श्रद्धेय मनमोहन सिंह जी,
जीवन में आपने कर्मयोग से जो कुछ पाया था, राजनीति की गंदगी में डूबकी लगा
कर सब कुछ गवां बैठे हैं। आपकी सादगी, सच्चार्इ और र्इमानदारी युक्त उजली
छवि पर कालिख पुत गयी। यह भाग्य की विडम्बना ही है कि आत्मविश्वास से लबालब
1991 का दबंग अर्थशास्त्री वित्तमंत्री, जिसका व्यक्तित्व प्रबल संकल्प
शक्ति से दैदिप्यमान था, 2013 में एक थकाहारा मुसाफिर लग रहा है। एक ऐसा
मुसाफिर, जो राजनीति के सफर में अपने जीवन भर की कमार्इ खो चुका है। अब
लुटा-पिटा, थका-हारा, बुझा-बुझा सा अपने घर लौटने को आतुर लग रहा है।
देश की जनता आपके साथ पूरी सहानुभूति रखती है। यह भी सच है कि कोयले के
बवंड़र में आपको चतुरार्इ से झोका गया है। आपके साथ ऐसा क्यों किया गया, यह
सच जनता के समक्ष उगल दीजिये। देश की जनता आपको क्षमा कर देगी, परन्तु आप
ऐसा करेंगे नहीं, क्योंकि आप राजनेता है नहीं, बनाये गये हैं। नियति ने
आपको नौकरशाह बनाया था, किन्तु भाग्य ने आपको प्रधानमंत्री बना दिया। आप जन
नेता नहीं है। आपने आज तक किसी जन आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया। ओज पूर्ण
भाषण से भीड़ को बांधने की क्षमता आप में नहीं है। अपने वाक-चार्तुय से
संसद को मंत्रमुग्ध नहीं कर सकते। आप अपने प्रभाव से लोक सभा का चुनाव नही
जीत सकते। अपने व्यक्तिगत प्रभाव से मात्र दो सांसदों को जीतवा कर संसद में
नहीं भेज सकते। फिर भी आप भारतीय संसद के नेता है। इस देश की निर्धन और
अभावग्रस्त जनता के भाग्य विधाता है।
भारतीय संस्कृति ने भौतिक सुख के बजाय आंतरिक सुख अर्थात आध्यात्मिक सुख को
ज्यादा महत्व दिया है। बुद्ध ने युवावस्था में ही संसार की नि:सारता का
अनुभव कर वानप्रस्थ ले लिया था। पांडवों ने युद्ध के बाद हाहाकर और तबाही
को देख, अशांत मन से राजसुख भोगने का विचार त्याग दिया और हिमालय चले गये।
आपकी स्थिति भी पांडवों जैसी ही है। पांडवों ने जो तबाही देखी, वह एक भयावह
युद्ध की परिणिति थी । आप घोटालों और घपलों की विभिषीका से देश को आर्थिक
दृष्टि से तबाह कर के जायेंगे। जहां पांडवों ने राजसुख स्वैच्छा से
त्याग दिया था, परन्तु आप तबाही के मंजर को अपने सामने देखने के बाद भी ऐसा
साहस नहीं कर पा रहे हैं।
वस्तुत: आप भारतीय इतिहास के सर्वाधिक घोटालों और घपलों वाली सरकार के
शहशांह कहे जाते हैं। आप ऐसी सरकार के मुखिया है, जो घोटाले के सच के
उजागर होने के बाद भी उसे स्वीकार नहीं करती और नग्न सच को दबाने की भरसक
कोशिश करती है। परन्तु सच को जितना ज्यादा छुपाया जाता है, वह ज्यादा सामने
आता है। वह आता भले ही धीमे कदमों से, पर आता जरुर है। और जब आयेगा तो
सारी स्थिति साफ हो जायेगी। मान लीजिये कि केन्द्र में एक ऐसी सरकार आ
जायेगी, जिसकी कार्य प्रणाली स्वच्छ और पारदर्शी होगी और वह सारे घपलों
-धोटालों की निष्पक्ष जांच करवा देगी, तब जो सच सामने आयेगा, उससे कितनी
किरकिरी होगी, इसका सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है।
पिछले नो वर्षों के समय को निकाल दें, तो आपका अब तक का जीवन एक कर्मयोगी
का रहा है। परन्तु पिछले नो वर्षों से मौन- योगी बन गये हैं, जो सब कुछ
देखते हैं, समझते हैं और उन्हें यह भी जानते हैं कि जो भी कुछ घटित हो रहा
है, उसे रोका नहीं गया तो अनर्थ हो जायेगा, फिर भी मौनव्रत धारण कर रखा
है। आपकी चुप्पी के बारें में देश-विदेश में काफी कटा़क्ष हुए थे, परन्तु
आपकी चुप्पी टूटी नहीं ।
सामान्य श्रेणी के अपराध के परिणाम से एक या दो व्यक्ति या एक परिवार
प्रभावित होता है, वहीं आर्थिक अपराध के परिणाम की त्रासदी करोडो लोगों को
भोगनी पड़ती है। विडम्बना यह है कि अन्य अपराध पर सजा हो जाती है, परन्तु
आर्थिक अपराध के अपराधी कानून की गलियों से बच कर निकल जाते हैं, उन्हें
