Friday, 1 November 2013

किसी व्यक्तित्व के प्रति अत्यधिक घृणा, तिरस्कार और नफरत का आखिर औचित्य क्या है ?

पटना के सीरियल बम विस्फोट के बाद उठे अनावश्यक शोर ने राजनीतिक वातावरण को बहुत विषाक्त बना दिया है। इस तथ्य को नज़रअंदाज किया जा रहा है कि देश के दुश्मन अपने ही देशवासियों के द्वारा मोदी की हत्या करवाना चाहते थे। पटना में भारी रक्तपात को अंजाम देने के बाद पूरे देश को साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंकना चाहते थे। वे उन आशा के दीप को बुझाने चाहते थे, जिसके उजाले में देश एक नयी राह खोज रहा था। दरिद्रनारायण के सपनों को चूर-चूर करना चाहते थे, जिसके मन में यह आशा जगी थी कि कभी तो उसके झोंपड़े में समृद्धि का उजाला होगा। निर्धनता का अंधकार दूर होगा।
खुदा का शुक्र है कि दुश्मनों के नाकाप इरादे कामयाब नहीं हो पायें, अन्यथा अनर्थ हो जाता। अकल्पनीय घटनाक्रम से देश दहल जाता। अच्छा होता देश के राजनीतिक दल अपने राजनीतिक द्वैष को भूल कर कोर्इ ऐसी रणनीति बनाने की पहल करते, जिससे भविष्य में ऐसी दुर्भाग्यजनक घटना की पुनरावृति को रोका जा सके। उन्हें शायद इस बात का भी अहसास नहीं रहा कि जिस दरिद्रनाराण की चिंता में वे दुबले हो रहे हैं, देश की अस्थिरता का सारा अप्रत्यासित भार उसे उठाना ही पड़ेगा। पहले ही उसकी हालत बहुत कृश्काय है, उस पर थोड़ा बहुत तो उन्हें रहम करना चाहिये।
राजनीतिक दलों से जुड़े क्षुद्र मानसिकता वाले राजनेता, जिनके पास विचार नहीं है, विवेक नहीं है, व्यापक दृष्टिकोण नहीं है, किसी विषय की गम्भीरता को समझे बिना टीवी स्टूडियों में आ कर थोथी और अनर्गल बहस में भाग लेते हैं। बेमतलब की और ओछी बातें करते हैं। टीवी चेनल तो हर गम्भीर विषय का प्रपोगंड़ा कर बात का बतगंड़ बनाते हैं, किन्तु राजनेता क्यों उनकी कुटिल नीति के सहयोगी बनते हैं ?
आज के संदर्भ में यह विषय महत्वपूर्ण नहीं है कि गांधी की हत्या आरएसएस के उकसाने पर हुर्इ या सरदार पटेल आरएसएस को समर्थक थे या विरोधी। प्रश्न यह महत्वपूर्ण है कि पटना के रेलवे स्टेशन पर साढ़े नो बजे पहला ब्लास्ट हुआ था। संदिग्ध आतंकी घटनास्थल पर ही पकड़ा गया था। उस संदिग्ध व्यक्ति से आंतकवादियों के मकसद के बारें में जानकारियां मिल गयी थी, उसके बाद रैली की सुरक्षा व्यवस्था को गम्भीरता से क्यों नहीं लिया गया ? सभा स्थल पर जाने वालें लोगों की मेटल डिटेक्टर से जांच क्यों नहीं की गयी ? सभा स्थल के बाहर एम्बुलेंसों की  व्यवस्था क्यों नहीं थी ? और सबसे दुखद बात यह है कि मुख्यमंत्री बिना किसी ठोस कारण के पटना छोड़ कर दिल्ली क्यों गये थे ? पहले ब्लास्ट की जानकारी मिलने के बाद गृहमंत्री तुरन्त उचित कार्यवाही करते और सुरक्षा एजंसियों को अलर्ट कर देते, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और एक फिल्मी समारोह में चले गये। सम्भवत: उन्हें नागरिको की चिंता के बजाय उस कार्यक्रम में भाग लेना ज्यादा जरुरी था। सीरियल ब्लास्ट हो गये। लोगों के मरने की सूचना भी आ गयी, किन्तु उन महाशय ने रंगीन प्रोग्राम नहीं छोड़ा। सम्भवत: उन्हें निरीह नागरिकों के रक्तरंजित, क्षत-विक्षत शरीर को देखने के बजाय अभिनेत्रियों का मांसल सौंदर्य ज्यादा आकृषित कर रहा था। यह संवेदना शून्य राजनीतिक प्रशासन का निकृष्टतम उदाहरण बन गया है। आखिर किस मुहं से ये लोग पुन: शासन का अधिकार मांग रहे हैं ? क्या भविष्य में भी ऐसे ही आचरण को दोहराने के लिए ?
