Saturday, 31 August 2013

राजनेता की पारी खेलते खेलते आप थक गये हैं प्रधानमंत्री जी !

आपने अपने ज़मीर के साथ दगा किया है। आपने एक व्यक्तित्व को उपकृत करने के लिए एक सौ पच्चीस करोड़ भारतीयों के साथ दगाबाजी की है। पिछले साढ़े नो वर्षो में बार-बार राजनेता बनने के प्रयास में अपने भीतर बैठे अर्थशास्त्री को मारने का प्रयास करते रहे हैं। आप सफल अर्थशास्त्री जरुर थे, परन्तु विफल राजनेता साबित हुए हैं। राजनेता की पारी खेलते खेलते आप थक गये हैं, प्रधानमंत्री जी ! शायद इसलिए आप बौखला गये हैं।
आदमी तभी टूटता है, जब उसका अंतःकरण उसे धिक्कारता है। अपने तप के बल पर अर्थशास्त्री बन कर जो पूण्य आपने कमाया वह  इन साढ़े नो वर्षों में राजनेता बन कर गवां दिया। आप एक अर्थशास्त्री बन कर सच बोलने के प्रतिबंधित किये गये हैं और राजनेता बन कर झूठ बोलना आपको आता नहीं, इसीलिए बहुत ही गम्भीर समस्याओं के समय आप चुप्पी साधे रहते हैं। आपको मौनी बाबा कहा जाता है, क्योंकि आपका मौन देश को अखरता है। यही कारण है कि आपको इतिहास के सबसे कमज़ोर प्रधानमंत्री का खिताब मिला हुआ है। इसके अलावा भी कई तरह के अलंकारों से अलंकृत किया जाता रहा है। आप पर जितने कटाक्ष किये गये हैं उतने षायद ही दुनियां के किसी लोकतांत्रिक देश के राष्ट्राध्यक्ष को ले कर किये गये होंगे।
विपक्ष इसका दोषी हो सकता है, किन्तु आप अपनी क्षमता को क्यों नहीं आंकते हैं ? आप यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं, कि भारतीय संविधान ने प्रधानमंत्री को असीम शक्तियां दी है और वह सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है। किन्तु क्या आपके पास वे सभी शक्तियां है ? यदि हैं तो आपने उनका आज तक उपयोग क्यों नहीं किया ? यह सच है कि आपके पास नाम मात्र के अधिकार है। आप स्वतंत्र हो कर कोई निणर्य नहीं ले सकते। आपको निर्देशानुसार बोलना पड़ता है। वे नीतियां लागू करनी पड़ती है, जिनसे आप सहमत नहीं होते हैं। आप इतने कमज़ोर प्रधानमंत्री हैं कि जिस व्यक्तित्व के पास प्रधानमंत्री के पद के वास्तविक अधिकार हैं, उनकी कृपा के बिना आप एक मिनिट प्रधानमंत्री पद पर नहीं रह सकते। यह हक़ीकत है, जिससे से आप रुबरु हैं। यही हक़ीकत इस देश का दुर्भाग्य है।
दुनियां के किसी लोकतांत्रिक देश में ऐसा प्रधानमंत्री नहीं है। भारत के संसदीय इतिहास में भी कोई ऐसा प्रधानमंत्री अब तक नहीं हुआ है। भारत के इतिहास में भी ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें एक व्यक्ति दस साल तक प्रधानमंत्री रहा हो, किन्तु उसने लोकसभा का चुनाव नहीं जीता हो। उसके  के पास इतनी भी क्षमता नहीं हों कि वह अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से दो सांसदों को जीता कर लोकसभा में भिजवा सकें।
आपको सरकार की गलत नीतियों के दुखद परिणामों से क्रोध क्यों आता है ? क्या इसका दोषी विपक्ष है ? विपक्ष सहयोग नहीं करता है, परन्तु क्या सतापक्ष विपक्ष को सम्मान देता है ? आप जब बोलते हैं तब विपक्ष हल्ला करता हैं, किन्तु विपक्ष के नेता कुछ बोलते हैं, उन्हें क्यों रोका और टोका जाता है? सदन की गरिमा को नष्ट करने के लिए यदि विपक्ष दोषी है, तो सता पक्ष का भी इसमे कम योगदान नहीं है, इस तथ्य को स्वीकार क्यों नहीं किया जाता ?
पांच लाख करोड़ घपलों घोटालों में उड गये और पांच लाख करोड़ सरकार के ड्रिम प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ गये। किसी उभरती अर्थव्यवस्था के राजकोष से यदि दस लाख करोड़ रुपयों का अपव्यय होता है, तो निश्चय ही उभरती हुई अर्थव्यवस्था रसातल में जायेगी। आप जानते हैं भारत की अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत का यही मुख्य कारण है। फिर आप विपक्ष को कोसने के बजाय इस विषय पर क्यों मौन रहते हैं? देश को कंगाली के कगार पर ले जाने के बाद विपक्ष को कोसना और अपने दोषों को अस्वीकार करना कहां तक न्यायोचित हैं।
एक सप्ताह से देश आर्थिक झंझावत की पीड़ा से कराह रहा था। इस विकट घड़ी में तुरन्त प्रधानमंत्री को जनता के समक्ष आना था और ढ़ाढस बंधाना था। देश को इस संकट से बाहर निकालने के उपाय बताने थे। परन्तु प्रधानमंत्री चुप रहे। इंतज़ार के बाद सदन में बोले। जो कुछ बोले वह तो वे नींद से उठ कर कभी भी बोल सकते थे। आपके पास अर्थव्यवस्था को ठीक करने के कोई उपाय ही नहीं है, तो फिर कुछ भी बोलने से क्या लाभ होने वाला था? दम तोड़ते हुए मरीज को दवा की जरुरत रहती है, उसे यह जानना आवश्यक नहीं रहता है कि वे क्या कारण थे, जिससे उसकी ऐसी हालत हुई।
भारत के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को सदन में मात्र एक वाक्य बोलना था- ‘हम एक वर्ष के लिए सरकार के सारे ड्रीम प्रोजेक्ट स्थगित कर रहे हैं और विदेशों में जमा काले धन को शीघ्र् देश में ला रहे हैं।’ यदि वे ऐसा बोलने का साहस कर पाते, तो एक ही दिन में ही रुपया अपने पहले के स्तर पर आ जाता। विदेशी निवेशक भारत में निवेश के लिए दौड़ पड़ते। भारत की आर्थिक हालत एक झटके में पटरी पर आ जाती। परन्तु वह ऐसा नही कर पाये। पार्टी को किसी हालत में चुनाव जीतना है, चाहें देश डूब जायें अर्थव्यवस्था बरबाद हो जायें। और कालाधन देश में लाने की बात में वे क्यों करेंगे ? क्योंकि ऐसा निणर्य उनके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। अपने को बर्बाद कर के देश को खुशहाल करना वे भला क्यों चाहेंग ?
प्रधानमंत्री को वस्तुतः यूपीए नाटक-मंचन में विचित्र पात्र की भूमिका अभिनित करने के लिए दी गयी है। उन्हें घर का मुखिया बनाया गया है। घर में रखे गये धन की घर के ही लोग चोरी करते हैं। वे मुखिया हैं किन्तु उन्हें निर्देशक ने निर्देश दे रखा है कि उन्हें मूक दर्शक बन कर देखना है। उन्हें रोकना और टोकना नहीं है। इसीलिए वे मौन होने का अभिनय करते हैं। आंखें बंद कर मुहं दूसरी ओर कर लेते हैं। कभी-कभी उन्हें चोरी के दौरान बैठे-बैठे ऊंघते हुए दिखाया गया है। जब चोरी की बात मालूम पड़ती है। शोर होता है। वे चुप रहते हैं। दूसरे लोग आगे आ कर उनका बचाव करते हैं। अन्य पात्र चीख-चीख कर कहते हैं- कोई चोरी नहीं हुईं। सब झूठ है। हमे बदनाम करने की साजिश है।
परन्तु साजिश का पता लगा जाता है। जांच होती है। सभी दोष उन पर आते है, क्योंकि वे घर के मुखिया है। लोग चिल्ला-चिल्ला कर उन्हें कुछ पूछते हैं और वे चुप्पी साधे रहते हैं। वे यह भी नहीं कह पाते कि मैं निर्दोष हूं। मैंने चोरी करते हुए देखा जरुर है, किन्तु मेरे पास चोरी का एक ढ़ेला भी नहीं है। उनकी बेबसी उनकी आंखों में झलकती हैं। अपने आपको चोर कहने से वे तड़फ उठते हैं, किन्तु अपने आपको रोकने का भरसक प्रयास करते हैं।
नाटक के अंतिम दृष्य में एक शांत और गम्भीर भूमिका निभाने वाले पात्र का अंततः सब्र का बांध फूट पड़ता है। वे अपने आपको रोक नहीं पाते और खिझते हुए अपनी व्यथा को प्रकट करते हैं। किन्तु यह नही बताते कि चोर कौन है ? चोरी किया गया धन किसके पास है? सिर्फ यह कहते हैं कि मुझे काम नहीं करने दिया जाता है। मुझे चोर कहा जाता है। इस अभिनय के दौरान उनके चेहरे पर पीड़ा के जो भाव उभरते हैं, उसे देखते हुए उन पर दया आ जाती है।  सहसा उस पात्र के प्रति सहानुभूति होने लगती है।

Friday, 30 August 2013

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास

रोजाना के अखबारों में एक खबर आम हो गयी हैं की अजमेर स्थित ख्वाजा मुईन-उद-दीन चिश्ती अर्थात गरीब नवाज़ की मजार पर बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता अभिनेत्रियो अथवा क्रिकेट के खिलाड़ियो अथवा राज नेताओ का चादर चदाकर अपनी फिल्म को सुपर हिट करने की अथवा आने वाले मैच में जीत की अथवा आने वाले चुनावो में जीत की दुआ मांगना. भारत की नामी गिरामी हस्तियों के दुआ मांगने से साधारण जनमानस में एक भेड़चाल सी आरंभ हो गयी हैं की उनके घर पर दुआ मांगे से बरकत हो जाएगी , किसी की नौकरी लग जाएगी , किसी के यहाँ पर लड़का पैदा हो जायेगा , किसी का कारोबार नहीं चल रहा हो तो वह चल जायेगा, किसी का विवाह नहीं हो रहा हो तो वह हो जायेगा .कुछ सवाल हमे अपने दिमाग पर जोर डालने को मजबूर कर रहे हैं जैसे की यह गरीब नवाज़ कौन थे ?कहाँ से आये थे? इन्होने हिंदुस्तान में क्या किया और इनकी कब्र पर चादर चदाने से हमे सफलता कैसे प्राप्त होती हैं?
 
गरीब नवाज़ भारत में लूटपाट करने वाले , हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करने वाले ,भारत के अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान को हराने वाले व जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करने वाले मुहम्मद गौरी के साथ भारत में शांति का पैगाम लेकर आये थे.
 
पहले वे दिल्ली के पास आकर रुके फिर अजमेर जाते हुए उन्होंने करीब ७०० हिन्दुओ को इस्लाम में दीक्षित किया और अजमेर में वे जिस स्थान पर रुके उस स्थान पर तत्कालीन हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान का राज्य था.
ख्वाजा के बारे में चमत्कारों की अनेको कहानियां प्रसिद्ध हैं की जब राजा पृथ्वी राज के सैनिको ने ख्वाजा के वहां पर रुकने का विरोध किया क्योंकि वह स्थान राज्य सेना के ऊँटो को रखने का था तो पहले तो ख्वाजा ने मना कर दिया फिर क्रोधित होकर शाप दे दिया की जाओ तुम्हारा कोई भी ऊंट वापिस उठ नहीं सकेगा. जब राजा के कर्मचारियों नें देखा की वास्तव में ऊंट उठ नहीं पा रहे हैं तो वे ख्वाजा से माफ़ी मांगने आये और फिर कहीं जाकर ख्वाजा ने ऊँटो को दुरुस्त कर दिया. दूसरी कहानी अजमेर स्थित आनासागर झील की हैं. ख्वाजा अपने खादिमो के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने एक गाय को मारकर उसका कबाब बनाकर खाया.कुछ खादिम पनसिला झील पर चले गए कुछ आनासागर झील पर ही रह गए .

उस समय दोनों झीलों के किनारे करीब १००० हिन्दू मंदिर थे, हिन्दू ब्राह्मणों ने मुसलमानों के वहां पर आने का विरोध किया और ख्वाजा से शिकायत करी.

ख्वाजा ने तब एक खादिम को सुराही भरकर पानी लाने को बोला. जैसे ही सुराही को पानी में डाला तभी दोनों झीलों का सारा पानी सुख गया. ख्वाजा फिर झील के पास गए और वहां स्थित मूर्ति को सजीव कर उससे कलमा पढवाया और उसका नाम सादी रख दिया.ख्वाजा के इस चमत्कार की सारे नगर में चर्चा फैल गयी. पृथ्वीराज चौहान ने अपने प्रधान मंत्री जयपाल को ख्वाजा को काबू करने के लिए भेजा. मंत्री जयपाल ने अपनी सारी कोशिश कर डाली पर असफल रहा और ख्वाजा नें उसकी सारी शक्तिओ को खत्म कर दिया. राजा पृथ्वीराज चौहान सहित सभी लोग ख्वाजा से क्षमा मांगने आये. काफी लोगो नें इस्लाम कबूल किया पर पृथ्वीराज चौहान ने इस्लाम कबूलने इंकार कर दिया. तब ख्वाजा नें भविष्यवाणी करी की पृथ्वी राज को जल्द ही बंदी बना कर इस्लामिक सेना के हवाले कर दिया जायेगा.
 
निजामुद्दीन औलिया जिसकी दरगाह दिल्ली में स्थित हैं ने भी ख्वाजा का स्मरण करते हुए कुछ ऐसा ही लिखा हैं. बुद्धिमान पाठकगन स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं की इस प्रकार के करिश्मो को सुनकर कोई मुर्ख ही इन बातों पर विश्वास ला सकता हैं.
भारत में स्थान स्थान पर स्थित कब्रे उन मुसलमानों की हैं जो भारत पर आक्रमण करने आये थे और हमारे वीर हिन्दू पूर्वजो ने उन्हें अपनी तलवारों से परलोक पंहुचा दिया था.
 
ऐसी ही एक कब्र बहरीच गोरखपुर के निकट स्थित हैं. यह कब्र गाज़ी मियां की हैं. गाज़ी मियां का असली नाम सालार गाज़ी मियां था एवं उनका जन्म अजमेर में हुआ था.उन्हें गाज़ी की उपाधि काफ़िर यानि गैर मुसलमान को क़त्ल करने पर मिली थी.गाज़ी मियां के मामा मुहम्मद गजनी ने ही भारत पर आक्रमण करके गुजरात स्थित प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का विध्वंश किया था. कालांतर में गाज़ी मियां अपने मामा के यहाँ पर रहने के लिए गजनी चला गया.
कुछ काल के बाद अपने वज़ीर के कहने पर गाज़ी मियां को मुहम्मद गजनी ने नाराज होकर देश से निकला दे दिया. उसे इस्लामिक आक्रमण का नाम देकर गाज़ी मियां ने भारत पर हमला कर दिया. हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करते हुए, हजारों हिन्दुओं का क़त्ल अथवा उन्हें गुलाम बनाते हुए, नारी जाती पर अमानवीय कहर बरपाते हुए गाज़ी मियां ने बाराबंकी में अपनी छावनी बनाई और चारो तरफ अपनी फौजे भेजी.

कौन कहता हैं की हिन्दू राजा कभी मिलकर नहीं रहे? मानिकपुर, बहरैच आदि के २४ हिन्दू राजाओ ने राजा सोहेल देव पासी के नेतृत्व में जून की भरी गर्मी में गाज़ी मियां की सेना का सामना किया और इस्लामिक सेना का संहार कर दिया.राजा सोहेल देव ने गाज़ी मियां को खींच कर एक तीर मारा जिससे की वह परलोक पहुँच गया. उसकी लाश को उठाकर एक तालाब में फ़ेंक दिया गया.
 
