Tuesday, 22 April 2014

भाजपा और मोदी को देश सौंपने के अलावा आज हमारे पास कोई विकल्प नहीं है

क्या दस वर्ष तक प्रधानमंत्री पद और संवैधानिक संसधाओं की अवमानना करने वाले एक निरंकुश, अभिमानी सत्ता केन्द्र को फिर राष्ट्र सौंप दे, जिनकी निष्ठा अब संदेहास्पद बन गयी है ? दस वर्ष पूर्व सत्ता सौंपते समय जो आशंका जाहिर की गयी थी, वह सच साबित हुई है। भारत राष्ट्र की सम्प्रभुता को आघात पहुंचाया गया है। देश की निर्धन जनता के साथ दगाबाजी हुई है। इस्ट इंडिया कम्पनी का ही एक प्रतिरुप धीमे कदमों से चलता हुआ, हमें आपस में बांट, चापलुस दरबारियों की शह से सत्तासीन हो गया। पुतले को प्रधानमंत्री बना कर शासन की सभी शक्तियों को छीन लिया। देश के संसाधनों को जम कर लूटा। विरोध को ताकत से और स्वाभ्मिानी, राष्ट्रभक्तों जन सेवकों की आवाज को सत्ता के दम्भ से कुचलने की अनेको बार कोशिश की गयी। न्यायाल की अवमानना को कई बार दोहराया गया। एक लोकतांत्रिक पार्टी को पूरी तरह प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में तब्दील कर दिया गया और पार्टी नेता आज्ञाकारी अनुचर की तरह मालिक की हर आज्ञा को शिरोधार्य करते रहे।
क्या साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर करने के बहाने फिर उसी संदेहास्पद व्यक्तित्व को भारत सौंप दें, जिसने भारत को दुनियां का भ्रष्टतम और दरिद्रतम राष्ट्र बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ? जिसने भारत की गरीब जनता को मात्र भिखारी समझा, जिन्हें सरकारी कृपा की खैरात बांट कर लुभाया जा सकता है। लालच दे कर उनके वोट खरीदे जा सकते हैं। उन्हें नहीं, तो क्या उन राजनीतिक पार्टी के क्षत्रपो को शासन सौंप दे, जिसके पास तीस से अधिक सांसद नहीं होंगे और जो प्राइवेट लिमिटेड पार्टी की कृपा से ही सरकार चला सकेंगे ? क्या एक पुतले को हटा कर दूसरे पुतले को शासन सौंपना आज की परिस्थितियों में उपयुक्त होगा ? क्या ऐसी सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष हो कर देश की समस्याओं का समाधान खोज सकती है ?
जनता द्वारा किसी पार्टी या व्यक्ति के पक्ष में दिये गये एक-एक वोट का महत्व होता है। इसी वोट से देश की सेवा का अधिकार मिलता है, जिसे राजनीतिक पार्टियां सत्ता के उपभोग करने का अधिकार समझती है। इसी वोट के आधार पर देश की बाह्य और आंतरिक सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधान, खजाना, उद्याोग, व्यापार, न्याय व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थय की जिम्मेदारियों को सही ढं़ग से निष्पादन करने का अधिकार दिया जाता है। क्या अपने बहुमूल्य वोट की कीमत समझे बिना भावुक या भ्रमित हो कर फिर उन्हीं लुटेरो के पक्ष में वोट दें दे, जो जिम्मेदारियों को ओढ़ने में पूर्णतया अक्षम साबित हुए हैं। जिनके भ्रष्ट आचरण के कारण पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है। जिनके माथे पर देश की अर्थव्यवस्था को बरबाद करने का कलंक लगा हुआ है। जिन लोगों का मकसद शासन की शक्तियां प्राप्त कर अपने लिए मात्र धन कमाना हैं और उन देशी और विेदेशी कम्पनियों को उपकृत करना हैं, जिनका मकसद प्रदत्त कानूनों का उल्लघंन कर अत्यधिक मुनाफा बटोरना है।
छल-कपट, धनबल, तिकड़म और जनता को भ्रमित करने के सारे उपक्रम कर पुनः सत्ता में आने के लिए लुटेरे व्यग्र दिखाई दे रहे हैं। अपने कुचक्र को सफल होने में उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी है। भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां उनके कुचक्र में सहयोगी बनी हुई। समाचार मीडिया ने राजनीति से जुड़े सारे समाचारों का व्यावसायिकरण कर दिया है। गम्भीर मुद्धो से कन्नी काटना और छिछली, बेतुकी और भद्दी बातों को उछालना ही उन्होंने अपना मकसद बना लिया है। मीडिया चेनल बातो का बतंगड़ बना कर टीआरपी बढाने में लगे हैं। कुछ चेनल तो राजनीतिक पार्टियों के अघोषित प्रचारक बन गये हैं।
राजनेता मोदी विरोध के नाम पर नैतिकता और शिष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ गये हैं। तरह-तरह की शब्दावली से एक व्यक्तित्व को भयावह वह घृणास्पद बनाना ही अनेको राजनेताओं का मूल उद्धेश्य  रह गया है। बारह वर्ष पूर्व हुए गुजरात दंगो के नाम अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेकने वाले यह भूल जाते हैं कि न्यायालय ने मोदी को तो दोष मुक्त कर दिया है, किन्तु जिन्होंने एक सौ पच्चीस करोड़ जनता के साथ छल कर देश के संसाधनों और सरकारी खजाने को लूटा हैं, उन्हें न्यायालय ने निर्दोष साबित नहीं किया हैं। गुजरात मामले में सरकारी जांच एंजेसिंयों की पूरी ताकत झोंकने के बाद भी मोदी को अपराधी घोषित नहीं कर पाये, किन्तु प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए उन्हीं सरकारी एजंसियों से आर्थिक अपराधों को लाख छुपाने की कोशिश करने पर भी छुपा नहीं पाये। यदि सत्ता पर नियंत्रण हट गया, तो इन्हें डर है कि सारे रहस्यों पर से पर्दा उठ जायेगा। जनता के सामने नंगे हो जायेंगे। फिर कभी जनता के सामने जा कर वोट नहीं मांग पायेंगे।
यूपीए गठबंधन ने अपने दस वर्षों की उपलब्धियों को गिना कर, जनहित में भावी नीतियों की घोषणा कर जनता को लुभाने का उपक्रम छोड़ दिया है। बस एक ही नीति रह गयी है- मोदी को रोको। बताया यह जा रहा है कि इस व्यक्ति के सत्ता में आने से अनर्थ हो जायेगा, किन्तु वास्तविकता यह है कि ये भीतर ही भीतर डरे हुए हैं, क्योकि इन्होंने जो अरबों रुपयों का गबन किया है, उससे इनकी रातों की नींद उड़ गयी हैं। वे जानते हैं कि सत्ता नहीं रही, तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। और जो राजनेता मोदी को रोकने के लिए सुर में सुर मिला रहे हैं, वे भी मोदी को इसलिए रोकना चाहते हैं, क्योंकि वे यदि सत्ता में आ गये, तो प्रान्तों में उनका सारा खैल चौपट हो जायेगा। सत्ता पर उनका नियंत्रण ढि़ला पड़ जायेगा। उनकी सरकारों पर संकट मंड़राने लगेगा। अधिकांश राजनेता और राजनीतिक दल देश हित के बजाय अपना स्व हित ज्यादा देख रहे हैं और मोदी के नाम से जनता को डराने की भरसक कोशिश में लगे हुए हैं।
इस समय भारत की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत खराब है। उ़द्याोगों पर मंदी की काली छाया मंडरा रहीं है। सरकार की घपलों-घोटालों की नीति के कारण कई महत्वपूर्ण बिजली और सड़क परियोजनाएं अधुरी पड़ी हुई है। महंगाई विस्फोटक रुप से बढ़ी है और इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहा है। देश के करोड़ो नौजवान बैरोजगार हो कर घर बैठे हैं। पूरे देश में देशी-विदेशी आतंकवादियों ने अपना सुदृढ़ नेटवर्क बिछा दिया है। वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के कारण प्रान्तीय सरकारें व केन्द्र इनकी गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। पाकित्सतान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अफगानिस्तान से अमरीकी सेना हटने के बाद भारत आतंकवादियों का बहुत बड़ा हब बन जायेगा।
मोदी को रोकने के लिए राजनेता चाहे जो उपक्रम करें, जनता यदि ठान लें तो उन्हें कोई नहीं रोक पायेगा। क्योंकि आज की दुरुह परिस्थितियों में देश के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हमे आसन्न चुनौतियों से निपटने के लिए केन्द्र में सुदृढ़, जवाबदेय और भरोसे वाली सरकार चाहिये, जो सुशासन दे सके। जो पूर्ण प्रतिबद्धता से देश के विकास का संकल्प ले सकें। जिसकी ईमानदारी, कर्मठता और प्रशासनिक क्षमता पर कोई प्रश्न चिन्हें नहीं लगे हों। लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या राजनीतिक दल को सत्ता में आने से रोकने का अधिकार सिर्फ जनता को हैं,  किन्तु किसी को रोकने का नारा देने वाले राजनेता यह भूल जाते हैं कि भारत की जनता अब परिपक्क हो गयी है, उसे भ्रमित करने के दिन  अब लद रहे हैं। जनता का दिल जनता की समस्याओं को हल करने और सुशासन दे कर ही जीता जा सकता है।

