Sunday, 29 September 2013

आतंकवाद के जहरीले सांप के फण को शब्दबाणों से नहीं कुचला जा सकता

लगभग दो दसक से अधिक याने एक चौथार्इ शताब्दी से आतंकवाद का दंश झेल रहे हैं। लाखों जिंदगगियों को इसकी पीड़ा सहनी पड़ी है। इस समस्या को झेलने में हम अव्वल है। परन्तु इससे निज़ात पाने का न तो अब तक आत्मबल जुटा पाये हैं और न ही पूरी शक्ति से इस जहरीले से सांप के फण को कुचलने की हिम्मत जुटा पाये हैं। प्रत्येक आतंकी घटना की पुनरावृति के बाद हमारे शासक उन्हीं घिसे-पिटे शब्दबाणों से प्रहार करते हैं,  जैसे यह भी रस्म अदायगी का एक आवश्यक उपक्रम भर रह गया है।
विश्व को हम आतंकवाद के खतरे से अगाह कर रहे हैं और इसकी भयावता से पूरा विश्व पीड़ित है, यह समझा रहे हैं। पर यह कहने हमें क्यों संकोच नहीं होता कि आतंकवाद से निपटने के लिए हम पूरी तरह से असफल रहे हैं ?  आतंकवाद के जनक राष्ट्र के विद्रुप चेहरे को दुनियां को दिखाने की निष्फल कोशिश करते समय हम यह भूल रहे हैं कि जिन्हें सब कुछ मालूम है, उन्हें समझाने की औपचारिकता क्यों निभा रहे हैं ? गिनती कीजिये ऐसा आप अब तक कितनी बार कर चुके हैं। क्या दुनियां इस समस्या से निपटने के लिए हमारे साथ खड़ी हो पायी ? क्या विश्व पाकिस्तान की करतूतो से परिचित नहीं है ? महाशक्तियों ने पाकिस्तान को रोकने की ऐसी कौनसी सार्थक कोशिश की, जिससे वह भयभीत हो गया और उसने अपने घृणि मकसद पर विराम लगा दिया। जबकि वास्तविकता यह है कि अमेरिका की सहायता और कृपा से ही पाकिस्तानी सेना और आइएसआर्इ ने आतंकवाद को वर्तमान शक्ल दी है।
सवा सौ करोड़ भारतीयों के शासक यदि विश्व के सामने अपनी पीड़ा का बखान करें और उनसे मदद के लिए गिड़गिड़ाये, यह हम सभी भारतीयों का अपमान है। हमने आपको अधिकार दियें हैं, उसका प्रयोग करते हुए आप इस समस्या से निपटने का साम्मर्थय रखते हैं, फिर क्यों  बार-बार दुनियां को हमारा दर्द समझाने का प्रयास करते हैं ? भगवान के लिए बंद कीजिये ये सब गोरखधंधे, क्योंकि अब तक इन सबसे हमने कुछ भी नहीं पाया है। अब वक्त समस्या से निपटने के लिए गम्भीरता से विचार करने का है। एक सार्थक रणनीति की पटकथा लिखने का है। पाकिस्तान को हमारी शक्ति और साम्मर्थय का परिचय कराने का है। हर आतंकी धटना के बाद पाकिस्तान को कोंसने, आतंकवाद की निंदा और भत्सर्ना करने का नहीं।
यह सही है कि आतंकवाद से पूरा विश्व पीड़ित है, किन्तु हमारी समस्या अलग है। विश्व में जहां भी आतंकी घटना हुर्इ, उसकी पुनरावृति नहीं हुर्इ, क्योंकि विश्व के शक्तिशाली देशों ने इसे बहुत गम्भीरता से लिया और अपने नागरिकों की रक्षा के लिए पूरी शक्ति लगा दी। किन्तु हमारे देश में एक आतंकी घटना के बाद दूसरी घटना की पुनरावृति शीघ्र हो जाती है। वजह यह है कि हम आतंकवाद को आधे अधुरे मन से दबाने की कोशिश करते हैं। अपनी शक्ति और क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पाते, इसीलिए बार-बार इसके वीभत्स रुप का सामना करना पड़ता है। पीड़ितों की आंखों से बहते आंसू हमारे शासकों के मन में आक्रोश का भाव नहीं जगा पाये। हमारे शासक अपनी ही धुन में खोये हुए रहते हैं। प्रत्येक आतंकी घटना को वे बहुत हल्के ढंग से लेते हैं। यही कारण है कि आतंक का व्यापार करने वाले निश्चिंत हैं। उन्हें निरन्तर मिल रही सफलता से वे अभिभूत हैं।  उन्हें मालूम हैं- भारत सरकार की दुर्बलताएं क्या हैं। उन्हें अपनी सफलता पूरा भरोसा रहता है। वे जानते हैं, हम सफल होंगे और भारत सरकार विफल। भारत के निरीह नागरिकों के लिए  आतंकवाद की पीड़ा सहने के अलावा कोर्इ चारा नहीं बचा है। क्योंकि अर्कमण्य और दोगले स्वभाव के राजनेताओं के हाथों में देश की सुरक्षा सौंपना कितना जोखिम भरा रहता है, इस सच को जनता ने जान लिया है।
पाकिस्तान के उन शासकों से वार्ता करना महज औपचारिकता निभाने से ज्यादा कुछ नहीं हैं, जिन्होंने जहरीले सांपों को संरक्षण दिया और एक गलत मकसद के लिए इन्हें दूध पिलाया। अब ये जहरीले सांप उनके नियंत्रण में नहीं हैं। ये सांप इन्हें ही डस रहे हैं, फिर ये हमे क्या बचायेंगे ? पाकिस्तानी शासक जानते हैं कि यदि उन्होंने आतंकवाद के जहरीले सांप के फण को कुचल दिया, तो पाकिस्तान खत्म हो जायेगा। पाकिस्तान का अस्तित्व बनाये रखने के लिए उन्हें आतंकवाद को पोषित करना आवश्यक है। पाकिस्तानी शासक दुविधा में हैं। वे अपने राजनीतिक भविष्य को दावं पर लगा कर आतंकवाद को कुचलने का जोखिम नहीं उठा सकते।
अत: पाकिस्तानी शासकों के साथ शांति वार्ता का कोर्इ औचित्य नहीं है। यह समय बर्बाद करने का उपक्रम भर है। अतीत में ऐसी निष्फल कोशिश कर्इ बार कर चुके हैं और इससे कोर्इ सुखद परिणाम हमे प्राप्त नहीं हुए हैं। इस हक़ीकत से हम अच्छी तरह परिचित हैं कि पाकिस्तानी शासकों के नियंत्रण में सेना और आइएसआर्इ नहीं हैं। न ही पाकिस्तानी शासक इन पर नियंत्रण करने की शक्ति और साम्मर्थय रखते हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमें वार्ता के बजाय इस समस्या से निपटने के लिए  अन्य उपाय खोजने आवश्यक हैं।
निश्चय ही अन्य समस्याओं की तरह ही आतंकवाद भी हमारे देश की प्रमुख समस्या बन गया है। जनता अपने शासकों से ठगी जा चुकी है।  अब भारत की जनता उन्हें ही अपना शासक चुनेंगी, जो आतंकवाद से निपटने के लिए जनता के समक्ष कोर्इ सार्थक नीति घोषित करेंगे। उन्हें जनता को भरोसा दिलाना होगा कि हमे यदि जनता सत्ता सौंपेगी, तो वे आतंकवाद को कुचलने में अपनी पूरी शक्ति लगा देंगे। बहुत हो चुका, अब और अधिक सहने की ताकत नहीं बची है। जनता के साथ छल करने के बाद भी जिनके मन में किंचित भी अफसोस नहीं है, उन्हें फिर से चुनने की जोखिम लेना भी जनता के लिए  कोर्इ आवश्यक नहीं है।
जनता बार बार अपने शासकों से यही सवाल पूछेगी कि हमारी सुरक्षा एजेंंसियां दुश्मनों के  घृणित इरादों को सफल हो जाने में क्यों सहायक बनती है ? क्यों उन्हें चुस्त -दुरुस्त नहीं किया जाता ? पूरे देश में सुदृढ़ आतंकी नेटवर्क कैसे स्थापित हो गया ? क्या हमारी पुलिस और राज्य सरकारों की इसकी जानकारी नहीं थी ? और यदि नहीं थी, तो निश्चय ही जनता के प्रति अपनी जवाबदेयी निभाने में चुक हो रही है। अब भी इस नेट वर्क को छिन्न-भिन्न करने और अपराधियों को पकड़ने की कोर्इ सार्थक कोशिश नहीं हो रही है। ऐसा क्यों किया जा रहा है, इसका जवाब क्या हमारे शासकों के पास है ?  आतंकवादियों के पास हथियारों का जखिरा, विस्फोटक पदार्थ और धन कहां से आता है, इसे न तो हम रोक पाये हैं और न ही इस संबंध में पहल कर पा रहे हैं।
सुदृढ़ आतंकवाद निरोधक कानून बनाया जाना आवश्यक है, ताकि अपराधियों को शीघ्र दंड़ मिल सके। वोटबैक और तुष्टिकरण राजनीति यदि इस पहल में अवरोध बनती है, तो यह हमारे देश का दुर्भाग्य है। दुनियां के सामने अपना दर्द बयान करने और आंसू बहाने के बजाय हम अपने आपको सुधार लें, तभी आतंकवाद की समस्या से निपटा जा सकता है। शब्दोंबाणों, निरर्थक शांति वार्ताओं से एक गम्भीर समस्या को हल्के ढंग से लेना ही दर्शाता है।

Saturday, 28 September 2013

तुम दिन को अगर रात कहो, हम रात कहेंगे राहुल जी !

