Saturday, 26 December 2015

वह सुवह कभी तो आएगी - हमें उस सुवह का इंतजार है

नया सवेरा। क्षीण आशा की नन्ही किरण, बदलाव की बयार बहने का संकेत दे रही है। ताजा हवा का झोंका सुकून दे रहा है- बहुत हो चुका, अब और नहीं। नफरत की दीवार की मजबूती में नहीं, इसे ढहाने की कोशिश से करोड़ो जिंदगियो की तक़दीर बदल जायेगी। वह सुबुह कभी तो आयेगी- हमे उस सुबुह का इंतज़ार है ।
दो अलग-अलग नाम के देश बन गये, परन्तु बदला कुछ नहीं। न तहजीब बदली, न जुबान बदली। न लहू बदला, न लहू का रंग बदला। रावी व चिनाब वैसी की वैसी ही रही। हिन्दुस्तान से पाकिस्तान आ कर वह अपनी पहचान बदल नहीं पायी। वे पाकिस्तानी नदियां नहीं कहलायी। वे चिनाब और रावी ही रही। उनके पानी का वेग वही रहा। उसका रंग पाकिस्तानी नही बन पाया। हिन्दुस्तान की माटी अपने साथ ले कर आती रही। माटी की खुशबू अपनो की याद दिलाती रही। उस माटी को नहीं कह पाये- दुश्मन देश की माटी इधर क्यों बह कर आ रही हो ? हिमालय से आने वाली ठंडी हवाओं को रोक नहीं पाये। उसे नही कह पाये- उधर ही रहो, यह मुल्क अब तुम्हारा नहीं रहा है।
अड़सठ बरस बीत गये। सौ में सिर्फ बतीस कम। सौ बरस भी बीत जायेंगे, परन्तु हमें अपनी गलतियों को समझने में तब भी देर लगेगी। हम अपनी नासमझी की की़मत का अंदाज़ा भी नहीं लगा पायेंगे। तब तक रावी और चिनाब में बहुत पानी बह जायेगा। और इस पानी में बहुत सारा लहू भी बह जायेगा। पानी में घुल कर लहू  का रंग लाल नहीं रहेगा, परन्तु हमारी नज़रे हमेशा धोखा खाती रहेगी। हम हरदम लुटे-पिटे अपने आपको कोसते रहेंगे, पर यह नहीं सोच पायेंगे कि आगे क्या करना है।
सतसठ वर्षों में चार पीढ़ियां  दर्द का मंजर देख चुकी है। एक पीढ़ी ने बंटवारें की तक़लीफ भोगी। एक पीढ़ी को नफरत की दीवार को मजबूत करने के लिए लडे़ गये जंग के तेवर झेलने पड़े। युवा पीढ़ी दहशद के खूनी खेल की पीड़ा झेल रही है। और वो कोंपले, जो अभी-अभी प्रस्फुटित हुई है- तीन पीढियों की बरबादी का इतिहास पढ़ रही है।
कोई इन्हें आगे बढ़ कर समझाता नहीं कि बहुत हो चुका, अब बस करों। जो बंठा ढ़ार होना था, हो गया- अब बाकी भी क्या बचा है? चार जंग लड़ लिये। बीस बरस से न खत्म होने वाला, एक लम्बा जंग लड़ रहे हैं। इस जंग में कई बेकसूर मारे दिये गये, पर मिला कुछ नहीं। और कभी  कुछ हांसिल भी नहीं होगा।  जिनके अपनो को छिना, उन्हें रुलाया और उनके आंसुओं को देख-देख कर हैवानियत हंसती रही- बस।
खुदा की जन्नत पर सियासी खेल के दांव लगा-लगा कर थक गये, पर हमेशा बाजियां बे-नतिजा रही। अब  खुदा की जन्नत को जन्नत ही रहने देने में भला उन्हें क्या एतराज है? नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे। यदि ऐसा किया गया, तो नफरत की दीवार ढ़ह जायेगी। सियासत का असली चेहरा बेनकाब हो जायेगा। वे बेचारे कहीं के नहीं रहेंगे। क्योंकि वे अनाथ हो जायेंगे। उनके सारे मनसूबों पर पानी फिर जायेगा।
पर हम उन्हें कह तो सकते हैं- बहुत कुछ जल चुका है, परन्तु मिला कुछ नहीं। वहां अब भी जल रही आग हैं।  धुआं है। रुलाई है। आंसुओं का सेलाब है। और अंदर ही अंदर दबी हुई टीस का दर्द है। जवान बेटों के जनाजों का बोझ ढ़ोने वाले थके हुए बुड्ढे़ कंधे हैं। नफरत की कीले लगे ताबुतों में लिटाये गये शहीद जवानों की अंतिम समय में निकली आहें हैं। ये ताबुत जब घाटी से मैदानी गांवों में ले जाये जाते हैं, तब उनके परिजनों की रुलाई बरबस एक सवाल पूछती हैं- कभी यह ताबुत लाने का सिलसिला थमेगा ?
बहुत समय बीत गया, अब बैठ कर हिसाब करने का वक्त आ गया है- क्या खोया-क्या पाया। बहीखाता देखने पर मालूम होगा कि मुनाफा तो कुछ हुआ ही नहीं, अलबता घाटा ज्यादा दिख रहा है। दुनियां में सबसे ज्यादा गरीब होने का खिताब भी हमारे नाम चढ़ा हुआ है। दहशदगर्दी में भी हम सबसे आगे हैं। खून खराबे से सबसे ज्यादा लोग भी हमारे दोनो मुल्कों में मारे जाते हैं। महंगाई और तंगहाली का हाल भी दोनो ओर एक सा है।
बहुत ढूंढ़ लो, फिर भी हमें बही खाते में सिर्फ मौते, गरीबी, और दहशद की इबारत लिखी मिलेगी।  इसे पढ़ लो, और समझ लो। और भविष्य के बारें में भी सोचों कि चार पीढ़ियों ने तो घाटा उठा लिया और पांचवी, छठी भी उठायेगी और यह सिलसिला बदस्तुर जारी रहेगा, या इस पर कभी विराम लगेगा। हां, हम चाहें तो इस पर विराम लगा सकते हैं। हमे सिर्फ इस बात को समझना है कि कौन अपना है और कौन पराया है। कौन हमारा दुश्मन है और कौन हमारा दोस्त है। जब इस हक़ीकत से हम रुबरु हो जायेंगे तब, जो धुंध छायी हुई है- यकायक हट जायेगी। एक नयी सुबहु होगी। यह सुबुह अमन का पैगाम ले कर आयेगी। तब कुछ भी समझाने के लिए बंदूकों से गालियां नहीं दागी जायेगी। सीमा पर खड़ी फौज दुश्मन की नज़र से नहीं दोस्त की नज़र से एक दूसरे को निहारेगी। खुदा ने हमे सांसे बख्सी है, उसे तोड़ने का हक भी उसी को है। जो बिना वजह खुदा का काम खुद करने का हिमाकत करता है, वही इंसानियत का असली दुश्मन है।
गरीबी और अभाव सबसे बड़ी मानवीय दुर्बलताएं है। दुनियां में उसी देश को सम्मान की नज़रों से देखा जाता है, जो इन दोनों दुर्बलताओं से मुक्ति पा लेता है।  फौज की ताकत बढ़ाने से ये ये दुर्बलताएं बढ़ेगी ही,  इनमें कमी नहीं आयेगी। अत: अब पाकिस्तान के शासकों को जनता की नब्ज पहचाननी होगी। यह बात भी समझनी होगी, भारत के साथ दुश्मनी निभाने से कुछ भी हांसिल होने वाला नहीं है। सौ साल और दुश्मनी निभायेंगे,  तो भी सिवाय बरबादी के  कुछ नहीं मिलेगा। उन्हें बरबादी और खुशहाली दोनों में से एक को चुनना है।
हम इधर रहते हैं या उधर- हमारी तकलीफे एक सी है। हमारी समस्याएं साझी है। दोनो ओर जो लोग सियासत से जुडे़ हैं, उनके चेहरे एक से हैं, फिर क्यों हम हम एक दूसरे को नफरत की नज़रों से देखते हैं। कुछ भी हो, हम एक हो कर, एक आवाज़ तो उठा ही सकते हैं- हमे दहशदगर्दी नहीं, अमन चाहिये। बम नहीं, खुशहाली चाहिये। नफरत नहीं मोहब्बत चाहिये। हम उस सुबुह का इंतजार कर रहें’ जब नफरत की दीवार ढ़ह जायेगी। सारे गिलवे-शिकवे दूर हो जायेंगे। एक  दूसरे से दोस्ती का हाथ आवाम बढ़ायेगा। इस अचरज को दूर बैठे हुए हथियारों के सौदागर, वे विदेशी भी देखेंगे, जिन्होंने जानबूझ कर कपट से  हमें बांटा था, ताकि हम सदा कमजोर बने रहें। वे दुष्ट व्यापारी हमें एक दूसरे लड़ाने के लिए अपने हथियार बेचते रहें, जिससे उनकी समृद्धि बढ़े और हमारी गरीबी।
आवाम की की खुशहाली  और मुल्क की तरक्की के लिए मन में नेक नीयत रखते हुए पाकिस्तानी शासक  दोस्ती का हाथ बढ़ायेंगे, तो इस उपमहाद्वीप की  फ़िज़ा बदल जायेगी। एक झटके से नफरत की दीवार ढह जायेगी। एक नयी सुबह होगी।  वह सुबह कभी तो आयेगी। हमे उस सुबह का बेसब्री से इंतजार है, जब करोड़ा जिंदगियों की तकदीर बदल जायेगी।

Wednesday, 16 December 2015

18 पुराण

👏👏 जानिए महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में -
पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं।

उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं।

उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः  पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

1.ब्रह्म पुराण
ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय  तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं।

इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

2.पद्म पुराण
पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है।

चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है।

इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

3.विष्णु पुराण
विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था।

इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैः

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।
(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

4.शिव पुराण
शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं।

इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

5.भागवत पुराण
भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं।

इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।

6.नारद पुराण
नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है।

दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है।

जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

7.मार्कण्डेय पुराण
अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।

8.अग्नि पुराण
अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं।

इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

9.भविष्य पुराण
भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है।

इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है।

ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।

10.ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

11.लिंग पुराण
लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है।

राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

12.वराह पुराण
वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है।

श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

13.स्कन्द पुराण
स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं।

इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

14.वामन पुराण
वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है।

इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

15.कुर्मा पुराण
कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है।

इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

16.मतस्य पुराण
मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है

17.गरुड़ पुराण
गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।

इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है।

वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है।समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

18.ब्रह्माण्ड पुराण
ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है।

कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है।

भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।.
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Friday, 11 December 2015

भारतीय लोकतंत्र पर राजतंत्र का आक्रमण- जनता मूक दर्शक, लोकतंत्र लहूलुहान

16 मर्इ, 2014 को भारतीय लोकतंत्र, राजतंत्र के बंदीगृह से मुक्त हुआ था। चापलुसों -चाटुकारों के हुजूम से घिरा एक पार्टी परिवार अपने आपको भारत का भाग्य विधाता समझ बैठा था। इस परिवार के मन में यह भ्रांति बैठ गर्इ थी कि चाहे हम भ्रष्ट हों, अकर्मण्य हों, किन्तु इस देश पर शासन करने का अधिकार हमारे परिवार का ही है। कोर्इ अन्य व्यक्ति हमारी इच्छा के बिना भारत का  प्रधानमंत्री नहीं बन कर सरकार नहीं बना सकता। यदि बन गया, तो उस हम सरकार को काम नहीं करने देंगे।  हम भारत में राजतंत्रीय परम्परा को स्थापित करने के पक्षधर हैं। लोकतंत्र में हमारी आस्था नहीं है। यह हमारे लिए सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी हैं। चाहे हमे जनादेश नहीं मिलें, किन्तु हमारे पास अनुयायियों की ऐसी  जुझारु टीम हैं, जो हमारे एक आदेश से भारत की संसदीय व्यवस्था को ठप कर सकती है।
भारत की जनता ने एक  भ्रष्ट  राजनीतिक परिवार को अपनी औकात याद दिला दी। कर्इ राज्यों से सरकारे हाथ से चली गर्इ। केन्द्र में संख्या बल सिकुड़ गया, पर गरुर टूटा नहीं। इस परिवार को ऐसी आशा है कि भारतीय जनता का दिल भावुक नाटको से जीता जा सकता हैं। यदि ऐसा सियासी खेल खेला जाये जिससे जनता को यह अहसास हो जाय कि राजपरिवार को सताया जा रहा है। ऐसे नाटकों का निरंतर मंचन करते रहने से  निश्चित रुप से अगले चुनावों में जन सहानुभूति की लहर पर सवार हो कर चुनावी वैतरणी पार कर सकते हैं। इन्हें इस बात का भी आत्माभिमान है कि लोकतंत्र को रौंद कर आपातकाल लगाने वाली सास को भारत की जनता ने स्वीकार कर लिया, तो भ्रष्ट बहू को क्यों नहीं स्वीकार करेंगी।
स्वामी भक्त पार्टी के चापलुस नेता, जिनके लिए देश से बड़ा एक परिवार है, जो अपने स्वामी के एक इशारे से संसद में हंगामा कर शोर मचा सकतो हैं। टीवी स्क्रीम पर आ कर निरर्थक बकवास कर  सकते हैं।  भारत की जनता की पीड़ा से अविचलित असंवेदनशील चाटुकार  पार्टी महारानी और राजकुमार को न्यायालय में उपस्थित होने के समन पर इतने दुखी हो गये कि इन्होंने इन दिनों आकाश सिर पर उठ रखा है। संसद में चिल्ला रहे हैं। सड़को पर अनुयायियों की भीड़ चीख- चीख कर कह रही है- ‘हमारे  मालिक पर चाहे सच्चे अैर सुदृढ़ तथ्यों के आधार पर ही आरोप लगे हों, किन्तु हमारे  नेता न्यायालय में जा कर अपनी सफार्इ में कुछ नहीं कहेंगे। हमारे स्वामी भारत की न्यायपालिका से ऊपर है। एक अदने से न्यायाधीश को क्या अधिकार है कि हमारे स्वामी को न्यायालय में बुला कर उनसे पूछ-ताछ करें ?  भारत के न्यायालय भारत की जनता के लिए हैं, हमारे स्वामी के लिए नहीं।
गुलाम मानसिकता वाले कांग्रेसी यह समझते हैं कि  भारत से जब ब्रिटिश उपनिवेश था, तब क्या ब्रिटेन की महारानी के विरुद्ध कोर्इ भारतीय न्यायालय में जा सकता था ? यदि नहीं जा सकता था, तो हमारी महारानी और राजकुमार को अदालत में घसीटने की हिम्मत कैसे हो गयी ?  जिस व्यक्ति ने हमारे स्वामी के विरुद्ध आरोप लगायें हैं, चाहे वे सत्य पर आधारित हों और आरोपों में दम हों, किन्तु हम कह रहें हैं कि  असत्य है,  क्योंकि राजा को कोर्इ न्यायालय सजा नहीं सुना सकता। न्यायिक प्रक्रिया में चाहे भारत की संसद और प्रधानमंत्री की कोर्इ भूमिका नहीं हों, किन्तु हम संसद नहीं चलने  देंगे, क्योंकि हम अपने मालिक के विरुद्ध कुछ भी नहीं सुन सकते। वे हमारे अन्नदाता है, उनकी कृपा से ही तो हम भी करोड़ो की सम्पति के मालिक हैं। उन्होंने कमाया तो उनके आर्शीवाद से हम भी मालामाल हैं, अत: हम भारत की जनता के नहीं, हमारे स्वामी के अहसानमंद है। अब संसद को अगले चार साल तक किस न किसी बहाने नहीं चलने देंगे। जिस दिन हमारे राजकुमार भारत के प्रधनमंत्री बनेंगे अब तब ही संसद चलेगी। हमारे लिए राजनतंत्रीय परम्परा ही सर्वोंपरि है, जिस पर यदि कभी भी  कोर्इ आंच आयेगी तो हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। भारतीय लोकतंत्र को पूर्णतया राजतंत्र में तब्दील कर के ही दम लेंगे।
लेकतंत्र विरोधी और राजतंत्र समर्थक, जिनका भाग्य और भविष्य एक परिवार के साथ जुड़ा हुआ है, इन दिनों भारत के संसदीय लोकतंत्र पर आक्रमण कर उसे लहुलूहान कर रहे हैं। भारतीय संसद का हाल, जो कभी सांसदों के विद्वता और ओजपूर्ण भाषणों से गूंजा करता था। संसद में जहां कभी सत्तापक्ष के विरुद्ध अकाट्य तको शालिन शैली में लपेट कर प्रहार किया जाता था, वह अब इतिहास बन गया है। अब संसद में राजतंत्र समर्थक चंद सांसद निरर्थक तर्कों व तथ्यों को बिना किसी ठोस आधार के चीख कर और हंगामा कर अभिव्यक्त करते हैं। भोंड़े प्रदर्शन से यह जताना चाहते हैं कि विपक्ष के विरुद्ध सचमुच अन्याय हो रहा है। जबकि हकीकत यह है कि एक परिवार के प्रति निष्ठा जताने के लिए भारत के संसदीय लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं।  जो विषय उठाये जाते हैं, उस पर बहस नहीं करते, सत्ता पक्ष का उत्तर नहीं सुनते और हंगामा कर संसद को नहीं चलने दे रहे हैं।
मुट्ठीभर चापलुस चाटुकार भारत की संसदीय व्यवस्था की गरिमा पर जिस प्रकार प्रहार कर रहे हैं, वह हमारी संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के पर आघात हैं। संसदीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष को उसकी जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध कटघरें में खड़ा किया जा सकता है। संविधान में ऐसे कर्इ प्रावधान हैं, जिसके तहत विपक्ष अपनी आवाज उठा सकता है, किन्तु एक परिवार के प्रति स्वामी भक्ति के भौंड़े प्रदर्शन से संसद में गतिरोध पैदा नहीं किया जा सकता।
अपने स्वामी के प्रति अपूर्व निष्ठा का प्रदर्शन कर रहें सांसद, जो देश की गरीब जनता के पसीने की कमार्इ को व्यर्थ में उड़ाने का दुस्साहस  इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि भारत की जनता उनके आचरण को क्षुब्ध हो, उनके कुकृत्यों को मूक दर्शक बन  देख रही है।  जिस दिन भारत की जनता अक्रोशित हो कर सड़को पर उतरेगी और उनसे सवाल पूछेगी, आपको अपने स्वामी के प्रति वफादारी दिखाने के लिए संसदीय लोकतंत्र पर आक्रमण करने की क्या आवश्यकता है ? भारतीय संविधान ने जब आपके नेताओं को विशेष अधिकार नहीं दिये है, फिर उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के लिए न्यायालय में उपस्थित होने को ले कर आपत्ति क्यों हैं ? जनता ने आपको संसद में बैठने का अधिकार क्या इसलिए दिया है कि उस क्षेत्र विशेष, जिसके आप सांसद है, की समस्याओं को उठाने के बजाय आप संसद में हंगाम कर संसदीय कार्य को बाधित करें ?  आपको यह बात क्यों  नहीं समझ आ रही है कि इस देश की मालिक जनता है, आपकी मालकिन नहीं ?
निश्चित रुप से जनता जागृत हो कर राजतंत्र समर्थक चापलुसों के विरुद्ध सड़को पर निकलेगी, तभी राजतंत्र लोकतंत्र पर आक्रमण रुकेंगा और उनका  लोकतंत्र की हत्या करने का प्रयास विफल हो जायेगा।
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Monday, 7 December 2015


