Saturday, 26 December 2015

वह सुवह कभी तो आएगी - हमें उस सुवह का इंतजार है

नया सवेरा। क्षीण आशा की नन्ही किरण, बदलाव की बयार बहने का संकेत दे रही है। ताजा हवा का झोंका सुकून दे रहा है- बहुत हो चुका, अब और नहीं। नफरत की दीवार की मजबूती में नहीं, इसे ढहाने की कोशिश से करोड़ो जिंदगियो की तक़दीर बदल जायेगी। वह सुबुह कभी तो आयेगी- हमे उस सुबुह का इंतज़ार है ।
दो अलग-अलग नाम के देश बन गये, परन्तु बदला कुछ नहीं। न तहजीब बदली, न जुबान बदली। न लहू बदला, न लहू का रंग बदला। रावी व चिनाब वैसी की वैसी ही रही। हिन्दुस्तान से पाकिस्तान आ कर वह अपनी पहचान बदल नहीं पायी। वे पाकिस्तानी नदियां नहीं कहलायी। वे चिनाब और रावी ही रही। उनके पानी का वेग वही रहा। उसका रंग पाकिस्तानी नही बन पाया। हिन्दुस्तान की माटी अपने साथ ले कर आती रही। माटी की खुशबू अपनो की याद दिलाती रही। उस माटी को नहीं कह पाये- दुश्मन देश की माटी इधर क्यों बह कर आ रही हो ? हिमालय से आने वाली ठंडी हवाओं को रोक नहीं पाये। उसे नही कह पाये- उधर ही रहो, यह मुल्क अब तुम्हारा नहीं रहा है।
अड़सठ बरस बीत गये। सौ में सिर्फ बतीस कम। सौ बरस भी बीत जायेंगे, परन्तु हमें अपनी गलतियों को समझने में तब भी देर लगेगी। हम अपनी नासमझी की की़मत का अंदाज़ा भी नहीं लगा पायेंगे। तब तक रावी और चिनाब में बहुत पानी बह जायेगा। और इस पानी में बहुत सारा लहू भी बह जायेगा। पानी में घुल कर लहू  का रंग लाल नहीं रहेगा, परन्तु हमारी नज़रे हमेशा धोखा खाती रहेगी। हम हरदम लुटे-पिटे अपने आपको कोसते रहेंगे, पर यह नहीं सोच पायेंगे कि आगे क्या करना है।
सतसठ वर्षों में चार पीढ़ियां  दर्द का मंजर देख चुकी है। एक पीढ़ी ने बंटवारें की तक़लीफ भोगी। एक पीढ़ी को नफरत की दीवार को मजबूत करने के लिए लडे़ गये जंग के तेवर झेलने पड़े। युवा पीढ़ी दहशद के खूनी खेल की पीड़ा झेल रही है। और वो कोंपले, जो अभी-अभी प्रस्फुटित हुई है- तीन पीढियों की बरबादी का इतिहास पढ़ रही है।
कोई इन्हें आगे बढ़ कर समझाता नहीं कि बहुत हो चुका, अब बस करों। जो बंठा ढ़ार होना था, हो गया- अब बाकी भी क्या बचा है? चार जंग लड़ लिये। बीस बरस से न खत्म होने वाला, एक लम्बा जंग लड़ रहे हैं। इस जंग में कई बेकसूर मारे दिये गये, पर मिला कुछ नहीं। और कभी  कुछ हांसिल भी नहीं होगा।  जिनके अपनो को छिना, उन्हें रुलाया और उनके आंसुओं को देख-देख कर हैवानियत हंसती रही- बस।
खुदा की जन्नत पर सियासी खेल के दांव लगा-लगा कर थक गये, पर हमेशा बाजियां बे-नतिजा रही। अब  खुदा की जन्नत को जन्नत ही रहने देने में भला उन्हें क्या एतराज है? नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे। यदि ऐसा किया गया, तो नफरत की दीवार ढ़ह जायेगी। सियासत का असली चेहरा बेनकाब हो जायेगा। वे बेचारे कहीं के नहीं रहेंगे। क्योंकि वे अनाथ हो जायेंगे। उनके सारे मनसूबों पर पानी फिर जायेगा।
पर हम उन्हें कह तो सकते हैं- बहुत कुछ जल चुका है, परन्तु मिला कुछ नहीं। वहां अब भी जल रही आग हैं।  धुआं है। रुलाई है। आंसुओं का सेलाब है। और अंदर ही अंदर दबी हुई टीस का दर्द है। जवान बेटों के जनाजों का बोझ ढ़ोने वाले थके हुए बुड्ढे़ कंधे हैं। नफरत की कीले लगे ताबुतों में लिटाये गये शहीद जवानों की अंतिम समय में निकली आहें हैं। ये ताबुत जब घाटी से मैदानी गांवों में ले जाये जाते हैं, तब उनके परिजनों की रुलाई बरबस एक सवाल पूछती हैं- कभी यह ताबुत लाने का सिलसिला थमेगा ?
