" आम आदमी को सस्ता अनाज "
एक बार एक राजा अपने बहुत बड़े राज्य में भ्रमण करने निकल पड़ा। जब वह वापिस महल में आया, उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा बोला कि मार्ग में पड़े कंकड़ पत्थर उसके पैरों में चुभ गए थे। इसका कुछ इंतजाम करना चाहिए। राजा ने आदेश दिया कि राज्य की सारी सड़कें चमड़े की बना दी जाएं।
सब मंत्री सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो पक्का था कि इस के लिए बहुत अधिक धन की जरूरत थी। बहुत सारे सड़क बनाने वाले, बड़ी मात्रा में रबड़, ढुलाई आदि का प्रबंध भी नहीं था। और आज्ञा पालन करने पर थोड़ी सड़कें बनने में ही सारा खजाना खाली हो जाएगा जिससे राज्य में घोर संकट आ जाएगा। सब मंत्री ये जानते थे, पर डर के मारे बोल नहीं पा रहे थे।
फिर एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने डरते हुए राजा से कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ। एक अच्छी और निहायत सस्ती तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और खजाना भी खाली होने से बच जाएगा।
राजा हैरान था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की जुर्रत की थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की चमड़े की सड़कें बनाने के बजाय आप चमड़े के एक छोटे टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज भरी दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए एक अच्छा जूता बनवाने का आदेश दे दिया। इससे समस्या का हल भी निकल गया और राज्य भी घोर विपत्ति से बच गया।
खाद्य सुरक्षा बिल :
अब अस्सी करोड़ जनता के लिए सरकार के खाद्य सुरक्षा बिल को ही लो। देश की अर्थवयवस्था जो पहले ही चरमराई हुई है, इस बिल से उस पर सवा लाख करोड़ रुपये का और ज्यादा भार पड़ेगा। अनाज के भंडारण, ढुलाई, वितरण, सड़ने से बचाने आदि के लिए और अधिक धन की जरुरत होगी। व्याप्त भ्रष्टाचार पर बिना लगाम लगाए, असली जरूरतमंद 'आम आदमी' को इसका लाभ मिलना असंभव दिखता है। लोक लुभावन बातों से किसी बिल की उपयोगिता नहीं आंकी जा सकती और विपक्ष जाने अनजाने इस बिल का विरोध नहीं कर कर पा रहा।
इससे अच्छा तो सार्वजनिक रसोई हर गाँव, हर शहर में बना देते जिससे 1. गरीब को सस्ता और 2. अति गरीब को मुफ्त भोजन मिलता। कई लोगों को रोज़गार भी मिलता। ऐसे गरीब और अति गरीब जनता की गिनती अस्सी करोड़ से बहुत कम होती। और जैसे जैसे इन गरीबों को रोज़गार मिलता जाता, इनकी संख्या समय के साथ और कम होती जाती। ऐसी रसोइयाँ तमिलनाड सरकार चुस्त दुरुस्त शासन से सफलतापूर्वक चला रही है। इससे ना केवल गरीबों को संतुलित पोष्टिक भोजन मिलता अपितु पहले से चरमराई हुई अर्थवयवस्था डूबने से बच जाती।
हमें हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। विशेषज्ञों के साथ सच्चाई और इमानदारी से बातचीत कर और भी अच्छे वय्वाहरिक हल सोचे और निकाले जा सकते हैं।
जय हिन्द !
एक बार एक राजा अपने बहुत बड़े राज्य में भ्रमण करने निकल पड़ा। जब वह वापिस महल में आया, उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा बोला कि मार्ग में पड़े कंकड़ पत्थर उसके पैरों में चुभ गए थे। इसका कुछ इंतजाम करना चाहिए। राजा ने आदेश दिया कि राज्य की सारी सड़कें चमड़े की बना दी जाएं।
सब मंत्री सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो पक्का था कि इस के लिए बहुत अधिक धन की जरूरत थी। बहुत सारे सड़क बनाने वाले, बड़ी मात्रा में रबड़, ढुलाई आदि का प्रबंध भी नहीं था। और आज्ञा पालन करने पर थोड़ी सड़कें बनने में ही सारा खजाना खाली हो जाएगा जिससे राज्य में घोर संकट आ जाएगा। सब मंत्री ये जानते थे, पर डर के मारे बोल नहीं पा रहे थे।
फिर एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने डरते हुए राजा से कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ। एक अच्छी और निहायत सस्ती तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और खजाना भी खाली होने से बच जाएगा।
राजा हैरान था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की जुर्रत की थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की चमड़े की सड़कें बनाने के बजाय आप चमड़े के एक छोटे टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज भरी दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए एक अच्छा जूता बनवाने का आदेश दे दिया। इससे समस्या का हल भी निकल गया और राज्य भी घोर विपत्ति से बच गया।
खाद्य सुरक्षा बिल :
अब अस्सी करोड़ जनता के लिए सरकार के खाद्य सुरक्षा बिल को ही लो। देश की अर्थवयवस्था जो पहले ही चरमराई हुई है, इस बिल से उस पर सवा लाख करोड़ रुपये का और ज्यादा भार पड़ेगा। अनाज के भंडारण, ढुलाई, वितरण, सड़ने से बचाने आदि के लिए और अधिक धन की जरुरत होगी। व्याप्त भ्रष्टाचार पर बिना लगाम लगाए, असली जरूरतमंद 'आम आदमी' को इसका लाभ मिलना असंभव दिखता है। लोक लुभावन बातों से किसी बिल की उपयोगिता नहीं आंकी जा सकती और विपक्ष जाने अनजाने इस बिल का विरोध नहीं कर कर पा रहा।
इससे अच्छा तो सार्वजनिक रसोई हर गाँव, हर शहर में बना देते जिससे 1. गरीब को सस्ता और 2. अति गरीब को मुफ्त भोजन मिलता। कई लोगों को रोज़गार भी मिलता। ऐसे गरीब और अति गरीब जनता की गिनती अस्सी करोड़ से बहुत कम होती। और जैसे जैसे इन गरीबों को रोज़गार मिलता जाता, इनकी संख्या समय के साथ और कम होती जाती। ऐसी रसोइयाँ तमिलनाड सरकार चुस्त दुरुस्त शासन से सफलतापूर्वक चला रही है। इससे ना केवल गरीबों को संतुलित पोष्टिक भोजन मिलता अपितु पहले से चरमराई हुई अर्थवयवस्था डूबने से बच जाती।
हमें हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। विशेषज्ञों के साथ सच्चाई और इमानदारी से बातचीत कर और भी अच्छे वय्वाहरिक हल सोचे और निकाले जा सकते हैं।
जय हिन्द !
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