किसी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में मतदान करने का मतलब है हम अपना भविष्य
व भाग्य उस पार्टी को सौंप रहे हैं। क्योंकि उस पार्टी के पास यदि सत्ता आ
जाती है, तब देश की प्राकृतिक संपदा और राजकोष पर उस पार्टी का
प्रत्यक्षत: नियंत्रण हो जाता है। सता के इर्द-गिर्द मंडराने वाले दलाल
उनसे जुड़ जाते हैं। सार्वजनिक संपति की लूट का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता
है। सत्ता मिलने के बाद राजनेताओं के पास धन के अनेक स्त्रोत हाथ लग जाते
हैं। सत्ता सुख के साथ ही छप्पर फाड़ कर धन बरसता है। सत्ता न केवल अधिकार,
मान-सम्मान व यश दिलाती है, वरन अकूत धन संपदा से झोली भर देती है।
राजनीति दरअसल सत्ता का व्यापार बन गयी है। एक आध को छोड़ कर अधिकांश राजनीतिक पार्टियां एक तरह से प्राइवेट कम्पनियां बन गयी है, जिसका नियंत्रण किसी एक व्यक्ति के पास है और बाकी सब उसके मेनेजर और कर्मचारी है। इन सभी प्राइवेट कम्पनियों का एक ही मकसद रहता है -किसी भी तरह जनता को मूर्ख बना कर वोट लो और सत्ता पर नियंत्रण स्थापित कर लूट का क्रम जारी रखो।
इस समय देश में एक प्राइवेट लिमिटेड़ राजनीतिक पार्टी का वर्चस्व है। यह पार्टी पिछले दस वर्षों भारतीय जनता को मूर्ख बना रही है। यह पार्टी एक मालिक के अधिन चलती है और वही मालिक इस देश का भाग्य विधाता बन गया है। उस मालिक की नज़र में एक सौ पच्चीस करोड़ भारतीयों की औकात गुलामों से अधिक नहीं है। उनके विचारों से भारतीय मूर्खों व अज्ञानियों की जमात हैं, जिन्हें धर्म और जाति के नाम पर बांटा जा सकता है। दरिद्र भारतीय भूखे रहते हैं। उनके पास रहने को मकान नहीं है। पूर्णतया साधनविहिन है। अत: वोट पाने के लिए इनके सामने टूकड़े फैंको। ये ललचायेंगे और आपको वोट दे देंगे। सत्ता पाने तक इनकी गरज करों। इन्हें तरह-तरह के सपने दिखाओं और अपने वश में कर लो। सत्ता मिल जाये तब जम कर देश के संसाधनों को लूटों। यदि कोर्इ विरोध में कुछ बोलें तो सरकारी जांच एजंसियों और सस्थाओं से उसे प्रताड़ित करों, ताकि सरकार के कारनामों के विरुद्ध कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पाये।
सत्ता सुख भोगने का एक और उपाय इस कम्पनी ने ओर ढूंढ़ लिया है। देश की आधि से अधिक जनता भारत की दो बड़ी पार्टियों के पक्ष में वोट देती हैं। इन दोनों पार्टियों के पास लोकसभा की तीन चौथार्इ सीटे होती हैं। परन्तु प्रतिद्वंद्वी पार्टी चूंकि अछूत पार्टी है, अत: अधिकांश राजनीतिक पार्टियां उससे जुड़ने के बजाय प्राइवेट लिमिटेड़ कम्पनी के शरण में आ जाती है और इसके सत्ता सुख में कोर्इ व्यवधान नहीं पहुंचता।
यह भारतीय राजीनति की विकृत स्थिति है और देश की दुर्दशा कारण भी। भारतीय जनता इस स्थिति से बाहर निकलने के छटपटा रही है, किन्तु वह कुछ कर नहीं पा रही है। कर्इ लाख करोड़ रुपये के घपले घोटालें करने के बाद भी एक राजनीतिक पार्टी के नेताओं को जनता के सामने जाने से न तो झेंप है, न झिझक है और न ही अपने कृत्यों का इन्हें पश्चाताप है।