Thursday, 17 April 2014

जाते जाते वह कड़वा सच राष्ट्र को बता दीजिये मनमोहन सिंह जी !

श्रद्धेय मनमोहन सिंह जी,
एक संवैधानिक पद से विदाई या एक परिवार की सेवा से सेवानिवृति के पूर्व संजय बारु और पीसी पारेख ने आपको दो गुलदस्तें भेंट किये हैं। इस भेंट को पा कर निश्चय ही आप आहत हुए होंगे, क्योंकि दुनियां अब तक जो कहती थी, उसका जवाब तो आपके पास था, पर आपके अपनो ने ही जो चोट पहुंचाई है, उसकी पीड़ा आप सहन नहीं कर पाये होंगे। इसलिए उनकी बातों का कोई जवाब आप नहीं दे पाये हैं। यह जरुर है कि कभी अकेले में बैठे होंगे, तब आपकी आंखें भर आयी होगी। आपसे जो पहाड़ जैसा पाप हो गया है, उसे ले कर आपके अन्तःकरण ने अवश्य ही धिक्कारा होगा। कठोर कर्म और तप से जीवन में जो कमाया, उसे इन दस वर्षों में गवां दिया। अपने स्वाभिमान को गिरवी रख कर प्रधानमंत्री पद की गरिमा को गिराने से आपका उज्जवल जीवन कलंकित हुआ है। जीवन के जो बचे खुचे पल है, वे हमेशा आपको अपनी गलतियों की याद दिलाते रहेंगे, परन्तु पूरा राष्ट्र  एक सवाल पूछना चाहता है- यदि आपमें उस पद की पात्रता नहीं थी, तो डमी प्रधानमंत्री बनने की क्या आवश्यकता थी ? कहा जाता है कि सत्ता के दो शक्ति केंन्द्र थे, पर वास्तव में एक ही शक्ति केन्द्र था, जो राह में निर्विकार प्रतिमा बैठी थी, वही शक्ति केन्द्र नहीं हो कर मात्र एक मूर्ति थी। सभी उसकी अवमानना करते हुए वास्तविक शक्ति केन्द्र से जुड़े हुए थे। राष्ट्र आपसे दूसरा प्रश्न पूछना चाहता है- आपको ऐसी भूमिका अभिनित करने की क्या आवश्यकता थी ?
भारत के संविधान ने प्रधानमंत्री पद को असिमित शक्तियां दी है। आप उस पद पर आरुढ़ जरुर थे, पर शक्तिविहिन थे। आपके पास निर्णय करने का अधिकार नहीं था। आप सिर्फ एक परिवार को सेवाएं दे रहे थे। आप उस परिवार की कृपा से गदगद थे। क्योंकि आपको मालूम था कि आप अपने बलबूते लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकते। अपनी साम्मर्थय से दो सांसदों को जीतवा कर लोकसभा में नहीं बिठा सकते। प्रभावशाली भाषण से आप जनता को नहीं बांध सकते। अपने तार्किक व सारगर्भित भाषण से आप संसद को मंत्रमुग्ध नहीं कर सकते, परन्तु भाग्य की विडम्बना देखिये कि आप दस वर्ष तक प्रधानमंत्री पद पर आरुढ़ रहें। एक डमी प्रधानमंत्री का इतना लम्बा कार्यकाल भारत के संसदीय लोकतांत्रिक इतिहास का रिकार्ड है। हम सभी भारतीय नागरिक आपकी सेवानिवृति पर भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि भविष्य में देश को कभी डमी प्रधानमंत्री नहीं दें। हमे शक्तिशाली प्रधानमंत्री चाहिये, जो भारत की तकदीर बदलने की क्षमता रखता हों।
राजनेता बनने के लिए आपने अपने भीतर बैठे हुए अर्थशास्त्री का कत्ल कर दिया, जिसकी भारी कीमत इस देश की जनता को चुकानी पड़ी है, क्योंकि भारत की जनता ने 2009 में ईमानदार अर्थशास्त्री के पक्ष में इस आशा के साथ वोट दिया था कि वे आर्थिक सुधारों के जरिये देश को प्रगति और खुशहाली की डगर पर ले जायेंगे, किन्तु आपने देश की जनता के साथ दगाबाजी की है। जिस व्यक्ति को अर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है, वह व्यक्ति ने राजनेता बन अर्थव्यवस्था की बरबादी का कारक बन गया। यदि आपके भीतर का अर्थशास्त्री जिंदा होता, तो आपकी नाक के नीचे हुए कई लाख करोड़ के घोटालों को आप चुपचाप नहीं देखते। भारत की गरीब जनता के हित के लिए प्रधानमंत्री पद को ठोकर मार कर सत्ता से बाहर आ जाते।
यदि आपके भीतर का अर्थशास्त्री जिंदा होता, तो बरबादी के मंजर को चुपचाप नहीं देखता। वह आठ दस लाख करोड रुपयों को घटलों-घोटालों में नहीं उड़ने देता। बैंको के करोड़ो रुपये कोयले के अभाव में अधुरी पड़ी बिजली परियोजनाओं में नहीं फंसते। सरकारी खजाने के कई लाख करोड़ रुपये उन खैरात योजनाओं में नहीं लुटाये जाते, जिससे वोट मिलते हैं, किन्तु जनता का पैसा जनता को राहत कम देता हैं और अधिकांश पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। औद्योगिक विकास अवरुद्ध नहीं होता। युवाओं के मुहं से रोजगार का निवाला नहीं छीना जाता। यह देश का दुर्भाग्य ही था कि वह अर्थ विशेषज्ञ, जिसे 1991 की बीमार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का श्रेय जाता है, बेबस हो, आंखे बंद किये लाचारी सब कुछ नहीं देखता रहा।
घोटालों, खैरात योजनाओं, बैंको की उधारी डूबने और औद्योगिक उत्पादन घटने और टेक्स वसूली कम होने से जो राजस्व घाटा हुआ, उसका सारा भार जनता पर डाल दिया गया। जनता की जेब से टेक्स के रुप में पैसा निकाल कर सरकारी खर्चा तो चल गया, परन्तु इस सारे गड़बडजाल से भारत की गरीब जनता को महंगाई की असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ रही है। दस वर्षों में एक सत्ता शक्तिकेन्द्र ने अनियंत्रित, बेबाक और खुली लूट से देश की गरीब जनता को बीस लाख करोड़ की चपत लगाई है। भारत की जनता को अपनी बरबादी का कारण समझ में आ गया है। जनता खून के आंसू रो रही है। लुटेरे सत्ता में आने के लिए चाहे जितने हाथ पांव मारे। चाहे जितने सत्ता षड़यंत्र करें। धर्म के आधार बना लोगो को भयभीत करें, किन्तु जनता के पेट पर जो महंगाई की लात मारी है, उसकी पीड़ा इतनी अधिक है कि भारत की जनता सब कुछ भूल कर लुटेरों को ठुकराने का पूरा मानस बना चुकी है।
आपको डमी प्रधानमंत्री बना जिन्होंने इस देश की जनता के साथ छल किया है, उसका दंड उन्हें भुगतना पड़ेगा। सत्ता से हटने के बाद आप डमी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। आपके आगे भूतपूर्व विशेषण लग जायेगा। घोटालों की जब भी जांच होंगी, न्यायिक पक्रिया आपको ही बुलायेगी। एक परिवार के प्रति वफादारी निभाने और उन्हें सेवा देने के कारण आपको अपमानित होना पड़ सकता है। वे क्षण आपके लिए बहुत तक़लीफदायक होंगे। मात्र प्रधानमंत्री के वस्त्र पहनने और कुर्सी पर बैठने की ललक के कारण आपको जीवन के संध्याकाल में भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। चाहे आर्थिक अपराधियों ने कई लाख करोड़ डकारे हैं और आपकी तरफ एक ढ़ेला भी नहीं फैंका हो, किन्तु जो कुछ किया है, आपकी आड़ ले कर ही किया है।
आपका रोल डमी प्रधानमंत्री का ही रहा हों, किन्तु उस सरकार का नाम तो मनमोहन सिंह सरकार ही होगा। अभी तो दो किताबें ही आयी है, सम्भव है सत्ता जाने के बाद और कई किताबे सामने आयें। कोई भूतपूर्व सीबीाआई अधिकारी भी प्रामणिक पुस्तक बजार में फैंक सकता है। निश्चय ही आपकी बहुत किरकिरी होने वाली है। रहस्यों पर से जब पर्दे उठने लगेंगे तो यह सिलसिला थमेगा नहीं।
प्रधानमंत्री जी, एकांत के क्षणों में जब आपको सारा घटनाक्रम याद आता होगा और वे खलपात्र भी आपके सामने आते होंगे, जो अपराधी हैं और जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था का जानबूझ कर कबाड़ा किया है। निश्चय ही आपका अंतःकरण आपको झकझोरता होगा। आप तिलमिला जाते होंगे। हो सकता हैं सार्वजनिक रुप से सबकुछ प्रकट नहीं करना चाहते हों। अतः मेरे साथ पूरा देश आपसे एक छोटी सी अर्ज कर रहा है-जाते-जाते या जाने के बाद वह सच बता दीजिये, जो देश जानना चाहता है। आप जानते हैं कि किसने जनता का कितना धन लूटा है और लूटा हुआ धन कहां है ? आपने एक परिवार को जो सेवाएं दी है, उसका भरपूर लाभ तो उन्हें मिल गया, पर अब देश को भी उपकृत कर वह सच उगल दीजिये जिसे देश जानना चाहता है। निश्चय ही यदि ऐसा करने का आप साहस कर पायेंगे, तो आपका सारा बोझ हल्का हो जायेगा। जनता आपको क्षमा कर देगी। संजय बारु और पीसी पारेख की कीताबों की कड़ी में आप भी एक किताब लिख दीजिये। इस किताब का शीर्षक रख सकते हैं- एक कडवा सच, जिसके लिए मैं प्रायश्चित कर रहा हूं।

