हम लाएं हैं तूफां से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के। कवि प्रदीप ने शहीदों के भावों को बहुत ही सुन्दर ढंग से इन पंक्तियों में चित्रित किया है। पर जिन्हें कश्ती सौंपी वे उसे मंझधार में डूबोने ले गये। वे काबिल नहीं थे, जिन्हें देश सौंपा। वे शहीदों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे। वजह यह है कि उनके मन में खोट थी। ऐसे लोगों के पास देश की बागडोर चली गयी, जो देश के लिए नहीं, अपने लिए जीते हैं। जिनके मन देश के लिए जज़्बा नहीं। देश प्रेम नहीं। जनता के दु:ख और तक़लीफों से जिन्हें कोई सरोकार नहीं, ऐसे व्यक्तित्व भारत के भाग्यविधाता बन गये।
किसी देश की यदि अस्सीं प्रतिशत जनता अभावों और तक़लीफ में जिंदगी गुज़ारती है, तब निश्चय ही यह कहा जा सकता है कि सही व्यक्ति सत्ता के शीर्ष पर नहीं पहुंचे। या हमारी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में ऐसी कमियां रह गयी, जिससे सही व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक जीवन में आने के द्वार बंद हो गये। नितांत कलुषित मन:स्थिति वाले व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में आ गये। ऐसे व्यक्ति जो तिकड़मी कला निष्णात थे, सत्ता के शीर्ष पहुंच गये और अपने लिए अकूत धन-संपदा एकत्रित करने में लग गये।
जो राजनीति परिस्थितियां बनी है, उसका सर्वाधिक नुकसान भारत की तरुणाई को उठाना पड़ रहा है। क्यों कि उसके समक्ष कोई स्पष्ट दिशा नहीं है। उसे विरासत में ऐसा समस्याग्रस्त भारत मिला है, जिसे सम्भालना बहुत दुष्कर कार्य हैं। किन्तु अब युवाओं को जिम्मेदारी उठाने में विलम्ब नहीं करना चाहिये। किनारे पर बैठ कर लहरे गिनने से कुछ हाथ आने वाला नहीं है। नदी में कूद कर ही भंवर में फंसी नौका को बचाया जा सकता है।
भारतीय युवाओं को अपनी शक्ति और क्षमता को पहचाना होगा। उनके पास असीम ऊर्जा है। वे देश की दिशा बदल कर उसका कायाकल्प करने में सक्षम हैं। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत का भविष्य युवाओं के हाथों में हैं। निश्चय ही, अब उन्हें आगे आना होगा। इस देश की तकदीर तथा सड़ी-गली और संड़ाध मार रही व्यवस्था को बदलने का संकल्प लेना होगा।
तरुणाई जल के उस तेज बहाव की तरह होती है, जिसे रोक कर उसमे निहित ऊर्जा का समुचित उपयोग कर खेतों का लहलहाया जा सकता है। अर्थात देश को खुशहाली की सौगात दी जा सकती है। उससे विद्युत अर्थात विकास की चकाचौंध उत्पन्न की जा सकती है। परन्तु यदि बरसाती नदी की तरह इसकी ऊर्जा व्यर्थ बहा दी जायेगी, तो इससे देश का विकास अवरुद्ध हो जायेगा। यह बाढ़ की तरह सब कुछ तबाह कर देगी।
अत: भारतीय युवाओं को अपनी पूरी शक्ति भारत राजनीतिक व्यवस्था को बदलने में खर्च करनी होगी। इसके लिए युवाओं को क्या करना होगा यह मूल प्रश्न है। सब से पहले उन्हें राजनीति दलों के समक्ष बहुत ही कठोरता से यह मांग रखनी होगी- ‘हमे खैरात नहीं, रोजगार चाहिये। अपने देश में सम्मानजनक ढंग से जीने का अधिकार चाहिये। देश को सुशासन और जवाबदेय शासन चाहिये। भ्रष्टाचारमुक्त भारत चाहिये।