बहुत समय बीत गया, अब बैठ कर हिसाब करने का वक्त आ गया है- क्या खोया-क्या पाया। बहीखाता देखने पर मालूम होगा कि मुनाफा तो कुछ हुआ ही नहीं, अलबता घाटा ज्यादा दिख रहा है। दुनियां में सबसे ज्यादा गरीब होने का खिताब भी हमारे नाम चढ़ा हुआ है। दहशदगर्दी में भी हम सबसे आगे हैं। खून खराबे से सबसे ज्यादा लोग भी हमारे दोनो मुल्कों में मारे जाते हैं। महंगाई और तंगहाली का हाल भी दोनो ओर एक सा है।
बहुत ढूंढ़ लो, फिर भी हमें बही खाते में सिर्फ मौते, गरीबी, और दहशद की इबारत लिखी मिलेगी।  इसे पढ़ लो, और समझ लो। और भविष्य के बारें में भी सोचों कि चार पीढ़ियों ने तो घाटा उठा लिया और पांचवी, छठी भी उठायेगी और यह सिलसिला बदस्तुर जारी रहेगा, या इस पर कभी विराम लगेगा। हां, हम चाहें तो इस पर विराम लगा सकते हैं। हमे सिर्फ इस बात को समझना है कि कौन अपना है और कौन पराया है। कौन हमारा दुश्मन है और कौन हमारा दोस्त है। जब इस हक़ीकत से हम रुबरु हो जायेंगे तब, जो धुंध छायी हुई है- यकायक हट जायेगी। एक नयी सुबहु होगी। यह सुबुह अमन का पैगाम ले कर आयेगी। तब कुछ भी समझाने के लिए बंदूकों से गालियां नहीं दागी जायेगी। सीमा पर खड़ी फौज दुश्मन की नज़र से नहीं दोस्त की नज़र से एक दूसरे को निहारेगी। खुदा ने हमे सांसे बख्सी है, उसे तोड़ने का हक भी उसी को है। जो बिना वजह खुदा का काम खुद करने का हिमाकत करता है, वही इंसानियत का असली दुश्मन है।
गरीबी और अभाव सबसे बड़ी मानवीय दुर्बलताएं है। दुनियां में उसी देश को सम्मान की नज़रों से देखा जाता है, जो इन दोनों दुर्बलताओं से मुक्ति पा लेता है।  फौज की ताकत बढ़ाने से ये ये दुर्बलताएं बढ़ेगी ही,  इनमें कमी नहीं आयेगी। अत: अब पाकिस्तान के शासकों को जनता की नब्ज पहचाननी होगी। यह बात भी समझनी होगी, भारत के साथ दुश्मनी निभाने से कुछ भी हांसिल होने वाला नहीं है। सौ साल और दुश्मनी निभायेंगे,  तो भी सिवाय बरबादी के  कुछ नहीं मिलेगा। उन्हें बरबादी और खुशहाली दोनों में से एक को चुनना है।
हम इधर रहते हैं या उधर- हमारी तकलीफे एक सी है। हमारी समस्याएं साझी है। दोनो ओर जो लोग सियासत से जुडे़ हैं, उनके चेहरे एक से हैं, फिर क्यों हम हम एक दूसरे को नफरत की नज़रों से देखते हैं। कुछ भी हो, हम एक हो कर, एक आवाज़ तो उठा ही सकते हैं- हमे दहशदगर्दी नहीं, अमन चाहिये। बम नहीं, खुशहाली चाहिये। नफरत नहीं मोहब्बत चाहिये। हम उस सुबुह का इंतजार कर रहें’ जब नफरत की दीवार ढ़ह जायेगी। सारे गिलवे-शिकवे दूर हो जायेंगे। एक  दूसरे से दोस्ती का हाथ आवाम बढ़ायेगा। इस अचरज को दूर बैठे हुए हथियारों के सौदागर, वे विदेशी भी देखेंगे, जिन्होंने जानबूझ कर कपट से  हमें बांटा था, ताकि हम सदा कमजोर बने रहें। वे दुष्ट व्यापारी हमें एक दूसरे लड़ाने के लिए अपने हथियार बेचते रहें, जिससे उनकी समृद्धि बढ़े और हमारी गरीबी।
आवाम की की खुशहाली  और मुल्क की तरक्की के लिए मन में नेक नीयत रखते हुए पाकिस्तानी शासक  दोस्ती का हाथ बढ़ायेंगे, तो इस उपमहाद्वीप की  फ़िज़ा बदल जायेगी। एक झटके से नफरत की दीवार ढह जायेगी। एक नयी सुबह होगी।  वह सुबह कभी तो आयेगी। हमे उस सुबह का बेसब्री से इंतजार है, जब करोड़ा जिंदगियों की तकदीर बदल जायेगी।

