श्रद्धेय मनमोहन सिंह जी,
एक संवैधानिक पद से विदाई या एक परिवार की सेवा से सेवानिवृति के पूर्व संजय बारु और पीसी पारेख ने आपको दो गुलदस्तें भेंट किये हैं। इस भेंट को पा कर निश्चय ही आप आहत हुए होंगे, क्योंकि दुनियां अब तक जो कहती थी, उसका जवाब तो आपके पास था, पर आपके अपनो ने ही जो चोट पहुंचाई है, उसकी पीड़ा आप सहन नहीं कर पाये होंगे। इसलिए उनकी बातों का कोई जवाब आप नहीं दे पाये हैं। यह जरुर है कि कभी अकेले में बैठे होंगे, तब आपकी आंखें भर आयी होगी। आपसे जो पहाड़ जैसा पाप हो गया है, उसे ले कर आपके अन्तःकरण ने अवश्य ही धिक्कारा होगा। कठोर कर्म और तप से जीवन में जो कमाया, उसे इन दस वर्षों में गवां दिया। अपने स्वाभिमान को गिरवी रख कर प्रधानमंत्री पद की गरिमा को गिराने से आपका उज्जवल जीवन कलंकित हुआ है। जीवन के जो बचे खुचे पल है, वे हमेशा आपको अपनी गलतियों की याद दिलाते रहेंगे, परन्तु पूरा राष्ट्र एक सवाल पूछना चाहता है- यदि आपमें उस पद की पात्रता नहीं थी, तो डमी प्रधानमंत्री बनने की क्या आवश्यकता थी ? कहा जाता है कि सत्ता के दो शक्ति केंन्द्र थे, पर वास्तव में एक ही शक्ति केन्द्र था, जो राह में निर्विकार प्रतिमा बैठी थी, वही शक्ति केन्द्र नहीं हो कर मात्र एक मूर्ति थी। सभी उसकी अवमानना करते हुए वास्तविक शक्ति केन्द्र से जुड़े हुए थे। राष्ट्र आपसे दूसरा प्रश्न पूछना चाहता है- आपको ऐसी भूमिका अभिनित करने की क्या आवश्यकता थी ?
भारत के संविधान ने प्रधानमंत्री पद को असिमित शक्तियां दी है। आप उस पद पर आरुढ़ जरुर थे, पर शक्तिविहिन थे। आपके पास निर्णय करने का अधिकार नहीं था। आप सिर्फ एक परिवार को सेवाएं दे रहे थे। आप उस परिवार की कृपा से गदगद थे। क्योंकि आपको मालूम था कि आप अपने बलबूते लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकते। अपनी साम्मर्थय से दो सांसदों को जीतवा कर लोकसभा में नहीं बिठा सकते। प्रभावशाली भाषण से आप जनता को नहीं बांध सकते। अपने तार्किक व सारगर्भित भाषण से आप संसद को मंत्रमुग्ध नहीं कर सकते, परन्तु भाग्य की विडम्बना देखिये कि आप दस वर्ष तक प्रधानमंत्री पद पर आरुढ़ रहें। एक डमी प्रधानमंत्री का इतना लम्बा कार्यकाल भारत के संसदीय लोकतांत्रिक इतिहास का रिकार्ड है। हम सभी भारतीय नागरिक आपकी सेवानिवृति पर भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि भविष्य में देश को कभी डमी प्रधानमंत्री नहीं दें। हमे शक्तिशाली प्रधानमंत्री चाहिये, जो भारत की तकदीर बदलने की क्षमता रखता हों।
राजनेता बनने के लिए आपने अपने भीतर बैठे हुए अर्थशास्त्री का कत्ल कर दिया, जिसकी भारी कीमत इस देश की जनता को चुकानी पड़ी है, क्योंकि भारत की जनता ने 2009 में ईमानदार अर्थशास्त्री के पक्ष में इस आशा के साथ वोट दिया था कि वे आर्थिक सुधारों के जरिये देश को प्रगति और खुशहाली की डगर पर ले जायेंगे, किन्तु आपने देश की जनता के साथ दगाबाजी की है। जिस व्यक्ति को अर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है, वह व्यक्ति ने राजनेता बन अर्थव्यवस्था की बरबादी का कारक बन गया। यदि आपके भीतर का अर्थशास्त्री जिंदा होता, तो आपकी नाक के नीचे हुए कई लाख करोड़ के घोटालों को आप चुपचाप नहीं देखते। भारत की गरीब जनता के हित के लिए प्रधानमंत्री पद को ठोकर मार कर सत्ता से बाहर आ जाते।