युवाओं को राजनेताओं द्वारा बांटी जाने वाली खैरात का बहिष्कार करना चाहिये। क्योंकि जनता के पैसे से ही जनता को उपकृत करना, दरअसल वोट पाने के लिए जनता को मूर्ख बनाने की कवायद है। ऐसा करके राजनीतिक दल अपनी अक्षमता को छुपाने और अपने पापों पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। खजाना खाली कर और उधार ला कर जनता के वोट पाने के लिए खैरात बांटने से अर्थव्यवस्था तबाह हो जायेगी। देश पिछड़ जायेगा। चुनावों के बाद जब नयी सरकार अस्तित्व में आयेगी, उसे विवश हो कर सारा भार जनता पर ही डालना पड़ेगा। अत: हमे क्षणिक नहीं, स्थायी खुशी चाहिये। आज जो हमे दिया जा रहा है, यदि कल सूद के साथ हमसे ही वसूल किया जायेगा, तब ऐसी खैरात को लेने के बजाय उसे लौटाना ही उचित रहेगा।
युवाओं को सरकार की उन नीतियों का भी विरोध करना चाहिये, जिससे देश की आर्थिक सेहत पर बहुत बूरा असर पड़ने की सम्भावना हों। महंगाई का विकराल रुप दिखायी दे रहा है, उसके मूल में राजकोषीय घाटा और रुपया का अवमूल्यन है। इसका प्रतिकूल प्रभाव औद्योगिक उत्पादन पर पड़ रहा है। रोजगार की सम्भावनाएं कम हो गयी है। महंगाई और बैरोजगारी दोनो ही स्थितियां दुर्भाग्यजनक है, जिसका सीधा प्रभाव युवाओं के भविष्य पर पड़ता है। अत: वोट पाने और किसी भी तरह पुन: सत्ता में आने के लिए यदि पार्टी चुनावों के ठीक पहले लोकलुभावन घोषणाएं करती है, उस पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए युवाओं को जन आंदोलन छेड़ना चाहिये।
भारतीय संसद की सभी 542 सीटों में युवा मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। यदि भारतीय युवा अपनी शक्ति को पहचान कर एकजुट हो जाय, तो राजनीतिक दलों के सारे समीकरण निष्फल हो जायेंगे। वे सीधे ही राजनीतिक दलों को के समक्ष शर्तें रख सकते हैं- हम आपको तभी वोट देंगे, जब आप एक जवाबदेय और सुशासन का वचन देंगे। हमे भ्रष्टाचार मुक्त भारत चाहिये। आपके पास भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की क्या रणनीति हैं? चुनावी सभाओं में विपक्ष पर किये जाने वाले कटाक्ष नहीं सुनने हैं। हमें आप यह बताईये कि पूर्व में जब आपको शासन सौंपा गया था, तब आप पूरी तरह से अपना दायित्व संभालने में असफल क्यों रहें? क्या अपनी भूलों को स्वीकार कर, यह वचन देंगे कि हम गलतियों को अब पुन: नहीं दोहरायेंगे ?
इसी तरह जो राजनीतिक दल पहले सता में नही था, अब सता में आना चाहता है, उसके सामने शर्तें रखेंगे कि आपकी वे नीतियां क्या होगी, जिसके तहत आप देश की स्थिति सुधार सकते हैं? हमें आपसे वर्तमान सरकार की विफलता की कहानी नहीं सुननी हैं, हमे आप यह बतायें कि आप क्या करने वाले हैं? आपकी उन नीतियों के बारें में व्यावहारिक दृष्टिकोण रखिये, जिसके आधार पर देश की आर्थिक स्थिति सुधार सकते हैं, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकते हैं? ऐसी औद्याोगिक नीति की घोषणा कीजिये, जिससे देश में व्याप्त बेरोजगारी को कम किया जा सकता है।
किसी भ्रष्ट व्यक्ति को यदि राजनीतिक दल अपना प्रत्यासी घोषित करते हैं, उस राजनीतिक दल को स्पष्ट रुप से कहा जा सकता है- अपना प्रत्यासी बदल दीजिये, अन्यथा उसे वोट नहीं मिलेंगे। साथ ही, राजनीतिक दलों के समक्ष प्रत्यासी की योग्यता का मापदंड़ भी रखा जा सकता है। जो राजनीतिक दल, जनता की अपेक्षाओं के आधार पर प्रत्यासी घोषित करेंगे, उसी राजनीतिक दलों को सर्वाधिक वोट मिलेंगे।
नयी सरकार बनने के बाद उस सरकार की कार्यप्रणाली पर युवाओं को कड़ी नज्रर रखनी चाहिये। लोकतंत्र तभी सफल होगा और इसके सुफल आम जन को मिलेगें, जब देश की जनता जागरुक होगी। राष्ट्र को संचालन करने में अपना सहयोग देंगी और सरकार की गलत नीतियों का व्यापक विरोध करेगी।
No comments:
Post a Comment