क्या
दस वर्ष तक प्रधानमंत्री पद और संवैधानिक संसधाओं की अवमानना करने वाले एक
निरंकुश, अभिमानी सत्ता केन्द्र को फिर राष्ट्र सौंप दे, जिनकी निष्ठा अब
संदेहास्पद बन गयी है ? दस वर्ष पूर्व सत्ता सौंपते समय जो आशंका जाहिर की
गयी थी, वह सच साबित हुई है। भारत राष्ट्र की सम्प्रभुता को आघात पहुंचाया
गया है। देश की निर्धन जनता के साथ दगाबाजी हुई है। इस्ट इंडिया कम्पनी का
ही एक प्रतिरुप धीमे कदमों से चलता हुआ, हमें आपस में बांट, चापलुस
दरबारियों की शह से सत्तासीन हो गया। पुतले को प्रधानमंत्री बना कर शासन की
सभी शक्तियों को छीन लिया। देश के संसाधनों को जम कर लूटा। विरोध को ताकत
से और स्वाभ्मिानी, राष्ट्रभक्तों जन सेवकों की आवाज को सत्ता के दम्भ से
कुचलने की अनेको बार कोशिश की गयी। न्यायाल की अवमानना को कई बार दोहराया
गया। एक लोकतांत्रिक पार्टी को पूरी तरह प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में
तब्दील कर दिया गया और पार्टी नेता आज्ञाकारी अनुचर की तरह मालिक की हर
आज्ञा को शिरोधार्य करते रहे।
क्या साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर करने के बहाने फिर उसी संदेहास्पद व्यक्तित्व को भारत सौंप दें, जिसने भारत को दुनियां का भ्रष्टतम और दरिद्रतम राष्ट्र बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ? जिसने भारत की गरीब जनता को मात्र भिखारी समझा, जिन्हें सरकारी कृपा की खैरात बांट कर लुभाया जा सकता है। लालच दे कर उनके वोट खरीदे जा सकते हैं। उन्हें नहीं, तो क्या उन राजनीतिक पार्टी के क्षत्रपो को शासन सौंप दे, जिसके पास तीस से अधिक सांसद नहीं होंगे और जो प्राइवेट लिमिटेड पार्टी की कृपा से ही सरकार चला सकेंगे ? क्या एक पुतले को हटा कर दूसरे पुतले को शासन सौंपना आज की परिस्थितियों में उपयुक्त होगा ? क्या ऐसी सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष हो कर देश की समस्याओं का समाधान खोज सकती है ?
जनता द्वारा किसी पार्टी या व्यक्ति के पक्ष में दिये गये एक-एक वोट का महत्व होता है। इसी वोट से देश की सेवा का अधिकार मिलता है, जिसे राजनीतिक पार्टियां सत्ता के उपभोग करने का अधिकार समझती है। इसी वोट के आधार पर देश की बाह्य और आंतरिक सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधान, खजाना, उद्याोग, व्यापार, न्याय व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थय की जिम्मेदारियों को सही ढं़ग से निष्पादन करने का अधिकार दिया जाता है। क्या अपने बहुमूल्य वोट की कीमत समझे बिना भावुक या भ्रमित हो कर फिर उन्हीं लुटेरो के पक्ष में वोट दें दे, जो जिम्मेदारियों को ओढ़ने में पूर्णतया अक्षम साबित हुए हैं। जिनके भ्रष्ट आचरण के कारण पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है। जिनके माथे पर देश की अर्थव्यवस्था को बरबाद करने का कलंक लगा हुआ है। जिन लोगों का मकसद शासन की शक्तियां प्राप्त कर अपने लिए मात्र धन कमाना हैं और उन देशी और विेदेशी कम्पनियों को उपकृत करना हैं, जिनका मकसद प्रदत्त कानूनों का उल्लघंन कर अत्यधिक मुनाफा बटोरना है।
छल-कपट, धनबल, तिकड़म और जनता को भ्रमित करने के सारे उपक्रम कर पुनः सत्ता में आने के लिए लुटेरे व्यग्र दिखाई दे रहे हैं। अपने कुचक्र को सफल होने में उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी है। भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां उनके कुचक्र में सहयोगी बनी हुई। समाचार मीडिया ने राजनीति से जुड़े सारे समाचारों का व्यावसायिकरण कर दिया है। गम्भीर मुद्धो से कन्नी काटना और छिछली, बेतुकी और भद्दी बातों को उछालना ही उन्होंने अपना मकसद बना लिया है। मीडिया चेनल बातो का बतंगड़ बना कर टीआरपी बढाने में लगे हैं। कुछ चेनल तो राजनीतिक पार्टियों के अघोषित प्रचारक बन गये हैं।