सुप्रिम कोर्ट की अवमानना करते हुए दाग़ियों को बचाने के लिए अध्यादेश लाने की प्रक्रिया दो माह से चल रही थी। राहुलगांधी की सहमति लिए बिना कांग्रेसियों के पास इतना साहस कहां कि वे एक कदम भी आगे चल सके। निश्चय ही राहुल सहमत थे, इसीलिए मौन थे। परन्तु  अध्यादेश के संबंध में राष्ट्रपति के अडिग रुख से उन्हें अचानक आत्मज्ञान हुआ और प्रतिद्वंद्वी पार्टी को राजनीतिक लाभ नहीं मिले, इसलिए बहुत ही नाटकीय ढंग से उन्होंने एक प्रेस कान्फे्रस में आ कर अध्याधेश को कोरा बकवास बताते हुए इसे फाड़ कर फैंक देने का कह कर चले गये।
पार्टी नेता जो अध्यादेश के संबंध मे दलीले दे रहे थे, उनके एक वाक्य से तर्कविहिन हो कर पलट गये और पार्टी नेताओं ने राहुल की हां में हां मिलाते हुए कह दिया, ये जो कह रहें हैं, वही सही है। ये यदि दिन को रात कहेंगे, हम रात कहेंगे। ये हमारे मालिक हैं, ये जो कहेंगे हम आंख बंद कर स्वीकार  करेंगे। इनके एक बयान ने हमारे सारे तर्क भोतरें कर दिये। हम तर्क और तथ्य प्रस्तुत करने का साम्मर्थय खो चुके हैं।
राहुल गांधी कितनी अपरिपक्क मानसिक स्थिति के मालिक हैं, इसका परिचय उन्होंने दे दिया। साथ ही, इन तथ्यों की भी पुष्टि हो गयी कि  प्रधानमंत्री की हैसियत एक कठपुतली से अधिक नहीं है। उनकी कोर्इ अहमियत नहीं है। प्रधानमंत्री के मंत्रीमंड़ल ने जो प्रस्ताव पास किया, उसे एक सांसद और पार्टी उपाध्यक्ष ने बकवास बता कर अस्वीकृत कर  दिया, इसलिए मंत्रीमंडल के पास उसे खारिज करने के अलावा कोर्इ चारा नहीं है। अर्थात प्रधानमंत्री और मंत्रीमंडल की सामुहिक शक्ति से उस व्यक्तित्व की शक्ति सर्वोच्च है। उस सांसद और पार्टी उपाध्यक्ष का कद और शक्तियां, जिन्हें भारतीय संविधान ने नहीं दी है, किन्तु एक सरकार और एक राजनीतिक पार्टी ने अपरोक्ष रुप से दे रखी है, सर्वोच्च है।  इससे साबित होता है  कि पूरी पार्टी और उसकी सरकार  एक परिवार की महज अनुचर मंडली है। राहुल गांधी पार्टी के बिगड़े नवाब है, जिनकी हर आज्ञा को शिरोधार्य करना पार्टी के लिए आवश्यक है। भारतीय लोकतंत्र, एक अलोकतंत्रीय परिवार के पास गिरवी पड़ा है।
परन्तु प्रश्न यह है कि देश को इस परिवार का  बोझ ढोना क्यों आवश्यक है ? हमारे सामने ऐसी क्या विवशता है कि चाहें इस परिवार की करतूतो से हम कष्ट भोंगे, परन्तु फिर भी इसे झेलने की विवशता झेले ? जिस व्यक्ति ने राजनीति की सारी परम्परा और आदर्श को बदल कर एक झटके से अपनी पार्टी को नसीहत देने के लिए एक गलत मंच चुन लिया, वह व्यक्ति देश को कैसे चला पायेगा ? क्या किन्हीं अपरिहार्य परिस्थितियों में मंत्रीमंड़ल की बैठक बुलाने और संसद में अपनी बात रखने के बजाय सीधा प्रेस कान्फे्रस में जा कर अपने विचारों को रखेगा ? क्या तब वह व्यक्ति मंत्रीमंडल और संसद की सर्वोच्चता की अवमानना नहीं करेगा ? लोकतंत्र सिद्धान्तों और संविधान के निर्देशों के आधार पर चलता है, किसी एक व्यक्ति की तुनकमिजाजी के आधार पर नहीं।
किन्तु चिंता का विषय यह है कि कैसे उनके गलत कदम को पार्टी सही कदम बता कर उनके सुर में सुर मिला रही है। इसका सीधा मतलब है, पूरी पार्टी एक परिवार पर अवलम्बित हो गयी है। पार्टी का लोकतांत्रिक अस्तित्व समाप्त हो गया है। एक परिवार ही पार्टी के मार्इं बाप हैं और पार्टी के नेताओं का अपना कोर्इ अस्तित्व नहीं हैं। क्या एक राजनीतिक पार्टी इसी मानसिकता के आधार पर देश पर शासन करने का अधिकार रखती है ?
किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए यह एक अशोभनीय स्थिति है। यदि देश के नागरिक ऐसी स्थिति को स्वीकार करते हुए उस पार्टी के पक्ष में मतदान करते हैं, तो वे अप्रत्यक्ष रुप से लोकतंत्र के बजाय एक सामंतशाही को स्वीकार कर रहे हैं। एक राजनीतिक पार्टी के साथ-साथ  पूरे देश ने भी उस परिवार की अधीनता स्वीकार कर ली है। यदि ऐसा होता है तो यह एक दुर्र्भाग्यजनक स्थिति होगी। लोकतंत्र की समाप्ति की प्रक्रिया में यह मील का पत्थर साबित होगी।
निश्चय ही, भारत की सभी लोकतंत्र की पक्षधर पार्टियों को देश को ऐसी अपरिहार्य स्थिति से बचाने के लिए एक हो जाना चाहिये। क्योंकि लोकतंत्र, एक व्यक्ति से नहीं चलता। लोकतंत्र सामुहिक शक्ति और परस्पर विचार विमर्श, तर्क-विर्तक और सर्वानुमति के सिद्धान्त पर चलता है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पूरी तरह से एक व्यक्ति पर अवलम्बित नहीं होती, वरन उसकी पूरी शक्तियां संसद, सांसद, और मंत्रीमण्डल के पास सुरक्षित होती है। यदि कोर्इ व्यक्ति इतना शक्तिशाली हो जाता है कि वह अपने आपको संसद, प्रधानमंत्री और मंत्रीमण्डल से भी ऊपर समझता है, तो निश्चय ही यह लोकतंत्र के लिए खतरें की घंटी है और अधिनायकतंत्र की आहट का संकेत है।
अभी पानी सिर से ऊपर नहीं गुजरा है। जनता चाहे तो ऐसी परिस्थितियों से देश को बचा सकती है। उसके पास मतदान का अधिकार है। अपने इस अधिकार से वह एक अलोकतंत्रीय पार्टी को अस्वीकार कर सकती है। क्योंकि जनता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि एक व्यक्ति यदि दिन को रात बतायेगा, तो जनता भी उसके सुर में सुर मिला देगी। जनता कहेगी, जो व्यक्ति देश की धड़कनों को समझेगा, धड़कनों के साथ अपना सुर मिलायेगा, वही इस देश पर राज करने का अधिकार रखेगा। भारतीय लोकतांत्रिक शासन व्यवसथा  का संचालन करने के लिए जनता के सेवक चाहिये। तुनकमिजाजी और अहंकारी व्यक्तित्व नहीं ।
सुप्रिम कोर्ट ने दाग़ियों के संबंध में जो निर्णय दिया, वह पूरे  देश की आवाज थी। उस निर्णय को पलटने के लिए  अध्यादेश लाया जाना, वस्तुत: न्यायालय की अवमानना करना और देश की आवाज़ को दबाना था। यदि कोर्इ पार्टी अपने नेता के एक बयान से पीछे हट सकती है, इसका मतलब यह है कि सर्वोच्च न्यालय के निर्णय के विरोध में  अध्याधेश लाने के लिए भी उस पार्टी के नेता से अवश्य ही सहमति ली गयी थी, जो इसे आज कोरी बकवास बताते हुए फाड़ने का निर्देश दे रहा है और पार्टी उसके आदेश को स्वीकार कर रही है।
निश्चय ही ऐसी पार्टी और उसके नेता के हाथों में देश को सौंपना खतरे से खाली नहीं है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति कभी भी कुछ भी कह सकते हैं और कर सकते हैं। इनके विचार और तर्क विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते है। सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश को चलाने के लिए नेताओं की कोर्इ कमी नहीं हैं, फिर हमारे पास ऐसी क्या विवशता है कि हम एक अलोकतांत्रिक पार्टी और उसके तुनकमिजाजी और अहंकारी  नेता को झेले और आंख बंद कर उसका नेतृत्व को स्वीकार कर लें ?

Friday, 27 September 2013

तर्पण विधि

तर्पण विधि

  तीन कुशाओं को बाँधकर ग्रन्थी लगाकर कुशाओं का अग्रभाग पूर्व में रखते हुए दाहिने हाथ में जलादि लेकर संकल्प पढ़ें।
ऊँ विष्णुः...............'श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फलप्राप्त्यर्थं पितृतर्पणं करिष्ये'
तदनन्तर एक ताबे अथवा चांदी के पात्र में श्वेत चन्दन, चावल, सुगन्धित पुष्प और तुलसीदल रखें, फिर उस पात्र के ऊपर एक हाथ या प्रादेश मात्र लम्बे तीन कुश रखें जिनका अग्रभाग पूर्व की ओर रहे। इसके बाद उस पात्र में तर्पण के लिए जल भर दें। फिर उसमें रखे हुए तीनों कुशों को तुलसी सहित सम्पुटाकार दायें हाथ में लेकर बायें हाथ से ढक लें और निम्नाङि्‌कत मंत्र पढ़ते हुए देवताओं का आवाहन करें।
ऊँ विश्वेदेवास ऽआगत श्रृणुता म ऽइम हवम्‌। एदं बर्हिनिषीदत॥ (शु. यजु. 734)
विश्वेदेवाः शृणुतेम हवं मे ये ऽअन्तरिक्षे य उप  द्यवि  ष्ठ।
येऽअग्निजिह्नाऽउत वा यजत्राऽआसद्यास्मिन्वर्हिषि मादयद्‌ध्वम्‌॥ (शु. यजु. 3353)
      आगच्छन्तु महाभागा विश्वेदेवा महाबलाः।
      ये तर्पणेऽत्रा विहिताः सावधाना भवन्तु  ते॥
इस प्रकार आवाहन कर कुश का आसन दें और उन पूर्वाग्र कुशों द्वारा दायें हाथ की समस्त अङ्‌गुलियों के अग्रभाग अर्थात्‌ देवतीर्थ से ब्रह्मादि देवताओं के लिए पूर्वोक्त पात्र में से एक-एक अञ्जलि चावल मिश्रित जल लेकर दूसरे पात्र में गिरावें और निम्नाङि्‌कत रूप से उन-उन देवताओं के नाम मन्त्र पढ़ते रहें -

देवतर्पण

ऊँ ब्रह्मा तृप्यताम्‌। ऊँ विष्णुस्तृप्यताम्‌। ऊँ रुद्रस्तृप्यताम्‌।
ऊँ प्रजापतिस्तृप्यताम्‌। ऊँ देवास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ छन्दांसि तृप्यन्ताम्‌।
ऊँ वेदास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ ऋषयस्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ पुराणाचार्यास्तृप्यन्ताम्‌।
ऊँ गन्धर्वास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ इतराचार्यास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ संवत्सरः सावयवस्तृप्यताम्‌। ऊँ देव्यस्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ अप्सरसस्तृप्यन्ताम्‌।
ऊँ देवानुगास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ नागास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ सागरास्तृप्यन्ताम्‌।
ऊँ पर्वतास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ सरितस्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ मनुष्यास्तृप्यन्ताम्‌।
ऊँ यक्षास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ रक्षांसि तृप्यन्ताम्‌। ऊँ पिशाचास्तृप्यन्ताम्‌।
ऊँ सुपर्णास्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ भूतानि तृप्यन्ताम्‌। ऊँ पशवस्तृप्यन्ताम्‌।
ऊँ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम्‌। ऊँ ओषधयस्तृप्यन्ताम्‌।
ऊँभूतग्रामश्चतु-
र्विधस्तृप्यताम्‌।
ऋषितर्पण-निम्नाङि्‌कत मन्त्र वाक्यों से मरीचि आदि ऋषियों को भी एक-एक अञ्जलि जल दें-
ऊँ मरीचिस्तृप्यताम्‌। ऊँ अत्रिास्तृप्यताम्‌। ऊँ अङि्‌गरास्तृप्यताम्‌।
ऊँ पुलस्त्यस्तृप्यताम्‌। ऊँ पुलहस्तृप्यताम्‌। ऊँ क्रतुस्तृप्यताम्‌।
ऊँ वसिष्ठस्तृप्यताम्‌। ऊँ प्रचेतास्तृप्यताम्‌। ऊँ भृगुस्तृप्यताम्‌।
ऊँ नारदस्तृप्यताम्‌॥

दिव्य मनुष्य तर्पण-

इसके बाद जनेऊ को माला की भांति गले में धारण करके (अर्थात्‌ निवीती हो) पूर्वोक्त कुशों हो दायें हाथ की कनिष्ठिका के मूल-भाग में उत्तराग्र रखकर स्वयं उत्तराभिमुख हो निम्नाङि्‌कत मन्त्र वचनों को दो-दो बार पढ़ते हुए दिव्य मनुष्यों के लिए दो-दो अञ्जलि यवसहित जल प्राजापत्यतीर्थ (कनिष्ठिका के मूल-भाग) से अर्पण करें।
ऊँ सनकस्तृप्यताम्‌॥2॥ ऊँ सनन्दनस्तृप्यताम्‌॥2
ऊँ सनातनस्तृप्यताम्‌॥2॥ ऊँ कपिलस्तृप्यताम्‌॥2
ऊँ आसुरिस्तृप्यताम्‌॥2॥ ऊँ वोढुस्तृप्यताम्‌॥2
ऊँ पञ्चशिखस्तृप्यताम्‌॥2

