ये है गाँधी का असली चेहरा..........
23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम भगतसिंह को फांसी के तख्ते पर ले जाने
वाला पहला जिम्मेवार सोहनलाल वोहरा हिन्दू की गवाही थी ।
यही गवाह बाद में इंग्लैण्ड भाग गया और वहीं पर मरा । शहीदे आजम भगतसिंह
को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था, ‘‘हमें
ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह
की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम
गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में
होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे । ” अर्थात् गांधी की
परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी ।
इसी प्रकार एक ओर
महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो
गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को
कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को
देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और
सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी ।
जब सन्
1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत
सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया
तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी
जबकि रमैया चुनाव हार गए थे। इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी
लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे
सत्यवादी गांधी ।
इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे
विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी
या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ? गांधी ने अपने जीवन में तीन
आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर
भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई ।
इससे भी बढ़कर जब देश
के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने
उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल
पाखण्डी लिखा है । इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते
हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा ।
यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी ।
इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियों का अपमान है
जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया ।”
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