यदि आपके भीतर का अर्थशास्त्री जिंदा होता, तो बरबादी के मंजर को चुपचाप नहीं देखता। वह आठ दस लाख करोड रुपयों को घटलों-घोटालों में नहीं उड़ने देता। बैंको के करोड़ो रुपये कोयले के अभाव में अधुरी पड़ी बिजली परियोजनाओं में नहीं फंसते। सरकारी खजाने के कई लाख करोड़ रुपये उन खैरात योजनाओं में नहीं लुटाये जाते, जिससे वोट मिलते हैं, किन्तु जनता का पैसा जनता को राहत कम देता हैं और अधिकांश पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। औद्योगिक विकास अवरुद्ध नहीं होता। युवाओं के मुहं से रोजगार का निवाला नहीं छीना जाता। यह देश का दुर्भाग्य ही था कि वह अर्थ विशेषज्ञ, जिसे 1991 की बीमार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का श्रेय जाता है, बेबस हो, आंखे बंद किये लाचारी सब कुछ नहीं देखता रहा।
घोटालों, खैरात योजनाओं, बैंको की उधारी डूबने और औद्योगिक उत्पादन घटने और टेक्स वसूली कम होने से जो राजस्व घाटा हुआ, उसका सारा भार जनता पर डाल दिया गया। जनता की जेब से टेक्स के रुप में पैसा निकाल कर सरकारी खर्चा तो चल गया, परन्तु इस सारे गड़बडजाल से भारत की गरीब जनता को महंगाई की असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ रही है। दस वर्षों में एक सत्ता शक्तिकेन्द्र ने अनियंत्रित, बेबाक और खुली लूट से देश की गरीब जनता को बीस लाख करोड़ की चपत लगाई है। भारत की जनता को अपनी बरबादी का कारण समझ में आ गया है। जनता खून के आंसू रो रही है। लुटेरे सत्ता में आने के लिए चाहे जितने हाथ पांव मारे। चाहे जितने सत्ता षड़यंत्र करें। धर्म के आधार बना लोगो को भयभीत करें, किन्तु जनता के पेट पर जो महंगाई की लात मारी है, उसकी पीड़ा इतनी अधिक है कि भारत की जनता सब कुछ भूल कर लुटेरों को ठुकराने का पूरा मानस बना चुकी है।
आपको डमी प्रधानमंत्री बना जिन्होंने इस देश की जनता के साथ छल किया है, उसका दंड उन्हें भुगतना पड़ेगा। सत्ता से हटने के बाद आप डमी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। आपके आगे भूतपूर्व विशेषण लग जायेगा। घोटालों की जब भी जांच होंगी, न्यायिक पक्रिया आपको ही बुलायेगी। एक परिवार के प्रति वफादारी निभाने और उन्हें सेवा देने के कारण आपको अपमानित होना पड़ सकता है। वे क्षण आपके लिए बहुत तक़लीफदायक होंगे। मात्र प्रधानमंत्री के वस्त्र पहनने और कुर्सी पर बैठने की ललक के कारण आपको जीवन के संध्याकाल में भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। चाहे आर्थिक अपराधियों ने कई लाख करोड़ डकारे हैं और आपकी तरफ एक ढ़ेला भी नहीं फैंका हो, किन्तु जो कुछ किया है, आपकी आड़ ले कर ही किया है।
