Friday, 11 December 2015

भारतीय लोकतंत्र पर राजतंत्र का आक्रमण- जनता मूक दर्शक, लोकतंत्र लहूलुहान

16 मर्इ, 2014 को भारतीय लोकतंत्र, राजतंत्र के बंदीगृह से मुक्त हुआ था। चापलुसों -चाटुकारों के हुजूम से घिरा एक पार्टी परिवार अपने आपको भारत का भाग्य विधाता समझ बैठा था। इस परिवार के मन में यह भ्रांति बैठ गर्इ थी कि चाहे हम भ्रष्ट हों, अकर्मण्य हों, किन्तु इस देश पर शासन करने का अधिकार हमारे परिवार का ही है। कोर्इ अन्य व्यक्ति हमारी इच्छा के बिना भारत का  प्रधानमंत्री नहीं बन कर सरकार नहीं बना सकता। यदि बन गया, तो उस हम सरकार को काम नहीं करने देंगे।  हम भारत में राजतंत्रीय परम्परा को स्थापित करने के पक्षधर हैं। लोकतंत्र में हमारी आस्था नहीं है। यह हमारे लिए सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी हैं। चाहे हमे जनादेश नहीं मिलें, किन्तु हमारे पास अनुयायियों की ऐसी  जुझारु टीम हैं, जो हमारे एक आदेश से भारत की संसदीय व्यवस्था को ठप कर सकती है।
भारत की जनता ने एक  भ्रष्ट  राजनीतिक परिवार को अपनी औकात याद दिला दी। कर्इ राज्यों से सरकारे हाथ से चली गर्इ। केन्द्र में संख्या बल सिकुड़ गया, पर गरुर टूटा नहीं। इस परिवार को ऐसी आशा है कि भारतीय जनता का दिल भावुक नाटको से जीता जा सकता हैं। यदि ऐसा सियासी खेल खेला जाये जिससे जनता को यह अहसास हो जाय कि राजपरिवार को सताया जा रहा है। ऐसे नाटकों का निरंतर मंचन करते रहने से  निश्चित रुप से अगले चुनावों में जन सहानुभूति की लहर पर सवार हो कर चुनावी वैतरणी पार कर सकते हैं। इन्हें इस बात का भी आत्माभिमान है कि लोकतंत्र को रौंद कर आपातकाल लगाने वाली सास को भारत की जनता ने स्वीकार कर लिया, तो भ्रष्ट बहू को क्यों नहीं स्वीकार करेंगी।
स्वामी भक्त पार्टी के चापलुस नेता, जिनके लिए देश से बड़ा एक परिवार है, जो अपने स्वामी के एक इशारे से संसद में हंगामा कर शोर मचा सकतो हैं। टीवी स्क्रीम पर आ कर निरर्थक बकवास कर  सकते हैं।  भारत की जनता की पीड़ा से अविचलित असंवेदनशील चाटुकार  पार्टी महारानी और राजकुमार को न्यायालय में उपस्थित होने के समन पर इतने दुखी हो गये कि इन्होंने इन दिनों आकाश सिर पर उठ रखा है। संसद में चिल्ला रहे हैं। सड़को पर अनुयायियों की भीड़ चीख- चीख कर कह रही है- ‘हमारे  मालिक पर चाहे सच्चे अैर सुदृढ़ तथ्यों के आधार पर ही आरोप लगे हों, किन्तु हमारे  नेता न्यायालय में जा कर अपनी सफार्इ में कुछ नहीं कहेंगे। हमारे स्वामी भारत की न्यायपालिका से ऊपर है। एक अदने से न्यायाधीश को क्या अधिकार है कि हमारे स्वामी को न्यायालय में बुला कर उनसे पूछ-ताछ करें ?  भारत के न्यायालय भारत की जनता के लिए हैं, हमारे स्वामी के लिए नहीं।
गुलाम मानसिकता वाले कांग्रेसी यह समझते हैं कि  भारत से जब ब्रिटिश उपनिवेश था, तब क्या ब्रिटेन की महारानी के विरुद्ध कोर्इ भारतीय न्यायालय में जा सकता था ? यदि नहीं जा सकता था, तो हमारी महारानी और राजकुमार को अदालत में घसीटने की हिम्मत कैसे हो गयी ?  