राजनेता मोदी विरोध के नाम पर नैतिकता और शिष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ गये हैं। तरह-तरह की शब्दावली से एक व्यक्तित्व को भयावह वह घृणास्पद बनाना ही अनेको राजनेताओं का मूल उद्धेश्य रह गया है। बारह वर्ष पूर्व हुए गुजरात दंगो के नाम अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेकने वाले यह भूल जाते हैं कि न्यायालय ने मोदी को तो दोष मुक्त कर दिया है, किन्तु जिन्होंने एक सौ पच्चीस करोड़ जनता के साथ छल कर देश के संसाधनों और सरकारी खजाने को लूटा हैं, उन्हें न्यायालय ने निर्दोष साबित नहीं किया हैं। गुजरात मामले में सरकारी जांच एंजेसिंयों की पूरी ताकत झोंकने के बाद भी मोदी को अपराधी घोषित नहीं कर पाये, किन्तु प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए उन्हीं सरकारी एजंसियों से आर्थिक अपराधों को लाख छुपाने की कोशिश करने पर भी छुपा नहीं पाये। यदि सत्ता पर नियंत्रण हट गया, तो इन्हें डर है कि सारे रहस्यों पर से पर्दा उठ जायेगा। जनता के सामने नंगे हो जायेंगे। फिर कभी जनता के सामने जा कर वोट नहीं मांग पायेंगे।
यूपीए गठबंधन ने अपने दस वर्षों की उपलब्धियों को गिना कर, जनहित में भावी नीतियों की घोषणा कर जनता को लुभाने का उपक्रम छोड़ दिया है। बस एक ही नीति रह गयी है- मोदी को रोको। बताया यह जा रहा है कि इस व्यक्ति के सत्ता में आने से अनर्थ हो जायेगा, किन्तु वास्तविकता यह है कि ये भीतर ही भीतर डरे हुए हैं, क्योकि इन्होंने जो अरबों रुपयों का गबन किया है, उससे इनकी रातों की नींद उड़ गयी हैं। वे जानते हैं कि सत्ता नहीं रही, तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। और जो राजनेता मोदी को रोकने के लिए सुर में सुर मिला रहे हैं, वे भी मोदी को इसलिए रोकना चाहते हैं, क्योंकि वे यदि सत्ता में आ गये, तो प्रान्तों में उनका सारा खैल चौपट हो जायेगा। सत्ता पर उनका नियंत्रण ढि़ला पड़ जायेगा। उनकी सरकारों पर संकट मंड़राने लगेगा। अधिकांश राजनेता और राजनीतिक दल देश हित के बजाय अपना स्व हित ज्यादा देख रहे हैं और मोदी के नाम से जनता को डराने की भरसक कोशिश में लगे हुए हैं।
इस समय भारत की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत खराब है। उ़द्याोगों पर मंदी की काली छाया मंडरा रहीं है। सरकार की घपलों-घोटालों की नीति के कारण कई महत्वपूर्ण बिजली और सड़क परियोजनाएं अधुरी पड़ी हुई है। महंगाई विस्फोटक रुप से बढ़ी है और इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहा है। देश के करोड़ो नौजवान बैरोजगार हो कर घर बैठे हैं। पूरे देश में देशी-विदेशी आतंकवादियों ने अपना सुदृढ़ नेटवर्क बिछा दिया है। वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के कारण प्रान्तीय सरकारें व केन्द्र इनकी गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। पाकित्सतान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अफगानिस्तान से अमरीकी सेना हटने के बाद भारत आतंकवादियों का बहुत बड़ा हब बन जायेगा।