Monday, 14 April 2014

जो हमदर्द बनने का ढोंग कर रहे हैं, वे ही दर्द की सौगात दे रहे हैं

आंखों पर मजहबी जुनून की पट्टी बांध कर जिन्हें अंधेरे में ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया है, वे तब तक अपनी तक़लीफों के बारें में उन्हें ही दोषी समझते रहेंगे, जिनके बारें में उनके कानों में जहर भरा जाता है। कान तो महज सुन सकते हैं, देख नहीं सकते, इसलिए कहने वालें की नीयत भांप नहीं पाते। काश ! वे आंखों पर बंधी पट्टी खोल पाते और आपने आस-पास के चेहरों को समझ पाते, तो अपनी बद से बदत्तर हुई हालत का रहस्य जान पाते। उन्हें समझ आ जाता कि उनकी गरीबी, बदहाली, पिछड़ापन के जिम्मेदार कौन है। वे ही लोग हैं, जो दर्द की सौगात दे रहें हैं, किन्तु हमदर्द बनने का ढ़ोग कर रहे हैं।
सियासी चौसर के बेजान मोहरों की तरह मुसलमानों का उपयोग मात्र बाजिया जीतने के लिए किया जाता रहा है। जो बाजियां जीतते रहें, वे तो मालामाल होते रहें, परन्तु उन्हें बदलें में कुछ नहीं दे पायें। वे देना भी नहीं चाहते, क्योंकि उनकी नज़़रों में उनकी औकात थोक वोटों के अलावा कुछ नहीं हैं। यदि आंखों की पर बंधी पट्टी खोल पाते, तो वे सही और गलत की पहचान कर पाते। जीवन खुशहाल बनाने के लिए बच्चों को अच्छी तामिल दे पातें। अच्छी ज़िदगी जीने के लिए बेहतर नौकरियां तलाशते। उनके जीवन में उजाला हो जाता, तो वे महज वोट बैंक नहीं रह पाते। दरअसल मुस्लिम समुदाय के मन में उजाले की ललक तो हैं, परन्तु वे आंखों पर बंधी पट्टी हटाने का साहस नहीं कर पा रहे हैं।
आंखों की पट्टी खुल जाती तो इतिहास की इबारत पढ़ी जा सकती है। इतिहास के पन्नों पर उन खलनायकों के कारनामें दर्ज हैं, जिन्हें अब भी रहनुमा बताया जाता है। मसलन पंड़ित जी जिन्ना के कंधे पर हाथ रख कर और उनकी आंखों में आंखें डाल कर इतना भर बोल देते – ‘’ मैं पंड़ित जवाहर लाल नेहरु, मोहम्मद अलि जिन्ना को आज़ाद भारत का पहला मुस्लिम प्रधानमंत्री घोषित करता हूं। यदि ऐसा होता तो आकाश में घुमड़ रही अविश्वास की घटाएं बरस जाती। पाकिस्तान नहीं बनता। लाखों जीवन बरबाद नहीं होते। करोड़ो तबाह नहीं होते। किन्तु नेहरु ऐसा नहीं कह पाये। उनका गरुर, उनकी अतृप्त महत्वाकांक्षा करोड़ो जीवन से बड़ी थी। उन्होंने जिन्ना को जानबूझ कर अपमानित किया था, उसकी भारी कीमत भारत राष्ट्र को चुकानी पड़ी।
कश्मीर समस्या शतप्रतिशत पंड़ित जी की देन है। पाकिस्तान का जीवन ही कश्मीर के तोते में कैद है। कश्मीर समस्या नहीं पैदा होती, तो चार-पांच युद्ध नहीं होते। नफरत की दीवार मजबूत होने के बजाय ढ़ह जाती। रावी और चिनाब का पानी दोनो देशों को एक कर देता। पंड़ित जी की गम्भीर भूल से आज़ादी के बाद की पांच पीढ़िया को अनचाहे कष्ट नहीं भोगने पड़ते।
राजीव गांधी ने रामजन्म भूमि के ताले खुलवा कर बर्र के छज्जे पर जानबूझ कर पत्थर फैंका था। बाईस बरस बाद आज एक कोबरें में जहर भर कर स्टिंग आपरेशन करने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि राम मंदिर का शिलान्यास कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री ने किया था। उन्होंने पूजा कर वहां राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया था। यह क्यो भूल जाते हैं कि विवादित ढ़ांचा ढहाये जाने के समय प्रधानमंत्री कांग्रेस सरकार का था, जो यदि चाहते तो इस दुखद घटना को रोक सकते थे। परन्तु सियासी नाटक का मंचन प्रारम्भ करने वाले अंत में हट जाते हैं और सार दोष उन पर डाल देते हैं, जिन्होंने नाटक का अंत एक क्लाइमेक्स के साथ किया था। अपने सियासी लाभ के लिए अपनी भूमिका को भूल कर जनता के जेहन में उन कलाकारों की याद दिलाते हैं, जिन्होंने उस नाटंक का अंत किया था। यह कपट नीति हैं। जनता का मूर्ख बनाने का कुत्सित प्रयास है।
