे देशद्रोहियों को हार पहना रहे हैं


पिछले दो वर्षों में आतंकियों और नक्सलियों से संघर्ष करते हुए करीब दो हजार सेना और पुलिस के जवान तथा अफसर शहीद हुए। राहुल गांधी, केजरीवाल और वामपंथी नेताओं में से एक भी नेता किसी एक जवान के शव पर पुष्पांजलि अर्पित करने नहीं गया। उनके घर जा कर परिजनो के आंसू पौंछने और उन्हें ढाढ़स बंधाने की तकलीफ किसी ने नहीं की। किन्तु आज बड़ी ही बेशर्मी से देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तदार हुए कन्हैया के जमानत पर छुटने पर उसका स्वागत इस तरह कर रहे हैं जैसे कोर्इ महान देशभक्त नेता जेल से छूटा हो।
कन्हैया को न्यायालय ने देशद्रोह के आरोपों से बरी नहीं किया, वरन उसे सुधरने के लिए जमानत पर छोड़ा है। परन्तु घटिया सोच और संदिग्ध चऱित्र के राजनेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए उसे जानबूझ कर हीरो बना रहे हैं। अठार्इस वर्ष की उम्र होने तक पढ़ार्इ पूरी नहीं करने वाला कन्हैया देशद्रोही गतिविधियों लिप्त हो कर अब नरेन्द्र मोदी और आरएसएस को गालियां दे, अपने पापों को धोने का असफल प्रयास कर रहा है। उसके मन में यह बात बिठा दी गर्इ है कि नरेन्द्र मोदी और आरएसएस की जितनी आलोचना करोंगे तुम्हारा राजनीतिक कद बढ़ता जायेगा। यह भारतीय राजनीति का निकृष्टतम रुप है, जिसे देख कर अब घिन्न आने लगी है।
हर छोटी मोटी बात को ले कर आरएसएस और मोदी सरकार को कठघरें में खड़ा करने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि देश की सारी समस्यओं की जिम्मेदार मोदी सरकार और आरएसएस नहीं है। गरीबी, अशिक्षा, बैरोजगारी, पिछड़़ेपन, आतंकवाद और किसानों की आत्महत्याओं के जिम्मेदार वे लोग हैं, जिनकी नीतियों के कारण देश के ऐसे हालात बने। जिन्होंने इस देश पर वर्षों तक राज किया, वे ही देश की दुर्दशा के जिम्मेदार है। इन्हीं लोगों ने भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को भ्रष्ट और अकर्मण्य बनाया। जिनकी भ्रष्ट नीतियों के कारण ही कालेधन का प्रभाव बढ़ा और काला धन देश से बाहार गया। यह सही है कि मोदी सरकार ने देश की जनता को इन समस्याओं से निज़ात दिलाने का वादा किया था। हो सकता है कि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरी नहीं उतरी हों, किन्तु जो सारी समस्याओं के जनक हैं, वे अपने पापों का भार मोदी सकार पर डाल कर कन्हैया कुमार जैसे देशद्रोही छात्र नेता से सरकार के विरुद्ध आग उगलवाने से आखिर क्या हांसिल कर लेंगे ?
जहरीले नारों से पूरे देश को आहत करो, देशद्रोह के आरोप में जेल जाओ और जमानत पर छूट कर बाहर आते ही मोदी सरकार को कोसो। बोलने की आज़ादी को ले कर लम्बा चौड़ा भाषण दों। आपके सारे पाप धुल जायेंगे। राष्ट्र आपको खलनायक की जगह नायक स्वीकार कर लेगा। यदि कन्हैया अपने मन में यह भ्रांति पाले हुए हैं तो वह खुशफहमी में जी रहा है। राहुल-केजरीवाल ने पहले हार्दिक पटेल को मोहरा बनाया और अब कन्हैया को दांव पर लगाया है। ऐसी ही राजनीति कर ये दोनों नेता प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं और उन्हें मोहरों की तलाश रहती है। भारत की राजनीति को गंदा कर रहे ये दोनो शख्स चाहे लाख सर पटक लें, उनकी हसरते पूरी होने वाली नहीं है। राहुल-केजरीवाल ने कन्हैया पर दांव लगा कर भारी भूल की है, जिसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी। देश की जनता न तो देशद्रोहियों के अपराध को क्षमा करेगी और न ही देशद्रोहियों को हीरो बनाने वालों को बख्सेगी।
कन्हैया अपनी भाषणबाजी से चाहे कितनी भी कोशिश करे, उसके दामन पर लगा देशद्राही का दाग़ धुल नहीं सकता। यह सौ प्रतिशत सही है कि जेएनयू परिसर में अफजल गुरु की बरसी मनायी गर्इ थी, जिसका विरोध कन्हैया ने नहीं किया था। जिस भीड़ ने भारत विरोधी नारे लगाये थे, उस भीड़ में कन्हैया खड़ा था। जिन लोगों ने भारत से बदला लेने और उसके टूकड़े-टूकड़ करने की कसम खार्इ थी, वे सभी उसके साथी थे। फिर वह कैसे कह रहा है कि वह देशद्रोही नही है ? अफजल गुरु उसका आदर्श नहीं है ? उसने कश्मीर की आज़ादी के पक्ष में नारे नहीं लगाये थे ? क्या मोदी सरकार के विरुद्ध आक्रामक भाषण देने से उसकी देशद्रोहिता प्रमाणित नहीं होगी ?