सरकारी एजेंसियों और धन के प्रभाव से प्राइवेट कम्पनी के नेता सभाओं में लाखों की भीड़ एकत्रित कर लेते हैं। लोग उन्हें सुनने और उनकी थोथी और बेतुकी बातों पर तालियां बजाने जाते हैं, जिससे इनका आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है। इनके भाषणों में कोर्इ दम नहीं होता। कोर्इ सार्थक विचार नहीं होता, किन्तु अखबारों के पृष्ठ उन खबरों से भरे रहते हैं। टीवी चेनल इनकी बेतुकी बातों का विशेष अर्थ निकाल कर अपनी तरफ से बहुत कुछ जोड़ कर इनका स्तुति गान करते हैं। इसका सीधा मतलब है कि मीडिया और समाचार पत्रों पर इनका अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हो गया है।
अगर ऐसा ही चलता रहा और हम सभी भारतीय आंख बंद कर इनकी सियासी चालों को मान्यता देते रहें, तो अप्रत्यक्ष गुलामी जकड़ बढ़ती जायेगी। यह प्राइवेट लिमिटेड़ कम्पनी जितने समय तक देश पर आधिपत्य बनाये रखेगी, देश की बर्बादी बढ़ती जायेगी। महंगार्इ, अभाव और दरिद्रता का दंश झेलना होगा। क्योंकि लूटेरे अंतत: हमें कंगाल ही तो करेंगे।
जन जागृति के माध्यम से देश की जनता को जगाना ही एक मात्र उपाय है, जिससे भारत इस कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त हो सकता है। यह कार्य कोर्इ एक व्यक्ति, एक राजनीतिक पार्टी और एक नेता के बस की बात नहीं है। देश को जगाने के लिए हमें सारे जातीय और धार्मिक संकीर्णता को त्याग कर एक होना पड़ेगा।
‘विचार मंथन ‘ एक मंच है, जिसके माध्यम से हम अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। हम देश को कैसे एक राजनीतिक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त करायें, ताकि हमे एक अप्रत्यक्ष गुलामी और बर्बादी से छुटकारा मिले ? इस विषय में विचार ‘मंथन स्तम्भ’ में आपके विचारों को सम्मिलित किया जा रहा है। देश को जगाने के लिए आपके विचारों का स्वागत किया जायेगा। आप अपने विचार अंग्रेजी या हिन्दी भाषा में व्यक्त कर सकते हैं।
राजनीति दरअसल सत्ता का व्यापार बन गयी है। एक आध को छोड़ कर अधिकांश राजनीतिक पार्टियां एक तरह से प्राइवेट कम्पनियां बन गयी है, जिसका नियंत्रण किसी एक व्यक्ति के पास है और बाकी सब उसके मेनेजर और कर्मचारी है। इन सभी प्राइवेट कम्पनियों का एक ही मकसद रहता है -किसी भी तरह जनता को मूर्ख बना कर वोट लो और सत्ता पर नियंत्रण स्थापित कर लूट का क्रम जारी रखो।
इस समय देश में एक प्राइवेट लिमिटेड़ राजनीतिक पार्टी का वर्चस्व है। यह पार्टी पिछले दस वर्षों भारतीय जनता को मूर्ख बना रही है। यह पार्टी एक मालिक के अधिन चलती है और वही मालिक इस देश का भाग्य विधाता बन गया है। उस मालिक की नज़र में एक सौ पच्चीस करोड़ भारतीयों की औकात गुलामों से अधिक नहीं है। उनके विचारों से भारतीय मूर्खों व अज्ञानियों की जमात हैं, जिन्हें धर्म और जाति के नाम पर बांटा जा सकता है। दरिद्र भारतीय भूखे रहते हैं। उनके पास रहने को मकान नहीं है। पूर्णतया साधनविहिन है। अत: वोट पाने के लिए इनके सामने टूकड़े फैंको। ये ललचायेंगे और आपको वोट दे देंगे। सत्ता पाने तक इनकी गरज करों। इन्हें तरह-तरह के सपने दिखाओं और अपने वश में कर लो। सत्ता मिल जाये तब जम कर देश के संसाधनों को लूटों। यदि कोर्इ विरोध में कुछ बोलें तो सरकारी जांच एजंसियों और सस्थाओं से उसे प्रताड़ित करों, ताकि सरकार के कारनामों के विरुद्ध कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पाये।