सजा नहीं हो पाती। यही कारण है कि वे भयमुक्त होते हैं, उन्हें अपराध करने
में कोई हिचक नहीं होती और बैखोप हो कर ऐसा करते हैं। वैसे भी ये अपराधी
ऊंचे रसुख वाले होते हैं और राजनेताओं के प्रश्रय से उनके होंसले बुलंद
होते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि अर्थशास्त्री होते हुए भी आपने आर्थिक अपराधों को
पनपने क्यों दिया ? इस पर अंकुश क्यों नहीं लगा पाये ? अपकी ऐसी क्या
विवशता थी कि आपने सब कुछ देखते हुए भी अपनी आंखें बंद कर ली ? जब कि आपको
यह भी मालूम है कि आर्थिक अपराध से देश को भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
राजकोषीय घाटा बढ़ता है। मुद्रास्फिति बढ़ती है। महंगाई बेलगाम हो जाती है।
देश के करोडों लोगों का जीवन-स्तर गरीबी रेखा के नीचे चला जाता है।
आपके कार्यकाल के पहले घोटाले के उजागर होने और उसके सुर्खियों में आते ही
आप अपने पद की गरिमा के अनुरुप सख्ती दिखाते और निष्पक्ष जांच कराने के
लिए किसी भी दबाव के समक्ष नहीं झुकते, तो जनता के बीच आप की स्वच्छ व
उज्जवल छवि बन जाती। हो सकता है, आपको पद छोड़ने के लिए विवश किया जाता,
परन्तु वह आपकी नैतिक जीत होती। आपने अपने जीवन में बहुत कुछ कमाया है और
देश की गरीब जनता के लिए कुछ खो भी देते, तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।
आपका वानप्रस्थ सुख, शांति से गुजरता। आप वृद्धावस्था में एक तनावरहित जीवन
जीते। मन पर एक बोझ नहीं रहता , जो अब आप ले कर जायेंगे।
जो कुछ अप्रिय घटनाक्रम सिलसिलेबार घटित हो रहा है, उसे सुन कर, पढ़ कर और
देख कर ऐसा लग रहा है, जैसे भारत की राजनीतिक व्यवस्था भयंकर सडांध मार रही
है, जिसकी दुर्गन्ध पूरे देश में फैल रही है। सरकारी सरंक्षण में खुली और
स्वच्छन्द लूट और पकडे़ जाने पर अपराधबोध या ग्लानी के बजाय अभिमानी और
आतंकी तेवर, नि:संदेह सडांध को और ज्यादा फैला रहा है। यह इस सदी की सबसे
बडी़ त्रासदी है, जिसने हमारी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पर प्रश्न-चिन्ह
लगा दिया है। दु:ख इस बात का है कि भारतीय इतिहास की इस घृणास्पद कहानी के
आप मुख्य पात्र हैं। पता नहीं क्यों आरोपों की बौछारों के बीच निर्विकार
बैठे अपने पद को त्यागने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। जीवन की वानप्रस्थ
अवस्था में कुटिल प्रवृति के तानाशाहों से तो यह अपेक्षा की जा सकती है,
किन्तु एक सात्विक प्रवृति के कर्मयोगी से नहीं ।
ईश्वर की आप पर विशेष अनुकम्पा है। वस्तुत: आप मुकद्दर के सिकन्दर हैं।
सम्भव है ईश्वर आपकी झोली में अकूत खजाना डाल आपके तप की परीक्षा ले रहा
है। अत: मेरी आपसे छोटी सी विनती है, उस सर्वशक्तिमान प्रभु को स्मरण
करते हुए, अपने नो वर्षों के कार्यकाल में, जिस हकीकत से रुबरु हुए हैं,
उसे अपने भीतर दबाने के बजाय- देश के सामने बयान कर दीजिये। उन सभी खल
पात्रों के नाम उजागर कीजिये, जो इस देश की गरीब जनता का धन लूटने में
अग्रणी बने हुए हैं। और जिनके कारण हम भारतीय, कष्टदायक जिंदगी जी रहे हैं।
अगर
आप ऐसा करेंगे तो एक भूचाल आ जायेगा। पूरा राष्ट्र आपके पीछे खड़ा हो
जायेगा। हो सकता है ऐसा करने पर आपका ईश्वर कृपा से मिला पद छीन लिया जाय,
किन्तु आपका नाम सदा श्रद्धा से याद किया जायेगा। इतिहास के पन्नों पर
आप अमर हो जायेंगे। यदि आप चुप्पी साधें रहेंगे और अंतरआत्मा की आवाज को
दबाते हुए दूसरों के लिखे हुए संवाद पढते रहेंगे, तो आपका नाम भारत के
इतिहास की सबसे भ्रष्ट सरकार के प्रधानमंत्री के रुप में याद किया जायेगा।
इतिहास के पन्नों पर आपके नाम के बाद लिखा जायेगा- एक कमजोर और बेबस
प्रधानमंत्री।
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