Wednesday, 16 December 2015

18 पुराण

👏👏 जानिए महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में -
पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं।

उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं।

उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।

महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः  पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

1.ब्रह्म पुराण
ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय  तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं।

इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

2.पद्म पुराण
पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है।

चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है।

इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

3.विष्णु पुराण
विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था।

इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैः

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।
(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।

4.शिव पुराण
शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं।

इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।

5.भागवत पुराण
भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं।

इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।

6.नारद पुराण
नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है।

दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है।

जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।

7.मार्कण्डेय पुराण
अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।

8.अग्नि पुराण
अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं।

इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।

9.भविष्य पुराण
भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है।

इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है।

ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।

10.ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।

11.लिंग पुराण
लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है।

राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।

12.वराह पुराण
वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है।

श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।

13.स्कन्द पुराण
स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं।

इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।

14.वामन पुराण
वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है।

इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।

15.कुर्मा पुराण
कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है।

इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

16.मतस्य पुराण
मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है

17.गरुड़ पुराण
गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।

इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है।

वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है।समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

18.ब्रह्माण्ड पुराण
ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है।

कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है।

भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।.
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Friday, 11 December 2015

भारतीय लोकतंत्र पर राजतंत्र का आक्रमण- जनता मूक दर्शक, लोकतंत्र लहूलुहान

16 मर्इ, 2014 को भारतीय लोकतंत्र, राजतंत्र के बंदीगृह से मुक्त हुआ था। चापलुसों -चाटुकारों के हुजूम से घिरा एक पार्टी परिवार अपने आपको भारत का भाग्य विधाता समझ बैठा था। इस परिवार के मन में यह भ्रांति बैठ गर्इ थी कि चाहे हम भ्रष्ट हों, अकर्मण्य हों, किन्तु इस देश पर शासन करने का अधिकार हमारे परिवार का ही है। कोर्इ अन्य व्यक्ति हमारी इच्छा के बिना भारत का  प्रधानमंत्री नहीं बन कर सरकार नहीं बना सकता। यदि बन गया, तो उस हम सरकार को काम नहीं करने देंगे।  हम भारत में राजतंत्रीय परम्परा को स्थापित करने के पक्षधर हैं। लोकतंत्र में हमारी आस्था नहीं है। यह हमारे लिए सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी हैं। चाहे हमे जनादेश नहीं मिलें, किन्तु हमारे पास अनुयायियों की ऐसी  जुझारु टीम हैं, जो हमारे एक आदेश से भारत की संसदीय व्यवस्था को ठप कर सकती है।
भारत की जनता ने एक  भ्रष्ट  राजनीतिक परिवार को अपनी औकात याद दिला दी। कर्इ राज्यों से सरकारे हाथ से चली गर्इ। केन्द्र में संख्या बल सिकुड़ गया, पर गरुर टूटा नहीं। इस परिवार को ऐसी आशा है कि भारतीय जनता का दिल भावुक नाटको से जीता जा सकता हैं। यदि ऐसा सियासी खेल खेला जाये जिससे जनता को यह अहसास हो जाय कि राजपरिवार को सताया जा रहा है। ऐसे नाटकों का निरंतर मंचन करते रहने से  निश्चित रुप से अगले चुनावों में जन सहानुभूति की लहर पर सवार हो कर चुनावी वैतरणी पार कर सकते हैं। इन्हें इस बात का भी आत्माभिमान है कि लोकतंत्र को रौंद कर आपातकाल लगाने वाली सास को भारत की जनता ने स्वीकार कर लिया, तो भ्रष्ट बहू को क्यों नहीं स्वीकार करेंगी।
स्वामी भक्त पार्टी के चापलुस नेता, जिनके लिए देश से बड़ा एक परिवार है, जो अपने स्वामी के एक इशारे से संसद में हंगामा कर शोर मचा सकतो हैं। टीवी स्क्रीम पर आ कर निरर्थक बकवास कर  सकते हैं।  भारत की जनता की पीड़ा से अविचलित असंवेदनशील चाटुकार  पार्टी महारानी और राजकुमार को न्यायालय में उपस्थित होने के समन पर इतने दुखी हो गये कि इन्होंने इन दिनों आकाश सिर पर उठ रखा है। संसद में चिल्ला रहे हैं। सड़को पर अनुयायियों की भीड़ चीख- चीख कर कह रही है- ‘हमारे  मालिक पर चाहे सच्चे अैर सुदृढ़ तथ्यों के आधार पर ही आरोप लगे हों, किन्तु हमारे  नेता न्यायालय में जा कर अपनी सफार्इ में कुछ नहीं कहेंगे। हमारे स्वामी भारत की न्यायपालिका से ऊपर है। एक अदने से न्यायाधीश को क्या अधिकार है कि हमारे स्वामी को न्यायालय में बुला कर उनसे पूछ-ताछ करें ?  भारत के न्यायालय भारत की जनता के लिए हैं, हमारे स्वामी के लिए नहीं।
गुलाम मानसिकता वाले कांग्रेसी यह समझते हैं कि  भारत से जब ब्रिटिश उपनिवेश था, तब क्या ब्रिटेन की महारानी के विरुद्ध कोर्इ भारतीय न्यायालय में जा सकता था ? यदि नहीं जा सकता था, तो हमारी महारानी और राजकुमार को अदालत में घसीटने की हिम्मत कैसे हो गयी ?  