 हिन्दुओं ने इस विजय से न केवल सोमनाथ मंदिर के लूटने का बदला ले लिया था बल्कि अगले २०० सालों तक किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी का भारत पर हमला करने का दुस्साहस नहीं हुआ.
कालांतर में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी माँ के कहने पर बहरीच स्थित सूर्य कुण्ड नामक तालाब को भरकर उस पर एक दरगाह और कब्र गाज़ी मियां के नाम से बनवा दी जिस पर हर जून के महीने में सालाना उर्स लगने लगा.
 मेले में एक कुण्ड में कुछ बेहरूपियें बैठ जाते हैं और कुछ समय के बाद लाइलाज बिमारिओं को ठीक होने का ढोंग रचते हैं. पुरे मेले में चारों तरफ गाज़ी मियां के चमत्कारों का शोर मच जाता हैं और उसकी जय-जयकार होने लग जाती हैं. हजारों की संख्या में मुर्ख हिन्दू औलाद की, दुरुस्ती की, नौकरी की, व्यापार में लाभ की दुआ गाज़ी मियां से मांगते हैं, शरबत बांटते हैं , चादर चदाते हैं और गाज़ी मियां की याद में कव्वाली गाते हैं .कुछ सामान्य से १० प्रश्न हम पाठको से पूछना चाहेंगे.

१.क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूँकि हैं वो किसी की मनोकामना
पूरी कर सकती हैं?

२. सभी कब्र उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?

३. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा ३३ करोड़ देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं?

४. जब गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता
प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

५. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते हैं?

६. क्या संसार में इससे बड़ी मुर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता हैं?

७. हिन्दू जाती कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा
कर प्राप्त कर रहीं हैं जो वेदों- उपनिषदों में कहीं नहीं गयीं हैं?

८. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो क्या हैं ?

९. इतिहास की पुस्तकों कें गौरी – गजनी का नाम तो आता हैं जिन्होंने हिन्दुओ को हरा दिया था पर मुसलमानों को हराने वाले राजा सोहेल देव पासी का नाम तक न मिलना क्या हिन्दुओं की सदा पराजय हुई थी ऐसी मानसिकता को बनाना नहीं हैं?

१०. क्या हिन्दू फिर एक बार २४ हिन्दू राजाओ की भांति मिल कर संगठित होकर देश पर आये संकट जैसे की आंतकवाद, जबरन धर्म परिवर्तन,नक्सलवाद,बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपेठ आदि का मुंहतोड़ जवाब नहीं दे सकते?
आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा . अगर आप
आर्य राजा राम और कृष्ण जी महाराज की संतान हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण
अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में प्रकाशित करें.

आओ, हम सब मिल कर नये भारत का निमार्ण करें !

वह आडम्बर युक्त भारत निमार्ण नहीं, जो अखबारी कागजो में चमक रहा है। टीवी पर्दे पर चहक रहा है। झूठ को महिमामंडि़त कर के व्यापक रुप से प्रचारित किया जा रहा है। अपने पापों को धोने के लिए छल व प्रपंच का सहारा लिया जा रहा है। इस भारत निमार्ण का घृणित मकसद स्पष्ट है-जनता से वोट चाहिये। सत्ता चाहिये। राजस्व और प्राकृतिक संसाधनों को लूटने का मौका चाहिये।
किन्तु हमारा उद्धेश्य  पवित्र है। हमें ऐसा नया भारत चाहिये, जो निर्धनता, अशिक्षा, असमानता के श्राप से मुक्ति पा, नैराश्य के अंधकार को चीर कर समृद्धि के आलोक से जगमगा उठे। विकास के ऊंचे पायदानों पर चढ़ने के लिए व्यग्र हो उठे। विश्वमंच पर सम्मानित स्थान पा सके।
नये भारत का निमार्ण असम्भव नहीं है। हम अपनी सम्मिलित शक्ति व दृढ़संकल्प से सारी बाधाओं को पार कर लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। क्योंकि हमारे पास विपुल मानवीय श्रम व प्राकृतिक संपदा है। जीवट ऊर्जा की धनी, विश्व में अपनी मेघा का परचम लहराने वाली युवाशक्ति है। जीवन के हर क्षेत्र में अपनी कुशलता व कर्मठता की छाप छोड़ने वाले भारतीय नागरिक है। अपनी उद्यमशीलता से विश्व विजय को आतुर उद्यमी है।
परन्तु हम पिछड़े, निर्धन, अभावग्रस्त इसलिए हैं, क्योंकि हमारा राजनीतिक वातावरण विषाक्त है। विषाणुओं ने लोकतंत्र को रुग्ण बना दिया है, जिससे हमें कुशल व सक्षम नेतृत्व नहीं मिल रहा है। निष्ठावान व समर्पित राजनीतिक नेत्त्व के अभाव के कारण भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी औपनिवेशिक प्रशासनिक व्यवस्था को बदल नहीं पाये हैं। नये भारत के निमार्ण में सब से बड़ा अवरोध यही है।
रुग्ण भारतीय लोकतंत्र मृत्यु शैया पर पड़ा है और उसके सिरहाने खड़ा दैत्याकार भ्रष्टतंत्र अपने आपको वास्तविक लोकतंत्र घोषित कर रहा है। हमे भ्रष्टतंत्र की विकरालता का आभास है। हम इसके स्वरुप को देख कर क्रुध भी हैं। किन्तु असहाय है। क्योंकि हमने अपने आपको पूर्णतया उन राजनेताओं का पराधिन बना दिया है, जो भ्रष्टतंत्र के पुरोधा है। जिन्होंने इसे पल्लवित और पोषित कर ऐसा विकराल रुप दिया हैं। यह हमारा दुर्भाग्य है। हमारी सभी समस्याओं की जड़ यही है।
नये भारत के निमार्ण का पहला चरण होगा- उन विषाणुओ के प्रतिरोध की औषधि के लिए शोध करना, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को रुग्ण बना रखा है। रोगमुक्त स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था से ही भ्रष्टाचार के दैत्य से मुकाबला किया जा सकता है। विषाणुओं की प्रतिरोधात्मक औषधि का प्रयास तभी सफल होगा, जब हम भारतीय नागरिक यह सुनिश्चित कर ले कि सार्वजनिक जीवन में किस व्यक्ति को प्रवेश दिया जाय और किसका प्रवेश निषेध किया जाय।
सार्वजनिक जीवन में किसे रहना चाहिये, उसका निर्धारण भारत की जनता करेगी, राजनीतिक दल नहीं। इसी तरह कौन व्यक्ति जनप्रतिनिधि बनने के लिए उपयुक्त है, उसका मापदंड़ जनता करेगी, राजनीतिक दल नहीं। हम उन्हें ही चुनेंगे, जो जनता द्वारा निर्धारित किये गये मापदंड़ पूरा करेंगे। जनता राजनीतिक दलों को सही प्रत्यासी घोषित करने के लिए बाध्य कर सकती है। यह तभी सम्भव है जब जनमानस को संगठित किया जाय। उन्हें लोकतांत्रिक अधिकारों के उपयोग के लिए जागृत किया जाय। उन्हें समझाया जा सकता है कि सार्वजनिक जीवन में अतिचालाक, धूर्त, निकृष्टतम चारित्रिक विशेषताओं वाले व्यक्तियों के प्रवेश से हमारे जीवन पर क्या कलुषित प्रभाव पड़ा है। जो धनार्जन का घृणित उद्धेश्य  ले कर सार्वजनिक जीवन में आते हैं, वे पूरी व्यवस्था को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इस समय भारत के सभी राजनीतिक दलों में इस तरह के व्यक्तियों का बाहुल्य है।
नये भारत निमार्ण का यह सर्वाधिक कठिन चरण है। रुग्णलोकतंत्र के उपचार की औषधि खोजने का भी यह सबसे कठिन प्रयास है। इस समय जो व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में छाये हुए हैं, वे काफी शक्तिशाली हैं। बाहुबल और धन के प्रभाव से भारतीय राजनीति को इन्होंने अपने नियंत्रण में ले रखा है। सार्वजनिक जीवन से उनका प्रवेश निषेध अत्यधिक दुष्कर कार्य है। किन्तु यदि ऐसा सम्भव हो पाया तो भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। यह भारतीय जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की सबसे बड़ी जीत होगी।
यदि भारतीय जनता संगठित हो जाय, तो इस मुशिकल काम को सरल बनाया जा सकता है। क्योंकि लोकतंत्र में सबसे शक्तिशाली जनमत ही होता है। यदि वह अपनी शक्ति पहचान लें, तो नये भारत निमार्ण की सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है। किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि जनमत कैसे संगठित किया जाय ? कैसे उन्हें राजनीतिक दलों के अवलम्बन से मुक्त कराया जाय ?
इस गुरुतर कार्य के लिए भारतीय युवाओं को जिम्मेदारी ओढ़नी होगी। जिन भारतीयों ने अपनी आधी या दो तिहाई जिंदगी गुजार ली, वे तो इस व्यवस्था का भार ढो़ते-ढ़ोते टूट चुके हैं। किन्तु जो युवा है उन्हें अपना पूरा जीवन इस व्यवस्था के आगे समर्पित नहीं करना है। कुछ प्रलोभन पा कर पूरी जिंदगी बिताना असम्भव है। हमे स्थायी रोजगार चाहिये। सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार चाहिये। यह तभी सम्भव है जब एक ईमानदार, सुसंस्कृत, सुव्यवस्थित, समर्पित व जवाबदेय शासन व्यवस्था का अस्तित्व सम्भव हो पाये।
सार्वजनिक जीवन में वे ही व्यक्ति रहने चाहिये, जो अपना जीवन समाज को समर्पित करने का वचन दें। जिनके म न में शासन का नहीं सेवा का भाव हो। सार्वजनिक जीवन में आने के बाद उनकी निजता समाप्त करने की घोषणा कर दें। उनका चरित्र श्रेष्ठ हो। जो संसार में सन्यासी बन कर रहें, अर्थात जिन्होंने अपनी क्षुद्र मानवीय दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर ली हो। जिनके मन में सेवा के प्रतिकार में कुछ भी पाने की लालसा नहीं हों। वे सारी निजी सम्पति का परित्याग कर दें या सार्वजनिक जीवन में आने के पूर्व अपने संबंधियों के नाम कर दें। साथ ही, अपने परिवार की सम्मिलित संपति की सार्वजनिक घोषणा कर दें।
एक विधानसभा एंव लोकसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या क्रमशः चार से पंद्रह लाख तक होती है। भारतीय समाज में इतनी जनसंख्या में चार-पांच तपस्वी व्यक्ति ढूंढ़ना असम्भव नहीं है। किन्तु ऐसे व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में आयेंगे नहीं, क्योंकि भारत का कोई भी राजनीतिक दल उन्हें प्रवेश नहीं देगा । यदि आ भी गये तो चुनाव जीत कर जनप्रतिनिधि नहीं बन सकते।
परन्तु भारत के युवा यदि यह सोच लें कि वे ऐसे व्यक्तियों का मार्ग प्रशस्त करेंगे, तो यह कार्य सुगम बन सकता है। युवाओं को पहले अपने आस-पास ही रह रहे ऐसे व्यक्तित्व को ढूंढना होगा। राजनीतिक दलों को बाध्य करना होगा कि वे इन्हें अपना प्रत्यासी घोषित करें। इन व्यक्तियों का प्रचार युवाओं को स्वयं करना होगा। अपने घर, मोहल्ले, गांव या शहर के प्रत्येक व्यक्ति को राजनीतिक व्यवस्था को सुधारने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।

Thursday, 29 August 2013

" आम आदमी को सस्ता अनाज "

" आम आदमी को सस्ता अनाज "

एक बार एक राजा अपने बहुत बड़े राज्य में भ्रमण करने निकल पड़ा। जब वह वापिस महल में आया, उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा बोला कि मार्ग में पड़े कंकड़ पत्थर उसके पैरों में चुभ गए थे। इसका कुछ इंतजाम करन
ा चाहिए। राजा ने आदेश दिया कि राज्य की सारी सड़कें चमड़े की बना दी जाएं।

सब मंत्री सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो पक्का था कि इस के लिए बहुत अधिक धन की जरूरत थी। बहुत सारे सड़क बनाने वाले, बड़ी मात्रा में रबड़, ढुलाई आदि का प्रबंध भी नहीं था। और आज्ञा पालन करने पर थोड़ी सड़कें बनने में ही सारा खजाना खाली हो जाएगा जिससे राज्य में घोर संकट आ जाएगा। सब मंत्री ये जानते थे, पर डर के मारे बोल नहीं पा रहे थे।

फिर एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने डरते हुए राजा से कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ। एक अच्छी और निहायत सस्ती तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और खजाना भी खाली होने से बच जाएगा।

राजा हैरान था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की जुर्रत की थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की चमड़े की सड़कें बनाने के बजाय आप चमड़े के एक छोटे टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज भरी दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए एक अच्छा जूता बनवाने का आदेश दे दिया। इससे समस्या का हल भी निकल गया और राज्य भी घोर विपत्ति से बच गया।

खाद्य सुरक्षा बिल :
अब अस्सी करोड़ जनता के लिए सरकार के खाद्य सुरक्षा बिल को ही लो। देश की अर्थवयवस्था जो पहले ही चरमराई हुई है, इस बिल से उस पर सवा लाख करोड़ रुपये का और ज्यादा भार पड़ेगा। अनाज के भंडारण, ढुलाई, वितरण, सड़ने से बचाने आदि के लिए और अधिक धन की जरुरत होगी। व्याप्त भ्रष्टाचार पर बिना लगाम लगाए, असली जरूरतमंद 'आम आदमी' को इसका लाभ मिलना असंभव दिखता है। लोक लुभावन बातों से किसी बिल की उपयोगिता नहीं आंकी जा सकती और विपक्ष जाने अनजाने इस बिल का विरोध नहीं कर कर पा रहा।

इससे अच्छा तो सार्वजनिक रसोई हर गाँव, हर शहर में बना देते जिससे 1. गरीब को सस्ता और 2. अति गरीब को मुफ्त भोजन मिलता। कई लोगों को रोज़गार भी मिलता। ऐसे गरीब और अति गरीब जनता की गिनती अस्सी करोड़ से बहुत कम होती। और जैसे जैसे इन गरीबों को रोज़गार मिलता जाता, इनकी संख्या समय के साथ और कम होती जाती। ऐसी रसोइयाँ तमिलनाड सरकार चुस्त दुरुस्त शासन से सफलतापूर्वक चला रही है। इससे ना केवल गरीबों को संतुलित पोष्टिक भोजन मिलता अपितु पहले से चरमराई हुई अर्थवयवस्था डूबने से बच जाती।

हमें हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। विशेषज्ञों के साथ सच्चाई और इमानदारी से बातचीत कर और भी अच्छे वय्वाहरिक हल सोचे और निकाले जा सकते हैं।

जय हिन्द !

