चार विधानसभाओं के चुनाव भारतीय राजनीति की नयी दिशा तय करेंगे। इन
चुनावों के नतीजे़ भारत की दो बड़ी पार्टियों का भविष्य निर्धारित करेंगे।
एतिहासिक घपले-घोटालों का पाप ढ़ो रही एक राजनीतिक पार्टी, जिसने अपने
कार्यकाल के अंतिम क्षणों में कोयला आंवटन से संबंधित फाइलों को गायब कर
अत्यन्त घटियां व नींन्दनीय कार्य किया है, यदि अपनी लोकलुभावन नीतियों से
जनता को प्रभावित करने में सफल हो जाती है, तो यह तथ्य साबित हो जायेगा कि
भारतीय जनता भ्रष्टाचार और कुशासन को कोर्इ विशेष महत्व नहीं देती। जनता का
मानस आकर्षक विज्ञापनों के जरिये बदला जा सकता है।
परन्तु यदि इन चुनावों में भाजपा बाजी मार लेती हैं, तो इस तथ्य की पुष्टि हो जायेगी कि भारतीय जनता भ्रष्ट शासन व्यवस्था को तिरस्कृत करने के लिए उत्कंठित है और लोकलुभावन योजनाओं और सरकारी विज्ञापनों का ज्वार उसके मानस पर कोर्इ प्रभाव नहीं डाल सकता। यदि ऐसा सम्भव हो पाया, तो भाजपा जीत की माला गले में डाल, दुगुने उत्साह से दिल्ली की मंजिल पाने के लिए कुलांचे भरने लगेगी।
चुनावी रणनीति बनाने और अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने में कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ रही है। इसका कारण यह है कि पूरी पार्टी डेढ़ व्यक्तित्व के पीछे अनुशासित सेना की तरह खड़ी है, जो अपने कमांड़रों के किसी भी आदेश पर विपक्षी सेना पर आक्रामक हो कर टूट पड़ने के लिए तैयार खड़ी है। आज्ञाकारी अनुचर मंड़ली कभी अपने मालिक के प्रश्नों पर तर्क नहीं करती। मालिक के समक्ष कोर्इ प्रतिप्रश्न नहीं रखती। किसी के मन में यह भाव नहीं है कि मैं अपने मालिक से ज्यादा शक्तिशाली हूं। पूरी सेना का एक ही काम है- अपने मालिक की हर आज्ञा और आदेश को शिरोधार्य करना। यही कारण है कि पूरी पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध रण जीतने के लिए एकजुट है और पार्टी को विधानसभा चुनावों में विजयश्री दिलाने के लिए कटिबद्ध है।
चुनाव जीतने की रणनीति बनाने में भाजपा कांग्रेस से फिसड्डी ही साबित हो रही है। इसका कारण यह है कि भाजपा आत्मुग्धता के अपने पुराने रोग का इलाज नहीं करा पायी है। भाजपा एक डेढ़ नहीं, कर्इ नेताओं की पार्टी है और प्रत्येक नेता अपना कद को दूसरे से ऊंचा मानते है। उनका यह सोच है कि उनका वजन पार्टी में अधिक है और उनके वजन के आधार पर उन्हें महत्व दिया जाना चाहिये। भाजपा नेता पार्टी की जिम्मेदारी मोदी के कंधों पर डाल कर इत्मीनान से अपने घरो में बैठे हैं। उन्हें ऐसा लग रहा है कि प्रतिद्वंद्वी के पहाड़ जैसे पाप उन्हें विजय श्री दिला देंगे। याने बैठे बिठाये ही बिल्ली पर भाग्य का छींका टूट कर गिर जायेगा और सब कुछ उन्हें बिना परिश्रम के मिल जायेगा।
