पटना की हुंकार रैली में नागरिकों की अपार भीड़ उमड़ी थी। मंच से कुछ ही
दूरी पर बम विस्फोट हुआ था। सभा स्थल में चारों ओर जिंदा बम बिछाये गये
थे। सभा स्थल के बाहर भी विस्फोट हो रहे थे। सर्वथा प्रतिकूल और विभत्स
घटनाक्रम के दौरान अविचलित रह कर अपना भाषण पूरा करना मोदी के लिए साहसिक
कार्य था। मोदी पूरा एक घंटा बोले, ताकि घटनाक्रम का आभास जनता को नहीं हो
पाये। सभा में अफवाहे नहीं फैले। भीड़ बेकाबू नहीं हो पाये। भगदड़ नहीं मचे
और भारी जन हानि को हर सम्भव टाला जा सके। ऐसी असंभावित परिस्थितियों में
पसीना भी आ सकता है। नालंदा को तक्षशीला भी बोला जा सकता है। मौर्यवंश को
गुप्तवंश भी कहा जा सकता है। सिकन्दर सतलुज तक आया या गंगा के मुहाने पर यह
बोलने में भी गलती हो सकती है। किन्तु नीतीश जी ! आपने जो पहाड़ जैसी
गलतियां की है, उस पर सफार्इ देने से क्यों बच रहे हैं ?
आतंकी आपकी नाक के नीचे योजनाएं बना रहे थे, तब आपका खुफियातंत्र और आपकी पुलिस क्या कर रही थी ? सभा स्थल में पूरे अठारह जिंदा बम मिले हैं। ये किसने और कब बिछाये इसकी जानकारी जुटाने में आपका तंत्र क्यों विफल रहा ? सभा-स्थल के बाहर एम्बुलेंसे क्यों नहीं थी ? आपको इन पुट मिले हों या नहीं, किन्तु आपको यह तो मालूम है कि मोदी आतंकियों की हिट लिस्ट में हैं और आपका बिहार आतंकवादियों के लिए सुरक्षित अभयारण्य बनता जा रहा है। माना कि मोदी से आप नफरत करते हैं और आपके राजनीतिक दुश्मन नम्बर एक हैं, किन्तु वे निर्दोष नागरिक तो आपके अपने थे, उनके जीवन को भगवान भरोसे क्यों छोड़ दिया ? यह तो भगवान का शुक्र है कि सारे बम फटे नहीं। भगदड़ नहीं मची। यदि ऐसा हो जाता तो आप सार दोष मोदी पर डाल कर स्वयं बचने की कोशिश करते। जो व्यक्ति सत्ता के नशे में इतना चूर हो जाय कि अपने विरोधी से नफरत के कारण अपने नागरिकों का जीवन जोखिम में डाल दें, ऐसे व्यक्ति को जिम्मेदार पद पर एक क्षण भी रहने का अधिकार नहीं है।
नीतीश जी ! नरेन्द्र मोदी के साथ अभिशप्त पीड़ित भारतीय जन जुड़ा है, जिसके मन में व्यवस्था परिवर्तन की अकुलाहट है। उनकी रैलियों में उमड़ रही लाखों की भीड़ इस बात की साक्षी दे रही है। जनता की नब्ज पहचानने वाले राजनेता हवा का रुख भांप गये हैं, परन्तु आप ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं ? आज की परिस्थितियों में भारतीय जनता धर्म और जाति के प्रतिमानों को रौंद कर नरेन्द्र मोदी के समर्थन में खड़ा रहने के लिए आतुर दिखार्इ दे रही है। आपके बिहार में आ कर इतनी भीड़ एकत्रित करना एक करिश्मा ही कहा जायेगा। पता नहीं क्यों इस हकीकत को आप समझ नहीं पा रहे हैं ?