भारतीय लोकतंत्र को एक पाईवेट लिमिटेड़ कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त कराने का संकल्प लेना होगा

भारतीय लोकतंत्र को एक पाईवेट लिमिटेड़ कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त कराने का संकल्प लेना होगा
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतराष्ट्र एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट में फंस गया है। स्थिति पर नियंत्रण पाना असम्भव लग रहा है, क्योंकि इस मुश्किल घड़ी में देश को राह दिखाने वाला कोई नहीं है। नेतृत्व विहिन राष्ट्र उस सेना की तरह दिखाई दे रहा है, जिसके आगे-आगे एक रथ तो चल रहा है, परन्तु उसमें एक निर्जीव मूर्ति रखी हुई है, जो सेना को दिशा-निर्देश देने में अक्षम है।
दुनिया को दिखाने के लिए जिन महाशय को देश का नेतृत्व सौंप रखा है, वह एक छलावा है। देश की जनता को दिया जा रहा निर्लज्ज धोखा है। विपदा की घड़ी में मौन नेतृत्व भारतीय जनता के लिए दुःखद त्रासदी साबित हो रहा है। जबकि ऐसा समय में नेतृत्व के लिए अग्नि परीक्षा होता है। अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति और ओजपूर्ण वाणी से नेतृत्व जनता को आश्व्स्त करता है। संकट से बाहर निकलने का रास्ता दिखाता है। जिस तरह शक्तिशाली सेना नेतृत्व विहिन होने पर आत्मविश्वास खो देती है, उसी तरह शाशन व्यवस्था देश को इस संकट से बाहर निकालने के लिए पूर्णतया अक्षम साबित हो रही है। इसका कारण यह है कि एक राजनीति पार्टी, जिसके पास देश की शासन व्यवस्था है, एक पाईवेट लिमिटेड़ कम्पनी बन गयी है। जिसको एक मालिक चला रहा है, उसके अधिनस्त काम करने वाले सारे राजनेता उस पार्टी के प्रबन्धक या कर्मचारी बन गये हैं।
प्राईवेट लिमिटेड कम्पनियां राष्ट्रहित और जनहित के लिए संवेदनशील  नहीं होती। देश के भविष्य के लिए वे चिंतित नहीं रहती। भारी विज्ञापनबाजी से अपने प्रोडक्ट को सेल करने पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रीत करती है। इन कम्पनियों का मुख्य लक्ष्य रहता है – अधिकाधिक मुनाफा कमाना । इस रणनीति के तहत कई तरह की योजनाएं बनाती है। दूसरी कम्पनियों के साथ सौदेबाजी करती है। कम्पनी का विस्तार करने के लिए भावी नीतियां बनाती है।
भारत की एक राजनीतिक पार्टी, अब पूरी तरह प्राईवेट लिमिटेड़ कम्पनी बन गयी है, उसका मुख्य लक्ष्य है- किसी भी तरह देश पर नियंत्रण स्थापित करना, ताकि अपने मुनाफे के लिए देश के प्राकृतिक संसाधन और राजस्व को लूटा जा सके। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए चुनाव जीतने की रणनीति बनायी जाती है, ताकि पार्टी के अधिकाधिक सांसद चुने जा सके।
जो राजनीतिक पार्टी लोकलुभावन योजनाएं अर्थात जनता को लुभा कर वोट प्राप्त करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए प्रति वर्ष पांच लाख करोड़ रुपया खर्च करती है, जो कि जीडीपी का दस प्रतिशत है, उस पार्टी से  देश की प्रगति और खुशहाली की आशा नहीं की जा सकती। उसे देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए प्रतिबद्ध माना जा सकता है। जबकि विभिन्न प्रकार के करो से मात्र बारह लाख करोड़ राजस्व की ही प्राप्ति होती है। ऐसी परिस्थतियों में मात्र वोट प्राप्त करने का लक्ष्य रख कर नीतियां बनाने का मात्र एक ही कारण है- जनता को मूर्ख बना कर किसी भी तरह उसके वोट प्राप्त किये जा सके और देश पर नियंत्रण बनाये रखा जा सके। बढ़ते राजस्व घाटे और चालू घाटे से इस पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। देश की अर्थव्यवस्था पर इसके क्या दुष्प्रभाव पडे़गे, इस बारें में भी उन्हें कोई चिंता नहीं है।
जिस राजनीतिक पार्टी के नेताओं ने अनुमानित पांच लाख करोड़ रुपयों का घोटाला कर के राजस्व की हानि की हो, उससे कैसे यह आशा रख सकते हैं कि इस पार्टी के नेता देश भक्त है और देश हित के लिए चिंतित रहते हैं। घोटालों के कारण कई रोड व पावर पे्राजेक्ट अधुरे पड़े हैं। कोयला व स्पात की खानों से उत्पादन रुका हुआ है। बैंको के लाखों करोड़ रुपये इन योजनाओं में फंस गये है। किन्तु घोटालों को दबाने के लिए जिस तरह सरकारी जांच एंजेसियों का उपयोग किया जा रहा है उससे यही लगता है कि राजनीति का पूर्णतया व्यावसायिकरण हो गया है। राजनीति में घुस आये व्यवसायियों ने पार्टियों को पाईवेट लिमिटेड कम्पनियों में तब्दील कर दिया है, जो भारी मुनाफा कमाने का लक्ष्य ध्यान में रख कर राजनीति का व्यवसाय कर रहे हैं।
जिस तरह पाईवेट लिमिटेड़ कम्पनियां अपने व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए दूसरी कम्पनियों के साथ व्यापारिक समझौते करती है, उसी तरह एक राजनीति पार्टी सरकार बचाने के लिए और अपना राजनीतिक हित साधने वाली नीतियों को लागू करने का उद्धेश्य ले कर बहुमत जुटाने के लिए दूसरी पार्टियों के साथ सौदेबाजी करती है। सौदेबाजी में या तो आर्थिक पैकेज का प्रलोभन दिया जाता है या उसकी दुखती नब्ज को दबा कर जांच एंजेंसियों से जांच कराने की अप्रत्यक्ष धमकी दी जाती है, ताकि वह सरकार को अपना समर्थन जारी रखें।
इसी तरह कम्पनियां अपना प्रोडक्ट सेल करने के लिए धुआंधार प्रचार करती है, उसी तरह एक पार्टी चुनाव जीतने के लिए धुआंधार प्रचार करने में लगी हुई है, ताकि उसकी कलंकित छवि को उजली बना कर जनता को प्रभावित किया जा सके। ऐसा करने वाले व्यक्तियों को इस बात की जरा भी परवाह नहीं है कि करोड़ो रुपये की राजस्व हानि से राजकोषीय घाटा और बढ़ेगा।
यदि यह सरकार वास्तव में देश की विकट आर्थिक स्थिति को ले कर चिंतित होती, तो खाद्य सुरक्षा योजना को इन विकट परिस्थितियों में लागू करने के लिए अपनी पूरी शक्ति नहीं लगाती। मनरेगा जैसी बेहद खर्चिली योजनाओं को कुछ समय के लिए स्थगित कर देती। किन्तु जो पार्टी अपने राजनीतिक हितो को देश हित से ज्यादा तवज्जो देती हों, उससे ऐसी आशा रखना बेकार है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति विहिन नेतृत्व के दुष्परिणाम राष्ट्र को भोगने पड़ रहे हैं। आर्थिक संकट के कारण महंगाई की विभीषिका झेलने के लिए जनता को तैयार रहना होगा। औद्योगिक उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने से बैरोजगारी बढ़ेगी। नये रोजगार सृजन के आसार समाप्त हो जायेंगे। भारतीय युवाओं के भविष्य के समक्ष अंधेरा कर दिया है, जिसमें उन्हे ठोकरे ही खाना है। चुनाव जीतने के लिए लैपटाप देने वाली और बैरोजगारी भत्ते का प्रलोभन देने वाली सरकारे कभी युवाओं को स्थायी रोजगार नहीं दिला सकती।
अब एक ही आशा बची है- देश के नागरिक इन ठगों की असली सूरत पहचान लें। इनके छलावें में नहीं आयें। इनकी लुभावनी योजनाओं से भ्रमित नहीं हो। ये पूरी ताकत से पुनः सता पर नियंत्रण की कोशिश करेंगे, किन्तु जनता अपनी पूरी ताकत से इन्हें ठुकरा दें। इन्हें स्पष्ट रुप से कह दें- हम लोकतांत्रिक गण राज्य के नागरिक हैं, इस्ट इंडिया जैसी प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी के अधिनस्त गुलाम भारतीय नागरिक नहीं।
अब हम सभी भारतीयों को अपने आपसी मतभेद भुला कर तथा जातीय और धार्मिक संकीर्णता त्याग कर, भारतीय लोकतंत्र और भारतीय संसद को एक प्राईवेट लिमिटेड़ कम्पनी के नियंत्रण से मुक्त कराने का संकलप लेना होगा। क्योंकि हमे योग्य और देशभक्त शाशक चाहिये, पाईवेट कम्पनी के मैनेजर नहीं। हमे ऐसे शाशक चाहियें, जो देश हित में नीतियां बनायें अपने राजनीतिक हित की पूर्ति के लिए नहीं। जो देश को विकट आर्थिक स्थिति से बाहर निकलाने का प्रयास करें, देश को कंगाली के कगार पर नहीं धकेलें। जो युवाओं को प्रलोभन दे कर ललचायें नहीं, वरन उनके भविष्य को ध्यान में रख कर सार्थक नीतियां बनायें।

Wednesday, 28 August 2013

जागिये, मनमोहन जी ! भारतीय अर्थव्यवस्था का जहाज डूब रहा है

जागिये, मनमोहन जी ! भारतीय अर्थव्यवस्था का जहाज डूब रहा है
मनमोहन जी ! यह क्या हो रहा है ? आप तो अर्थव्यवस्था के अच्छे नाविक है, फिर भारतीय अर्थव्यवस्था का जहाज क्यो डूब रहा है ? हम कब से आपको जगा रहे हैं, फिर भी आपकी नींद ही नहीं टूट रही है। हर बार आप उनींदे रहते हैं और उबासी लेते हुए एक ही जवाब देते हैं -‘ घबराने की कोई बात नहीं है। स्थिति में जल्दी ही सुधार हो जायेगा।’ परन्तु सुधार होगा कैसे? यह बात आप आज तक नहीं समझा पाये। शायद आपको इस बात का अहसास है कि सुधार होने की सम्भावना नज़र नहीं आती। अब घर में रखी पूंजी अपने ही लोगो ने चुरा ली हो। घर में पैसे की आवक घट गयी हो। खर्चे बढ़ गये हो और कमाई घट गयी हो तो हालत सुधरेंगे ही नहीं।
आप लाचार है। आप कुछ कर भी नहीं सकते। एक अनुबंध के तहत आपको काम करना पड़ रहा है। अनुबन्ध की अवधि खत्म होने तक आपको ज्यों त्यों समय गुजारना है। आपका अनुबंध खत्म होने के बाद भले ही भारतीय अर्थव्यवस्था का जहाज डूब जाय, आपको क्या फर्क पड़ने वाला है। आपने अपना अच्छा समय निकाल लिया। अर्थशास्त्री से राजनेता बन गये। भारत के वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री बन गये। जो कुछ भाग्य से मिला है, उसे पा कर आप गद गद है।
परन्तु जहाज में पानी बढ़ता जा रहा है। पूरा देश चिंतित है, किन्तु आप निश्चिंत  हो कर नींद निकाल रहे है। क्या आप अगले चुनाव की घोषणा तक सोये ही रहेंगे ? आप शायद अर्थशास्त्र भूल रहे हैं या जानबूझ कर भुलने की कोशिश कर रहे हैं। आपको मालूम है अर्थव्यवस्था की हालत खराब हाने से इसका कहां-कहां प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जनता के कष्ट बढ़ जायेंगे। आपकी सरकार नागरिकों को गेहूं तो खिला देगी, परन्तु जीवन गुजारने के लिए आवश्यक वस्तुएं खरीदने का मोहताज बना देगी। भाव इतने बढ़ जायेंगे कि सामान्य भारतीय नागरिक छोटी-छोटी चीजो का मोहताज हो जायेगा, क्योंकि ये सभी उसकी पहुंच के बाहर चली जायेगी।
खाद्य सुरक्षा बिल पास होने के बाद आपके सहयोगी मोंटेग सिंह जी भारत की गरीबी के आंकड़े बदल देंगें, क्योंकि दो रुपये किलो अनाज उपलब्ध हो जाने के बाद भारत मे कोई गरीब रहेगा ही नहीं। मोंटेक सिंह जी कहेंगे- भारत की अर्थव्यवस्था खराब होने से क्या फर्क पड़ता है। भारत में अब कोई भूखा नहीं सोयेगा। जो भारतीय, सरकार द्वारा उपलब्ध कराया गया अनाज दो रुपये किलों में खरीदने की क्षमता जुटा लेगा, वह गरीब नहीं माना जायेगा। वे कहेंगे-‘ दाल, सब्जी खाना कोई आवश्यक नहीं है। दूध,दही,घी की भी कोई जरुरत नहीं है। गेहूं खा लो, इसमें पर्याप्त प्रोटीन होता है, जो भूख से नहीं मरने देगा और कुपोषण को भी खत्म कर देगा।
अर्थव्यवस्था का जहाज तो पहले ही डूब रहा था, परन्तु खाद्य सुरक्षा बिल के चक्रपात ने चिंताएं और बढ़ा दी है। रुपया छलांगे लगाने लगा और शेयर बाज़ार गोते लगाने लगा। पहली बार भारत की जनता ने सौम्य वित्तमंत्री के चेहरे पर मुस्कान की जगह घबराहट देखी। वे देश की जनता को ढाढस बंधा रहे थे, किन्तु आवाज़ में पहले जैसा आत्मविश्वास  नदारद था। बहरहाल रुपया और कमज़ोर होगा। डिजल के भाव बढे़गे। जनता की जेबे कटेगी। जनता गम के आंसू बहायेगी। मीडिया भारत निमार्ण के गीत गायेगा। देश चाहे बर्बाद हो जाये। भारतीय अर्थव्यवस्था रसातल में चली जायें, परन्तु भारत निर्माण के गीत सुनों और वोट दों।
परन्तु मनमोहन सिंह जी जाते जाते अपनी पार्टी को नसीहत दे सकते थे कि डूबते हुए जहाज को बचाना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिये। खाद्य सुरक्षा जैसी नीतियों का अतिरिक्त भार इस जहाज पर डालने से इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। पर वे कुछ कह नहीं पाये। सदा की तरह अपने भीतर की आवाज को दबाने में सफल रहें और बेखबर हो कर नींद निकालने लगे। इसके अलावा वे कर भी क्या सकते हैं।
पर वित्तमंत्री के साहस को दाद देनी होगी। वे फिर कहने लगे- उभरती हुई अर्थव्यवस्था में ऐसा दौर आता है। घबरायें नहीं, रुपया अपनी वास्तविक स्थिति में आ जायेगा। अब हम यह कैसे माने कि हमारी अर्थव्यवस्था उभरती हुई है या डूबती हुई है। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया -कंगाली का सूचक है या खुशहाली का यह तो वे ही अच्छी तरह समझा सकते हैं।
राजस्व घट रहा है। औद्योगिक उत्पादन घटता जा रहा है। अर्थात आमदनी घट रही है। आयात बढ़ रहा है और निर्यात घट रहा है। अर्थात खर्चे बढ़ रहे हैं। कमजोर रुपया हैसियत घटा रहा है। पास में पैसा है नहीं और खर्चो पर नियंत्रण कर नहीं पा रहे हैं। कर्जदारी का भार बढ़ता जा रहा है। फिर हम यह कैसे कह सकते हैं कि हम समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं, इसलिए ऐसा होना सम्भव है। जबकि हक़ीकत यह है कि घोटालों के कारण हमारी अर्थव्यवस्था कंगाली के कगार पर पहुंच गयी है। जिस अर्थशास्त्र के निष्णात  नाविक के हाथ में देश की बागड़ोर थी, वे सब कुछ जानते और समझते हुए भी नींद निकाल रहे थे। सम्भवतः इसलिए भारतीय अर्थव्यव्था का बंढाढार हो रहा है। चुनाव होने तक और नयी सरकार के अस्तित्व में आने तक यह सब कुछ चलता रहेगा।
परन्तु देश की आर्थिक हालत को बरबाद कर जो वोट पाने की आशाएं संजोयें हुए हैं, उनकी आशाओं पर तुषारापात होगा। खाद्य सुरक्षा बिल लागू होने के बाद यह नीति के क्रियान्वयन के लिए भ्रष्ट  और अकर्मण्य नौकरषाही के हाथों में आयेगा और सार्वजनिक धन की व्यापक बरबादी का आधार बनेगा।
सरकार की प्रत्येक नीति का भार तो भारत की जनता को ही ढ़ोना है। जनता के नसीब में आंसू ही लिखे हैं, जिन्हें टपकाती रहेगी और भारत निमार्ण के गीत सुनती रहेगी। वह यह भी तो नहीं कह सकती । यह बकवास बंद कर दो। गम में खुशी के गीत नहीं गाये जाते।  बर्बादी पर जश्न  नहीं मनाया जाता।

Tuesday, 27 August 2013

रामलला का आगमन से लेकर कारसेवकों की निर्मम हत्या तक :

रामलला का आगमन से लेकर कारसेवकों की निर्मम हत्या तक : १९४९ के पश्चात जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र हुआ मुस्लिमों ने इस्लाम के नाम पर जिन्ना के नेतृत्व मे भारत भू को विभाजित किया, जन्मस्थान के पास हिन्दुओं की संख्या उमडने लगी, दिसंबर २२, १९४९ की मध्य रात्रि श्री राम वहां प्रकट हुए, जिसकी सहमति उस रात वहां ड्यूटी पर तैनात एक मुस्लिम कांस्टेबल ने दी। इस पर कुछ हिंदू वहाँ एकत्र हुए और रामलला की मूर्ति की स्थापना की। दिसंबर २३ की सुबह होने तक रामलला के प्रकट होने का समाचार प्रत्येक घर और सहस्त्रों (हजारों) श्रद्धालुओं को प्राप्त हो चुका था और सभी लोग वहाँ पहुँचने लगे और रामचरितमानस मे लिखी चौपाईयां पढने लगे और उस स्थान को पुनः रामजन्म स्थल बना दिया। उस समय से आज तक वहाँ श्री राम की पूजा अर्चना निर्बाध एवं सतत रूप से चल रही है।

