आज एक संपूर्ण व्यक्तित्व की जरूरत है। व्यक्ति में तीन प्रकार की क्षमताएं होती हैं-सहज, अर्जित और ओढ़ी हुई। सहज क्षमता किसी-किसी में होती है। सहज क्षमता जिसमें होती है उसका व्यक्तित्व काफी अंशों में पूर्ण होता है। वह जो कुछ सोचता है, उसे उसी रूप में निष्पन्न कर लेता है। कार्य की निष्पत्ति के लिए न तो निरर्थक दौड़-धूप करनी पड़ती है और न ही वह किसी अवसर को खो सकता है। सहज-समर्थ व्यक्ति अपने काल को इतना उजागर कर देता है कि शताब्दियों-सहस्त्राब्दियों तक वह युग के चित्रपट पर मूर्तिमान रहता है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो बहुत ही साधारण व्यक्तित्व लेकर इस धरती पर आते हैं, किंतु अपने पुरुषार्थ से चमक जाते हैं। उन्हें व्यक्तित्व-विकास के लिए जो भी अवसर मिलता है वे मुक्तभाव से उसका उपयोग करते हैं। इनकी क्षमता अर्जित होती है, फिर भी कालांतर में वह स्वाभाविक-सी बन जाती है। ऐसे व्यक्ति भी अपने समाज और देश को दुर्लभ सेवाएं दे सकते हैं। इसीलिए ऐसे व्यक्तियों के लिए विद्वान डोनाल्ड एम. नेल्सन को कहना पड़ा कि हमें यह मानना बंद कर देना चाहिए कि ऐसा कार्य जिसे पहले कभी नहीं किया गया है, उसे किया ही नहीं जा सकता है। तीसरी पंक्ति में वे व्यक्ति आते हैं, जिनके पास न तो सहज क्षमता होती है और न वे क्षमता का अर्जन ही कर पाते हैं। किंतु स्वयं को सक्षम कहलाना चाहते हैं। कोई दूसरा उन्हें मान्यता दे या नहीं, वे अपने आप महत्वपूर्ण बन जाते हैं। इस आरोपित क्षमता से कभी कोई विकास हो, संभव नहीं लगता।
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