Monday, 18 November 2013

धन के मकड़जाल ने भारतीय लोकतंत्र को अपाहिज बना दिया है

भाजपा, वामपंथी दलों और किसी एक आध राजनीतिक दल को छोड़ कर भारत की सभी राजनीतिक पार्टिंयां किसी एक परिवार या व्यक्ति की निजी मिल्कियत है। भारतीय लोकतंत्र को संचालित करने में प्रभावी भूमिका निभाने वाली सारी पार्टिंया पूर्णतया अलोकतंत्री है। पार्टी में मालिक की इच्छा सर्वोपरी होती है। इनके किसी निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती। इन्हें पार्टी के सर्वोच्च पद से हटाने का अधिकार किसी को नहीं होता। अर्थात भारतीय लोकतंत्र, अलोकतांत्रिक राजनीतिक पार्टियों की पराश्रयता भोग रहा है।
अलोकतांत्रिक पार्टियों के मठाधीश कुबेरपति है। जिन पार्टियों ने केन्द्र या प्रदेश की सत्ता हाथ में ले ली, उनकी आने वाली सात पीढ़ियों की तकदीर संवर जाती है। भारत की गरीब जनता को मूर्ख बना कर चुनाव कैसे जीता जाता है, इस कला में ये सिद्धहस्त है। अनेक स्त्रोतों से धन का जुगाड़ करने में इने महारथ हांसिल है। दरअसल भारत की जनता उनके लिए साधन हैं, धन साध्य है और राजनीति उनके लिए व्यवसाय है। राजनीति के व्यवसाय में धन लगाया जाता है और धन कमाया जाता है।  प्रजातांत्रिक मूल्यों, आदर्शों और सिद्धान्तों से उन्हें कोर्इ मतलब नहीं है। इनका एक ही मकसद रहता है-सारे गलत-सही साधनों का प्रयोग करते हुए किसी भी तरह चुनाव जीतो। सत्ता पर नियंत्रण स्थापित करों और खुल कर धन कमाओं।
भारत के शीर्षस्थ राज परिवार ने अब तक अपनी सम्पति के बारें में देश को जानकारी नहीं दी है। अपने प्रभाव से सम्पति का विवरण देने में सदैव बचता रहता है। अलबता अन्य धनी राजनीतिक व्यक्तियां और परिवार की सम्पति की जांच करवा चुका है और उनका सरकार चलाने में समर्थन लेने के बाद उन्हें बचा भी लिया जाता है। ऐसा अनुमान है कि इस परिवार के पास अकूत धन सम्पदा है। यह परिवार भारत का सबसे धनी राजनीतिक परिवार है। इस परिवार ने अपनी खरबों की रुपये की सम्पति का निवेश विदेशी बैंकों में कर रखा है। अकूत धन सम्पदा के बारें में यदा-कदा प्रश्न उठाये जाते रहे हैं, किन्तु प्रभावी अनुचर मंडली जवाब देने में आगे आ जाती है। ऐसे प्रश्न जो उठाता है, उसका मुहं बंद करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी जाती है।
भारत के राजनीतिक दलों को धन उद्योगपति देते हैं। विदेशी कम्पनियां अनेकों सौदों में दलाली के रुप में धन देती है। अर्थात जनता का ज्यादा पैसा विदेशी कम्पनियों को चुकाया जाता है, जिसका अंतत: भार जनता को ही ओढ़ना पड़ता है।  उद्योगपति राजनेताओं को उपकृत कर टेक्स बचाते हैं। दश प्रतिशत धन राजनेताओं और नौकरशाहों को दे कर नब्बे प्रतिशत धन  को काले धन में तब्दील कर लेते हैं। निश्चय ही उनके ऐसे आचरण से राजकोष में आने वाले धन की आवक रुक जायेगी और उसकी पूर्ति के लिए जनता पर टेक्स लगाया जायेगा। उद्योगपति, नौकरशाह और राजनेताओं के संबंध जितने अधिक प्रगाढ़ होते हैं, कालेधन का निर्माण बढ़ जाता है। राजकोषीय घाटा बढ़ता रहता है। इसके परिणामस्वरुप महंगार्इ बढ़ती है। अभाव बढ़ते हैं। गरीबी बढ़ती है। त्रिगुट मालामाल होता है। देश गरीब होता है। दरअसल त्रिगुट के अवैध संबंधों की प्रगाढ़ता ही सारी समस्याओं की जड़ है। ये अवैध संबंध भारत की प्रगति में अवरोध बने हुए हैं, क्योंकि धन की कमी के कारण विकास हो नहीं पाता। समृद्धि नहीं बढ़ती। गरीबी नहीं घटती।