दिव्य पितृ तर्पण-

तत्पश्चात्‌ उन कुशों को द्विगुण भुग्न करके उनका मूल और अग्रभाग दक्षिण की ओर किये हुए ही उन्हें अंगूठे और तर्जनी के बीच में रखे और स्वयं दक्षिणाभिमुख हो बायें घुटने को पृथ्वी पर रखकर अपसव्यभाव से (जनेऊ को दायें
कंधे पर रखकर) पूर्वोक्त पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर पितृतीर्थ से (अंगूठा और तर्जनी के मध्य भाग से) दिव्य पितरों के लिए निम्नाङि्‌कत मन्त्र-वाक्यों को पढ़ते हुए तीन-तीन अञ्जलि जल दें ।
ऊँ कव्यवाडनलस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तस्मै
स्वधा नमः।3॥ ऊँ सोमस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ ऊँ यमस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः।3॥ ऊँ अर्यमा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः।3॥ ऊँ अग्निष्वात्ताः पितरस्तृप्यन्ताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः।3॥ ऊँ सोमपाः पितरस्तृप्यन्ताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः।3॥ ऊँ बर्हिषदः पितरस्तृप्यन्ताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः।3
यमतर्पण-इसी प्रकार निम्नलिखित मन्त्र-वाक्यों को पढ़ते हुए चौदह यमों के लिये भी पितृतीर्थ से ही तीन-तीन अञ्जलि तिल सहित जल दें ।
ऊँ यमाय नम :॥3॥ऊँ धर्मराजाय नम :॥3॥ ऊँ मृत्युवे नमः॥3॥ ऊँ अन्तकाय नम :॥3॥ ऊँ वैवस्वताय नम :॥3॥ ऊँ कालाय नमः॥3॥ ऊँ सर्वभूतक्षयाय नम :॥3॥ ऊँ औदुम्बराय नम :॥3॥ ऊँ दध्नाय नमः॥3॥ ऊँ नीलाय नम :॥3॥ ऊँ परमेष्ठिने नम :॥3॥ ऊँ वृकोदराय नम :॥3॥ ऊँ चित्रााय नम :॥3॥ ऊँ चित्रागुप्ताय नम :॥3
दक्षिण की ओर बैठकर आचमन कर बायाँ घुटना मोड़ जनेऊ तथा उत्तरीय को दाहिने कंधे पर कर पितृतीर्थ तर्जनी के मूल तथा कुशा के अग्र भाग और मूल से तिल सहित प्रत्येक नाम से दक्षिण में तीन-तीन अंजलि देवें। पवित्री दाहिने तथा तीन को बायें हाथ की अनामिका में धारण करें।

मनुष्य पितृ तर्पण

आवाहन (तीर्थों में नहीं करे)
ऊँ उशन्तस्त्वा निधीमह्युशन्तः समिधीमहि।
उशन्नुशत आवाह पितघ्ृन्हविषे अत्तवे॥ (यजु. 1970)
ऊँ आयन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिमिर्देवयानैः।
अस्मिन्‌ यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधिब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्‌। (शुक्ल. मज. 1958)
तदन्तर अपने पितृगणों का नाम-गोत्र आदि उच्चारण करते हुए प्रत्येक के लिए पूर्वोक्त विधि से तीन-तीन अञ्जलि तिलसहित जल दे। यथा-
अमुकगोत्राः अस्मत्पिता (बाप) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गा जलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मत्पितामहः (दादा) अमुकशर्मा रुद्ररूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मत्प्रपितामहः (परदादा) अमुकशर्मा आदित्यरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मन्माता अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी रुद्ररूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं तलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्प्रपितामही (परदादी) अमुकी देवी आदित्यरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्सापत्नमाता (सौतेली मां) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥2
इसके बाद निम्नाङि्‌कत नौ मन्त्रों को पढ़ते हुए पितृतीर्थ से जल गिराता रहे।
ऊँ उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुं यऽ ईयुरवृका
ऋतज्ञास्ते  नोऽवन्तु  पितरो  हवेषु॥ (यजु. 1949)
अङि्‌गरसो नः पितरो नवग्वा ऽअथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां  वयं  सुमतो  यज्ञियानामपि  भद्रे  सौमनसे
स्याम॥ (यजु. 1950)
आयन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिभिर्देवयानैः।
अस्मिन्यज्ञे  स्वधया  मदन्तोऽधिब्रुवन्तु    तेऽवन्त्वस्मान्‌॥ (यजु. 1958)
            ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिह्लुतम्‌।
            स्वधास्थ तर्पयत मे पितघ्घ्न्‌।  (यजु. 234)
पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः
स्वधा  नमः  प्रतिपतामहेभ्यः  स्वधायिभ्यः  स्वधा  नमः।
अक्षन्पितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धध्वम्‌। (यजु. 1936)
ये चेह पितरो ये च नेह यांश्च विद्‌म याँ 2 ॥ उ च न प्रविद्‌म त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञँ सुकृतं जुषस्व॥  (यजु. 1967)
ऊँमधुव्वाताऋतायतेमधुक्षरन्तिसिन्धवः।माध्वीर्नःसन्त्वोषधीः॥(यजु. 1328)
ऊँमधुनक्तमुतोषसोमधुमत्पार्थिवप्र रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता॥ (यजु. 1328)
ऊँमधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँऽ2अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥ (यजु. 1329)
ऊँ मधु। मधु। मधु। तृप्यध्वम्‌। तृप्यध्वम्‌। तृप्यध्वम्‌।
फिर नीचे लिखे मन्त्र का पाठ मात्र करे ।
ऊँ नमो वः पितरो रसाय नमो वः पितरः शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः देष्मैतद्वः पितरो वास आधत्त। (यजु. 232)
द्वितीय गोत्रतर्पण-इसके बाद द्वितीय गोत्र मातामह आदि का तर्पण करे, यहाँ भी पहले की ही भांति निम्नलिखित वाक्यों को तीन-तीन बार पढ़कर तिलसहित जल की तीन-तीन अञ्जलियाँ पितृतीर्थ से दे। यथा -
अमुकगोत्राः अस्मन्मातामहः (नाना) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं (गङ्‌गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3  अमुकगोत्राः अस्मत्प्रमातामहः (परनाना) अमुकशर्मा रुद्ररूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मद्‌वृद्धप्रमातामहः (बूढ़े परनाना) अमुकशर्मा आदित्यरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मन्मातामही (नानी) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्प्रमातामही (परनानी) अमुकी देवी रुद्ररूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं  तस्यै स्वधा नमः॥3  अमुकगोत्रा अस्मद्‌वृद्धप्रमातामही (बूढ़ी परनानी) अमुकी देवी आदित्यरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै
स्वधा नमः॥3

पत्न्यादि तर्पण

अमुकगोत्रा अस्मत्पत्नी (भार्या) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्राः अस्मत्सुतः (बेटा) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्कन्या (बेटी) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्राः अस्मत्पितृव्यः (पिता के भाई) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मद्‌भ्राता (अपना भाई) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मत्सापत्नभ्राता (सौतेला भाई) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्पितृभगिनी (बूआ) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥ अमुकगोत्रा अस्मन्मातृभगिनी (मौसी) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधानमः ॥ 1॥ अमुकगोत्रा अस्मदात्मभगिनी (अपनी बहिन) अमुकी देवी  वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्रा अस्मत्सापत्नभगिनी (सौतेली बहिन) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्राः अस्मच्छ्‌वशुरः (श्वसुर) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मद्‌गुरुः अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मदाचार्यपत्नी अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥2॥ अमुकगोत्राः अस्मच्छिष्यः अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मत्सखा अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मदाप्तपुरुषः अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम्‌ इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3
 इसके बाद सव्य होकर पूर्वाभिमुख हो नीचे लिखे श्लोकों को पढ़ते हुए जल गिरावे ।
         देवासुरास्तथा    यज्ञा   नागा   गन्धर्वराक्षसाः
         पिशाचा गुह्मकाः सिद्धाः कूष्माण्डास्तरवः खगाः 
         जलेचरा   भूनिलया    वाय्वाधाराश्च  जन्तवः
      प्रीतिमेते   प्रयान्त्वाशु     मद्‌दत्तेनाम्बुनाखिलाः 
      नरकेषु    समस्तेषु   यातनासु    ये  स्थिताः 
      तेषामाप्यायनायैतद्‌   दीयते   सलिलं     मया  
      येऽबान्धवा बान्धवा वा  येऽन्यजन्मनि   बान्धवाः 
      ते सर्वे  तृप्तिमायान्तु   ये  चास्मत्तोयकाङि्‌क्षणः 
      ऊँ   आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं      देवर्षिपितृमानवाः 
      तृप्यन्तु    पितरः      सर्वे   मातृमातामहादयः 
      अतीतकुलकोटीनां         सप्तद्वीपनिवासिनाम्‌ 
      आब्रह्मभुवनाल्लोकादिदमस्तु        तिलोदकम्‌  
      येऽबान्धवा बान्धवा  वा  येऽन्यजन्मनि  बान्धवाः 
      ते सर्वे   तृप्तिमायान्तु  मया   दत्तेन   वारिणा 

वस्त्र निष्पीडन

तत्पश्चात्‌ वस्त्र को चार आवृत्ति लपेटकर जल में डुबावे और बाहर ले आकर निम्नाङि्‌कत मन्त्र को पढ़ते हुए अपसव्य-भाव से अपने बायें भाग में भूमि पर उस वस्त्र को निचोड़े। (पवित्राक को तर्पण किये हुए जल में छोड़ दे। यदि घर में किसी मृत पुरुष का वार्षिक श्राद्ध आदि कर्म हो तो वस्त्रा-निष्पीडन को नहीं करना चाहिये।) वस्त्र-निष्पीडन का मन्त्र यह है ।
            ये चास्माकं कुले जाता अपुत्राा गोत्रिाणो मृताः।
            ते  गृह्‌णन्तु  मया  दत्तं वस्त्रानिष्पीडनोदकम्‌॥

भीष्म तर्पण

इसके बाद दक्षिणाभिमुख हो पितृतर्पण के समान ही जनेऊ अपसव्य करके हाथ में कुश धारण किये हुए ही बालब्रह्मचारी भक्तप्रवर भीष्म के लिए पितृतीर्थ से तिलमिश्रित जल के द्वारा तर्पण करें। उनके तर्पण का मन्त्र निम्नाङि्‌कत है -
       वैयाघ्रपदगोत्राय साङ्‌कृतिप्रवराय च।
       गङ्‌गापुत्राय भीष्माय प्रदास्येऽहं तिलोदकम्‌।
       अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे॥