आगे सफर था और पीछे हमसफर था..

रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..





मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..




ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...



मुद्दत का सफर भी था और बरसो
 का हमसफर भी था

रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....




यूँ समँझ लो,

प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...




पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.






बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!





वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!





सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।






"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!





"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,

पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
 वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....


अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ......






लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.

“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”

दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...

बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!

भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!!

हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.

"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"

दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,

पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं।

मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...

पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम

गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।
अगर दिल को छु जाये तो शेयर जरूर करे..
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Tuesday, 1 December 2015

भारतीय लोकतंत्र पर मंड़राती राहुल-केजरीवाल की अशुभ छाया

भारतीय राजनीति में राहुल और केजरीवाल ऐसी दो शख्सियतों का प्रभाव बढ़ रहा है, जिन्हें सिद्धान्तों, आदर्शों और राजनीतिक विचारधारा से कोर्इ लेना देना नहीं हैं। इनकी देशभक्ति भी संदिग्ध है। ये निरर्थक विवादों को जन्म देते हैं। प्रचार माध्यमों का सहारा लें, उन्हें हवा देते हैं और उससे राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करते हैं।  राजनीतिक षड़यंत्रों के जरिये एक लोकतांत्रिक सरकार के कामों में जानबूझ कर व्यवधान उपस्थित कर रहे हैं। दोनों व्यक्ति सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए मचल रहे है। राहुल के पास तो एक पार्टी का केडर है, जिसकी जड़े पूरे भारत में हैं, किन्तु केजरीवाल के पास तो भाड़े पर रखे हुए कुछ ही लोग हीं बचे हैं, जो अपनी कुटिल बुद्धि और धूर्तता से भारतीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपने रंग में रंगना चाहते हैं।
यह अजीब विडम्बना है कि कांग्रेस के निर्लज्ज और बेबाक भ्रष्टााचार के विवरुद्ध किये गये जन आंदोलन से केजरीवाल का राजनीतिक जीवन प्रारम्भ हुआ,  किन्तु उसी कांग्रेस के सहयोग से वे मुख्यमंत्री बन गये। राहुल-केजरीवाल के किसी गुप्त षड़यंत्र के कारण ही केजरीवाल मुख्यमंत्री  पद छोड़, बनारस में नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़ने बनारस चले गये। पर्दे के पीछे की गर्इ किसी गुप्त संधि से  ही उन्हें दिल्ली विधानसभा में रिकार्ड़ तोड़ बहुमत मिला, क्योंकि राहुल गांधी  ने जानबूझ कर अपना वोट बैंक तश्तरी में रख कर केजरीवाल को भेंट कर दिया था। निश्चित रुप से भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए दिल्ली विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस ने आत्महत्या की थी, जिसे स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा नहीं कह सकते। अपने को मिटा कर भाजपा को रोकना कहां तक उचित हैं, इसका मर्म तो राहुल गांधी ही समझा सकते हैं।
केजरीवाल ने चुनाव जीतने के लिए सारे अनैतिक आचरण अपनाएं। मसलन पाकिस्तान में बैठे एक डॉन से उन्होंने सहयोग और धन लिया। उन्हें मुस्लिम समुदाय के शतपतिशत वोट दिलाने के लिए पूरे देश से लोग प्रचार करने आये। जनता को लुभाने के लिए उन्होंने असम्भव वादे किये। सारे आदर्शों और सिद्धान्तों को ताक में रख कर संदिग्ध व्यक्तियों को उम्मीदावार बनाया। वस्तुत: केजरीवाल को भारतीय राजनीति में स्थापित करने का सारा श्रेय भाजपा को जाता है, क्योंकि सरकार के पास सारे प्रशासनिक अधिकार होते हुए भी वह केजरीवाल की देशद्रोही गतिविधियों पर नज़र नहीं रख पार्इ। केजरीवाल और डॉन के प्रगाढ़ रिश्तों को साबित नहीं कर पायी । सरकार यह सच भी नहीं जान पार्इ कि केजरीवाल, जो विध्वंसात्मक राजनीति कर रहे है, उसके पीछे डॉन की मोदी सरकार के विरुद्ध रची जा रही कोर्इ व्यूह रचना तो नहीं है। ऐसा संदेह इसलिए होता है, क्योंकि कर्इ प्रदेशों में विरोधी दलों की सरकारें हैं, परन्तु किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार के विरुद्ध इतना मुखर नहीं है, जितना अरविंद केजरीवाल है। शासन का अधिकार मिलने के प्रत्येक मुख्यमंत्री अपने प्रशासनिक कार्यों से जनता का दिल जीततना चाहता है, ताकि जनता उसे दुबारा जनादेश दें, किन्तु केजरीवाल के मन में ऐसा कुछ है ही नहीं। मुख्यमंत्री बनते ही केजरीवाल ने संवैधानिक संस्थाओं और केन्द्र सरकार के विरुद्ध घोषित युद्ध छेड़ रखा है।
अरविंद केजरीवाल की नीयत पर इसलिए संदेह होता है, क्योंकि गुजरात में जो पटेल आरक्षण का कार्ड़ खेला गया है, उसके पीछे भी केजरीवाल की कुटिल बुद्धि और किन्हीं अज्ञात स्त्रोंतों से इस आंदोलन को फैलाने के लिए उडेला गया धन है। बिहार चुनावों में भाजपा को हराने के लिए केजरीवाल ने लालू और नीतीश का पूरा समर्थन किया था। वे ही अज्ञात स्त्रोत जिन्होंनें केजरीवाल की मदद की थी, उन्होने बिहार चुनाव में भी धन से और प्रचार माध्यमों से महागठबंधन की मदद की है।  महागठबंधन को एक करोड़ साठ लाख वोट मिले थे और भाजपा गठबंधन को एक करोड़  करोड़ तीस लाख। महागठबंधन को मुस्लिम समुदाय के शतप्रतिशत वोट मिले हैं, जो  दिल्ली की तरह बिहार में भी भाजपा की करारी हार का मुख्य कारण है। दादरी कांड़ को अतिरंजित रुप से हर मुस्लिम मतदाता तक पहुंचाने का प्रभावी कार्य केजरीवाल ने किया। यह बात अब भी रहस्य है कि भ्रष्ट लालू के गठबंधन को जीताने के लिए केजरीवाल ने इतना उत्साह क्यों दिखाया ? क्या किसी आका के साथ की गर्इ अपवित्र संधि का तो यह परिणाम नहीं है। केन्द्र सरकार अपनी प्रशासनिक ताकत से केजरीवाल की संदिग्ध गतिविधियों को नहीं भांप पार्इ, जिससे इस व्यक्ति के होंसले बहुत बुलंद है।
पंजाब में राहुल, केजरीवाल और पाकिस्तान मिल कर जो खेल खेल रहे हैं, उस खतरनाक खेल पर भाजपा की आत्ममुग्धता अंकुश नहीं लगा पा रही है।  बादल सरकार की दुर्बलता का लाभ यह त्रिगुट उठा रहा है और भाजपा तमाशबीन दर्शक की तरह तमाशा देख रही है। देशहित में विध्वंसकारी राजनीति को रोकना भाजपा का कर्तव्य और धर्म दोनों है, जिसे उसे गम्भीरता से लेना होगा।
केजरीवाल और राहुल दोनो विध्वंसात्मक शैली की राजनीति करते हैं, जो लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है। सहिष्णुता राहुल द्वारा तैयार किया गया एक प्रायोजित कार्यक्रम है, जिसकी सफल परणिति  बिहार चुनाव में भाजपा के पराजय के साथ हुर्इ है। राहुल अब इसी मुद्धे को उठा कर संसद की कार्यवाही बाधित करना चाहते हैं। उन्हें इस बात की जरा भी चिंता नहीं है कि एक झूठे मामले को बहुत ज्यादा तुल देने से उनकी पार्टी बहुसंख्यक समाज के वोटो की मोहताज हो जायेगी, जो उसके लिए बहुत घातक होगा। परन्तु जिस व्यक्ति के स्वभाव में छिछोरापन हो, राजनीतिक समझ का अभाव हो, वो राजनीतिक षड़यंत्रों से ही राजनीतिक लाभ उठाना चाहता हो,  ऐसे लोगों की  बुद्धि पर तरस आता है। क्योंकि राहुल को इस बात का जरा सा भी अहसास नहीं है कि षड़यंत्र हमेशा सफल नहीं होते। जनता का विश्वास जीतने के लिए सभी समुदाय के हितों की बात सोचनी रहती है।  केवल एक ही समुदाय के वोट बटोरने के लिए निरन्तर षड़यंत्र रचने से पासा पलट भी सकता है।
भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल का जन्म एक अभिशाप है। इस अभिशाप से मुक्ति मिल जाती यदि भाजपा दिल्ली का चुनाव जीतने के लिए सफल रणनीति बनाती और केजरीवाल के पाकिस्तान प्रेम का सच जान पाती।  राहुल के विदेशी खातों को खंगालने में सरकार सक्रियता दिखाती तो अब तक राहुल की बोलती बंद हो जाती। संसद का सत्र छोड़ कर सोनिया गांधी विदेश भागी है, इसका रहस्य भी सरकार यदि जान लें, तो असिहष्णुता के विरुद्ध छेड़ा गया प्रायोजित युद्ध समाप्त हो जायेगा। मोदी सरकार के पास प्रशासनिक अधिकार है, जिसके जरिये भारतीय लोकतंत्र को केजरीवाल और राहुल गांधी की अशुभ छाया से मुक्ति दिला सकती है। यदि सरकार इनके प्रति सहिष्णु बनी रही, तो इन दोनों की ताकत बढ़ती जायेगी, जिसके अशुभ परिणाम पूरे राष्ट्र को भोगने पड़ेंगे।

