Sunday, 11 August 2013

राहुल जी, कभी तो देश के साथ के साथ अपना भी सुर जोड़िये !

पाकिस्तानी सेना हमारे दो जवानों के सिर काट कर ले गयी। पूरा देश गुस्से से उबल पड़ा, पर आप चुप्प रहें। कुछ समय बाद फिर पाकिस्तानी सेना ने छल से हमारें पांच जवानों को मार दिया। पूरा देश आहत हुआ, पर आपने अपने आपको इस दुखद त्रासदी से नहीं जोड़ा और हमेशा की तरह फिर चुप्पी साधे रहें।  अब हाफ़िज सईद पाकिस्तान में बैठा भारत में आतंकी हमले करने की धमकी दे रहा है। पूरे देश ने उसकी इस धमकी को गम्भीरता से लिया है। चारों ओर से प्रतिक्रियाएं आ रही है, पर इस विषय पर भी आपके पास बोलने के लिए चंद शब्द नहीं है। इसके पहले भारत के शहरों में जब-जब आतंकी घटनाएं घटी, निर्दोष लोग मारे गये। आप न तो घटना स्थल पर गये और न ही कुछ बोले। आप सदा की भांति चुप्पी साधे रहें।
राहुल जी, समझ में नहीं आता आपके पास शब्दों का इतना अकाल क्यों हैं? आप सार्वजनिक जीवन में रह कर भी सार्वजनिक नहीं बनना चाहते हैं, फिर आपको सार्वजनिक जीवन में आने की क्या विवशता है। यह सही है कि आप सार्वजनिक जीवन में इसलिए हैं, क्योंकि आपका परिवार भारत की राजनीति और सता से जुड़ा रहा है। किन्तु यदि आप इसी बहाने सार्वजनिक जीवन में आ कर सता सुख भोगना आप अपना अधिकार समझते हैं, तो यह आपकी भूल है। भारत लोकतांत्रिक गणराज्य है। भारत की जनता को अपना नेता और सरकार बनाने का संवैधानिक अधिकार है। यह जरुरी नहीं कि किसी खानदान में जन्म लेने से ही कोई जननेता बन जाता है। जननेता वह होता है, जिसका दिल जनता से जुड़ा रहता है। जनता की  पीड़ा से उसका मन आहत होता है। देश में घटित हुई कोई दुखद घटना उसके अंत:करण को विचलित कर देती है। विपदा की घड़ी में वह जनता के साथ जा कर खड़ा हो जाता है।
आप देश के नायक बनना चाहते हैं, पर देश की धड़कन को समझने की क्षमता आपमें नहीं है। क्षमा कीजिये, देश का नायक वह होता है, जो देश की  आवाज़ बनता है। उसकी वाणी में ओज होता है। उसकी एक हुंकार से पूरा देश जाग जाता है। वह जनता के सुर के साथ अपना सुर जोड़ता हैं। किसी दुखद घटना पर पूरे देश के साथ खड़ा होता है। नागरिकों को भरोसा दिलाता है। उनके साथ हुए अन्याय से लड़ने के लिए उनका होंसला बढ़ाता है। परन्तु आप हर दुखद त्रासदी के बाद अपनी प्रतिक्रिया देने से परहेज करते हैं। सम्भवत: देश में घटित हुई प्रत्येक बड़ी घटना पर अपने विचार व्यक्त करने में आप अपनी तौहीन समझते हैं। यह भी सम्भव है कि आपने यह  सब काम अपने दरबारियों को बांट रखा हो। परन्तु एक बात बताईये-’ क्या आपके व्यक्तित्व की ये विशेषताएं आपको प्रभावशाली जननेता बना पायेगी? देश की जनता आपको अपना समझ पायेगी ? आप पर भरोसा कर पायेगी ? आपको देश की बागडोर सौंप कर वह निश्चत हो सकेगी ?’
राहुल जी, समुंद्र के किनारे खड़ा रहना और लहरों से बचना, यह दर्शाता है कि आपके मन में  भारत की जनता के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है।  जनता की पीड़ा से आप आहत नहीं होते। देश की समस्याओं को सुलझाने की आपके पास कोई योजनाएं नहीं है। आप सार्वजनिक जीवन में इसलिए हैं, क्योंकि आपको सता चाहिये। सता से मिलने वाले अधिकार चाहियें। सता के बिना आप जी नहीं सकते, इसलिए सार्वजनिक जीवन में आना आपकी विवशता है। ऐसे कई साक्ष्य मौजूद हैं, जो इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि प्रदेशों या देश में होने वाले  चुनावों के पहले आप जनता से जुड़ने का कृत्रिम प्रयास करते हैं और मतलब निकलने के बाद फिर जनता से दूर हो जाते हैं।