गुजरात का सोमनाथ मंदिर गृहमंत्री सरदार पटेल के प्रयासों और हिंदुओं के दान के द्वारा निर्मित हुआ, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा १९३४ मे आंशिक रूप से टूटी मस्जिद के स्थान पर पूर्ण मस्जिद बनाने का विचार किया, जिसका लौह पुरुष सरदार पटेल द्वारा विरोध हुआ। रामलला की मूर्ति को हटाने के आदेशों को अधिकारियों ने पालन करने से मना किया और कहा कि हिंदू भावनाओं को देखते हुए इस प्रकार के आदेशों का पालन करना संभव नही है। तत्पश्चात एक न्यायालय मे विवादित भूमि का नया केस डाला गया।

९७५ और ८० के बीच अर्कियोलोजी सर्वे ऑफ़ इंडिया के डायरेक्टर जनरल बी बी लाल के मार्गदर्शन में अयोध्या में पुरातत्व संशोधन अभियान चलाया गया। इतिहासविद  एस पी गुप्ता भी इस अभियान के सदस्य थे। बी.बी. लाल के शब्दों में "हमने बाबरी मस्जिद के पास तीन जगह पर खुदाई की, इसमें दो जगह मस्जिद के पश्चिमी और दक्षिणी ओर है, यह खुदाई मस्जिद से सिर्फ दो मीटर के दूरी पर की गयी। मस्जिद की बाहरी दीवार के नीचे की ओर यह पाया की वहाँ अलग अलग स्तर दिखाई देते हैं, १. गुप्त कालीन, २. कुषाण काल, ३.शुंग काल और ४. ईसा पूर्व तीसरी और चौथी शताब्दी काल का स्तर। हम उसके भी नीचे गए और वहाँ कुछ चीजे मिली जिसका सम्बन्ध ईसा पूर्व सातवीं और आठवीं शताब्दी (ई.पू. ७०० या ८०० वर्ष) से हो सकता है। ऐसा संभव है कि सबसे निचले स्तर पर मिले अवशेष प्रभु राम के समय के हों,  क्यों की ऐसे अवशेष हमें अन्य जगहों से भी मिले हैं जो कि भगवान राम से जुडी जगह हैं जैसे शृंगवरपुर भारद्वाज आश्रम और चित्रकूट। जब खुदाई मस्जिद के दक्षिण हिस्से में की गयी और वहाँ भी ईसा पूर्व सातवीं और आठवीं शताब्दी स्तर तक गए, वहाँ भी हमें वहीँ मिला जैसा कि पश्चिमी खुदाई में मिला था। हमने अयोध्या में १४ अन्य स्थान खुदाई की ताकि हमारा अनुमान ठोस हो और हमें सभी जगह से एक जैसे ही प्रमाण मिले। मस्जिद के दक्षिण दिशा में हुई खुदाई में जैसे जैसे हम नीचे गए वहाँ हमें खम्बों की बुनियाद की कतार दिखाई दी। जैसे की मस्जिद के अन्दर वाले खम्बों की है। यह खंबे उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम दिशा मे बनाये गये थे। इन खम्बों पर विशिष्ट शैली के चित्रों और मूर्तियों की दस्तकारी हैं, आम तौर पर ऐसी दस्तकारी मंदिर के खम्बों पर पाई जाती है। यह खम्बे पहली शताब्दी के हैं, और मस्जिद के खम्बों और बाहर मिले खम्बों की बुनियाद यह प्रमाणित करती है कि यह एक ही काम है, इसके आगे भी जब काम किया तो मस्जिद के अन्दर अधिक प्रमाण मिले। इन खम्बों और बुनियादों को देखने से पता चलता है की इनके बीच का अंतर एक जैसा है। खम्बे बुनियाद से थोडा छोटे हैं। आम तौर पर खम्बों से बुनियाद थोडा  बड़ी रखी जाती है ताकि मजबूती बढ़ सके। यह प्रश्न करने पर कि "यदि हिन्दू ढांचे पर मस्जिद बनाई गयी है तो इन खाम्बों को खुला क्यों छोड़ दिया गया?"

बी.बी. लाल कहते हैं "यह समझना होगा कि ऐसा जहाँ भी हुआ है यही देखने को मिला है की जगह और खम्बों को खुला छोड़ जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली में एक मस्जिद है कुव्वातुल इस्लाम जहाँ कई खंबे ऐसे ही खड़े हैं और उन पर गुम्बद रख दिया गया है। यह कोई विशिष्ट बात नहीं है। आक्रामकों की मानसिकता को समझने से पता चलता है की जब मुस्लिम आक्रमणकारी यहाँ आये तो उन्हें अपनी ताकत दिखानी थी। आर ऐसा एक शिला लेख भी कुवातुल मस्जिद में पाया गया है। कहा जाता है यह मस्जिद बनाने के लिए २७ मंदिरों को ध्वस्त किया गया।" 'कुव्वत उल इस्लाम' का अर्थ होता है 'इस्लाम की ताकत' धारणा यह होती है की आक्रामक जनता को यह बताना चाहते हैं वह कितना ताकतवर हैं और सामान्यता प्रत्येक आक्रामक यह करता ही है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि खम्बों के ध्वस्त स्तर से चीनी मिटटी के बर्तनों के टुकड़े मिले हैं। जमीन का वह स्तर जहाँ पर ध्वस्त करने के स्थितिजन्य प्रमाण मिले हैं उस स्तर से चीनी मिटटी के बर्तन के टुकड़ों का मिलना उस समय के मुस्लिम काल की ओर संकेत करता है। भारत में यह बर्तन १३वीं शताब्दी तक नहीं पाए जाते। अतः ध्वस्त स्तर १५ शताब्दी का हो सकता है। चीनी मिटटी के बर्तनों के टुकड़ों का ध्वस्त स्तर पर मिलना और उस खम्बों के ऊपर ही ध्वस्त ढांचे का होना एक सम्बन्ध को स्थापित करता है।

दूसरे इतिहास विद एस पी गुप्ता जी के शब्दों में "यहाँ हमें भू-गर्भ संशोधन की पूरी स्वतंत्रता दी गयी और कहा गया की चाहें तो मस्जिद के नीचे भी खोद सकते हैं किन्तु मस्जिद की उपस्थिति में यह संभव नहीं था। यदि मस्जिद के नीचे भी खुदाई संभव हो जाये तो हमें आशा है की सभी ८४ खम्बो की नींव हम ढूंढ सकेंगे जैसा कि ६ हमने मस्जिद के दक्षिणी हिस्से में ढूंढें"

७ अक्टूबर १९८४ को बड़ी संख्या में लोगो ने आ कर उसी जगह मंदिर पुन निर्माण का संकल्प लिया। यह आन्दोलन स्वाधीनता आन्दोलन जैसा बड़ा आन्दोलन होने की दिशा में चलने लगा था। फिर एतिहासिक दिन आया, १ फ़रवरी १९८६ को मस्जिद के दरवाजे पर लगाया ताला निकाल दिया गया। जिला सत्र न्यायलय ने १९४९ में दिए गए प्रशासनिक आदेशों को ख़ारिज कर दिया और ३६ वर्षो से हिन्दूओ के वहां जाने के बात को मानते हुए ताले को खोलने के आदेश दिए। २३ मार्च १९५१ फ़ैजाबाद के  एकल न्यायाधीश के निरिक्षण के अनुसार उस स्थान का प्रयोग १९३६ के बाद कभी भी मस्जिद की भांति नहीं हुआ और ना ही वहां कभी नमाज पढ़ी गयी।

धर्मनिरपेक्षों के झूठ एवं विवादित ढांचें का गिरना : १९ नवम्बर १९८९ को मंदिर पुन निर्माण की नींव का पत्थर रखा गया जो की एक हरिजन द्वारा रखा गया। यह संकेत था कि यह सिर्फ मंदिर ही नहीं वरन एक नए समाज के निर्माण की शुरुआत भी होगी। इसके बाद १९९० में विभिन्न गुटों के बीच बात आगे बढ़ी किन्तु विभिन गुटों और राजनैतिक दलों की महत्वाकांक्षाओ और इच्छाओं के  कारण बात फंसती चली गयी। इन्ही हालातों में ३० अक्टूबर १९९० को कार सेवा की घोषणा की गयी। लाखों लोग अयोध्या में एकत्रित होने लगे। मुलायम सिंह की उत्तर प्रदेश सरकार ने सुरक्षा के प्रबंध किये और लोगों को अयोध्या में घुसने से रोकने की कोशिश की गयी। उस दिन अयोध्या ने ४६० वर्ष पूर्व के बाबर के आदेशों जैसा अनुभव किया। किन्तु कारसेवा नहीं रोकी जा सकी। नवंबर २, १९९० को अपनी राजनैतिक जमीन और मुस्लिम वोटों के खिसकने के डर से मुलायम सिंह यादव ने साधुओं और कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया। बिना चेतावनी के गोली चलाने के कारण लगभग १०० कारसेवकों की मृत्यु हुई, किंतु आधिकारिक रूप से उत्तर प्रदेश सरकार ने मात्र ६ लोगो की मृत्यु बताई। अयोध्या के नगरवासियों ने पुलिस दमन को प्रत्यक्ष देखा, कारसेवकों के शवों को रेत के बोरों से बांध कर सरयू नदी मे बहाया गया और उस दिन अयोध्या ने फिर औरंगजेब के अत्याचारों की पुनरावृति देखी।

इसी बीच मे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के वामपंथी मार्क्सवादी आदर्शों को मानने वाले और हिंदू विरोधी इतिहासकारों ने एक नयी चर्चा चलानी आरंभ की। १९८९ तक इस बारे मे कोई विवाद नही था कि रामजन्म भूमि पर बाबर ने १५२८ मे जहां मस्जिद बनाई थी, वहां पर एक मंदिर था (एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका "अयोध्या", १९८९ एडिशन)। किंतु १९८९ मे सभी प्रमाणों को एक ओर रख कर तथाकथित २५ विद्वानों ने "The Political Abuse of History" मे कहा कि अयोध्या मे मुस्लिमों द्वारा किये गये अत्याचार एक मिथक हैं लेकिन उसके पक्ष मे वह कुछ भी प्रमाण नही दे सके। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने कथित धर्मनिरपेक्षता को दिखाने के लिये इसको हाथों हाथ लिया। १९९० मे चंद्रशेखर सरकार ने विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी को समस्या के ऐतिहासिक सत्य को जानने के लिये बुलाया। मीडिया द्वारा किया गये प्रचार कि हिंदुओं द्वारा किया गया रामजन्म भूमि का दावा मात्र एक मिथक है से भ्रमित किये हुए बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सदस्य बिना किसी पूर्व तैयारी के आये किंतु जब परिषद के लोगों ने अपने पक्ष को प्रमाणित करने के लिये प्रमाण दिखाये तो वो कुछ न कह सके। जब १९९२ मे मंदिर के और अवशेष मिले तो मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों ने शोर मचाया कि यह प्रमाण म्यूजियम से उठा कर वहाँ रख दिये गये हैं। १९९०-९१ मे विद्वानों की बहस मे विहिप की टीम ने ४ अन्य प्रमाण प्रस्तुत किये, जिनमे राम मंदिर के के हटाये जाने का उल्लेख था। तत्कालीन मंत्री अर्जुन सिंह उन प्रमाणों को अंतर्राष्ट्रीय एक्स्पर्ट से जांच करवाना चाहते थे। किंतु ऐसा नही किया गया।

अक्तूबर १९९२ मे नरसिम्हाराव की केंद्रीय सरकार ने पुनः दोनों पक्षों के बीच में बात कराने का प्रयास किया। किंतु बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने विरोध किया कि जब तक विहिप ६ दिसंबर के प्रस्तावित कार्यक्रम को बंद करने का निर्णय नही करेगी तब तक वह बातचीत मे हिस्सा नहीं लेगी। इस पर विहिप का उत्तर था हिंदू समाज के जन्मभूमि के अधिकार को न्यायालय के निर्णयों या इतिहासविदों के आपस के मतभेदों के कारण रोका नही जा सकता।

६ दिसंबर १९९२ को लाखों श्रद्धालु कारसेवा करने हेतु अयोध्या मे एकत्र हुए, आधिकारिक नेतृत्व कर रहे लाल कृष्ण आडवाणी कारसेवा को मात्र प्रतीकात्मक रूप से भजन कीर्तन के साथ करना चाहते थे, जिस से हिंदुओं का जन्मभूमि स्थान पर अधिकार बताया जा सके। किंतु भीड मे उपस्थित लोग किसी और ही मंशा मे थे, एक बार जब बाड टूट गयी तो उन्होंने ढांचे को नुकसान पहुंचाना शुरु कर दिया, जल्दी ही सभी लोगों ने उनके साथ हाथ बंटाना शुरु कर दिया। अधिकारियों ने उन्हे रोकने के प्रयास किया किंतु सफल नहीं हो सके। कुछ ही घंटो मे बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा जो कि गुलामी का प्रतीक था नीचे आ गिरा।

भाजपा की राज्य सरकार ने तुरंत त्याग पत्र दे दिया, किंतु केंद्र सरकार अगले दिन तक कुछ ना कर सकी और वहां श्रद्धालुओं ने एक टैंट लगा कर प्रतीकात्मक रूप से नया राम मंदिर का निर्माण कर दिया। अल्पसंख्यक वोटों के जाने के भय से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का वचन दिया और ढांचे को "शहीद" का शब्द प्रदान किया। इसके कारण पूरे देश मे हिंदू मुस्लिम दंगे होना शुरु हो गये।

ढाँचे के गिरने पर कुछ अन्य प्रमाण भी मिले। एक स्तंभ जो कि ११४० ई। के लगभग का है उस पर भगवान विष्णु द्वारा बलि के वध का चित्रण था, मिला। यह प्रमाण भी बंद कर दिया गया और २००३ तक छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों द्वारा झूठा बताया जाता रहा। २००३ मे People's Democracy, जो कि सीपीएम का था, ने कहा कि लखनऊ के म्यूजियम के कैटॉलाग मे विष्णु के बारे मे जो पंक्तियां लिखी गयी है वो ढांचे के स्थान पर मिले गये भगवान विष्णु के प्रकार से मेल खाती हैं किंतु वह १९८० से गायब है। इसका तात्पर्य यह था कि हिंदुओं द्वारा दिया गया प्रमाण कि ढांचे के गिरने पर विष्णु की मूर्ति प्राप्त हुई है, उसको म्यूजियम से गायब हुई मूर्ति बताया जा सके। किंतु म्यूजियम के डॉयरेक्टर श्री जितेंद्र कुमार ने कहा कि वह मूर्ति कभी भी म्यूजियम से गायब नही हुई है, अपितु उसे आम लोगों के लिये नही रखा गया है, और ऐसा उन्होने एक प्रेस कॉफ्रेंस मे कहा (हिंदुस्तान टाइम्स, ८ मई, २००३)।


अपराजेय अयोध्या, एक यात्रा . .