अब भी समय है अपना अभिमान त्याग कर अपने आपको बदल दीजिये। जनता ने आपको सिर आंखों पर बिठाया है, तो वह जमीन पर भी पटक सकती है। जिस सूखी डाली पर लटक कर अपने आपको बचाने का भरोसा रख रहे हैं, वह तो स्वयं ही टूट कर गिरने वाली है। वह भला आपका भार क्या सह पायेगी ? पूरे देश में जिन लोगों के प्रति गुस्सा भरा हुआ है, जिनसे निज़ात पाने के लिए जनता छटपटा रही है, आप उनका दामन पकड़ रहे हैं। यह राजनीतिक नादानी है- जानबूझ कर जिंदा मक्खी निगलने का उपक्रम।
यह भ्रम त्याग दीजिये कि आप उस पार्टी के सहयोग से प्रधानमंत्री बन जायेंगे। चुनावों के बाद उस पार्टी की इतनी हैसियत भी नहीं बचेगी कि वह अपना प्रधानमंत्री बना दें या किसी और को प्रधानमंत्री बनवा दें। वैसे भी आपकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा है। लोकसभा के चुनावों के बाद इसका प्रमाण आपको मिल जायेगा। आपकी पार्टी में भी बगावत की सुगबुगाहट आरम्भ हो गयी है। यदि ऐसा हो गया तो आप प्रधानमंत्री क्या बिहार के मुख्यमंत्री भी नहीं रह पायेंगे। चौबेजी, छब्बेजी बनने जा रहे थे, वे दूबे जी बन कर रह जायेंगे।
राजनीति के खेल में दगाबाजी क्या होती है, वह कोर्इ आपसे पूछे। जिनके साथ खाया-पिया केन्द्र में और राज्य में सत्ता सुख भोगा, उससे एक झटके सारे संबंध तोड़ दिये और अब आप उस पार्टी के दुश्मन नम्बर एक बन गये हैं। वह पार्टी जब अन्य पार्टियों के लिए अछूत थी, तब उसका दामन आपने क्यों पकड़ा ? क्यों घर-घर, गली-गली उनके साथ जा कर जनता से वोट मांगें ? जनता ने आप पर भरोसा किया। आपको प्रचण्ड़ बहुमत से विजयश्री दिलायी। अब आप उसी जनता के पास जा कर कह रहे हैं कि ये हमारे दुश्मन नम्बर एक है, इनसे दूर रहो। क्या यह अवसरवादी राजनीति की पराकाष्ठा नहीं है ?
इस तथ्य को क्यों नहीं मानते कि भाजपा साथ थी, इसलिए इतने वोट मिले। बिहार में इतनी सीटे मिली। आप मुख्यमंत्री बने। भाजपा के सहयोग से आपने बिहार के विकास की गाड़ी आगे बढ़ायी। आप बिहार के विकास पुरुष कहे जाने लगे। चारों और आपकी जय-जयकार होने लगी। ऐसा होने पर आपका अभिमान बढ़ गया। आपके मन में अतृप्त महत्वाकांक्षा जगी। मुस्लिम समुदाय के थोक वोट पाने के चक्कर में आपने जानबूझ कर एक व्यक्ति को खलनायक बताते हुए उस पार्टी के सीने में खंजर भोंक दिया, जिसके अहसान से आपने इतना कुछ पाया था।
लोकतंत्र की आधारशीला नफरत पर नहीं खड़ी होती। लोकतंत्र में जनता जिसे पसंद करती है, वही सिंकदर बनता है। जिस व्यक्ति के करोड़ो प्रशंसक है, वे उनका साथ छोड़ नहीं रहे हैं। भविष्य में यदि पूरा देश स्वीकार कर लेगा, फिर भी आप नफरत करते रहेंगे ? यह तो एक व्यक्तिगत रंजिश हो गयी, जिसका लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में कोर्इ विशेष स्थान नहीं है।