Wednesday, 23 September 2015

राहुल चिंतन नहीं करते, चिंतन का ढोग करते हैं

चिंतन- मनन से व्यक्ति को अपनी दुर्बलताओं का अहसास होता हैं। जो गलतियां हुर्इ है, उन्हें सुधारने की प्रेरणा मिलती है। चिंतन से विचारों में गम्भीरता झलकती है। चिंतक की वाणी ओजपूर्ण हो जाती है, जिससे भाव अभिव्यक्ति में कर्कशता नहीं होती, तार्किकता और माधुर्य होता है, जो जनमानस को मंत्रमुग्ध कर उसे मोहित कर देता है। राहुल के व्यक्तित्व में इन सभी गुणों का क्षणांस भी नहीं हैं। राहुल न चिंतन करते हैं, न चिंतक है, कांग्रेस पार्टी को उनका व्यक्तित्व काफी बोझिल लग रहा है और कांग्रेसी जन पार्टी के दुखद भविष्य को ले कर चिंतित है।
हकीकत यह है कि राहुल ने कभी देश की समस्याओं के बारें में चितन नहीं किया। उनका भारत के इतिहास  और संस्कृति के बारें में ज्ञान शून्य है। उन्होंने कभी भारतीय संविधान, भारत की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों का अध्ययन नहीं किया। गरीबों और मजदूरों की समस्याओं का उन्हें ज्ञान नहीं है। दरअसल  उनका अपना कोर्इ निज विचार  है ही नहीं। भारत के संबंध में वे क्या सोचते हैं और उनका क्या चिंतन है, न तो उन्होंने किसी लेख में लिपिबद्ध किया और न ही किसी भाषण में अभिव्यक्त किया।  चिंतन और चिंता से वे कोसो दूर है। चिंतन शब्द उन्हें उनके अनन्य भक्तों ने भेंट किया है। भक्त ही कहते हैं कि वे विदेश से देश के लिए चिंतन करते हुए लौटें हैं।  चिंतन के बाद वे आक्रामक हुए है। उनके भक्तों के प्रचार प्रपोगंड़े को ही भारतीय समाचार मीडिया प्रचारित करता रहता है।
राहुल विदेशों में अय्याशी करने जाते हैं, चिंतन करने नहीं। चिंतन तो घर के किसी कोने में एकांत में बैठ कर भी किया जा सकता है, उसके लिए विदेश जाने की आवश्यकता नहीं रहती। विदेश से आ कर उन्होंने संसद में जो छिछोरा भाषण दिया और जिस तरह अपने सांसदों को उपद्रव करने के लिए उकसाया, उससे भारतीय लोकतंत्र की गरिमा नष्ट हुर्इ है। भारतीय संसद कलंकित हुर्इ है। भारतीय संसद का हाल जो कभी मूर्धन्य सांसदों के ओजपूर्ण, विचारोतेजक और सारगर्भित भाषण से गूंजा करता था, उसी संसद में राहुल ने बेतुका, बेहुदा, अतार्किक और मर्यादाहीन भाषण दिया, जो संसद के रिकार्ड़ में भी रखने के लिए उपयुक्त नहीं है, उस भाषण में उनके भक्तों को राहुल के चिंतन का प्रभाव दिखार्इ दे रहा है।  स्वामीभक्ति का इससे निकृष्टतम उदाहरण और हो भी क्या सकता है ?
राहुल के र्इर्द-गिर्द भी कोर्इ चिंतक नहीं है। जो भी उनके स्क्रीप्ट रार्इटर है, वे उनके व्यक्तित्व को और अधिक छिछोरा बना रहे हैं। सम्भवत: कांग्रेस के पतन का कारण भी गांधी परिवार के साये के साथ जुड़े हुए वे लोग हैं, जिनकी सलाह पर चल कर इस परिवार ने कांग्रेस पार्टी को गहरी क्षति पहुंचार्इ है। राहुल को नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान का उपहास उड़ाना कहां जरुरी था ? क्या स्वच्छता के पीछे उन्हें कोर्इ उद्धेश्य छुपा नहीं दिखार्इ दे रहा है ? स्वच्छ भारत का नारा दे कर प्रधानमंत्री ने कौनसा पाप कर दिया ? इसी तरह योग को प्रोत्साहित करने का जो विश्वस्तरीय प्रयास नरेन्द्र मोदी ने किया है, उसकी सराहना दुनियां कर रही है, किन्तु ऐसे मिशन की आलोचना करना राहुल अपना परम कर्तव्य समझते हैं। मेक इन इंड़िया के नारे के पीछे का अर्थ समझे बिना राहुल ने कह दिया- टेक इंड़िया। यह कितनी ओछी ओर बेतुकी बात है। क्या नरेन्द्र मोदी ने बुलेट के बल पर सत्ता पर नियंत्रण किया है ? बेलेट से जीती हुर्इ जंग का मजाक उड़ा कर राहुल उन करोड़ो भारतीयों का अपमान नहीं कर रहे है, जिन्होंने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में मतदान किया था ? राहुल इस बात को समझ क्यों नहीं पा रहे हैं कि  भारतीय जनता ने एक परिवार को सत्ता से बाहर कर साधारण परिवार से ऊपर उठे एक कर्मयोगी पर भरोसा कर सत्ता सौंपी है। यह लोकतंत्र की परिपक्कता की निशानी है, जो साबित करती है कि राहुल गांधी भारत के आम नागरिक से भी कम राजनीतिक सोच रखते हैं।
भूमिअधिग्रहण कानून संशोधन बिल पर पूरे देश में यह भ्रम फैलाया गया कि इस कानून के तहत मोदी सरकार किसानों की जमीन छीन कर पूंजीपत्तियों को देने जा रही है। सरकार इस बिल से पीछे हट गर्इ, क्योंकि पूरे देश में अनावश्यक भ्रम में डालना सही नहीं था। परन्तु कांग्रेस पार्टी इसके पीछे राहुल की रणनीति की जीत बता  कर प्रचारित कर रहे हैं। यद्यपि मोदी सरकार ने अब तक किसानों की एक इंच जमीन भी छीन कर पूंजीपत्तियों को नहीं दी है, किन्तु कांग्रेस ने अपने शासन के साठ सालों में किसानों की लाखों एकड़ जमीन छीन कर पूंजीपत्तियों को दी है, उसका हिसाब सरकार के पास है। अच्छा होगा सरकार दुष्प्रचार के जवाब में सारा हिसाब जनता को दिखाये, ताकि कांग्रेसी नंगे हो जाये।
राहुल ने खूब चिंतन मनन कर लिया अब वे पार्टी नेताओं  को चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। चिंतन देश की तरक्की, खुशहाली और आम जन की भलार्इ के लिए नहीं किया जा रहा है, वरन इस बात को ले कर किया जा रहा है कि कैसे झूठे दुष्प्रचार के जरिये मोदी सरकार को कठघरें में खड़ा किया जा सके ? कैसे नरेन्द्र मोदी पर अनावश्यक आरोप लगा कर उनकी छवि विद्रुप बनार्इ जा सके़ ? किन्तु इस बारें में चिंतन, मनन और मंथन पर प्रतिबन्ध है कि कांग्रेस पार्टी निरन्तर रसातल में क्यों जा रही है ? भारत के प्रमुख राज्यों में चोथे और पांचवें नम्बर पर क्यों पहुंच गर्इ ? लोकसभा चुनावों के दौरान जिन राज्यों में उसकी सरकारे थीं, वहां शून्य क्यों हाथ लगा ? लोकसभा में उसका संख्या बल मात्र चंवालिस पर क्यों पहुंच गया ? क्या कांग्रेस पार्टी का वर्तमान नेतृत्व पार्टी को पुरानी स्थिति में पहुंचा पायेगा ? यदि कमजोर नेतृत्व के कारण पार्टी डूब रही है, तो क्या नेतृत्व परिवर्तन पर चिंतन किया जायेगा ?
यदि राहुल वास्तव में चिंतन करते हैं, भारतीय नागरिकों की समस्याओं को ले कर चिंतित हैं, तो अपने दस वर्ष के कार्यकाल में मनमोहन सरकार को ऐतिहासिक घोटालें करने से क्यों नहीं रोका ? उनकी सरकार के कार्यकाल में महंगार्इ, बैरोजगारी और गरीबी भयावह रुप से बढ़ी थी, उस समय वे गरीबों, मजदूरों, किसानों की पीड़ा को ले कर दुखी क्यों नहीं हुए ? दस वर्षों के पापों पर कोर्इ पछतावा नहीं, कोर्इ चिंतन नहीं, पर सोलह माह पुरानी सरकार को सारे पापों के लिए दोषी समझा जा रहा है। बेहतर है दूसरों के पाप गिनाने के पहले पापियों को अपने पापों को स्वीकार कर जनता से क्षमा मांगनी चाहिये। राहुल को यह बात याद रखनी चाहिये कि जनता उनकी सरकार के कर्मों को भूली नहीं है। जब तक राहुल अपनी सरकार के कामों की माफी नहीं मांगेंगे. जनता उन्हें कभी अपना नेता स्वीकार नहीं करेगी। वे अपने कुछ चापलुसों के ही नेता बन कर रह जायेंगे। राहुल  चिंतन का ढोंग करते रहेंगे और भारत की जनता उनके चिंतन का उपहास उड़ाती रहेगी।  राहुल बकवास करते हुए घूमते रहेंगे और कांग्रेस सत्ता से दूर जाती रहेगी। यदि ऐसा ही चलता रहा तो कांग्रेस के अच्छे दिन लौटने की कोर्इ सम्भावना नहीं है।

Thursday, 17 September 2015

नीतीश की कश्ती डांवाडोल-डूबने की पूरी सम्भावना

राजनीति के भंवर में फंसी नीतीश कुमार की कश्ती के डूबने की पूरी सम्भावना है। जब तक भाजपा का साथ था, राजनीति की शांत जल धारा में नीतीश आसानी से कश्ती खे रहे थे। न तूफान था। न तेज हवा बह रही थी, विकास की गाड़ी आगे बढ़ रही थी। उन्हें सुशासन बाबू का तमगा मिल गया था। पंद्रह वर्ष तक अराजकता का दंश झेल रहा भारत का पिछड़ा और गरीब बिहार विकास के मार्ग पर आगे बढ़ रहा था। यद्यपि बिहार की हालत पूरी तरह नहीं सुधरी थी, फिर भी मन में आशा बंधी थी कि यदि ऐसा ही चलता रहा, तो  एक दिन बिहार अपने पिछड़ेपन और गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो जायेगा।
बीजेपी के साथ रहने से नीतीश के विरोधियों के हौंसले पस्त हो गये थे। वे चुनौती देने की ताकत खोते जा रहे थे। अचानक नीतीश को अपने आप पर अभिमान हो गया। सम्मिलित ताकत को अपनी निज ताकत समझ बैठें। उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना आया और उन्होंने एक झटके से भाजपा का साथ छोड़, अपनी कश्ती को राजनीतिक तूफान के हवाले कर दिया। लोकसभा चुनाव परिणामों ने उन्हें अपनी गलती का अहसास करा दिया, किन्तु गलती को सुधारा नहीं। कश्ती को शांत जल धारा की ओर मोड़ने का प्रयास नहीं किया। उसे उसे गहरे भंवर की ओर धेकेल दिया।
परम मित्र को शत्रु बना, प्रबल शत्रु को मित्र बनाने की जो जोखिम नीतीश कुमार ले रहे हैं, वह उनके राजनीतिक जीवन की सब से बड़ी भूल है। ऐसा न हो कि इस जोखिम से गहरी खार्इ में गिर, वे राजनीति के बिंयाबन में कहीं गुम हो जायें। यह सही हैं,  राजनीति में कोर्इ स्थायी दुश्मन और स्थायी मित्र नहीं होते, किन्तु यह भी सही है कि राजनीति के गणित में कभी एक और एक दो नहीं होते। दो प्रबल शत्रुओं के वोट जुड़ कर उन्हें जीत नहीं दिला सकते।  जनता इतनी भी मूर्ख नहीं है कि वह जिंदा मक्खी  आंख बंद कर निगल लें।  वह इस बात को अच्छी तरह जानती है  कि कल तक तो जो एक दूसरे के शरीर में खंजर  घोंपने के लिए मौके की तलाश में रहते थे, अब अचानक क्यों अपने हाथ में पकड़े हुए खंजर पीछे छुपा कर गले मिलने की कोशिश कर रहे हैं। इतनी गहरी कटुता एक क्षण में नहीं भुलायी जा सकती है। कटुता न चाहते हुए भी इसलिए भुलार्इ जा रही है, क्योंकि दोनों के पावों के नीचे से जमीन खिसक रही है।
ऐसी सत्ता भी क्या काम की जो अपने राजनीतिक बैरी की महरबानी से मिल जाय। ऐसी सत्ता मिल भी जाय, तो वह किसी काम की नहीं रहेगी, क्योंकि शत्रु अपनी शत्रुता भुलेगा नहीं। गले मिलने के पहले जिस खंजर को अपनी पीठ के पीछे छुपा रखा था, उसका उपयोग करेंगे और एक दूसरे को अपने मार्ग से हटाने का प्रयास करेंगे। ऐसा होने पर बिहार में फिर अराजकता का दौर प्रारम्भ होगा। क्योंकि भाजपा ने नीतीश को नेता माना था, किन्तु लालू कभी उन्हें नेता स्वीकार नहीं किया है।  यदि करेंगे भी तो उसकी भारी कीमत वसूलेंगे। यदि नीतीश कीमत चुका देंगे, तो दिवालिया हो जायेंगे। उन्हें  खुदा मिलेगा न बिसाले सनम, न इधर के रहेंगे न उधर के रहेंगे।  उनका राजनीतिक जीवन बर्बाद हो जायेगा। लालू के संग आ कर  वे राजनीतिक खुदकशी कर रहें हैं। अपने हाथों से पांवों पर कुल्हाड़ी से वार कर अपाहिज बन, लालू की बैसाखियों के सहारे चलना चाहते हैं, जिसे राजनीतिक मूर्खता के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। याद रहे ये वही लालू यादव हैं, जिन्हें विवश हो कर मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था, किन्तु उन्होंने वर्षों से पार्टी के साथ जुड़े किसी विश्वस्त व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद देने के बजाय अपनी निरक्षर पत्नी को मुख्यमंत्री बना दिया, जो प्रशासनिक ज्ञान की दृष्टि से भी अनपढ़ थी। फिर भला क्यों लालू अपने परमशत्रु के समक्ष मुख्यमंत्री का पद तश्तरी में रख कर भेंट कर देंगे ?
बिहार की जनता नहीं चाहेगी कि राजनीति के भंवर में फंसी नीतीश की डांवाडोल कश्ती में बैठ कर अपने भविष्य को दांव पर लगा दें। नीतीश ने जोखिम ली है, उससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि जनता भी वैसी ही जोखिम ले लें। लालू राज की दुखद यादे जनता के जेहन में आज भी ताजा है। नीतीश भूल गये हैं, किन्तु जनता भूली नहीं है। नीतीश ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए लालू के अपराधों को क्षमा कर अपना मित्र बना लिया, किन्तु न्यायालय उन्हें अभी भी अपराधी ही ठहरा रहा है। एक अपराधी के मित्र पर जनता क्यों कर विश्वास करेगी। यदि विश्वास करेगी, तो वे निश्चित रुप से धोखा खायेगी।
बिहार चुनाव परिणाम न केवल बिहार का भविष्य तय करेंगे, अपितु भारत के विकास का रथ, जो संसद ने अवरुद्ध कर रखा है, उसे बाहर निकालने में बिहार की जनता महत्वपूर्ण निभायेंगी। इस चुनाव में मोदी की जीत होगी या नीतीश कुमार की, यह तो समय ही बताएगा, किन्तु बिहार को जंगलराज की सौगात देने वाला शख्स यदि इस चुनाव के बाद ताकतवर बन कर उभरेगा तो बिहार की तकदीर फिर एक बार अपराधियों के हाथों में आ जायेगी, जो निश्चित रुप से दुर्भाग्यजनक स्थिति होगी, क्योंकि अवसरवादी अराजक शक्तियां हमेशा विनाश की गाथा ही लिखती है, सृजन की नहीं।
बिहार चुनाव परिणाम नीतीश कुमार के भाग्य का फैंसला करेगा, जिसमें एक मुख्यमंत्री सत्ता के नज़दीक पहुंच कर भी हार जायेगा, क्योंकि जीत उसके प्रबल राजनीतिक बैरी के सहयोग से मिलेगी, जो अपनी पूरी कीमत वसूल करेगा। यदि नीतीश सत्ता से दूर हो जायेंगे, तब भी उनकी हार ही होगी।  निश्चय ही उनके पास पाने को कुछ नहीं है, खोना ही खोना है। शांत जलधारा में तेर रही कश्ती को तूफान के हवाले करना और फिर उसे भंवर में धकेलने का यही अंजाम होना था।  भॅंवर में फंसी  नीतीश कुमार की डांवाडोल कश्ती का राजनीति के गहरे समुंद्र में डूबना लगभग निश्चित दिखार्इ दे रहा है। ऐसा होने पर अवसरवादी और कपटपूर्ण राजनीति का अवसान हो जायेगा।