मोदी को रोकने के लिए राजनेता चाहे जो उपक्रम करें, जनता यदि ठान लें तो उन्हें कोई नहीं रोक पायेगा। क्योंकि आज की दुरुह परिस्थितियों में देश के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हमे आसन्न चुनौतियों से निपटने के लिए केन्द्र में सुदृढ़, जवाबदेय और भरोसे वाली सरकार चाहिये, जो सुशासन दे सके। जो पूर्ण प्रतिबद्धता से देश के विकास का संकल्प ले सकें। जिसकी ईमानदारी, कर्मठता और प्रशासनिक क्षमता पर कोई प्रश्न चिन्हें नहीं लगे हों। लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या राजनीतिक दल को सत्ता में आने से रोकने का अधिकार सिर्फ जनता को हैं, किन्तु किसी को रोकने का नारा देने वाले राजनेता यह भूल जाते हैं कि भारत की जनता अब परिपक्क हो गयी है, उसे भ्रमित करने के दिन अब लद रहे हैं। जनता का दिल जनता की समस्याओं को हल करने और सुशासन दे कर ही जीता जा सकता है।
क्या साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्ता से दूर करने के बहाने फिर उसी संदेहास्पद व्यक्तित्व को भारत सौंप दें, जिसने भारत को दुनियां का भ्रष्टतम और दरिद्रतम राष्ट्र बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ? जिसने भारत की गरीब जनता को मात्र भिखारी समझा, जिन्हें सरकारी कृपा की खैरात बांट कर लुभाया जा सकता है। लालच दे कर उनके वोट खरीदे जा सकते हैं। उन्हें नहीं, तो क्या उन राजनीतिक पार्टी के क्षत्रपो को शासन सौंप दे, जिसके पास तीस से अधिक सांसद नहीं होंगे और जो प्राइवेट लिमिटेड पार्टी की कृपा से ही सरकार चला सकेंगे ? क्या एक पुतले को हटा कर दूसरे पुतले को शासन सौंपना आज की परिस्थितियों में उपयुक्त होगा ? क्या ऐसी सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष हो कर देश की समस्याओं का समाधान खोज सकती है ?
जनता द्वारा किसी पार्टी या व्यक्ति के पक्ष में दिये गये एक-एक वोट का महत्व होता है। इसी वोट से देश की सेवा का अधिकार मिलता है, जिसे राजनीतिक पार्टियां सत्ता के उपभोग करने का अधिकार समझती है। इसी वोट के आधार पर देश की बाह्य और आंतरिक सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधान, खजाना, उद्याोग, व्यापार, न्याय व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थय की जिम्मेदारियों को सही ढं़ग से निष्पादन करने का अधिकार दिया जाता है। क्या अपने बहुमूल्य वोट की कीमत समझे बिना भावुक या भ्रमित हो कर फिर उन्हीं लुटेरो के पक्ष में वोट दें दे, जो जिम्मेदारियों को ओढ़ने में पूर्णतया अक्षम साबित हुए हैं। जिनके भ्रष्ट आचरण के कारण पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है। जिनके माथे पर देश की अर्थव्यवस्था को बरबाद करने का कलंक लगा हुआ है। जिन लोगों का मकसद शासन की शक्तियां प्राप्त कर अपने लिए मात्र धन कमाना हैं और उन देशी और विेदेशी कम्पनियों को उपकृत करना हैं, जिनका मकसद प्रदत्त कानूनों का उल्लघंन कर अत्यधिक मुनाफा बटोरना है।
छल-कपट, धनबल, तिकड़म और जनता को भ्रमित करने के सारे उपक्रम कर पुनः सत्ता में आने के लिए लुटेरे व्यग्र दिखाई दे रहे हैं। अपने कुचक्र को सफल होने में उन्होंने पूरी ताकत झोंक दी है। भारत की अधिकांश राजनीतिक पार्टियां उनके कुचक्र में सहयोगी बनी हुई। समाचार मीडिया ने राजनीति से जुड़े सारे समाचारों का व्यावसायिकरण कर दिया है। गम्भीर मुद्धो से कन्नी काटना और छिछली, बेतुकी और भद्दी बातों को उछालना ही उन्होंने अपना मकसद बना लिया है। मीडिया चेनल बातो का बतंगड़ बना कर टीआरपी बढाने में लगे हैं। कुछ चेनल तो राजनीतिक पार्टियों के अघोषित प्रचारक बन गये हैं।