अर्घ्यदान-

फिर शुद्ध जल से आचमन करके प्राणायाम करे। तदनन्तर यज्ञोपवीत बायें कंधे पर करके एक पात्र में शुद्ध जल भरकर उसके मध्यभाग में अनामिका से षड्‌दल कमल बनावे और उसमें श्वेत चन्दन, अक्षत, पुष्प तथा तुलसीदल छोड़ दे। फिर दूसरे पात्र में चन्दन से षड्‌दल-कमल बनाकर उसमें पूर्वादि दिशा के क्रम से ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन-पूजन करे तथा पहले पात्र के जल से उन पूजित देवताओं के लिये अर्घ्य अर्पण करे। अर्घ्यदान के मन्त्र निम्नाङि्‌कत हैं -
ऊँ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो ब्वेनऽआवः।
स बुध्न्या ऽउपमा ऽअस्य व्विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च व्विवः॥ (शु. य. 133)
ऊँ ब्रह्मणे नमः। ब्रह्माणं पूजयामि॥
ऊँ इदं विष्णुर्विचक्रमे  त्रोधा निदधे पदम्‌।
समूढमस्यपाँ सुरे स्वाहा॥    (शु.य. 515)
ऊँ विष्णवे नमः। विष्णुं पूजयामि॥
ऊँ नमस्ते रुद्र मन्यव ऽउतो त ऽइषवे नम :।
बाहुभ्यामुत ते नमः॥  (शु. य. 161)
ऊँ रुद्राय नमः। रुद्र्रं पूजयामि॥
ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्‌॥ (शु.य. 363)
ऊँ सवित्रो नमः। सवितारं पूजयामि॥
ऊँ मित्रास्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि।
द्युम्नं चित्राश्रवस्तमम्‌॥ (शु. य. 1162)
ऊँ मित्रााय नमः। मित्रं पूजयामि॥
ऊँ इमं मे व्वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय।  त्वामवस्युराचके॥ (शु. य. 211)
ऊँ वरुणाय नमः। वरुणं पूजयामि॥
सूर्योपस्थान-
इसके बाद निम्नाङि्‌कत मन्त्र पढ़कर सूर्योपस्थान करे -
ऊँ अदृश्रमस्य केतवो विरश्मयो जनाँ॥ 2॥ अनु। भ्राजन्तो ऽअग्नयो यथा। उपयामगृहीतोऽसि सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते योनिः सूर्याय त्वा भ्राजाय। सूर्य भ्राजिष्ठ भ्राजिष्ठस्त्वं देवेष्वसि भ्राजिष्ठोऽहमनुष्येषु भूयासम्‌॥ (शु. य. 840)
ऊँ हप्र सः श्चिषञ्सुरन्तरिक्षसद्धोता व्वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्‌। नृषद्‌द्वरसदृतसद्वयोमसदब्जा गोजा ऽऋतजा ऽअद्रिजा ऽऋतं वृहत्‌॥ (शु. य. 1024)
इसके पश्चात्‌ दिग्देवताओं को पूर्वादि क्रम से नमस्कार करे -
ऊँ इन्द्राय नमः' प्राच्यै॥ 'ऊँ अग्नये नमः' आग्नेय्यै॥ 'ऊँ यमाय नमः' दक्षिणायै॥ 'ऊँ निर्ऋतये नमः'
नैर्ऋत्यै॥ 'ऊँ वरुणाय नमः' पश्चिमायै॥ 'ऊँ वायवे नमः' वायव्यै॥ ऊँ सोमाय नमः' उदीच्यै॥
ऊँ ईशानाय नमः' ऐशान्यै॥ 'ऊँ ब्रह्मणे नमः' ऊर्ध्वायै॥ 'ऊँ अनन्ताय नमः' अधरायै॥
इसके बाद जल में नमस्कार करें -
ऊँ ब्रह्मणे नमः। ऊँ अग्नये नमः। ऊँ पृथिव्यै नमः। ऊँ ओषधिभ्यो नमः। ऊँ वाचे नमः। ऊँ वाचस्पतये नमः। ऊँ महद्‌भ्यो नमः। ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ अद्‌भ्यो नमः। ऊँ अपाम्पयते नमः। ऊँ वरुणाय नमः॥
मुखमार्जन-
फिर नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर जल से मुंह धो डालें-
ऊँ संवर्चसा पयसा सन्तनूभिरगन्महि मनसा सँ शिवेन।
त्वष्टा सुदत्रो व्विदधातु रायोऽनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम्‌॥ (शु.य. 224)
विसर्जन-नीचे लिखे मन्त्र पढ़कर देवताओं का विसर्जन करें-
ऊँ  देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित।
      मनसस्पत ऽइमं देव यज्ञँ स्वाहा व्वाते धाः॥   (शु. य. 221)
समर्पण-निम्नलिखित वाक्य पढ़कर यह तर्पण-कर्म भगवान्‌ को सर्र्मर्पित कर करें-
अनेन यथाशक्तिकृतेन देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणाखयेन कर्मणा भगवान्‌ मम समस्तपितृस्वरूपी जनार्दनवासुदेवः प्रीयतां न मम।
ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः।

Tuesday, 24 September 2013

चिदम्बर साहब हमें जीडीपी के आंकडे़ नहीं, महंगार्इ से निज़ात चाहिये

गिरे हुए शेयर बाजार को चिदम्बर जी ने चढ़ा दिया। दम तोड़ता रुपया सांसे ले रहा है। शायद कोर्इ दवा असर कर रही है। किन्तु सेहत कभी भी  बिगड़ सकत है। सारे कृत्रिम उपाय है, जिसके सहारे अर्थव्यवस्था की गाड़ी खींची जा रही है, किन्तु सारी परिस्थितियां नकारात्मक है। देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। ऐसे समय में चिदम्बर साहब का जीडीपी पर निर्थक बहस करना अच्छा नहीं लगता। वास्तविकता यह है कि जनता आपकी बहस को सुनी अनसुनी कर रही है। जनता सिर्फ महंगार्इ से निज़ात चाहती है। इस संबंध में आपकी सरकार पूरी तरह असफल साबित हुर्इ है। इसमें कोर्इ आश्चर्य नहीं होगा यदि महंगार्इ इसी तरह बेलगाम रही और इस पर आपका नियंत्रण नहीं रहा, तो महंगार्इ आपकी सरकार को ले डूबेगी। चुनाव जितने के लिए आपकी सरकार चाहे जितनी तिकड़मी चाले चल लें, उसकी वापसी संभव नहीं हो सकती।
अच्छा होता चिदम्बर साहब मोदी पर कटाक्ष करने के पहले सरकार के खाद्यमंत्री की कलुषित नीतियों को समझ लेतें, जिनकी कृपा से प्याज पूरे हिन्दुस्तान को रुला रहा है। प्याज अब मिठार्इ और देशी घी तरह अमीरों का भोजन हो गया है। डिजल और पेट्रोल की बढ़ी हुर्इ कीमतों ने पूरे बाज़ार में आग लगा दी है। अब हमें पांच सौ रुपया का नोट ले कर सब्जी लेने जाना पड़ता है। दूध भी अब अमीर परिवारों के बच्चे पीते हैं। आपकी स्वर्ण नीति के कारण सोना इतना महंगा हो गया है कि एक गरीब बाप अपनी बेटी की शादी में एक आध तोला सोना देने की हैसियत खो चुका है।
इसलिए निरर्थक बहस मत कीजिये, काम कीजिये। मोदी के हर वक्तव्य का उत्तर देने के बजाय जनता का दिल जीतने के उपाय कीजिये, ताकि फिर सत्ता में आ सके। भारत की जनता आपके जीडीपी आंकड़ो से कोर्इ मतलब नहीं रखती। उसे तो सिर्फ इस बात की चिंता रहती है कि आज का दिन कैसे गुजरेगा और सीमित आय से पूरे माह का राशन जुटाया जा सकेगा या नहीं।

सुप्रिम कोर्ट की फिर फटकार, निर्लज्ज हो गयी है भ्रष्ट सरकार

कछुए की चाल चल रही सीबीआर्इ कोयले के सच को उजागर नहीं करने की कसम खा ली है। सुप्रिम कोर्ट द्वारा बार-बार की जा रही भत्र्सना और टिप्पणियों का उस पर कोर्इ असर नहीं पड़ रहा है। सरकार के वर्तमान कोयला मंत्री, प्रधानमंत्री और देश के छाया प्रधानमंत्री को सुप्रिय कोर्ट की कोर्इ परवाह नहीं है। न्यायालय की अवमानना की यह पराकाष्ठा है। ऐसी अवमानना भारत के अलावा कोर्इ लोकतांत्रिक देश नहीं कर सकता।
प्रेस और मीडिया भारत के लोकतात्रिक इतिहास की सबसे बड़े भ्रष्टाचार पर मौन साधे हुए हैं। क्योंकि सबसे बड़ी खबर को छोटी खबर के रुप में मीडिया जनता के सामने प्रस्तुत कर रहा है। जबकि देश के प्रधानमंत्री की इस महाघोटाले में संदिग्ध भूमिका है। प्रधानमंत्री की  रहस्यमय चुप्पी देश को विचलित कर रही है। लाखों करोड़ रुपये का गबन हुआ है। कोयला उत्पादन कम होने से देश की आर्थिक प्रगति धीमी पड़ गयी है। बिजली उत्पादन की कर्इ परियोजनाएं अधुरी पड़ी हुर्इ है। देश की जमीन में कोयला दबा हुआ है, किन्तु विदेशों से महंगा कोयला आयात करना पड़ रहा है।
मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी यह मानने को तैयार नहीं है कि एक मंत्रालय की सैंकड़ो महत्वपूर्ण फायले बिना किसी अधिकारी की जानकारी से गायब हो सकती है। सबसे मजेदार बात यह है कि इस संबंध में बयानबाजी तो हो रही है, पर जांच कोर्इ नहीं कर रहा है।
सही बात यह है कि सरकार को सुप्रिम कोर्ट और विपक्ष का कोर्इ भय नहीं रहा है।  मीडिया बिका हुआ है। जनता बेबस है। जनता को अन्याय देखने, सहने और सुनने का विवशता भोगनी पड़ रही है। कोयले का सच देश को तभी मालूम पड़ सकता है, जब भारत की जनता एकजुट हो कर इस सरकार की विदार्इ सुनिश्चित कर दें।

सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की मुजफ्फर नगर रस्म अदायगी यात्रा और सियांसी दांव पेंच