आपका रोल डमी प्रधानमंत्री का ही रहा हों, किन्तु उस सरकार का नाम तो मनमोहन सिंह सरकार ही होगा। अभी तो दो किताबें ही आयी है, सम्भव है सत्ता जाने के बाद और कई किताबे सामने आयें। कोई भूतपूर्व सीबीाआई अधिकारी भी प्रामणिक पुस्तक बजार में फैंक सकता है। निश्चय ही आपकी बहुत किरकिरी होने वाली है। रहस्यों पर से जब पर्दे उठने लगेंगे तो यह सिलसिला थमेगा नहीं।
प्रधानमंत्री जी, एकांत के क्षणों में जब आपको सारा घटनाक्रम याद आता होगा और वे खलपात्र भी आपके सामने आते होंगे, जो अपराधी हैं और जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था का जानबूझ कर कबाड़ा किया है। निश्चय ही आपका अंतःकरण आपको झकझोरता होगा। आप तिलमिला जाते होंगे। हो सकता हैं सार्वजनिक रुप से सबकुछ प्रकट नहीं करना चाहते हों। अतः मेरे साथ पूरा देश आपसे एक छोटी सी अर्ज कर रहा है-जाते-जाते या जाने के बाद वह सच बता दीजिये, जो देश जानना चाहता है। आप जानते हैं कि किसने जनता का कितना धन लूटा है और लूटा हुआ धन कहां है ? आपने एक परिवार को जो सेवाएं दी है, उसका भरपूर लाभ तो उन्हें मिल गया, पर अब देश को भी उपकृत कर वह सच उगल दीजिये जिसे देश जानना चाहता है। निश्चय ही यदि ऐसा करने का आप साहस कर पायेंगे, तो आपका सारा बोझ हल्का हो जायेगा। जनता आपको क्षमा कर देगी। संजय बारु और पीसी पारेख की कीताबों की कड़ी में आप भी एक किताब लिख दीजिये। इस किताब का शीर्षक रख सकते हैं- एक कडवा सच, जिसके लिए मैं प्रायश्चित कर रहा हूं।
एक संवैधानिक पद से विदाई या एक परिवार की सेवा से सेवानिवृति के पूर्व संजय बारु और पीसी पारेख ने आपको दो गुलदस्तें भेंट किये हैं। इस भेंट को पा कर निश्चय ही आप आहत हुए होंगे, क्योंकि दुनियां अब तक जो कहती थी, उसका जवाब तो आपके पास था, पर आपके अपनो ने ही जो चोट पहुंचाई है, उसकी पीड़ा आप सहन नहीं कर पाये होंगे। इसलिए उनकी बातों का कोई जवाब आप नहीं दे पाये हैं। यह जरुर है कि कभी अकेले में बैठे होंगे, तब आपकी आंखें भर आयी होगी। आपसे जो पहाड़ जैसा पाप हो गया है, उसे ले कर आपके अन्तःकरण ने अवश्य ही धिक्कारा होगा। कठोर कर्म और तप से जीवन में जो कमाया, उसे इन दस वर्षों में गवां दिया। अपने स्वाभिमान को गिरवी रख कर प्रधानमंत्री पद की गरिमा को गिराने से आपका उज्जवल जीवन कलंकित हुआ है। जीवन के जो बचे खुचे पल है, वे हमेशा आपको अपनी गलतियों की याद दिलाते रहेंगे, परन्तु पूरा राष्ट्र एक सवाल पूछना चाहता है- यदि आपमें उस पद की पात्रता नहीं थी, तो डमी प्रधानमंत्री बनने की क्या आवश्यकता थी ? कहा जाता है कि सत्ता के दो शक्ति केंन्द्र थे, पर वास्तव में एक ही शक्ति केन्द्र था, जो राह में निर्विकार प्रतिमा बैठी थी, वही शक्ति केन्द्र नहीं हो कर मात्र एक मूर्ति थी। सभी उसकी अवमानना करते हुए वास्तविक शक्ति केन्द्र से जुड़े हुए थे। राष्ट्र आपसे दूसरा प्रश्न पूछना चाहता है- आपको ऐसी भूमिका अभिनित करने की क्या आवश्यकता थी ?