गोधरा में रेल की बोगियां में लोगों को ज़िदा नहीं जलाया जाता, तो गोधरा की लपटे पूरे गुजरात को नहीं झुलसाती। दस वर्ष से गुजरात की बुझी हुई आग पर सियासी रोटियां सेकने की कोशिश की जा रही है। गुजरात तो गोधरा की लपटों से झुलसा था, किन्तु मुजफ्फर नगर में तो कोई आग ही नहीं लगी थीं। मामलूी घटना थी। इस घटना को जानबूझ कर थोक वोटों पर अनुकम्पा दर्शाने के लिए बड़ा किया गया। सुनियाजित तरीके से दंगा भड़काया गया। प्रशासन कई दिनों तक तमाशबीन बना रहा, इसलिए दंगाईयों के हौंसले बढ़ते गये। दंगा करवाया। लोगों को रुलाया। उनके घरों को उजाडने में मदद की। अब पीड़ितों पर पंद्रह हजार करोड़ खर्च कर उनसे वोट मांगे जा रहे हैं। पर अनुकम्पा भी दोनो समुदाय के पीड़ितो के प्रति नहीं, एक समुदाय पर ही, ताकि नफरत अधिक बढ़े। गुस्सा बढ़े। लोग अकारण ही पुनः आवेशित हो जाय, जिसका सियासी लाभ बटोरा जाय। क्या यह सियासत का सबसे घटिया और निकृष्ट रुप नहीं है ? पहले नागरिकों को धर जलने दों। लोगों को मरने दों। थोड़े दिन बाद उन रोते हुए लोगों के पास जाओं और कहो- ये रुपये लों, अपना घर बना लों और जो मर गये उनको भूल जाओ। पर याद रखों वोट हमे ही देना। यदि नहीं दोगे तो भविष्य में न तो कोई बचायेगा और न ही सरकारी सहायता मिलेगी।
गुजरात त्रासदी एक दुखद घटना के प्रतिकार में यकायक भड़की आग थी, जिसे काबू पाने में देर लगी थी, तब तक यह बहुत कुछ जला चुकी थी, किन्तु मुजफ्फरनगर में तो आग एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत लगायी गयी थी। प्रश्न उठता है कि केन्द्र की एक सरकार और उसकी सारी मशीनरी, मानवाधिकार पिछले दस वर्ष से गुजरात सरकार के मुखियां को अपराधी घोषित करने में अपनी सारी शक्ति खर्च कर रहे हैं, वे मुजफ्फरनगर त्रासदी पर क्यों मौन है ? जांच एंजेसियों को हकीकत जानने के लिए और उन षडयंत्रंत्रकारियों के काले कारनामें उजागर करने के लिए जानबूझ क्यों नहीं लगाया जा रहा है ? क्योंकि वे जानते हैं यदि नंगा सच सामने आ जायेगा, तो सभी पार्टियों की धर्मनिरपेक्षता संकट में पड़ जायेगी। समझ में नहीं आता गुजरात दंगो की रट लगाते हुए नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध बराबर कुछ न कुछ बोलने वाली सियासी पार्टियां मुजफ्फर नगर त्रासदी और अखिलेश सरकार की दंगो में संलिल्पतता की याद दिलाने में क्यों हिचक महसूस होती हैं ? क्या वहां दंगे नहीं हुए थे ? क्या वहां बेकसूर लोगों की हत्या सियासी षड़यंत्र के तहत नहीं हुई थी ?
बोटी बोटी काटने जैसे दुर्भावना वाले बयान देने वाले शख्स की पीठ थपथपाना और प्रत्युत्तर में दी गयी प्रतिक्रिया पर बवंडर करने के उपक्रम को किस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता कहा जा सकता है ? बर्र के छज्जे पर पत्थर फैंको और जब मधु मक्खियां काटने दौड़े तब सारा दोष अपनी प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल पर डाल कर भाग जाओ, यही छल नीति है। थोक वोट पाने की धूर्त कोशिश है।
आप गरीब, पिछडे़ हैं, अभावों में बहुत तक़लीफ दायक ज़िंदगी जी रहे हैं, तो जियों। आपकी हालात हम नहीं बदलेंगे, क्योंकि यह हमारे लिए लाभ का सौदा नहीं है। हम तो यही चाहते हैं कि आपकी हालत इससे भी ज्यादा खराब हों, ताकि आपकी आंखों पर बंधी पट्टी खोलने का प्रयास नहीं करें। आपके हाथों में धर्मनिरपेक्षता का तंबुरा थमा रखा है, इसे बजाते रहों, साम्प्रदायिक शक्तियों के भय से बचने के लिए कव्वाली गाते रहो। हम सदा आपके साथ रहेंगे जब तक आपके थोक वोट हमें मिलते रहेंगे। क्योंकि हमारी नीति यह है कि हिंदुओं को जातियों के आधार पर बांटों, पिछड़े और दलित हिदुंओं के साथ मुस्लिम वोटों का समीकरण बिठा, चुनाव जीतों। यह सत्ता तक पहुंचने का शार्ट कट है। खुदा न करें आपकी आंखों पर पट्टी खुल जाय और आप नग्न आंखों से सारी हकीकत समझ जायें। जब ऐसी होगा, हमारी सियासत खत्म हो जायेगी। हमारा अस्तित्व मिट जायेगा। परन्तु हम ऐसा होने नहीं देंगे। हमे भारत की जनता की तकलींफो से कोई मतलब नहीं हैं। देश के विकास से कोई मतलब नहीं हैं। हमें सिर्फ सत्ता चाहिये। अधिकार चाहिये, ताकि जनता को मूर्ख बना कर लूटते रहें।

हमे भारत को बरबाद करने का हक है, क्योंकि हम सेक्युलर हैं !