उतराखंड, हिमाचल और कर्नाटक की पराजय का यदि पोस्टमार्टम किया जाता तो इस बात का सहज ही अंदाजा लग जाता कि नेताओं की अतृप्त महत्वाकांक्षा ही भाजपा की राह में सब से बड़ा अवरोध है। पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी पर आक्रामक प्रहार नहीं करती। पार्टी नेता इस खुशफहमी में ज्यादा रहते हैं कि जनता महंगार्इ और भ्रष्टाचार से ज्यादा त्रस्त हैं और वे थक हार कर उन्हें ही वोट देंगे। जबकि उक्त तीनों राज्यों के चुनाव परिणामों ने उनकी इस अवधारणा को गलत साबित कर दिया था।
कांग्रेस की स्पष्ट रणनीति है कि किसी भी तरह अपने राज्यों पर पुन: नियंत्रण स्थापित कर लों और भाजपा के दो राज्यों में से एक को छीन लों। इसीलिए भाजपा शासन वाले दो राज्य – मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ जहां भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित मान ली है, कांग्रेस ने भाजपा की दुर्बलता का लाभ उठाने के लिए पूरी ताकत इन दोनो राज्यों में झोंक दी है।
दिल्ली में केजरीवाल फेक्टर से कांग्रेस ज्यादा उत्साहित है। केजरीवाल दिल्ली की अधिकांश सीटों पर भाजपा के मध्यमवर्गीय परिवारों के वोट काटेंगे। यद्यपि जो पांच-सात सीटे जीतने की उनकी सम्भावना बन रही है, उनमें अधिकांश कांग्रेस के खाते की होगी, परन्तु भाजपा को वे सभी सीटों पर भारी नुकसान पहुंचायेंगे और ऐसी स्थिति बना दी जायेगी कांग्रेस और केजरीवाल मिल कर दिल्ली में अपनी सरकार बना लेंगे। यही दोनों पार्टियों का छुपा हुआ ऐजेंडा है। इसमें कोर्इ आश्चर्य नहीं होगा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल बजा कर राजनीति में प्रवेश करने वाले केजरीवाल सत्ता सुखा भोगने के लिए अंतत: भ्रष्ट कांग्रेस की गोद में बैठ जायेंगे।
यह नहीं है कि भाजपा नेता इस सारी स्थिति से अवगत नहीं है। यह भी सही है कि भाजपा नेता यदि कठोर परिश्रम करें तो केजरीवाल का राजनीतिक भविष्य संवरने के पलहे ही समाप्त कर सकते हैं। निश्चय ही दिल्ली यदि जीतनी है, तो भाजपा नेताओं को एकजुट हो कर अपनी सारी ताकत झोंकनी होगी, अन्यथा दिल्ली की सत्ता हाथ में आते-आते रह जायेगी।
कांग्रेस के लिए राजस्थान बहुत महत्वपूर्ण राज्य बन गया है। साढ़े चार वर्ष तक कुम्भकर्णी नींद में सोयी राजस्थान सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं में करोड़ो रुपया फूंक दिया है। राजस्थान सरकार ने जितना पैसा जनता में नहीं बांटा, उससे अधिक विज्ञापनों पर खर्च कर दिया है और आचार संहिता लागू होने तक भारी भरकम प्रचार में राजकोष का करोड़ो रुपया बहा दिया जायेगा। राजस्थान कांग्रेस के लिए कितना ज्यादा महत्वपूर्ण प्रदेश है, इसका इस बात से आभास हो जाता है कि एक सप्ताह में दो बार राहुल गांधी राजस्थान आ गये हैं और अब सोनिया गांधी आ रही है।
किन्तु मोदी के अलावा कोर्इ भी राष्ट्रीय नेता राजस्थान नहीं आया। वसुंधरा पूरे प्रदेश का दौरा कर आयी और अब जयपुर में बैठी है। प्रदेश भाजपा नेता सरकार की नीतियों का प्रभावशाली ढंग से विरोघ नहीं कर पा रहे हैं। जबकि कांग्रेस के प्रचार अभियान का जवाब वे प्रदेश के प्रत्येक शहर और गांवों में जा कर दे सकते हैं। वे उन्हें यह भी बता सकते हैं कि जो नेता हवा में उड कर आते हैं। कड़े पहरे में रहते हैं और कुछ भी बोल कर