भारतीय राजनीति कितनी घटिया स्तर पर पहुंच गयी है, इसका एक उदाहरण
सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की मुजफ्फर नगर रस्म अदायगी यात्रा है। दोनों
नेताओं ने सरकार की अकर्मण्यता और निष्क्रियता पर कोर्इ बयान नहीं दिया।
सरकार को यह भी नसीहत नहीं दी कि लोगों के दिलों को जोड़ने के उपाय किये
जाय और ऐसे प्रयास किये जाय, ताकि ऐसी दुखान्तिका की पुनरावृति नहीं हों।
इशारों-इशारों में सम्भवत: यह भी कह गये हों कि सारा दोष साम्प्रदायिक
शक्तियों पर डालने की कोशिश करना। उनके बड़े नेताओं को इधर आने भी मत देना,
ताकि दुनियां को यह समझ आ जाय कि सारा किया धरा इनका ही है।
जैसा की अपेक्षा थी, प्रधानमंत्री ने एक सोची समझी रणनीति के तहत एक भाषण में कह दिया कि दंगों को फैलाने में सोशल मीडिया की ही मुख्य भूमिका थी। भाजपा के एक विधायक ने फर्जी विडियों अपलोड कर लोगों को उतेजित किया था। किसी ओर का लिखा हुआ भाषण पढ़ने में प्रधानमंत्री को काफी दिक्कत हो रही थी। वे हिन्दी को सहीं ढंग से उच्चारित नहीं कर पा रहे थे और उनकी आवाज लड़खड़ा रही थी। सही है, घटना की गम्भीरता से उन्हें कोर्इ लेना देना नहीं है। घटना का राजनीतिक लाभ उठाना ही उनका मुख्य मकसद है।
वहीं मेडम सोनिया ने राजस्थान की एक सभा में कह दिया- विकास और साम्प्रदायिकता एक साथ नहीं चल सकते। उनका कहना सही भी है। यदि आप धर्मनिरपेक्ष बिरादरी में आतें हैं, तो आपके बड़े बड़े गुनाह माफ कर दिये जायेंगे, किन्तु आप साम्प्रदायिक शक्तियां कहें जाते हैं, तब आपका छोटा सा अपराध भी माफी के काबिल नहीं है। अपने प्रतिद्वंद्वी को प्रत्येक घटना से जोड़ने और हर मंच पर उनकी आलोचना करना हम नहीं छोडेंगे।
इन दोनों नेताओं के बयानों से उस शख्सियत का सारा दोष छुप गया, जो इन दंगों को फैलाने का मुख्य अपराधी है। इससे एक तथ्य की पुष्टि होती हैं कि मानवीय त्रासदी को अपनी नज़र से देखने और उसका राजनीतिक लाभ उठाना ही एकमात्र मकसद रह गया है। त्रासदी को राजनीतिक रंग दे कर उसे सुलझाने के बजाय, उलझाना ही इनका मुख्य प्रयोजन रहता है। निश्चय ही, जनता की पीड़ा और उनके दर्द से इन्हें कोर्इ मतलब नहीं है।
साम्प्रदायिक जुनून से जिन परिवारों के सदस्य अनायास ही भेंट चढ़ गये या जिन परिवारों के घर जला दिये गयें, उन परिवारों के प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए अखिलेश सरकार को फटकारा जा सकता था। ऐसी निकम्मी और निर्लज्ज सरकार को बर्खास्त करने की धमकी दी जा सकती थी। परन्तु ऐसा वे इसलिए नही कर पाये, क्योंकि मुलायम सिंह उनके लिए बड़े काम के आदमी है। इस समय सरकार उनकी मेहरबानी से चल रही है और भविष्य में भी जो परिस्थितियां बनेगी, उसमें समाजवादी पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। इसलिए इनके पहाड़ जैसे गुनाह के लिए इन्हें क्षमा कर देना एक मात्र विकल्प है।
ग्यारह वर्षों से गुजरात दंगों के गीत गाने वाली पार्टी, जिसने सीबीआर्इ को अब तक गुजरात दंगों के मरे मुर्दे उखाड़ने में लगा रखा है, अखिलेश सरकार की पक्षपातपूर्ण और विवादित भूमिका पर कोर्इ प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया और उन्हें क्षमा दान दे दिया। अर्थात जनता के दुख दर्द से ज्यादा बढ़ कर इनके लिए राजनीतिक स्वार्थ की रोटयां सेकना है। यही कारण है कि उत्तरप्रदेश के एक महाबली मंत्री ने एक जाबांज पुलिस अधिकारी की गांव में सरे आम हत्या करा दी, परन्तु उस फर्जी मुठभेड़ की सीबीआर्इ जांच कराना भारत सरकार को याद नहीं आया। उसकी विधवा पत्नी चिल्लाती रही, पर कोर्इ उसकी आवाज सुन नहीं पाया। भारत सरकार भी उस विधवा को न्याय दिलाने के लिए सीबीआर्इ जांच नहीं करवा पायी। किन्तु गुजरात की फर्जी मुठभेड़ो की जांच करने और मोदी को घेरने में सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी हैं। सच है -मोदी को चाहे भारत की जनता प्रधान मंत्री के रुप में देखना चाहती हों, परन्तु हम से बचेंगे, तब बनेंगे न । हम उन्हें किसी भी हालत में छोडेंगे नहीं।
