भाजपा के 282 सांसद किसानों को सच समझाने में असफल रहे, किन्तु पिटे हुए
कांग्रेसी नेता झूठ समझाने में सफल रहें। भाजपा सांसद सच को प्रभावी ढंग
से समझा कर किसानों को गांवों में रोक सकते थे, किन्तु वे ऐसा नहीं कर पाये
और कांग्रेसी मिथ्या प्रचार के जरिये किसानों की भारी भीड़ रामलीला मैदान
में एकत्रित करने में सफल रहें। रैली में राहुल जम कर झूठ बोलें, उनके
प्रत्येक झूठ का जवाब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में दिया, किन्तु यही सच
राज्य सरकारे, भाजपा विधायक और सांसद गांव-गांव जा कर किसानों को समझा सकते
थे। यदि ऐसा होता तो रैली में भीड़ ही नहीं जुटती, फिर राहुल अपना झूठ
किसे सुनाते ?
बेहतर संवाद का जरिया गांव की चौपाल और शहरों के मोहल्ले होते हैं, टीवी चेनल और सोशल मीडिया नहीं। लोगों से मिलने उनके दुख-दर्द जानने से जनता का भरोसा बढ़ता है। जनता आपकी बात ध्यान से सुन कर उस पर यकीन कर लेती हैं, किन्तु जनता से दूरियां बढ़ाने से विरोधियों को झूठ के सहारे आपकी छवि बिगड़ाने और उपलिब्ध्यों पर पानी फेरने का मौका मिल जाता है। अभी पानी सिर से गुजरा नहीं है। भाजपा के जनप्रतिनिधि जन संवाद के जरियें सरकार की उपलिब्ध्यों, नीतियों और उससे को मिलने वाले लाभ का सच प्रभावी ढं़ग से जनता को समझा सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने दस माह में एक भी अवकाश नहीं लिया। कोर्इ निजी यात्रा नहीं की। अव्यवस्थित, अकर्मण्य भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था को सुधारने के लिए कठोर परिश्रम किया। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आये। विदेशों में भारत की साख बढ़ार्इ। वहीं राहुल गांधी दस महीने पूर्णतया निष्क्रिय रहें। उनके नेतृत्व मेंं कांग्रेस सभी विधानसभा चुनावों में पराजित हुर्इ। पार्टी की हालत सुधारने के बजाय राहुल दो महीने तक विदेशों में मौज मस्ती कर के लौटे हैं। आते ही उनके दरबारियों ने झूठ बोलने के नुस्खे दिये, उनका झूठ सुनने के लिए भारी भीड़ जुटार्इ और राहुल की सारी दुर्बलताओं को छुपा कर उसे जनता का हीरो बनाने की कोशिश की। उनकी कोशिश कितनी सफल रही, यह तो वक्त ही बताएगा, किन्तु किसान रैली प्रकरण भाजपा को नसीहत दे गया है कि झूठ का ढिं़ढोरा पीट को जनता को बहकाया जा सकता है, तो सच को प्रभावी ढंग से जनता के सामने रखने से उनका दिल भी जीता जा सकता है।
ग्यारह महीने में सरकार ने कुछ नहीं किया। राहुल को इतना बड़ा झूठ बोलने में तनिक झिझक नहीं आयी। सरकार ने क्या किया इसका सच सरकारी रिकार्ड में उपलब्ध है। राहुल को पढ़ने लिखने का शौक हो तो सारी जानकारी उन्हें उपलब्ध हो जायेगी। जबकि यह सच साबित हो गया है कि उनकी मनमोहन सरकार दस साल तक सोर्इ रही। प्रधानमंत्री ने लुटेरों को देश का खजाना लूटने की अनुमति दे दी। उन्हें कह दिया- मैं अंधा हूं। कुछ नहीं देख रहा हूं। मैं झूठ बोलता रहूंगा कि लुटेरों ने क्या लूटा, मुझे कुछ नहीं मालूम। यह सच है कि बेबाक और बेशर्म लूट से राजकोषीय घाटा बढ़ता गया, महंगार्इ बढ़ती रही, औद्योगिक उत्पादन गिरता गया, नये कारखाने तो लगे ही नहीं, किन्तु चल रहे थे, वे भी मंदी की मार से बंद हो गये। घर में बेटा बैरोजगार बैठा थाा और कारखाना बंद होने से बाप भी बैरोजगार हो कर घर बैठ गया, किन्तु हकीकत से आंखें मूंद कर राहुल झूठ बोल रहे हैं, कि हमारी सरकार मजदूरों और किसानों की सरकार थी। जब कि सच यह है कि दस वर्ष के शासनकाल में नये रोजगारों का सृजन तो हुआ ही नहीं, बल्कि तालेबंदी से लाखों श्रमिकों की छटनी हो गयी। उन्हें अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा।
राहुल भट्टा परसौल में किसानों के लिए लड,़े किन्तु इस सच से क्यों मुहं मोड़ लिया कि उनके जीजा-रार्बट बाड्रा ने राजस्थान और हरियाणा सरकारों से मिली भगत कर किसानों की जमीन कोड़ियों में खरीद, करोड़ो बना लिये। क्या राहुल के पास ऐसा एक भी सच है, जिसमें वे साबित कर सकते हैं कि वर्तमान सरकार के किसी मंत्री या उनके रिश्तेदारों ने किसानों की जमीन धोखे से हड़प्पी हैं ?