Monday, 13 July 2015

फिर अमन का दीया जला रहे हैं, बुझाने के लिए

इतिहास के घरोंदे में हमने कितने दीये जलाये और बुझायें हैं, पर हर बार हम उसमें विश्वास का तेल डालना भूल जाते हैं। कोर्इ आ कर दीये में इंसानी खून उडे़ल देता है। दीया बुझ जाता है। हम फिर अंधेरे में ठोकरे खाते हैं। हम पर जुनून सवार होता है। हम दुश्मन बन जाते हैं। नंगी तलवारे लहराते हुए अपने दुश्मन का सर काटने के लिए तैयार हो जाते है। एक दूसरे को मिटाने की कसमे खाते रहते हैं। यह सिलसिला अडसठ वर्ष से चल रहा है। बार-बार अमन का दीया जलाने की असफल कोशिश की जाती है। दीया जलता नहीं, बुझ जाता है। आशा बंधती है, फिर टूट जाती है। सियासत से अच्छा सुकून मिलने को बेताब करोड़ो दिलों की हसरते हर बार अधुरी रह जाती है।
अब उन्हें कौन समझाए कि धरती बांट देने से उन दिलों को एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकते, जिनके पुरखे शताब्दियों से इसी धरती पर एक साथ रह रहे थे। जिन्हें यहीं जलाया गया था या दफनाया गया था। उसी धरती पर अलग-अलग मुल्कों की दीवारे खींच दीं। चार-पांच युद्ध लड लिये। नफरत बनी रहे हैं, इसके लिए कभी न खत्म होने वाला दहशतगर्दी का युद्ध लड रहे हैं। परमणु अत्र बना कर अपने अस्तित्व मिटा देने को भी तैयार हो गये, किन्तु अपनी जबान, तहजीब और आदते नहीं बदल पायें। एक दूसरे से फिर जुड़ कर आपसी विश्वास पैदा करने की कसक कम नहीं कर पाये। हिन्दी फिल्मों और हिन्दुस्तानी संगीत की दीवानगी नहीं छोड़ पाये। हिमालय से बहने वाली हवाओं को नहीं रोक पाये। रावी और चिनाब के पानी का रंग नहीं बदल पाये। नदियों के साथ बह कर आ रही हिन्दुस्तान की धरती की माटी और उसकी गंध को नहीं रोक पाये। इधर से उड कर उधर जाने वाले परिंदों की राह नहीं बदल पाये।
बहुत हो चुका। सियासत को भूल कर हम इंसान के जज्बाती रिश्तों की बात करें। अब समय आ गया है कि अमन का दीया जलाने की कोशिश करने के पहले बही खाता खोल कर हिसाब देख लें। किसने क्या खोया और क्या पाया इसका हिसाब समझ लें। बहीखाते में लाभ शून्य है, पर हानि की कोर्इ सीमा नहीं है। खून की स्याही से लाशों की गिनती लिखी हुर्इ है। बेमतलब के बेहूदा जुनून की भेंट चढ़ने वाला चाहे इधर का था या उधर का, पर था तो किसी का बेटा, शौहर, भार्इ या बाप। अंदाजा लगा सकते हैं, उन मां-बाप पर क्या गुजर रही है, जिसका बेटा चला गया और वे रोने के लिए संसार में बचे रहें। जिन बेवाओं की असमय मांग उजड़ गर्इ और वे पहाड़ सी जिंदगी अकेले जीने के लिए रह गर्इ। मासूम बच्चे यतीम हो गये, क्योंकि उनके सर पर से बाप का साया उठ गया।
कश्मीर लेने और और कश्मीर नहीं देने की कीमत पर यह सारा सियासी खेल खेला जा रहा है। लड़े गये जंग और दहशतगर्दी में कितने लोग दोनो तरफ मारे गये, उन सबका हिसाब देखेंगे तो रुह कांप उठेगी। परन्तु दुखद आश्चर्य है कि उनका कोर्इ नहीं मरा जो पर्दे के पीछे बैठ कर ऐसा घटिया सियासी खेल खेलते हैं। अडसठ वर्षों से वे हिन्दुस्तान से कश्मीर लेने की जद्धोजहद कर रहे हैं। जानते हैं- हिन्दुस्तान कश्मीर देगा नहीं और हम हांसिल नहीं कर पायेंगे, पर जिद्ध छोड़ेंगे नहीं, क्योकि ऐसा करेंगे तो उन लोगों का दाना पानी बंद हो जायेगा,जो कश्मीर की रट लगाते हुए ही जिंदगी मजे से गुजार रहे हैं। इस रट ने उन्हें खुशहाली का तोहफा दिया और बदले में वे दूसरों जिंदगी तबाह कर रहे हैं। कश्मीर के नाम पर खून-खराबा उनकी फिदरत में हैं, जिसे वे रोक नहीं सकते। यदि यह खून खराबा रुक गया तो वे क्या करेंगे ? उनके पास करने को कोर्इ काम ही नहीं बचेगा।
कश्मीर का मसला है, इसलिए पाकिस्तान का वजूद बना हुआ है। यदि मसला हल हो जायेगा, तो नफरत की दीवार गिर जायेगी। टेंशन खत्म होते ही लोगों को इधर से उधर जाने की छूट मिल जायेगी। फौज की अहमियत खत्म हो जायेगी। पाकिस्तान के बाज़ारों की दुकाने हिन्दुस्तानी सामान से भर जायेगी। पाकिस्तानी सड़को पर भारत में बनी कारे दौड़ेगी। भारतीय उद्योगपति पाकिस्तान में कारखानों का जाल बिछा देंगे। भारतीय शिक्ष संस्थान में पाकिस्तानी बच्चों की बाढ़ आ जायेगी। स्वास्थय केन्द्रों में पाकिस्तानी मरीजो की संख्या बढ़ जायेगी। अजमेर ख्वाजा के दरबार में जायरिनो की भीड़ बढ़ जायेगी। दो चार सालों में ही ऐसा लगने लगेगा जैसे पाकिस्तान कोर्इ दूसरा देश है ही नहीं, वह तो उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह भारत का ही एक प्रान्त है।
ऐसा सुखद सपना आज़ादी के बाद की चार पीढ़िया तो देख नहीं पायी और पांचवी और छठी भी नहीं देख पायेगी, क्योंकि अमन की राह में हमेशा फौज और उनके सहयोगी अवरोध बन कर खड़े रहेंगे, क्योंकि आवाम की खुशहाली की कीमत पर वे अपनी बर्बादी नहीं चाहते। किन्तु गरीब पाकिस्तानी जनता को अपना पेट काट कर भारी भरकम फौज का भार ढ़ोना पड़ रहा है। कश्मीर के बहाने फौज ने पाकिस्तानी राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका बना रखी है। अत: लाख चाहने पर भी पाकिस्तानी जनता और लोकतांत्रिक सरकारे कुछ नहीं कर सकती। अमन के दीये बार-बार जलाने की कवायद की जायेगी और उसे बुझाने का सिलसिला चलता रहेगा। सरकारे आयेगी और जायेगी। वार्तएं चालू होगी और बंद होगी। कभी कोर्इ निर्णय नहीं निकलेगा, क्योंकि पाकिस्तानी फौज अमन का दीया जलाना नहीं चाहती। अंधेरा रहेगा तभी उसकी हुकूमत बनी रहेगी। उजाले में जब जनता को सब कुछ साफ-साफ दिखार्इ देगा, तब वह उसकी नसीहतों पर कौन यकीन करेगा ?
अमन का दीया जलाने की कोशिश पाकिस्तानी की आवाम करेगी, तभी इसकी लौ बुझेगी नहीं, वो जलती रहेगी। फौज के आतंक से सरकारे डरती है, आवाम भी डरती रही तो कभी कोर्इ मसला हल नहीं होगा। उसे यह फैंसला करना होगा कि गरीबी और बैगारी से निज़ात चाहिये या कश्मीर चाहिये। ताकतवर फौज चाहिये या जनता के हित में बुलंद फैंसले लेने वाली लोकतांत्रिक सरकार चाहिये। हिन्दुस्तानी आवाम के दिलों से जुड़ने की कशिश चाहिये या हमेशा एक दूसरे को मिटा देने की कसमे खानी चाहिये।
इसी उम्मीद में जी रहे हैं कि अमन का दीया एक दिन जलेगा। लम्बी अंधेरी रात जुदा होगी। नया सवेरा होगा। एक नयी सुबह को हम सब मिल कर आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए सारे सियासी दांव-पेंच भूल, खुशहाली और अमन के नये गीत गायेंगे।

Saturday, 27 June 2015

कांग्रेसी नेता देशी शासक से सत्ता छीन, फिर विदेशी को सौंपने के लिए मचल रहे हैं

सता खोने की छटपटाहट और पुन: पाने की कुलबुलाहट से सोनिया के वफादार सिपाही भारत को फिर उसी अंधेरे युग में ले जाना चाहते हैं, जहां से बमुश्किल मुल्क बाहर आया है। महारानी ने अपने अनुयायियों को आदेश दिया है- सत्ता के बिना रहना हमारे स्वभाव में नहीं। हम सत्ता के लिए जीते हैं और सत्ता के लिए ही मरते हैं। सत्ता सुख के लिए ही इस देश में रह रहे हैं। अपने परम बैरी को सत्ता सुख भोगते देख हमारे सीने पर सांप लौट रहा है। अत: मेरे आज्ञकारी अनुयायियों ! मोदी सरकार की गललियां ढूंढों। तिल का ताड़ बनाओं। रार्इ का पहाड़ बनाओ। जनता को अहसास हो जाय कि हमारे साथ दगाबाजी कर भारत की जनता ने बहुत बड़ी भूल की है। हमारा अब एक ही मिशन है- जनता से उसकी गलती का बदला लो। सरकार के किसी काम को सही मत ठहराओ। सरकार के विधायी कामों में अडंगे डालो। इतना शोर मचाओ कि आकाश हिल जाये और धरती कांप उठे।
आजकल कांग्रेस के हारे हुए योद्धा उस रण की तैयारी में तलवारें भांज रहे हैं, जो चार वर्ष बाद लड़ा जाने वाला है। रणबांकुरे सत्ता पाने के लिए तड़फ रहे हैं। उन्हें ऐसे लगा रहा है जैसे उनका प्रतिद्वंद्वी उनका शोर सुनकर कांप उठेगा। उनके सामने हथियार डाल देगा और सत्ता छोड़ कर भाग जायेगा। बावलों को यह नहीं मालूम कि न तो उनका प्रतिद्वंद्वी इतना लाचार और शक्तिहीन है, और न ही जनता की स्मरण शक्ति इतनी कमजोर है कि उनके पापों को भूल कर उन्हें पूण्यात्मा मानने लगेगी। पर महारानी का आदेश है- युद्ध चाहे आज हो या चार बरस बाद, हमें तैयारी आज से शुरु करनी पड़ेगी। उन्हें ललकारतें हुए अपनी ताकत का अहसास कराते रहो। चाहे संसद में हमारे सांसदों की कमी हो, पर हमारे पास धन की कमी नहीं है। हम सड़कों पर भीड़ एकत्रित कर हंगामा करने में सक्षम हैं। उन्हें शायद यह आभास नहीं कि आप भले ही सत्ता में बैठे हों पर सभी जगह हमारे आदमी जमे हुए हैं। मीडिया में हमारे चहते आदमी है, जो हमारे सुर में सुर मिलाते हैं। सरकरी दफ्तरो में हमारे वफादार बैठें हैं, जो मोदी सरकार को फेल करना चाहते हैं। क्रानी केपीटलिजम से धन कमाने वाले भारतीय उद्योगपति हमारे हैं, क्योंकि वे र्इमानदारी से नहीं बैमानी से धन कमाने के आदि हैं। मोदी सरकार से उनकी पटरी नहीं बैठ रही है। ये सभी हमारी सरकार चाहते हैं। हमारे साथ जो भी रहा, उसने जम कर मजे लूटे। हमारे पास ही वह साम्मर्थय है, जिससे सभी के मौज-मस्ती के दिन लौट आयेंगे। हमारे दिन वापस आते ही सरकारी धन का खूब मजा लुटेगे । खूब घपले- घोटाले करेंगें। ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि भारत में ऐसी ही सरकारे बनती है और चलती है।
जनता ने आपातकाल के अपराधियों को भी क्षमादान दे कर सता सौंपी, तो हमे क्यों नही सौंपेगी ? आखिर हम भी तो उसी खानदान के अवशेष हैं, जिसने भारत की जनता के साथ हमेशा दगाबाजी की पर जनता ने उसे सम्मान और आदर दिया। इसलिए इस बात पर रंज मत करो कि हमने पूरा प्रशासनिक ढांचा भ्रष्ट कर उसे शिथिल और अस्तव्यवस्त कर दिया। इस बात पर भी अफसोस मत करो कि हमारी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था का कबाड़ा कर दिया। इस बात पर भी पछताने की जरुरत नहीं है कि हमने घोटालों और घपलों से राजकोषीय घाटा इतना बढ़ाया की महंगार्इ आकाश छूने लगी। जनता ने हमे ठुकरा दिया इस पर हमे कोर्इ ग्लानि नहीं हैं, क्योंकि हम देश में ऐसी परिस्थितियां निर्मित करने में सक्षम हैं, जिससे थक हर हार कर जनता को हमारी ही शरण में आना पड़ेगा।
बड़े-बड़े घोटाले जो जांच से साबित हो गये, फिर भी हम नहीं मानते कि हमने कोर्इ घोटाले किये थे। पकड़े गये तब भी अपने आपको चोर नहीं समझते हैं। दस साल में बीस लाख करोड़ का घपला हुआ, फिर भी हमे अपना दामन साफ लगता है, क्योंकि हम घोटालों के मुख्य सूत्रधार है, पर हम पर कोर्इ आरोप बनते ही नहीं, क्योंकि हम किसी संवैधानिक पद पर नहीं थे, हमने कहीं अपने हस्ताक्षर नहीं किये। भारत का कोर्इ न्यायालय हमे दोषी ठहरा कर सजा नहीं सुना सकता। हांलांकि जनता ने हमे दोषी मान कर सजा सनुा दी है, पर हमे विश्वास है वह भी क्षमा कर कर देगी। हां, यह सच है कि घोटालों का अधिकांश धन हमने ही डकारा है, पर धन कहां है और हमने इसे कहां छुपा रखा है, इसका रहस्य हम कभी किसी को नहीं बतायेंगे। सरकार के पास न तो इतने स्त्रोत है और न क्षमता है कि वह हमारे छुपे हुए धन को खोज सके।
हम मानते हैं कि हम सर से पांव तक कीचड़ से सने हुए हैं, परन्तु यदि किसी के उजले दामन पर जरा से भी छींटे होने का आभास हों तो हमे शोर मचाने का अधिकार हैं, क्योंकि हम सत्ता में नहीं है। हम जनता को समझा देंगे कि आप हमारे शरीर पर जो कीचड़ देख रहे हैं, वह दरअसल आपका दृष्टि भ्रम है। आप पर हमारे ऊपर से दृष्टि हटा कर उनके कपड़ो पर दाग ढूढ़िये, जिसका आभास हमे हो रहा है।
हम जानते हैं कि भारत को आज़ादी मिले वर्षों हो गये, किन्तु इस देश की जनता की मानसिकता से गुलामी पूरी तरह हटी नहीं है, इसीलिए तो हमारी पार्टी के वफादार सिपाही एक विदेशी को ही अपना नेता मानते हैं और फिर एक विदेशी को हाथों में देश को सौंपने के लिए उतावले हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें देशी शासक बिल्कुल पसंद नहीं हैं। उन्हें इस बात का भी अहसास नहीं कि पार्टी नेतृत्व के कारण ही पूरे देश में पार्टी मुंह दिखाने लायक नहीं बची है, फिर भी उनकी वफादारी में कोर्इ आंच नहीं आर्इ है। हमारी पार्टी के नेता देशी नेतृत्व को कोसते रहेंगे और विदेशी नेतृत्व के प्रति आस्था प्रकट करते रहेंगे। भारत की राजनीति से जब तक हमारी पार्टी का अस्तित्व बचा रहेगा। पार्टी में हमारे वफादार अनुयायियों की भरमार रहेगी, हमारा राजनीतिक जीवन चलता रहेगा।
सम्भवत: इसीलिए कांग्रेस महारानी के वफादार सेवकों ने मोदी सरकार के विरुद्ध चार साल तक चलने वाले एक निर्णायक युद्ध की घोषणा कर दी है। उन्हें विश्वास है कि यदि सरकार के विरुद्ध इसी तरह की आक्रामकता दिखाते रहेंगे तो चार साल तक लड़े जाने वाले निर्णायक युद्ध में उनकी जीत निश्चित होगी। उनकी महारानी के पास सत्ता की डोर आ जायेगी। उनका नौसिखिया पुत्र भारत का शासन सम्भाल लेगा। देशी शासको का पराभव हो जायेगा और विदेशी शासक फिर भारतीयों पर शासन करने का अधिकार पा लेंगे।