हो रहा भारत निर्माण - सच या धोखा

इन दिनों चैनलों और समाचार पत्रों में "भारत-निर्माण" विज्ञापनों की धूम है। करीब 570 करोड़ के भारी भरकम बजट वाला ये विज्ञापन सरकार के कथित उपलब्धियों (??) को जन जन तक पहुँचाने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। इसका एक उद्देश्य ये भी है की सरकार द्वारा जन-साधारण के और कल्याण के लिए जो काम किये गए है उसकी जानकारी आम-जनों तक पहुचायी जा सके। वैसे ये बात दिलचस्प है की आम लोगों के कल्याण की जानकारी आम लोगों तक पहुंचाने के लिए विज्ञापनों की जरुरत पड़ रही है।
इसे इस तरह भी कह सकते है की यूपीए सरकार में देश का और देश के नागरिकों का जो अभूतपूर्व विकास हुआ है (जिसका दावा ये विज्ञापन करते दिखाई पड़ते है), उसकी जानकारी लोगों को विज्ञापनों द्वारा मिल रही है, अन्यथा जमीनी-स्तर पर तो कुछ ऐसा दूर दूर तक किसी नागरिक को महसूस हो नहीं रहा है, दिखाई नहीं दे रहा है और जनता की ये कोफ़्त उस समय और बढ़ जाती है जब ऐसे मिथ्य-भासी विज्ञापन ऐसे सरकार की तरफ से सामने आते है जिस पर लाखों-करोड़ों रुपये के सार्वजनिक धन के, जनता के कमाई के गबन का आरोप हो, जिस सरकार में नित नए घोटाले आते हो और सरकार में बैठे लोग बेशर्मी से लीपापोती में जुट जाते हों, एक ऐसी सरकार जिसमे जो सरकार की नियत पर सवाल उठाने का साहस करे, इस लूट के खिलाफ आवाज़ उठाने का साहस करे, उसके खिलाफ वो पूरी बेशर्मी से मान-मर्दन में लग जाती हो चाहे वो अन्ना हजारे जैसे समाजसेवी हों या CAG या सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक-संस्थाएं, एक ऐसी सरकार जिसने देश के विकास दर को 4.5% तक लुढका दिया हो, एक ऐसी सरकार जिसके राज में बेरोजगारी और महंगाई अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुँच गयी है।
एक आम नागरिक की कोफ़्त इस बात को लेकर भी है की क्या कुर्सी पर बैठे लोग उसे इतना बेवक़ूफ़ और नासमझ समझते है जो ऐसे विज्ञापनों के बहकावे और भुलावे में आ जाये। इस तरह के विज्ञापन उसे अपने समझ की विश्वसनीयता पर एक तमाचा लगने लगते हैं।
हालांकि कुछ लोगों का मानना ये भी है की ये विज्ञापन जन-मानस को प्रभावित करने के उद्देश्य से है भी नहीं (देश के लोग इतने बेवकूफ भी नहीं हैं- इसका भान सरकार के लोगों को है), इसका लक्ष्य तो वो "मीडिया-मानस" है जिसे इन विज्ञापनों के जरिये अपरोक्ष रूप से खरीदने की कोशिश हो रही है ताकि आगामी चुनाव-वर्ष में थोड़ी राहत रहे। बरहाल जो भी हो इन विज्ञापनों को देख कर कुढ़ता और जलता तो आम नागरिक ही है इसमें कोई दो मत नहीं है। यदि इस देश के लोगो के पास भी इतना सामर्थ्य और संसाधन होता तो मुझे पूरा भरोसा है की इस देश की जनता अपने सरकार के ऐसे मिथ्या-प्रचार के खिलाफ इतना ही मजबूत प्रचार अभियान छेड़ती जिसके बोल, जिसकी पंक्तियाँ भले जावेद अख्तर जैसे बड़े और महंगे लेखकों से न लिखाई गयी होती लेकिन प्रभाव, प्रसार, प्रियता और सत्य के मानकों पर ऐसे मिथ्या-विज्ञापनों पर कही भारी पड़ती। ऐसी ही कुछ स्व-रचित पंक्तियाँ नीचे दी गयी है, इस विश्वास के साथ की ये इन मिथ्या-विज्ञापनों के प्रति जन-मानस के आक्रोश और कोफ़्त को प्रति-बिम्बित कर रहीं होगी और लोगो के हालात  और समझ दोनों का मजाक उड़ाने वाले ऐसे विज्ञापन अभियान के दुस्साहसी पुरोधाओं के कानों को झंझानायेगी भी:
CWG में मिला दिया कलमाड़ी ने मिटटी में देश का नाम,
कांग्रेस कहे हो रहा भैया, हो रहा भारत निर्माण #CWG
इनसे पहले समझ न पाया कोई और "तरंगो" की माया,
जमीन की कौन कहे, इन्होने तो आसमाँ भी बेच खाया  #2G
सिब्बल के बेटे ने डाला वोडाफोन के वकील का लिहाफ,
बाप भये लॉ-मिनिस्टर और हो गया टैक्स माफ़ #Vodafone
17 साल बाद आया हाथ रेल मंत्रालय आज, बोले भतीजा
10 करोड़ से कम दोगे तो हो जायेंगे मंत्री-मामू नाराज़ #RailGate
घूमे सिंघवी एंटी-रेप बिल पर बहस को सज-धज
जो मौका मिला तो बनाने लगे थे बिस्तर पर जज #AMSSexScandal
अपने गुनाहों की रिपोर्ट पर चली सरकार करने व्याकरण शुद्ध,
बलिहारी सुप्रीम कोर्ट आपनो याद दिला दिया छठी का दूध  #CBIGate
कोई कहे डेढ़ लाख-करोड़,कोई कहे 10 लाख-करोड़ औ कोई 26 लाख-करोड़ की कौड़ी,
पकड़ सका न कोई असल चोर,  की इतनी सफाई से काले कोयले की चोरी   #CoalGate
ठेठ मुरादाबाद का, मिटटी को भी छू लू तो हो जाती है सोना,
कहे वाड्रा रहे आशीर्वाद सासू माँ का, खरीद लूँ देश का कोन-कोना  #VadraGate

सोच समझ कर उन्हें चुनना है, जो देश और जन हित में सही नीतियां बना सके

सोच समझ कर उन्हें चुनना है, जो देश  और जन हित में सही नीतियां बना सके
यह हमारी लोकतात्रिक शासन व्यवस्था की दुर्बलता ही है कि जिन शासकों ने अपनी नीतियों और कार्यशैली से देश को भारी क्षति पहुंचायी, वे जनता के बीच सिर उठा कर चलने का साहस कर रहे हैं। जिनके वृहद आकार के घपलों-घोटालों से देश आर्थिक दृष्टि से तबाह हो गया, उनके मन में अपने करमों के प्रति न तो पश्चाताप  है और न ही झेंप। दस वर्षों से जिन्होंने अपनी अर्कमण्यता और भ्रष्ट आचरण से देश को विकास में बीस वर्ष पीछे धेकेल दिया, वे फिर शासन करने के लिए पांच वर्ष का अधिकार मांग रहे हैं। इसके लिए वे ढ़ोल पीट कर अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं।
जो हक़ीकत से दूर भागते हैं, उन्हें ढ़ोल पीट कर नौटंकी करनी पड़ती है। देश के प्रत्येक नागरिक को उनके दिये हुए कष्टों की यातना भोगनी पड़ रही है। अपनी गाढी कमाई की जब बाज़ार में कोई कीमत नहीं रहती, तब सरकार की अकर्मण्यता याद आती है। पांच सौ रुपये के नोट से अब सौ रुपये का ही सामान आता है। मन मसोस कर आवश्यक चीज़ो की कटौती करनी पड़ रही है। बच्चों को तरसाना पड़ रहा है। अब उनके गाये गीत सुने या आंसू बहाये, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
पिछले चुनाव के समय किये गये वादे को अगला चुनाव आने के पर्वू निभाने का आखिर क्या औचित्य है? यदि भारतीय नागरिकों को भूख और कुपोषण से निज़ात दिलानी थी, तो यह कवायद चार वर्ष पूर्व क्यों नही की गयी ? प्रत्येक नीति को वोट राजनीति से जोड़ने से शासकों की नीयत पर शक होता है। निश्चय ही उनके लिए सत्ता महत्वपूर्ण है, जन कल्याण नहीं। चुनावी वैतरणी पार करने के लिए खाद्य सुरक्षा बिल की पूंछ पकड़ने से क्या सारे पाप धुल जायेंगे? उनकी नीतियों से उपजे अभूतपूर्व आर्थिक संकट को नज़र अंदाज कर क्या जनता उनकी परोपकारी छवि को मान्यता दे देगी ?
दोनो प्रश्न  भविष्य  के गर्भ में हैं। इन प्रश्नो का उत्तर जनता चुनावों के समय दे देगी। आर्थिक संकट की भयावता को भांप कर सम्भवतः खाद्य सुरक्षा बिल के पास होते ही सरकार चुनाव का बिगुल बजा देगी। क्योंकि सरकार को मालूम है कि उनकी नीतियों से उपजे आर्थिक संकट की भयावता दिन प्रति दिन बढ़ती जायेगी और अगले वर्ष चुनाव कराने पर उनकी रही सही साख खत्म हो जायेगी। वस्तुतः उन्हें किसी भी तरह सत्ता पर से अपना नियंत्रण छोड़ना नहीं है। वे इसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। खाली हुए खजाने से भी करोड़ो रुपये निकाल कर विज्ञापन बाजी पर खर्च कर रहे हैं, उन्हें देश  की आर्थिक हालत की कोई चिंता नहीं है। चुनाव जीतने के लिए अरबों रुपये बहा देंगे। गरीब देश के मालामाल राजनेता अपने धन की चकाचैंध से जनता को भ्रमित कर, उसके वोट पाने के सभी उचित अनुचित प्रयास करने में पीछे नहीं हटेंगे।
अगले लोकसभा चुनाव भारत के संसदीय लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा साबित होंगे। भारत की जनता को अगली सरकार चुनने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगें। उसके निर्णय से या तो उनके कष्टों से थोड़ी राहत मिलेगी या उनके कष्ट और अधिक बढ़ जायेंगे।
वर्तमान सताधारी दल ने अक्षम्य आर्थिक अपराध किये हैं और सरकारी जांच एंजेसियों के सहारे इन्हें भरसक दबाने की कोशिश  की हैं। इन्हें क्षमादान दे कर फिर शासन सौंपना, भ्रष्टाचार  को मान्यता देना है। इस दल को इतने कठोर दंड से दंडित करना चाहिये ताकि यह राजनीतिक दल सता से इतने दूर रह जाय कि न तो सरकार बना सकें और न ही इनके समर्थन से कोई सरकार बन सकें।
यदि भारतीय जनता इनके छल-कपट के चक्रव्यूह में फंस कर उन्हें सता के नज़दीक ले जायेगी। या ऐसी स्थिति परिस्थतियां उत्पन्न हो जायेगी, कि उन दोगले राजनेताओं के समर्थन से सरकार बना लें, जिनकी कथनी और करनी में बहुत फर्क है, जो चुनाव में एक पार्टी के प्रत्यासी का हराते हैं, किन्तु सरकार बनाने और सरकार चलाने में उसका सहयोग करते हैं। दोनो ही स्थितियां भारतीय लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यजक होगी। और यदि कांग्रेस पार्टी के समर्थन से किसी क्षत्रप को प्रधानमंत्री बना दिया गया तो देश एक भयानक दुश्चक्र में फंस जायेगा। देश को विकट स्थिति का सामना करना पडे़गा। आर्थिक  संकट बढ़ जायेगा। प्रगति अवरुद्ध हो जायेगी और एक वर्ष में ही अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी करनी पड़ेगी।
अतः भारत की जनता को देश के समक्ष उत्पन्न होने वाली दुरुह परिस्थितियों को ध्यान में रख कर बहुत ही सोच समझ कर मतदान करना चाहिये। देश को आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाना या उसे दुर्बल बनाना -दोनों ही उसके हाथ में है। जनता को उन राजनीतिक दलों और उनके प्रत्यासियों के पक्ष में मतदान करना चाहिये, जिन पर विश्वास  जा सके। जिनका चरित्र दाग़दार नहीं हो। जिनका भूत संदीग्ध रहा हो और जो अपने अपराधों को स्वीकार नहीं करते हों, ऐसे राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की मान्यता जनता चाहें तो खत्म कर सकती है।
जो देश के हालात बने हैं उसे देखते हुए देश को विकट आर्थिक हालात से उबारना बहुत दुष्कर कार्य होगा। आने वाली सरकार को कड़े आर्थिक फैंसले लेने के लिए विवश होना पड़ेगा। इसमें कोई आश्र्चर्य नहीं कि इसका सारा भार जनता पर डाला जायेगा। क्योंकि जनता ही वह दुधारु गाय है, जिससे हर समय दुहना जरुरी है, चाहे उसकी हालत कृश्काय हो गयी। चाहे खुराक नहीं मिलने से उसके थन में दूध सुख गया हो, किन्तु उसकी चमड़ी को भी खींचों और दूध निकालो। यदि वह दर्द से छटपटाये तो भी उसे यही कहो- हमारे पास इसके अलावा चारा ही क्या है?
दरअसल देश को विकट आर्थिक हालात से बाहर निकालने का ही एक ही उपाय बचा है- विदेशों में जमा भारतीयों के काले धन को देश में लाने के लिए सार्थक नीति बनाना। यदि कोई राजनीतिक दल चुनावों से पूर्व इस संबंध में जनता से वादा करता है, तो सब कुछ भूल कर उस राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान करना चाहिये। विदेशों में जमा धन यदि भारत में आ गया तो जनता पर सरकारी करों का भार कम हो जायेगा। महंगाई घट जायेगी। उद्योगो को राहत पैकेज दे कर उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ायी जा सकेगी। भारत विदेशी कर्ज  के जंजाल से मुक्त हो जायेगा। यह बहुत ही सुखद स्थिति होगी।
काले धन को स्वदेश लाना कोई जटिल व असंभव प्रक्रिया नहीं है। यह धन भ्रष्ट राजनेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों का है, जिसे कोई भी सरकार ला सकती है, यदि उसके पास  नैतिक बल हों। भारत की जनता यदि धर्म, जाति और प्रान्तीयता के बंधनों से मुक्त हो कर उस राजनीति दल के पक्ष में एकजुट हो कर मतदान करेगी तो इस देश की तकदीर बदल जायेगी। आने वाली कई पीढियां खुशहाल हो जायेगी। जनता को एक बाद याद रखनी चाहिये- राजनीतिक दलों के आचरण और नीतियों से जाति और धर्म पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि जाति और धर्म कभी नष्ट नहीं होते। किन्तु राजनेताओं की नीतियों से देश बर्बाद हो जाता है। जनता को महंगाई और अभाव के अनावश्यक कष्ट झेलने पड़ते हैं। अतः सोच समझ कर उन्हें चुनों जो देशऔर जन हित में सही नीतियां बना सके, उन्हें नहीं जो अपनी थोथी उपलब्धियों का ढ़ोल पीट कर जनता को भ्रमित करने का प्रयास करें।