फुर्र से वापस उड़ जाते हैं, वे लोग आपके अपने नहीं है। आपके शुभचिंतक नहीं है। ये वही लोग हैं जिनके कारण महंगार्इ अपना रौद्र रुप दिखा रही है और आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया है। इन लोगो ने राजकोष से कर्इ लाख करोड़ रुपया का गबन किया है। इनके पास लूटा गया अरबों रुपया विदेशी बैंकों में जमा है। ये सता इसलिए चाहते हैं, ताकि इनके कारनामें कभी प्रकाश में नहीं आये और आगे भी लूट के कार्य को निर्बाध रुप से जारी रख सकें।
मुफ्त चिकित्सा सुविधा एवं जांच कराने की योजनाओं का जितना धूम-धड़ाके से प्रचार किया जा रहा है वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। राजस्थान के गांवों में पचास-पचास कोस तक प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र नहीं है। न डाक्टर हैं और न दवाएं, तो जनता को मुफ्त दवांए कौन देगा ? कस्बों और शहरों में चिकित्सालय है, किन्तु डाक्टर अधिकांश समय अपने कक्ष में नहीं बैठते हैं। जो बैठते हैं उनके सामने भारी भीड़ उमड़ती है। जो दवाएं वे लिखते हैं, उनसे मरीज ठीक नहीं होते। थक हार कर ये डाक्टरों के घरों में जा कर बाजार की दवाएं लिखाते हैं। या जगह-जगह खुले पाइवेट नर्सिंग होम पर अपना इलाज करवाते है।
मुफ्त चिकित्सा जांच होती कम है, झूठे आंकड़ ज्यादा बनाये जाते हैं, ताकि इन्हें विज्ञापनों में छापा जा सके। राजस्थान सरकार अपनी इन योजनाओं को जितना प्रचार कर रही है, वास्तव में इसका क्षणांस भी सही नहीं है, क्योंकि जांच लेबोरेट्रियों, दवा विक्रेताओं और डाक्टरों की निजी प्रेक्टीस में दस प्रतिशत भी कमी नहीं हुर्इ है।
भाजपा नेताओं के पास जनता को समझाने के लिए बहुत कुछ है। किन्तु वे सक्रियता दिखाये तो सभी विधानसभाओं में अपनी प्रभावी जीत दर्ज कर सकते हैं।
परन्तु यदि इन चुनावों में भाजपा बाजी मार लेती हैं, तो इस तथ्य की पुष्टि हो जायेगी कि भारतीय जनता भ्रष्ट शासन व्यवस्था को तिरस्कृत करने के लिए उत्कंठित है और लोकलुभावन योजनाओं और सरकारी विज्ञापनों का ज्वार उसके मानस पर कोर्इ प्रभाव नहीं डाल सकता। यदि ऐसा सम्भव हो पाया, तो भाजपा जीत की माला गले में डाल, दुगुने उत्साह से दिल्ली की मंजिल पाने के लिए कुलांचे भरने लगेगी।
चुनावी रणनीति बनाने और अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने में कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ रही है। इसका कारण यह है कि पूरी पार्टी डेढ़ व्यक्तित्व के पीछे अनुशासित सेना की तरह खड़ी है, जो अपने कमांड़रों के किसी भी आदेश पर विपक्षी सेना पर आक्रामक हो कर टूट पड़ने के लिए तैयार खड़ी है। आज्ञाकारी अनुचर मंड़ली कभी अपने मालिक के प्रश्नों पर तर्क नहीं करती। मालिक के समक्ष कोर्इ प्रतिप्रश्न नहीं रखती। किसी के मन में यह भाव नहीं है कि मैं अपने मालिक से ज्यादा शक्तिशाली हूं। पूरी सेना का एक ही काम है- अपने मालिक की हर आज्ञा और आदेश को शिरोधार्य करना। यही कारण है कि पूरी पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध रण जीतने के लिए एकजुट है और पार्टी को विधानसभा चुनावों में विजयश्री दिलाने के लिए कटिबद्ध है।
