Sunday 24 November 2013

भद्रलोक का जानवर- तरुण तेजपाल

सौम्यता और विद्वता का नकाब ओढ़े भद्रलोक में कई जानवर विचरण करते हैं, किन्तु उनकी पहचान हो नहीं पाती है, क्योंकि सत्ता की समीपता उनकी दुस्साहस बढ़ा देता है। उन पर काली लक्ष्मी की विषेश अनुकम्पा होती है। गरुर बढ़ जाता है। मन में यह बात बैठ जाती है- सत्ता जब साथ है, तो हम कुछ भी कर सकते हैं। हमारा कोर्इ कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
भद्रलोक के जानवर शराब के शोकिन होते हैं। सित्रयां को वे अपने उपभोग की वस्तुएं समझते हैं। बहुधा वे पकड़े नहीं जाते, क्योंकि अबलाएं उनके रुतबे से भयभीत रहती है। रोजगार पाने, खोने और बदनामी का भय उन्हें रोक देता है। विवश हो कर या तो वे समर्पण कर देती है या व्यवासाय छोड़ देने का निर्णय ले लेती है। सित्रयों की दुर्बलता का लाभ उठा कर ये शिकारी नये शिकार की तलाश करते रहते हैं। उनका अहंकार उन्हें निर्भय हो कर अपने शिकार पर झपटने के लिए प्रेरित करता है।
जिस क्षेत्र में महिलाओं की बहुलता रहती है और जहां उन्हें पुरुष सहकर्मियों को साथ काम करना पड़ता है, उन्हें प्रताड़ना का दंश झेलना पड़ता है। वे विद्राही नहीं हो पाती, क्योंकि उनकी महिला समकर्मी भी उनकी अपनी नहीं हो पाती। तहलका से जुड़ी श्रीमती चौधरी का प्रत्यक्ष उदाहरण सामने है। वे बेबाक और दबंग हो कर एक महिला के पक्ष में बोलने के बजाय पुरुष का बचाव कर रही है। उनके द्वारा दिये गये तर्कों से यही साबित हो रहा है कि वे उसे महिला और प्रश्न पूछने वालों से खपा है। वे अपने हाव-भाव से यह जता रही थी कि आप लोग हमारी ताकत से वाकिब नहीं है। हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। भारत का कोई कानून हम पर लागू नहीं हो पाता।
पुत्री की सहेली याने पुत्री की उम्र की युवती के साथ तेजपाल ने जो दुश्कर्म किया, उससे लगता है कि वे दुस्साहसी व्यकित हैं और वह युवती उनकी पहली शिकार नहीं थी। उनके भीतर के जानवर ने अन्य महिलाओं को भी अपना शिकार बनाया होगा। कुछ भी बोलने के पहले उनकी जबान कंपकंपा गयी होगी। बोली भी होगी, तो उनकी आवाज़ दबा दी होगी। सब कुछ खो जाने के भय से आंसू पी कर चुप रह गयी होगी। यह मामला प्रकाश में आने के बाद वे मन ही मन बुदबदायी रही होगी। परन्तु क्या करें-आंसू बहा कर पीड़ा सहने के अलावा उसके पास चारा ही क्या है?
तेजपाल प्रकरण इस बात की पुष्टि करता है कि प्रभावशाली व्यकित कुछ भी कर सकते हैं। उन्हें कानून का भय नहीं है। वे ऐसा मानते हैं कि यदि सत्ता का साथ है, तो कठोर कानून भी किसी व्यकित पर प्रभावी नहीं होते।  घटना यदि गोवा में नहीं घट कर दिल्ली या राजस्थान में घटित होती, तो उनके विरुद्ध एफ आर्इ आर दर्ज नहीं होती। तरह-तरह के कानून की धाराओं को उल्लेख कर अपराधी को बचा लिया जाता। मीडिया थोड़ा बहुत शोर मचाने के बाद चुप हो जाता और बात आयी गयी हो जाती। तेजपाल अपने स्वघोषित अज्ञातवास में बैठे-बैठे सत्ता के इशारों पर उनके विरोधियों को फंसाने के नये प्लान पर काम करते रहते।