Monday, 26 August 2013

सुशासन देने में निष्फल सरकार संतों को दबाने में सफल

एक प्रदेश के युवा नेता के नेतृत्व में पूरे प्रदेश की जनता ने उसके प्रति विश्वास  व्यक्त किया था, उस नेता ने अपनी कार्यशैली से प्रदेश की जनता को धोखा दिया है। जनता ने सुशासन के लिए वोट दिये थे। प्रदेश के विकास और खुशहाली के लिए वोट दिये थे। मात्र वोट बैंक राजनीति को सशक्त करने के लिए नहीं। एक समुदाय विशेष  को प्रसन्न करने के लिए नहीं।
इस समय जो प्रशासनिक ताकत एक धार्मिक यात्रा को रोकने में झोंक रहे हैं, उसका क्षणांश भी यदि वे प्रदेश में उत्पात मचा रहे अपराधियों को रोकने में लगाते तो विवादास्पद और असहिष्णु मुख्यमंत्री की जगह यशस्वी मुख्यमंत्री कहलाते। परन्तु जो आकाश से सीधे शिखर पर उतरते है, उन्हें शिखर की ऊंचाई का अहसास नहीं होता, किन्तु जो ज़मीन से शिखर पर विभिन्न बाधाओं को पार करते हुए चढ़ते हैं, उन्हें शिखर की ऊंचाई का अहसास होता है। वे लुढ़क भी जाते हैं, तो फिर चढ़ने का अनुभव रखते हैं। किन्तु जो सीधे शिखर पर उतरते हैं, वे यदि धकेले जाते हैं, तो फिर कभी चढ़ने का साहस नहीं कर पाते।
अखिलेश यादव अभी भी पिता की अंगुलि पकड़ कर चल रहे हैं। निश्चय ही वे बिना सहारे के चल ही नहीं सकते। पराश्रित व्यक्ति सही समय पर उपयुक्त निर्णय लेने में असमर्थ रहते हैं। इसीलिए उन्होंने एक आत्मघाती निर्णय लिया, जिससे उन्हें लाभ की जगह हानि अधिक होगी। उन्हें शायद नहीं मालूम कि एक समुदाय को प्रसन्न करने से यदि दूसरा समुदाय नाराज हो जायेगा, तब भारी राजनीतिक हानि होगी। क्योंकि अखिलेश यादव को प्रदेश के अधिकांश नवयुवकों ने वोट दिये हैं, जो सभी जातियों और धर्मों को मानने वाले हैं। अब उन्हें यह अहसास हो गया कि अखिलेश भी अपने पिता की तरह विशुद्ध सियासी व्यक्तित्व है, जो तुष्टिकरण को ही ज्यादा महत्व देते हैं। भारी बहुमत होने के उपरान्त भी प्रदेश की दुर्दशा को सुधारने का आत्मबल उनके पास नहीं है। अखिलेश अब जन विश्वास  खो चुके हैं। एक युवा राजनेता जो लम्बी सियासी पारी खेल सकता था, अविवेक से अपनी राजनीतिक उम्र को घटा दिया है।
उत्तर प्रदेश अपराधियों का अभयारण्य बना हुआ है। नागरिक भयभीत है। अपराधी बैखोप है। उनके होंसले बुलंद है। राजनीतिक संरक्षण से प्रदेश भर में अपराध बढ़ रहे हैं। किन्तु अपराधों को रोकने में सरकार पूरी तरह असफल रही है। क्योंकि सरकार के पास नैतिक बल नहीं है। दिन दहाड़े एक जाबांज पुलिस अफसर की गांव में हत्या कर दी जाती है। बाहुबलि मंत्री को सरकार बचा लेती है। पुलिस कर्मियों पर ऐसिड़ से अपराधियों द्वारा हमला किया जाता है। रेतमाफिया पर शिकंजा कसने वाली एक महिला अधिकारी को निलम्बित कर दिया जाता है। इस प्रकरण का देश भर में बदनाम होने पर सकरकार द्वारा लच्चर बयानों से अपना पक्ष रखा जाता है। यह सब इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य है कि एक सरकार अपनी विश्व स्नीयता खो चुकी है। जनता उसे पसंद नहीं कर रही है।
लोकसभा चुनावों में चालिस सीटे जीतने का समाजवादी पार्टी का सपना अधुरा ही रह जायेगा, क्योंकि निर्जीव पड़े रामजन्मभूमि आंदोलन को पुर्नजीवित करके पार्टी ने अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मारने का प्रयास किया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक धार्मिक पद यात्रा की अनुमति इस आधार पर नहीं दी की इससे साम्प्रदायिक सदभाव बिगड़ने की सम्भावना रहती है। परन्तु सरकार का यह तर्क गले नहीं उतरता है। क्योंकि यदि यात्रा होती तो साम्प्रदायिक सदभाव बना रहता। अब नहीं हो रही है, इसलिए दो समुदाय के मन में अनावश्यक रुप से कटुता आ गयी है। कुछ सौ या हजार साधु-संत भजन-कीर्तिन कर के चैरासी कोसी यात्रा कर लेते तो इससे कौनसा आसमान फटने वाला था? यदि ऐसा हो जाता, तो न यह विवाद बनता और न ही देश भर में इसका प्रचार होता। न टीवी चेनल वाले यहां तक पहुंचते और न ही इस पर बहस होती। एक साधारण घटना को एक प्रदेश की सरकार ने अपने सियासी लाभ के लिए जानबूझ असाधारण बना दिया है।
चैरासी कोसी यात्रा करने वाले साधु-संत और किसी धार्मिक संगठन के व्यक्ति अपराधी प्रवृति के नहीं हैं। उनके हाथों में नंगी तलवारे, बंदूके, मशीनगने और बम नहीं थे, फिर कैसे सरकार को शांति भंग होने की आशंका थी। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि यात्रा का समय अभी नहीं होता है। यह यात्रा जानबूझ कर सियासी लाभ के लिए की जा रही है। आपका तर्क ठीक हो सकता है। परन्तु क्या भगवान का नाम लेना, परिक्रमा करना और किसी धर्म की परम्पराओं में विश्वास  और आस्था व्यक्त करना अपराध है? क्या भगवान का नाम लेने और धार्मिक अनुष्ठान से पूजा अर्चना करने के लिए भी अब सरकार से अब अनुमति लेनी होगी? सरकार को शांति बनाये रखने का दायित्व होता है, किसी धर्म में आस्था रखने वालों की मर्म पर चोट पहुंचाने का नहीं। सरकार और अन्य राजनीतिक पार्टियों को धार्मिक आस्था पर तर्क-वितर्क करने का अधिकार नहीं है । संविधान ने सभी धर्मों को मानने की और धार्मिक परम्पराओं को निभाने की भारतीय नागरिकों को छूट दे रखी है। राज्य सरकारों को संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकों के अधिकारों की अवमानना करने का अधिकार नहीं दिया है।
यह भी तर्क दिया जा रहा है कि यह धार्मिक यात्रा नहीं, सियासत है। एक राजनीतिक पार्टी को लाभ पहुंचाने का उपक्रम है। यदि ऐसा किया जा रहा है तो इसमे गलत क्या है? क्या कोई राजनीतिक पार्टी जुलूस नहीं निकाल सकती? पद यात्रा नहीं कर सकती? यदि धार्मिक यात्रा एक राजनीतिक पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए की जा रही है, तो उसे सियासी लाभ की पूर्ति लिए ही  तो रोका जा रहा है। दूसरों पर कीचड़ फैंकने के पहले अपने दामन को भी बचाना जरुरी है, क्योंकि जो कीचड़ में खड़े हो कर दूसरों पर कीचड़ फैंकते हैं, उनके स्वयं के कपड़े भी कीचड से सने होते हैं।
जिनक मन में मेल नहीं होता। जो राजनेता अपने कार्यों से जनता का दिल जीत लेते हैं, जनता हमेशा उनके समर्थन में खड़ी होती है। किन्तु जो राजनेता इसमें असफल होते हैं उन्हें झूठ, तिकड़म और छल कपट की राजनीति करनी पड़ती हैं। एक प्रदेश सरकार जो एक धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचा कर दूसरी आस्था पर फूल बरसा रही है, उसे क्षणिक सियासी लाभ मिल सकता है। स्थायी कभी नहीं। ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है कि अपने ही देश में अपने ही धर्म और धार्मिक परम्पराओं को निभाने के लिए सरकार अपने सियासी लाभ के लिए उस पर रोक लगा दें। भक्त प्रहलाद को हरि नाम लेने के लिए उसके पिता ने रोका था, उसका परिणाम क्या हुआ ? क्या हिरणाकश्यप की ताकत ने उसका हमेशा साथ दिया ? अतः सरकारों का काम नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना है, उसे कुचना नहीं। रामलीला मैदान में एक सरकार ने ताकत के मद मे चूर हो कर सोये हुए निहत्थे स्त्री पुरुषो पर अत्याचार किया था, उस पार्टी की आज हालत क्या है? सता उसके हाथ से फिसलती हुई दिख रही है। अतः सता और ताकत हमेशा साथ नहीं रहती, इस पर जो अभिमान करता है, उसका अभिमान एक दिन चूर चूर हो कर रह जाता है।

कांग्रेस के राज में प्याज और दामाद

काफी समय पहले, 1998 में प्याज की लगातार बढ़ती कीमतों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी का बेड़ा गर्क कर दिया था। प्याज वैसे तो पूरे देश में लेकिन खासकर उत्तर भारत में खान-पान का जरूरी हिस्सा है। और अब, जब दिल्ली समेत कुछ अहम राज्यों में विधानसभाओं के बाद आम चुनाव होने वाले हैं, इसके दाम आसमान छू रहे हैं। यह बहुत मजेदार है कि चुनाव के करीब आते ही प्याज की कीमत कैसे चढ़ जाती है। जो लोग इसके लिए प्राकृतिक या आर्थिक कारणों को जिम्मेदार मानते हैं, वे असली खेल नहीं समझ पा रहे हैं।

हालांकि, बीजेपी को इस बार खुश होना चाहिए। इस बार जिसको इसकी तपिश बर्दाश्त करनी होगी, वह उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है, जिसकी केंद्र और दिल्ली दोनों जगहों पर सरकारें हैं। यही स्थिति 1998 में बीजेपी की थी। हालांकि, पिछले कुछ सालों में जिस तरह का घटनाक्रम रहा है, बीजेपी को 1998 की कांग्रेस के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में होना चाहिए था। कांग्रेस को सिर्फ प्याज की कीमतों से नहीं जूझना है। इसे सालों के कुशासन और घोटलों की कीमत भी चुकानी पड़ेगी। आए दिन इसने घोटाले थाल में सजाकर विपक्षियों के सामने मुद्दे परोसे हैं। स्थिति ऐसी है कि आम आदमी भी इन घोटालों से ऊब चुका है। इस फेहरिस्त में अब यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के पावरफुल दामाद रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदे से जुड़ा विवाद भी शामिल हो चुका है।

जिस इलाके में यह विवादित सौदा हुआ है, वहां के वर्तमान कांग्रेस सांसद राव इंद्रजीत सिंह ने पूरे मामले में जांच की मांग करके कांग्रेस की मुश्किल और बढ़ा दी है। इंद्रजीत सिंह ने कहा है कि आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के आरोपों की जांच होनी चाहिए कि क्या भूपिंदर सिंह हु्ड्डा सरकार ने नियमों को ताक पर रखकर रॉबर्ट वाड्रा को फायदा पहुंचाया है।

प्रभुत्व के लिए हरियाणा के दो कांग्रेसी नेताओं की जंग ने बड़ा तूफान खड़ा कर दिया, क्योंकि इसमें वाड्रा का नाम जुड़ा हुआ है। पार्टी मुखिया और उनके परिवार पर हमले की आहट भर से सभी सीनियर नेता प्रवक्ता में तब्दील हो गए और बागी रुख दिखा रहे सांसद पर भिड़ पड़े। मानो वे कह रहे हों कि आप अपनी लड़ाई लड़िए, लेकिन 'पवित्र और सर्वोच्च' की तरफ उंगली दिखाने की आपकी हिम्मत कैसे हो गई। लेकिन, घोटालों की तरह लोग इससे भी ऊबने लगे हैं।

बीजपी इन मुद्दों पर हवा बनाने में विफल रही है और इसकी वजह से उसके ज्यादातर समर्थक भड़के हुए हैं। ऐसा लग ही नहीं रहा है कि यही वह पार्टी है, जो चाहे देश का कोई कोना हो और कोई नेता हो, एक सुर में बोलती दिखती थी। अब तो लगता है कि यह पार्टी एक मंच से भी एक सुर में नहीं बोल सकती। पार्टी के नेता एक दूसरे को निस्तेज करने में इस कदर व्यस्त हैं कि कांग्रेस मजे में गा रही है। आश्चर्य नहीं है कि इंटरनेट पर सक्रिय रहने वाले लोगों ने घोटाले को लेकर यूपीए के रेकॉर्ड को देखते हुए यूनाइटेड प्लंडर अलायंस का नाम दिया तो बीजेपी भी भारतीय झगड़ा पार्टी का तमगा पा गई। इसके लिए पार्टी किसी और को जिम्मेदार ठहरा भी नहीं सकती है। इसके लिए पार्टी के वे नेता ज्यादा जिम्मेदार हैं, जो भूल चुके हैं कि वे खुद से ऊपर देश को रखने की कसमें खाते हैं। ईमानदारी से कहूं तो आज के माहौल में 'खुद से ऊपर देश' सुनने में ही भरोसा करने लायक नहीं लगता है।

बेशक दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के अलावा दूसरी पार्टियां भी चुपचाप नहीं बैठी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ा चुके क्षत्रपों की भी अपनी लड़ाइयां हैं। उत्तर प्रदेश में बीएसपी बनाम एसपी है, जहां दुर्गा शक्ति के मामले को लापरवाही से निपटाए जाने के बाद मायवाती को बाप-बेटे की यादव जोड़ी के खिलाफ हमला बोलने के लिए पर्याप्त मसाला मिल गया है और मीडिया में यह खूब जगह भी पा रहा है। नरेंद्र मोदी की लाख कोशिशों के बाद भी महाराष्ट्र में चचेरे भाई उद्धव और राज ठाकरे एक-दूसरे को बख्शने के संकेत नहीं दे रहे हैं, जबकि वे जानते हैं कि उनके इस झगड़े में कांग्रेस और एनसीपी को फायदा होगा। महाराष्ट्र के मामलों में दोनों एक-दूसरे पर 'गोली' दागने के मौके नहीं गंवाते।

नरेंद्र मोदी के उत्कर्ष की वजह से बिहार में धमाके के साथ बीजेपी का साथ छोड़ने वाले नीतीश कुमार भी ढलान पर हैं। उन्हें अपने मंत्रियों पर नियंत्रण बनाए रखने में मुश्किल हो रही है, जो इन दिनों जनभावना के खिलाफ राजनीतिक रूप से गलत बयान दे रहे हैं।

देश चुनाव के लिए तैयार हो रहा है। यह चुनाव कई मायनों और कई वजहों से अहम और ऐतिहासिक साबित हो सकता है। रोमांचक, मजेदार और लुभावने दौर के लिए तैयार हो जाइए। अभी कई प्रत्यक्ष और परोक्ष लड़ाइयां सामने आएंगी। कई कमजोर लोग भी मजबूती दिखाएंगे और किसी-किसी मामले में यह सच्चा भी होगा क्योंकि गलत को बर्दाश्त करने की उनकी क्षमता जवाब दे चुकी होगी। कुछ मामले में विपक्ष के हाथों में खेलते लोग भी सामने आएंगे, जिसके पक्ष में हवा बनती दिख रही है। आखिर मौकापरस्ती उनके लिए एकदम फिट है।

मैं और आप, जो इस तमाशे को देख रहे हैं, को अब ज्यादा सतर्कता से इस पर नजर रखने की जरूरत है। हमें असली और फर्जी लोगों की पहचान करनी होगी और ऐसे लोगों को चुनना होगा, जो हाल के सालों में देश में गर्त की ओर जा रही प्रवृत्ति को थाम सकें। एक लाइन में कहूं तो हमारे पास लापरवाह होने का मौका नहीं है।