हमने देश के संसाधनों का लूटा। रिकार्ड घोटाले-घपले किये। जम कर भ्रष्टाचार किया। गरीब जनता के पैसे को लूट कर काला धन बनाया। इसे विदेशी बैंकों में जमा कराया। हम मालामाल हुए, देश कंगाल हुआ, पर ऐसा करने का हमें हक है, क्योंकि हम सेक्युलर हैं। भारत में सेक्युलरिजम का नकाब पहन कर आप कुछ भी कर सकते हैं। आपको गलत काम करने के लिए हमारी तरह घबराना नहीं चाहिये, क्योंकि सेक्युलिरिजम वह कवच है, जिसमें सारे पाप छुपाये जा सकते हैं।
सेक्युलिरिजम के नाम पर हम जनता से कुशासन देने के लिए पुनः पांच वर्ष का अधिकार मांग रहे हैं। माना कि हमने जनता को दस वर्षों तक महंगाई के दर्द की तकलीफ के कारण रुलाया। माना कि हमने जनता की ऐसी हालत कर दी कि भर पेट भोजन करने की उसकी आदत ही नहीं रही। परन्तु उसको सेक्युलिरिजम के नाम पर इतना त्याग तो करना ही होगा। आप गरीब ही तो होंगे। भूखे ही तो रहेंगे, पर दुनियां में जिंदा तो रहेंगे। अभावों की पीड़ा सहते-सहते सांसे टूट जाय, तो कोई बात नहीं, पर हमेशा सेक्युलरिजम के भजन करते रहेंगे, तो आपका अगला जनम सुधर जायेगा।
एक शख्स कहता है कि मैं प्रधानमंत्री बनुंगा। क्यों बनेगा वह ? क्यों जमीन से उठ कर पर आकाश में उड़ने की कोशिश कर रहा है ? प्रधानमंत्री बनने का उसको क्या हक है ? जबकि हमारे परिवार का वजूद मौजूद हैं। हम कैसे भी हैं, चाहे नौसिखियें हैं, अयोग्य है, भ्रष्ट हैं, पर इस देश पर राज करने का हमारा ही हक हैं, क्योंकि हमारा परिवार लोकतांत्रिक देश में राजतंत्रीय शासन को स्थापित करने का अधिकार ले कर आया है। हमारा परिवार सेक्युलर है। हमारे परिवार के मुखिया ने देश का विभाजन करवाया। लाखों को दुनियां से कूच करवाया। करोड़ो को तबाह किया। हमने पैंसठ वर्षों में सैंकड़ों दंगे करवाये। 1984 में सिखों का कत्लेआम करवाया। हमे यह सब करवाना जरुरी था, क्योंकि हमे कम्युनल ताकतों को रोकना था।
हम जानते हैं, इस देश की जनता हमसे खफा है। हमसे छुटकारा चाहती है। पर हम ऐसा होने नहीं देंगे। हमने भारत की गरीब जनता को खूब रुलाया, अब खून के आंसू रुलायेंगे। देश को आर्थिक रुप से तबाह किया, पर तबाही अभी पूरी नहीं हुई है। देश के संसाधनों को जम कर लूटा, पर अभी और लूटना बाकी है। देश को पूरी तरह बरबाद करने के लिए दस वर्ष की अवधि कम होती है, इसलिए पांच वर्ष और मांग रहे हैं। भारत पर शासन करने का हमे हक है। कोई हमारा अधिकार छीनने की कितनी ही कोशिश क्यों न करें, हम उसे कामयाब होने नहीं देंगे, क्योंकि हम सेक्युलर हैं और वे कम्युनल है। हम कम्युनल ताकतों को रोकने के लिए सेक्युलरिजम का झंड़ा उठा कर दौड़ेंगे और सभी से कहेंगे- हमारे मिशन में शामिल हो जाओ। यदि वे कम्युनल आ गये, तो हम सब बरबाद हो जायेंगे। हमारी सियासी हसरते अधुरी रह जायेगी।
अंग्रेज़ो से मिल कर हमने मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाया। हम जानते थें बंटवारा अव्यवहारिक और बेतुका था। मुसलमान भारत के हर गांव और शहर में हिन्दुओं के साथ रहता है, वह भाग कर पाकिस्तान जा नहीं सकता था, इसलिए हमने उसे अपने सियासी फायदे के लिए मोहरा बना दिया। उसे कहा हमारे साथ रहो, हमे वोट देते रहों, क्योंकि हम सेक्युलर हैं याने कि मुसलमानों के हितैषी और जो इस देश में हिन्दुओं के हितैशी है, वे कम्युनल हैं। अपने सियासी लाभ के लिए मुसलमानो की गरीबी को बढ़ाया। उसे पिछड़ा बनाया। उसकी समस्याओं के समाधान के बजाय उसे और अधिक बढ़ाया, ताकि मुसलमान अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने की हैसियत नहीं जुटा पाये। उनके बच्चे पढ़ कर अच्छी नौकरी नहीं पा सके। उनकी आमदनी नहीं बढ़े और वे हमेशा तंगहाली में गुजर-बसर करें। पैसठ वर्षों तक यही सब करते रहने से हमे लाभ यह हुआ कि मुसलमानों के मन में जो असुरक्षा और गलतफहमिलयां हमने बिठा दी थी, वह आसानी बाहर नहीं निकल सकी। क्योंकि हम जानते हैं कि मुसलमान युवक यदि पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी पा लेगा और हिन्दुओं के साथ रहेगा, तो उसकी सारी गलतफहमियां दूर हो जायेगी। उसे यह मालूम हो जायेगा कि हमे अपने सियासी लाभ के लिए अब तक मूर्ख बनाया जाता रहा है।
