खाद्य सुरक्षा और भूमिअधिगृहण बिल के पास होते ही बचे-खुचे विदेशी
निवेशक डालर निकाल कर भाग रहे हैं। भविष्य में इनके आने की सम्भावना भी
नहीं दिखार्इ दे रही है, किन्तु सरकार खशी में फूली नहीं समा रही है।
पार्टी गदगद है। अंतत: विज्ञापनों की लहरों पर बैठ कर चुनावी वैतरणी पार
करने की आशा बंधी है। अर्थव्यवस्था की बदहाली से उन्हें क्या मतलब ? उन्हें
किसी भी कीमत पर चुनाव जीत कर फिर सरकार बनानी है। जनता के आंसुओं के
सैलाब में अंतत: सरकार ने अपने लिए खुशी ढूंढ़ ली है।
देश की अर्थव्यवस्था के और ज्यादा खराब होने के अशुभ संकेत मिल रहे हैं, किन्तु सरकार बेफिक्र है। देश डूब रहा है, परन्तु सरकार जश्न मना रही है। भारत निमार्ण के गीत गा रही है। झूठ और प्रपंच के सहारे जनता को ठगने की पूरी तैयारी कर ली है। एक नारा दिया जा रहा है- अब देश का नागरिक महंगार्इ और अभावों के वज्रपात से टूट कर भले ही मर जाय, पर भूख से नहीं मरेगा। चाहे गेहूं के अलावा हर आवश्यक वस्तु उसकी पहुंच से बाहर चली जाय, पर इससे सरकार को क्या ? वह तो उसे दो रुपया किलों गेंहूं दिला रही हैं। गेहूं सूखे ही चबाओं और भारत निमार्ण के गीत गाते हुए जीओ। खुशी नही मिले, परन्तु हमारे साथ खुशी के गीत गाओ।
देश को दिवालिया करने के दोषी गूंगे प्रधानमंत्री संसद में बोले। उद्दण्ड़ता से झूठ भी हेकड़ी से बोले। विपक्ष से बिल पास करवाने के बाद देश की खराब हालत के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराते हुए उसके माथे पर अपनी नाकामी का ठीकरा फोड़ा। कह दिया- हम तो काम करना चाहते हैं, ये काम ही नहीं करने देते। मुझे चोर कहते हैं। मेरे शासनकाल में पांच लाख करोड़ रुपये के घोटाले हुए है, किन्तु मैं क्या चोर दिखार्इ देता हूं ? कोयले की फार्इले गुम गयी। मेरे चेहरे पर भी कोयले की कालिख पुती हुर्इ है, किन्तु दुनियां में ऐसा कोर्इ देश हैं, जहां पर प्रधानमंत्री पर ऐसे आरोप लगाये जाते हैं। परन्तु जनाब ! दुनियां में कभी कहीं ऐसा प्रधानमंत्री भी नहीं हुआ, जो दोषी होने पर दोष स्वीकार नहीं करता और अपने दोष विपक्ष पर शान से मंढ़ता है।
और बैचारा विपक्ष। सरकार को खुशी दिलार्इ और अपने लिए गम लिये। सरकार तो बिल पास करवा कर परोपरकार के ढ़ोल बजा रही है और विपक्ष मातम। विपक्ष ने संसद में बिल की खूब कमियां गिनायी। किन्तु बिल के पक्ष में मतदान कर सरकार की हैकड़ी बढ़ायी। अनजाने में प्रमुख विपक्षी दल ने सरकार की राह में फूल बिछा दिये और अपनी राह में कांटे। काश! सरकार का साथ देने के पहले भारत की पीड़ित जनता का भी ख्याल रख लिया जाता। उनके जीवन में दुख बांटने में सरकार के साथ सहभागी बनने की आखिर क्या विवशता थी ?