मोदी ने सुपारी की बात क्या कह दी जैसे आसमान फट पड़ा। क्यों उनकी बात इतनी कड़वी लग रही है ? क्या देश के दुश्मनों का मकसद उनकी हत्या करना नहीं था ? क्या जानबूझ कर रैली सुरक्षा व्यवस्था को अनहोनी होने देने के लिए शिथिल नहीं रखा था ? क्या यह सम्भव नहीं कि आइएसआर्इ ने अपने गुर्गों को मोदी की हत्या की सुपारी दी हो ? क्यों देश को तोड़ने वाले और दहशत फैलाने वाले लोग पूरे देश में अपने स्पीपर सेल बना रहे हैं ? क्यों ये देश भर में स्वच्छन्द विचरण कर रहे हैं ?  क्यों राज्य सरकारों की नाक के नीचे अपने घृणित षड़यंत्रों को अंजाम देने में लगे हैं और सरकारे इनको पकड़ नहीं रही है ? इन लोगों की गतिविधियां उन्हीं राज्यों में ज्यादा क्यों है, जहां भाजपा की सरकारे नहीं है ?
मोदी की हर बात पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करने की एक प्रथा बनती जा रही है। उनके मुहं से जैसे ही कोर्इ शब्द फिसला तुरन्त जहरीले वाक्य बाणों से प्रहार आरम्भ हो जाता है। उनकी बातों से आप क्यों इतना विचलित होते हैं ?  यह बात जनता पर छोड़ दीजिये कि उसे उनकी बाते सही लग रही है या नहीं। आप तो यह बतार्इये कि आप देश के लिए क्या भावी योजनाएं बना रहे हैं ? देश के विकास और जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए आपके पास ऐसी कौन सी महत्वपूर्ण योजनाएं हैं, जिन्हें क्रियान्वयन का समय नहीं मिला, इसलिए आप जनता से और समय मांग रहे हैं ? आप सरकार चला रहे हैं, तो विपक्ष की आलोचना सहने की आदत डालनी चाहिये। क्योंकि विपक्ष तो आपके कार्यकाल की त्रुटियों के आधार पर ही जनता से वोट मांगेगा।  सतापक्ष की आलोचना करना विपक्ष का लोकतांत्रिक अधिकार है। सत्ता पक्ष को विपक्ष की आलोचना का जवाब तथ्यपरक विवरण के आधार पर देना चाहिये, किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत हमला कर के नहीं।
यह सच है कि मोदी का जीवन खतरे में है। वे देश के दुश्मनों की हिट लिस्ट में है। अब उनका व्यक्तित्व उस मुकाम पर पहुंच गया है कि सरकारों को उनके जीवन की चिंता करनी चाहिये। उनकी सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिये। लोकतंत्र में अपने प्रतिद्वंद्वी का सैद्धान्तिक आधार पर विरोध करना जायज है, किन्तु उनके प्रति द्वैष रखना और उसकी हर बात का मजाक उड़ाना स्वच्छ लोकतांत्रिक आचारण नहीं कहा जा सकता। यह सोचना गलत है कि मोदी की जितनी आलोचना की जाय, जनता प्रभावित होगी। भारतीय जनता हर राजनेता की बात ध्यान से सुनती है और अपने विवेक से वह निर्णय लेगी। कौन गलत है और कौन सही, इसका अहसास उसे हैं।
बेहतर है मोदी को केन्द्र में रख कर अपनी रणनीति बनाने के बजाय अपनी विचारधारा और भावी नीतियों, कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से जनता के समक्ष रखें। देश के दरिद्रनारायण की चिंता करें। मोदी के व्यक्तित्व से इतने भयभीत नहीं हों। देश के  दुश्मनों के घृणित उद्धेश्य को असफल करने के लिए सभी राजनीतिक दल राजनीतिक द्वैष को त्याग कर ऐसी रणनीति बनायें, ताकि देश का वातवरण विषाक्त नहीं बने। विषाक्त वातावरण से विनास का मार्ग प्रशस्त होता है और स्वस्थ वातावरण से लोकतंत्र मजबूत होता हैं, जो अंतत: विकास और समृद्धि की दिशा तय करता है।
ज्यों-ज्यों विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव नज़दीक आ रहे हैं। देश का राजनीतिक वातावरण गर्मा रहा है। मोदी का व्यक्तित्व इसका केन्द्र बिन्दू बनता जा रहा है। यह गलत परम्परा है। मोदी एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता है, वे अपनी सरकार बनाने के लिए सारे प्रयास करेंगे, यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। परन्तु उनकी बातों का जवाब शालिनता से भी  दिया जा सकता है, तिरस्कार, नफरत और घृणा से नहीं।

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