Monday, 14 April 2014

चुनावी समंदर में लुटेरों को डूबोने का यह सही मौका हैं

संजय बारु ने अपनी पुस्तक- एक्सीडेंटल प्राइमिनिस्टर मे एक दुखद सच के दस्तावेजी प्रमाण दिये हैं। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे भद्दा मजाक- “पुतले को प्रधानमंत्री बना, देश के संसाधनों को जम कर लूटा गया।” इस तथ्य की साक्षी की अगली कड़ी- पीसी पारेख की एक और पुस्तक- “क्रूसेडर ओर कांस्पिटेटर काॅलगेट एंड अदर ट्रूथ “में यह दर्शाया है कि काॅलगेट जैसे बड़े घोटाले के समय प्रधानमंत्री ने अपनी भूमिका महज एक पुतले के रुप में ही निभायी थी। इन दोनो किताबों ने भारत की राजनीति मेे भूचाल ला दिया है।
एक खुली, बेबाक और बेशर्म लूट को पूरा सरकारी तंत्र, सत्ताधारी गठबंधन के सभी नेता, सरकार को बाहर से समर्थन देने वाले राजनीतिक दल एक गम्भीर और देशद्रोही अपराध को खामोशी से देखते रहें। यह आत्मा को झकझोर देने वाला प्रसंग है। क्या इसे ही लोकतंत्र कहते हैं, जिसमें एक शख्सियत सारी प्रशासनिक शक्तियों का अधिग्रहण कर लेती है। योजनाबद्ध तरीके से शक्तियों का उपयोग कर खुली और निर्बाध लूट को अंजाम देती है। पूरा देश मूक दर्शक बन कर सबकुछ देखता रहता है। वह विदेशी शख्यिसयत, जिसके मन में किंचित मात्र भी देश प्रेम नहीं, गरबी जनता के प्रति कोई सहानुभूति नहीं, सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों के साथ दगा करती है, फिर भी उसकी राजनीतिक हैसियत और हैकड़ी बरकार है। भरकसक कोशिश करने के बाद भी सच न छुपाया जा सका और न ही दबाया जा सका, परन्तु मन में काई अपराध बोध नहीं। अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं। सौ रुपये की चोरी करने पर पकड़े जाना वाला चोर अपना सिर शर्म से झुका देता है। चेहरा ढंक देता है। किन्तु अरबो रुपये की हेराफेरी करने वाले अपराधी का सिर अभी भी उठा हुआ है, क्योंकि वे जानती है, ये मूर्ख हिन्दुस्तानी फिर राजनीतिक ताकत दे देंगे, जिससे सारे अपराध आसानी से छुपाये जा सकेंगे।
संजय बारु ने अपनी पुस्तक एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर मे वस्तुतः भारत के संसदीय लोकतंत्र को दुर्घटनाग्रस्त किया है। आज भारतीय लोकतंत्र लहूलुहान है। उपचार के लिए किसी सशक्त, सुदृढ़ व देशभक्त सरकार की ओर आशापूर्ण दृष्टि देख रहा है। किन्तु एक लुटेरी पार्टी और उसके तथा कथित सहायोगी सेक्युलर राजनीतिक दल इस विपदा घड़ी में तुष्टीकरण का जाप करते हुए ऐसी सरकार की सम्भावनाओं के मार्ग में अवरोध खड़े कर रहे हैं। जबकि सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्ट सरकार को पुनः सत्ता में नहीं आने देने के लिए एक होना चाहिये, वे नरेन्द्र मोदी को सत्ता में नहीं आने के लिए एक हो रहे है। यह भारतीय संसदीय लोकतंत्र की दुर्भाग्यजनक स्थिति है। एक दुर्घटनाग्रस्त लोकतंत्र का उपचार के लिए संवेदनशील होने के बजाय अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए सेक्युलिरिजम के नाम पर जनता को एक काल्पनिक भय से भयभीत कर रहे हैं। यह सब वे इसलिए कर रहे हैं ताकि एक समुदाय विशेष के थोक वोट उनकी झोली में गिर जाये।
नरेन्द्र मोदी के वैवाहिक जीवन को ले कर बवाल मचाने वाला समाचार और प्रिन्ट मीडिया संजय बारु  की पुस्तक पर महज औपचारिक खानापूर्ति कर रहे हैं। कुछ अखबार व समाचार चेनलों ने तो आश्चर्यजनक रुप से चुप्पी साध रखी है। जबकि कुछ समाचार चेनल दरबारियों को ला कर हल्ला मचा रहे हैं, जो अपने मालिक के विरुद्ध कुछ भी लिखना और बोलना पसंद नहीं करते। परन्तु इस गम्भीर विषय पर सार्थक और सारगर्भित बहस से सभी कतरा रहे हैं। ऐसा लग रहा जैसे कांग्रेसियों के अलावा इन्हें भी सांप सूंघ गया है। यह भारतीय लोकतंत्र को राजतंत्र में तब्दील करने का प्रयास है, जो यह आभास दिला रहा है कि यदि हम जागरुक नहीं रहें और ऐसे देशद्रोही तत्वों को जाने अनजाने समर्थन देते रहें तो एक दिन धीमी गति से चल कर आ रहा अधिनायकतंत्र भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचल कर रख देगा।