मोदी विदेशों में जमा भारतीयों का कालाधन स्वदेश नहीं ला पाये इसकी चिंता अब कन्हैया को हो रही है, किन्तु शायद उसे नहीं मालूम की जिस राहुल गांधी के कंधों पर चढ़ कर वह राजनीति में उतरना चाहता है वह कालेधन का सब से बड़ा जमाखोर है। मोदी सरकार सोनिया परिवार के कालेधन का पत्ता लगाने की भरसक कोशिश कर रही है और देश की जनता को विश्वास है कि एक न एक दिन मोदी सरकार कालेधन के काले चेहरों को देश के समाने नंगा कर देगी। जब राहुल का राजनीतिक भविष्य ही अंधकारमय है तो वह कन्हैया का क्या भविष्य चमकायेगा ? बोलने की आज़ादी की गुहार लगाने वाला कन्हैया क्या इस तथ्य से वाकिब नहीं है कि केजरीवाल ने उन सभी लोगों को पार्टी से धक्के मार कर बाहर कर दिया, जिन्होंने बोलने की आज़ादी मांगी थी ? और वे वामपंथी उसका क्या भविष्य संवारेंगे जो अपने अस्तित्व की लड़ार्इ के लिए बंगाल में अपना आखिरी दांव खेल रहे हैं ?
कन्हैया छात्र नहीं है, छात्र नेता है। राजनेताओं के मोहरे बने ऐसे कर्इ छात्र नेता विश्वविद्यालय परिसर को गंदा कर रहे हैं। उम्र बीत जाती है, पर उनकी पढ़ार्इ पूरी नहीं होती। कैरियर उनका चौपट हो जाता है। उनका मकसद सिर्फ राजनेताओं को तुष्ट करने के लिए विश्वविद्यालयों में धमाचौकड़ी मचाना है। जो छात्र एक निश्चित उद्धेश्य ले कर पढ़ने आते हैं, वे ऐसे लोगों के प्रभाव में नहीं नहीं आते। जिन्हें अपना भविष्य संवारना है, माता-पिता के सपनों को पूरा करना है, ऐसे मेधावी छात्र कभी कन्हैया कुमार को अपना आदर्श नहीं मानते। अत: पूरे देश के अभिभावकों को सरकार से यह मांग करनी चाहिये कि विद्या के मंदिर को अपवित्र कर रहे ऐसे तत्वों को विश्वविद्यालय परिसर से बाहर निकालने की कोर्इ सार्थक नीति बनायें, ताकि विद्या के मंदिरों का शुद्धिकरण हो जाय।
मीडिया और राजनेता चाहे कन्हैयाकुमार को नायक बनाने का प्रयास करें, किन्तु जनता यदि एकजुट हो कर ऐसे लोगों को तिरस्कृत कर देगी, तो देशद्रोहियों की वकालात करने वालों को अच्छा सबक मिलेगा। कोर्इ भी व्यक्ति जनता का हीरो तभी बनता है, जब जनता उसे हीरो बनाती है। मुट्ठीभर लोगों की समझ को राष्ट्रीय विचार नहीं माना जा सकता। अत: कन्हैया को नहीं, देशद्रोह को महिमामंड़ित करने वाले नेताओं को हमे सजा देनी होगी, ताकि कभी भी कन्हैया कुमार जैसा व्यक्ति हीरो बनने की कोशिश करने का साहस ही नहीं कर पाये।

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