Thursday, 25 June 2015

गांधी परिवार की देशभक्ति संदेह के घेरे में

गांधी परिवार ने भारतीय योग का मुखर विरोध ही नहीं किया एक समुदाय के मन में भ्रान्तियां पैदा कर इससे दूर रहने की नसीहत दी है। सरकार की किसी नीति से असहमति जायज है, किन्तु भारत की जिस प्राचीन विधा से विश्व का जनमानस अभिभूत है, ऐसी विधा के प्रचार की सरकारी नीति का विरोध करना अनुचित है। विश्व के अधिकांश देश योग में आस्था प्रकट कर रहे है, फिर गांधी परिवार और कांग्रेस का इसमें अनास्था प्रकट करने का औचित्य क्या है ? सिर्फ इसलिए कि यह मोदी सरकार का आयोजन है और नरेन्द्र मोदी को गांधी परिवार ने अपना दुश्मन नम्बर एक मान रखा है। यदि विरोध का यही एक कारण है तो यह अलोकतांत्रिक मन:स्थिति को प्रकट करता है, क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता कोर्इ व्यक्ति नहीं छीनता, जनता छीनती है। जनता ने गांधी परिवार से सत्ता छीन कर नरेन्द्र मोदी को सौंपी है । ऐसा होने पर क्या भारत की जनता को भी गांधी परिवार अपना दुश्मन नम्बर एक मानता है ?
योग को ले कर गांधी परिवार ने जो रवैया दर्शाया है, उससे यही साबित होता है कि इस परिवार की भारतीय संस्कृति और इसके मूल्यों में कोर्इ आस्था नहीं है। एक विदेशी की तरह गांधी परिवार भारतीयता को हेय दृष्टि से देखता है। अत: जिन लोगों के मन में भारत और भारतीयता के प्रति श्रद्धा नहीं हैं, उन्हें भारतीय की जनता पर शासन करने का हक भी नहीं है। अंगे्रजो की तरह उसकी नीति भी यही है कि भारत के दो समुदायों के बीच किसनी न किसी बहानें फूट डालों और उन्हें एक दूसरे से अलग करो, ताकि उनके मन में परस्पर अविश्वास की खार्इ गहरी होती जाय। कांग्रेस ने योग का भी इसी नीति की तरह विरोध किया है, जो उसकी कपटपूर्ण मंशा को दर्शाता है।
सोनिया गांधी लम्बे समय तक भारत में रहने के बाद भी अपने आपको भारतीय परिवेश में नहीं ढाल पार्इ है। भारत और भारतीयों पर वे सिर्फ और सिर्फ हुकूमत करना चाहती है, भारतीयों के दिलों से जुड़ने और भारतीयता के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए उन्होंने अपने दीर्घ राजनीतिक जीवन में कोर्इ उदाहरण प्रस्तुत नहीं किया। भारतीयता के प्रति कभी अपने आंतरिक मनोभावों को प्रकट नहीं किया। सार्वजनिक जीवन में रहने के बाद उनकी रहस्यमय चुप्पी हमेशा चुभती है। उनकी निजी विदेश यात्राएं यह संदेह प्रकट करती है कि लूट के कारोबार से कमार्इ गर्इ धन राशि को कहीं व्यवस्थित करने के लिए तो वे विदेश नहीं जाती है। यदि ऐसा नहीं है तो वे अपनी यात्रा के मकसद को हमेशा गोपनीय क्यों रखती है ? उनके निकटस्थ कांग्रेसियों के पास भी इस बात की जानकारी नहीं होती कि वे कहां गर्इ है और किस उद्धेश्य को ले कर विदेश गर्इ है ? इस प्रश्न को यह कह कर नहीं टाला जा सकता कि निजी यात्रा की जानकारी देश को रखना आवश्यक नहीं है। क्या कांग्रेसी यह बता सकता है कि जो लोग सार्वजनिक जीवन में होते हैं, उनका निजी क्या होता है ? उन्हें अपना निजी जीवन इतना ही प्रिय है, तो सार्वजनिक जीवन छोड़ क्यों नहीं देते ?
राहुल गांधी को कांग्रेस ने अपना नेता स्वीकार कर लिया हेै और उनके कंधे पर पार्टी पूरा भार डालने की रणनीति बना रही है। अपरिपक्क और छिछोरी मानसिकता वाले व्यक्ति पर इतनी भारी जिम्मेदारी डालना युक्तियुक्त नहीं लगता, किन्तु कोर्इ भी कांग्रेसी इसका विरोध नहीं कर सकता, क्योंकि पार्टी सुप्रीमो की यही आंतरिक इच्छा है, जिसका विरोध करना अलोकतांत्रिक पार्टी की नियति में नहीं है। राहुलगांधी ने भारतीय संस्कृति और भारतीय इतिहास का अध्ययन नहीं किया। भारतीय राजनीति और संवैधानिक व्यवस्था पर भी उन्होंने कभी अपने विचार प्रकट नहीं किये। देश की प्रगति और खुशहाली के लिए क्या आर्थिक नीतियां बनानी चाहिये ? इसं संबंध में उन्होंने अपना कोर्इ निजी चिंतन नहीं प्रस्तुत किया। उनकी मन: स्थिति और राजनीतिक विचारों का परिचय कभी-कभी अपनी निकृष्ट,तथ्यहिन और बेतुकी भाषण शैली से देते रहते हैं। उनका राजनीतिक विचार और दर्शन यही है कि जनता द्वारा चुनी गर्इ एक सरकार का विरोध करते रहों। सरकार के प्रति तिरस्कार व अपमानित करने वाली शब्दावली का प्रयोग कर भाषण देते रहो।
प्रश्न उठता है कि क्या कांग्रेस के पास एक अपरिपक्क मानसिकता वाले व्यक्ति के अलावा कोर्इ नेता नहीं है ? क्या राहुल एक विदेशी महिला – के पुत्र है, इसीलिए कांग्रेस उन्हें कांग्रेस अपना नेता मान रही है और भारत पर शासन करने का हक दिलाना चाहती है। क्या यह गुलाम मानसिकता नहीं है ? दस वर्षों तक मां-पुत्र की भ्रष्ट नीतियों से देश बर्बाद हो गया। पूरे राष्ट्र ने अपमानित कर कांग्रेस को ठुकरा दिया, फिर भी कांग्रेसी नेताओं के मन मे इस परिवार के प्रति अंध श्रद्धा में कोर्इ कमी नहीं आर्इ है। कर्इ राज्यों की सरकारे हाथ से गर्इ। कर्इ प्रदेशों से लोकसभा के चुनावों में शून्य हाथ लगा। बड़े-बड़े प्रदेशों से दो चार सीटे हाथ लगी। कांग्रेसी नेताओं के मन में अपनी इस अपमानित करने वाली पराजय से कोर्इ ग्लानि नहीं है। वे आत्मचिंतन क्यों नहीं करना चाहते ? क्यों वे उस परिवार के साथ जोंक की तरह चिपके रहना चाहते हैं, जिनकी देश भक्ति संदेह के घेरे में है। जिनके भ्रष्ट आचरण से पूरा देश क्रोधित है।
शासद कांग्रेसी नेताओं के मन में यह धारण है कि चाहे उनके पास चवांलिस सांसदों की पूंजी हों, किन्तु उनके गांधी परिवार के पास सम्भवत: चवांलिस हजार करोड़ की पूंजी होगी। अपनी धनशक्ति के बल पर यह परिवार भारतीय लोकतंत्र पर पुन: नियंत्रण कर लेगा। एक न एक दिन इस परिवार की कृपा से हमारा शासन फिर आयेगा। वे मौज मस्ती वाले दिन लौट आयेंगे। इसलिए यह परिवार अपने धन के प्रभाव से जो भी राजनीतिक प्रपंच रच रहा है, चाहे वह गलत हो उससे जुड़े रहो। एक चुनी हुर्इ लोकप्रिय सरकार पर जितने शाब्दिक प्रहार किये जाये, करते राहे। चाहे वे सही हो या गलत हो, उनके साथ अपने आपको जोड़े रहो।
भारतीय योग का विरोध कर गांधी परिवार ने अपने आपको भारतीयता से अलग कर दिया है। यह साबित कर दिया है कि वे ऐसे किसी आयोजन के समर्थक नहीं है, जिससे भारत को विश्व में प्रतिष्ठा मिले। इस वििश्ष्ट आयोजन के समय पूरा परिवार देश छोड़ कर चला गया, जिससे परिवार की राष्ट्र भक्ति संदेह के घेरे में आ गर्इ हैं। अतीत में ऐसे कर्इ कृत्य इस परिवार ने किये हैं, जिससे उनकी राष्ट्रभक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगे थे। परन्तु अब यह साबित हो रहा है कि यह विदेशी परिवार भारत पर शासन करने की मंशा सिर्फ इसलिए रखता है, ताकि किस न किसी तरह भारत की संवैधानिक व्यवस्था पर नियंत्रण कर अपने लूट के कारोबार को जारी रखा जा सके।
नरेन्द्र मोदी ही उस जीवट ऊर्जा वाले व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक विदेशी परिवार को सत्ता से दूर किया है। अपनी छल विधा से यह परिवार साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर रखने के राजनीतिक षड़यंत्र के तहत मोदी सरकार का विरोध करता रहेगा और सारे विरोधी दलों को एक जुट करता रहेगा। लोकसभा में सरकार प्रभावी काम नहीं कर पाये, उसके लिए अवरोध डालता रहेगा।

Friday, 12 June 2015

साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक शक्तियां- देश के बहुसंख्यक समाज को दी जाने वाली गालियां है

भारतीय राजनेताओं के लिए इस देश में रहने वाला बहुसंख्यक समाज दोयम दर्जें का नागरिक हैं, अत: जब तब उसकी धार्मिक आस्था और विश्वास पर बेहिचक चोट पहुंचार्इ जाती है, क्योंकि इसी तबके का पढ़ा लिखे सभ्रान्त समाज को अपने धर्म और परम्पराओं से परहेज है और वे इन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं, इसलिए जब कभी भी सम्प्रदाय और साम्प्रदायिकता को ले कर बवाल उठता है, वह राजनेताओं की जमात के साथ खड़ा हो जाता है।
यदि आप बहुसंख्यक समाज के धर्म से जुड़े हुए हैं और आपकी अपने धर्म में आस्था हैं, तो आप साम्प्रदायिक कहलाते हैं, किन्तु आपकी यदि उस धर्म में आस्था हैं, जो बहुसंख्यक समाज का नहीं है, तो आप धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं। इसी तरह एक धर्म के प्रचार प्रसार में लगे हुए साधु-संतों को साम्प्रदायिक शक्तियां कह कर पुकारा जाता है, वहीं दूसरे धर्मों के प्रचार प्रसार में लगे लोगों को धर्मनिरपेक्ष ताकते कहा जाता है। जो राजनीतिक दल भारत की प्राचीन मान्यताओं और संस्कृति के प्रति अपना अनुराग दिखाता है, वह साम्प्रदायिक दल हो जाता है, किन्तु जो राजनीतिक दल विदेशों से आयातित धर्म और मान्यताओं को अपना समर्थन देते हैं, वे धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल बन जाते हैं।
भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए देवी देवताओं के कार्टुन बनाना और उनका उपहास उड़ाना जायज समझा जाता है। ऐसा करने पर जो अपनी आपत्ति दर्ज करते हैं, उन्हें साम्प्रदायिक कह कर उनकी तौहीन की जाती है, किन्तु किसी मजहब विशेष के संबंध में एक शब्द लिख देना या बोल देना जघन्य अपराध माना जाता है। पूरे विश्व में कोहराम मच जाता है। भारी खून-खराबा होता है, किन्तु इस पागलपन पर कुछ भी बोलने से धर्मनिरपेक्ष राजनेताओं की जबान लड़खड़ा जाती है। इसी तरह मंदिरों से मूर्तिया चुरा कर उन्हें अन्तरराष्ट्रीय बाज़ारों में बैच देने पर कोर्इ हंगाम नहीं होता, किन्तु किसी सिरफिरे द्वारा चर्च पर एक पत्थर फैंक देने से तूफान खड़ा हो जाता है। धर्मनिरपेक्ष राजनेता और समाचार मीडिया छोटी सी घटना पर गाहे बगाहे उबल पड़ता है।
कोर्इ राजनीतिक दल यदि बहुसंख्यक समाज के सबंध में कुछ बोलता है या उसकी पीड़ा के साथ अपने आपको जोड़ता है तो यह कहा जाता है ये लोग साम्प्रदायिकता की आग लगा रहे हैं। समाज में साम्प्रदायिकता विष भर रहे हैं। बार-बार ये शब्द दोहराये जाते हैं- साम्प्रदायिक ताकतों को रोको ! दुर्भाग्य से ऐसा कहने और करने वाले वे ही लोग हैं, जो भारत के बहुसंख्यक समाज का एक भाग हैं, किन्तु अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेकने के लिए अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं को रौंदने का उपक्रम करते हैं।
पच्चीस वर्ष पहले कश्मीर घाटी के पंड़ितो पर अमानुषिक अत्याचार कर उन्हें खदेड़ दिया गया इस षड़यंत्र को पड़ोसी देश ने स्थानीय राजनेताओं के साथ मिल कर अंजाम दिया था। अपने ही देश में शरणार्थी बने ये भारतीय नागरिक इसलिए प्रताड़ित हैं, क्योंकि ये भारत के बहुसंख्यक समाज के अंग है। इन अभागे देशवासियों के प्रति सहानुभूति के दो शब्द किसी धर्मनिरपेक्ष राजनेता की जबान से नहीं फिसलें, क्योंकि वे ऐसा करते तो साम्प्रदायिक हो जाते। उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि कलंकित हो जाती। वहीं दूसरी ओर गुजरात दंगो पर बारह वर्ष तक तूफान खड़ा करने वाली धर्मनिरपेक्ष ताकतों के मन में कश्मीरी पंड़ितो के प्रति सहानुभूति क्यों नहीं उपजी ? यह प्रश्न अभी भी अनुतरित है। इस बारें में यही कहा जा सकता है कि भारत की राजनीति बहुसंख्यक समाज की पीड़ा से कभी द्रवित नहीं होती। उसके संबंध में कुछ भी कहने से अपने आपको अलग कर देती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूसरे धर्मों का आदर करते हैं, किन्तु उनकी आस्था अपने धर्म में ही है, जिसे वे पाप नहीं समझते। पूजा-अर्चना करने और प्रसिद्ध मंदिरों में वे जाते हैं, किन्तु अपने आपको धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के लिए वे अन्य मजहब की टोपी नहीं पहनते, क्योंकि ऐसी नौटंकी करना उन्हें पसंद नहीं है। इन्हीं उदाहरणों से उनकी साम्प्रदायिक मनोवृति को प्रमाणित किया जाता है और कट्टरवादी नेता कहा जाता है। किन्तु जिन नेताओं के मन में एक धर्म विशेष में आस्था नहीं है। वे उस धर्म की परम्पराओं को नहीं मानते, फिर भी यदि टोपी पहन लेते हैं, तो उनकी धर्मनिरपेक्षता प्रमाणित हो जाती है।
यदि संवैधानिक अधिकार प्राप्त करने के बाद कोर्इ राजनेता अपनी प्रशासनिक क्षमता प्रमाणित नहीं कर पाता हैं। जन समस्याओं को सुलझाने में वह असमर्थ रहता है, किन्तु धर्मनिरपेक्षता का आवरण ओढ़ कर साम्प्रदायिकता के नाम पर बहुसंख्यक समाज को कोसता है, तो उसकी सारी प्रशासनिक दुर्बलताएं छुप जाती है। इसी तरह अपने शासनकाल में ऐतिहासिक धोटाले कर देश की अर्थव्यवस्था को कबाड़ा करने वाला राजनीतिक दल भी अपने आपको पाक साफ समझता हैं, क्योंकि उसने धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ रखा है और साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ लड़ने की कसमें खा रखी है।
ललू यादव ने बिहार प्रदेश पर पंद्रह वर्ष तक शासन किया और पूरे प्रदेश जंगलराज में तब्दील कर दिया। पशुओं के चारे के लिए जारी किये जाने वाले करोड़ो रुपये के फंड का घपला किया, जिसका दोष प्रमाणित हो चुका है। किन्तु ये महाशय पुन: बिहार की राजनीतिक को अपने नियंत्रण मे लेना चाहते हैं, क्योंकि ये धर्मनिरपेक्ष हैं और यह मानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता ने उनके सारे पाप धो दिये हैं और साम्प्रदायिक शक्तियों को बिहार की सत्ता नहीं सौंपने का अधिकार उन्हें देश की धर्मनिरपेक्षत ताकतों ने दे दिये हैं। वे स्वयं ही ऐसा मान रहे है कि ये ताकते आग लगताती है, जिसे बुझाने के लिए फायर बिग्रेड बन कर आया हूं। अर्थात आग लगी नहीं, धुआं उठा नहीं, फिर भी आग की कल्पना कर जनता को भयभीत करने वाले अपने आपको पुण्यात्मा समझते हैं, तो यह उनका अतिआत्मविश्वास है।
चाहे बिहार में नीतीश कुमार के साथ मिल कर साम्प्रदायिक शक्तियों ने अच्छा प्रशासन दिया हों, किन्तु उनके पुण्य को भी पाप ही माना जायेगा, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ये शक्तियां भारत के बहुसंख्यक समाज का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए ये पापी है। अत: जब तक भारत का बहुसंख्यक समाज बंटा रहेगा, उसे साम्प्रदायिक कह कर कोसा जाता रहेगा, किन्तु जब वह एक हो जायेगा, भारत के कर्इ राजनेताओं की दुकाने बंद हो जायेगी। तब विवश हो कर अपने शरीर पर डाला गया धर्मनिरपेक्षता का लबादा फैंकना पड़ेगा। तब उन्हें भी सबका साथ सबका विकास का नारा देना पड़ेगा।
अब समय आ गया है जब हम एक हो जायें और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो लोग बहुसंख्यक समाज को साम्प्रदायिक और साम्प्रदायिकता की गालियां देते हैं, उनको भारत की राजनीति से तिरस्कृत कर दें, क्योंकि भारत का बहुसंख्यक समाज अपने सारे पूर्वाग्रहों को छोड़ कर अपनी संस्कृति और परम्पराओं में आस्था प्रकट करेगा, तब उन्हें भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें चिढ़ाने की हिम्मत नहीं कर पायेगी। भारत की प्रगति और खुशहाली तथा भारतीय राजनीति के शुद्धिकरण के लिए यह आवश्यक है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राजनेता अपनी प्रशासनिक अकुशलता, भ्रष्टआचरण को छुपाना बंद कर दें और एक धर्म विशेष से जुड़े समाज के प्रति झूठी सहानुभूति दर्शाने का उपक्रम बंद कर दें

