समाचार विशेष
इन दिनों राजस्थान के प्रमुख समाचार पत्र सरकारी रेवड़ियों के विज्ञापनों से अटे पड़े हैं। ऐसे समय में सरकार के मंत्री बाबुलाल नागर से सबंधित बलात्कार प्रकरण का समाचार सुर्खियां बना हुआ हैं, जो विज्ञापनों की चमक फिकी कर रहा है।
लुभावने और महंगे चमकदार विज्ञापनों के जरिये अपनी छवि चमकाने में लगी राजस्थान सरकार के चरित्र पर नागर एक बदनुमा दाग़ बन कर उभरे हैं, जो उसकी छवि को कलंकित कर रहे हैं। सरकार ऊहापोह में हैं। आशाराम के प्रति सख्त सरकार नागर के प्रति नरम रुख अपना रही है। सरकार को भय है कि मामला रफा दफा हो जाय, तो ज्यादा अच्छा हैं, क्योंकि यदि पर्ते उधेड़ी जायेगी, तो सरकार नंगी हो जायेगी। छवि चमकाने के लिए विज्ञापनों पर जो खर्च किया जा रहा है, उस पर पानी फिर जायेगा। साढ़े चार साल के कुशासन को विज्ञापनों और रेवड़ियों से ढंकने के प्रयास पर पलिता लग जायेगा। सरकार अजीब सी मुसिबत में घिर गयी है। न खाते बन रहा है और न निगलते बन रहा है।
भंवरी देवी की राख और हड्डियां को रेत के धोरों में दबाने और नहर के पानी में बहाने तक अनजान बनी रही सरकार अपराध और अपराधियों के संरक्षक की भूमिका निभा रही थी। परन्तु पानी के सिर से ऊपर गुजर जाने के बाद उसे अपने कद्दावर वरिष्ठ मंत्री से पिंड़ छुड़वाने की पीड़ा झेलनी पड़ी थी।
अब बाबुलाल नागर गले में फांस बन कर चुभ रहे हैं। आशाराम को प्रताड़ित करने में कोर्इ कोर कसर नहीं छोड़ने वाली सरकार मौन है। मुखर बन जाय तो सार गुड़ गोबर बन सकता है। परन्तु जनता जब सवाल पूछेगी, तो क्या जवाब देंगे? कानून जब सब के लिए बराबर हैं, तो वे ही कानून आपके मंत्रियों पर क्यों नहीं लागू होते है ? एक जन कल्याणकारी सरकार के मंत्री ऐसे दागदार क्यों है ?
इन दिनों राजस्थान के प्रमुख समाचार पत्र सरकारी रेवड़ियों के विज्ञापनों से अटे पड़े हैं। ऐसे समय में सरकार के मंत्री बाबुलाल नागर से सबंधित बलात्कार प्रकरण का समाचार सुर्खियां बना हुआ हैं, जो विज्ञापनों की चमक फिकी कर रहा है।
लुभावने और महंगे चमकदार विज्ञापनों के जरिये अपनी छवि चमकाने में लगी राजस्थान सरकार के चरित्र पर नागर एक बदनुमा दाग़ बन कर उभरे हैं, जो उसकी छवि को कलंकित कर रहे हैं। सरकार ऊहापोह में हैं। आशाराम के प्रति सख्त सरकार नागर के प्रति नरम रुख अपना रही है। सरकार को भय है कि मामला रफा दफा हो जाय, तो ज्यादा अच्छा हैं, क्योंकि यदि पर्ते उधेड़ी जायेगी, तो सरकार नंगी हो जायेगी। छवि चमकाने के लिए विज्ञापनों पर जो खर्च किया जा रहा है, उस पर पानी फिर जायेगा। साढ़े चार साल के कुशासन को विज्ञापनों और रेवड़ियों से ढंकने के प्रयास पर पलिता लग जायेगा। सरकार अजीब सी मुसिबत में घिर गयी है। न खाते बन रहा है और न निगलते बन रहा है।
भंवरी देवी की राख और हड्डियां को रेत के धोरों में दबाने और नहर के पानी में बहाने तक अनजान बनी रही सरकार अपराध और अपराधियों के संरक्षक की भूमिका निभा रही थी। परन्तु पानी के सिर से ऊपर गुजर जाने के बाद उसे अपने कद्दावर वरिष्ठ मंत्री से पिंड़ छुड़वाने की पीड़ा झेलनी पड़ी थी।
अब बाबुलाल नागर गले में फांस बन कर चुभ रहे हैं। आशाराम को प्रताड़ित करने में कोर्इ कोर कसर नहीं छोड़ने वाली सरकार मौन है। मुखर बन जाय तो सार गुड़ गोबर बन सकता है। परन्तु जनता जब सवाल पूछेगी, तो क्या जवाब देंगे? कानून जब सब के लिए बराबर हैं, तो वे ही कानून आपके मंत्रियों पर क्यों नहीं लागू होते है ? एक जन कल्याणकारी सरकार के मंत्री ऐसे दागदार क्यों है ?
No comments:
Post a Comment