चुनाव जीतने की रणनीति बनाने में भाजपा कांग्रेस से फिसड्डी ही साबित हो रही है। इसका कारण यह है कि भाजपा आत्मुग्धता के अपने पुराने रोग का इलाज नहीं करा पायी है। भाजपा एक डेढ़ नहीं, कर्इ नेताओं की पार्टी है और प्रत्येक नेता अपना कद को दूसरे से ऊंचा मानते है। उनका यह सोच है कि उनका वजन पार्टी में अधिक है और उनके वजन के आधार पर उन्हें महत्व दिया जाना चाहिये। भाजपा नेता पार्टी की जिम्मेदारी मोदी के कंधों पर डाल कर इत्मीनान से अपने घरो में बैठे हैं। उन्हें ऐसा लग रहा है कि प्रतिद्वंद्वी के पहाड़ जैसे पाप उन्हें विजय श्री दिला देंगे। याने बैठे बिठाये ही बिल्ली पर भाग्य का छींका टूट कर गिर जायेगा और सब कुछ उन्हें बिना परिश्रम के मिल जायेगा।
उतराखंड, हिमाचल और कर्नाटक की पराजय का यदि पोस्टमार्टम किया जाता तो इस बात का सहज ही अंदाजा लग जाता कि नेताओं की अतृप्त महत्वाकांक्षा ही भाजपा की राह में सब से बड़ा अवरोध है। पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी पर आक्रामक प्रहार नहीं करती। पार्टी नेता इस खुशफहमी में ज्यादा रहते हैं कि जनता महंगार्इ और भ्रष्टाचार से ज्यादा त्रस्त हैं और वे थक हार कर उन्हें ही वोट देंगे। जबकि उक्त तीनों राज्यों के चुनाव परिणामों ने उनकी इस अवधारणा को गलत साबित कर दिया था।
कांग्रेस की स्पष्ट रणनीति है कि किसी भी तरह अपने राज्यों पर पुन: नियंत्रण स्थापित कर लों और भाजपा के दो राज्यों में से एक को छीन लों। इसीलिए भाजपा शासन वाले दो राज्य – मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ जहां भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित मान ली है, कांग्रेस ने भाजपा की दुर्बलता का लाभ उठाने के लिए पूरी ताकत इन दोनो राज्यों में झोंक दी है।
दिल्ली में केजरीवाल फेक्टर से कांग्रेस ज्यादा उत्साहित है। केजरीवाल दिल्ली की अधिकांश सीटों पर भाजपा के मध्यमवर्गीय परिवारों के वोट काटेंगे। यद्यपि जो पांच-सात सीटे जीतने की उनकी सम्भावना बन रही है, उनमें अधिकांश कांग्रेस के खाते की होगी, परन्तु भाजपा को वे सभी सीटों पर भारी नुकसान पहुंचायेंगे और ऐसी स्थिति बना दी जायेगी कांग्रेस और केजरीवाल मिल कर दिल्ली में अपनी सरकार बना लेंगे। यही दोनों पार्टियों का छुपा हुआ ऐजेंडा है। इसमें कोर्इ आश्चर्य नहीं होगा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल बजा कर राजनीति में प्रवेश करने वाले केजरीवाल सत्ता सुखा भोगने के लिए अंतत: भ्रष्ट कांग्रेस की गोद में बैठ जायेंगे।
यह नहीं है कि भाजपा नेता इस सारी स्थिति से अवगत नहीं है। यह भी सही है कि भाजपा नेता यदि कठोर परिश्रम करें तो केजरीवाल का राजनीतिक भविष्य संवरने के पलहे ही समाप्त कर सकते हैं। निश्चय ही दिल्ली यदि जीतनी है, तो भाजपा नेताओं को एकजुट हो कर अपनी सारी ताकत झोंकनी होगी, अन्यथा दिल्ली की सत्ता हाथ में आते-आते रह जायेगी।