भारत के संविधान ने प्रधानमंत्री पद को असिमित शक्तियां दी है। आप उस पद पर आरुढ़ जरुर थे, पर शक्तिविहिन थे। आपके पास निर्णय करने का अधिकार नहीं था। आप सिर्फ एक परिवार को सेवाएं दे रहे थे। आप उस परिवार की कृपा से गदगद थे। क्योंकि आपको मालूम था कि आप अपने बलबूते लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकते। अपनी साम्मर्थय से दो सांसदों को जीतवा कर लोकसभा में नहीं बिठा सकते। प्रभावशाली भाषण से आप जनता को नहीं बांध सकते। अपने तार्किक व सारगर्भित भाषण से आप संसद को मंत्रमुग्ध नहीं कर सकते, परन्तु भाग्य की विडम्बना देखिये कि आप दस वर्ष तक प्रधानमंत्री पद पर आरुढ़ रहें। एक डमी प्रधानमंत्री का इतना लम्बा कार्यकाल भारत के संसदीय लोकतांत्रिक इतिहास का रिकार्ड है। हम सभी भारतीय नागरिक आपकी सेवानिवृति पर भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि भविष्य में देश को कभी डमी प्रधानमंत्री नहीं दें। हमे शक्तिशाली प्रधानमंत्री चाहिये, जो भारत की तकदीर बदलने की क्षमता रखता हों।
राजनेता बनने के लिए आपने अपने भीतर बैठे हुए अर्थशास्त्री का कत्ल कर दिया, जिसकी भारी कीमत इस देश की जनता को चुकानी पड़ी है, क्योंकि भारत की जनता ने 2009 में ईमानदार अर्थशास्त्री के पक्ष में इस आशा के साथ वोट दिया था कि वे आर्थिक सुधारों के जरिये देश को प्रगति और खुशहाली की डगर पर ले जायेंगे, किन्तु आपने देश की जनता के साथ दगाबाजी की है। जिस व्यक्ति को अर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है, वह व्यक्ति ने राजनेता बन अर्थव्यवस्था की बरबादी का कारक बन गया। यदि आपके भीतर का अर्थशास्त्री जिंदा होता, तो आपकी नाक के नीचे हुए कई लाख करोड़ के घोटालों को आप चुपचाप नहीं देखते। भारत की गरीब जनता के हित के लिए प्रधानमंत्री पद को ठोकर मार कर सत्ता से बाहर आ जाते।
यदि आपके भीतर का अर्थशास्त्री जिंदा होता, तो बरबादी के मंजर को चुपचाप नहीं देखता। वह आठ दस लाख करोड रुपयों को घटलों-घोटालों में नहीं उड़ने देता। बैंको के करोड़ो रुपये कोयले के अभाव में अधुरी पड़ी बिजली परियोजनाओं में नहीं फंसते। सरकारी खजाने के कई लाख करोड़ रुपये उन खैरात योजनाओं में नहीं लुटाये जाते, जिससे वोट मिलते हैं, किन्तु जनता का पैसा जनता को राहत कम देता हैं और अधिकांश पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। औद्योगिक विकास अवरुद्ध नहीं होता। युवाओं के मुहं से रोजगार का निवाला नहीं छीना जाता। यह देश का दुर्भाग्य ही था कि वह अर्थ विशेषज्ञ, जिसे 1991 की बीमार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का श्रेय जाता है, बेबस हो, आंखे बंद किये लाचारी सब कुछ नहीं देखता रहा।