जो तूफान के आने से पहले ही उसकी आहट को भांप लेता है, वही तबाही से बच सकता है। आंखे खोल कर चारों ओर देखिये। अपनी राजनीतिक दृष्टि से जनता के रुख को समझने की कोशिश कीजिये। भारत की जनता उद्वेलित और आक्रोशित है। वह एक भ्रष्ट और निकम्मी सरकार को उखाड़ फैंकने के लिए प्रतिबद्ध दिखार्इ दे रही है। इसीलिए वह नरेन्द्र मोदी के साथ है। इसलिए नहीं कि व कट्टर हिंदूवादी है। इसलिए नहीं कि उसके हाथ साम्प्रदायिक दंगों के खून से रंगे हुए हैं। वह इसलिए साथ है कि उसे सुदृढ़ और र्इमानदार नेतृत्व चाहिये। एक स्वपन दृष्टा, संघर्षशील व्यक्तित्व चाहिये, जो भारत की जनता को संकट से बाहर निकाल सके।
अत: गलतियां गिनाने के बजाय आप अपनी गलतियों पर मंथन करते, तो ज्यादा श्रेयस्कार रहता। बिहार में आतंकवाद डेने पसार रहा है, यह प्रदेश की शांति के लिए अशुभ संकेत है। वोटों के लिए आपके मन में इनके प्रति सहानुभूति हो सकती है। यदि यह सही है तो आप प्रदेश की जनता के साथ छल कर रहे हैं। एक कुशल प्रशासक की ऐसी प्रवृति उसके आत्मबल के दुर्बलता की द्योतक है।
आतंकी आपकी नाक के नीचे योजनाएं बना रहे थे, तब आपका खुफियातंत्र और आपकी पुलिस क्या कर रही थी ? सभा स्थल में पूरे अठारह जिंदा बम मिले हैं। ये किसने और कब बिछाये इसकी जानकारी जुटाने में आपका तंत्र क्यों विफल रहा ? सभा-स्थल के बाहर एम्बुलेंसे क्यों नहीं थी ? आपको इन पुट मिले हों या नहीं, किन्तु आपको यह तो मालूम है कि मोदी आतंकियों की हिट लिस्ट में हैं और आपका बिहार आतंकवादियों के लिए सुरक्षित अभयारण्य बनता जा रहा है। माना कि मोदी से आप नफरत करते हैं और आपके राजनीतिक दुश्मन नम्बर एक हैं, किन्तु वे निर्दोष नागरिक तो आपके अपने थे, उनके जीवन को भगवान भरोसे क्यों छोड़ दिया ? यह तो भगवान का शुक्र है कि सारे बम फटे नहीं। भगदड़ नहीं मची। यदि ऐसा हो जाता तो आप सार दोष मोदी पर डाल कर स्वयं बचने की कोशिश करते। जो व्यक्ति सत्ता के नशे में इतना चूर हो जाय कि अपने विरोधी से नफरत के कारण अपने नागरिकों का जीवन जोखिम में डाल दें, ऐसे व्यक्ति को जिम्मेदार पद पर एक क्षण भी रहने का अधिकार नहीं है।
नीतीश जी ! नरेन्द्र मोदी के साथ अभिशप्त पीड़ित भारतीय जन जुड़ा है, जिसके मन में व्यवस्था परिवर्तन की अकुलाहट है। उनकी रैलियों में उमड़ रही लाखों की भीड़ इस बात की साक्षी दे रही है। जनता की नब्ज पहचानने वाले राजनेता हवा का रुख भांप गये हैं, परन्तु आप ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं ? आज की परिस्थितियों में भारतीय जनता धर्म और जाति के प्रतिमानों को रौंद कर नरेन्द्र मोदी के समर्थन में खड़ा रहने के लिए आतुर दिखार्इ दे रही है। आपके बिहार में आ कर इतनी भीड़ एकत्रित करना एक करिश्मा ही कहा जायेगा। पता नहीं क्यों इस हकीकत को आप समझ नहीं पा रहे हैं ?