Saturday, 24 August 2013

भारतीय जनता की सहनशक्ति अब जवाब दे रही है


यह देश भगवान भरोसे चल रहा है। कुछ भी ठीक-ठाक नहीं है। सब कुछ अस्तव्यस्त है। चारों ओर गड़-बड़ है। देश के हालात अत्यधिक विकट और जनता के लिए बेहद कष्टदायक बन गये हैं, परन्तु जनता आक्रोशित हो कर भी हालात से समझौता कर रही है। उसकी सब्र का बांध फूटना चाहता है, किन्तु किसी चमत्कार से ही रुक हुआ है। हांलाकि उसकी सहनशक्ति अब जवाब दे चुकी है।
देश में एक सरकार का अस्तित्व है। सरकार का मुखिया मौन है। अपने भाग्य व ईश्वर  कृपा से वे प्रफुलित हैं। देश व जनता की उन्हें कभी चिंता नहीं रही। वे शरीर से राजनेता और मन से नौकरशाह ही बने रहे। राजनीति में अनाड़ी खिलाड़ी को दस बार लालकिले से झंड़ा फहराने का मौका मिल गया, यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। अरबों रुपये की धन संपदा एकत्रित कर चुके उनके सहयोगी अगला चुनाव जीतने की रणनीति में उलझे हुए हैं। शासन चलाने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। पूरे देश को भ्रष्ट  व अकर्मण्य नौकरशाही के हवाले कर रखा है। किसी गम्भीर प्राकृतिक आपदा या बड़ी आकस्मिक घटना के दौरान नौकराशाही जागती है। फिर अपने आकाओं को जगाती है। उतराखंड तीन दिन तक भयावह प्राकृतिक आपदा में फंसा रहा। हज़ारों नागरिकों का जीवन संकट में पड़ गया। टीवी चेनलों के हाहाकार को सुन कर नौकरशाही की तंद्रा टूटी। तब तक हज़ारों जिंदगिया काल कलवित हो चुकी थी।
चीन की दादागिरी सभी सीमाएं पार कर चुकी है। पाकिस्तान अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा है, किन्तु सरकार पर पड़ोसी की किसी भी चुनौती और हरकत का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। जनता क्रुध हो जाती है। किन्तु सरकार चुप्पी साधे रहती है। देश में मीडिया यदि प्रभावी भूमिका नहीं अदा करता, तो भारत की जनता बड़ी-बड़ी घटनाओं से अनजान ही बनी रहती।
मुद्रास्फिति, महंगाई, राजकोषीय घाटा, रुपये की निरन्तर गिरती सेहत और बढ़ता निर्यात बजट, सिकुड़ता विदेशी मुद्रा भंड़ार, गिरता औद्योगिक उत्पादन, बढ़ती बैरोजगारी देश की अर्थव्यवस्था की एक विद्रुप तस्वीर पेश कर रही है। किन्तु सरकार बिगडे़ आर्थिक हालात पर पलीता लगाने के लिए सरकारी खजाने को खाली करने पर तुली हुई है। चुनाव जीतने के लिए जनता में लाखों करोड़ रुपये की खैरात बांटी जा रही है। देश चाहे बरबाद हो जाय। जनता महंगाई और अभावों के बोझ के तले दब कर तड़फ-तड़फ कर अपने प्राण त्याग दें, पर सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है। उसे चिंता सिर्फ इस बात की है कि कैसे चुनाव जीता जाय और कैसे अगली सरकार बनायी जाय।
दरअसल देश की राजनीति भारतीय जनता की सहनशीलता की परीक्षा ले रही है। अधिकांश भारतीयों की भोजन की थाली से भोज्य पदार्थ धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। सब्जी, दाल, तेल, मसाले, चीनी सब अब विलासिता की वस्तुए बनती जा रही हैं। अलबता घी, दूध, दही तो बहुत पहले ही अधिकांश भारतीयों के बजट में नहीं समा रहा है। देश की एक चैथाई आबादी को भरपेट भोजन नहीं मिलता। बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। वे सूखी रोटी को बिना सब्जी और दाल के पानी के साथ गटकने की आदत डाल रहे हैं।
जो भारतीय नागरिक पेट भरने में सक्षम हैं, किन्तु स्वास्थय और बच्चों की शिक्षा का खर्च से परेशान है। पेट्रोल -डिजल और रसोई गेस की कीमते डेढ़ी से दो गुणी हो गयी। अब भी इनमे विराम लगने की सम्भावना नहीं है। कहीं भी जाने पर अब सिर चकराने लगता हैं, क्योंकि आटों और बसों का किराया बहुत अधिक बढ़ गया है। महंगाई ने भारतीय जन को इस तरह व्यथीत कर दिया है कि गरीब भी रो रहा है। साधन-सम्पन्न भी रो रहा है। चारों ओर असंतोष का ज्वार उफन रहा है। परन्तु भारत सरकार जनता की इस पीड़ा में भी अपने नफे-नुकसान का आंकलन कर रही है।
प्रश्न  उठता है फिर यह देश  कैसे चल रहा है? सर्वथा प्रतिकूल परिस्थितियों में इस देश को कौन चला रहा है? इस देश को सरकारें नहीं, प्रशासनिक व्यवस्था नहीं, सहनशील नागरिक चला रहे हैं। नागरिकों ने अपने सब्र के बांध को फूटने से रोक रखा है। यदि वह कभी फूट गया तो कोई भी सरकार इसको सम्भाल नहीं पायेगी। कोई और देश होता तो ऐसी परिस्थितियों में खूनी क्रांति हो जाती, किन्तु भारत की जनता की महानता है कि वह अन्याय को सहती जा रही है।
किन्तु अब भारत की जनता भर गयी है। अन्याय को सहने की भी एक सीमा होती है। सरकार के निकम्मेपन का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है कि पिछले साल से मात्र पांच प्रतिशत प्याज की फसल कम हुई है, किन्तु कीमते पिछले वर्ष की तुलना में तीन से चार गुणा बढ़ गयी। चारों तरफ प्याज की कीमतों को ले कर त्राहि-त्राहि मच रही है, किन्तु सरकार जमाखोरों पर कार्यवाही करने से हिचकिचा रही है।
परन्तु सब से आश्चर्य की बात यह है कि कुशासन और भ्रष्टाचार में कीर्तिमान स्थापित कर चुका एक राजनीति दल फिर चुनाव जीतने के सपने संजो रहा है। उसके नेताओं को भरोसा है कि भारत की जनता उसके शरण में ही आयेगी। चाहे लाख दुःख भारतीय जनता को इस सरकार ने बांटें होंगे, किन्तु जनता उसे ही चुनेगी। इस खुश फहमी के तीन कारण है- एक:चुनावों में धन खर्च करने की अपूर्व क्षमता दोः अशिक्षित व गरीब जनता में खैरात बांट कर उनके वोट एनकेस करना। तीनः मुस्लिम तुष्टिकरण।
किन्तु यह खुशफहमी शीघ्र ही काफूर हो जायेगी, क्योंकि पूरे देश की जनता में व्यापक असंतोष है। खैरात बांटने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला है, क्योंकि गांव की पिचहतर प्रतिशत जनता को दो रुपये किलों गेहूं दिया जायेगा, जबकि गांव के किसान तो स्वयं गेहूं पैदा करते हैं। भारतीय किसान बीस रुपये किलों में सरकार को गेहूं बेचेगा और सरकार से वापस दो रुपये किलों में गेहूं खरीदेगा। यह पूर्णतय हास्यास्पद स्थिति होगी। सरकारी धन के अपव्यय का अनूठा उदाहरण बनेगा। चाहे सरकार पिचयासी करोड़ जनता को दो रुपये किलों बांटे, उसे जनता के वोट नहीं मिलेंगे।
भारतीय जनमानस बाहर से शांत दिखाई दे रहा है, किन्तु भीतर से भरा हुआ है। मतदान के दौरान उसके असंतोष का विस्फोटक होगा। जब चुनाव परिणाम आयेंगे, तब मालूम पड़ेगा जनता के साथ छल करने के क्या दुष्परिणाम होते हैं।

Friday, 23 August 2013

धर्म क्या है ?

दोस्तों आज दुनिया में धर्म की काफी वैराईटी आ गयी है । आज ईसाईयत , इस्लाम , बोद्ध, जैन तथा हिन्दू ……. आदि सभी को धर्म कहा जा रहा है यही कारण  है की आज लोग धर्म के नाम पर कुत्तों की तरह लड़ रहे है ।
आज हम इसी की पड़ताल करेंगे और साथ में वैदिक विद्वान पं० महेंद्र पाल आर्य जी की भी सहायता लेंगे ।
धर्म का स्पष्ट शब्दों में अर्थ है :
धारण करने योग्य आचरण ।
अर्थात सही और गलत की पहचान ।
इसी कारण जब से धरती पर मनुष्य है तभी से धरती पर धर्म / ज्ञान होना आवश्यक है । अन्यथा धर्म विहीन मनुष्य पशुतुल्य है ।
ज्ञात हो लगभग १००० ईसापूर्व तक धरती पर ये सभी दुकाने नही थी केवल एक सनातन धर्म ही था इसका पुख्ता प्रमाण । देखिये :
१. महावीर (लगभग 600 ई० पू०) के जन्म से पूर्व जैनी नामक इस धरती पर कोई नही था ।
उन्होंने दुनिया वालों को जैनी बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर जैनी  कहलाने वाला कौन होता भला? जैन धर्मधर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग जैनी है उनके पूर्वज महावीर के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर स्वयं महावीर किस धर्म में पैदा हुए?
२. राजा शुद्धोधन के पुत्र जब तक सिद्धार्थ (लगभग 600 ई० पू०) थे अर्थात युवक थे तब तक धरती पर बोध/ बौधिस्ट नामक कोई भी नही था ।
उन्होंने दुनिया वालों को बौध्गामी बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर बौधिस्ट कहलाने वाला कौन होता भला?  बोध धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग बोध है उनके पूर्वज बुध के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर गौतम बुद्ध किस धर्म में पैदा हुए?
३. जीसस लगभग 5 ई० पू० हुए ।
उन्होंने दुनिया वालों को ईसाई बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर ईसाई कहलाने वाला कौन होता भला? ईसाई धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग ईसाई है उनके पूर्वज जीसस के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ?
और फिर स्वयं जीसस किस धर्म में पैदा हुए?
४. मुहम्मद लगभग 570 ई० में जन्मे ।
उन्होंने दुनिया वालों को मुसलमान बनाया और अगर आज तक उनका आगमन नहीं होता तो फिर मुसलमान कहलाने वाला कौन होता भला? इस्लाम धर्म कहाँ होता?
इससे ये प्रश्न उठता है की आज जो लोग मुसलमान है उनके पूर्वज मुहम्मद के जन्म से पूर्व किस धर्म में थे ? या धर्म विहीन थे ? और फिर स्वयं मुहम्मद किस धर्म में पैदा हुए?
चलते  चलते ये भी बता दूँ की कई मुस्लमान ये भी कहते है की इस्लाम पहले से है सनातन है । सनातन अर्थात शाश्वत है ।
पर ये क्या ?
قل أني أمر ت أن أكون أول من أسلم ولا تكو نن من أ لمشر كين
“कुल इन्नी उमिर्तु अन अकुना आव्वाला मन असलम-ला ताकुनान्ना मिनल मुश्रेकिन”
-सूरा अन्याम आयत १४
अर्थात तुम कह दो सबसे पहला मैं मुसलमान हूँ, मै मुशरिको में शामिल नहीं| यानि सबसे पहले मै मुस्लमान हूँ मै शिर्क करने वालों में नहीं हूँ|
सबसे पहले हज़रत मोहम्मद साहब (570 ई०) ही सबसे पहला मुस्लमान है, यह कुरान में अल्लाह ने फ़रमाया है ।
इसी प्रकार अनेको उदाहरन मिल जायेंगे । ये सभी ‘मजहब’ कहलाते है । इन्ही का नाम मत है, मतान्तर है, पंथ है , रिलिजन है ।  ये धर्म नही हो सकते ।
अंग्रेजी के शब्द Religion का अर्थ भी मजहब है धर्म नही । किन्तु डिक्शनरी में आपको धर्म और मजहब दोनों मिलेंगे , डिक्शनरी बनाई तो इंसानों ने ही है ना !!
वास्तव में धर्म शब्द अंग्रेजी में है ही नही इसलिए उन्हें Dharma लिखना पड़ता है । ठीक उसी प्रकार जैसे योग को Yoga.
http://stephen-knapp.com/
http://www.hinduism.co.za/founder.htm
धर्म केवल ईश्वर प्रदत होता है व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया हुआ नही । क्योकि व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया हुआ ‘मत’ (विचार) होता है अर्थात उस व्यक्ति को जो सही लगा वो उसने लोगो के समक्ष प्रस्तुत किया और श्रधापूर्वक अथवा बलपूर्वक अपना विचार (मत) स्वीकार करवाया।
अब यदि एक व्यक्ति निर्णय करने लग जाये क्या सही है और क्या गलत तो दुनिया में जितने व्यक्ति , उतने धर्म नही हो जायेगे ?
कल को कोई चोर कहेगा मेरा विचार तो केवल चोरी करके अपनी इच्छाएं पूरी करना है तो क्या ये मत धर्म हो गया ?
ईश्वरीय धर्म में ये खूबी है की ये समग्र मानव जाती के लिए है और सामान है जैसे सूर्य का प्रकाश , जल  , प्रकृति प्रदत खाद्य पदार्थ आदि ईश्वर कृत है और सभी के लिए है । उसी प्रकार धर्म (धारण करने योग्य) भी सभी मानव के लिए सामान है । यही कारण है की वेदों में वसुधेव कुटुम्बकम (सारी धरती को अपना घर समझो), सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)
आदि आया है ।  और न ही किसी व्यक्ति विशेष/समुदाय को टारगेट किया गया है बल्कि वेद का उपदेश सभी के लिए है।
उपरोक्त मजहबो में यदि उस मजहब के जन्मदाता को हटा दिया जाये तो उस मजहब का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा । इस कारण ये अनित्य है । और जो अनित्य है वो धर्म कदापि नही हो सकता ।  किन्तु सनातन वैदिक (हिन्दू) धर्म में से आप कृष्ण जी को हटायें, राम जी को हटायें तो भी सनातन धर्म पर कोई असर नही पड़ेगा क्यू की वैदिक धर्म इनके जन्म से पूर्व भी था, इनके समय भी था और आज इनके पश्चात भी है  अर्थात वैदिक धर्म का करता कोई भी देहधारी नही। यही नित्य है।
अब यदि कोई कहे की उपरोक्त जन्मदाता ईश्वर के ही बन्दे थे आदि आदि तो ईश्वर आदि-स्रष्टि में समग्र ज्ञान वेदों के माध्यम से दे चुके थे तो कोनसी बात की कमी रह गई थी जो बाद में अपने बन्दे भेजकर पूरी करनी पड़ी ?
जिस प्रकार हम पूर्ण ज्ञानी न होने के कारण ही पुस्तक के प्रथम संस्करण (first edition) में त्रुटियाँ छोड़ देते है तो उसे द्वितीय संस्करण (second edition) में सुधारते है क्या इसी प्रकार ईश्वर का भी  ज्ञान अपूर्ण है ?
और दूसरा ये की स्रष्टि आरंभ में वसुधेव कुटुम्बकम आदि कहने वाला ईश्वर अलग अलग स्थानों पर अलग अलग समय में अपने बन्दे भेज भेज कर लोगो को समुदायों में क्यू बाँटने लग गया ? और उसके सभी बन्दे अलग अलग बाते क्यू कर रहे थे ? यदि एक ही बात की होती तो आज अलग अलग मजहब क्यू बनते ?
और तीसरा ये की यदि बन्दे भेजने ही थे तो इतनी लेट क्यू भेजे ? धरती की आयु अरबो वर्ष की हो चुके है और उपरोक्त सभी पिछले ३ ० ० ० वर्षों में ही अस्तित्व में आये है ।
http://www.vedicbharat.com/2013/04/Age-of-Universe-Vedas-Shri-Mad-Bhagwatam.html
इत्यादि कारणों से स्पष्ट है की धर्म सभी के लिए एक ही है जो आदि काल से है ।  बाकि सभी मत है लोगो के चलाये हुए ।
शायद में ठीक से समझा नही पाया कृपया निम्न १४ मिनट का विडियो देखें :
इस लेख के माध्यम से मेरा उद्देश्य किसी की भावनाएँ आहात करने का नही अपितु सत्य की चर्चा करने का है । पसंद आये तो इस लेख/विडियो  का प्रचार करें ताकि लोगो तक सत्य पहुंचे ।

रहस्यमयी शख्सियतें : अनु टण्डन और संदीप टण्डन मुकेश अम्बानी और राहुल गाँधी…

१-आखिर अनु टंडन जिसने सिर्फ दो दिन पहले ही कांग्रेस ज्वाइन किया उसे राहुल गाँधी ने सांसद का टिकट क्यों दिया ? और अगर टिकट दिया तो उन्नाव में राहुल गाँधी ने अनु को जिताने के लिए एडी चोटी का जोर क्यों लगाया ?
२- रिलाएंस ग्रुप पर छापा मारने वाले संदीप टंडन के इशारे पर पूरी केंद्र सरकार और गाँधी परिवार क्यों उनके कदमो में गिर जाता था ? आखिर संदीप टंडन ने मुकेश अंबानी के ठिकानो और एचएसबीसी बैंक पर छापे के दौरान ऐसे कौन कौन से दस्तावेज बरामद किये जिससे गाँधी परिवार संदीप टंडन के इशारे पर नाचता रहा ?
३- आखिर संदीप टंडन की स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में हुई रहस्यमय मौत की जाँच क्यों नही हुई ? एक कांग्रेसी सांसद और उपर से राहुल गाँधी के कोर कमेटी की मेम्बर अनु टंडन के पति की रहस्यमय मौत पर केंद्र सरकार और कांग्रेस खामोश क्यों ?
४- आखिर संदीप टंडन साल में आठ महीने स्विट्जरलैंड में क्यों रहते थे ? उन्होंने वहाँ घर भी ले रखा था |जब वो रिलायंस में निदेशक के पद पर थे तब वो अपने ऑफिस में रहने के बजाय स्विट्जरलैंड में क्यों रहते थे ?
५- छुट्टियाँ मनाने के बहाने राहुल गाँधी, राबर्ट बढेरा और खुद सोनिया गाँधी बार बार संदीप टंडन के पास स्विट्जरलैंड ज्यूरिख क्यों जाते थे ?
6) स्विट्जरलैंड स्थित भारतीय दूतावास द्वारा आनन फानन में संदीप टंडन के शव को भारत क्यों भेज दिया ? जब उनकी मौत प्राकृतिक नही थी तब उनके शव का पोस्टमार्टम क्यों नही किया गया? 
जब लोकसभा चुनावो में कांग्रेस ने उन्नाव से अनु टंडन को टिकट दिया तब यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष और उन्नाव जिले के कांग्रेस अध्यक्ष तक को नही मालूम था की ये अनु टंडन कौन है ? राहुल गाँधी ने यूपी कांग्रेस के पदाधिकारियो से कहा की ये अनु टंडन हर हाल में जितनी चाहिए इसके लिए कुछ भी करना पड़े | शाहरुख़ खान, सलमान खान से लेकर रवीना टंडन , कैटरिना कैफ आदि बालीवुड के सैकड़ो सितारे उन्नाव में अनु टंडन के प्रचार के लिए आये| अनु टंडन के पति संदीप टंडन इंडियन रेवेन्यु सर्विस के अधिकारी थे.. ये उस टीम में शामिल थे जिस टीम ने रिलाएंस ग्रुप पर छापा मारा था .. फिर मजे की बात ये है की छापे के कुछ महीनों के बाद ही नाटकीय ढंग से ये सरकारी नौकरी छोडकर रिलाएंस इंडस्ट्रीज के बोर्ड में शामिल हो गये। जबकि ये गलत था, और तो और इनकी पत्नी अनु टंडन जो सिर्फ बीएससी [बायो] पास थी और जिनके पास कोई अनुभव तक नही था ..उनको मुकेश अंबानी ने अपनी सोफ्टवेयर कम्पनी मोतेफ़ का सर्वेसर्वा बना दिया , आखिर क्यों ?