भारतीय राजनीति कितनी घटिया स्तर पर पहुंच गयी है, इसका एक उदाहरण सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की मुजफ्फर नगर रस्म अदायगी यात्रा है।  दोनों नेताओं ने सरकार की अकर्मण्यता और निष्क्रियता पर कोर्इ बयान नहीं दिया। सरकार को यह भी नसीहत नहीं दी कि लोगों के दिलों को जोड़ने के उपाय किये जाय और ऐसे प्रयास किये जाय, ताकि ऐसी दुखान्तिका की पुनरावृति नहीं हों। इशारों-इशारों में सम्भवत: यह भी कह गये हों कि सारा दोष साम्प्रदायिक शक्तियों पर डालने की कोशिश करना। उनके बड़े नेताओं को इधर आने भी मत देना, ताकि दुनियां को यह समझ आ जाय कि सारा किया धरा इनका ही है।
जैसा की अपेक्षा थी, प्रधानमंत्री ने एक सोची समझी रणनीति के तहत एक भाषण में कह दिया कि दंगों को फैलाने में सोशल मीडिया की ही मुख्य भूमिका थी। भाजपा के एक विधायक ने फर्जी विडियों अपलोड कर लोगों को उतेजित किया था। किसी ओर का लिखा हुआ भाषण पढ़ने में प्रधानमंत्री को काफी दिक्कत हो रही थी। वे हिन्दी को सहीं ढंग से उच्चारित नहीं कर पा रहे थे और उनकी आवाज लड़खड़ा रही थी। सही है, घटना की गम्भीरता से उन्हें कोर्इ लेना देना नहीं है। घटना का राजनीतिक लाभ उठाना ही उनका मुख्य मकसद है।
वहीं मेडम सोनिया ने राजस्थान की एक सभा में कह दिया- विकास और साम्प्रदायिकता एक साथ नहीं चल सकते। उनका कहना सही भी है। यदि आप धर्मनिरपेक्ष बिरादरी में आतें हैं, तो आपके बड़े बड़े गुनाह माफ कर दिये जायेंगे, किन्तु आप साम्प्रदायिक शक्तियां कहें जाते हैं, तब आपका छोटा सा अपराध भी माफी के काबिल नहीं है। अपने प्रतिद्वंद्वी को प्रत्येक घटना से जोड़ने और हर मंच पर उनकी आलोचना करना हम नहीं छोडेंगे।
इन दोनों नेताओं के बयानों  से उस शख्सियत का सारा दोष छुप गया, जो इन दंगों को फैलाने का मुख्य अपराधी है। इससे एक तथ्य की पुष्टि होती हैं कि मानवीय त्रासदी को अपनी नज़र से देखने और उसका राजनीतिक लाभ उठाना ही एकमात्र मकसद रह गया है। त्रासदी को राजनीतिक रंग दे कर उसे सुलझाने के बजाय, उलझाना ही इनका मुख्य प्रयोजन रहता है। निश्चय ही, जनता की पीड़ा और उनके दर्द से इन्हें कोर्इ मतलब नहीं है।
साम्प्रदायिक जुनून से जिन परिवारों के सदस्य अनायास ही भेंट चढ़ गये या जिन परिवारों के घर जला दिये गयें, उन परिवारों के प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए अखिलेश सरकार को फटकारा जा सकता था। ऐसी निकम्मी और निर्लज्ज सरकार को बर्खास्त करने की धमकी दी जा सकती थी। परन्तु ऐसा वे इसलिए नही कर पाये, क्योंकि मुलायम सिंह उनके लिए बड़े काम के आदमी है। इस समय सरकार उनकी मेहरबानी से चल रही है और भविष्य में भी जो परिस्थितियां बनेगी, उसमें समाजवादी पार्टी की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। इसलिए इनके पहाड़ जैसे गुनाह के लिए इन्हें क्षमा कर देना एक मात्र विकल्प है।
ग्यारह वर्षों से गुजरात दंगों के गीत गाने वाली पार्टी, जिसने सीबीआर्इ को अब तक गुजरात दंगों के मरे मुर्दे उखाड़ने में लगा रखा है, अखिलेश सरकार की पक्षपातपूर्ण और विवादित भूमिका पर कोर्इ प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया और उन्हें क्षमा दान दे दिया। अर्थात जनता के दुख दर्द से ज्यादा बढ़ कर इनके लिए राजनीतिक स्वार्थ की रोटयां सेकना है। यही कारण है कि उत्तरप्रदेश के एक महाबली मंत्री  ने एक जाबांज पुलिस अधिकारी की गांव में सरे आम  हत्या करा दी, परन्तु उस फर्जी मुठभेड़ की सीबीआर्इ जांच कराना भारत सरकार को याद नहीं आया। उसकी विधवा पत्नी चिल्लाती रही, पर कोर्इ उसकी आवाज सुन नहीं पाया। भारत सरकार भी उस विधवा को न्याय दिलाने के लिए सीबीआर्इ जांच नहीं करवा पायी। किन्तु गुजरात की फर्जी मुठभेड़ो की जांच करने और मोदी को घेरने में सरकार ने पूरी ताकत झोंक  दी हैं। सच है -मोदी को चाहे भारत की जनता प्रधान मंत्री के रुप में देखना चाहती हों, परन्तु हम से बचेंगे, तब बनेंगे न । हम उन्हें किसी भी हालत में छोडेंगे नहीं।
मुजफ्फर नगर दुखान्तिका में दोनों समुदाय के नागरिकों ने चोट खायी है। सरकार की भूमिका को ले कर जनता में गहरा असंतोष है। इस समय लोग खामोश हैं, तो सिर्र्फ इसलिए कि वे समझ गये हैं कि यदि अपना आपा खोया तो नुकसान हमें ही उठाना पड़ेगा। अत: नागरिकों की समझ से ही शांति बनी हुर्इ है।  जो आग लगायी गयी, वह महज ठंड़ी हुर्इ है, उसे बुझायी नहीं गयी है और न ही इसे पूरी तरह से बुझाने की कोशिश की जा रही है।  लोग दहशत में हैं और डरे हुए हैं। अखिलेश सरकार लोगों को दिलों को जोड़ने की कोर्इ सार्थक कोशिश नहीं कर रही है। अलबता मुस्लिम समुदाय में अपनी खोयी पर्इ पैठ जमाने के लिए ऐसी हरकते कर रही है, जिससे तनाव बढे़।
दरअसल राजनेता चाहे किसी भी दल के हों, उन्हें जनता की पीड़ा से ज्यादा अपना राजनीतिक लाभ उठाने की चिंता होती है। अत: दोनो समुदाय के नागरिकों को यह समझ लेना चाहिये कि इनकी सियासी चालों में उलझने के बजाय अपने विवेक का उपयोग करना चाहिये। हमे एक साथ रहना है, यह हकीकत है। भार्इचारा और विश्वास ही हमें जोड़ कर रख सकता है और यही हमें ऐसी दुखद त्रासदी से बचा सकता है।
पूरे देश के मुसलमानों को भ्रमित करने और एक पार्टी विशेष से जुड़ी शख्सियत के प्रति नफरत का भाव भरने के लिए गुजरात के दंगों की याद बराबर सभी धर्म निरपेक्ष राजनीतिक दलों द्वारा दिलायी जाती है, परन्तु गुजरात के मुस्लिम भार्इ 2002 के दंगों को एक हादसा समझते हुए भूल गये हैं। उन्होंने प्रदेश की आर्थिक प्रगति और अपनी खुशहाली को जीवन का एक आदर्श मान लिया है। इसीलिए आज वे सुखी है। उनका व्यवसाय फलफूल रहा है। उनके बच्चों का भविष्य संवर रहा है।  इस तरह वे आज पूरे देश के मुसलमानों के लिए आदर्श बन गये हैं।
मुजफ्फनगर त्रासदी से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि जिन राजनीतिक दलों का मकसद ही मुसलमानों को मूर्ख बना कर अपना सियासी लाभ उठाना है, वे उनके अपने नहीं है। इन राजनीतिक दलों के मन में यदि वास्तव में सहानुभूति होती, तो छियांसठ वर्षों से जिनके वोटों के आधार पर सत्ता सुख भोग रहें हैं, उनकी आर्थिक हालात इतनी बदत्तर नहीं होती। क्यों वे गुजरात के मुसलमानों की तरह समृ़द्ध नहीं हो पाये? जबकि भारत के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के विचारों से तो वहां एक साम्प्रदायिक पार्टी की सरकार का शासन है।
मुसलमानों के हितों के लिए जीने-मरने की कसम खाने वाली अखिलेश सरकार पूरी तरह नंगी हो चुकी है। उसका कुरुप और भद्दा रुप सबके सामने हैं। कांग्रेस के अलावा सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों का मौन इस तथ्य की पुष्टि करता है कि जिन राजनीतिक दलों के शब्दकोष में मानवीय पीड़ा से बढ़ कर सियासत है।  अत: विकास और समृद्धि के लिए सभी भारतीय नागरिकों को जाति और धर्म की संकीर्णता को छोड़ कर एक होना चाहिये। एक हो कर इन राजनीतिक दलों के विरुद्ध मतदान करना चाहिये। हमारा एक ही नारा होना चाहिये- हमे यह मत समझाओं कि हम किस जाति और मजहब को मानते हैं। हमे यह बताओं की पूरे देश के विकास और समृद्धि के लिए आप क्या करना चाहते हैं ?  अब हमे थोथी बातें नहीं, अपनी समस्याओं  से निज़ात चाहिये, आपके पास इसके लिए क्या योजनाएं हैं, उन्हें सविस्तार तार्किक रुप से समझार्इये । कौन राजनीतिक दल कैसा है और उसके राजनेताओं ने क्या किया हैं, इसका फैंसला हम करेंगे आप नहीं। आप तो यह बतार्इयें कि आपने अब तक क्या किया है ? आपने जो गलतियां की है, उससे देश को नागरिकों को हानि पहुंची है, उसका आपको अफसोस है या नहीं ?

Monday, 23 September 2013

हिथ्रो हवार्इ अड्डे पर बाबा रामदेव का अपमान

हिथ्रो हवार्इ अड्डे पर अपने अपमान के संबंध में बाबा राम देव का जो बयान आया है, उस पर स्वाभाविक रुप से कर्इ राजनेताओं के बयान आये हैं। स्वामी भक्ति में अटूट आस्था रखने वाले दरबारी तो वही बोलेंगे, जिससे वे स्तुतिगाण में अपनी प्रवीणता साबित कर सकें। किन्तु एक वामपंथी नेता का यह बयान कि देश को बाबाओं पर विश्वास नहीं करना चाहिये, युक्तिसंगत नहीं है। क्योंकि यह मामला बाबाओं से संबंधित नहीं है। यह मामला एक भारतीय नागरिक  से संबधित है, जिसे आतंकी मान कर अपमानित किया और भारतीय दूतावास और भारत सरकार ने उनकी कोर्इ मदद नहीं की। जिन राजनेताओं के मुहं से हमेशा एक धर्म विशेष से जुड़े प्रसिद्ध व्यक्तियों के ऊपर कीचड़ उछालने में ही मजा आता है, उनकी मानसिकता बदली नहीं जा सकती।
बहरहाल बाबा रामदेव ने जो कुछ कहा है यदि उसमें थोड़ी भी सच्चार्इ है तो यह समझा जा सकता है कि अपने आलोचको और विशेषकर कालेधन और भ्रष्टचार के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष करने वाले व्यक्ति को कभी भी कहीं भी, उसके विरुद्ध किसी भी तरह की बदले की कार्यवाही की जा सकती है।
बाबा राम देव की आशाराम से तुलना नहीं की जा सकती। यदि उनमें आशाराम की तरह एक प्रतिशत भी दुर्बलता होती तो कभी के जेलों में ठूंस दिये जाते।  उनके ऊपर अनगिनित मुकदमे चलते। मीडिया कर्इ तरह की कहानियां बना का प्रचारित करता। उनके पंतजलि आश्रम पर ताला लग जाता। सारी जांच एजेंसियों को कुत्तों की तरह उन पर झपटने के लिए छोड़ देने के बाद भी जो सरकार कुछ नहीं कर पायी, वह सरकार निश्चित रुप से ऐसी घिनौनी हरकत कर सकती है।

प्राइवेट लिमिटेड राजनीतिक पार्टी के वर्चस्व को समाप्त करने के लिए जनजागृति अभियान

