उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद सांप्रदायिक
दंगो की बाढ़ आ गयी है उसका मुख्य कारण दरअसल आगामी लोकसभा चुनाव में
धार्मिक आधार पर वोटों का विभाजन करना है। इसी रणनीति को लेकर दंगे हो रहे
हैं। मुजफ्फरनगर में विगत दिनों दो मोटरसाइकिलो की टक्कर के बाद भड़की
हिंसा ने तीन व्यक्तियों की जान ले ली थी और आज फिर दोनों सम्प्रदायों की व
प्रशासन की मंशा के अनुरूप हुयी हिंसा में छह व्यक्तियों की जान ले ली
जिसमें एक न्यूज़ चैनल के स्ट्रिंगर राजेश वर्मा की गोली मारकर हत्या हो गयी तथा एक फोटोग्राफर इसरार अहमद की भी मृत्यु हो गयी। 35 व्यक्तियों से अधिक लोग घायल हो गये। कर्फ्यू लगा दिया गया है।
अगर शासन और प्रशासन निष्पक्ष व विधि सम्मत तरीके से काम कर रहा होता तो कोई भी बवाल या हिंसा होने का प्रश्न नही उठता है जब प्रशासन के अधिकारीगण समुदाय विशेष की तरफ से उनका उत्साह बढ़ाते हैं तभी सांप्रदायिक हिंसा उनके सहयोग से होती है। इस मामले में प्रदेश की पिछली सरकार का रिकॉर्ड बेहतर था क्योंकि दंगों के लिये जिला प्रशासन को जिम्मेदार मानने की व्यवस्था थी। जब जिला मजिस्ट्रेट को यह मालूम होता है कि अगर दंगा हुआ तो मेरे खिलाफ कड़ी कार्यवाही होगी तो दंगे नहीं होते हैं। भाजपा उकसाती है और फिर सामान्य जनता में धार्मिक आधार पर उत्तेजना फैलती है। अगर सरकार चाहे तो अपनी सूझ-बूझ से उत्तेजना को अपने कार्यों से निष्फल कर भाजपा की समस्त रणनीति को विफल कर सकती है लेकिन ताबड़तोड़ घटनाओ से यह सन्देश जा रहा है कि सरकार व सरकार के अधिकारीयों को उनका संरक्षण प्राप्त है।
यदि अखिलेश सरकार वास्तव में दंगे रोकना चाहती है तो अविलम्ब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था अरुण कुमार तथा डीजीपी देवराज नागर के खिलाफ सख्त करवाई कर प्रशासन को सख्त सन्देश देना चाहिए लेकिन यह दम अखिलेश सरकार में नहीं है। 84 कोसी परिक्रमा के मामले में भी सरकार की मंशा ध्रुवीकरण को लेकर ही थी। दरअसल अखिलेश सरकार नहीं चाहती है कि प्रदेश में कांग्रेस या धर्म निरपेक्ष दलों का उदय हो और उनकी पकड़ प्रदेश में हो, इसके लिये जातिवादी व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण आवश्यक है जो सपा के सरकार में आने के बाद किया जा रहा है।
अगर शासन और प्रशासन निष्पक्ष व विधि सम्मत तरीके से काम कर रहा होता तो कोई भी बवाल या हिंसा होने का प्रश्न नही उठता है जब प्रशासन के अधिकारीगण समुदाय विशेष की तरफ से उनका उत्साह बढ़ाते हैं तभी सांप्रदायिक हिंसा उनके सहयोग से होती है। इस मामले में प्रदेश की पिछली सरकार का रिकॉर्ड बेहतर था क्योंकि दंगों के लिये जिला प्रशासन को जिम्मेदार मानने की व्यवस्था थी। जब जिला मजिस्ट्रेट को यह मालूम होता है कि अगर दंगा हुआ तो मेरे खिलाफ कड़ी कार्यवाही होगी तो दंगे नहीं होते हैं। भाजपा उकसाती है और फिर सामान्य जनता में धार्मिक आधार पर उत्तेजना फैलती है। अगर सरकार चाहे तो अपनी सूझ-बूझ से उत्तेजना को अपने कार्यों से निष्फल कर भाजपा की समस्त रणनीति को विफल कर सकती है लेकिन ताबड़तोड़ घटनाओ से यह सन्देश जा रहा है कि सरकार व सरकार के अधिकारीयों को उनका संरक्षण प्राप्त है।
यदि अखिलेश सरकार वास्तव में दंगे रोकना चाहती है तो अविलम्ब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था अरुण कुमार तथा डीजीपी देवराज नागर के खिलाफ सख्त करवाई कर प्रशासन को सख्त सन्देश देना चाहिए लेकिन यह दम अखिलेश सरकार में नहीं है। 84 कोसी परिक्रमा के मामले में भी सरकार की मंशा ध्रुवीकरण को लेकर ही थी। दरअसल अखिलेश सरकार नहीं चाहती है कि प्रदेश में कांग्रेस या धर्म निरपेक्ष दलों का उदय हो और उनकी पकड़ प्रदेश में हो, इसके लिये जातिवादी व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण आवश्यक है जो सपा के सरकार में आने के बाद किया जा रहा है।
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