जिस व्यक्ति ने हमारे स्वामी के विरुद्ध आरोप लगायें हैं, चाहे वे सत्य पर आधारित हों और आरोपों में दम हों, किन्तु हम कह रहें हैं कि  असत्य है,  क्योंकि राजा को कोर्इ न्यायालय सजा नहीं सुना सकता। न्यायिक प्रक्रिया में चाहे भारत की संसद और प्रधानमंत्री की कोर्इ भूमिका नहीं हों, किन्तु हम संसद नहीं चलने  देंगे, क्योंकि हम अपने मालिक के विरुद्ध कुछ भी नहीं सुन सकते। वे हमारे अन्नदाता है, उनकी कृपा से ही तो हम भी करोड़ो की सम्पति के मालिक हैं। उन्होंने कमाया तो उनके आर्शीवाद से हम भी मालामाल हैं, अत: हम भारत की जनता के नहीं, हमारे स्वामी के अहसानमंद है। अब संसद को अगले चार साल तक किस न किसी बहाने नहीं चलने देंगे। जिस दिन हमारे राजकुमार भारत के प्रधनमंत्री बनेंगे अब तब ही संसद चलेगी। हमारे लिए राजनतंत्रीय परम्परा ही सर्वोंपरि है, जिस पर यदि कभी भी  कोर्इ आंच आयेगी तो हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। भारतीय लोकतंत्र को पूर्णतया राजतंत्र में तब्दील कर के ही दम लेंगे।
लेकतंत्र विरोधी और राजतंत्र समर्थक, जिनका भाग्य और भविष्य एक परिवार के साथ जुड़ा हुआ है, इन दिनों भारत के संसदीय लोकतंत्र पर आक्रमण कर उसे लहुलूहान कर रहे हैं। भारतीय संसद का हाल, जो कभी सांसदों के विद्वता और ओजपूर्ण भाषणों से गूंजा करता था। संसद में जहां कभी सत्तापक्ष के विरुद्ध अकाट्य तको शालिन शैली में लपेट कर प्रहार किया जाता था, वह अब इतिहास बन गया है। अब संसद में राजतंत्र समर्थक चंद सांसद निरर्थक तर्कों व तथ्यों को बिना किसी ठोस आधार के चीख कर और हंगामा कर अभिव्यक्त करते हैं। भोंड़े प्रदर्शन से यह जताना चाहते हैं कि विपक्ष के विरुद्ध सचमुच अन्याय हो रहा है। जबकि हकीकत यह है कि एक परिवार के प्रति निष्ठा जताने के लिए भारत के संसदीय लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं।  जो विषय उठाये जाते हैं, उस पर बहस नहीं करते, सत्ता पक्ष का उत्तर नहीं सुनते और हंगामा कर संसद को नहीं चलने दे रहे हैं।
मुट्ठीभर चापलुस चाटुकार भारत की संसदीय व्यवस्था की गरिमा पर जिस प्रकार प्रहार कर रहे हैं, वह हमारी संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के पर आघात हैं। संसदीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष को उसकी जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध कटघरें में खड़ा किया जा सकता है। संविधान में ऐसे कर्इ प्रावधान हैं, जिसके तहत विपक्ष अपनी आवाज उठा सकता है, किन्तु एक परिवार के प्रति स्वामी भक्ति के भौंड़े प्रदर्शन से संसद में गतिरोध पैदा नहीं किया जा सकता।
अपने स्वामी के प्रति अपूर्व निष्ठा का प्रदर्शन कर रहें सांसद, जो देश की गरीब जनता के पसीने की कमार्इ को व्यर्थ में उड़ाने का दुस्साहस  इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि भारत की जनता उनके आचरण को क्षुब्ध हो, उनके कुकृत्यों को मूक दर्शक बन  देख रही है।  जिस दिन भारत की जनता अक्रोशित हो कर सड़को पर उतरेगी और उनसे सवाल पूछेगी, आपको अपने स्वामी के प्रति वफादारी दिखाने के लिए संसदीय लोकतंत्र पर आक्रमण करने की क्या आवश्यकता है ? भारतीय संविधान ने जब आपके नेताओं को विशेष अधिकार नहीं दिये है, फिर उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के लिए न्यायालय में उपस्थित होने को ले कर आपत्ति क्यों हैं ? जनता ने आपको संसद में बैठने का अधिकार क्या इसलिए दिया है कि उस क्षेत्र विशेष, जिसके आप सांसद है, की समस्याओं को उठाने के बजाय आप संसद में हंगाम कर संसदीय कार्य को बाधित करें ?  आपको यह बात क्यों  नहीं समझ आ रही है कि इस देश की मालिक जनता है, आपकी मालकिन नहीं ?
निश्चित रुप से जनता जागृत हो कर राजतंत्र समर्थक चापलुसों के विरुद्ध सड़को पर निकलेगी, तभी राजतंत्र लोकतंत्र पर आक्रमण रुकेंगा और उनका  लोकतंत्र की हत्या करने का प्रयास विफल हो जायेगा।
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Monday, 7 December 2015