किसी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में मतदान करने का मतलब है हम अपना भविष्य व भाग्य उस पार्टी को सौंप रहे हैं। क्योंकि उस पार्टी के पास यदि सत्ता आ जाती है, तब देश की प्राकृतिक संपदा और राजकोष पर उस पार्टी का प्रत्यक्षत: नियंत्रण हो जाता है। सता के इर्द-गिर्द मंडराने वाले दलाल उनसे जुड़ जाते हैं। सार्वजनिक संपति की लूट का सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है। सत्ता मिलने के बाद राजनेताओं के पास धन के अनेक स्त्रोत हाथ लग जाते हैं। सत्ता सुख के साथ ही छप्पर फाड़ कर धन बरसता है। सत्ता न केवल अधिकार, मान-सम्मान व यश दिलाती है, वरन अकूत धन संपदा से झोली भर देती है।
राजनीति दरअसल सत्ता का व्यापार बन गयी है। एक आध को छोड़ कर अधिकांश राजनीतिक पार्टियां एक तरह से प्राइवेट कम्पनियां बन गयी है, जिसका नियंत्रण किसी एक व्यक्ति के पास है और बाकी सब उसके मेनेजर और कर्मचारी है। इन सभी प्राइवेट कम्पनियों का एक ही मकसद रहता है -किसी भी तरह जनता को मूर्ख बना कर  वोट लो और सत्ता पर नियंत्रण स्थापित कर लूट का क्रम जारी रखो।
इस समय देश में एक प्राइवेट लिमिटेड़ राजनीतिक पार्टी का वर्चस्व है। यह पार्टी  पिछले दस वर्षों भारतीय जनता को मूर्ख बना रही है। यह पार्टी एक मालिक के अधिन चलती है और वही मालिक इस देश का भाग्य विधाता बन गया है। उस मालिक की नज़र में एक सौ पच्चीस करोड़ भारतीयों की औकात गुलामों से अधिक नहीं है। उनके विचारों से भारतीय मूर्खों व अज्ञानियों की जमात हैं, जिन्हें धर्म और जाति के नाम पर बांटा जा सकता है। दरिद्र भारतीय भूखे रहते हैं। उनके पास रहने को मकान नहीं है। पूर्णतया साधनविहिन है। अत: वोट पाने के लिए इनके सामने टूकड़े फैंको। ये ललचायेंगे और आपको वोट दे देंगे। सत्ता पाने तक इनकी गरज करों। इन्हें तरह-तरह के सपने दिखाओं और अपने वश में कर लो। सत्ता मिल जाये तब जम कर देश के संसाधनों को लूटों। यदि कोर्इ विरोध में कुछ बोलें तो सरकारी जांच एजंसियों और सस्थाओं से उसे प्रताड़ित करों, ताकि सरकार के कारनामों के विरुद्ध कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पाये।
सत्ता सुख भोगने का एक और उपाय इस कम्पनी ने ओर ढूंढ़ लिया है। देश की आधि से अधिक जनता भारत की दो बड़ी पार्टियों के पक्ष में वोट देती हैं। इन दोनों पार्टियों के पास लोकसभा की तीन चौथार्इ सीटे होती हैं। परन्तु प्रतिद्वंद्वी पार्टी चूंकि अछूत पार्टी है, अत: अधिकांश राजनीतिक पार्टियां उससे जुड़ने के बजाय प्राइवेट लिमिटेड़ कम्पनी के शरण में आ जाती है और इसके सत्ता सुख में कोर्इ व्यवधान नहीं पहुंचता।
यह भारतीय राजीनति की विकृत स्थिति  है और देश की दुर्दशा कारण भी। भारतीय जनता इस स्थिति से बाहर निकलने के छटपटा रही है, किन्तु वह कुछ कर नहीं पा रही है। कर्इ लाख करोड़ रुपये के घपले घोटालें करने के बाद भी एक राजनीतिक पार्टी के नेताओं को जनता के सामने जाने से न तो झेंप है, न झिझक है और न ही अपने कृत्यों का इन्हें पश्चाताप है।
सरकारी एजेंसियों और धन के प्रभाव से प्राइवेट कम्पनी के नेता सभाओं में लाखों की भीड़ एकत्रित कर लेते हैं। लोग उन्हें सुनने और उनकी थोथी और बेतुकी बातों पर तालियां बजाने जाते हैं, जिससे इनका आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है। इनके भाषणों में कोर्इ दम नहीं होता। कोर्इ सार्थक विचार नहीं होता, किन्तु अखबारों के पृष्ठ उन खबरों से भरे रहते हैं। टीवी चेनल इनकी बेतुकी बातों का विशेष अर्थ निकाल कर अपनी तरफ से बहुत कुछ जोड़ कर इनका स्तुति गान करते हैं। इसका सीधा मतलब है कि मीडिया और समाचार पत्रों पर इनका अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हो गया है।
अगर ऐसा ही चलता रहा और हम सभी भारतीय आंख बंद कर इनकी सियासी चालों को मान्यता देते रहें, तो अप्रत्यक्ष गुलामी जकड़ बढ़ती जायेगी। यह प्राइवेट लिमिटेड़ कम्पनी जितने समय तक देश पर आधिपत्य बनाये रखेगी, देश की बर्बादी बढ़ती जायेगी। महंगार्इ, अभाव और दरिद्रता का दंश  झेलना होगा। क्योंकि लूटेरे अंतत: हमें कंगाल ही तो करेंगे।
जन जागृति के माध्यम से देश की जनता को जगाना ही एक मात्र उपाय है, जिससे भारत इस कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त हो सकता है। यह कार्य कोर्इ एक व्यक्ति, एक राजनीतिक पार्टी और एक नेता के बस की बात नहीं है। देश को जगाने के लिए हमें सारे जातीय और धार्मिक संकीर्णता को त्याग कर एक होना पड़ेगा।
‘विचार मंथन ‘ एक मंच है, जिसके माध्यम से हम अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। हम देश को कैसे एक राजनीतिक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त करायें, ताकि हमे एक अप्रत्यक्ष गुलामी और बर्बादी से छुटकारा मिले ? इस विषय में विचार ‘मंथन स्तम्भ’ में आपके विचारों को सम्मिलित किया जा रहा है। देश को जगाने के लिए आपके विचारों का स्वागत किया जायेगा। आप अपने विचार अंग्रेजी या हिन्दी भाषा में व्यक्त कर सकते हैं।

Sunday, 22 September 2013

मुजफ्फर नगर त्रासदी की बुझी हुर्इ आग में और लकड़िया मत डालो !

छोटी सी चिंगारी भयानक आग बन गयी। इस आग ने कर्इ घरों को जला कर खाक कर दिया। हंसते-खेलते परिवारों की दुनियां उजाड़ दी। जिनका कोर्इ कसूर नहीं था, उन्हें सियासी दंड़ भोगने के लिए विवश कर दिया। नफरत के व्यापार से अपने दिल को ठंड़क पहुंचाने वाले खलनायक जब सियासी समीकरणों का लाभ उठाते रहेंगे, तब तक छोटी-छोटी चिंनगारियां लपटों में तब्दील होती रहेगी। लोग अनजाने में मजहबी जुनून की भेंट चढ़ते रहेंगे।
मुजफ्फरनगर त्रासदी एक छोटी अपराधिक घटना से शुरु हुर्इ थी। इस घटना का दो सम्प्रदायों से यदि जोड़ कर नहीं देखा जाता, तो अपराधी तुरन्त पकड़े जा सकते थे, क्योंकि उन्होंने अपराध किया था और कानून में ऐसा कोर्इ प्रावधान नहीं है कि ऐसे अपराधी को मजहबी आधार पर रियायत दी जाय। यदि वे अपराधी पकड़े जाते तो कोर्इ विरोध नहीं होता। एक छोटी सी चिंगारी, लपटे नहीं बनती। विवाद एक आध घर और व्यक्तियों तक सीमित बन कर रह जाता।
किन्तु एक शख्स ने इस चिंगारी को हवा दी और प्रचंड़ साम्प्रदायिक आग में तब्दील कर दिया। ऐसे समय अफवाहें फैलती ही है। लोगों का गुस्सा बे काबू हो जाता है। वे आवेश में सब कुछ भूल जाते है। प्रशासनिक मशीनरी का काम होता है कि अफवाहों को रोकने की कोशिश करें। लोगो का जुनून शांत करने के लिए कठोर कार्यवाही करें, ताकि आग का सीमित प्रभाव ही रहे और वह ज्यादा जगह तक नहीं फैले। परन्तु यदि प्रशासन को यह निर्देश दिया जाय कि निष्क्रिय रह कर तमाशा देखते रहें, क्योंकि इससे सतारुढ़ दल को सियासी लाभ होने की आशा है। ऐसे प्रयास को  बहुत ही  घिनौना सियासी हथकंड़ा कहा जा सकता है।  यदि कोर्इ राजनीतिक दल इसे ही अपना राजधर्म मानता है कि लोगो के कटने-मरने से उसे सियासी लाभ होगा, तो ऐसी मानसिकता वाले दल और उससे जुड़े हुए राजनेताओ को एक क्षण भी सत्ता पर रहने का अधिकार नहीं हैं, क्योंकि जो लोगो के रक्त से अपना राजनीतिक भविष्य संवारना चाहते हैं, वे लोकतंत्रीय शासन प्रणाली के लिए एक कलंक है।
सबसे पहले उसी शख्स को पकड़ा जाना चाहिये, जिसने चिंगारी को हवा दी और इसे साम्प्रदायिक दंगे में तब्दील कर दिया। वह व्यक्ति गुनहगार है। उसका अपराध अक्षम्य है। किन्तु उत्तर प्रदेश सरकार उन  लोगों को अपराधी घोषित करने का प्रयास कर रही है, जो आग बुझाने गये थे। लोगों को समझाने गये थे। स्पष्ट है, इतना होने के बाद भी सरकार सुधरना नहीं चाहती। अब भी घटना को साम्प्रदायिक रंग दे कर एक राजनीतिक पार्टी और उसके नेताओं पर सारा दोष मंढने के बाद स्वयं बचना चाहती है।
परन्तु यह कैसे सम्भव है, जब सरकार आपकी है ? प्रशासन आपका है। आपकी आंखों के सामने सब कुछ घटित हुआ है। आप यह भी जानते हैं कि एक छोटी सी  घटना ने भयानक साम्प्रदायिक रुप क्यों ले लिया, फिर इस मसले को और ज्यादा उलझाने में दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं ? आप यह भी जानते हैं कि जिन्हें पकड़ा जा रहा है, उनका दोष साबित नहीं कर पायेंगे, फिर उन्हें पकड़ा क्यों जा रहा है ? क्या यह  इसलिए नहीं किया जा रहा है कि कुछ लोगों को इससे राहत मिलेंगी और वे उन्हें खलनायक मान लेंगे ? असली गुनहगारों को अपने सियासी लाभ के लिए बचा लिया जायेगा।  सरकार अपने पापों से मुक्त हो जायेगी।
परन्तु जब आग बुझ जाती है, तब बुझी हुर्इ आग दम घोटू धुंआ आंखों में आंसू ला देता है। उस धुंए में उन लोगों की आहें होती है, जिनका बिना किसी कारण के सब कुछ जला दिया गया। ऐसे समय जो मलबे के नज़दीक खड़े अपनी संपति को डबडबायी आंखों से देखते हैं, उन्हें ढाढ़स बंधाया जाता है। उनके आंसूं पौंछे जाते हैं। राज्य उनके नुकसान की भरपायी के लिए आश्वस्त करता है, ताकि उस त्रासदी को भूल कर नया जीवन आरम्भ करें। किन्तु राज्य यह काम कभी नहीं करता कि उस बुझी हुर्इ आग में और लकड़िया डाले ताकि आग पुन: भभक उठे।
उत्तर प्रदेश में इन दिनों नेताओं की गिरफतारी का जो नाटक हो रहा है, उससे यही आभास हो रहा है कि सरकार अपनी गलती को मानने को तैयार नहीं हैं। वह आग को बुझाना नहीं, उसे भभकाना चाहती है, ताकि उसकी आंच पर सियासी स्वार्थ की रोटियां सेकी जा सकें। सियासत का ऐसा गंदा खेल खेलने वाले राजनेताओं के विरुद्ध सभी नागरिकों को एक जुट हो कर इनका राजनीतिक भविष्य संवारने के बजाय, समाप्त कर देना चाहिये। जनता जब तक ऐसे लोगों को सबक नहीं सिखायेगी, ये अपनी हरकतों  से बाझ नहीं आयेंगे।
गुजरात के 2002 के दंगों के बाद गुजरात सभी के लिए खोल दिया गया था। दुनिया भर के पत्रकार आ कर पीड़ितों के बारें में जानकारी जुटा रहे थे। टीवी चेनल लगातार गुजरात के समाचारों का राग अलाप रहे थे। मानवाधिकार अपना डेरा वहां डाले हुए था। वहां किसी को जाने के लिए प्रतिबंधित नहीं किया गया था। एक सरकार और उसके मुख्यमंत्री को बदनाम करने की जितनी कोशिश की जानी थी, उतनी की जा रही थी। आज भी गुजरात दंगों को बार-बार याद किया जाता है। ग्यारह बरस गुजरने के बाद और साम्प्रदायिक दंगों से मुक्त  गुजरात  बन जाने के बाद भी गुजरात दंगो की याद ताजा करने का कोर्इ भी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल और उससे जुडे़ नेता मौका नहीं गंवाते है। केन्द्रीय सरकार,  सीबीआर्इ तथा मानवाधिकार आज भी मरे मुर्दे उखाड़ने में लगे हुए है।
किन्तु जब कांग्रेस के ही एक बड़े नेता मुजफ्फर नगर त्रासदी को 2002 के गुजरात दंगो से भी ज्यादा भयावह बता रहे हैं, फिर उत्तर प्रदेश सरकार को क्यों कटघरे में नहीं खड़ा किया जा रहा है ? क्यों सारे के सारे राजनीतिक दल और मीडिया वास्तविक घटनाओं की जानकारी जुटा कर जनता के समक्ष नहीं ला रहे है ? क्यों एक पार्टी विशेष के नेताओं को ही जाने से रोका जा रहा है ? और मानवाधिकार से जुड़े लोग कहां छुपे हुए हैं ? क्या उत्तर प्रदेश के पीड़ितो को न्याय दिलाने के लिए मानवाधिकार को कोर्इ दिलच्स्पी  नहीं है ?
गुजरात की आग तो बुझ गयी। फिर कभी प्रज्जवलित नहीं हुर्इ, किन्तु उत्तर प्रदेश की आग ठंड़ी नहीं होगी। यह रह रह कर जलेगी, क्योंकि वहां एक धर्मनिरपेक्ष सरकार का शासन है, जो सियासी लाभ के लिए लोगों को बांटने में ही विश्वास करती है। इस धर्मनिरपेक्ष सरकार को अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का समर्थन प्राप्त हैं, अत: सभी चुप है। कोर्इ अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि पर बट्टा नहीं लगाना चाहता।
सभी जानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब होता है- मुस्लिम तुष्टिकरण। याने मुस्लिम समुदाय को मूर्ख बना कर थोक वोटों का जुगाड़ करना। परन्तु मुजफ्फर नगर त्रासदी के बाद मुस्लिम समुदाय को अपने रहनुमाओं की असली सूरत पहचानने में  आ गयी है। कभी रामजन्म भूमि के ताले खुलवा कर बर्र के छज्जे में पत्थर  फैंकने वाली राजनीतिक पार्टी पीड़ितो के आंसू पौंछने जरुर आयी थी, क्योंकि यह पार्टी भी धर्मनिरपेक्ष बिरादरी की है। इस पार्टी को जाने की अनुमति इसलिए दी गयी थी, क्योंकि केवल साम्प्रदायिक शक्तियों का प्रवेश वर्जित कर सरकार यह संदेश देना चाहती है कि हम सभी के लिए साम्प्रदायिक शक्तियां नम्बर एक दुश्मन है। हम सभी धर्मनिरपेक्ष ताकते पाप भी करें तो पुण्य कहलाता है और वे पूण्य करें तब भी हम उसे पाप साबित करना चाहते हैं।