जिस व्यक्ति ने हमारे स्वामी के विरुद्ध आरोप लगायें हैं, चाहे वे सत्य पर आधारित हों और आरोपों में दम हों, किन्तु हम कह रहें हैं कि  असत्य है,  क्योंकि राजा को कोर्इ न्यायालय सजा नहीं सुना सकता। न्यायिक प्रक्रिया में चाहे भारत की संसद और प्रधानमंत्री की कोर्इ भूमिका नहीं हों, किन्तु हम संसद नहीं चलने  देंगे, क्योंकि हम अपने मालिक के विरुद्ध कुछ भी नहीं सुन सकते। वे हमारे अन्नदाता है, उनकी कृपा से ही तो हम भी करोड़ो की सम्पति के मालिक हैं। उन्होंने कमाया तो उनके आर्शीवाद से हम भी मालामाल हैं, अत: हम भारत की जनता के नहीं, हमारे स्वामी के अहसानमंद है। अब संसद को अगले चार साल तक किस न किसी बहाने नहीं चलने देंगे। जिस दिन हमारे राजकुमार भारत के प्रधनमंत्री बनेंगे अब तब ही संसद चलेगी। हमारे लिए राजनतंत्रीय परम्परा ही सर्वोंपरि है, जिस पर यदि कभी भी  कोर्इ आंच आयेगी तो हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। भारतीय लोकतंत्र को पूर्णतया राजतंत्र में तब्दील कर के ही दम लेंगे।
लेकतंत्र विरोधी और राजतंत्र समर्थक, जिनका भाग्य और भविष्य एक परिवार के साथ जुड़ा हुआ है, इन दिनों भारत के संसदीय लोकतंत्र पर आक्रमण कर उसे लहुलूहान कर रहे हैं। भारतीय संसद का हाल, जो कभी सांसदों के विद्वता और ओजपूर्ण भाषणों से गूंजा करता था। संसद में जहां कभी सत्तापक्ष के विरुद्ध अकाट्य तको शालिन शैली में लपेट कर प्रहार किया जाता था, वह अब इतिहास बन गया है। अब संसद में राजतंत्र समर्थक चंद सांसद निरर्थक तर्कों व तथ्यों को बिना किसी ठोस आधार के चीख कर और हंगामा कर अभिव्यक्त करते हैं। भोंड़े प्रदर्शन से यह जताना चाहते हैं कि विपक्ष के विरुद्ध सचमुच अन्याय हो रहा है। जबकि हकीकत यह है कि एक परिवार के प्रति निष्ठा जताने के लिए भारत के संसदीय लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं।  जो विषय उठाये जाते हैं, उस पर बहस नहीं करते, सत्ता पक्ष का उत्तर नहीं सुनते और हंगामा कर संसद को नहीं चलने दे रहे हैं।
मुट्ठीभर चापलुस चाटुकार भारत की संसदीय व्यवस्था की गरिमा पर जिस प्रकार प्रहार कर रहे हैं, वह हमारी संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के पर आघात हैं। संसदीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष को उसकी जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध कटघरें में खड़ा किया जा सकता है। संविधान में ऐसे कर्इ प्रावधान हैं, जिसके तहत विपक्ष अपनी आवाज उठा सकता है, किन्तु एक परिवार के प्रति स्वामी भक्ति के भौंड़े प्रदर्शन से संसद में गतिरोध पैदा नहीं किया जा सकता।
अपने स्वामी के प्रति अपूर्व निष्ठा का प्रदर्शन कर रहें सांसद, जो देश की गरीब जनता के पसीने की कमार्इ को व्यर्थ में उड़ाने का दुस्साहस  इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि भारत की जनता उनके आचरण को क्षुब्ध हो, उनके कुकृत्यों को मूक दर्शक बन  देख रही है।  जिस दिन भारत की जनता अक्रोशित हो कर सड़को पर उतरेगी और उनसे सवाल पूछेगी, आपको अपने स्वामी के प्रति वफादारी दिखाने के लिए संसदीय लोकतंत्र पर आक्रमण करने की क्या आवश्यकता है ? भारतीय संविधान ने जब आपके नेताओं को विशेष अधिकार नहीं दिये है, फिर उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के लिए न्यायालय में उपस्थित होने को ले कर आपत्ति क्यों हैं ? जनता ने आपको संसद में बैठने का अधिकार क्या इसलिए दिया है कि उस क्षेत्र विशेष, जिसके आप सांसद है, की समस्याओं को उठाने के बजाय आप संसद में हंगाम कर संसदीय कार्य को बाधित करें ?  आपको यह बात क्यों  नहीं समझ आ रही है कि इस देश की मालिक जनता है, आपकी मालकिन नहीं ?
निश्चित रुप से जनता जागृत हो कर राजतंत्र समर्थक चापलुसों के विरुद्ध सड़को पर निकलेगी, तभी राजतंत्र लोकतंत्र पर आक्रमण रुकेंगा और उनका  लोकतंत्र की हत्या करने का प्रयास विफल हो जायेगा।
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