आगे सफर था और पीछे हमसफर था..

रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..





मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..




ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...



मुद्दत का सफर भी था और बरसो
 का हमसफर भी था

रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....




यूँ समँझ लो,

प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...




पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.






बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!





वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!





सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।






"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!





"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,

पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
 वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....


अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ......






लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.

“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”

दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...

बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!

भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.

जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!!

हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.

"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"

दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,

पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं।

मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...

पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम

गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।
अगर दिल को छु जाये तो शेयर जरूर करे..
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(●_●)
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Tuesday, 1 December 2015

भारतीय लोकतंत्र पर मंड़राती राहुल-केजरीवाल की अशुभ छाया

भारतीय राजनीति में राहुल और केजरीवाल ऐसी दो शख्सियतों का प्रभाव बढ़ रहा है, जिन्हें सिद्धान्तों, आदर्शों और राजनीतिक विचारधारा से कोर्इ लेना देना नहीं हैं। इनकी देशभक्ति भी संदिग्ध है। ये निरर्थक विवादों को जन्म देते हैं। प्रचार माध्यमों का सहारा लें, उन्हें हवा देते हैं और उससे राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करते हैं।  राजनीतिक षड़यंत्रों के जरिये एक लोकतांत्रिक सरकार के कामों में जानबूझ कर व्यवधान उपस्थित कर रहे हैं। दोनों व्यक्ति सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए मचल रहे है। राहुल के पास तो एक पार्टी का केडर है, जिसकी जड़े पूरे भारत में हैं, किन्तु केजरीवाल के पास तो भाड़े पर रखे हुए कुछ ही लोग हीं बचे हैं, जो अपनी कुटिल बुद्धि और धूर्तता से भारतीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपने रंग में रंगना चाहते हैं।
यह अजीब विडम्बना है कि कांग्रेस के निर्लज्ज और बेबाक भ्रष्टााचार के विवरुद्ध किये गये जन आंदोलन से केजरीवाल का राजनीतिक जीवन प्रारम्भ हुआ,  किन्तु उसी कांग्रेस के सहयोग से वे मुख्यमंत्री बन गये। राहुल-केजरीवाल के किसी गुप्त षड़यंत्र के कारण ही केजरीवाल मुख्यमंत्री  पद छोड़, बनारस में नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़ने बनारस चले गये। पर्दे के पीछे की गर्इ किसी गुप्त संधि से  ही उन्हें दिल्ली विधानसभा में रिकार्ड़ तोड़ बहुमत मिला, क्योंकि राहुल गांधी  ने जानबूझ कर अपना वोट बैंक तश्तरी में रख कर केजरीवाल को भेंट कर दिया था। निश्चित रुप से भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए दिल्ली विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस ने आत्महत्या की थी, जिसे स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा नहीं कह सकते। अपने को मिटा कर भाजपा को रोकना कहां तक उचित हैं, इसका मर्म तो राहुल गांधी ही समझा सकते हैं।