Saturday, 21 September 2013

भाजपा सभी विधानसभाओं में प्रभावी जीत दर्ज कर सकती है, यदि…………….?

चार विधानसभाओं के चुनाव भारतीय राजनीति की नयी दिशा तय करेंगे। इन चुनावों के नतीजे़ भारत की दो बड़ी पार्टियों का भविष्य निर्धारित करेंगे। एतिहासिक घपले-घोटालों का पाप ढ़ो रही एक राजनीतिक पार्टी, जिसने अपने कार्यकाल के अंतिम क्षणों में कोयला आंवटन से संबंधित फाइलों को गायब कर अत्यन्त घटियां व नींन्दनीय कार्य किया है, यदि अपनी लोकलुभावन नीतियों से जनता को प्रभावित करने में सफल हो जाती है, तो यह तथ्य साबित हो जायेगा कि भारतीय जनता भ्रष्टाचार और कुशासन को कोर्इ विशेष महत्व नहीं देती। जनता का मानस आकर्षक विज्ञापनों के जरिये बदला जा सकता है।
परन्तु यदि इन चुनावों में भाजपा बाजी मार लेती हैं, तो इस तथ्य की पुष्टि हो जायेगी कि भारतीय जनता भ्रष्ट शासन व्यवस्था को तिरस्कृत करने के लिए उत्कंठित है और लोकलुभावन योजनाओं और सरकारी विज्ञापनों का ज्वार उसके मानस पर कोर्इ प्रभाव नहीं डाल सकता। यदि ऐसा सम्भव हो पाया, तो भाजपा जीत की माला गले में डाल, दुगुने उत्साह से दिल्ली की  मंजिल पाने के लिए कुलांचे भरने लगेगी।
चुनावी रणनीति बनाने और अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने में कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ रही है। इसका कारण यह है कि पूरी पार्टी डेढ़ व्यक्तित्व के पीछे अनुशासित सेना की तरह खड़ी है, जो अपने कमांड़रों के किसी भी आदेश पर विपक्षी सेना पर आक्रामक हो कर टूट पड़ने के लिए तैयार खड़ी है। आज्ञाकारी अनुचर मंड़ली कभी अपने मालिक के प्रश्नों पर तर्क नहीं करती। मालिक के समक्ष कोर्इ प्रतिप्रश्न नहीं रखती। किसी के मन में यह भाव नहीं है कि मैं अपने मालिक से ज्यादा शक्तिशाली हूं। पूरी सेना का एक ही काम है- अपने मालिक की हर आज्ञा और आदेश को शिरोधार्य करना। यही कारण है कि पूरी पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध रण जीतने के लिए एकजुट है और पार्टी को विधानसभा चुनावों में विजयश्री दिलाने के लिए कटिबद्ध है।
चुनाव जीतने की रणनीति बनाने में भाजपा कांग्रेस से फिसड्डी ही साबित हो रही है। इसका कारण यह है कि  भाजपा आत्मुग्धता के अपने पुराने रोग का इलाज नहीं करा पायी है। भाजपा एक डेढ़ नहीं, कर्इ नेताओं की पार्टी है और प्रत्येक नेता अपना कद  को दूसरे से ऊंचा मानते है। उनका यह सोच है कि  उनका वजन पार्टी में अधिक है और उनके वजन के आधार पर उन्हें महत्व दिया जाना चाहिये।  भाजपा नेता पार्टी की जिम्मेदारी  मोदी के कंधों पर डाल कर इत्मीनान से अपने घरो में बैठे हैं। उन्हें ऐसा लग रहा है कि प्रतिद्वंद्वी के पहाड़ जैसे पाप उन्हें विजय श्री दिला देंगे। याने बैठे बिठाये ही बिल्ली पर भाग्य का छींका टूट कर गिर जायेगा और सब कुछ उन्हें बिना परिश्रम के मिल जायेगा।
उतराखंड, हिमाचल और कर्नाटक की पराजय का यदि पोस्टमार्टम किया जाता तो इस बात का सहज ही अंदाजा लग जाता कि नेताओं की अतृप्त महत्वाकांक्षा ही भाजपा की राह में सब से बड़ा अवरोध है। पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी पर आक्रामक प्रहार नहीं करती। पार्टी नेता इस खुशफहमी में ज्यादा रहते हैं कि जनता महंगार्इ और भ्रष्टाचार से ज्यादा त्रस्त हैं और वे थक हार कर उन्हें ही वोट देंगे। जबकि उक्त तीनों राज्यों के चुनाव परिणामों ने उनकी इस अवधारणा को गलत साबित कर दिया था।
कांग्रेस की स्पष्ट रणनीति है कि किसी भी तरह अपने राज्यों पर पुन: नियंत्रण स्थापित कर लों और भाजपा के दो राज्यों में से एक को छीन लों। इसीलिए भाजपा शासन वाले दो राज्य – मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ जहां भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित मान ली है, कांग्रेस ने भाजपा की दुर्बलता का लाभ उठाने के लिए पूरी ताकत इन दोनो राज्यों में झोंक दी है।
दिल्ली में केजरीवाल फेक्टर से कांग्रेस ज्यादा उत्साहित है। केजरीवाल दिल्ली की अधिकांश सीटों पर भाजपा के मध्यमवर्गीय परिवारों के वोट काटेंगे। यद्यपि जो पांच-सात सीटे जीतने की उनकी सम्भावना बन रही है, उनमें अधिकांश कांग्रेस के खाते की होगी, परन्तु भाजपा को वे सभी सीटों पर भारी नुकसान पहुंचायेंगे और ऐसी स्थिति बना दी जायेगी कांग्रेस और केजरीवाल मिल कर दिल्ली में अपनी सरकार बना लेंगे। यही दोनों पार्टियों का छुपा हुआ ऐजेंडा है। इसमें कोर्इ आश्चर्य नहीं होगा कि  भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल बजा कर राजनीति में प्रवेश करने वाले केजरीवाल सत्ता सुखा भोगने के लिए  अंतत: भ्रष्ट कांग्रेस की गोद में बैठ जायेंगे।
यह नहीं है कि भाजपा नेता इस सारी स्थिति से अवगत नहीं है। यह भी सही है कि भाजपा नेता यदि कठोर परिश्रम करें तो केजरीवाल का राजनीतिक भविष्य संवरने के पलहे ही समाप्त कर सकते हैं। निश्चय ही दिल्ली यदि जीतनी है, तो भाजपा नेताओं को एकजुट हो कर अपनी सारी ताकत झोंकनी होगी, अन्यथा दिल्ली की सत्ता हाथ में आते-आते रह जायेगी।
कांग्रेस के लिए राजस्थान बहुत महत्वपूर्ण राज्य बन गया है। साढ़े चार वर्ष तक कुम्भकर्णी नींद में सोयी राजस्थान सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं में करोड़ो रुपया फूंक दिया है। राजस्थान सरकार ने जितना पैसा जनता में नहीं बांटा, उससे अधिक विज्ञापनों पर खर्च कर दिया है और आचार संहिता लागू होने तक भारी भरकम प्रचार में राजकोष का करोड़ो रुपया बहा दिया जायेगा। राजस्थान कांग्रेस के लिए कितना ज्यादा महत्वपूर्ण प्रदेश है, इसका इस बात से आभास हो जाता है कि एक सप्ताह में दो बार राहुल गांधी राजस्थान आ गये हैं और अब सोनिया गांधी आ रही है।
किन्तु मोदी के अलावा कोर्इ भी राष्ट्रीय नेता राजस्थान नहीं आया। वसुंधरा पूरे प्रदेश का दौरा कर आयी और अब जयपुर में बैठी है। प्रदेश भाजपा नेता सरकार की नीतियों का प्रभावशाली ढंग से विरोघ नहीं कर पा रहे हैं। जबकि कांग्रेस के प्रचार अभियान का जवाब वे प्रदेश के प्रत्येक शहर और गांवों में जा कर दे सकते हैं। वे उन्हें यह भी बता सकते हैं कि जो नेता हवा में उड कर आते हैं।  कड़े पहरे में रहते हैं और कुछ भी बोल कर फुर्र से वापस उड़ जाते हैं, वे लोग आपके अपने नहीं है। आपके शुभचिंतक नहीं है। ये  वही लोग हैं जिनके कारण महंगार्इ अपना रौद्र रुप दिखा रही है और आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया है। इन लोगो ने राजकोष से कर्इ लाख करोड़ रुपया का गबन किया है। इनके पास लूटा गया अरबों रुपया विदेशी बैंकों में जमा है। ये सता इसलिए चाहते हैं, ताकि इनके कारनामें कभी प्रकाश में नहीं आये और आगे भी लूट के कार्य को निर्बाध रुप से जारी रख सकें।
मुफ्त चिकित्सा सुविधा एवं जांच कराने की योजनाओं का जितना धूम-धड़ाके से प्रचार किया जा रहा है वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। राजस्थान के गांवों में पचास-पचास कोस तक प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र नहीं है। न डाक्टर हैं और न दवाएं, तो जनता को मुफ्त दवांए कौन देगा ? कस्बों और शहरों में चिकित्सालय है, किन्तु डाक्टर अधिकांश समय अपने कक्ष में नहीं बैठते हैं। जो बैठते हैं उनके सामने भारी भीड़ उमड़ती है। जो दवाएं वे लिखते हैं, उनसे मरीज ठीक नहीं होते। थक हार कर ये डाक्टरों के घरों में जा कर बाजार की दवाएं लिखाते हैं। या जगह-जगह खुले पाइवेट नर्सिंग होम पर अपना इलाज करवाते है।
मुफ्त चिकित्सा जांच होती कम है, झूठे आंकड़ ज्यादा बनाये जाते हैं, ताकि इन्हें विज्ञापनों में छापा जा सके। राजस्थान सरकार अपनी इन योजनाओं को जितना प्रचार कर रही है, वास्तव में इसका क्षणांस भी सही नहीं है, क्योंकि जांच लेबोरेट्रियों, दवा विक्रेताओं और डाक्टरों की निजी प्रेक्टीस में दस प्रतिशत भी कमी नहीं हुर्इ है।
भाजपा नेताओं के पास  जनता को समझाने के लिए बहुत कुछ है। किन्तु वे सक्रियता दिखाये तो सभी विधानसभाओं में अपनी प्रभावी जीत दर्ज कर सकते हैं।

