Wednesday, 22 May 2013

सत्य की निरंतर खोज का नाम ही हिन्दू-धर्म है

हिन्दू-धर्म कोई संप्रदाय या पूजा पद्धति नहीं है। हिन्दुत्व एक सांस्कृतिक धारा है जो सभी को जोड़ने का कार्य करता है। सत्य की निरंतर खोज का नाम ही हिन्दू-धर्म है। यही विचार स्वामी विवेकानन्दजी के थे, जो आज के युग में भी प्रासंगिक और आवश्यक है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति द्वारा आयोजित प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन में व्यक्त किए।
स्वामीजी ने विदेश की धरती पर जाकर उस समय भारत के प्रति प्रचलित धारणा – भारत के लोग जंगली, बर्बर और गवांर है, को नकारा और वास्तविक भारतीय दर्शन का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि मैं उनका प्रतिनिधि हूँ जो प्राणी मात्र के सुख का चिन्तन करते हैं। भारत का दर्शन वहीं हो सकता है जिसमें सभी के कल्याण की बात हो, जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’, ‘एकम् सत विप्रा बहुधा वदन्ति’ का संदेश देता हो।
स्वामीजी ने आग्रह किया कि ‘शिव भाव से जीव सेवा’ ही भारतीयों का कर्तव्य है। ये भगवा वस्त्र, मठ, मंदिर केवल स्वयं की साधना के लिए ही नहीं है अपितु असहायों, जरूरतमंदो की सेवा करने के लिए है। तुम तभी हिन्दू कहलाने के लायक होगें जब सामने खड़ा व्यक्ति का दु:ख तुम्हें अपना लगे।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने के लिए एक नए ग्रंथ की रचना करनी होगी। महिला शिक्षा पर जोर देना होगा। दुनिया के लोग भारतीय दर्शन को समझने लगे हैं। स्वामीजी की हम इस वर्ष 150वीं जयंती मना रहे हैं। यह विडम्बना का विषय है कि भारत में पैदा हुए युगपुरुष स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को युवा दिवस के रूप में मनाने कि पहल यू. एन. ओ. ने की, फिर इसके बाद भारत में इसकी शुरूआत हुई। विवेकानन्दजी चाहते थे कि भारत दुनिया का नेतृत्त्व करें, किन्तु पहले भारत में रहने वाले असहाय, गरीब और जरूरतमंद की सेवा को प्रभु की भक्ति माने। उन्होंने कहा कि हिन्दू-धर्म व संस्कृति में भेदभाव का कोई स्थान नहीं है।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए “प्रात:काल” समाचार पत्र के मुख्य सम्पादक सुरेश गोयल ने कहा कि यह हमारे लिए बहुत गौरव की बात है कि भारत में युवाओं का प्रतिशत सर्वाधिक है और अगर हमें देश को आगे बढ़ाना है तो इस सामर्थ्यवान युवाशक्ति को आगे लाना होगा। लेकिन हम अपनी युवा पीढ़ी के सामर्थ्य का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, फलस्वरूप हमारे युवा पश्चिमी संस्कृति के वाहक बन गए हैं।
लेफ्टनेंट जनरल नन्दकिशोर सिंह ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
‘हिन्दू एक बड़ा मंच है जिस पर कई संप्रदाय खड़े हैं’
हिन्दू संकुचित शब्द नहीं है। पाश्च्चात्य संस्कृति से प्रभावित व्यक्ति, विश्व के अन्य सम्प्रदायों से तुलना कर हिन्दू को भी सम्प्रदाय मानते हैं। यह उनकी बहुत बड़ी भूल है, क्योंकि हिन्दू तो एक बड़ा मंच है जिस पर कई सम्प्रदाय खड़े हैं, ऐसा प्रतिपादन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने किया। स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह समिति, उदयपुर द्वारा 27 अप्रैल, 2013 को सामाजिक सद्भावना बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में डॉ. कृष्ण गोपाल मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे।
पराधीनता के काल में प्राण रक्षा के लिए जातिगत व्यवस्था बनाकर कई प्रकार की व्यवस्थाऐं बनाई गईं, जो आज के परिपेक्ष्य में कुरीतियों के रूप में दिखाई देती हैं। आवश्यकता इस बात है कि स्वाधीनता के पश्चात प्राचीन जंजीरों की आवश्यकता नहीं है। इसलिए कुरीतियां रूपी जंजीरों को तोड़कर समाज में ऐक्यभाव देते हुए आगे बढ़ना चाहिए। जैसे, शरीर के विभिन्न अंगों में विभिन्नता होते हुए भी उनमें होने वाला रक्तसंचार शरीर के ऐक्यभाव को बनाए रखता है। उसी से हमारा राष्ट्रदेव खड़ा होगा। हजार-बारा सौ वर्ष के संघर्षकाल में प्राण रक्षा के लिए बहुमूल्य संस्कार छूट गए, जिन्हें पुन: संजोना होगा, ऐसा उन्होंने आवाहन किया।सद्भावना बैठक की भूमिका डॉ. भगवति प्रकाश ने रखी व विभिन्न समाजों के पधारे हुए प्रतिनिधियों ने अपने समाज में किए जा रहे नवाचारों को व्यक्त किया। 76 समाजों के 215 प्रतिनिधियों ने बैठक में भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन रमेश शुक्ल ने किया व एकल गीत डॉ. कोशल शर्मा ने प्रस्तुत किया।

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