राहुल जी, अब यह शोशा बाजी चलने वाली नहीं है। देश जानना चाहता है कि देश के प्रति आपके मन में विचार क्या है? जनता की समस्यओं को सुलझाने के लिए आपके पास क्या व्यावहारिक योजनाऐं हैं ? भारत के नागरिकों के जीवन की सुरक्षा की चिंता आपको है या नहीं?  पड़ोसी देश की ओछी हरकतों का जवाब आप किस तरह देना चाहते हैं? क्या इस संबंध में आपके कोई विचार है? यदि हैं तो सार्वजनिक रुप से प्रकट कीजिये।
नो वर्ष तक आपकी सरकार का शासन रहा है। कई प्रदेशों में भी आपकी पार्टी की सरकारें हैं। निश्चय ही आपके पास सता के असीमित अधिकार रहें हैं। आपने भरपूर सता का उपभोग किया हैं। किन्तु प्रतिकार में देश को आपकी पार्टी और  सरकार ऐसा कुछ नहीं दे पायी, जिसे उपलब्धि माना जा सके। यदि आपकी पार्टी देश को सुशासन और जवाबदेय प्रशासन देने में विफल रही है, तो आप इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। यदि आप देश को नेतृत्व देने के आकांक्षी है या फिर अपनी पार्टी को सता दिलाना चाहते हैं, तो आपको अपनी विफलता का जवाब देना होगा। यदि नहीं दे पायें तो आखिर किस  किस आधार पर भारत की जनता आपको अपना नेता स्वीकार करें? एक संवदेनाशून्य व्यक्तित्व को महिमांमंड़ित करने से क्या जनता ठगी नहीं जायेगी? जनता पहले भी ठगी जा चुकी है और परिणाम भुगत रही है। अब दुबारा ऐसी गलती दोहराने की जोखिम नहीं उठायेगी।
भारत राष्ट्र को आज कई विकट परिस्थितियों से सामना करना पड़ रहा है। हर क्षेत्र में अनेक समस्याओं को समाधान ढूंढ़ना है। अत: अब देश को स्वपन दृष्टा नेतृत्व चाहिये। ऐसा नेतृत्व जिसके पास अपना विजन हों। दूर दृष्टि हों। उसके विचार स्पष्ट हो। सार्थक और फलदायी नीतियों को लागू करने की उत्कंठा मन हो। देश की  समस्याओं को समझने की और उन्हें सुलझाने की क्षमता रखता हों।
देश की जनता कठपुतली नेतृत्व से ऊब चुका है। अब भारत की जनता को ऐसा नेता स्वीकार नहीं है, जो मौनी बाबा बन कर सदन में बैठा रहे। विपक्ष उन्हें बोलने पर विवश करें, पर वह कुछ भी बोलने से परहेज करें। यह सब कुछ इसलिए होता हैं कि वह व्यक्तित्व  बनाया गया नेता है, जन नेता नहीं है। उनकी कोई जमीन नहीं है। उनकी रिकार्ड तब भी बजती है, जब उसमें शब्द भरे जाते हैं। रिकार्ड का स्वीच ऑफ होता है, तब वे कुछ भी बोलने में असमर्थ होते हैं। ऐसा निर्जीव और अवश नेतृत्व भारतीय लोकतंत्र के लिए अभिशाप हैं। क्योंकि जिनका हाथ में वास्तव में सता के सूत्र हैं, वे चुपचाप बैठे तमाशा देखते रहते हैं।
राहुल जी, देश की जनता को मूर्ख बनाने का खेल अब ज्यादा देर तक चलने वाला नहीं है। पर्दे के पीछे बैठ कर देश चलाने का उपक्रम आपको अब छोड़ना पडे़गा। देश का नेता बनना है, तो ताल ठोक सामने आईये और अपने आप में नेतृत्व क्षमता के गुण भरियें।  जनता  आपको तभी स्वीकार करेगी, जब आप चुप्पी तोड़ेगे और देश की जनता के सुर के साथ अपना सुर मिलायेंगे।

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