काफी समय पहले, 1998 में प्याज की लगातार बढ़ती कीमतों ने दिल्ली विधानसभा
चुनाव में बीजेपी का बेड़ा गर्क कर दिया था। प्याज वैसे तो पूरे देश में
लेकिन खासकर उत्तर भारत में खान-पान का जरूरी हिस्सा है। और अब, जब दिल्ली
समेत कुछ अहम राज्यों में विधानसभाओं के बाद आम चुनाव होने वाले हैं, इसके
दाम आसमान छू रहे हैं। यह बहुत मजेदार है कि चुनाव के करीब आते ही प्याज की
कीमत कैसे चढ़ जाती है। जो लोग इसके लिए प्राकृतिक या आर्थिक कारणों को
जिम्मेदार मानते हैं, वे असली खेल नहीं समझ पा रहे हैं।
हालांकि, बीजेपी को इस बार खुश होना चाहिए। इस बार जिसको इसकी तपिश बर्दाश्त करनी होगी, वह उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है, जिसकी केंद्र और दिल्ली दोनों जगहों पर सरकारें हैं। यही स्थिति 1998 में बीजेपी की थी। हालांकि, पिछले कुछ सालों में जिस तरह का घटनाक्रम रहा है, बीजेपी को 1998 की कांग्रेस के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में होना चाहिए था। कांग्रेस को सिर्फ प्याज की कीमतों से नहीं जूझना है। इसे सालों के कुशासन और घोटलों की कीमत भी चुकानी पड़ेगी। आए दिन इसने घोटाले थाल में सजाकर विपक्षियों के सामने मुद्दे परोसे हैं। स्थिति ऐसी है कि आम आदमी भी इन घोटालों से ऊब चुका है। इस फेहरिस्त में अब यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के पावरफुल दामाद रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदे से जुड़ा विवाद भी शामिल हो चुका है।
जिस इलाके में यह विवादित सौदा हुआ है, वहां के वर्तमान कांग्रेस सांसद राव इंद्रजीत सिंह ने पूरे मामले में जांच की मांग करके कांग्रेस की मुश्किल और बढ़ा दी है। इंद्रजीत सिंह ने कहा है कि आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के आरोपों की जांच होनी चाहिए कि क्या भूपिंदर सिंह हु्ड्डा सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर रॉबर्ट वाड्रा को फायदा पहुंचाया है।
प्रभुत्व के लिए हरियाणा के दो कांग्रेसी नेताओं की जंग ने बड़ा तूफान खड़ा कर दिया, क्योंकि इसमें वाड्रा का नाम जुड़ा हुआ है। पार्टी मुखिया और उनके परिवार पर हमले की आहट भर से सभी सीनियर नेता प्रवक्ता में तब्दील हो गए और बागी रुख दिखा रहे सांसद पर भिड़ पड़े। मानो वे कह रहे हों कि आप अपनी लड़ाई लड़िए, लेकिन 'पवित्र और सर्वोच्च' की तरफ उंगली दिखाने की आपकी हिम्मत कैसे हो गई। लेकिन, घोटालों की तरह लोग इससे भी ऊबने लगे हैं।
बीजपी इन मुद्दों पर हवा बनाने में विफल रही है और इसकी वजह से उसके ज्यादातर समर्थक भड़के हुए हैं। ऐसा लग ही नहीं रहा है कि यही वह पार्टी है, जो चाहे देश का कोई कोना हो और कोई नेता हो, एक सुर में बोलती दिखती थी। अब तो लगता है कि यह पार्टी एक मंच से भी एक सुर में नहीं बोल सकती। पार्टी के नेता एक दूसरे को निस्तेज करने में इस कदर व्यस्त हैं कि कांग्रेस मजे में गा रही है। आश्चर्य नहीं है कि इंटरनेट पर सक्रिय रहने वाले लोगों ने घोटाले को लेकर यूपीए के रेकॉर्ड को देखते हुए यूनाइटेड प्लंडर अलायंस का नाम दिया तो बीजेपी भी भारतीय झगड़ा पार्टी का तमगा पा गई। इसके लिए पार्टी किसी और को जिम्मेदार ठहरा भी नहीं सकती है। इसके लिए पार्टी के वे नेता ज्यादा जिम्मेदार हैं, जो भूल चुके हैं कि वे खुद से ऊपर देश को रखने की कसमें खाते हैं। ईमानदारी से कहूं तो आज के माहौल में 'खुद से ऊपर देश' सुनने में ही भरोसा करने लायक नहीं लगता है।