मुजफ्फर नगर दुखान्तिका में दोनों समुदाय के नागरिकों ने चोट खायी है। सरकार की भूमिका को ले कर जनता में गहरा असंतोष है। इस समय लोग खामोश हैं, तो सिर्र्फ इसलिए कि वे समझ गये हैं कि यदि अपना आपा खोया तो नुकसान हमें ही उठाना पड़ेगा। अत: नागरिकों की समझ से ही शांति बनी हुर्इ है। जो आग लगायी गयी, वह महज ठंड़ी हुर्इ है, उसे बुझायी नहीं गयी है और न ही इसे पूरी तरह से बुझाने की कोशिश की जा रही है। लोग दहशत में हैं और डरे हुए हैं। अखिलेश सरकार लोगों को दिलों को जोड़ने की कोर्इ सार्थक कोशिश नहीं कर रही है। अलबता मुस्लिम समुदाय में अपनी खोयी पर्इ पैठ जमाने के लिए ऐसी हरकते कर रही है, जिससे तनाव बढे़।
दरअसल राजनेता चाहे किसी भी दल के हों, उन्हें जनता की पीड़ा से ज्यादा अपना राजनीतिक लाभ उठाने की चिंता होती है। अत: दोनो समुदाय के नागरिकों को यह समझ लेना चाहिये कि इनकी सियासी चालों में उलझने के बजाय अपने विवेक का उपयोग करना चाहिये। हमे एक साथ रहना है, यह हकीकत है। भार्इचारा और विश्वास ही हमें जोड़ कर रख सकता है और यही हमें ऐसी दुखद त्रासदी से बचा सकता है।
पूरे देश के मुसलमानों को भ्रमित करने और एक पार्टी विशेष से जुड़ी शख्सियत के प्रति नफरत का भाव भरने के लिए गुजरात के दंगों की याद बराबर सभी धर्म निरपेक्ष राजनीतिक दलों द्वारा दिलायी जाती है, परन्तु गुजरात के मुस्लिम भार्इ 2002 के दंगों को एक हादसा समझते हुए भूल गये हैं। उन्होंने प्रदेश की आर्थिक प्रगति और अपनी खुशहाली को जीवन का एक आदर्श मान लिया है। इसीलिए आज वे सुखी है। उनका व्यवसाय फलफूल रहा है। उनके बच्चों का भविष्य संवर रहा है। इस तरह वे आज पूरे देश के मुसलमानों के लिए आदर्श बन गये हैं।
मुजफ्फनगर त्रासदी से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि जिन राजनीतिक दलों का मकसद ही मुसलमानों को मूर्ख बना कर अपना सियासी लाभ उठाना है, वे उनके अपने नहीं है। इन राजनीतिक दलों के मन में यदि वास्तव में सहानुभूति होती, तो छियांसठ वर्षों से जिनके वोटों के आधार पर सत्ता सुख भोग रहें हैं, उनकी आर्थिक हालात इतनी बदत्तर नहीं होती। क्यों वे गुजरात के मुसलमानों की तरह समृ़द्ध नहीं हो पाये? जबकि भारत के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के विचारों से तो वहां एक साम्प्रदायिक पार्टी की सरकार का शासन है।
मुसलमानों के हितों के लिए जीने-मरने की कसम खाने वाली अखिलेश सरकार पूरी तरह नंगी हो चुकी है। उसका कुरुप और भद्दा रुप सबके सामने हैं। कांग्रेस के अलावा सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों का मौन इस तथ्य की पुष्टि करता है कि जिन राजनीतिक दलों के शब्दकोष में मानवीय पीड़ा से बढ़ कर सियासत है। अत: विकास और समृद्धि के लिए सभी भारतीय नागरिकों को जाति और धर्म की संकीर्णता को छोड़ कर एक होना चाहिये। एक हो कर इन राजनीतिक दलों के विरुद्ध मतदान करना चाहिये। हमारा एक ही नारा होना चाहिये- हमे यह मत समझाओं कि हम किस जाति और मजहब को मानते हैं। हमे यह बताओं की पूरे देश के विकास और समृद्धि के लिए आप क्या करना चाहते हैं ? अब हमे थोथी बातें नहीं, अपनी समस्याओं से निज़ात चाहिये, आपके पास इसके लिए क्या योजनाएं हैं, उन्हें सविस्तार तार्किक रुप से समझार्इये । कौन राजनीतिक दल कैसा है और उसके राजनेताओं ने क्या किया हैं, इसका फैंसला हम करेंगे आप नहीं। आप तो यह बतार्इयें कि आपने अब तक क्या किया है ? आपने जो गलतियां की है, उससे देश को नागरिकों को हानि पहुंची है, उसका आपको अफसोस है या नहीं ?