2014 के लोकसभा चुनावों के पूर्व पूरे देश में हमे एकजुटता दिखी। जनता मजहब और जाति की संकीर्णता को तोड़ कर हमे हराने के प्रतिबद्ध दिखाई दी। गुजरात के नरेन्द्र मोदी, जो भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहा है पूरे पूरे देश में घूम-घूम कर हमारी कमजोरियों और कारगुजारियों को उजागर कर रहे है। समचमुच हमारे लिए यह खतरे की घंटी थी। हमे अपने शाशन पर खतरा मंडराता हुआ दिखाई दिया। हमने एक स्वार्थी और चालाक शख्स -अरविन्द केजरीवाल, जिसे नौटंकी करने और झूठ बोलने में महारथ हांसिल है, को उनके पीछे लगा दिया। वह और उसकी मंड़ली हाथ धो कर नरेन्द्र मोदी के पीछे पड़ गयी। हमे लग रहा है अरविन्द केजरीवाल अपना कुछ असर दिखायेगा। हम तो हारेंगे ही, किन्तु मोदी को आगे बढ़ने से रोक देंगे।
परन्तु हमे लग रहा है कि दस वर्ष के कुशासन की पीड़ा को जनता भूल नहीं पा रही है। वह हमारे विरुद्ध लामबंद हो रही है। हमने नरेन्द्र मोदी को गालियां देने और उनके विरुद्ध जहर उगलने के लिए कई मोर्चे खोल रखे हैं, किन्तु उसका कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा है। अतः हार कर हमे मुसलमानों का हितैषी बनने का प्रमण पत्र लेने के लिए इमाम बुखारी के पास जाना पड़ा। इमाम बुखारी ने देश के मुसलमानों को समझ दिया है कि कम्युनल ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए हमारी कांग्रेस को वोट दें। जबकि इतिहास गवाह है कि मुसलमानों को हमने बरबाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। उनकी गरीबी और तंगहाली के हम ही जिम्मेदार है। हम कम्युनल ताकतों का कृत्रिम भय दिखा कर उन्हें डराते रहें हैं, किन्तु यह करना हमारे लिए आवश्यक है, क्योंकि भारत के मुसलमान ही तो हमारी सियासी ताकत हैं। जब यह ताकत चली जायेगी, हम कहीं के नहीं रहेंगे। हम सात जनम तक हिन्दुस्ताान पर शासन करने का अधिकार नहीं पा सकेंगे।
हम जानते है कि हिन्दुओं को तो वैसे ही जातियों के आधार पर बांट रखा हैं। अतः यदि हमे मुसलमानों के थोक वोट मिल जाये, तो नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोका जा सकता है। यह सही है कि हम सरकार बनाने की औकात नहीं रखेंगे, किन्तु किसी महत्वाकांक्षी नेता, जिसने सेक्युलर का नकाब ओढ़ रखा हो, कुछ दिनों या महीनों के लिए शाशन करने का अधिकार दें देगें, पर उसकी नकेल अपने हाथ में रखेंगे। जब देश की जनता कुशासन से त्राहि-त्राहि करने लगेगी हम नकेल खींच लेंगे। फिर चुनाव करायेंगे। चुनाव जीतेंगे और भारत को लूटने का पुनः अधिकार पा लेंगे।
हम भारत को न समझ पाये हैं और न ही इसको समझने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे अपने कोई विचार ही नहीं है। दूसरे का लिखा हुआ भाषण पढ़ कर ही जनता को मूर्ख बना सकते हैं। पूरी दुनियां हमारे साथ है, क्योंकि दुनियां के अधिकांष देश नहीं चाहते कि हिन्दुस्तान के शासन की कमान किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ आ जाये, जिसके विचार शुद्ध रुप से भारतीय हों। जो हिन्दी बोलता हो। जो प्रगति और खुशहाली की कामना मन में रखता हो। जो देश को सुशासन देने का दृढ़ निश्चय रखता हो। जो काला अंग्रेज बन कर विदेशी शासकों की स्वार्थी नीतियों में उलझ कर देश की जनता के हितों को दांव पर नहीं लगाता हो। विदेशी सरकारें भारत में स्थायी और जवाबदेय सरकारे नहीं चाहती, क्योंकि इससे उनके व्यापारिक हित प्रभावित होते हैं। हम मन से उन विदेशियों के शुभ चिंतक हैं। क्योंकि हमारा शरीर इस देश में हैं, परन्तु आत्मा विदेशी है।
हम भारतीय लोकतंत्र की दुर्बलताओं को समझते हैं। यही हमारी सफलता का राज है। इस देश की जनता चाहें शासक के अत्याचारों से दुखी होगी, परन्तु जाति और धर्म की संकीर्णता के आधार पर बांट कर हम भारत पर शासन करते रहेंगे। जब तक सम्भव होगा, लुटने का क्रम जारी रखेंगे।

