आज का जगत विज्ञान का जगत है। एक तरफ मानव सभ्यता का विकास और भौतिक समृधि
अपनी उचाई पर है, तो दूसरी तरफ मनुष्य का मन चारित्रिक पतन की अतल गहराई
में है। भोगवादी संस्कृति में उलझा मानव सफलता की नित नई नई परिभाषाओ में
उलझता जा रहा है। आज सफलता का मापदंड है अधिक से अधिक धन ,पद , और
प्रतिष्टा को हासिल किया जाना। नित नए अविष्कार के साथ साथ नित नई कामनायें
राक्षसी सुरमा की तरह मुख फैलाती चली जा रही है। मनुष्य अंतहीन इच्छाओ के
विशाल रेगिस्तान में भटकता जा रहा है। सच्ची शांति और सुख की प्यास से आकुल
व्याकुल व्यक्ति मृग मरीचिका के सामान भ्रमित हो अनेक मानसिक रोगों का
शिकार हो रहा है। चारो तरफ गहरी हताशा , निराशा तथा मानसिक तनाव और उससे
मुक्ति के लिए अल्पकाल के उपाय जैसे दवाइयाँ , नशीली वस्तुएं तथा और भी
बहुत तरह के विवेक शुन्य आनंद ने सामाजिक और उसके नैतिक मूल्यों का तो
दिवालियापन ही ला दिया है। येसे में आज मनुष्य को पुनः अपने अंदर मानवीय
मूल्यों को स्थापित कर एक संवृद्ध तथा सुखद समाज की स्थापना के लिए इस
दिशा में गहराई से विचार करना चाहिए और इस प्रकार जीवन के बदलते संदर्भो
में सफलता के लिए गहन पुरुषार्थ करना चाहिए। यधपि समाज में मानवीय मूल्यों
को स्थापित करने में सरकार की प्रयास शीघ्र सफलता दिलाने में सफल हो सकता
है लेकिन दुर्भाग्यता वश सरकार का हर कृत मानवीय मूल्यों को चारित्रिक पतन
की ओर अग्रसर कर समाज को विघटित ही कर रहा है न कि मानवीय मूल्यों को
स्थापित करने में सहायक।
Ye samaaj ka dosh nahi hai ,waastav me hum aadi ho rahe hai western ,pahnaawe, rahan sahan ,bolchal aur khann paan ka.Ye unke liye sahi ho sakta hai jo us sanskriti me pale badhe hai unke liye nahi jinki sanskriti kuch aur thi aur ye chamak dhamak ke shikar hai.pahle to hum jin sanshkaaron me pale badhe hai wah hamaare charitra me nihit tab hogi jab hum uspe purna wishwaas karenge hamaari siksha pranali isme naakaam ho rahi hai jabki ishi sanskriti ko paschim sampurnta ki drishti se dekhta hai...........
ReplyDeletethanks for such a nice link ,waicharik patan samajik chetna aur vivek ka patan hai jisme har insaan ki barabar ki bhagidaari hoti hai aur hame taknik ke saat wicharon ke aadan pradan me pariwartan laana chahiye ,na ki wicharon me.