शंकराचार्य ने सर्वोच्च सत्ता 'ब्रह्म' को
'नेति-नेति' से संबोधित किया है। सरल शब्दों में "न की भी न"। अद्वैत का
अर्थ होता है- "कोई दूसरा नहीं होना"। 'एक' की स्वीकार्यता में अन्य की
उपस्थिति का संकेत भी होता है। निर्विकार, निराकार, निरुद्देश्य, शिव
स्वरूप असीमित शक्ति पुंज से भेंट करने और माया से मुक्त होने के लिए यह
छोटा सा कर्मकांड कितना प्रभावी है। इसे समझने के लिए एक ओर कई सदियाँ भी
कम हैं और वहीँ एक पल ही काफी है।
महा
स्नान का पर्व 'कुंभ' हमें इसी माया से मुक्ति की ओर प्रेरित करता है।
जहां हमें समस्त भौतिक वस्तुओं को त्याग कर अकेले ही शांत-ठहरे जल में उतर
जाने और समस्त प्रतिच्छायाओं को विलुप्त कर देने को प्रेरित करता है।
अत्यंत छोटे प्रयास से ही बिखर जाने वाले ये माया प्रतिबिंब हमें तब तक ही
सत्य नजर आते हैं जब तक हम हिम्मत जुटाकर जल राशी में उतर नहीं जाते।
प्रत्येक
व्यक्ति का अनुभव उसका निजी अनुभव होता है अतः सत्य जानने की राह पर चल
पड़े जिज्ञासु को किसी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा नहीं होती। यह नितांत
व्यक्तिगत प्रयास होता है। कुंभ स्नान भी इसी ओर इशारा करता है। इस बार
कुंभ स्नान का महापर्व 'महाकुंभ' प्रयाग, इलाहाबाद में मकर संक्रांति (14
फरवरी 2013) से शुरू हो रहा है जो महाशिवरात्रि (10 मार्च 2013) तक चलेगा।
इसमें तीन शाही स्नान (मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी) और सात
पर्व स्नानों मिलाकर 10 प्रमुख स्नान होंगे।
दस
प्रमुख स्नानों में दुनियाभर से दस लाख से ज्यादा लोग गंगा, यमुना और
सरस्वती के संगम स्थल पर डुबकी लगाएंगे। इनमें से अधिकतर सिर्फ डुबकी लगाकर
अपने-अपने गंतव्यों की ओर लौट जाएंगे और इस पावन अवसर को महज एक
सांस्कृतिक और सामाजिक कर्मकांड भर ही मानकर रह जाएंगे। कुंभ स्नान के
दौरान जुटने वाला साधु समाज यहां यही संकेत देने इकठ्ठा होता है कि यह
सिर्फ असाधारण स्नान का पर्व भर नहीं है।
सत्य
के अन्वेषकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है। यहां कवरेज को जुटने वाला
देशी-विदेशी मीडिया भी लोगों की भीड़ और साधुओं की वेशभूषा, स्नान क्रीडा
और उनके कार्य-कलाप का चित्रण और वर्णन करेगा। व्यक्तिगत आंतरिक बदलावों तक
न तो कैमरा पहुंच सकता है न ही विद्वान पत्रकार वर्ग। सर्द सुबह में लगभग
जमे हुए से जल में उतरने के लिए देह का स्वस्थ और ऊर्जावान होना जरुरी है।
इसके लिए युवावस्था से बेहतर कौन सी अवस्था हो सकती है। इसलिए कुंभ स्नान
को 'युवा स्नान' का पर्व पुकारा जाए तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होना चाहिए।
यह
पर्व अंतस निर्मल कर उसको नवीनता प्रदान करता है। बच्चों के लिए यह पर्व
इसलिए महत्वपूर्ण है कि बच्चों के समान जिज्ञासा से भरा खाली मन-मस्तिष्क
लाने वाले ही यहां से सर्वाधिक ग्रहण कर पाते हैं। पिता के कंधों पर सवार
मासूम आंखें कुंभ स्थल पर जुटी भीड़ को देखकर सिहर जरूर सकती हैं लेकिन परम
पिता से भेंट कराने को उत्साहित पिता के मजबूत कंधे उसे साहस और संबल
प्रदान करते हैं। यह प्रयास मानव को महामानव बनाने का है।
भारतवर्ष
की मेधाशक्ति ने कभी भौतिक वाद का समर्थन नहीं किया। चार्वाक दर्शन (आत्मा
को न मानने वाला और देखे पर विश्वास करने वाला ) को सबसे निचले क्रम पर
रखने वाले भारतीय दर्शन में अद्वैतवाद का सर्वोच्च स्थान है। कुंभ स्नान
इसी 'अद्वैतवाद' और 'ब्रह्म' से परिचय प्राप्त करने का प्रारंभिक प्रयास
है।
कुंभ
स्नान पर्व को धर्म विशेष से जोड़कर देखा जाना भी इसके साथ न्याय नहीं
करता। ईश्वर की राह में एक स्थिति ऐसी भी आ सकती है जब समस्त चराचर
संस्कारों का त्याग करना पड़ सकता है। इसमे धर्म भी शामिल हो सकता है। यहां
जुटने वाला साधु समाज भी किसी एक धर्म का ध्वजवाहक नहीं माना जा सकता। साधु
जन धर्म को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उससे बंधे नहीं
होते हैं। भारतीय समाज भी उन्हें इस रूप में स्वीकार करता है।
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