चुनावी समंदर में लुटेरों को डूबोने का यह सही मौका हैं

संजय बारु ने अपनी पुस्तक- एक्सीडेंटल प्राइमिनिस्टर मे एक दुखद सच के दस्तावेजी प्रमाण दिये हैं। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे भद्दा मजाक- “पुतले को प्रधानमंत्री बना, देश के संसाधनों को जम कर लूटा गया।” इस तथ्य की साक्षी की अगली कड़ी- पीसी पारेख की एक और पुस्तक- “क्रूसेडर ओर कांस्पिटेटर काॅलगेट एंड अदर ट्रूथ “में यह दर्शाया है कि काॅलगेट जैसे बड़े घोटाले के समय प्रधानमंत्री ने अपनी भूमिका महज एक पुतले के रुप में ही निभायी थी। इन दोनो किताबों ने भारत की राजनीति मेे भूचाल ला दिया है।
एक खुली, बेबाक और बेशर्म लूट को पूरा सरकारी तंत्र, सत्ताधारी गठबंधन के सभी नेता, सरकार को बाहर से समर्थन देने वाले राजनीतिक दल एक गम्भीर और देशद्रोही अपराध को खामोशी से देखते रहें। यह आत्मा को झकझोर देने वाला प्रसंग है। क्या इसे ही लोकतंत्र कहते हैं, जिसमें एक शख्सियत सारी प्रशासनिक शक्तियों का अधिग्रहण कर लेती है। योजनाबद्ध तरीके से शक्तियों का उपयोग कर खुली और निर्बाध लूट को अंजाम देती है। पूरा देश मूक दर्शक बन कर सबकुछ देखता रहता है। वह विदेशी शख्यिसयत, जिसके मन में किंचित मात्र भी देश प्रेम नहीं, गरबी जनता के प्रति कोई सहानुभूति नहीं, सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों के साथ दगा करती है, फिर भी उसकी राजनीतिक हैसियत और हैकड़ी बरकार है। भरकसक कोशिश करने के बाद भी सच न छुपाया जा सका और न ही दबाया जा सका, परन्तु मन में काई अपराध बोध नहीं। अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं। सौ रुपये की चोरी करने पर पकड़े जाना वाला चोर अपना सिर शर्म से झुका देता है। चेहरा ढंक देता है। किन्तु अरबो रुपये की हेराफेरी करने वाले अपराधी का सिर अभी भी उठा हुआ है, क्योंकि वे जानती है, ये मूर्ख हिन्दुस्तानी फिर राजनीतिक ताकत दे देंगे, जिससे सारे अपराध आसानी से छुपाये जा सकेंगे।
संजय बारु ने अपनी पुस्तक एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर मे वस्तुतः भारत के संसदीय लोकतंत्र को दुर्घटनाग्रस्त किया है। आज भारतीय लोकतंत्र लहूलुहान है। उपचार के लिए किसी सशक्त, सुदृढ़ व देशभक्त सरकार की ओर आशापूर्ण दृष्टि देख रहा है। किन्तु एक लुटेरी पार्टी और उसके तथा कथित सहायोगी सेक्युलर राजनीतिक दल इस विपदा घड़ी में तुष्टीकरण का जाप करते हुए ऐसी सरकार की सम्भावनाओं के मार्ग में अवरोध खड़े कर रहे हैं। जबकि सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्ट सरकार को पुनः सत्ता में नहीं आने देने के लिए एक होना चाहिये, वे नरेन्द्र मोदी को सत्ता में नहीं आने के लिए एक हो रहे है। यह भारतीय संसदीय लोकतंत्र की दुर्भाग्यजनक स्थिति है। एक दुर्घटनाग्रस्त लोकतंत्र का उपचार के लिए संवेदनशील होने के बजाय अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए सेक्युलिरिजम के नाम पर जनता को एक काल्पनिक भय से भयभीत कर रहे हैं। यह सब वे इसलिए कर रहे हैं ताकि एक समुदाय विशेष के थोक वोट उनकी झोली में गिर जाये।
नरेन्द्र मोदी के वैवाहिक जीवन को ले कर बवाल मचाने वाला समाचार और प्रिन्ट मीडिया संजय बारु  की पुस्तक पर महज औपचारिक खानापूर्ति कर रहे हैं। कुछ अखबार व समाचार चेनलों ने तो आश्चर्यजनक रुप से चुप्पी साध रखी है। जबकि कुछ समाचार चेनल दरबारियों को ला कर हल्ला मचा रहे हैं, जो अपने मालिक के विरुद्ध कुछ भी लिखना और बोलना पसंद नहीं करते। परन्तु इस गम्भीर विषय पर सार्थक और सारगर्भित बहस से सभी कतरा रहे हैं। ऐसा लग रहा जैसे कांग्रेसियों के अलावा इन्हें भी सांप सूंघ गया है। यह भारतीय लोकतंत्र को राजतंत्र में तब्दील करने का प्रयास है, जो यह आभास दिला रहा है कि यदि हम जागरुक नहीं रहें और ऐसे देशद्रोही तत्वों को जाने अनजाने समर्थन देते रहें तो एक दिन धीमी गति से चल कर आ रहा अधिनायकतंत्र भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचल कर रख देगा।
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनता किसी पार्टी पर विश्वास  कर शासन के साथ-साथ देश के खजाने की चाबी और प्राकृतिक संसाधन सौंपती है। परन्तु यदि कोई सरकार जनता के विश्वास के साथ छल करते हुए खजाने में रखे हुए जनता के धन की चोरी करती है और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग देश हित में करने के बजाय इसकी बंदरबाट करती है, तो इसका सीधा मतलब हैं, शासको की नीयत में खोट हैं। उन्होने शासन का अधिकार मांग कर जनता के साथ विश्वासघात किया है। वे राजनेता नहीं, बल्कि राजनेता के वेश में लुटरे हैं। वे राजधर्म निभाने नहीं, अपितु एक संगठित गिरोह बना कर सार्वजनिक धन को लूटने आये हैं। खुली और बेशर्म लूट ने दस वर्षों में देश को कंगाली के कगार पर पहुंचा दिया। देशवासियों को महंगाई की ऐसी दुखद पीड़ा झेलनी पड़ रही है, जिसकी कभी किसी ने कल्पना ही नहीं की थी।
देश के नागरिकों के साथ भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे भ्रष्ट सरकार इसलिए दगा करती रही, क्योंकि यह सरकार उन तथाकथित सेक्युलर और तुष्टीकरण की राजनीति को महत्व देने वाले राजनीतिक दलों की बैसाखी के सहारे टिकी हुई थी, जिनके लिए राजनीति और सत्ता देश से बढ़ कर है। तुष्टीकरण और सेक्युलिरिजम केें नकाब के नीचे लुटेरे अपने सारे पापों को छुपा कर फिर सत्ता में आने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। उन्हें अपने भावी सहयोगियों से भी पूरा समर्थन मिल रहा है। देश के दुश्मन राष्ट्र भी ढुलमुल और कमज़ोर भारत सरकार चाहते हैं, ताकि उनके घृणित मकसद पूरे होते रहें। वहीं योरोपियन देश व अमेरिका भी सक्षम भारत सरकार के पक्षधर नहीं है, क्योंकि इससे उनके व्यापारिक हित प्रभावित होते हैं। देश के अधिकांश मीडिया समूह पर विदेशी व्यापारियों का नियंत्रण है और वे भी एक लुटेरी सरकार का मौन समर्थक बने हुए हैं। भारत की जनता को जागरुक हो कर अपने मत का सही प्रयोग करना चाहिये और उस पार्टी को आंशिक ही नहीं पूरी तरह ठुकरा देना चाहिये, जिसने देश की गरीब जनता का अरबों रुपया लूटा है और भविष्य में सता में आ कर अपने इसी उपक्रम को जारी रखना चाहती है।
भारत की जनता हक़ीकत को समझ गयी है। वह अपने साथ छल करने वाले अपराधियों को पहचान गयी है। लोकसभा के चुनावों के दौरान जो भारी मतदान हो रहा है, उससे लगता है, आक्रोश से भरा हुआ गुब्बारा फूट रहा है। अब तक हुए मतदान में जन आक्रोश की आंधी की झलक दिखाई दे रही है। इसे सुनामी कहें या लहर, पर यह जरुर है कि जनपवन के तीव्र वेग से सत्ता तम्बु उखड़ जायेंगे। अपने आपको बचाने की लाख कोशिश करें, प्रतिद्वंद्वियों पर चाहे जितने झूठे, अर्नगल वे बेहुदे आरोप लगायें, उनके सारे हथकंड़े बेअसर हो रहे हैं। जो तिकड़म से सेक्युरिजम के नाम पर एकजुट हो कर नरेन्द्र मोदी को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, वे सभी एक ही थेल्ली के चट्टे बट्टे हैं और सभी लुटेरों को बचाने में लगे हैं। इनकी कोशिश निष्फल करने के लिए यह जरुरी है कि अब चुनावों के अगले चरण में इन्हें इतने जोर का धक्का दिया जाय कि ये गहरे समंदर में डूब जाय और फिर कभी भारत को लुटने के लिए राजनीति के तंबू गाड़ने की कोशिश नहीं करें। साथ ही, उनके उन सहयोगियों को भी सबक सिखाना चाहिये, ताकि वे समझ जायें कि वे कितनी भी चालाकी क्यों न करें, देश के संसाधनों को लूटने वालें लुटेरों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग दे कर उन्होंने अपनी भी साख गवांई है। और जो भ्रष्टव्यवस्था को बदलने का नारा लगाते हुए राजनीति करने आयें थे, लुटेरों के सहयोगी बन कर उन्होंने देश की जनता को धोखा दिया है, उनकी नयी खुली राजनीति की दुकान को उनके विरुद्ध मतदान कर बंद करवानी चाहिये।

