Tuesday 29 October 2013

हर दुखद घटना के बाद उन्हें हिन्दू आतंकवाद की गंध क्यों आती है ?

बम धमाकों के धुंए में, जिसमें करुण चीखें और आंसुओं का सैलाब उमड़ता है। मृतकों के क्षत-विक्षत अंगों को देख कर दिल दहल जाता है। घायलों की पीड़ा से मन क्षोभ से भर जाता है। ऐसे धुंए में राजनीतिक रोटियां सेकना का निर्लज्ज प्रयास क्षुद्र राजनीति की पराकाष्ठा है। घृणित राजनीति का यह अत्यन्त ही घटियां स्तर है।  बरबस जेहन में उठते हुए ये प्रश्न व्यथीत करते हैं- ऐसी रुग्ण मानसिकता वाले व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में क्यों आये ? किसने इन्हें राजनीति में प्रवेश की अनुमति दी ? क्यों ये प्रभावी हुए और क्यों  जनता इन्हें सार्वजनिक जीवन से तिरस्कृत नहीं कर रही है ?
छल से जनहानि करने का कुत्सित व घिनौना प्रयास अक्षम्य अपराध है। ऐसे जघन्य अपराध की निंदा के बजाय बेमतलब, बेतुकी व निरर्थक बयानबाजी का क्या मतलब निकाला जा सकता है ? क्यों टीवी चेनल अपने केमरे और माइक ले कर ऐसे क्षुद्र प्रवृति के लोगों के पास दौड़ पड़ते हैं ? क्यों ये टीवी चेनल जल्दबाजी में बिना सोचे समझे और मामले की गम्भीरता को जाने उनके बयानों को देश भर में  प्रसारित कर देते हैं ? क्यों टीवी चेनल ओछी मानसिकता वाले संवेदनाशून्य राजनेताओं को टीवी स्टूडियों में एक निरर्थक और बेमतलब की बहस करने के लिए बिठाते हैं ? इस सबसे पीछे टीवी चेनलों का प्रयोजन क्या रहता है ? क्या वे हर ऐसी दुखद घटना की तह में जाने के बजाय विवादापस्पद लोगों को टीवी चेनल में ला कर मामले को हल्का बनाने की कोशिश नहीं करते हैं ?
बम्बर्इ बम ब्लासट जैसी अत्यन्त दुखद घटना के बाद भी एक महाशय को इसमें हिंदू आतंकवाद की गंध आ रही थी। फटाफट कडिया जोड़ते हुए उन्होंने एक कहानी गढ़ दी। एक देशभक्त व कर्तव्य परायण पुलिस अधिकारी, जो शहीद हो गया था, को इन्होंने जानबूझ कर खलनायक बना दिया। टीवी चेनल ने उनके  अभद्र विवरण को देश भर में प्रसारित कर दिया। जबकि ऐसे प्रसारण को रोका जाना चाहिये, जिसका कोर्इ ठोस आधार नहीं रहता है।
बम्बर्इ बम ब्लास्ट पर इन महाशय द्वारा दिये गये बयान पर पूरे देश में तीव्र प्रतिक्रिया हुर्इ फिर भी ये अपनी हरकतों से बाज नहीं आये और दिल्ली बाटला हाऊस मुठभेड़ को इन्होंने फर्जी मुठभेड़ बताया और एक जाबांज शहीद पुलिस अधिकारी की शहादत पर इन्होने प्रश्न चिन्ह लगा दिये। जानबूझ कर एक कर्तव्यपरायण अधिकारी को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया ।
सारे प्रकरण में इनके झूठ की पोल खुल जाने के बावजूद भी ये अपनी हरकतो से  बाज नहीं आये और बोद्धगया ब्लास्ट को भी इन्होंने हिन्दू आतंकवाद से जोड़ दिया। फटाफटा कड़िया जोड़ी, एक कहानी बनायी और बयान दे दिया। टीवी चेनलों ने भी इनके बयान को महत्वपूर्ण मान लिया और इसे प्रसारित कर दिया। इनके दुस्साहस से उत्साहित हो कर पटना बम ब्लास्ट के तुरन्त बाद इनके जैसे ही ओछी मानसिकता वालों ने तुरन्त बयान जारी कर दिये। मसलन – ‘ब्लास्ट भाजपा ने ही अपने राजनीतिक लाभ के लिए करवाये ।  आरएसएस का इतिहास ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देने का रहा है। यह एक राजनीतिक “षड़यंत्र है।’ आदि आदि। इनके आत्मविश्वास से लबालब बयानो को सुन कर ऐसा लगता है, जैसे सुरक्षा ऐजेंसियों से इनपुट इन्हें राज्य सरकार से पहले ही मिल गये थे।
प्रश्न उठता है- वे जानबूझ कर झूठे दावे क्यों करते हैं ? अपनी बात के झूठा साबित होने पर देश के सामने झूठ बोलने और मामले को हल्का करने के लिए क्षमा क्यों नहीं मांगते ? चेनल बार-बार ऐसे नेताओं को क्यों महत्व देते हैं ? और वे राजनीतिक पार्टियां, जिनके ये प्रवक्ता है, इनकी जुबान पर लगाम नहीं लगाती, इससे का सीधा अर्थ है -उन पार्टियों की शह पर ही वे ऐसा करते हैं। यदि यह सही है, तो क्या उन राजनीतिक पार्टियों को जनता के वोट पाने का अधिकार हैं ?