जैसा की अपेक्षा थी, प्रधानमंत्री ने एक सोची समझी रणनीति के तहत एक भाषण में कह दिया कि दंगों को फैलाने में सोशल मीडिया की ही मुख्य भूमिका थी। भाजपा के एक विधायक ने फर्जी विडियों अपलोड कर लोगों को उतेजित किया था। किसी ओर का लिखा हुआ भाषण पढ़ने में प्रधानमंत्री को काफी दिक्कत हो रही थी। वे हिन्दी को सहीं ढंग से उच्चारित नहीं कर पा रहे थे और उनकी आवाज लड़खड़ा रही थी। सही है, घटना की गम्भीरता से उन्हें कोर्इ लेना देना नहीं है। घटना का राजनीतिक लाभ उठाना ही उनका मुख्य मकसद है।
वहीं मेडम सोनिया ने राजस्थान की एक सभा में कह दिया- विकास और साम्प्रदायिकता एक साथ नहीं चल सकते। उनका कहना सही भी है। यदि आप धर्मनिरपेक्ष बिरादरी में आतें हैं, तो आपके बड़े बड़े गुनाह माफ कर दिये जायेंगे, किन्तु आप साम्प्रदायिक शक्तियां कहें जाते हैं, तब आपका छोटा सा अपराध भी माफी के काबिल नहीं है। अपने प्रतिद्वंद्वी को प्रत्येक घटना से जोड़ने और हर मंच पर उनकी आलोचना करना हम नहीं छोडेंगे।
इन दोनों नेताओं के बयानों से उस शख्सियत का सारा दोष छुप गया, जो इन दंगों को फैलाने का मुख्य अपराधी है। इससे एक तथ्य की पुष्टि होती हैं कि मानवीय त्रासदी को अपनी नज़र से देखने और उसका राजनीतिक लाभ उठाना ही एकमात्र मकसद रह गया है। त्रासदी को राजनीतिक रंग दे कर उसे सुलझाने के बजाय, उलझाना ही इनका मुख्य प्रयोजन रहता है। निश्चय ही, जनता की पीड़ा और उनके दर्द से इन्हें कोर्इ मतलब नहीं है।
साम्प्रदायिक जुनून से जिन परिवारों के सदस्य अनायास ही भेंट चढ़ गये या जिन परिवारों के घर जला दिये गयें, उन परिवारों के प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए अखिलेश सरकार को फटकारा जा सकता था। ऐसी निकम्मी और निर्लज्ज सरकार को बर्खास्त करने की धमकी दी जा सकती थी। परन्तु ऐसा वे इसलिए नही कर पाये, क्योंकि मुलायम सिंह उनके लिए बड़े काम के आदमी है। इस समय सरकार उनकी मेहरबानी से चल रही है और भविष्य में भी जो परिस्थितियां बनेगी, उसमें समाजवादी पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। इसलिए इनके पहाड़ जैसे गुनाह के लिए इन्हें क्षमा कर देना एक मात्र विकल्प है।
ग्यारह वर्षों से गुजरात दंगों के गीत गाने वाली पार्टी, जिसने सीबीआर्इ को अब तक गुजरात दंगों के मरे मुर्दे उखाड़ने में लगा रखा है, अखिलेश सरकार की पक्षपातपूर्ण और विवादित भूमिका पर कोर्इ प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया और उन्हें क्षमा दान दे दिया। अर्थात जनता के दुख दर्द से ज्यादा बढ़ कर इनके लिए राजनीतिक स्वार्थ की रोटयां सेकना है। यही कारण है कि उत्तरप्रदेश के एक महाबली मंत्री ने एक जाबांज पुलिस अधिकारी की गांव में सरे आम हत्या करा दी, परन्तु उस फर्जी मुठभेड़ की सीबीआर्इ जांच कराना भारत सरकार को याद नहीं आया। उसकी विधवा पत्नी चिल्लाती रही, पर कोर्इ उसकी आवाज सुन नहीं पाया। भारत सरकार भी उस विधवा को न्याय दिलाने के लिए सीबीआर्इ जांच नहीं करवा पायी। किन्तु गुजरात की फर्जी मुठभेड़ो की जांच करने और मोदी को घेरने में सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी हैं। सच है -मोदी को चाहे भारत की जनता प्रधान मंत्री के रुप में देखना चाहती हों, परन्तु हम से बचेंगे, तब बनेंगे न । हम उन्हें किसी भी हालत में छोडेंगे नहीं।