घोटालों, खैरात योजनाओं, बैंको की उधारी डूबने और औद्योगिक उत्पादन घटने और टेक्स वसूली कम होने से जो राजस्व घाटा हुआ, उसका सारा भार जनता पर डाल दिया गया। जनता की जेब से टेक्स के रुप में पैसा निकाल कर सरकारी खर्चा तो चल गया, परन्तु इस सारे गड़बडजाल से भारत की गरीब जनता को महंगाई की असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ रही है। दस वर्षों में एक सत्ता शक्तिकेन्द्र ने अनियंत्रित, बेबाक और खुली लूट से देश की गरीब जनता को बीस लाख करोड़ की चपत लगाई है। भारत की जनता को अपनी बरबादी का कारण समझ में आ गया है। जनता खून के आंसू रो रही है। लुटेरे सत्ता में आने के लिए चाहे जितने हाथ पांव मारे। चाहे जितने सत्ता षड़यंत्र करें। धर्म के आधार बना लोगो को भयभीत करें, किन्तु जनता के पेट पर जो महंगाई की लात मारी है, उसकी पीड़ा इतनी अधिक है कि भारत की जनता सब कुछ भूल कर लुटेरों को ठुकराने का पूरा मानस बना चुकी है।
आपको डमी प्रधानमंत्री बना जिन्होंने इस देश की जनता के साथ छल किया है, उसका दंड उन्हें भुगतना पड़ेगा। सत्ता से हटने के बाद आप डमी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। आपके आगे भूतपूर्व विशेषण लग जायेगा। घोटालों की जब भी जांच होंगी, न्यायिक पक्रिया आपको ही बुलायेगी। एक परिवार के प्रति वफादारी निभाने और उन्हें सेवा देने के कारण आपको अपमानित होना पड़ सकता है। वे क्षण आपके लिए बहुत तक़लीफदायक होंगे। मात्र प्रधानमंत्री के वस्त्र पहनने और कुर्सी पर बैठने की ललक के कारण आपको जीवन के संध्याकाल में भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। चाहे आर्थिक अपराधियों ने कई लाख करोड़ डकारे हैं और आपकी तरफ एक ढ़ेला भी नहीं फैंका हो, किन्तु जो कुछ किया है, आपकी आड़ ले कर ही किया है।
आपका रोल डमी प्रधानमंत्री का ही रहा हों, किन्तु उस सरकार का नाम तो मनमोहन सिंह सरकार ही होगा। अभी तो दो किताबें ही आयी है, सम्भव है सत्ता जाने के बाद और कई किताबे सामने आयें। कोई भूतपूर्व सीबीाआई अधिकारी भी प्रामणिक पुस्तक बजार में फैंक सकता है। निश्चय ही आपकी बहुत किरकिरी होने वाली है। रहस्यों पर से जब पर्दे उठने लगेंगे तो यह सिलसिला थमेगा नहीं।
प्रधानमंत्री जी, एकांत के क्षणों में जब आपको सारा घटनाक्रम याद आता होगा और वे खलपात्र भी आपके सामने आते होंगे, जो अपराधी हैं और जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था का जानबूझ कर कबाड़ा किया है। निश्चय ही आपका अंतःकरण आपको झकझोरता होगा। आप तिलमिला जाते होंगे। हो सकता हैं सार्वजनिक रुप से सबकुछ प्रकट नहीं करना चाहते हों। अतः मेरे साथ पूरा देश आपसे एक छोटी सी अर्ज कर रहा है-जाते-जाते या जाने के बाद वह सच बता दीजिये, जो देश जानना चाहता है। आप जानते हैं कि किसने जनता का कितना धन लूटा है और लूटा हुआ धन कहां है ? आपने एक परिवार को जो सेवाएं दी है, उसका भरपूर लाभ तो उन्हें मिल गया, पर अब देश को भी उपकृत कर वह सच उगल दीजिये जिसे देश जानना चाहता है। निश्चय ही यदि ऐसा करने का आप साहस कर पायेंगे, तो आपका सारा बोझ हल्का हो जायेगा। जनता आपको क्षमा कर देगी। संजय बारु और पीसी पारेख की कीताबों की कड़ी में आप भी एक किताब लिख दीजिये। इस किताब का शीर्षक रख सकते हैं- एक कडवा सच, जिसके लिए मैं प्रायश्चित कर रहा हूं।
No comments:
Post a Comment