बेशक दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के अलावा दूसरी पार्टियां भी चुपचाप नहीं बैठी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ा चुके क्षत्रपों की भी अपनी लड़ाइयां हैं। उत्तर प्रदेश में बीएसपी बनाम एसपी है, जहां दुर्गा शक्ति के मामले को लापरवाही से निपटाए जाने के बाद मायवाती को बाप-बेटे की यादव जोड़ी के खिलाफ हमला बोलने के लिए पर्याप्त मसाला मिल गया है और मीडिया में यह खूब जगह भी पा रहा है। नरेंद्र मोदी की लाख कोशिशों के बाद भी महाराष्ट्र में चचेरे भाई उद्धव और राज ठाकरे एक-दूसरे को बख्शने के संकेत नहीं दे रहे हैं, जबकि वे जानते हैं कि उनके इस झगड़े में कांग्रेस और एनसीपी को फायदा होगा। महाराष्ट्र के मामलों में दोनों एक-दूसरे पर 'गोली' दागने के मौके नहीं गंवाते।
नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष की वजह से बिहार में धमाके के साथ बीजेपी का साथ छोड़ने वाले नीतीश कुमार भी ढलान पर हैं। उन्हें अपने मंत्रियों पर नियंत्रण बनाए रखने में मुश्किल हो रही है, जो इन दिनों जनभावना के खिलाफ राजनीतिक रूप से गलत बयान दे रहे हैं।
देश चुनाव के लिए तैयार हो रहा है। यह चुनाव कई मायनों और कई वजहों से अहम और ऐतिहासिक साबित हो सकता है। रोमांचक, मजेदार और लुभावने दौर के लिए तैयार हो जाइए। अभी कई प्रत्यक्ष और परोक्ष लड़ाइयां सामने आएंगी। कई कमजोर लोग भी मजबूती दिखाएंगे और किसी-किसी मामले में यह सच्चा भी होगा क्योंकि गलत को बर्दाश्त करने की उनकी क्षमता जवाब दे चुकी होगी। कुछ मामले में विपक्ष के हाथों में खेलते लोग भी सामने आएंगे, जिसके पक्ष में हवा बनती दिख रही है। आखिर मौकापरस्ती उनके लिए एकदम फिट है।
मैं और आप, जो इस तमाशे को देख रहे हैं, को अब ज्यादा सतर्कता से इस पर नजर रखने की जरूरत है। हमें असली और फर्जी लोगों की पहचान करनी होगी और ऐसे लोगों को चुनना होगा, जो हाल के सालों में देश में गर्त की ओर जा रही प्रवृत्ति को थाम सकें। एक लाइन में कहूं तो हमारे पास लापरवाह होने का मौका नहीं है।
हालांकि, बीजेपी को इस बार खुश होना चाहिए। इस बार जिसको इसकी तपिश बर्दाश्त करनी होगी, वह उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है, जिसकी केंद्र और दिल्ली दोनों जगहों पर सरकारें हैं। यही स्थिति 1998 में बीजेपी की थी। हालांकि, पिछले कुछ सालों में जिस तरह का घटनाक्रम रहा है, बीजेपी को 1998 की कांग्रेस के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में होना चाहिए था। कांग्रेस को सिर्फ प्याज की कीमतों से नहीं जूझना है। इसे सालों के कुशासन और घोटलों की कीमत भी चुकानी पड़ेगी। आए दिन इसने घोटाले थाल में सजाकर विपक्षियों के सामने मुद्दे परोसे हैं। स्थिति ऐसी है कि आम आदमी भी इन घोटालों से ऊब चुका है। इस फेहरिस्त में अब यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के पावरफुल दामाद रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदे से जुड़ा विवाद भी शामिल हो चुका है।
जिस इलाके में यह विवादित सौदा हुआ है, वहां के वर्तमान कांग्रेस सांसद राव इंद्रजीत सिंह ने पूरे मामले में जांच की मांग करके कांग्रेस की मुश्किल और बढ़ा दी है। इंद्रजीत सिंह ने कहा है कि आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के आरोपों की जांच होनी चाहिए कि क्या भूपिंदर सिंह हु्ड्डा सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर रॉबर्ट वाड्रा को फायदा पहुंचाया है।
