क्या हमें अपने आप से यह प्रश्न नहीं करना चाहिए कि जीवन क्या है? हम क्यों
जी रहे है? मात्र आजीविका के लिए , कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लेना, कुछ
व्यवसाय कर लेना, बच्चे पैदा कर लेना, और अत्यधिक यांत्रिक जीवन में बंध कर
क्रमश: ख़त्म होते जाना, क्या यही जीवन है? उच्च प्रतिष्ठा, धन की सम्पनता,
उच्च पद आदि यदि प्राप्त कर भी लिया तो क्या इससे जीवन आनंदमय हो जायेगा?
अभी तक तो देखने में नहीं आया , बल्कि पाने के इस दौड़ में हमारा मन भय,
चिंता, तनाव, उदासी, और कुंठा से ग्रसित हो जाता है तो जीवन में इन
उपलब्धियों का क्या अर्थ रह जाता है? हमें इस बात की तलाश अवश्य करनी चाहिए
कि इससे भी मुक्त कोई एसा जीवन है जहाँ जीवन के सभी संबंधो समाज में रहते
हुए , बिना पलायन के, बिना सघर्ष के एक असीम आनंद, शाश्वत शांति और प्रेम
का संसार हो, निःसंदेह जीवन का यह अदभुत विलक्षण और अगाध साम्राज्य ,
बहुआयामी सामजस्य पूर्ण और अनन्त रहस्यमयी व्यवस्था से ओत-प्रोत है जरुरत
है उसे जानने , पाने, और खोजने की।
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