Friday, 22 May 2015

हमने मुल्क को तबाह करने की सुपारी ली है जी !

हम देश के संविधान को सत्ता पर चढ़ने की सीढ़ी मानते हैं जी। संविधान की शपथ लें, कुर्सी पर बैठ गये, फिर संविधान की धाराओं को पांवों के तले रौंद रहें है जी। हमे देश की प्रशासनिक व्यवस्था से कोर्इ सरोकार नहीं। हमने इसे बर्बाद करने का मानस बना लिया है। हमने अपने छियांसठ विधायकों को मंत्री या मंत्री जितनी सुविधाएं दिला दीं। उन्हें सचिवालय में कमरे और स्टाफ दिला दियें। आर्इएस अफसरों को हमने खाली बिठा रखा है। जो हमारे अपने थे, उन्हें काम दिया, ऑफिस दिये, बाकि बहुत सारे खाली बैठें हैं, क्योंकि न तो हमारे पास उनको देने के लिए काम है और न ही बिठाने के लिए जगह। दरअसल स्थापित नियम, कानून और लोकतांत्रिक परम्पराओं को हम नहीं मानते, क्योंकि हमे अराजक कहते हैं। हम अराजक हैं और अराजक रहेंगे। खबरों में बने रहने के लिए हम वे सारे अराजक काम करते रहेंगे, ताकि पूरे देश की जनता रोज टीवी पर हमारे दर्शन करती रहें। हम कोर्इ सरकार चलाने या काम करने थोड़े ही आये हैं, हम तो अपने व्यक्तित्व को चमकाने आये है। व्यवस्था के विरुद्ध जनता को विद्रोही बनाने आये हैं।
हम शहरी नक्सली है जी ! हम शब्दों की गोलियों और सफेद झूठ के धमाकों से अपने दुश्मनों को ललकारते हैं। जंगल में रहनेवालें नक्सलियों की तरह हमे धमाके करने और गोलियां बरसाने के बाद जंगलों मे छुपना नहीं पड़ता। हम सीना तान कर घूमते हैं। हमे इस देश के कानून की धाराएं पकड़ ही नहीं सकती, क्योंकि हम खून नहीं करते, लोगों का दिमाग खराब करते हैं, ताकि सभी हमारी तरह अराजक बन जायें। जंगली नक्सली राजनीतिक व्यवस्था को नहीं मानते। वे जंगल में रह कर इस व्यवस्था को नष्ट करना चाहते हैं। हम शहरी नक्सली व्यवस्था मे घुस कर और राजनेता बन कर व्यवस्था को तबाह करना चाहता है।
नक्सलियों की भी भारत के संविधान में आस्था नहीं हैं, हमारी भी नहीं है। वे व्यवस्था के विरुद्ध खुला विद्रोह कर रहे हैं। हमारा छुपा हुआ एजेंड़ा भी यही है। संविधान को हम भी नहीं मानते, किन्तु संविधान से लाभ उठा कर देश की राजनीतिक व्यवस्था को नष्ट कर हम अपने लिए नर्इ व्यवस्था बनाना चाहते हैं, ताकि हम दिल्ली प्रदेश के नहीं, पूरे भारत के तानाशाह बन जायें। हमे विरोध और विरोधी पसंद नहीं हैं। यदि हमारा मकसद पूरा हो गया तो पांच साल बाद फिर जनता के पास वोटों की भीख मांगने की जरुरत नहीं होगी। जैसे हमने अपनी पार्टी और विधानसभा में अपने सारे विरोधियों को ठिकाने लगा दिया, वैसे ही तानाशाह बन कर हम देश भर में अपने विरोध और विरोधियों को खत्म कर देंगे। आप समझ गये न, हमारे इरादे कितने खतरनाक हैं जी ! हम सिस्टम में घुस कर इसे पूरी तरह नष्ट करना चाहते हैं। जनता ने कांग्रेस को ठुकरा दिय। अब मुल्क चार साल तक हमारी नौटंकिया देखेगा। इन्हीं नौंटकियों की बदौलत हम चार साल बाद भाजपा को सत्ता से हटा देंगे। दिल्ली विधानसभा जैसा प्रचण्ड़ बहुमत हमने भारतीय संसद में पा लिया तो निश्चित रुप से इस देश का संविधान बदल कर भारत के तानाशाह बन जायेंगे। इसके बाद देश में न सवंिधान रहेगा, न हमारे विरोधी रहेंगे। बस हम ही हम रहेंगे।
पूरे देश के किसानों को अराजक बनाने के लिए हमने एक किसान को हमारी सभा के मंच के पास ही मरवा दिया और इस देश का कानून हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सका। मीडिया की दगाबाजी से हमारा सारा प्लान फ्लाप हो गया। यदि हमारा प्लान सफल हो जाता, तो पूरे देश के किसानों को अराजक बना कर मोदी सरकार के विरुद्ध खड़ा कर देते।
हमारा एक प्लान फेल हो गया इसका मतलब यह नहीं है कि हम भविष्य और नये प्लान ले कर नहीं आयेंगे। दरअसल भारत की राजनीतिक व्यवस्था को तबाह करने के लिए हमने सुपारी ली है। जिन्होंने सुपारी दी हैं, उन्होंने दिल्ली का चुनाव लड़ने के लिए धन भी दिया था, अपने आदमी भी प्रचार में भी लगायें थे। उनका मकसद था- मोदी के घंमड़ का चूर-चूर करना, जो हमने कर दिखाया। अब हमारी योजना हैं-भारत की राजनीति से मोदी के वर्चस्व को समाप्त करना, इसकेलिए हम कर्इ योजनाओं पर काम कर रहे हैं, जिनका मकसद है- भारत को आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से तबाह करना। पूरे देश की जनता को विद्रोही बना कर अपने वश में करना।
दिल्ली तो हमारी प्रयोगशाला हैं, जहां हम शासन नहीं कर रहे हैं, दिल्ली को अराजक क्षे़त्र बनाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। जो वादे चुनाव जीतने के लिए किये थे, वे पूरे होंगे नहीं, क्योंकि इतना पैसा है नहीं। बिजली के दाम आधे करने का बाद विकास के लिए धन बचा ही नहीं है। पर काम किसे करना है और शासन किसे चलाना है। हमे तो अपने सारे विधायकों को संतुष्ट कर चुपचाप बिठाना चाहते हैं, ताकि वे हमारे खिलाप मोर्चा बन्दी नहीं करें। इसलिए हमने उन्हें मौखिख सलाह दे रखी है- भ्रष्टाचार कर जितना पैसा कमाना चाहते हों, कमाते रहो। मैं रिश्वत नहीं लेने और रिश्वत नहीं देने के पोस्टर लगा कर भ्रष्टाचार दूर करता रहुंगा। मैं जनता को झूठ-मूठ ही समझाता रहुंगा कि देखो मेरे आने के बाद दिल्ली में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है। अफसरों के माथे पर भ्रष्टाचार के पाप का मटका फोड़ कर उन्हें बदनाम करता रहुंगा। मैं भी अफसर रहा हूं और जानता हूं कि बिना मंत्रियों के मिलीभगत के अफसर भ्रष्टाचार नहीं कर सकता, पर उन्हें बदनाम करने में अपना क्या जाता है।
हमारा मकसद है-दिल्ली की सत्ता हाथ में आने के बाद केन्द्र सरकार के विरुद्ध न खत्म होने वाले संघर्ष की शुरुआत करना, जो हमने कर दी है। दिल्ली के राज्यपाल को तो जंग के लिए हमने मोहरा बनाया है। दरसअल हम अपने झूठ, प्रपंच और नौटंकी कला से केन्द्र सरकार को परेशान करना चाहते हैं। थोड़े दिनों बाद उपमुख्यमंत्री को पूरा चार्ज दे कर हम देश भर में घूमेंगे और जनता को केन्द्र सरकार के विरुद्ध भड़कायेंगे। वैसे राहुल हमे गुरु मान कर हमारी ही नीतियों का अनुशरण कर रहे हैं। पर आप जानते हैं, राहुल राजनीति के कच्चे खिलाड़ी है। वे जानते नहीं कि वे जा रास्ता बना रहे हैं, उस पर एक दिन हम दौडेंगे और उन्हें मिलों पीछे छोड़ देंगे। चार साल बाद भाजपा को सत्ता से राहुल नहीं, हम हटायेंगे, क्योंकि हमारे पास दिमाग है, तिकड़म है और विदेश में बैठे अपने एक प्रिय साथी का साथ हैं । साथी हमारे लिए प्रचुर धन का जुगाड़ करेगा। देश में काम कर रहे विदेशी मालिकों के मीडिया भी हमारा साथ देंगे। क्योंकि हमारा भारत मूर्खों का देश हैं। आपके पास जनता को मूर्ख बनाने की कला है, तो आप हर बाजी जीतते जायेंगे। दिल्ली में हमने वह करिश्मा कर दिखाया। दिल्ली की जनता की मूर्खता का लाभ उठाया। अब पूरे देश की जनता की मूर्खता का लाभ उठा कर भारत की शासन व्यवस्था को अपनी मुट्ठी में करना है। हमारे विदेशी साथी की भारत को तबाह करने की दिल्ली इच्छा यही हैं, जिसे हमे पूरा करना है, क्योंकि वह भी यह चाहता है कि भारत की सत्ता ऐसे आदमी के पास हो, जो उसके इशारे पर काम करें। हम उनके अहसान को पूरा करने के लिए जी जान एक कर देंगे, क्योंकि उनसे सुपारी जो ली है, जी!
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Monday, 18 May 2015