Friday, 20 September 2013

मंत्री के कंलक से बैचेन-राजस्थान सरकार

समाचार विशेष
इन दिनों राजस्थान के प्रमुख समाचार पत्र सरकारी रेवड़ियों के विज्ञापनों से अटे पड़े हैं। ऐसे समय में सरकार के मंत्री बाबुलाल नागर से सबंधित बलात्कार प्रकरण का समाचार सुर्खियां बना हुआ हैं, जो विज्ञापनों की चमक फिकी कर रहा है।
लुभावने और महंगे चमकदार विज्ञापनों के जरिये अपनी छवि चमकाने में लगी राजस्थान सरकार के चरित्र पर नागर एक बदनुमा दाग़ बन कर उभरे हैं, जो उसकी छवि को कलंकित कर रहे हैं। सरकार ऊहापोह में हैं। आशाराम के प्रति सख्त सरकार नागर के प्रति नरम रुख अपना रही है। सरकार को भय है कि मामला रफा दफा हो जाय, तो ज्यादा अच्छा हैं, क्योंकि यदि पर्ते उधेड़ी जायेगी, तो सरकार नंगी हो जायेगी। छवि चमकाने के लिए विज्ञापनों पर जो खर्च किया जा रहा है, उस पर पानी फिर जायेगा। साढ़े चार साल के कुशासन को विज्ञापनों और रेवड़ियों से ढंकने के प्रयास पर पलिता लग जायेगा। सरकार अजीब सी मुसिबत में घिर गयी है। न खाते बन रहा है और न निगलते बन रहा है।
भंवरी देवी की राख और हड्डियां को रेत के धोरों में दबाने और नहर के पानी में बहाने तक अनजान बनी रही सरकार  अपराध और अपराधियों के संरक्षक की भूमिका निभा रही थी। परन्तु पानी के सिर से ऊपर गुजर जाने के बाद उसे अपने कद्दावर वरिष्ठ मंत्री से पिंड़ छुड़वाने की पीड़ा झेलनी पड़ी थी।
अब बाबुलाल नागर गले में फांस बन कर चुभ रहे हैं। आशाराम को प्रताड़ित करने में कोर्इ कोर कसर नहीं छोड़ने वाली सरकार मौन है। मुखर बन जाय तो सार गुड़ गोबर बन सकता है। परन्तु जनता जब सवाल पूछेगी, तो क्या जवाब देंगे? कानून जब सब के लिए बराबर हैं, तो वे ही कानून आपके मंत्रियों पर क्यों  नहीं लागू होते है ? एक जन कल्याणकारी सरकार के मंत्री ऐसे दागदार क्यों है ?

Thursday, 19 September 2013

गरीबों को बहुत रुलाया और अब उन्हें सपने बेच रहे हैं, दर्द दे कर दवा बांटने का ढोंग कर रहे हैं

जुबान वही बोलती है, जो मस्तिष्क सोचता है। मस्तिष्क में सोचने की क्षमता ही नही है तो वह विचार कहां से लायेगा और उन्हें शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त कैसे करेगा ? सम्भवत: पार्टी राजकुमार को समझाया  कुछ और था, वे बोल कुछ और गये।  अब समझ है ही नहीं कि क्या बोले और कैसे बोले, अत: बोल गये- हम गरीबों के लिए सपने लायें हैं। हम उन्हें सपने दिखाने का हक दिला रहे हैं, पर विपक्ष सपने देखने का हक छीन रहा है। सपने कभी छीने नहीं जाते, न ही उन्हें बुलाया जाता है।  वे तो बरबसर आ जाते हैं।  किस को मालूम पड़ता है कि अमूक व्यक्ति सपने देख रहा है, इसलिए उसे जगा दो और कह दो कि तुम गरीब हो, इसलिए तुम्हें सपने देखने का अधिकार नहीं है। परन्तु शायद उन्हें नहीं मालूम कि गरीबों को डरावने सपने आते हैं। क्योंकि दिन भर जो घुटन होती है, वह सपनो में ज्यादा भयभीत करती है।
दस वर्ष तक गरीबों को रुलाते रहे। अब उन्हें कह रहे हैं- आपको रोने की जरुरत नहीं है। आप हमसे सपने खरीद लों और मुस्कराओ। अब तक आपको भूखा रखते रहे, अब आपको पेट भर खाना खिलायेंगे। अब तक आपको मुफ्त दवार्इयां नहीं मिलती थी, अब दिला रहे हैं। परन्तु विपक्ष ऐसा चाहता ही नहीं कि हम आपकी सेवा करें। अब उन्हें कैसे समझाएं कि जब कर्ता-धर्ता ही आप हैं, तो आपको रोकने की हिम्मत भला कौन कर सकता है ? विपक्ष तो जुम्मा-जुम्म आठ नो साल शासन कर पाया। बाकी बचे  छप्पन -सतावन साल तो आपके खाते में ही गये हैं।
दस वर्ष से आप ही इस देश पर हुकूमत कर रहे  हैं। आपके अलावा आपके पुरखे इस देश पर शासन करते रहे थे। गरीबी हटाओं का नारा भी आपके पुरखो ने ही देश को दिया था। गरीबी तो हटी नहीं, गरीब जरुर हट गये। गरीबों के नाम की माला जपने से गरीब खुश हो कर वोट देते हैं। सम्भवत: इसीलिए आपने गरीबी ! गरीबी !! की रट लगा रखी है। क्योंकि आपको मालूम है इस देश की गरीबी और गरीब ही आपको चुनावों की वैतरणी पार कराने में सहायक होंगे।
कभी आपने कहा था-’ गरीबी’ तो एक मानसिक अवस्था है। गरीबी होती नहीं, वह महसूस होती है। दरअसल आपको मालूम ही नहीं है कि गरीबी आखिर होती क्या है? क्योंकि न आपने गरीबी देखी है और न ही उसे महसूस किया है। आप कभी बाज़ार गये ही नहीं, तो दाल आटे का भाव आपको कैसे मालूम होगा ? आपको सिर्फ यह मालूम है कि गरीब को दो रुपये में गेहूं दिलाने से वह भुखा नहीं मरेगा। परन्तु आपको यह नहीं मालूम कि गेहूं को सुखा चबाने से भूख नहीं मिटती है। गेहूं को पीसाना पड़ता है और दो रुपये किलों में खरीदे गये गेहूं को पिसाने के लिए तीन रुपये खर्च करने पड़ते हैं। रोटी पकाने के लिए र्इंधन भी महंगा हो गया है। सब्जी पचास रुपये किलो मिलती है और दाले अस्सीं रुपये किलो। खाद्य तेल सौ रुपये लीटर। सब्जी पकाने के लिए मसालों की भी जरुरत होती है, उसमें नमक दस रुपये किलो है, बाकी पचास रुपये किलो से कोर्इ कम नहीं मिलता।
अत: मात्र गेहूं दिलाने से भुखों की भूख नहीं मिटती, क्योंकि रोटी आप उपलब्ध करा रहे हैं, परन्तु दाल सब्जी की व्यवस्था कौन करेगा ? क्योंकि आप सस्ता गेहूं दिलायेंगे, तो महंगार्इ बढ़ेगी। गेहूं के अलावा अन्य खाद्य पदार्थ महंगे हो जायेंगे। बात वहीं की वहीं रही। सूखी रोटी खाने से भूख मिटेगी नहीं। अलबता कुपोषण बढ़ जायेगा। कमजोर शरीर जल्दी बिमार हो जायेगा। परन्तु आपने मुफ्त दवा की व्यवस्था कर रखी हैं। गरीब को दवा मिल जायेगी, वह खा लेगा और जिंदा रह जायेगा।
दस वर्ष के शासन के परिणाम जनता के सामने हैं। औद्योगिक उत्पादन घटने से बैरोजगारी बढ़ी। नये रोजगार का सृजन नहीं हुआ, किन्तु जो है, उन पर  छीनने की तलवार लटकी हुर्इ है। रही सही कसर मनरेगा जैसी अस्थायी रोजगार गारंटी ने पूरी कर दी है। क्योंकि अस्थायी रोजगार गारंटी ने स्थायी रोजगार छीन लिए और नये रोजगार का सृजन बंद हो गया। यदि सरकार की नीतियां विनाशकारी नहीं होती तो दस वर्षों में कम से कम एक करोड़ बैरोजगार युवकों को स्थायी रोजगार दिलाया जा सकता था।
हालात इस समय यह बन रहे है कि पिता की नौकर फैक्ट्री में तालाबंदी होने से चली गयी और बैरोजगार पुत्र के पास नौकरी नहीं है। घर में खाने वाले पांच हैं और कमाने वाला कोर्इ नहीं। ऐसे असंख्य परिवार तकलीफें भोग रहे हैं।  सरकार के पास युवकों को देने के लिए काम है ही नहीं और प्राइवेट सेक्टर नौकरियां देने में सक्षम नहीं है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में परिवार ज्यों-त्यों रोते हुए गुजर बसर कर रहा है। ऐसे पीड़ित परिवार को सपने नहीं, रोजगार चाहिये। आमदनी का जरिया चाहिये। थोथी बातों से उनका पेट भरने वाला नहीं है।
बैरोजगार युवकों को झूठे सपने दिखा कर उन्हें भ्रमित क्यों किया जा रहा है? देश के इस समय जो आर्थिक हालात है, उसमें नये रोजगार पैदा करने की सम्भावना बहुत कम है। किन्तु हालात से बेखबर महाशय विपक्ष को कोसने के लिए बैरोजगार युवकों रोजगार मुहैया करने के सपने दिखा रहे हैं। अर्थात हम से गलत काम हो गये, उसके जिम्मेदार हम नहीं हैं, क्योंकि विपक्ष हमारे मार्ग में अवरोध खड़ा करता है। अब हम कुछ करना चाहते हैं, किन्तु विपक्ष हमे रोकता है। अर्थात भारत के मतदाताओं से हमारा निवेदन है कि विपक्ष को मिटा दो और हमे भरपूर ताकत दों, ताकि हम भारतीय जनता को मूर्ख समझते हुए लूटने का काम जारी रख सकें।
गरीबी, भूख, बैरोजगारी वस्तुत: अक्षम प्रशासन, अयोग्य, अनुभवहीन व असंवेदनशी नेतृत्व की उपज होती है। परन्तु  इन शब्दों का मात्र उपयोग यदि चुनावी लाभ के लिए किया जाता है, तो निश्चय ही ऐसे राजनेता इस देश की जनता को मूर्ख समझते हैं। क्योंकि जो दर्द देते हैं, वे ही दवा लाने का स्वांग करते हैं और इसके लिए ढिंढ़ोरा पीटते हैं, तो स्पष्ट हैं उनके मन में दगा है। दवा के बहाने अपना मतलब साधना चाहते हैं।
अत: भारतीय जनता को अब ठगो से सावधान रहना चाहिये। ये आपके अपने नहीं है। चुनावों का मौसम आने पर ये महलों से बाहर निकलते हैं। गरीबी, भूख, बैरोजगारी आदि शब्दों का अपने भाषणों में प्रयोग करते हुए जनता को लुभाने की कोशिश करते हैं। चुनाव का मौसम जाते ही ये पुन: अपनी शान शौकत वाली रंगीन दुनियां में खा ेजाते हैं। तब उन्हें गरीब, गरीबी, भूख, बैरोजगारी जैसे शब्द याद नहीं रहते। ये शब्द उन्हें विचलित नहीं करते। भाषणों के दौरान इन शब्दों का प्रयोग करते हुए जो गुस्सा दिखाते हैं, वह काफूर हो जाता है।  जनता को दिखाये गये हसीन सपने याद नहीं रहते। दरअसल वे अपनी रंगीन दुनियां में वापिस आते ही राजसुख भोगने में इतने मस्त हो जाते हैं कि उनकी सारी स्मृतियां विलुप्त हो जाती है।