स्कील इंड़िया और स्कैम इंड़िया में क्या झूठ हैं, इसे राहुल साबित कर सकते हैं ? वे सारे घोटालें जिसमें अरबों रुपये की हेराफेरी हुर्इ थी, क्या सब झूठ है ? यदि नहीं है, तो उन्हें इस बात पर क्यों आपत्ति है कि मनमोहन युग घोटालों और घपलों का स्वर्ण युग नहीं था ? देश को बर्बाद किया। जनता ने ठुकरा दिया। फिर भी जनता को झूठ बोल कर मूर्ख बनाने में अब भी झेंप नहीं आ रही है। क्या सोनिया, राहुल और उनके दरबारी भारत की जनता को नितांत मूर्ख और अज्ञानी ही समझे हैं, जो उनके द्वारा बोले गये हर सफेद झूठ पर जनता विश्वास कर लेगी ?
उड़िसा में वेदांता परियोजना इसलिए नहीं बंद की गयी कि इससे आदिवासी नक्सली बन जाते, बल्कि इसलिए बंद की गयी कि पर्दे के पीछे होने वाली डील सफल नहीं हो पार्इ। सच यह है कि अपनी कुल सम्पति का पिचहतर प्रतिशत- लगभग पच्चीस हजार करोड़ रुपया भारत सरकार को दान देने वाला दानी उद्योगपति सत्ता “ाड़यंत्रों के समक्ष नतमस्तक नहीं हुआ। यह सच है कि किसी एक परियोजना से आदिवासियों की कुछ एकड़ जमीन जाती है, किन्तु परियोजना से सौ किलोमीटर दूर तक रह रहे नागरिकों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। पूरा क्षेत्र समृद्ध होता है। राहुल का यह कथन सरासर झूठ है कि वेदांता परियोजना बंद नहीं की जाती तो आदिवासी नक्सली बन जाते। क्या राहुल यह बता सकते हैं कि पर्यावरण मंत्रालय ने कर्इ परियोजना फायलों को एनवायरमेंट क्लीयरेंस क्यों नहीं दिया ? नयी सरकार ने आते ही पर्यावरण मंत्रालय में लम्बित पड़ी परियोजनाओं को स्वीकृति दे दी। राहुल इस बात का जवाब देश की जनता को दें कि उनकी सरकार ने वर्षों तक फार्इलों को जानबूझ कर दबा रखा था। ऐसा करने से देश का औद्योगिक विकास रुक गया। बैंकों का पैसा फंस गया। क्या परियोजना रोकने का कारण उनकी सरकार का भ्रष्टाचार नहीं था ? राहुल भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी सरकार को कैसे जनता की सरकार होने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं।
राहुल का यह जुमला कि मोदी ने उद्याोगपतियों से कर्ज लिया है, जिसका चुकारा किसानों की जमीन छीन कर किया जायेगा। यदि यह सच है तो यह भी बता दीजिये कि कांग्रेस के कोष में हज़ारो करोड़ रुपया पड़ा है, वह किसी उद्योगपति का नहीं है ? जबकि सच यह है कि रैली में भीड़ एकत्रित करने के लिए एक कांग्रेसी उद्योगपति ने करोड़ो रुपये चंदा दिया है, जो इन दिनों कर्इ स्केण्डल में फंस कर छटपटा रहे हैं। हमाम में सभी नंगे होते हैं, राहुल जी ! स्वयं के शरीर पर वस्त्र नहीं है, किन्तु दूसरों की इशार करते हुए कह रहे हैं- देखों वे नंगे हैं !
राहुल के दरबारियों को यह आशा है कि जिस तरह झूठ बोल-बोल कर केजरीवाल ने लोकसभा में भाजपा की पचास विधानसभा सीटों की बढ़त को तीन में बदल दिया, उसी तरह चार वर्ष तक सरकार के विरुद्ध सदन में और बाहर चिल्ला-चिल्ला कर झूठ बोलेंगे, तो निश्चय ही अगली बार फिर हमारी सरकार फिर आ जायेगी। हो सकता है, उनकी मंशा सही हो, किन्तु भाजपा नेताओं को अपनी आत्मुग्धता छोड़ कर इस बात पर गौर करना चाहिये कि कोर्इ विरोधी कमजोर नहीं होता । सार्वजनिक जीवन का हर दिन चुनौती पूर्ण होता है। झूठ बोलने में ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है, सच बोलने में कम। फिर सच को जनता से आलस्यवश क्यों छुपाया जा रहा है ?