भारत की राजनीति में आये भूचाल के एक वर्ष बाद

एक वर्ष पहले भारत की राजनीति में भूचाल आया था। परिवार पार्टी के मजबूत गढ़ ढह गये। कहीं-कहीं तो शून्य हाथ लगा और कहीं से मात्र एक आध सांसद जीत कर लोकसभा पहुंचे। अपनी पार्टी के सांसदों से भरा रहने वाला सदन एक छोटे से कोने में सिमट कर रह गया। कुछ क्षत्रपों के मनसूबों पर भारी वज्रपात हुआ। अपने संख्या बल से केन्द्र की सरकारों को ब्लैकमेल करने और समर्थन देने के बदलें भारी कीमत वसूलने के सपने धरे रह गये। दलित महारानी अपने प्रदेश में हाथ मसल कर रह गर्इ और प्रधानमंत्री बनने की हसरते सीने में दबाये एक सूबे के सूबेदार सिर्फ अपनी लाज बचा पायें। अतृप्त महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए बिहार के क्षत्रप इतने बैचेन हो गये कि जिनके सहारे सत्ता के शिखर पर पहुंचे, उसी को लात मार दी। उनके सपने ताश के पत्तों की तरह बिखर गये। धड़ाम से जमीन पर गिरते ही आंखों के सामने अंधेरा छा गया। बैचारें को रोते हुए अपने पूराने राजनीतिक बैरी को गले लगाना पड़ा।
एक वर्ष तक गहरे सदमें की पीड़ा के दंश से छटपटा रहे राजनेता अपने सुनहरे दिन फिर लौट आने की आशा में उठ खड़े हुए हैं। सभी मिल कर ऐसी रणनीति बनाने में जुट गये हैं, जिससे पूराने दिन लौट आयें। महारानी अपने हाथों में सत्ता की डोर थामने के लिए मचल रही है। अब वे चाहती हैं कि किसी पुतले कों नहीं, अपने बेटे को सिंहासन पर बिठा कर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पुन: अपना अधिकार जमा लें। प्रादेशिक क्षत्रपों का मौन समर्थन उन्हें मिल रहा है, क्योंकि भारत के इस राजनीतिक परिवार के हाथों में फिर सत्ता आने से ही उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित हैं। गठबंधन सरकारों से ही उनका राजनीतिक भविष्य संवरता है। चार वर्ष बाद फिर ऐसा ही कोर्इ भूचाल आ गया तो उनके तम्बू पूरी तरह उखड़ जायेंगे। वे कहीं के नहीं रहेंगे। राजनीति की दुकान बंद कर और कोर्इ नया धंधा शुरु करना होगा।
सभी हारे हुए खिलाड़ियों ने अब यह ठान लिया है कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए सरकार के हर उस काम का विरोध करेंगे, जो देश के विकास से जुड़ा हुआ हो। वे देश के विकास की कीमत पर अपना विनाश नहीं चाहते। जनता को खुशहाल बनाने की कीमत पर वे स्वयं बदहाल होना नहीं चाहते। अत: सरकार कोर्इ भी विधेयक लाएगी, उस पर लोकसभा में शोर मचाएंगे और राज्यसभा में अपने बहुत के बल पर उसे पास नहीं होने देंगे।
चाहे भारत की जनता ने सरकार को बहुमत से चुना हों, पर हम भारत की जनता के निर्णय सही नहीं मानते। दरबारी पार्टी तो अपनी महारानी को अब भी भारत की भाग्य विधाता मानती है और उनके युवराज को भारत का भावी सम्राट। ऐसा इसलिए हैं, क्योंकि रस्सी जल गयी, पर एंठ नहीं गर्इ। सभी जगह पीट गये पर यह मानने को तैयार नहीं है कि हमारी औकात अब छोटी हो गर्इ है। हमारे पास सत्ता नहीं है। हमारे इशारे पर देश का प्रधानमंत्री और उसके मंत्री काम नहीं करते। हम चाहे जो बोल सकते, पर हम चाहे जो कर नहीं सकते। हम सरकार को चोर कहने में नहीं हिचकिचाते, क्योंकि चोरों को सारे चोर नज़र आते हैं।
महारानी को दिलासा देने के लिए दरबारी कहते हैं- साले को पूरा बहुमत मिल गया, इसलिए प्रधानमंत्री बन गया। यदि दस-बीस सीटे कम आती, तो कभी इसकी सरकार नहीं बनने देते। यदि ऐसा होता तो गठबंधन सरकार का दौर चलता रहता। सरकार बनती और गिरती या गिरा दी जाती और अंतत एक वर्ष बाद आज देश मध्यावधी चुनावों की तैयारी में लगा होता। युवराज की राह आसान हो जाती। भारतीय लोकतंत्र फिर राजतंत्र में तब्दील हो जाता। पर भारत की जनता का यह सौभाग्य ही था कि ऐसा हादसा नहीं हुआ, वरना अनर्थ हो जाता।
एक चुनी हुर्इ सरकार के वैधानिक निर्णयों को राजनीतिक षड़यंत्र के तहत रोकना जनमत का अपमान करना है, जिसने सरकार को कार्य करने के अधिकार दिये हैं। लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है, राजनीतिक दल नहीं। किसी दल के नेता का अहंकार नहीं। लोकसभा में बहुमत से पास हुए बिल को राज्यसभा में रोकने की परम्परा अलोकतांत्रिक हैं, क्योंकि लोकसभा के सांसदों को जनता सीधा चुनती है। राज्यसभा के बहुमत का लाभ उठाना दरअसल जनता की अवमानना करना है, जिसने लोकसभा के सांसदों को चुन कर संसद में भेजा है।
भारत की जनता ने राहुल गांधी को अस्वीकृत कर दिया है, किन्तु आजकल उन्हें सरकार की खिल्ली उड़ाने का काम सौप रखा है। तथ्यहीन, अतार्किक, बेहुदे जुमलों के तहत वे सरकार को कठघरे में खड़े करने का प्रयास कर रहे हैं। झूठ और प्रपंचपूर्ण बकवास करते हुए वे सोच रहें हैं कि उनकी ऐसी ओछी हरकतों से भारत की जनता पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और अंतत: वह उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लेगी। पर उन्हें शायद मालूम नहीं है कि ऐसा कर वे अपनी अपरिपक्क व ओछी मानसिकता का परिचय पूरे देश को दे रहे हैं। क्या एक सौ पच्चीस करोड़ की जनसंख्या में राहुल से ज्यादा समझदार व गम्भीर कोर्इ नेता ही नहीं बचा है, जो जनता उन्हें ही प्रधानमंत्री के रुप में स्वीकार कर लें ? राहुल कभी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। जो लोग इस नासमझ बछड़े की पूंछ पकड़ कर भवसागर पार करना चाहते हैं, वे अपना इरादा छोड़ दें, क्योंकि बछड़ा निश्चित रुप से पानी में डूबेगा और साथ में उन्हें भी ले डूबेगा।
जब तक राज्यसभा में सरकार का बहुमत नहीं हैं, देश के विकास के लिए क्रांतिकारी निर्णय नहीं लिये जा सकते। अत: सरकार को अपनी रणनीति बदलनी होगी। संसद में अपनी बात रखने के बाद जनता से सीधा संवाद करना होगा। जनता को अपनी बात सरल शब्दों में समझाने के लिए व्यापक जनसम्पर्क अभियान छोड़ना होगा। जनता का साथ रहेगा, तो सरकार सारी बाधाएं पार कर लेगी। सरकार के पास अड़तालिस महीने हैं, इन महीनों का यदि समझदारी से पूरा उपयोग किया जाय तो राज्यसभा में भी बहुमत आ जायेगा और चार चाल बाद फिर ऐसा भूकम्प आने की सम्भावा बन जायेगी, जिससे भारतीय राजनीति पूरी तरह साफ-सुथरी हो जायेगी। वे सारे राजनीतिक चरित्र कहीं गुम हो जायेंगे, जो देश के लिए नहीं अपने लिए जीते हैं। जो जनता को अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए मात्र सीढ़ी समझते हैं। जिनके मन में संवैधानिक अधिकार प्राप्त कर जनता की सेवा करने का भाव नहीं है। वे सत्ता चाहते हैं और सत्ता का भरपूर उपयोग कर अपनी आर्थिक सेहत सुधारना चाहते हैं।
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Monday, 20 April 2015

क्या किसान रैली में राहुल का झूठ जीत गया और मोदी सरकार का सच हार गया ?

भाजपा के 282 सांसद किसानों को सच समझाने में असफल रहे, किन्तु पिटे हुए कांग्रेसी नेता झूठ समझाने में सफल रहें। भाजपा सांसद सच को प्रभावी ढंग से समझा कर किसानों को गांवों में रोक सकते थे, किन्तु वे ऐसा नहीं कर पाये और कांग्रेसी मिथ्या प्रचार के जरिये किसानों की भारी भीड़ रामलीला मैदान में एकत्रित करने में सफल रहें। रैली में राहुल जम कर झूठ बोलें, उनके प्रत्येक झूठ का जवाब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में दिया, किन्तु यही सच राज्य सरकारे, भाजपा विधायक और सांसद गांव-गांव जा कर किसानों को समझा सकते थे। यदि ऐसा होता तो रैली में भीड़ ही नहीं जुटती, फिर राहुल अपना झूठ किसे सुनाते ?
बेहतर संवाद का जरिया गांव की चौपाल और शहरों के मोहल्ले होते हैं, टीवी चेनल और सोशल मीडिया नहीं। लोगों से मिलने उनके दुख-दर्द जानने से जनता का भरोसा बढ़ता है। जनता आपकी बात ध्यान से सुन कर उस पर यकीन कर लेती हैं, किन्तु जनता से दूरियां बढ़ाने से विरोधियों को झूठ के सहारे आपकी छवि बिगड़ाने और उपलिब्ध्यों पर पानी फेरने का मौका मिल जाता है। अभी पानी सिर से गुजरा नहीं है। भाजपा के जनप्रतिनिधि जन संवाद के जरियें सरकार की उपलिब्ध्यों, नीतियों और उससे को मिलने वाले लाभ का सच प्रभावी ढं़ग से जनता को समझा सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने दस माह में एक भी अवकाश नहीं लिया। कोर्इ निजी यात्रा नहीं की। अव्यवस्थित, अकर्मण्य भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था को सुधारने के लिए कठोर परिश्रम किया। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आये। विदेशों में भारत की साख बढ़ार्इ। वहीं राहुल गांधी दस महीने पूर्णतया निष्क्रिय रहें। उनके नेतृत्व मेंं कांग्रेस सभी विधानसभा चुनावों में पराजित हुर्इ। पार्टी की हालत सुधारने के बजाय राहुल दो महीने तक विदेशों में मौज मस्ती कर के लौटे हैं। आते ही उनके दरबारियों ने झूठ बोलने के नुस्खे दिये, उनका झूठ सुनने के लिए भारी भीड़ जुटार्इ और राहुल की सारी दुर्बलताओं को छुपा कर उसे जनता का हीरो बनाने की कोशिश की। उनकी कोशिश कितनी सफल रही, यह तो वक्त ही बताएगा, किन्तु किसान रैली प्रकरण भाजपा को नसीहत दे गया है कि झूठ का ढिं़ढोरा पीट को जनता को बहकाया जा सकता है, तो सच को प्रभावी ढंग से जनता के सामने रखने से उनका दिल भी जीता जा सकता है।
ग्यारह महीने में सरकार ने कुछ नहीं किया। राहुल को इतना बड़ा झूठ बोलने में तनिक झिझक नहीं आयी। सरकार ने क्या किया इसका सच सरकारी रिकार्ड में उपलब्ध है। राहुल को पढ़ने लिखने का शौक हो तो सारी जानकारी उन्हें उपलब्ध हो जायेगी। जबकि यह सच साबित हो गया है कि उनकी मनमोहन सरकार दस साल तक सोर्इ रही। प्रधानमंत्री ने लुटेरों को देश का खजाना लूटने की अनुमति दे दी। उन्हें कह दिया- मैं अंधा हूं। कुछ नहीं देख रहा हूं। मैं झूठ बोलता रहूंगा कि लुटेरों ने क्या लूटा, मुझे कुछ नहीं मालूम। यह सच है कि बेबाक और बेशर्म लूट से राजकोषीय घाटा बढ़ता गया, महंगार्इ बढ़ती रही, औद्योगिक उत्पादन गिरता गया, नये कारखाने तो लगे ही नहीं, किन्तु चल रहे थे, वे भी मंदी की मार से बंद हो गये। घर में बेटा बैरोजगार बैठा थाा और कारखाना बंद होने से बाप भी बैरोजगार हो कर घर बैठ गया, किन्तु हकीकत से आंखें मूंद कर राहुल झूठ बोल रहे हैं, कि हमारी सरकार मजदूरों और किसानों की सरकार थी। जब कि सच यह है कि दस वर्ष के शासनकाल में नये रोजगारों का सृजन तो हुआ ही नहीं, बल्कि तालेबंदी से लाखों श्रमिकों की छटनी हो गयी। उन्हें अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा।
राहुल भट्टा परसौल में किसानों के लिए लड,़े किन्तु इस सच से क्यों मुहं मोड़ लिया कि उनके जीजा-रार्बट बाड्रा ने राजस्थान और हरियाणा सरकारों से मिली भगत कर किसानों की जमीन कोड़ियों में खरीद, करोड़ो बना लिये। क्या राहुल के पास ऐसा एक भी सच है, जिसमें वे साबित कर सकते हैं कि वर्तमान सरकार के किसी मंत्री या उनके रिश्तेदारों ने किसानों की जमीन धोखे से हड़प्पी हैं ?
स्कील इंड़िया और स्कैम इंड़िया में क्या झूठ हैं, इसे राहुल साबित कर सकते हैं ? वे सारे घोटालें जिसमें अरबों रुपये की हेराफेरी हुर्इ थी, क्या सब झूठ है ? यदि नहीं है, तो उन्हें इस बात पर क्यों आपत्ति है कि मनमोहन युग घोटालों और घपलों का स्वर्ण युग नहीं था ? देश को बर्बाद किया। जनता ने ठुकरा दिया। फिर भी जनता को झूठ बोल कर मूर्ख बनाने में अब भी झेंप नहीं आ रही है। क्या सोनिया, राहुल और उनके दरबारी भारत की जनता को नितांत मूर्ख और अज्ञानी ही समझे हैं, जो उनके द्वारा बोले गये हर सफेद झूठ पर जनता विश्वास कर लेगी ?
उड़िसा में वेदांता परियोजना इसलिए नहीं बंद की गयी कि इससे आदिवासी नक्सली बन जाते, बल्कि इसलिए बंद की गयी कि पर्दे के पीछे होने वाली डील सफल नहीं हो पार्इ। सच यह है कि अपनी कुल सम्पति का पिचहतर प्रतिशत- लगभग पच्चीस हजार करोड़ रुपया भारत सरकार को दान देने वाला दानी उद्योगपति सत्ता “ाड़यंत्रों के समक्ष नतमस्तक नहीं हुआ। यह सच है कि किसी एक परियोजना से आदिवासियों की कुछ एकड़ जमीन जाती है, किन्तु परियोजना से सौ किलोमीटर दूर तक रह रहे नागरिकों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। पूरा क्षेत्र समृद्ध होता है। राहुल का यह कथन सरासर झूठ है कि वेदांता परियोजना बंद नहीं की जाती तो आदिवासी नक्सली बन जाते। क्या राहुल यह बता सकते हैं कि पर्यावरण मंत्रालय ने कर्इ परियोजना फायलों को एनवायरमेंट क्लीयरेंस क्यों नहीं दिया ? नयी सरकार ने आते ही पर्यावरण मंत्रालय में लम्बित पड़ी परियोजनाओं को स्वीकृति दे दी। राहुल इस बात का जवाब देश की जनता को दें कि उनकी सरकार ने वर्षों तक फार्इलों को जानबूझ कर दबा रखा था। ऐसा करने से देश का औद्योगिक विकास रुक गया। बैंकों का पैसा फंस गया। क्या परियोजना रोकने का कारण उनकी सरकार का भ्रष्टाचार नहीं था ? राहुल भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी सरकार को कैसे जनता की सरकार होने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं।
राहुल का यह जुमला कि मोदी ने उद्याोगपतियों से कर्ज लिया है, जिसका चुकारा किसानों की जमीन छीन कर किया जायेगा। यदि यह सच है तो यह भी बता दीजिये कि कांग्रेस के कोष में हज़ारो करोड़ रुपया पड़ा है, वह किसी उद्योगपति का नहीं है ? जबकि सच यह है कि रैली में भीड़ एकत्रित करने के लिए एक कांग्रेसी उद्योगपति ने करोड़ो रुपये चंदा दिया है, जो इन दिनों कर्इ स्केण्डल में फंस कर छटपटा रहे हैं। हमाम में सभी नंगे होते हैं, राहुल जी ! स्वयं के शरीर पर वस्त्र नहीं है, किन्तु दूसरों की इशार करते हुए कह रहे हैं- देखों वे नंगे हैं !
राहुल के दरबारियों को यह आशा है कि जिस तरह झूठ बोल-बोल कर केजरीवाल ने लोकसभा में भाजपा की पचास विधानसभा सीटों की बढ़त को तीन में बदल दिया, उसी तरह चार वर्ष तक सरकार के विरुद्ध सदन में और बाहर चिल्ला-चिल्ला कर झूठ बोलेंगे, तो निश्चय ही अगली बार फिर हमारी सरकार फिर आ जायेगी। हो सकता है, उनकी मंशा सही हो, किन्तु भाजपा नेताओं को अपनी आत्मुग्धता छोड़ कर इस बात पर गौर करना चाहिये कि कोर्इ विरोधी कमजोर नहीं होता । सार्वजनिक जीवन का हर दिन चुनौती पूर्ण होता है। झूठ बोलने में ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है, सच बोलने में कम। फिर सच को जनता से आलस्यवश क्यों छुपाया जा रहा है ?