माया-मुलायम का दोगला चरित्र तो जगजाहिर है। आज इन दोनों की कृपा से ही इतिहास की एक सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार का अस्तित्व बना हुआ है। ये दोनों हस्तियां यदि साथ नहीं देती, तो अब तक यह सरकार इतिहास का पृष्ठ बन जाती। लोकसभा के चुनाव हो जाते और एक नयी सरकार बन जाती। एक नया प्रधानमंत्री लालकिले पर झंड़ा फहराता। देश की खराब आर्थिक हालत को सुधारने के लिए संवेदनशील होता। परन्तु क्या करें, इन दोनों ने न केवल इस सरकार की उम्र बढ़ायी है, वरन इन्होंने इसे पुन: सत्ता में आने की आस भी बंधायी है।
माया-मुलायम सरकार की प्रत्येक नीति का संसद में जम कर विरोध करते हैं, किन्तु हर बार सरकार के पक्ष में मतदान कर उसे जीवनदान देते हैं। दरअसल, जनता को वश में करने के लिए इनके पास एक वशीकरण मंत्र है, जिसे जपने का ये दोनो कोर्इ मौका नहीं छोड़ते। इन्हें न तो देश की चिंता है और न जनता के दुख-दर्द की । इन्हें सदैव चिंता बनी रहती है, अपने वोट बैक की। अत: जब भी मौका आता है वे वशीकरण मंत्र- ‘साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता में नहीं आने देंगे’ का जाप करना प्रारम्भ कर देते हैं। चाहे देश डूब जाय। जनता को महंगार्इ का वज्रपात झेलना पड़ें। कुशासन व सरकार की गलत नीतियों के कारण जनता त्राहि-त्राहि करें, परन्तु वशीकरण मंत्र का जाप करना ये नहीं छोड़ते। राजनेताओं और भारत की राजनीति के दोगलेपन का माया और मुलायम ज्वलन्त उदाहरण बन गये हैं। बहरहाल इनके क्लब में बिहार से एक और महाशय आ गये हैं। सत्रह वर्षों तक साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ बैठ कर सत्ता सुख भोगा अब सत्ता सुख को अक्षुण्ण बनाने के लिए इन्हें भी इस क्लब में शामिल होना पड़ा है। इनका ऐसा सोचना है कि साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर रखने का जाप अंतत: चुनावी भव सागर को पार करने में बहुत सहायक होता है। इससे इन्हें शुकून मिलता है।
खैर, देश की खराब आर्थिक हालत को नज़रअंदाज कर प्रधानमंत्री अपने कुनबे के साथ विदेश रवाना हो गये। मेडम अपनी चिकित्सा जांच करने के लिए अमेंरिका चली गयी। भारत में वैसे भी चिकित्सा सुविधा हैं कहां। गरीब देश का पैसा है, क्यों नहीं इसका सदुपयोग किया जाय। संसद चल रही है। सांसद दंगे कर रहे हैं। एक यशस्वी मुख्यमंत्री के सांसद पुत्र दूसरे सांसद को दिल्ली से भगाने की धमकी दे रहे है। संसद की तरह यह देश भी जैसे-तैसे चल रहा है। जनता महंगार्इ का बड़ा बम फटने की दहशत में जी रही है। भारत भाग्य विधाता सरकार र्इश्वर कृपा से अपना जीवन काल पूरा कर रही है। जनता के चेहरे पर मायूसी है, पर सरकार प्रफुल्लित है। जनता को भूख से नहीं मरने की गारन्टी दी जा रही है। बदले में जनता से फिर उनकी सरकार फिर बनाने की गारन्टी ली जा रही है। जनता की छोटी-छोटी खुशियां छीन कर अपने लिए सत्ता सुख की बड़ी खुशी मांगी जा रही है। जनता को कहा जा रहा है- अब दाल, सब्जी, दूध, घी यहां तक की प्याज खाना भी छोड़ दो और भूख मिटाने के लिए सिर्फ रोटी खाओ, ठंड़ा पानी पीओ और हमारे साथ खुल कर भारत निमार्ण के गीत गाओ।