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनता किसी पार्टी पर विश्वास  कर शासन के साथ-साथ देश के खजाने की चाबी और प्राकृतिक संसाधन सौंपती है। परन्तु यदि कोई सरकार जनता के विश्वास के साथ छल करते हुए खजाने में रखे हुए जनता के धन की चोरी करती है और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग देश हित में करने के बजाय इसकी बंदरबाट करती है, तो इसका सीधा मतलब हैं, शासको की नीयत में खोट हैं। उन्होने शासन का अधिकार मांग कर जनता के साथ विश्वासघात किया है। वे राजनेता नहीं, बल्कि राजनेता के वेश में लुटरे हैं। वे राजधर्म निभाने नहीं, अपितु एक संगठित गिरोह बना कर सार्वजनिक धन को लूटने आये हैं। खुली और बेशर्म लूट ने दस वर्षों में देश को कंगाली के कगार पर पहुंचा दिया। देशवासियों को महंगाई की ऐसी दुखद पीड़ा झेलनी पड़ रही है, जिसकी कभी किसी ने कल्पना ही नहीं की थी।
देश के नागरिकों के साथ भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे भ्रष्ट सरकार इसलिए दगा करती रही, क्योंकि यह सरकार उन तथाकथित सेक्युलर और तुष्टीकरण की राजनीति को महत्व देने वाले राजनीतिक दलों की बैसाखी के सहारे टिकी हुई थी, जिनके लिए राजनीति और सत्ता देश से बढ़ कर है। तुष्टीकरण और सेक्युलिरिजम केें नकाब के नीचे लुटेरे अपने सारे पापों को छुपा कर फिर सत्ता में आने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। उन्हें अपने भावी सहयोगियों से भी पूरा समर्थन मिल रहा है। देश के दुश्मन राष्ट्र भी ढुलमुल और कमज़ोर भारत सरकार चाहते हैं, ताकि उनके घृणित मकसद पूरे होते रहें। वहीं योरोपियन देश व अमेरिका भी सक्षम भारत सरकार के पक्षधर नहीं है, क्योंकि इससे उनके व्यापारिक हित प्रभावित होते हैं। देश के अधिकांश मीडिया समूह पर विदेशी व्यापारियों का नियंत्रण है और वे भी एक लुटेरी सरकार का मौन समर्थक बने हुए हैं। भारत की जनता को जागरुक हो कर अपने मत का सही प्रयोग करना चाहिये और उस पार्टी को आंशिक ही नहीं पूरी तरह ठुकरा देना चाहिये, जिसने देश की गरीब जनता का अरबों रुपया लूटा है और भविष्य में सता में आ कर अपने इसी उपक्रम को जारी रखना चाहती है।
भारत की जनता हक़ीकत को समझ गयी है। वह अपने साथ छल करने वाले अपराधियों को पहचान गयी है। लोकसभा के चुनावों के दौरान जो भारी मतदान हो रहा है, उससे लगता है, आक्रोश से भरा हुआ गुब्बारा फूट रहा है। अब तक हुए मतदान में जन आक्रोश की आंधी की झलक दिखाई दे रही है। इसे सुनामी कहें या लहर, पर यह जरुर है कि जनपवन के तीव्र वेग से सत्ता तम्बु उखड़ जायेंगे। अपने आपको बचाने की लाख कोशिश करें, प्रतिद्वंद्वियों पर चाहे जितने झूठे, अर्नगल वे बेहुदे आरोप लगायें, उनके सारे हथकंड़े बेअसर हो रहे हैं। जो तिकड़म से सेक्युरिजम के नाम पर एकजुट हो कर नरेन्द्र मोदी को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, वे सभी एक ही थेल्ली के चट्टे बट्टे हैं और सभी लुटेरों को बचाने में लगे हैं। इनकी कोशिश निष्फल करने के लिए यह जरुरी है कि अब चुनावों के अगले चरण में इन्हें इतने जोर का धक्का दिया जाय कि ये गहरे समंदर में डूब जाय और फिर कभी भारत को लुटने के लिए राजनीति के तंबू गाड़ने की कोशिश नहीं करें। साथ ही, उनके उन सहयोगियों को भी सबक सिखाना चाहिये, ताकि वे समझ जायें कि वे कितनी भी चालाकी क्यों न करें, देश के संसाधनों को लूटने वालें लुटेरों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग दे कर उन्होंने अपनी भी साख गवांई है। और जो भ्रष्टव्यवस्था को बदलने का नारा लगाते हुए राजनीति करने आयें थे, लुटेरों के सहयोगी बन कर उन्होंने देश की जनता को धोखा दिया है, उनकी नयी खुली राजनीति की दुकान को उनके विरुद्ध मतदान कर बंद करवानी चाहिये।

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