बेहतर संवाद का जरिया गांव की चौपाल और शहरों के मोहल्ले होते हैं, टीवी चेनल और सोशल मीडिया नहीं। लोगों से मिलने उनके दुख-दर्द जानने से जनता का भरोसा बढ़ता है। जनता आपकी बात ध्यान से सुन कर उस पर यकीन कर लेती हैं, किन्तु जनता से दूरियां बढ़ाने से विरोधियों को झूठ के सहारे आपकी छवि बिगड़ाने और उपलिब्ध्यों पर पानी फेरने का मौका मिल जाता है। अभी पानी सिर से गुजरा नहीं है। भाजपा के जनप्रतिनिधि जन संवाद के जरियें सरकार की उपलिब्ध्यों, नीतियों और उससे को मिलने वाले लाभ का सच प्रभावी ढं़ग से जनता को समझा सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने दस माह में एक भी अवकाश नहीं लिया। कोर्इ निजी यात्रा नहीं की। अव्यवस्थित, अकर्मण्य भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था को सुधारने के लिए कठोर परिश्रम किया। देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आये। विदेशों में भारत की साख बढ़ार्इ। वहीं राहुल गांधी दस महीने पूर्णतया निष्क्रिय रहें। उनके नेतृत्व मेंं कांग्रेस सभी विधानसभा चुनावों में पराजित हुर्इ। पार्टी की हालत सुधारने के बजाय राहुल दो महीने तक विदेशों में मौज मस्ती कर के लौटे हैं। आते ही उनके दरबारियों ने झूठ बोलने के नुस्खे दिये, उनका झूठ सुनने के लिए भारी भीड़ जुटार्इ और राहुल की सारी दुर्बलताओं को छुपा कर उसे जनता का हीरो बनाने की कोशिश की। उनकी कोशिश कितनी सफल रही, यह तो वक्त ही बताएगा, किन्तु किसान रैली प्रकरण भाजपा को नसीहत दे गया है कि झूठ का ढिं़ढोरा पीट को जनता को बहकाया जा सकता है, तो सच को प्रभावी ढंग से जनता के सामने रखने से उनका दिल भी जीता जा सकता है।
ग्यारह महीने में सरकार ने कुछ नहीं किया। राहुल को इतना बड़ा झूठ बोलने में तनिक झिझक नहीं आयी। सरकार ने क्या किया इसका सच सरकारी रिकार्ड में उपलब्ध है। राहुल को पढ़ने लिखने का शौक हो तो सारी जानकारी उन्हें उपलब्ध हो जायेगी। जबकि यह सच साबित हो गया है कि उनकी मनमोहन सरकार दस साल तक सोर्इ रही। प्रधानमंत्री ने लुटेरों को देश का खजाना लूटने की अनुमति दे दी। उन्हें कह दिया- मैं अंधा हूं। कुछ नहीं देख रहा हूं। मैं झूठ बोलता रहूंगा कि लुटेरों ने क्या लूटा, मुझे कुछ नहीं मालूम। यह सच है कि बेबाक और बेशर्म लूट से राजकोषीय घाटा बढ़ता गया, महंगार्इ बढ़ती रही, औद्योगिक उत्पादन गिरता गया, नये कारखाने तो लगे ही नहीं, किन्तु चल रहे थे, वे भी मंदी की मार से बंद हो गये। घर में बेटा बैरोजगार बैठा थाा और कारखाना बंद होने से बाप भी बैरोजगार हो कर घर बैठ गया, किन्तु हकीकत से आंखें मूंद कर राहुल झूठ बोल रहे हैं, कि हमारी सरकार मजदूरों और किसानों की सरकार थी। जब कि सच यह है कि दस वर्ष के शासनकाल में नये रोजगारों का सृजन तो हुआ ही नहीं, बल्कि तालेबंदी से लाखों श्रमिकों की छटनी हो गयी। उन्हें अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा।
राहुल भट्टा परसौल में किसानों के लिए लड,़े किन्तु इस सच से क्यों मुहं मोड़ लिया कि उनके जीजा-रार्बट बाड्रा ने राजस्थान और हरियाणा सरकारों से मिली भगत कर किसानों की जमीन कोड़ियों में खरीद, करोड़ो बना लिये। क्या राहुल के पास ऐसा एक भी सच है, जिसमें वे साबित कर सकते हैं कि वर्तमान सरकार के किसी मंत्री या उनके रिश्तेदारों ने किसानों की जमीन धोखे से हड़प्पी हैं ?