राजनेता मोदी विरोध के नाम पर नैतिकता और शिष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ गये हैं। तरह-तरह की शब्दावली से एक व्यक्तित्व को भयावह वह घृणास्पद बनाना ही अनेको राजनेताओं का मूल उद्धेश्य रह गया है। बारह वर्ष पूर्व हुए गुजरात दंगो के नाम अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेकने वाले यह भूल जाते हैं कि न्यायालय ने मोदी को तो दोष मुक्त कर दिया है, किन्तु जिन्होंने एक सौ पच्चीस करोड़ जनता के साथ छल कर देश के संसाधनों और सरकारी खजाने को लूटा हैं, उन्हें न्यायालय ने निर्दोष साबित नहीं किया हैं। गुजरात मामले में सरकारी जांच एंजेसिंयों की पूरी ताकत झोंकने के बाद भी मोदी को अपराधी घोषित नहीं कर पाये, किन्तु प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए उन्हीं सरकारी एजंसियों से आर्थिक अपराधों को लाख छुपाने की कोशिश करने पर भी छुपा नहीं पाये। यदि सत्ता पर नियंत्रण हट गया, तो इन्हें डर है कि सारे रहस्यों पर से पर्दा उठ जायेगा। जनता के सामने नंगे हो जायेंगे। फिर कभी जनता के सामने जा कर वोट नहीं मांग पायेंगे।
यूपीए गठबंधन ने अपने दस वर्षों की उपलब्धियों को गिना कर, जनहित में भावी नीतियों की घोषणा कर जनता को लुभाने का उपक्रम छोड़ दिया है। बस एक ही नीति रह गयी है- मोदी को रोको। बताया यह जा रहा है कि इस व्यक्ति के सत्ता में आने से अनर्थ हो जायेगा, किन्तु वास्तविकता यह है कि ये भीतर ही भीतर डरे हुए हैं, क्योकि इन्होंने जो अरबों रुपयों का गबन किया है, उससे इनकी रातों की नींद उड़ गयी हैं। वे जानते हैं कि सत्ता नहीं रही, तो वे कहीं के नहीं रहेंगे। और जो राजनेता मोदी को रोकने के लिए सुर में सुर मिला रहे हैं, वे भी मोदी को इसलिए रोकना चाहते हैं, क्योंकि वे यदि सत्ता में आ गये, तो प्रान्तों में उनका सारा खैल चौपट हो जायेगा। सत्ता पर उनका नियंत्रण ढि़ला पड़ जायेगा। उनकी सरकारों पर संकट मंड़राने लगेगा। अधिकांश राजनेता और राजनीतिक दल देश हित के बजाय अपना स्व हित ज्यादा देख रहे हैं और मोदी के नाम से जनता को डराने की भरसक कोशिश में लगे हुए हैं।
इस समय भारत की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत खराब है। उ़द्याोगों पर मंदी की काली छाया मंडरा रहीं है। सरकार की घपलों-घोटालों की नीति के कारण कई महत्वपूर्ण बिजली और सड़क परियोजनाएं अधुरी पड़ी हुई है। महंगाई विस्फोटक रुप से बढ़ी है और इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहा है। देश के करोड़ो नौजवान बैरोजगार हो कर घर बैठे हैं। पूरे देश में देशी-विदेशी आतंकवादियों ने अपना सुदृढ़ नेटवर्क बिछा दिया है। वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति के कारण प्रान्तीय सरकारें व केन्द्र इनकी गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। पाकित्सतान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अफगानिस्तान से अमरीकी सेना हटने के बाद भारत आतंकवादियों का बहुत बड़ा हब बन जायेगा।
मोदी को रोकने के लिए राजनेता चाहे जो उपक्रम करें, जनता यदि ठान लें तो उन्हें कोई नहीं रोक पायेगा। क्योंकि आज की दुरुह परिस्थितियों में देश के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हमे आसन्न चुनौतियों से निपटने के लिए केन्द्र में सुदृढ़, जवाबदेय और भरोसे वाली सरकार चाहिये, जो सुशासन दे सके। जो पूर्ण प्रतिबद्धता से देश के विकास का संकल्प ले सकें। जिसकी ईमानदारी, कर्मठता और प्रशासनिक क्षमता पर कोई प्रश्न चिन्हें नहीं लगे हों। लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या राजनीतिक दल को सत्ता में आने से रोकने का अधिकार सिर्फ जनता को हैं, किन्तु किसी को रोकने का नारा देने वाले राजनेता यह भूल जाते हैं कि भारत की जनता अब परिपक्क हो गयी है, उसे भ्रमित करने के दिन अब लद रहे हैं। जनता का दिल जनता की समस्याओं को हल करने और सुशासन दे कर ही जीता जा सकता है।