Friday, 4 April 2014

तुष्टीकरण नहीं, हमे बेहतर कल की गारन्टी चाहिये

गुजरात के घाव अब सूख गये हैं, किन्तु वोटों के लिए अब भी उन्हें कुरेदने से बाज नहीं आ रहे हैं। जबकि मुजफ्फरनगर के ताजा घाव तो रिस रहें हैं, उन पर मरहम लगाने के लिए परहेज कर रहे हैं ? सरेआम बोटी-बोटी काटने वाले को क्षमादान और न्यायालय द्वारा नरेन्द्र मोदी को निर्दोष साबित करने पर भी अपराधी ठहराने की हठधर्मिता, यह किस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता है ? कब तक तुष्टीकरण के बहाने सच को सच और झूठ को झूठ कहने से परहेज किया जाता रहेगा ? क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब सिर्फ वोटों की सियासत ही है ? यदि इसका उत्तर ‘हां’ है, तो निश्चित रुप से सियासी लाभ के लिए एक समुदाय विशेष को देश की समस्याओं से अलग किया जा रहा हैं। क्या महंगाई की पीड़ा सभी नागरिकों को नहीं झेलनी पड़ रही है ? क्या सरकारी भ्रष्टाचार से सभी को मुक्ति नहीं चाहिये ? क्या सभी को देश का विकास नहीं चाहिये ? बेहतर भविष्य की गारन्टी नहीं चाहिये। कब तक नागरिकों की अहमियत को केवल वोट बैंक से ज्यादा नहीं समझा जायेगा ? क्या भारतीय अल्मपंसख्यक थोक वोटों की मंड़ी है, जिन्हें जनावरों की तरह अपने पक्ष में वोट देने के लिए हमेशा हांका जाता रहेगा ? जब पूरा देश व्यवस्था परिवर्तन के लिए उत्कंठित है, तब ऐसा क्यों माना जा रहा है कि कुशासन व भ्रष्ट शासन से पीडि़त होने के बाद भी वह विकास और बेहतर भविष्य के नाम पर भारत का अल्पसंख्यक समुदाय अन्य पार्टी को वोट नहीं देगा ? यह क्यों माना जा रहा है कि अलपसंख्यक समुदाय हमारी जागीरी हैं और ये हमेशा हमे ही वोट देते रहेंगे ?
दुर्भाग्य से आज़ादी के छियांसठ वर्ष बाद भी अपने क्षुद्र सियासी लाभ के लिये अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक विशेषण लगा कर भारतीय नागरिकों की नागरिकता के विभाजन को अक्षुण्ण रखा जा रहा है। क्यों धर्म के आधार पर नागरिकों की पहचान को विभाजित रखा जा रहा है ? जबकि भारतीय संस्कृति तो विश्व को ही अपना कुटुम्ब मानती है, फिर उपासना पद्धति के आधार पर नागरिकों का कैसे विभाजन किया जा सकता है ? लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जब तक देश के नागरिकों की नागरिकता विभाजित की जाती रहेगी, उसके सुफल नहीं मिल पायेंगे। अयोग्य और निकृष्ट लोग वोट बैंक के आधार पर राजनेता बनते रहेंगे, क्योंकि बेहतर कार्यों से नहीं, जवाबदहेही निभाने से नहीं, वरन तुष्टीकरण के बहाने उन्हें राजनीतिक शक्ति मिलती रहेगी।
हम इस मिथक को तोड़ सकते हैं। हमे उन्हें कह सकते हैं, ‘तुष्टीकरण नहीं, बेहतर भविष्य की गारन्टी दीजिये । हमें अपनी समस्याओं से निज़ात दिलाने का वचन दीजिये। सुशासन का वादा कीजिये। अतः सियासत भले ही हमे अपने मतलब के लिए अलग करती रहे, परन्तु अब हमारे बीच खड़ी की गयी नफरत और अविश्वास की दीवारों को तोड़ कर राष्ट्रहित में एक होना होगा। क्योंकि सामुहिक निर्णय से ही भ्रष्ट शासन व्यवस्था बदली जा सकती है। अपने सियासी लाभ के लिए कोई राजनीतिक दल सुरक्षा के नाम पर जानबूझ कर भ्रमित कर भयभीत करने का प्रयास करेगा, हम एकजुट हो कर उसके घृणित प्रयास को निष्फल कर देंगे।
क्योंकि हम सब एक हैं। न अल्पसंख्यक हैं, न बहुसंख्यक हैं, हम एकसंख्यक भारतीय हैं। हमारे पुुरखे यहीं जनमे। इसी माटी में उन्हें दफनाया या जलाया गया। हमारा जन्म भी यहीं हुआ। हमे एक साथ यहीं जीना और मरना है। यह देश हमारा है। हम सभी भारतीय नागरिक हैं। हमारे दुख-सुख एक से हैं। हमारी समस्याएं साझा हैं। हम मिल कर ही अपनी समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं। यदि हम एक हो कर अपने बेहतर भविष्य के लिए निर्णय लेंगे, तो भारत की राजनीतिक व्यवस्था बदल जायेगी। अपनी काबलियत के बाजय वोट बैंक के सहारे चुनाव जीतने की निकृष्ट कोशिश समाप्त हो जायेगी। भारत की राजनीति की फिज़ा बदल जायेगी।
आज़ादी के बाद कांग्रेस पार्टी ने मुसलमानों की रहनुमा बन कर पांच तोहफे दिये- ‘ असुरक्षा, अशिक्षा, गरीबी, पिछड़ापन और मजहबी जुनून। ये तोहफे कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुए, जिससे वर्षों तक उसे मुसलममानों के थोक वोट मिलते रहें और वह सत्ता सुख भोगती रही। अपनी अर्कमण्यता को छुपा कर चुनाव जीतने का आसान नुस्खा हाथ लग गया था। परन्तु जब उन्हें अहसास हुआ कि जो तोहफे उन्हें दिये गये थे, वे दरअसल श्राप थे, जिसके कारण उनकी हालत बद से बदत्तर हो गयी है। कांग्रेस से जब तक मोहभंग हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कुछ प्रदेशों में उनके आंसू पौंछने के लिए नये रहनुमा आ गये, परन्तु पूरे देश में मजबूरन उन्हें कांग्रेस पर ही भरोसा करना पड़ा।
पिछले बीस वर्षों से नये रहनुमाओं को भी परखा जा चुका है। उन्हें अपने श्रापों से मुक्ति नहीं मिली है। अलबता श्राप भी नये रहनुमाओं की सियासत के लिए आवश्यक हो गये। उनकी निगाहों में भी मुसमानों की अहमितयत वोट बैंक से ज्यदा नहीं हैं। पूरे देश में जब शांति हैं और कहीं पर साम्प्रदायिक तनाव नहीं हैं, तब अपनी अकर्मण्यता को छुपाने के लिए जानबूझ कर अखिलेश सरकार ने मुजफ्फर नगर के घाव दिये, ताकि अगले चुनावों में मुस्लिम समुदाय के मन में असुरक्षा के भाव जगा गर उनके थोक वोट लिये जा सकें। मुजफ्फर नगर त्रासदी यह नसहीहत देती है कि सियासत किसी की सगी नहीं होती। नागरिक तो सियासी  चौसर के बेजान मोहरे हैं, जिनका उपयोग बाजियां जीतने के लिए किया जाता है।
साम्प्रदायिक विद्वेस की आग जलाना, भड़काना और नागरिकों को आग में झुलसने के लिए छोड़ देन कीे कोशिश भारतीय सियासत की सबसे गंदी तस्वीर है। अखिलेश सरकार ने जो पाप किया है, वह अक्षम्य है, किन्तु फिर भी बड़ी बेशर्मी से अपने गुनाहों को कबूल करने के बजाय अपने आपको अब भी मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा घोषित करने की अभद्र कोशिश की जा रही है। परन्तु अखिलेश सरकार अपना असली रुप उजागर कर चुकी है, जो राजनैताओं से सावधान रहने की चेतावनी देते हुए कहती हैं, उन्हें चुनों जो योग्य हो, सक्षम हो, जिम्मेदारी निभाने की क्षमता रखते हों, उन्हें नहीं, जो वोट बैंक के सहारे ही सता सुख का लुत्फ उठाने के लिए प्रतिबद्ध हों।
अब समय आ गया है, जब मुस्लिम समुदाय को सियासी चैसर का मात्र मोहरा नहीं बने रहना है, अपितु सभी के साथ कदम से कदम मिला कर चलना है। एक नये भारत के निमार्ण में सहयोगी बनना है। उन्हें एक ही स्वर में कहना है, हमें तुष्टीकरण नहीं, कांग्रेस द्वारा दिये गये श्राप – असुरक्षा, अशिक्षा, गरीबी, पिछड़ापन और मजहबी जुनून से मुक्ति चाहिये। हमारे बच्चों को अच्छी तामिल, रोजगार और सनहरा भविष्य चाहियें। अतः हम उसी राजनीति पार्टी को वोट देंगे, जो सुशासन का वादा करेगी। समस्याओं से निज़ात दिलाने का भरोसा जगायेगी। आज की परिस्थितियों में यही मनःस्थिति देश के हित के लिए उपयुक्त होगी।