दरअसल हिन्दू या भगवा आतंकवाद कुछ लोगों की मस्तिष्क की उपज है। आज तक भगवा आतंकवाद के संबंध में झूठी गवाहियां और मनगढंत कहानियों को न्यायालय में प्रमाणित नहीं कर पाये है। निर्दोषों को दोषी बनाने के सारे प्रयास अब तक असफल हुए हैं, फिर भी हर आतंकी घटना को भगवा आतंकवाद से जोड़ने के प्रयास के पीछे तुष्टिकरण की कलुषित नीति है। आतंकी घटना को हल्का बनाने का कुत्सित प्रयास है। इन बयानों से आतंकवादियों के हौंसले बुलंद होते है और जांच एजेंसियों के कार्य में अनाववश्यक व्यवधान पहुंचता है।  क्या ऐसे राजनेता सम्मान और आदर पाने के अधिकारी है ?
अंतत: पटना बम ब्लास्ट के पीछे जिन लोगों का हाथ था, उस रहस्य से पर्दा उठ गया। पूरा देश जिन पर संदेह कर रहा था, वह सच साबित हुआ। जिन्हें घटना को अंजाम देने के पीछे भगवा आतंकवाद की गंध आ रही थी, वे मौन हो गये। मीडिया ने भी गिरगिट तरह रंग बदल दिया। पर भगवा आतंकवाद शब्द के प्रणेता अब भी अपनी बात पर कायम है। और पूरी पार्टी उनकी धृष्टता पर मौन है।
किसी गम्भीर और दुखद घटना के घटित होने के तुरन्त बाद आरएसएस का नाम उछालने की एक प्रथा बनती जा रही है। क्या आरएसएस अपने स्वयंसेवक – मोदी की हत्या करना चाहता था ? क्या वह संगठन यह चाहता था कि रैली निरस्त हो जाय, मोदी मंच छोड़ कर भाग जाय, बम धमाकों की जानकारी भारी जनसमूह को मिल जाय, रैली में भगदड़ मच जाय और कर्इ लोग भीड़ में कुचल कर मर जाय ? सम्भवत: उन लोगों का यही मकसद था, जिन्होंने ऐसा किया, परन्तु मोदी के साहस, उनकी दबंगता ने उनके मिशन को सफल नहीं होने दिया।
ब्लास्ट की जानकारी मिलने के बाद भी मोदी अविचलित हो कर मंच पर बैठे रहे। वे मंच पर निर्भिक हो कर पूरा एक घंटा बोले। अपने ओजस्वी भाषण के दौरान उन्होंने एक भी बार बम विस्फोट का जिक्र नहीं किया। भाषण के अंत में उन्होंने जनता से शांति बनाये रखने की अपील की और सभी के  सकुशल अपने-अपने गांव और घर जाने की कामना की। मान लीजिये मंच पर मोदी के स्थान पर कोर्इ और नेता होता तो क्या होता ? मंच से भाग खड़ा होता। उसके दरबारी पूरे देश में रो रो कर अपनी पार्टी के नेता के लिए वोट मांगते।
हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं होता। उसके संस्कार उसे धोखें से निर्दोष लोगों को मारने की प्रेरणा नहीं देते। हिन्दू या भगवा आतंकवाद का कभी जन्म नहीं होगा। जिनके मस्तिष्क में यह उपजा है, उस रहस्य पर से भी एक न एक दिन पर्दा उठ जायेगा। परन्तु  हिन्दू के घर में जन्म लेने वाले जयचन्द अपनी आंखों पर स्वार्थ की पट्टी बांध हर घटना के घटित होने के तुरन्त बाद हिन्दू आतंकवाद को सूंघते हैं, उनकी बुद्धि पर तरस आता है।

3 comments:

  1. अंदेशा बिलकुल नहीं, पर दुर्घटना होय |
    सी एम् ने जो भी कहा, गया करेज करोय |

    गया करेज करोय, वाह रे साबिर अनवर |
    दिग्गी की क्या बात, सत्यब्रत धमकी देकर |

    शहजादे मत बोल, खुला देता संदेसा |
    दो दिन में हो बंद, होय रविकर अंदेशा ||


    सत्य वचन थे कुँवर के, आज सुवर भी सत्य |
    दोष संघ पर दें लगा, बिना जांच बिन तथ्य |

    बिना जांच बिन तथ्य, बड़े बडबोले नेता |
    हुई सभा सम्पन्न, सभा के धन्य प्रणेता |

    बीता आफत-काल, हकीकत आये आगे |
    फिर से खड़े सवाल, किन्तु सुन नेता भागे ||

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  2. क्योंकि....
    हिन्दू...हिंसा से दूर है।
    हिं + दू - हिन्दू

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