परन्तु भारत निमार्ण का गीत सुन कर एक बेबस बाप पीड़ा से कराह उठा -’ ऐसा खराब जमाना आयेगा, कभी सोचा भी नहीं था। अपनी बिटियां की शादी में एक मंगलसूत्र और बिछियां देने की हैसियत भी मुझसे जमाने ने छीन ली है। क्योंकि सोने-चांदी के भावों की आसमानी ऊंचार्इ उसने अपने जीवनकाल में कभी देखी नहीं थी।
खैर, सरकार की मेहरबानी से हम भारतीय मर-मर कर भी जी रहे हैं। ज्यों-त्यों बची-खुची जिंदगी गुज़ार रहे हैं। खुदा से एक अर्ज कर रहे हैं – ए खुदा ! हम पर रहम कर। इस देश को अब तो ऐसे राजनेताओं से आज़ाद कर, जो मुल्क के लिये नहीं, अपने लिये जीते हैं। झूठ इनकी आदत में हैं। धोखा इनकी फितरत है। मुल्क की बरबादी पर भी ये जश्न मनाने का मौका नहीं छोड़ते।
देश की अर्थव्यवस्था के और ज्यादा खराब होने के अशुभ संकेत मिल रहे हैं, किन्तु सरकार बेफिक्र है। देश डूब रहा है, परन्तु सरकार जश्न मना रही है। भारत निमार्ण के गीत गा रही है। झूठ और प्रपंच के सहारे जनता को ठगने की पूरी तैयारी कर ली है। एक नारा दिया जा रहा है- अब देश का नागरिक महंगार्इ और अभावों के वज्रपात से टूट कर भले ही मर जाय, पर भूख से नहीं मरेगा। चाहे गेहूं के अलावा हर आवश्यक वस्तु उसकी पहुंच से बाहर चली जाय, पर इससे सरकार को क्या ? वह तो उसे दो रुपया किलों गेंहूं दिला रही हैं। गेहूं सूखे ही चबाओं और भारत निमार्ण के गीत गाते हुए जीओ। खुशी नही मिले, परन्तु हमारे साथ खुशी के गीत गाओ।
देश को दिवालिया करने के दोषी गूंगे प्रधानमंत्री संसद में बोले। उद्दण्ड़ता से झूठ भी हेकड़ी से बोले। विपक्ष से बिल पास करवाने के बाद देश की खराब हालत के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराते हुए उसके माथे पर अपनी नाकामी का ठीकरा फोड़ा। कह दिया- हम तो काम करना चाहते हैं, ये काम ही नहीं करने देते। मुझे चोर कहते हैं। मेरे शासनकाल में पांच लाख करोड़ रुपये के घोटाले हुए है, किन्तु मैं क्या चोर दिखार्इ देता हूं ? कोयले की फार्इले गुम गयी। मेरे चेहरे पर भी कोयले की कालिख पुती हुर्इ है, किन्तु दुनियां में ऐसा कोर्इ देश हैं, जहां पर प्रधानमंत्री पर ऐसे आरोप लगाये जाते हैं। परन्तु जनाब ! दुनियां में कभी कहीं ऐसा प्रधानमंत्री भी नहीं हुआ, जो दोषी होने पर दोष स्वीकार नहीं करता और अपने दोष विपक्ष पर शान से मंढ़ता है।
और बैचारा विपक्ष। सरकार को खुशी दिलार्इ और अपने लिए गम लिये। सरकार तो बिल पास करवा कर परोपरकार के ढ़ोल बजा रही है और विपक्ष मातम। विपक्ष ने संसद में बिल की खूब कमियां गिनायी। किन्तु बिल के पक्ष में मतदान कर सरकार की हैकड़ी बढ़ायी। अनजाने में प्रमुख विपक्षी दल ने सरकार की राह में फूल बिछा दिये और अपनी राह में कांटे। काश! सरकार का साथ देने के पहले भारत की पीड़ित जनता का भी ख्याल रख लिया जाता। उनके जीवन में दुख बांटने में सरकार के साथ सहभागी बनने की आखिर क्या विवशता थी ?