अब भी समय है अपना अभिमान त्याग कर अपने आपको बदल दीजिये। जनता ने आपको सिर आंखों पर बिठाया है, तो वह जमीन पर भी पटक सकती है। जिस सूखी डाली पर लटक कर अपने आपको बचाने का भरोसा रख रहे हैं, वह तो स्वयं ही टूट कर गिरने वाली है। वह भला आपका भार क्या सह पायेगी ? पूरे देश में जिन लोगों के प्रति गुस्सा भरा हुआ है, जिनसे निज़ात पाने के लिए जनता छटपटा रही है, आप उनका दामन पकड़ रहे हैं। यह राजनीतिक नादानी है- जानबूझ कर जिंदा मक्खी निगलने का उपक्रम।
यह भ्रम त्याग दीजिये कि आप उस पार्टी के सहयोग से प्रधानमंत्री बन जायेंगे। चुनावों के बाद उस पार्टी की इतनी हैसियत भी नहीं बचेगी कि वह अपना प्रधानमंत्री बना दें या किसी और को प्रधानमंत्री बनवा दें। वैसे भी आपकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा है। लोकसभा के चुनावों के बाद इसका प्रमाण आपको मिल जायेगा। आपकी पार्टी में भी बगावत की सुगबुगाहट आरम्भ हो गयी है। यदि ऐसा हो गया तो आप प्रधानमंत्री क्या बिहार के मुख्यमंत्री भी नहीं रह पायेंगे। चौबेजी, छब्बेजी बनने जा रहे थे, वे दूबे जी बन कर रह जायेंगे।
राजनीति के खेल में दगाबाजी क्या होती है, वह कोर्इ आपसे पूछे। जिनके साथ खाया-पिया केन्द्र में और राज्य में सत्ता सुख भोगा, उससे एक झटके सारे संबंध तोड़ दिये और अब आप उस पार्टी के दुश्मन नम्बर एक बन गये हैं। वह पार्टी जब अन्य पार्टियों के लिए अछूत थी, तब उसका दामन आपने क्यों पकड़ा ? क्यों घर-घर, गली-गली उनके साथ जा कर जनता से वोट मांगें ? जनता ने आप पर भरोसा किया। आपको प्रचण्ड़ बहुमत से विजयश्री दिलायी। अब आप उसी जनता के पास जा कर कह रहे हैं कि ये हमारे दुश्मन नम्बर एक है, इनसे दूर रहो। क्या यह अवसरवादी राजनीति की पराकाष्ठा नहीं है ?
इस तथ्य को क्यों नहीं मानते कि भाजपा साथ थी, इसलिए इतने वोट मिले। बिहार में इतनी सीटे मिली। आप मुख्यमंत्री बने। भाजपा के सहयोग से आपने बिहार के विकास की गाड़ी आगे बढ़ायी। आप बिहार के विकास पुरुष कहे जाने लगे। चारों और आपकी जय-जयकार होने लगी। ऐसा होने पर आपका अभिमान बढ़ गया। आपके मन में अतृप्त महत्वाकांक्षा जगी। मुस्लिम समुदाय के थोक वोट पाने के चक्कर में आपने जानबूझ कर एक व्यक्ति को खलनायक बताते हुए उस पार्टी के सीने में खंजर भोंक दिया, जिसके अहसान से आपने इतना कुछ पाया था।
लोकतंत्र की आधारशीला नफरत पर नहीं खड़ी होती। लोकतंत्र में जनता जिसे पसंद करती है, वही सिंकदर बनता है। जिस व्यक्ति के करोड़ो प्रशंसक है, वे उनका साथ छोड़ नहीं रहे हैं। भविष्य में यदि पूरा देश स्वीकार कर लेगा, फिर भी आप नफरत करते रहेंगे ? यह तो एक व्यक्तिगत रंजिश हो गयी, जिसका लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में कोर्इ विशेष स्थान नहीं है।
जो तूफान के आने से पहले ही उसकी आहट को भांप लेता है, वही तबाही से बच सकता है। आंखे खोल कर चारों ओर देखिये। अपनी राजनीतिक दृष्टि से जनता के रुख को समझने की कोशिश कीजिये। भारत की जनता उद्वेलित और आक्रोशित है। वह एक भ्रष्ट और निकम्मी सरकार को उखाड़ फैंकने के लिए प्रतिबद्ध दिखार्इ दे रही है। इसीलिए वह नरेन्द्र मोदी के साथ है। इसलिए नहीं कि व कट्टर हिंदूवादी है। इसलिए नहीं कि उसके हाथ साम्प्रदायिक दंगों के खून से रंगे हुए हैं। वह इसलिए साथ है कि उसे सुदृढ़ और र्इमानदार नेतृत्व चाहिये। एक स्वपन दृष्टा, संघर्षशील व्यक्तित्व चाहिये, जो भारत की जनता को संकट से बाहर निकाल सके।
अत: गलतियां गिनाने के बजाय आप अपनी गलतियों पर मंथन करते, तो ज्यादा श्रेयस्कार रहता। बिहार में आतंकवाद डेने पसार रहा है, यह प्रदेश की शांति के लिए अशुभ संकेत है। वोटों के लिए आपके मन में इनके प्रति सहानुभूति हो सकती है। यदि यह सही है तो आप प्रदेश की जनता के साथ छल कर रहे हैं। एक कुशल प्रशासक की ऐसी प्रवृति उसके आत्मबल के दुर्बलता की द्योतक है।