कांग्रेस के लिए राजस्थान बहुत महत्वपूर्ण राज्य बन गया है। साढ़े चार वर्ष तक कुम्भकर्णी नींद में सोयी राजस्थान सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं में करोड़ो रुपया फूंक दिया है। राजस्थान सरकार ने जितना पैसा जनता में नहीं बांटा, उससे अधिक विज्ञापनों पर खर्च कर दिया है और आचार संहिता लागू होने तक भारी भरकम प्रचार में राजकोष का करोड़ो रुपया बहा दिया जायेगा। राजस्थान कांग्रेस के लिए कितना ज्यादा महत्वपूर्ण प्रदेश है, इसका इस बात से आभास हो जाता है कि एक सप्ताह में दो बार राहुल गांधी राजस्थान आ गये हैं और अब सोनिया गांधी आ रही है।
किन्तु मोदी के अलावा कोर्इ भी राष्ट्रीय नेता राजस्थान नहीं आया। वसुंधरा पूरे प्रदेश का दौरा कर आयी और अब जयपुर में बैठी है। प्रदेश भाजपा नेता सरकार की नीतियों का प्रभावशाली ढंग से विरोघ नहीं कर पा रहे हैं। जबकि कांग्रेस के प्रचार अभियान का जवाब वे प्रदेश के प्रत्येक शहर और गांवों में जा कर दे सकते हैं। वे उन्हें यह भी बता सकते हैं कि जो नेता हवा में उड कर आते हैं। कड़े पहरे में रहते हैं और कुछ भी बोल कर फुर्र से वापस उड़ जाते हैं, वे लोग आपके अपने नहीं है। आपके शुभचिंतक नहीं है। ये वही लोग हैं जिनके कारण महंगार्इ अपना रौद्र रुप दिखा रही है और आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया है। इन लोगो ने राजकोष से कर्इ लाख करोड़ रुपया का गबन किया है। इनके पास लूटा गया अरबों रुपया विदेशी बैंकों में जमा है। ये सता इसलिए चाहते हैं, ताकि इनके कारनामें कभी प्रकाश में नहीं आये और आगे भी लूट के कार्य को निर्बाध रुप से जारी रख सकें।
मुफ्त चिकित्सा सुविधा एवं जांच कराने की योजनाओं का जितना धूम-धड़ाके से प्रचार किया जा रहा है वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। राजस्थान के गांवों में पचास-पचास कोस तक प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र नहीं है। न डाक्टर हैं और न दवाएं, तो जनता को मुफ्त दवांए कौन देगा ? कस्बों और शहरों में चिकित्सालय है, किन्तु डाक्टर अधिकांश समय अपने कक्ष में नहीं बैठते हैं। जो बैठते हैं उनके सामने भारी भीड़ उमड़ती है। जो दवाएं वे लिखते हैं, उनसे मरीज ठीक नहीं होते। थक हार कर ये डाक्टरों के घरों में जा कर बाजार की दवाएं लिखाते हैं। या जगह-जगह खुले पाइवेट नर्सिंग होम पर अपना इलाज करवाते है।
मुफ्त चिकित्सा जांच होती कम है, झूठे आंकड़ ज्यादा बनाये जाते हैं, ताकि इन्हें विज्ञापनों में छापा जा सके। राजस्थान सरकार अपनी इन योजनाओं को जितना प्रचार कर रही है, वास्तव में इसका क्षणांस भी सही नहीं है, क्योंकि जांच लेबोरेट्रियों, दवा विक्रेताओं और डाक्टरों की निजी प्रेक्टीस में दस प्रतिशत भी कमी नहीं हुर्इ है।
भाजपा नेताओं के पास जनता को समझाने के लिए बहुत कुछ है। किन्तु वे सक्रियता दिखाये तो सभी विधानसभाओं में अपनी प्रभावी जीत दर्ज कर सकते हैं।
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