Sunday, 22 March 2015

हिन्दू धर्म नहीं, हमारी राष्ट्रीय पहचान है

हमारे पौराणिक ग्रन्थों में कहीं हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं है। देवी देवताओं के आगे भी हिन्दू देवी-देवता का विशेषण नहीं लगाया जाता। वेदो और उपनिषदों में तो प्राकृतिक शक्तियों को अनुष्ठान और यज्ञ से प्रसन्न करने की कर्इ पद्धतियों का वर्णन है, जो मूलत: वैज्ञानिक है, जिसे किसी धर्म से जोड़ कर नहीं समझा जा सकता।  पुराणों में कर्इ कथाएं हैं, पर किसी कथा में हिन्दू धर्म की व्याख्या नहीं की गयी है। रामायण और महाभारत संसार के वहृततम और श्रेष्ठतम महाकाव्य है, जिनके महानायक राम और कृष्ण हैं, किन्तु इनकी महता देवताओं के रुप में नहीं की गयी हैं। इन्हें विष्णु का मनुष्य रुप में अवतार माना गया है। भग्वदगीता को धर्म का चश्मा उतार कर पढ़ने से इसमें छुपा हुआ गूढ आध्यात्मिक अर्थ समझ में आता है। भग्वद गीता धर्म, दर्शन और आध्यात्म का अनुपम ग्रन्थ है, जो हमारी राष्ट्रीय निधि  है। शताब्दियों पूर्व लिखा गया यह ग्रन्थ विश्व का पहला और अंतिम ऐसा ग्रन्थ हैं, जैसा न कभी लिखा गया था और न लिखा जायेगा। किन्तु गीता के किसी श्लोक में हिन्दू, हिन्दु धर्म और हिन्दुत्व की व्याख्या नहीं की गयी है। यदि भारतीय सांस्कृति को ही हिन्दू धर्म समझा जाता है, तो यह न केवल भारतीयों के लिए वरन पूरी मावन जाति के लिए गर्व का विषय है।
बुद्ध और महावीर ने वैदिक धर्म से हट कर अलग उपासना पद्धति का परिचय कराया था, किन्तु बौद्ध और जैन ग्रन्थों में भी कहीं हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं मिलता। फिर प्रश्न उठता है, भारत में हिन्दू कब पैदा हुए और हिन्दुधर्म कहां से आया ? दरअसल मुगलों के भारत में आने से पहले हम आर्य, सनातन, शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध थे, किन्तु मुगलों ने भारत में आ कर हमे भारतीय से हिन्दू बना दिया। हमारे देवी देवताओं को उन्होंने हिन्दू देवी -देवता कहा और उपासना पद्धति को उन्होंने हिन्दूधर्म से परिभाषित किया। मुगलों ने जिन्हें तलवार के बल या प्रलोभन दे कर इस्लाम कबूल करवाया, उन्हें मंदिरों में जा कर पूर्जा अर्चना करने से प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा को निषेद्ध माना गया है। उपासना पद्धति बदले जाने के बावजूद भी वे हिन्दू और हिन्दुस्तानी ही रहे, क्योंकि मुगल बादशाह अपने आपको फख्र से हिन्दुस्तानी कहते थे। उनके मन में हिन्दू या हिन्दुस्तानी शब्द से घृणा नहीं थी।
मुगल बादशाहों ने भारत को हिन्दुस्तान नाम दिया और स्वयं को हिन्दुस्तानी माना। अर्थात हिन्दुस्तान में रहने वाला हिन्दू है, इस हकीकत को स्वीकार किया। यदि ऐसा नहीं होता, तो भारत का नाम हिन्दुस्तान रखने के बजाय उसे अहमदाबाद, औरंगाबाद, होंसंगाबाद की तर्ज पर बाबरीस्तान, अकबरीस्तान आदि रखते। मुगलों ने सात सौ वर्षों तक शासन किया। कर्इ मंदिरों को तोड़ कर मज्जिदे बनायी। नागरिकों का धर्म परिवर्तन करवाया, किन्तु भारतीय संस्कृति में इतनी अद्भुत शक्ति थी कि वक्त के कर्इ झंझावत सहने के बाद उसकी गरिमा अक्षुण्ण रही। हार कर मुगलों ने गंगा-जमुनी तहजीब की आधारशिला रखी, जिसके अवशेष आज भी मौजूद है।
अंग्रेजो की कुटिलता से क्षुब्ध हो कर अठारह सौ सतावन में अंग्रेजो के खिलाप जब हिन्दुस्तानियों ने पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा था, तब उनके बीच मजहब की कोर्इ दीवार नहीं थी। यदि हिन्दुस्तानी विफल स्वतंत्रतासंग्राम की सफल पुनरावृति करते तो अंग्रेजो को मजबूर हो कर उन्नीसवीं सदी में ही भारत छोड़ना पड़ता। अंग्रेजो ने हिन्दुस्तानियों की एकता को तोड़ने के लिए मुसलमानों और हिन्दुओं के साथ उनका धर्म जोड़ कर दोनों समुदाय के बीच छल से कटुता पैदा की जो आज भी विद्यमान है। जबकि हिन्दू कोर्इ धर्म था ही नहीं। हिन्दुस्तानी से टूट कर हिन्दू बना है, जो हमारी राष्ट्रीय पहचान है। ठीक उसी तरह जिस तरह अमेरिका में रहने वाले अमरिकी नागरीक  की और जर्मनी में रहने वाले जर्मन नागरिक की पहचान होती है। जिस तरह जर्मन और अमरीका कोर्इ धर्म नहीं है, उसी तरह हिन्दू कोर्इ धर्म नहीं है। हिन्दुस्तान में रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दू ही है, जो उसकी पहचान बताता है।
भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में पच्चीस-तीस करोड़ मुसलमान रहते हैं, जिनके पुरखे मध्य ऐशिया या पश्चिमी ऐशिया से नहीं आये, वे हिन्दू और हिन्दुस्तानी ही थे। सभी की रगो में एक ही खून बहता है। एक ही संस्कृति की उपज है। अंग्रेजो ने हिन्दुस्तानियों का मजहब के आधार पर जो विभाजन किया, उसी परम्परा को भारत के सेकुलर राजनीतिक दल और पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकते निभा रही है। वे किसी हालत में नागरिकों के मन में मजहब को ले कर जो नफरत भरी गयी है, उसे कम नहीं होने देना चाहती, क्योंकि ऐसा यदि हो जाता है, तो भारत पाकिस्तान की बीच बनी हुर्इ नफरत की दीवार ढ़ह जायेगी। भारत की राजनीति में एक समुदाय विशेष के प्रति  कृत्रिम सहानुभूति अर्थात तुष्टीकरण का प्रभाव समाप्त हो जायेगा। इस तरह पाकिस्तान में सक्रिय कट्टरपंथी ताकते और भारत के सेकुलर राजनेताओं के पास कोर्इ काम ही नहीं बचेगा और वे बैरोजगार हो जायेंगे।
इस्लाम एक उपासना पद्धति है, जिसकी अपनी धार्मिक परम्पराएं और मान्यताएं है, जिसे निभाने की उन्हें भारत में पूरी छूट हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह विष्णु, शिव, दुर्गा, हनुमान, बुद्ध, महावीर और क्राइस्ट  के उपासक अपने आराध्य देव की अलग-अलग उपासना पद्धति से उपासना करते है। इस हकीकत को झूठलाया नहीं जा सकता कि ये सभी मूलत: हिन्दू और हिन्दुस्तानी है, किन्तु सभी हिन्दुस्तानियों के मध्य अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेद हटा कर उन्हें एक संख्यक हिन्दू कह देने पर कुछ ताकते क्यों तमतमा जाती है ? टीवी चेनल क्यों बवाल खड़ा कर देते हैं ? क्या हिन्दू अपमानसूचक शब्द है ? जब हिन्दू कोर्इ धर्म नहीं है, फिर इसे गाली क्यों समझा जाता है ?
मजहब और सियासत के घालमेल के कर्इ दुखद परिणाम आये हैं। जबकि मजहब मन को पवित्र करता है। उसे परमपिता परमेश्वर या परवरदिगार से जोड़ता हैं। मजहब बैर नहीं सिखाता। दिलों में नफरत नही भरता, किन्तु सियासत मजहब की आड़ में अपने स्वार्थ की रोटियां सेकती है। भारतीय उपमहाद्वीप की डेढ़ अरब आबादी मजहब के नाम पर इंसानों के बीच गलतफहमियां करने से उत्पन्न हुए दर्द की पीड़ झेल रही है। जब तक सियासत और मजहब को अलग नहीं किया जाता, तब तक हमारी तक़लीफों में इज़ाफा होता रहेगा।
हिन्दू -सिन्धु शब्द का अभ्रंश है, जिसका नामकरण संसार की उस प्राचीन सभ्यता के नाम पर हुआ था, जो सिंधु नदी के किनारे बसी थी। अत: ऐतिहासिक तथ्यों से भी यह साबित होता है कि हिन्दू धर्म नहीं, हमारी पहचान है। जो हिन्दू या हिन्दू धर्म के नाम पर बखेड़ा करते हैं, वे अपनी सियासी लाभ के लिए जानबूझ कर हकीकत से आंखें  मूंदे हए

Saturday, 7 March 2015

भारतीय लोकतंत्र पर मंडराता आतंकी साया

अब तक झूठ,फरेब,नौटंकी केजरीवाल की पहचान थी, किन्तु दिल्ली विधानसभा का मतदान समाप्त होते-होते गुंडे़, शराब और अवैध धन ने  उनकी नयी पहचान बनायी है। दिल्ली चुनाव जीतने के लिए अरबों रुपये उड़ेल हैं और गंदी राजनीति में उन्होंने भारत के सभी राजनेताओं और  राजनीतिक दलों को पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री बनने की हवश पूरी करने के लिए यह व्यक्ति इतना कपटी होगा, जानकर आश्चर्य हो रहा है, क्योंकि यह वही शख्स है, जो व्यवस्था परिवर्तन का नारा लगाता हुआ जनआंदोलन से जुड़ा था और नये राजनीतिक मूल्यों की स्थापना करने के लिए राजनीतिक पार्टी बनायी थी।
जब से केन्द्र मे मोदी सरकार बनी है, दाऊद काफी भयभीत दिखार्इ दे रहा है। नरेन्द्र मोदी की हत्या के कर्इ प्रयास हो चुके हैं, किन्तु मजबूत सुरक्षा घेरे के कारण सफलता नहीं मिल पायी। पूरे देश में आतंकी गतिविधियों को तेज करने के लिए पाकिस्तान सीमा पर गोलाबारी कर रहा है, ताकि इसकी आड में  खूंखार आतंकवादियों का भारत में प्रवेश कराया जा सके। हमारे जाबांज जवान अपनी जान पर खेल कर पड़ोसी की करतूतों का माकूल जवाब दे रहे हैं। सरकार की मुस्तैदी से पाकिस्तान अपने मनसूबें में कामयाब नहीं हो पा रहा है, अत: थक हार कर भारत में अराजक राजनीतिक परिस्थितियां निर्मित करने के लिए केजरीवाल को मोहरा बनाया गया है।
आशंका यह जतार्इ जा रही है कि दुबर्इ के रास्ते जो भारी धन दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए केजरीवाल को मिला है, वह दाऊद ने अपने गुर्गों के माध्यम से केजरीवाल को दिलाया है, ताकि भारतीय लोकतंत्र को अराजक बनाया जा सके। चुनाव जीतने के लिए केजरीवाल एण्ड़ पार्टी ने जो बेशुमार धन खर्च किया है, उससे आंखें चुंधिया जाती है।  एक-एक विधानसभा सीट को जीतने के लिए करोड़ो रुपये खर्च किये हैं। धन और शराब बांटी, निर्धन,  निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों को झूठे सपने दिखायें, झूठी अफवाहें उड़ा कर जनता को भ्रमित किया और अपने आकाओं की मदद से मुस्लिम समुदाय को भाजपा के विरुद्ध एकजुट किया।
भारत के सभी राजनीतिक दल सिर्फ भाजपा को हराने के लिए एक देशद्रोही व्यक्ति के समर्थन में आ गये, जो भारतीय राजनीतिक दलों के पतन की पराकाष्ठा है। राजनीतिक मूल्यों की बलि है। सब से दुखद बात यह है कि कांग्रेस ने अपना पूरा वोट बैंक केजरीवाल के आगे समर्पित कर दिल्ली की राजनीति में अपने आपको जानबूझ कर अप्रसांगिक बना दिया, जबकि दिल्ली कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। भाजपा को हराने के बहाने अपनी खोयी ज़मीन तलाशने के बजाय, अपने आपको खार्इ में गिरा देना, कांग्रेस पार्टी के लिए एक राजनीतिक मजाक बन गया है।
करोड़ो रुपये बांट कर केजरीवाल ने समाचार मीडिया के मालिकों और पत्रकारों को खरीदा ही है, किन्तु उस बोद्धिक जमात के मुंह पर भी ताला लगा दिया है, जो भारतीय लोकतंत्र पर मंडराते आतंकी साये पर चुप्पी साधे हुए हैं। राजनीतिक लक्ष्य प्राप्ति के लिए देश के दुश्मनों के साथ साठ-गांठ करना निर्लज्ज अपराध है, जिसे कभी क्षमा नहीं किया जा सकता। केजरीवाल ने चंदा प्राप्त करने की सारी सीमाएं कैसे लांघ दी।  देश का गृहमंत्रालय कैसे सबकुछ देखता रहा और कार्यवाही करने में क्यों  देरी की ? यह चिंता का विषय है, क्योंकि इतना सारा धन कैसे और किस रुप में देश में लाया गया और इसे कहां रखा गया, यह गहन जांच का विषय बन गया है।
गृह मंत्रालय में मतंग सिंह जैसे दलालों की घुसपैठ उजागर होने और अनिल सिंह जैसे गृह सचिव की बर्खास्तगी के बाद सीबीआर्इ कर्इ रहस्यों पर से पर्दा उठायेगीं। सम्भव है वे चेहरे भी बेनकाब हो जायेंगे, जो केजरीवाल की करतूत पर मौन साधे हुए थे या अप्रत्यक्ष रुप से उनका हौंसला बढ़ा रहे थें। विदेशी षड़यंत्र के तहत ही केजरीवाल ने बनारस लोकसभा का चुनाव लड़ा था  और भारी धन बटोरा था। उस समय केन्द्र में यूपीए सरकार थी, जिसे केजरीवाल का समर्थन प्राप्त था, किन्तु एनडीए की सरकार बनने के बाद भी केजरीवाल की संदिग्ध गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका, यह आश्चर्य की बात है।
केजरीवाल की राजनीतिक सफलता राष्ट्रवाद की हार है, पाकिस्तान की जीत है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अराजक और विध्वंसकारी तत्वों के प्रवेश का अशुभ संकेत है। मीडिया को खरीद कर, मुस्लिम समुदाय को भ्रमित कर और गरीबों को झूठे सपने दिखा कर केजरीवाल ने जो राजनीतिक ठगी की है, उसके दुष्परिणाम दिल्ली की जनता को भोगने पड़ेंगे, क्योंकि केजरीवाल के स्वभाव में निष्ठा और प्रतिबद्धता की कमी है। प्रशासनिक कुशलता से जनता की समस्याओं को हल करने के बजाय झूठ और छल से जनता को ठगने की कला में वे माहिर है। विधानसभा का चुनाव जीतने में सफल हो सकते हैं, किन्तु मुख्यमंत्री के रुप में वे असफल होंगे। जनता को अपनी गलती का अहसास कुछ ही महीनों में हो जायेगा।
लोकतांत्रिक व्यवस्था पर मंडराते आतंकी साये ने मोदी सरकार को सावधान कर दिया है। देशद्रोही तत्वों से निपटने के लिए सरकार को कठोर रुख अख्तियार करने की आवश्यकता है, क्योंकि निकट भविष्य में जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होंगे, वहां केजरीवाल शैली को दोहराया जायेगा। सभी विपक्षी दल भाजपा के विरुद्ध एक जुट हो जायेंगे। देशद्रोही तत्व सक्रिय हो कर मुस्लिम वोटों को लामबंद करेंगे। यह कठिन संघर्ष यदि हिन्दुत्व की लहर के भरोसे जीतने का प्रयास किया गया, तो इसके प्रतिकूल परिणाम आयेंगे। अत: सब से  पहले राष्ट्रदोही तत्वों का असली चेहरा जनता को दिखाने के लिए उन्हें बेनकाब करना होगा। ऐसा होने पर राष्ट्रवाद की लहर उठेगीं। जनता ऐसे तत्वों को तिरस्कृत कर देगी, जो अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मूल्यों की बलि चढ़ा देते हैं।