प्रभुत्व के लिए हरियाणा के दो कांग्रेसी नेताओं की जंग ने बड़ा तूफान खड़ा कर दिया, क्योंकि इसमें वाड्रा का नाम जुड़ा हुआ है। पार्टी मुखिया और उनके परिवार पर हमले की आहट भर से सभी सीनियर नेता प्रवक्ता में तब्दील हो गए और बागी रुख दिखा रहे सांसद पर भिड़ पड़े। मानो वे कह रहे हों कि आप अपनी लड़ाई लड़िए, लेकिन 'पवित्र और सर्वोच्च' की तरफ उंगली दिखाने की आपकी हिम्मत कैसे हो गई। लेकिन, घोटालों की तरह लोग इससे भी ऊबने लगे हैं।
बीजपी इन मुद्दों पर हवा बनाने में विफल रही है और इसकी वजह से उसके ज्यादातर समर्थक भड़के हुए हैं। ऐसा लग ही नहीं रहा है कि यही वह पार्टी है, जो चाहे देश का कोई कोना हो और कोई नेता हो, एक सुर में बोलती दिखती थी। अब तो लगता है कि यह पार्टी एक मंच से भी एक सुर में नहीं बोल सकती। पार्टी के नेता एक दूसरे को निस्तेज करने में इस कदर व्यस्त हैं कि कांग्रेस मजे में गा रही है। आश्चर्य नहीं है कि इंटरनेट पर सक्रिय रहने वाले लोगों ने घोटाले को लेकर यूपीए के रेकॉर्ड को देखते हुए यूनाइटेड प्लंडर अलायंस का नाम दिया तो बीजेपी भी भारतीय झगड़ा पार्टी का तमगा पा गई। इसके लिए पार्टी किसी और को जिम्मेदार ठहरा भी नहीं सकती है। इसके लिए पार्टी के वे नेता ज्यादा जिम्मेदार हैं, जो भूल चुके हैं कि वे खुद से ऊपर देश को रखने की कसमें खाते हैं। ईमानदारी से कहूं तो आज के माहौल में 'खुद से ऊपर देश' सुनने में ही भरोसा करने लायक नहीं लगता है।
बेशक दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के अलावा दूसरी पार्टियां भी चुपचाप नहीं बैठी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ा चुके क्षत्रपों की भी अपनी लड़ाइयां हैं। उत्तर प्रदेश में बीएसपी बनाम एसपी है, जहां दुर्गा शक्ति के मामले को लापरवाही से निपटाए जाने के बाद मायवाती को बाप-बेटे की यादव जोड़ी के खिलाफ हमला बोलने के लिए पर्याप्त मसाला मिल गया है और मीडिया में यह खूब जगह भी पा रहा है। नरेंद्र मोदी की लाख कोशिशों के बाद भी महाराष्ट्र में चचेरे भाई उद्धव और राज ठाकरे एक-दूसरे को बख्शने के संकेत नहीं दे रहे हैं, जबकि वे जानते हैं कि उनके इस झगड़े में कांग्रेस और एनसीपी को फायदा होगा। महाराष्ट्र के मामलों में दोनों एक-दूसरे पर 'गोली' दागने के मौके नहीं गंवाते।
नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष की वजह से बिहार में धमाके के साथ बीजेपी का साथ छोड़ने वाले नीतीश कुमार भी ढलान पर हैं। उन्हें अपने मंत्रियों पर नियंत्रण बनाए रखने में मुश्किल हो रही है, जो इन दिनों जनभावना के खिलाफ राजनीतिक रूप से गलत बयान दे रहे हैं।
देश चुनाव के लिए तैयार हो रहा है। यह चुनाव कई मायनों और कई वजहों से अहम और ऐतिहासिक साबित हो सकता है। रोमांचक, मजेदार और लुभावने दौर के लिए तैयार हो जाइए। अभी कई प्रत्यक्ष और परोक्ष लड़ाइयां सामने आएंगी। कई कमजोर लोग भी मजबूती दिखाएंगे और किसी-किसी मामले में यह सच्चा भी होगा क्योंकि गलत को बर्दाश्त करने की उनकी क्षमता जवाब दे चुकी होगी। कुछ मामले में विपक्ष के हाथों में खेलते लोग भी सामने आएंगे, जिसके पक्ष में हवा बनती दिख रही है। आखिर मौकापरस्ती उनके लिए एकदम फिट है।
मैं और आप, जो इस तमाशे को देख रहे हैं, को अब ज्यादा सतर्कता से इस पर नजर रखने की जरूरत है। हमें असली और फर्जी लोगों की पहचान करनी होगी और ऐसे लोगों को चुनना होगा, जो हाल के सालों में देश में गर्त की ओर जा रही प्रवृत्ति को थाम सकें। एक लाइन में कहूं तो हमारे पास लापरवाह होने का मौका नहीं है।
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