मुजफ्फर नगर दुखान्तिका में दोनों समुदाय के नागरिकों ने चोट खायी है। सरकार की भूमिका को ले कर जनता में गहरा असंतोष है। इस समय लोग खामोश हैं, तो सिर्र्फ इसलिए कि वे समझ गये हैं कि यदि अपना आपा खोया तो नुकसान हमें ही उठाना पड़ेगा। अत: नागरिकों की समझ से ही शांति बनी हुर्इ है। जो आग लगायी गयी, वह महज ठंड़ी हुर्इ है, उसे बुझायी नहीं गयी है और न ही इसे पूरी तरह से बुझाने की कोशिश की जा रही है। लोग दहशत में हैं और डरे हुए हैं। अखिलेश सरकार लोगों को दिलों को जोड़ने की कोर्इ सार्थक कोशिश नहीं कर रही है। अलबता मुस्लिम समुदाय में अपनी खोयी पर्इ पैठ जमाने के लिए ऐसी हरकते कर रही है, जिससे तनाव बढे़।
दरअसल राजनेता चाहे किसी भी दल के हों, उन्हें जनता की पीड़ा से ज्यादा अपना राजनीतिक लाभ उठाने की चिंता होती है। अत: दोनो समुदाय के नागरिकों को यह समझ लेना चाहिये कि इनकी सियासी चालों में उलझने के बजाय अपने विवेक का उपयोग करना चाहिये। हमे एक साथ रहना है, यह हकीकत है। भार्इचारा और विश्वास ही हमें जोड़ कर रख सकता है और यही हमें ऐसी दुखद त्रासदी से बचा सकता है।
पूरे देश के मुसलमानों को भ्रमित करने और एक पार्टी विशेष से जुड़ी शख्सियत के प्रति नफरत का भाव भरने के लिए गुजरात के दंगों की याद बराबर सभी धर्म निरपेक्ष राजनीतिक दलों द्वारा दिलायी जाती है, परन्तु गुजरात के मुस्लिम भार्इ 2002 के दंगों को एक हादसा समझते हुए भूल गये हैं। उन्होंने प्रदेश की आर्थिक प्रगति और अपनी खुशहाली को जीवन का एक आदर्श मान लिया है। इसीलिए आज वे सुखी है। उनका व्यवसाय फलफूल रहा है। उनके बच्चों का भविष्य संवर रहा है। इस तरह वे आज पूरे देश के मुसलमानों के लिए आदर्श बन गये हैं।
मुजफ्फनगर त्रासदी से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि जिन राजनीतिक दलों का मकसद ही मुसलमानों को मूर्ख बना कर अपना सियासी लाभ उठाना है, वे उनके अपने नहीं है। इन राजनीतिक दलों के मन में यदि वास्तव में सहानुभूति होती, तो छियांसठ वर्षों से जिनके वोटों के आधार पर सत्ता सुख भोग रहें हैं, उनकी आर्थिक हालात इतनी बदत्तर नहीं होती। क्यों वे गुजरात के मुसलमानों की तरह समृ़द्ध नहीं हो पाये? जबकि भारत के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के विचारों से तो वहां एक साम्प्रदायिक पार्टी की सरकार का शासन है।
मुसलमानों के हितों के लिए जीने-मरने की कसम खाने वाली अखिलेश सरकार पूरी तरह नंगी हो चुकी है। उसका कुरुप और भद्दा रुप सबके सामने हैं। कांग्रेस के अलावा सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों का मौन इस तथ्य की पुष्टि करता है कि जिन राजनीतिक दलों के शब्दकोष में मानवीय पीड़ा से बढ़ कर सियासत है। अत: विकास और समृद्धि के लिए सभी भारतीय नागरिकों को जाति और धर्म की संकीर्णता को छोड़ कर एक होना चाहिये। एक हो कर इन राजनीतिक दलों के विरुद्ध मतदान करना चाहिये। हमारा एक ही नारा होना चाहिये- हमे यह मत समझाओं कि हम किस जाति और मजहब को मानते हैं। हमे यह बताओं की पूरे देश के विकास और समृद्धि के लिए आप क्या करना चाहते हैं ? अब हमे थोथी बातें नहीं, अपनी समस्याओं से निज़ात चाहिये, आपके पास इसके लिए क्या योजनाएं हैं, उन्हें सविस्तार तार्किक रुप से समझार्इये । कौन राजनीतिक दल कैसा है और उसके राजनेताओं ने क्या किया हैं, इसका फैंसला हम करेंगे आप नहीं। आप तो यह बतार्इयें कि आपने अब तक क्या किया है ? आपने जो गलतियां की है, उससे देश को नागरिकों को हानि पहुंची है, उसका आपको अफसोस है या नहीं ?
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