यह तेजपाल का दुर्भाग्य ही था उस युवती द्वारा अपने कार्यालय में भेजा गया र्इ-मेल न जाने से कहां से उड़ता हुआ हवा में आ गया और तूफान बन गया। अन्यथा वह किसी कम्पयुटर के डेसटाप पर ही डिलिट कर दिया जाता। महिला की पीड़ा बाहर नहीं आ पाती। उस पर कर्इ तरह के दबाव डाल कर उसकी आवाज़ को दबा दिया जाता। वह युवती भीतर ही भीतर घुटती हुर्इ तड़फती रहती। तेजपाल के चेहरे पर विद्वता और सौम्यता का नकाब पड़ा रहता। वह और ज्यादा आक्रामक और निर्भय हो कर चालाकी से नये शिकार की तलाश करता और अपनी पहले की गलती को नहीं दोहराता।
भारत का भद्रलोक सत्ता और सम्पति के नशे में डूबा हुआ है। यह लोक संस्कार विहिन हो गया है। इस लोक में रहने वाले लोगों को भारत के कानून भयभीत नहीं करते। कानून तभी प्रभावी होते हैं, जब सत्ता का साथ नहीं रहता हैं। सत्ता से जुड़े लोग अपने सहयोगियों को हमेशा बचाते हैं। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से हो जाती है कि 2009 में घटित हुर्इ महिला के साथ जासूस की घटना, जिसे दुश्कर्म नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पीडि़त ने इस बारें में कोर्इ लिखित बयान नहीं दिया था। अलबत उसके पिता ने अकारण इस बात को नहीं उछालने का अनुरोध किया था। परन्तु जानबूझ कर उस निरर्थक प्रकरण पर आकाश-पाताल एक करने वाले नेता तेजपाल के जघन्य प्रकरण पर चुप्पी साधे हुए हैं। उन्हें बचाने की भरसक कोशिश  कर रहे हैं। न सोनिया गांधी की जबान से एक अबला नारी के समर्थन में कोर्इ शब्द फूट रहा है और न ही उनके पुत्र राहुल गांधी कुछ बोल पा रहे हैं। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि अपने प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल के नेता की किसी भी बात पर तिल का ताड़ बना कर अपने नेता की नज़रों में चढ़ने वाले तिवारी और सिब्बल पता नहीं किन कन्द्रओं में छुपे बैठे हैं।
तेजपाल प्रकरण से इस बात की पुष्टि होती है कि सत्ता के दलाल अबला नारी की सुरक्षा के बजाय अपने साथियों के अपराध को बचाने के लिए ज्यादा सहयोगी बन जाते हैं। यदि भद्रलोक के जानवरों का सत्ता का सहयोग मिलता रहेगा, तो उनका दुस्साहस बढ़ता रहेगा। नारी पर अत्याचार होते रहेंगे। घर की दहलीज के बाहर कदम रखने के पहले वह हमेशा भयभीत होती रहेगी। एक निर्भया नहीं, कर्इ निर्भया पुरुशों के दुश्कर्म की शिकार होती रहेगी और हमारे कानून किताबों में बंद हो कर रह जायेंगे।
सत्ता से जुड़े लोगों ने ही भंवरी देवी का देह शोषण किया। उसका कत्ल करवाया। उसकी हडिडयों और राख को भी रेत के धोरों में दबा दिया और नहर के पानी में बहा दिया। अपराधी सत्ता से जुड़े हुए नहीं थे, वरन सत्ता में थे। सत्ता का नशा था। सत्ता का अहंकार था। राज्य सरकार ने उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की, परन्तु घटनाक्रम इस तरह घटित हुआ कि उनका विभत्स चेहरा जनता के सामने आ गया। अन्यथा भंवर देवी घटना एक किंवदंती बन जाती। वे महाशय मंत्री और विधायक बने रहते। फिर चुनाव लड़ते, चुनाव जीतते और मंत्री बनते। हमेश चेहरे पर शराफत का नकाब ओढ़े रहते।
अपराधियों और सत्ता का जब तक घालमेल चलता रहेगा। भारत की अबलाएं असुरक्षित रहेगी। कानून निष्प्रभावी रहेंगे। पूरे देश में दुश्कर्म की घटनाएं घटती रहेगी। तरुण तेजपाल जैस भद्रलोक के जानवर अबलाओं को अपनी हवश का शिकार बनाते रहेंगे। यह सिलसिला चलता रहेगा। कभी कभार कोर्इ घटना बाहर आयेगी, अन्यथा सभी दबा दी जायेगी। अबलाएं अपने हिस्से में आये दर्द को सहती रहेगी।

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