माया-मुलायम का दोगला चरित्र तो जगजाहिर है। आज इन दोनों की कृपा से ही इतिहास की एक सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार का अस्तित्व बना हुआ है। ये दोनों हस्तियां यदि साथ नहीं देती, तो अब तक यह सरकार इतिहास का पृष्ठ बन जाती। लोकसभा के चुनाव हो जाते और एक नयी सरकार बन जाती। एक नया प्रधानमंत्री लालकिले पर झंड़ा फहराता। देश की खराब आर्थिक हालत को सुधारने के लिए संवेदनशील होता। परन्तु क्या करें, इन दोनों ने न केवल इस सरकार की उम्र बढ़ायी है, वरन इन्होंने इसे पुन: सत्ता में आने की आस भी बंधायी है।
माया-मुलायम सरकार की प्रत्येक नीति का संसद में जम कर विरोध करते हैं, किन्तु हर बार सरकार के पक्ष में मतदान कर उसे जीवनदान देते हैं। दरअसल, जनता को वश में करने के लिए इनके पास एक वशीकरण मंत्र है, जिसे जपने का ये दोनो कोर्इ मौका नहीं छोड़ते। इन्हें न तो देश की चिंता है और न जनता के दुख-दर्द की । इन्हें सदैव चिंता बनी रहती है, अपने वोट बैक की। अत: जब भी मौका आता है वे वशीकरण मंत्र- ‘साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता में नहीं आने देंगे’ का जाप करना प्रारम्भ कर देते हैं। चाहे देश डूब जाय। जनता को महंगार्इ का वज्रपात झेलना पड़ें। कुशासन व सरकार की गलत नीतियों के कारण जनता त्राहि-त्राहि करें, परन्तु वशीकरण मंत्र का जाप करना ये नहीं छोड़ते। राजनेताओं और भारत की राजनीति के दोगलेपन का माया और मुलायम ज्वलन्त उदाहरण बन गये हैं। बहरहाल इनके क्लब में बिहार से एक और महाशय आ गये हैं। सत्रह वर्षों तक साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ बैठ कर सत्ता सुख भोगा अब सत्ता सुख को अक्षुण्ण बनाने के लिए इन्हें भी इस क्लब में शामिल होना पड़ा है। इनका ऐसा सोचना है कि साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर रखने का जाप अंतत: चुनावी भव सागर को पार करने में बहुत सहायक होता है। इससे इन्हें शुकून मिलता है।
खैर, देश की खराब आर्थिक हालत को नज़रअंदाज कर प्रधानमंत्री अपने कुनबे के साथ विदेश रवाना हो गये। मेडम अपनी चिकित्सा जांच करने के लिए अमेंरिका चली गयी। भारत में वैसे भी चिकित्सा सुविधा हैं कहां। गरीब देश का पैसा है, क्यों नहीं इसका सदुपयोग किया जाय। संसद चल रही है। सांसद दंगे कर रहे हैं। एक यशस्वी मुख्यमंत्री के सांसद पुत्र दूसरे सांसद को दिल्ली से भगाने की धमकी दे रहे है। संसद की तरह यह देश भी जैसे-तैसे चल रहा है। जनता महंगार्इ का बड़ा बम फटने की दहशत में जी रही है। भारत भाग्य विधाता सरकार र्इश्वर कृपा से अपना जीवन काल पूरा कर रही है। जनता के चेहरे पर मायूसी है, पर सरकार प्रफुल्लित है। जनता को भूख से नहीं मरने की गारन्टी दी जा रही है। बदले में जनता से फिर उनकी सरकार फिर बनाने की गारन्टी ली जा रही है। जनता की छोटी-छोटी खुशियां छीन कर अपने लिए सत्ता सुख की बड़ी खुशी मांगी जा रही है। जनता को कहा जा रहा है- अब दाल, सब्जी, दूध, घी यहां तक की प्याज खाना भी छोड़ दो और भूख मिटाने के लिए सिर्फ रोटी खाओ, ठंड़ा पानी पीओ और हमारे साथ खुल कर भारत निमार्ण के गीत गाओ।
परन्तु भारत निमार्ण का गीत सुन कर एक बेबस बाप पीड़ा से कराह उठा -’ ऐसा खराब जमाना आयेगा, कभी सोचा भी नहीं था। अपनी बिटियां की शादी में एक मंगलसूत्र और बिछियां देने की हैसियत भी मुझसे जमाने ने छीन ली है। क्योंकि सोने-चांदी के भावों की आसमानी ऊंचार्इ उसने अपने जीवनकाल में कभी देखी नहीं थी।
खैर, सरकार की मेहरबानी से हम भारतीय मर-मर कर भी जी रहे हैं। ज्यों-त्यों बची-खुची जिंदगी गुज़ार रहे हैं। खुदा से एक अर्ज कर रहे हैं – ए खुदा ! हम पर रहम कर। इस देश को अब तो ऐसे राजनेताओं से आज़ाद कर, जो मुल्क के लिये नहीं, अपने लिये जीते हैं। झूठ इनकी आदत में हैं। धोखा इनकी फितरत है। मुल्क की बरबादी पर भी ये जश्न मनाने का मौका नहीं छोड़ते।
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