नि:संदेह जनता के कष्ट बढ़ेंगे तो वह नाराज हो कर वोट नहीं देगी। वोट पाने के लिए जनता को प्रसन्न करने के लिए कर्इ टोटके किये जाते हैं। लोकलुभावन योजनाएं ला कर जनता को उपकृत किया जाता है। मनरेगा, खाद्यसुरक्षा आदि कर्इ लाख करोड़ो की योजनाएं वस्तुत: वोटों के जुगाड़ के लिए ही बनायी गयी है। ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन से गरीब जनता के थोक वोट मिल जाते हैं और अपने आपको गरीबों के मसीहा के रुप में प्रचारित किया जाता है। परन्तु ये योजनाएं देश को स्थायी गरीबी और अभावग्रस्त बना रही है, क्योंकि सारा पैसा जनता का ही होता है, जिसे जनता में ही लुटाया जाता है। जितना ज्यादा धन लुटाया जायेगा, राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, जिससे महंगार्इ बेलगाम हो जायेगी।
उद्योगपतियों और मतदाताओं को प्रसन्न करने के लिए सरकारी बैंकों को चेरिटीबल ट्रस्ट बना दिया गया है। उद्योगपति राजनेताओं का सहारा ले कर बैकों का कर्ज लौटाते नहीं है। और जनता को बांटा गया ऋण भी डूब रहा है। बैंकों का एनपीए बढ़ रहा है। यदि केन्द्र में ऐसी ही सरकारे बनती रही, जिन्हें जनता के धन को लुटाने में कोर्इ परहेज नहीं होगा, तो अधिकांश सरकारी बैंक एक दिन दिवालिया हो जायेंगे।
किन्तु जिनके मन में छल कपट हो, वे कभी दूसरों की तकलीफों के बारें में नहीं सोचते। उनका अपना स्वार्थ ही सर्वोपरि होता है। देश हित और देश की प्रगति का उनके लिए कोर्इ महत्व नहीं होता है। भारत दुनिया का निर्धनतम राष्ट्र है। दुनियां की सर्वाधिक दरिद्र और अभावग्रस्त जनता भारत में रहती है। देश के अस्सीं नब्बे करोड़ जनता गरीबी और अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए मजबूर हैं, किन्तु जिन राजनेताओं के लिए गरीबी और पिछडापन ही चुनाव जीतने के लिए वरदान साबित हो रहा हो, वे इसे दूर करने का क्यों संकल्प लेंगे ?
विदेशी सरकारें और भारत के धूर्त उद्योगपति नहीं चाहते कि भारत में कभी ऐसी सरकार अस्तित्व में आये, जिसके नेताओं को खरीदा नहीं जा सके। ये अस्थिर और भ्रष्ट सरकारों का अस्तित्व बनाये रखना चाहते हैं, ताकि भारत कभी विकास नहीं कर पाये। वह हमेशा विदेशियों पर अवलम्बित रहें। भारत यदि विकसित राष्ट्र बन गया तो उनका मुनाफा कम हो जायेगा। शोषण का अबाध क्रम रुक जायेगा। इसी तरह भारतीय उद्योगपति ऐसी सरकार चाहते हैं, जिसके मंत्री और अफसर उनके लिए अधिकाधिक लाभकारी बनें। वे धन कमाना चाहते हैं, चाहें अपने जुनून के लिए भारत की जनता को और अधिक गरीब ही क्यों न बनना पड़े।
भारत के अधिकांश टीवी चेनल विदेशियों के नियंत्रण में हैं और इनका भरपूर प्रयोग प्रपोगंडा करने के लिए किया जाता है। भारत की शीर्षस्थ राजनीतिक पार्टी के लिए ये प्रचार के भोंपू बन गये हैं। टीवी चेनलों के मालिकों का मुख्य ध्येय भारत से धन बटोरना है। वे भी ऐसी सुविधाजनक सरकार चाहते हैं, जो उनकी करतूतों को अनदेखा करती रहें। इस समय सत्ताधारी दल अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी को दबाने के लिए टीवी चेनलों का भरपूर उपयोग कर रहा है। इन दिनों एक स्टींग आपरेशन का खूब प्रचार किया जा रहा है। दरअसल जनता का ध्यान मुख्य मुद्धे से हटाने का एक षडयंत्र मात्र है। ऐसे उदाहरणों से टीवी चेनलों की संदिग्ध भूमिका प्रमाणित होती है।
भारतीय प्रेस भी राजनेताओं और उद्योगपतियों के प्रभाव को खंड़ित नहीं करना चाहती। सरकार से पंगा लेने के लिए कतराती है। क्योंकि अखबार बिना विज्ञापनों के सहारे जीवित नहीं रह सकते और इसके लिए सरकार और उद्योगपति मुख्य सहायक होते हैं।
चुनाव जीतने, सरकार बनाने, सरकार चलाने या प्रतिद्वंद्वी की सरकार गिराने में धन की प्रमुख भूमिका रहती है। भारतीय राजनीति में धन के घालमेंल को समाप्त करने के लिए केन्द्र में एक लोकतांत्रिक पार्टी की सरकार चाहिये, जो किसी एक परिवार या व्यक्ति की निजी धरोहर नहीं हो। धन के मकड़जाल ने भारतीय लोकतंत्र को अपाहिज बना दिया है। भारतीय जनता अब सजग और संगठित हो कर उन तत्वों को ठुकरा सकती है, जिन्हें भारतीय लोकतंत्र, देश के विकास और समृद्धि से कोर्इ मतलब नहीं है।

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