आर्थिक सुनामी की प्रलयंकारी लहरे, जो कुछ तटों पर ही जन-जीवन अस्त-व्यस्त नहीं करेगी, वरन पूरे भारत में तबाही का मंजर ले कर आ रही है। ये लहरे हर घर को तबाह कर देगी। हर घर के चुल्हे में पानी डाल कर उसे ठंड़ा कर देगी। हर भारतीय की जेब से चुपचाप पैसा निकाल लेगी। महंगाई का ऐसा रौद्र रुप दिखाई देखा, जैसा आज तक न तो देखा गया, न सुना गया और न ही जिसकी तक़लीफ महसूस की गयी।
समुद्र की प्रलयंकार लहरे तो कुछ घंटों में ही विनाश का तांड़व दिखा कर शांत हो जाती है। किन्तु आर्थिक सुनामी का असर वर्षों तक रहता है। इसके दिये गये घाव बहुत गहरे होते हैं, जो पल भर में जीवन-लीला समाप्त नहीं करते, वरन इंशानों को तड़फा-तड़फा कर मारते हैं।
हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। आंकड़ों के खेल से चमत्कार पैदा करते हैं। अपनी अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर बनाते हुए अघाते नहीं थे। किन्तु आज हमारी सारी पोल खुल गयी है। हमारे थोथे दावों की बखिया उधड़ गयी। दुनियां की सबसे तेज रफतार से भागती हुई अर्थव्यवस्था की गाड़ी अचानक पलटी खा गयी । दरअसल यह डालर और रुपये का खेल नहीं, राज्यव्यवस्था की विफलता का मामला है। यह प्रकरण यह दर्शाता है कि एक सरकार अपनी विश्व्सनीयता खो चुकी है।
हम स्वावलम्बी राष्ट्र नहीं है। हम दुनियां की मदद के मोहताज है। हम दुनिया के सहारे जीते हैं। डालर के बिना एक दिन हमारा गुज़ारा नहीं हो सकता। जिस तरह एक भारतीय परिवार के लिए बिना रुपये के एक दिन बिताना मुश्किल होता है, वैसे ही भारत के लिए बिना डालर के एक दिन नहीं गुजारा जा सकता। हम अपनी जरुरतों का 80 प्रतिशत तेल आयात करते हैं। कल्पना कीजिये यदि हमारे पास डालर नहीं बचे और हम तेल नहीं खरीद पाये, तो क्या होगा? यदि एक दिन पेट्रोल पम्पों पर तेल नहीं मिले, तो पूरा देश थम जायेगा। चारों और त्राहि-त्राहि मच जायेगी। निश्चय ही ऐसी परिस्थितियों में हमे अपना पेट काट कर और सारी जरुरतों में कटौती कर के डालर का जुगाड़ करना पड़ेगा और तेल खरीदना पड़ेगा।
डालर देश में आ नहीं रहा है, परन्तु आने के अनुपात में ज्यादा जा रहा है। शेयर बजार में लगाया गया पैसा विदेशी निवेशक निकाल रहा है। भारत की राजनीतिक व्यवस्था पर विदेशियों को भरोसा नहीं रहा, इसलिए देश में विदेशी रुक गया है। हम वस्तुओं का ज्यादा आयात कर डालर खर्च कर रहे हैं, क्योंकि हमारे उद्याोगों में उत्पादन कम हो गया है या घट गया है। उत्पादन कम होने का कारण उद्याोगो को पर्याप्त बिजली नहीं मिल पा रही है। बिजली उत्पादन ठप्प पड़ा है, क्योंकि बिजली संयत्रों को कोयला नहीं मिल रहा है। कोयला जमीन में दबा पड़ा है, पर निकाला नहीं जा रहा है, क्योंकि सरकार ने कोयला ब्लाक आंवटन की नीति में भयंकर घोटाला किया है। ऐसी फर्जी कम्पनियों को कोयला ब्लाक आंवटित कर दिये, जिन्होंने जमीन से कोयला निकाला ही नहीं।
डालर रुपया खींच रहा है और हम रुपये की दयनीय हालत को असहाय हो कर देख रहे हैं। हमारा रिजर्व रिता हो रहा है। आवक घट गयी है, जावक बढ़ रही है। यह आर्थिक अराजकता 1991 से ज्यादा बदतर स्थिति बनने का संकेत दे रही है। किन्तु सरकार निंश्चिंत बैठी है। वित्तमंत्री के सारे प्रयास प्रतिकूल परिणाम दे रहे हैं। वितत्त मंत्री पूरी दुनियां में घूम-घूम कर निवेशकों को निवेश करने की विनती कर आये। उन्होने विदेशियों को भारत में निवेश करने का भरोसा बंधाया। परन्तु विदेश निवेशक एक डूबते जहाज पर पैसा लगाने से कतरा रहे हैं।
हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री, जिन्होंने 1991 में देश को डूबने से बचाया था, किन्तु आज वे उसे धक्का दे कर डूबो रहे हैं। प्रधानमंत्री अपना अर्थशास्त्र भूल गये हैं। उन्हें यह मालूम ही नहीं रहा कि घोटालों और घपलो से राजकोष का घाटा बढ़ता गया। महंगाई और मुद्र्रास्फिति बढ़ने से ब्याज दरे घटानी पड़ी, जिससे औद्योगिक विकास रुक गया। देश की जो आर्थिक दुर्दशा हुई, उसके जिम्मेदार हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ही है। देश की प्रगति की गाड़ी, जो पलट कर विलोम दिषा में भाग रही है, उसके दोष भी वे ही हैं, क्योंकि जब सरकारी खजाना लूटा जा रहा था, वे खजाने के चैकीदार होते हुए भी निर्विकार बैठे तमाशा देख रहे थे। क्योंकि उन्हें निर्देश था कि वे अपना अर्थशास़्त्र भूल जायें और मात्र पुतला बन कर बैठे रहें।
आर्थिक सुनामी की प्रलयंकारी लहरों को रोकने में नाकायाम सरकार के आधे दर्जन से अधिक आर्थिक विशषज्ञ उस मरीज के आस पास हाथ बांधे और सिर झुकाये खड़ें हैं, जो अंतिम सांसे गिन रहा है और दर्द से छटपटा रहा है। उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के सारे प्रयास वे कर चुके हैं। अर्थात इस रोगी को वे सभी दवाईंया दे चुके हैं, परन्तु इसकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। अब इसे भगवान के भरोसे छोड दिया है। ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे ही इसे बचाये।
देश की आर्थिक दुर्दशा से बेखबर पार्टी आलाकमान और पार्टी राजकुमार अगला चुनाव जीतने की तैयारी में लगे हैं। इन दिनो वे चुनाव जीतने के फार्मुले इज़ाद कर रहे हैं। पार्टी राजकुमार देश की सभी ज्वलन्त समस्याओं के संबंध में हमेशा चुप्पी ही साधे रहते हैं। देश की बरबादी की चिंता उन्होंने न कल की थी और न आज करेंगे। करोड़ो भारतीयों का जीवन चाहे संकट में पड़ जाय, उन्हें तो अपनी सरकार बचानी है। अगला चुनाव जीतना है। उन्हें देश की चिंता नहीं, पार्टी की चिंता ज्यादा है।
परन्तु देश की जनता उनकी असली सूरत पहचान गयी हैं। नीयत भांप गयी है। इस बार उन्हें बख्सने वाली नहीं है। अच्छा रहेगा, वे शीघ्र चुनाव करवा लें, जिससे थोड़ी बहुत इज्ज़त बच जायेगी। चुनावों में जितनी देर होगी, जनता का गुस्सा बढ़ता जायेगा। कहीं ऐसा समय नहीं आ जाय, जब वे जनता से वोट मांगेगे और जनता जूता ले कर उनके पीछे दौड़ेगी।
समुद्र की प्रलयंकार लहरे तो कुछ घंटों में ही विनाश का तांड़व दिखा कर शांत हो जाती है। किन्तु आर्थिक सुनामी का असर वर्षों तक रहता है। इसके दिये गये घाव बहुत गहरे होते हैं, जो पल भर में जीवन-लीला समाप्त नहीं करते, वरन इंशानों को तड़फा-तड़फा कर मारते हैं।
हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। आंकड़ों के खेल से चमत्कार पैदा करते हैं। अपनी अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर बनाते हुए अघाते नहीं थे। किन्तु आज हमारी सारी पोल खुल गयी है। हमारे थोथे दावों की बखिया उधड़ गयी। दुनियां की सबसे तेज रफतार से भागती हुई अर्थव्यवस्था की गाड़ी अचानक पलटी खा गयी । दरअसल यह डालर और रुपये का खेल नहीं, राज्यव्यवस्था की विफलता का मामला है। यह प्रकरण यह दर्शाता है कि एक सरकार अपनी विश्व्सनीयता खो चुकी है।
हम स्वावलम्बी राष्ट्र नहीं है। हम दुनियां की मदद के मोहताज है। हम दुनिया के सहारे जीते हैं। डालर के बिना एक दिन हमारा गुज़ारा नहीं हो सकता। जिस तरह एक भारतीय परिवार के लिए बिना रुपये के एक दिन बिताना मुश्किल होता है, वैसे ही भारत के लिए बिना डालर के एक दिन नहीं गुजारा जा सकता। हम अपनी जरुरतों का 80 प्रतिशत तेल आयात करते हैं। कल्पना कीजिये यदि हमारे पास डालर नहीं बचे और हम तेल नहीं खरीद पाये, तो क्या होगा? यदि एक दिन पेट्रोल पम्पों पर तेल नहीं मिले, तो पूरा देश थम जायेगा। चारों और त्राहि-त्राहि मच जायेगी। निश्चय ही ऐसी परिस्थितियों में हमे अपना पेट काट कर और सारी जरुरतों में कटौती कर के डालर का जुगाड़ करना पड़ेगा और तेल खरीदना पड़ेगा।