सत्ता सुख भोगने का एक और उपाय इस कम्पनी ने ओर ढूंढ़ लिया है। देश की आधि से अधिक जनता भारत की दो बड़ी पार्टियों के पक्ष में वोट देती हैं। इन दोनों पार्टियों के पास लोकसभा की तीन चौथार्इ सीटे होती हैं। परन्तु प्रतिद्वंद्वी पार्टी चूंकि अछूत पार्टी है, अत: अधिकांश राजनीतिक पार्टियां उससे जुड़ने के बजाय प्राइवेट लिमिटेड़ कम्पनी के शरण में आ जाती है और इसके सत्ता सुख में कोर्इ व्यवधान नहीं पहुंचता।
यह भारतीय राजीनति की विकृत स्थिति है और देश की दुर्दशा कारण भी। भारतीय जनता इस स्थिति से बाहर निकलने के छटपटा रही है, किन्तु वह कुछ कर नहीं पा रही है। कर्इ लाख करोड़ रुपये के घपले घोटालें करने के बाद भी एक राजनीतिक पार्टी के नेताओं को जनता के सामने जाने से न तो झेंप है, न झिझक है और न ही अपने कृत्यों का इन्हें पश्चाताप है।
सरकारी एजेंसियों और धन के प्रभाव से प्राइवेट कम्पनी के नेता सभाओं में लाखों की भीड़ एकत्रित कर लेते हैं। लोग उन्हें सुनने और उनकी थोथी और बेतुकी बातों पर तालियां बजाने जाते हैं, जिससे इनका आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है। इनके भाषणों में कोर्इ दम नहीं होता। कोर्इ सार्थक विचार नहीं होता, किन्तु अखबारों के पृष्ठ उन खबरों से भरे रहते हैं। टीवी चेनल इनकी बेतुकी बातों का विशेष अर्थ निकाल कर अपनी तरफ से बहुत कुछ जोड़ कर इनका स्तुति गान करते हैं। इसका सीधा मतलब है कि मीडिया और समाचार पत्रों पर इनका अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हो गया है।
अगर ऐसा ही चलता रहा और हम सभी भारतीय आंख बंद कर इनकी सियासी चालों को मान्यता देते रहें, तो अप्रत्यक्ष गुलामी जकड़ बढ़ती जायेगी। यह प्राइवेट लिमिटेड़ कम्पनी जितने समय तक देश पर आधिपत्य बनाये रखेगी, देश की बर्बादी बढ़ती जायेगी। महंगार्इ, अभाव और दरिद्रता का दंश झेलना होगा। क्योंकि लूटेरे अंतत: हमें कंगाल ही तो करेंगे।
जन जागृति के माध्यम से देश की जनता को जगाना ही एक मात्र उपाय है, जिससे भारत इस कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त हो सकता है। यह कार्य कोर्इ एक व्यक्ति, एक राजनीतिक पार्टी और एक नेता के बस की बात नहीं है। देश को जगाने के लिए हमें सारे जातीय और धार्मिक संकीर्णता को त्याग कर एक होना पड़ेगा।
‘विचार मंथन ‘ एक मंच है, जिसके माध्यम से हम अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। हम देश को कैसे एक राजनीतिक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त करायें, ताकि हमे एक अप्रत्यक्ष गुलामी और बर्बादी से छुटकारा मिले ? इस विषय में विचार ‘मंथन स्तम्भ’ में आपके विचारों को सम्मिलित किया जा रहा है। देश को जगाने के लिए आपके विचारों का स्वागत किया जायेगा। आप अपने विचार अंग्रेजी या हिन्दी भाषा में व्यक्त कर सकते हैं।
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