मित्रो, असल में संदीप टंडन ने छापे के दौरान कई ऐसे कागजात और सुबूत बरामद किये थे जिससे पता चलता था की गाँधी खानदान के कालेधन को मुकेश अंबानी सफेद कर रहे है | असल में अमेरिका और भारत सहित कई देशो में स्विस बैंको के खिलाफ गुस्सा फैला है और स्विस सरकार अमेरिका, जर्मनी सहित कई देशो से संधि कर चुकी है की वो अपने यहाँ जमा कालेधन का ब्यौरा देगी | इससे गाँधी खानदान ने अपने कालेधन को निकालकर मुकेश अंबानी को देकर उसे सफेद करने में जुट गया | देश की कई एजेंसियों को भनक लगी की मुकेश अंबानी हवाला में माध्यम से दुबई से कालाधन अपनी कम्पनी में कमिशन लेकर सफेद कर रहे है तो डीआरआई ने मुकेश अम्बानी के ठिकानो पर अचानक छापा मारा जिसका नेतृत्व संदीप टंडन कर रहे थे | फिर मुकेश अंबानी और गाँधी परिवार ने मुंहमांगी कीमत देकर संदीप टंडन को ही खरीद लिया |
1) एक बड़ा सरकारी अधिकारी जिस कम्पनी पर छापा मारता है वो सिर्फ चंद महीने के बाद उसकी कम्पनी का निदेशक कैसे बन जाता है ? 
2) केंद्र सरकार ने संदीप टंडन की वीआरएस की अर्जी तुरतं ही मंजूर कैसे कर ली ?
3) संदीप टंडन की रहस्मय मौत की खबर जिन जिन वेब साईट पर थी उन साइटों को केंद्र सरकार ने किसके आदेश से ब्लाक कर दिया ? जिस महिला को राजनीति का एक दिन का भी अनुभव न हो उसे राहुल गाँधी अपनी कोर ग्रुप की सबसे अहम सदस्य कैसे बना सकते है ? आखिर इसके पीछे क्या राज है?
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लेकिन चूंकि मीडिया को सिर्फ़ गडकरी के सो कॉल्ड भ्रष्टाचार और नरेन्द्र मोदी की साम्प्रदायिकता पर बात करने से ही फ़ुर्सत नहीं है, इसलिए “पवित्र गाँधी परिवार” या “पवित्रतम उद्योगपति मुकेश अंबानी” से कोई सवाल-जवाब करने का टाइम नहीं है…। और मान लो यदि टाइम मिल भी जाए, तो किसी मीडिया हाउस की इतनी औकात भी नहीं है कि वह सोनिया अथवा मुकेश को स्टूडियो में बैठाकर उनके खिलाफ़ कोई कार्यक्रम पेश करे…
  (डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी समूह के फ़ेसबुक पेज एवं IBTL के सौजन्य से… जनहित की जानकारी हेतु साभार प्रकाशित)

25 से अधिक कडवे सच – “आप” और देशद्रोह

ये सही है कि अंध-भक्ति सही नहीं है, फिर चाहे ये अंध-भक्ति नरेन्द्र-मोदी जी की हो, केजरीवाल जी की हो या सोनिया जी की | यदि आप पढ़े-लिखे समाज के एक जिम्मेदार व्यक्ति है, तब सच्चाई को जानने का आपका कर्त्तव्य भी है और अधिकार भी | लेकिन यदि सूचनाओ के रहते कोई सच्चाई से अपनी आँखें मूड ले, तब दोष किसका ?
कहते है कि “सब कुछ गवां के होश में आये तो क्या किया” | इससे पहले आप अपनी नजरो में गिर जाए, आपको अपने आप पर, अपनी जानकारी और कर्मो पर शर्मिंदगी उठानी पड़े, शायद पश्चाताप का समय भी न मिले .. अच्छा है आप सच्चाई को जाने | हम आपके सामने कुछ तत्थ्य रख रख रहे है, इनको मानना या न मानना आपका अधिकार है | 
1. भारतीय आर्मी के दो जवान के सर पाकिस्तानी सैनिको ने काट दिए, लघभग सभी पार्टियों ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई न कोई बयान दिया था | लेकिन  केजरीवाल जी का कहना है कि“पाकिस्तान से जंग नही होनी चाहिए ।” कहीं ये मुस्लिम तुष्टीकरण तो नहीं है ? अपने देश के सैनिको के सम्मान की रक्षा में असमर्थता, कायरता ?
लिंक देखिये -
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Pak-army-act-unpardonable-but-war-is-undesirable-Kejriwal/articleshow/18049289.cms
2. “अफजल गुरु की फांसी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की बदनामी हुई है ।” - मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
क्योंकि काफी मुस्लिमों ने अफज़ल की फांसी का विरोध किया था
लिंक देखिये-
http://hindi.yahoo.com/national-10191838-111003850.html
3. “भारतीय आर्मी कश्मीरी लोगो को मारती है |” - मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
लिंक देखिये
http://www.greaterkashmir.com/news/2013/Mar/6/army-responsible-for-killing-of-kashmiris-prashant-bhushan-41.asp
इनका कहना है – कश्मीर में मुस्लिम चाहते है कि कश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाये इसलिए कश्मीर को अलग कर के भारत का एक टुकड़ा और कर दिया जाए |
4. हिन्दू आतंकवाद आज चरम पर है - मुस्लिम तुष्टीकरण ?
लिंक देखिये-
http://hindi.yahoo.com/national-10191838-111003850.html
क्या आज तक किसी पार्टी ने यह कहा है कि मुस्लिम आतंकवाद आज चरम पर है ?
5. “कश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाये” - मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=QQom1xy8kUM
कश्मीर में मुस्लिम चाहते है कि कश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाये |
6. बुखारी ने कहा अन्ना के आन्दोलन* से वन्दे मातरम बंद कर दीजिये क्यूंकि मुस्लिमों में वन्दे मातरम नही बोला जाता है, केजरीवाल ने बंद किया वन्दे मातरम और बाद में इसी बुखारी के पास मिलने भी गये | -  मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=2wyufhKIyes
क्या ऐसे लोगो का समर्थन लेना जरुरी था केजरीवाल को ?
7. “आप” पार्टी की साईट पर एक खास कॉलम बनाया गया “Muslim Issus” -  मुस्लिम तुष्टीकरण ?
लिंक देखिये-
http://www.aamaadmiparty.org/meettheteam.aspx
क्या हिन्दुओ की कोई समस्या नही होती है, क्या मुस्लिमों की ही आज देश में समस्या हैं ?
8. बुखारी की जामा मस्जिद पर 4 करोड़ का बिजली का बिल कई सालो से बकाया है पर न कांग्रेस कुछ कहती है न हमारे केजरीवाल जी - मुस्लिम तुष्टीकरण ?
लिंक देखिये-
http://www.indianexpress.com/news/jama-masjid-runs-up-rs-4cr-power-bill-spat-over-dues-has-area-in-dark/1007397/
जबकि केजरीवाल बिजली बिल के खिलाफ इतने दिनों से बैठे है जिसे वो अनशन कहते हैं |
9. अकबरुद्दीन ओवैसी ने बयान दिया कि हम 100 करोड़ हिन्दुओ को खत्म कर देंगे और श्री राम को गलियां दी पर केजरीवाल का कोई बयान ओवेसी के खिलाफ नही आया बल्कि उन्होंने सुदर्शन न्यूज़ को ही खबर ना दिखाने की नसीहत दे डाली - मुस्लिम तुष्टीकरण ?
सुनिए रोंगटे खड़े कर देने वाले हिन्दू के खिलाफ इस विडियो को-
https://www.youtube.com/watch?v=BXFFR8NXG1E
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=HiyRCEDjLBs
केजरीवाल भक्त कहते हैं कि सुदर्शन न्यूज़ चैनल को कोई कॉल नही किया गया है तो केजरीवाल ने ओवैसी का कहीं विरोध क्यूँ नही किया है, किसी भी मीडिया में ओवैसी के खिलाफ केजरीवाल का कोई बयान नही आया है |
10. “कांग्रेस के हिन्दू विरोधी बिल का समर्थन” -  मुस्लिम तुष्टीकरण
जानिए इस रोंगटे खड़े कर देने वाले हिन्दू के खिलाफ बिल को-
http://www.youtube.com/watch?v=vK9CkyVXi90
http://www.youtube.com/watch?v=Da1dtkeikew
केजरीवाल की साथी साजिया इल्मी का tweet देखिये
लिंक देखिये-
https://twitter.com/shaziailmi/status/156335195665072129
केजरीवाल भक्त कहते हैं, हम इस बिल का समर्थन नही करते हैं तो फिर आपने अभी तक ऐसे हिन्दू विरोधी बिल के खिलाफ मीडिया में कोई बयान क्यूँ नही दिया है |
11. अरविन्द केजरीवाल की संस्था को फोर्ड फाउंडेशन से पैसे मिले -
लिंक देखिये-
http://www.ibtl.in/news/exclusive/1162/arvind-kejriwal-and-manish-sisodia–has-received-400-000-dollars-from-the-ford-foundation-in-the-last-three-years—arundhati-roy
जिसका पेट विदेशी पालते हों वो देश के बारे में भला सोचेगा कैसे ?
13. अरविन्द केजरीवाल से प्रश्न पूछो और पिटाई खाओ ! इनसे कोई सवाल करे तो समर्थक उसको पीट देते हैं |
लिंक देखिये-
http://www.punjabkesari.in/news/केजरीवाल-से-सवाल-पूछना-पड़ा-मंहगा-114388
14. केजरीवाल पर घोटाले का तथ्य छुपाने का आरोप
लिंक देखिये-
http://www.samaylive.com/nation-news-in-hindi/174062/yp-singh-slam-kejriwal-for-hiding-land-scam.html
15. कांग्रेस ने अपने विरोध को रोकने के लिए और अपने प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर 100 करोड का खर्चा किया है पर केजरीवाल टीम ने खुलासा किया कि बीजेपी ने 100 करोड़ का खर्चा किया है |
लिंक देखीये-
http://www.governancenow.com/gov-next/egov/congress-plans-rs-100-crore-social-media-war-chest
16. केजरीवाल की साथी अंजलि दमानिया के घोटाले का पूरा लेखा झोका !
लिंक देखिये-
http://www.dnaindia.com/pune/report_activist-anjali-damania-a-land-shark-too_1746829
17. कुमार विश्वास ‘ब्रह्मा विष्णु महेश’ का मजाक उड़ाते हुए - क्या कभी कुमार ने अलाह या इसाइयत पर ऐसा कुछ बोला है ?
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=CvANmaShh2U
18. जिस दिन केजरीवाल ने गडकरी के खिलाफ खुलासा किया था उसके अगले ही दिन ABP न्यूज़ चैनल उन किसानो के घर गया था और वहां जाकर पता चला कि गडकरी ने उनकी जमीन नही हडपी है और आज भी वो वहां खेती कर रहे हैं |
लिंक देखिये:-
http://www.youtube.com/watch?v=2aYX2Ik5tgk
http://www.youtube.com/watch?v=HtGHcUjJlag
अब समझ आया कि केजरीवाल केवल खुलासे ही क्यूं करते हैं कोर्ट क्यूँ नही जाते हैं क्यूंकि वहां तो इनके खुलासे चलेंगे नही अभी से झूट बोलता है राजनीति में आया तो न जाने क्या क्या करेगा?
19. केजरीवाल टीम का पाकिस्तानी प्रेम - फेसबुक पर लिखते हैं “I love Pak”
लिंक देखिये-
http://www.bhaskar.com/article/TOW-i-love-my-pakista-status-deleted-by-facebook-4178960-NOR.html
कहता है …. ” हमारे पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन ये कैसी अभिव्यक्ति की हम आई लव पाकिस्तान तक नहीं लिख सकते। मैंने यह स्टेट्स सिर्फ इसलिए लिखा था क्योंकि मैं दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों की ख्वाहिश रखता हूं।”
जरा हरामखोरी की हद तो देखो !!! आए दिन हमारे जवानों, देश में आतंवाद जैसी घटनाओं को अंजाम देने में लिप्त पाकिस्तान के साथ ये देश द्रोही बेहतर सम्बन्ध बनाने की ख्वाइश रखते हैं |
20. केजरीवाल को यह चुनौती दी थी की अगर उनकी टीम में हिम्मत है तो वे जंतर मंतर में होने वाले debate में शामिल हों और मेरे तथा अन्य सदस्यों के सवालों का जवाब दें। परन्तु टीम केजरीवाल का कोई भी सदस्य चर्चा में शामिल नहीं हुआ
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=XPJsKzWxbKw&list=UU1tnj_v8Sn-hWERFvqSjBWQ&index=9
सभी पार्टी से सवाल पूछते रहते हैं और इनसे कोई सवाल करे तो भाग जाते हैं |
21. प्रशांत भूसण हिमाचल प्रदेश के जमीन घोलते में फसे हुए हैं |
लिंक देखिये-
http://ibnlive.in.com/news/himachal-pradesh-probe-begins-into-prashant-bhushans-land-deal/376046-3-254.html
खुद की पार्टी में घोटाले हैं और लोगो से सवाल पूछते हैं |
22. प्रशांत भूसण जज को 4 करोड़ की घुस देते हैं |
लिंक देखिये-
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-04-17/india/29427409_1_forensic-experts-corruption-spectrum-scam
खुद की पार्टी में चोर हैं और पार्टी में चोर बता रहे हैं |
23. शांति भूसन का 1.3 करोड़ रुपए की टैक्स चोरी में पकड़े गए और 27 लाख का जुरमाना भरा |
लिंक देखिये-
http://www.ndtv.com/article/india/team-anna-s-shanti-bhushan-found-guilty-of-evading-1-3-crores-of-property-taxes-164319
खुद की पार्टी में चोर हैं और पार्टी में चोर बता रहे हैं |
24. शांति भूसण ने बैंगलोर में धमाके करने वाले आंतकवादी अब्दुल नससे मदनी को बचाया था ? इस आतंकवादी ने कितने ही बेगुनाहों की हत्या कर दी थी? क्या शांति भूसन का मदनी को अपने मित्र के नाते सजा से बचाना सही है?
लिंक देखिये-
http://www.indianexpress.com/news/madani-may-pose-major-threat-if-released-ktaka-govt/783526
खुद देशद्रोही को बचाते हैं |
25. शांति भूसण नॉएडा व इलाहबाद के जमींन घोटाले में फंसे और आरोप सिद्ध भी हो चुके हैं |
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=xRPmTOtFln8
एक चोर पार्टी दूसरी पार्टी में चोर देख रही है |
26. शांति भुसण का आतंकवादी शौकत हुसैन गुरु जिसने 2001 में संसद पर आतंकी हमले किये थे उसको बचाना सही था ?
लिंक देखिये-
http://www.indlawnews.com/Newsdisplay.aspx?5b7510bd-868e-4a1b-ad58-386ec7aeb7fd
28. शांति भूसण का मुंबई में 1993 में हुए बम धमाको में आरोपी आतंकवादियों को बचाना सही था ?
लिंक देखिये-
http://news.google.co.nz/newspapers?id=luIVAAAAIBAJ&sjid=kRMEAAAAIBAJ&pg=2103%2C2936835
29 कश्मीर दंगो, असम दंगो, सिख दंगो, अभी हाल ही मे हुए पश्चिम बंगाल दंगो, बंगलादेश दंगो, रामसेतु मुद्दे पर ये कुछ नहीं कहते | सरकार द्वारा हिन्दू विरोध पर कुछ नही कहते, लेकिन गुजरात दंगो में मुस्लिम पर इतनी चिंता ? ( जबकि नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल चुकी है )
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=gnNyH401nQc
अब भी कोई व्यक्ति इस पार्टी के साथ है, तो क्या वो देश-द्रोही, हिन्दू विरोधी और जीता जागता मूर्ख नहीं है ? निर्णय आप स्वं कीजिये | कहीं आपका ध्यान “आप”, केजरीवाल टीम और देशद्रोही गतिविधियों से हटकर, क्रमांक पर तो नहीं है ? यदि ऐसा है, तब मान लीजिये कि आप अपने साथ धोखा कर रहे है .. आपको देश की नहीं, क्रमांक की चिंता अधिक है!