कछुए की चाल चल रही सीबीआर्इ कोयले के सच को उजागर नहीं करने की कसम खा
ली है। सुप्रिम कोर्ट द्वारा बार-बार की जा रही भत्र्सना और टिप्पणियों का
उस पर कोर्इ असर नहीं पड़ रहा है। सरकार के वर्तमान कोयला मंत्री,
प्रधानमंत्री और देश के छाया प्रधानमंत्री को सुप्रिय कोर्ट की कोर्इ परवाह
नहीं है। न्यायालय की अवमानना की यह पराकाष्ठा है। ऐसी अवमानना भारत के
अलावा कोर्इ लोकतांत्रिक देश नहीं कर सकता।
प्रेस और मीडिया भारत के लोकतात्रिक इतिहास की सबसे बड़े भ्रष्टाचार पर मौन साधे हुए हैं। क्योंकि सबसे बड़ी खबर को छोटी खबर के रुप में मीडिया जनता के सामने प्रस्तुत कर रहा है। जबकि देश के प्रधानमंत्री की इस महाघोटाले में संदिग्ध भूमिका है। प्रधानमंत्री की रहस्यमय चुप्पी देश को विचलित कर रही है। लाखों करोड़ रुपये का गबन हुआ है। कोयला उत्पादन कम होने से देश की आर्थिक प्रगति धीमी पड़ गयी है। बिजली उत्पादन की कर्इ परियोजनाएं अधुरी पड़ी हुर्इ है। देश की जमीन में कोयला दबा हुआ है, किन्तु विदेशों से महंगा कोयला आयात करना पड़ रहा है।
मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी यह मानने को तैयार नहीं है कि एक मंत्रालय की सैंकड़ो महत्वपूर्ण फायले बिना किसी अधिकारी की जानकारी से गायब हो सकती है। सबसे मजेदार बात यह है कि इस संबंध में बयानबाजी तो हो रही है, पर जांच कोर्इ नहीं कर रहा है।
सही बात यह है कि सरकार को सुप्रिम कोर्ट और विपक्ष का कोर्इ भय नहीं रहा है। मीडिया बिका हुआ है। जनता बेबस है। जनता को अन्याय देखने, सहने और सुनने का विवशता भोगनी पड़ रही है। कोयले का सच देश को तभी मालूम पड़ सकता है, जब भारत की जनता एकजुट हो कर इस सरकार की विदार्इ सुनिश्चित कर दें।
प्रेस और मीडिया भारत के लोकतात्रिक इतिहास की सबसे बड़े भ्रष्टाचार पर मौन साधे हुए हैं। क्योंकि सबसे बड़ी खबर को छोटी खबर के रुप में मीडिया जनता के सामने प्रस्तुत कर रहा है। जबकि देश के प्रधानमंत्री की इस महाघोटाले में संदिग्ध भूमिका है। प्रधानमंत्री की रहस्यमय चुप्पी देश को विचलित कर रही है। लाखों करोड़ रुपये का गबन हुआ है। कोयला उत्पादन कम होने से देश की आर्थिक प्रगति धीमी पड़ गयी है। बिजली उत्पादन की कर्इ परियोजनाएं अधुरी पड़ी हुर्इ है। देश की जमीन में कोयला दबा हुआ है, किन्तु विदेशों से महंगा कोयला आयात करना पड़ रहा है।
मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी यह मानने को तैयार नहीं है कि एक मंत्रालय की सैंकड़ो महत्वपूर्ण फायले बिना किसी अधिकारी की जानकारी से गायब हो सकती है। सबसे मजेदार बात यह है कि इस संबंध में बयानबाजी तो हो रही है, पर जांच कोर्इ नहीं कर रहा है।
सही बात यह है कि सरकार को सुप्रिम कोर्ट और विपक्ष का कोर्इ भय नहीं रहा है। मीडिया बिका हुआ है। जनता बेबस है। जनता को अन्याय देखने, सहने और सुनने का विवशता भोगनी पड़ रही है। कोयले का सच देश को तभी मालूम पड़ सकता है, जब भारत की जनता एकजुट हो कर इस सरकार की विदार्इ सुनिश्चित कर दें।
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