स्कील इंड़िया और स्कैम इंड़िया में क्या झूठ हैं, इसे राहुल साबित कर सकते हैं ? वे सारे घोटालें जिसमें अरबों रुपये की हेराफेरी हुर्इ थी, क्या सब झूठ है ? यदि नहीं है, तो उन्हें इस बात पर क्यों आपत्ति है कि मनमोहन युग घोटालों और घपलों का स्वर्ण युग नहीं था ? देश को बर्बाद किया। जनता ने ठुकरा दिया। फिर भी जनता को झूठ बोल कर मूर्ख बनाने में अब भी झेंप नहीं आ रही है। क्या सोनिया, राहुल और उनके दरबारी भारत की जनता को नितांत मूर्ख और अज्ञानी ही समझे हैं, जो उनके द्वारा बोले गये हर सफेद झूठ पर जनता विश्वास कर लेगी ?
उड़िसा में वेदांता परियोजना इसलिए नहीं बंद की गयी कि इससे आदिवासी नक्सली बन जाते, बल्कि इसलिए बंद की गयी कि पर्दे के पीछे होने वाली डील सफल नहीं हो पार्इ। सच यह है कि अपनी कुल सम्पति का पिचहतर प्रतिशत- लगभग पच्चीस हजार करोड़ रुपया भारत सरकार को दान देने वाला दानी उद्योगपति सत्ता “ाड़यंत्रों के समक्ष नतमस्तक नहीं हुआ। यह सच है कि किसी एक परियोजना से आदिवासियों की कुछ एकड़ जमीन जाती है, किन्तु परियोजना से सौ किलोमीटर दूर तक रह रहे नागरिकों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। पूरा क्षेत्र समृद्ध होता है। राहुल का यह कथन सरासर झूठ है कि वेदांता परियोजना बंद नहीं की जाती तो आदिवासी नक्सली बन जाते। क्या राहुल यह बता सकते हैं कि पर्यावरण मंत्रालय ने कर्इ परियोजना फायलों को एनवायरमेंट क्लीयरेंस क्यों नहीं दिया ? नयी सरकार ने आते ही पर्यावरण मंत्रालय में लम्बित पड़ी परियोजनाओं को स्वीकृति दे दी। राहुल इस बात का जवाब देश की जनता को दें कि उनकी सरकार ने वर्षों तक फार्इलों को जानबूझ कर दबा रखा था। ऐसा करने से देश का औद्योगिक विकास रुक गया। बैंकों का पैसा फंस गया। क्या परियोजना रोकने का कारण उनकी सरकार का भ्रष्टाचार नहीं था ? राहुल भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी सरकार को कैसे जनता की सरकार होने का प्रमाण पत्र दे रहे हैं।
राहुल का यह जुमला कि मोदी ने उद्याोगपतियों से कर्ज लिया है, जिसका चुकारा किसानों की जमीन छीन कर किया जायेगा। यदि यह सच है तो यह भी बता दीजिये कि कांग्रेस के कोष में हज़ारो करोड़ रुपया पड़ा है, वह किसी उद्योगपति का नहीं है ? जबकि सच यह है कि रैली में भीड़ एकत्रित करने के लिए एक कांग्रेसी उद्योगपति ने करोड़ो रुपये चंदा दिया है, जो इन दिनों कर्इ स्केण्डल में फंस कर छटपटा रहे हैं। हमाम में सभी नंगे होते हैं, राहुल जी ! स्वयं के शरीर पर वस्त्र नहीं है, किन्तु दूसरों की इशार करते हुए कह रहे हैं- देखों वे नंगे हैं !
राहुल के दरबारियों को यह आशा है कि जिस तरह झूठ बोल-बोल कर केजरीवाल ने लोकसभा में भाजपा की पचास विधानसभा सीटों की बढ़त को तीन में बदल दिया, उसी तरह चार वर्ष तक सरकार के विरुद्ध सदन में और बाहर चिल्ला-चिल्ला कर झूठ बोलेंगे, तो निश्चय ही अगली बार फिर हमारी सरकार फिर आ जायेगी। हो सकता है, उनकी मंशा सही हो, किन्तु भाजपा नेताओं को अपनी आत्मुग्धता छोड़ कर इस बात पर गौर करना चाहिये कि कोर्इ विरोधी कमजोर नहीं होता । सार्वजनिक जीवन का हर दिन चुनौती पूर्ण होता है। झूठ बोलने में ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है, सच बोलने में कम। फिर सच को जनता से आलस्यवश क्यों छुपाया जा रहा है ?
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