डालर देश में आ नहीं रहा है, परन्तु आने के अनुपात में ज्यादा जा रहा है। शेयर बजार में लगाया गया पैसा विदेशी निवेशक निकाल रहा है। भारत की राजनीतिक व्यवस्था पर विदेशियों को भरोसा नहीं रहा, इसलिए देश में विदेशी रुक गया है। हम वस्तुओं का ज्यादा आयात कर डालर खर्च कर रहे हैं, क्योंकि हमारे उद्याोगों में उत्पादन कम हो गया है या घट गया है। उत्पादन कम होने का कारण उद्याोगो को पर्याप्त बिजली नहीं मिल पा रही है। बिजली उत्पादन ठप्प पड़ा है, क्योंकि बिजली संयत्रों को कोयला नहीं मिल रहा है। कोयला जमीन में दबा पड़ा है, पर निकाला नहीं जा रहा है, क्योंकि सरकार ने कोयला ब्लाक आंवटन की नीति में भयंकर घोटाला किया है। ऐसी फर्जी कम्पनियों को कोयला ब्लाक आंवटित कर दिये, जिन्होंने जमीन से कोयला निकाला ही नहीं।
डालर रुपया खींच रहा है और हम रुपये की दयनीय हालत को असहाय हो कर देख रहे हैं। हमारा रिजर्व रिता हो रहा है। आवक घट गयी है, जावक बढ़ रही है। यह आर्थिक अराजकता 1991 से ज्यादा बदतर स्थिति बनने का संकेत दे रही है। किन्तु सरकार निंश्चिंत बैठी है। वित्तमंत्री के सारे प्रयास प्रतिकूल परिणाम दे रहे हैं। वितत्त मंत्री पूरी दुनियां में घूम-घूम कर निवेशकों को निवेश करने की विनती कर आये। उन्होने विदेशियों को भारत में निवेश करने का भरोसा बंधाया। परन्तु विदेश निवेशक एक डूबते जहाज पर पैसा लगाने से कतरा रहे हैं।
हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री, जिन्होंने 1991 में देश को डूबने से बचाया था, किन्तु आज वे उसे धक्का दे कर डूबो रहे हैं। प्रधानमंत्री अपना अर्थशास्त्र भूल गये हैं। उन्हें यह मालूम ही नहीं रहा कि घोटालों और घपलो से राजकोष का घाटा बढ़ता गया। महंगाई और मुद्र्रास्फिति बढ़ने से ब्याज दरे घटानी पड़ी, जिससे औद्योगिक विकास रुक गया। देश की जो आर्थिक दुर्दशा हुई, उसके जिम्मेदार हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ही है। देश की प्रगति की गाड़ी, जो पलट कर विलोम दिषा में भाग रही है, उसके दोष भी वे ही हैं, क्योंकि जब सरकारी खजाना लूटा जा रहा था, वे खजाने के चैकीदार होते हुए भी निर्विकार बैठे तमाशा देख रहे थे। क्योंकि उन्हें निर्देश था कि वे अपना अर्थशास़्त्र भूल जायें और मात्र पुतला बन कर बैठे रहें।
आर्थिक सुनामी की प्रलयंकारी लहरों को रोकने में नाकायाम सरकार के आधे दर्जन से अधिक आर्थिक विशषज्ञ उस मरीज के आस पास हाथ बांधे और सिर झुकाये खड़ें हैं, जो अंतिम सांसे गिन रहा है और दर्द से छटपटा रहा है। उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के सारे प्रयास वे कर चुके हैं। अर्थात इस रोगी को वे सभी दवाईंया दे चुके हैं, परन्तु इसकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। अब इसे भगवान के भरोसे छोड दिया है। ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे ही इसे बचाये।
देश की आर्थिक दुर्दशा से बेखबर पार्टी आलाकमान और पार्टी राजकुमार अगला चुनाव जीतने की तैयारी में लगे हैं। इन दिनो वे चुनाव जीतने के फार्मुले इज़ाद कर रहे हैं। पार्टी राजकुमार देश की सभी ज्वलन्त समस्याओं के संबंध में हमेशा चुप्पी ही साधे रहते हैं। देश की बरबादी की चिंता उन्होंने न कल की थी और न आज करेंगे। करोड़ो भारतीयों का जीवन चाहे संकट में पड़ जाय, उन्हें तो अपनी सरकार बचानी है। अगला चुनाव जीतना है। उन्हें देश की चिंता नहीं, पार्टी की चिंता ज्यादा है।
परन्तु देश की जनता उनकी असली सूरत पहचान गयी हैं। नीयत भांप गयी है। इस बार उन्हें बख्सने वाली नहीं है। अच्छा रहेगा, वे शीघ्र चुनाव करवा लें, जिससे थोड़ी बहुत इज्ज़त बच जायेगी। चुनावों में जितनी देर होगी, जनता का गुस्सा बढ़ता जायेगा। कहीं ऐसा समय नहीं आ जाय, जब वे जनता से वोट मांगेगे और जनता जूता ले कर उनके पीछे दौड़ेगी।
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