केजरीवाल ने चुनाव जीतने के लिए सारे अनैतिक आचरण अपनाएं। मसलन पाकिस्तान में बैठे एक डॉन से उन्होंने सहयोग और धन लिया। उन्हें मुस्लिम समुदाय के शतपतिशत वोट दिलाने के लिए पूरे देश से लोग प्रचार करने आये। जनता को लुभाने के लिए उन्होंने असम्भव वादे किये। सारे आदर्शों और सिद्धान्तों को ताक में रख कर संदिग्ध व्यक्तियों को उम्मीदावार बनाया। वस्तुत: केजरीवाल को भारतीय राजनीति में स्थापित करने का सारा श्रेय भाजपा को जाता है, क्योंकि सरकार के पास सारे प्रशासनिक अधिकार होते हुए भी वह केजरीवाल की देशद्रोही गतिविधियों पर नज़र नहीं रख पार्इ। केजरीवाल और डॉन के प्रगाढ़ रिश्तों को साबित नहीं कर पायी । सरकार यह सच भी नहीं जान पार्इ कि केजरीवाल, जो विध्वंसात्मक राजनीति कर रहे है, उसके पीछे डॉन की मोदी सरकार के विरुद्ध रची जा रही कोर्इ व्यूह रचना तो नहीं है। ऐसा संदेह इसलिए होता है, क्योंकि कर्इ प्रदेशों में विरोधी दलों की सरकारें हैं, परन्तु किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार के विरुद्ध इतना मुखर नहीं है, जितना अरविंद केजरीवाल है। शासन का अधिकार मिलने के प्रत्येक मुख्यमंत्री अपने प्रशासनिक कार्यों से जनता का दिल जीततना चाहता है, ताकि जनता उसे दुबारा जनादेश दें, किन्तु केजरीवाल के मन में ऐसा कुछ है ही नहीं। मुख्यमंत्री बनते ही केजरीवाल ने संवैधानिक संस्थाओं और केन्द्र सरकार के विरुद्ध घोषित युद्ध छेड़ रखा है।
अरविंद केजरीवाल की नीयत पर इसलिए संदेह होता है, क्योंकि गुजरात में जो पटेल आरक्षण का कार्ड़ खेला गया है, उसके पीछे भी केजरीवाल की कुटिल बुद्धि और किन्हीं अज्ञात स्त्रोंतों से इस आंदोलन को फैलाने के लिए उडेला गया धन है। बिहार चुनावों में भाजपा को हराने के लिए केजरीवाल ने लालू और नीतीश का पूरा समर्थन किया था। वे ही अज्ञात स्त्रोत जिन्होंनें केजरीवाल की मदद की थी, उन्होने बिहार चुनाव में भी धन से और प्रचार माध्यमों से महागठबंधन की मदद की है।  महागठबंधन को एक करोड़ साठ लाख वोट मिले थे और भाजपा गठबंधन को एक करोड़  करोड़ तीस लाख। महागठबंधन को मुस्लिम समुदाय के शतप्रतिशत वोट मिले हैं, जो  दिल्ली की तरह बिहार में भी भाजपा की करारी हार का मुख्य कारण है। दादरी कांड़ को अतिरंजित रुप से हर मुस्लिम मतदाता तक पहुंचाने का प्रभावी कार्य केजरीवाल ने किया। यह बात अब भी रहस्य है कि भ्रष्ट लालू के गठबंधन को जीताने के लिए केजरीवाल ने इतना उत्साह क्यों दिखाया ? क्या किसी आका के साथ की गर्इ अपवित्र संधि का तो यह परिणाम नहीं है। केन्द्र सरकार अपनी प्रशासनिक ताकत से केजरीवाल की संदिग्ध गतिविधियों को नहीं भांप पार्इ, जिससे इस व्यक्ति के होंसले बहुत बुलंद है।
पंजाब में राहुल, केजरीवाल और पाकिस्तान मिल कर जो खेल खेल रहे हैं, उस खतरनाक खेल पर भाजपा की आत्ममुग्धता अंकुश नहीं लगा पा रही है।  बादल सरकार की दुर्बलता का लाभ यह त्रिगुट उठा रहा है और भाजपा तमाशबीन दर्शक की तरह तमाशा देख रही है। देशहित में विध्वंसकारी राजनीति को रोकना भाजपा का कर्तव्य और धर्म दोनों है, जिसे उसे गम्भीरता से लेना होगा।
केजरीवाल और राहुल दोनो विध्वंसात्मक शैली की राजनीति करते हैं, जो लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है। सहिष्णुता राहुल द्वारा तैयार किया गया एक प्रायोजित कार्यक्रम है, जिसकी सफल परणिति  बिहार चुनाव में भाजपा के पराजय के साथ हुर्इ है। राहुल अब इसी मुद्धे को उठा कर संसद की कार्यवाही बाधित करना चाहते हैं। उन्हें इस बात की जरा भी चिंता नहीं है कि एक झूठे मामले को बहुत ज्यादा तुल देने से उनकी पार्टी बहुसंख्यक समाज के वोटो की मोहताज हो जायेगी, जो उसके लिए बहुत घातक होगा। परन्तु जिस व्यक्ति के स्वभाव में छिछोरापन हो, राजनीतिक समझ का अभाव हो, वो राजनीतिक षड़यंत्रों से ही राजनीतिक लाभ उठाना चाहता हो,  ऐसे लोगों की  बुद्धि पर तरस आता है। क्योंकि राहुल को इस बात का जरा सा भी अहसास नहीं है कि षड़यंत्र हमेशा सफल नहीं होते। जनता का विश्वास जीतने के लिए सभी समुदाय के हितों की बात सोचनी रहती है।  केवल एक ही समुदाय के वोट बटोरने के लिए निरन्तर षड़यंत्र रचने से पासा पलट भी सकता है।
भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल का जन्म एक अभिशाप है। इस अभिशाप से मुक्ति मिल जाती यदि भाजपा दिल्ली का चुनाव जीतने के लिए सफल रणनीति बनाती और केजरीवाल के पाकिस्तान प्रेम का सच जान पाती।  राहुल के विदेशी खातों को खंगालने में सरकार सक्रियता दिखाती तो अब तक राहुल की बोलती बंद हो जाती। संसद का सत्र छोड़ कर सोनिया गांधी विदेश भागी है, इसका रहस्य भी सरकार यदि जान लें, तो असिहष्णुता के विरुद्ध छेड़ा गया प्रायोजित युद्ध समाप्त हो जायेगा। मोदी सरकार के पास प्रशासनिक अधिकार है, जिसके जरिये भारतीय लोकतंत्र को केजरीवाल और राहुल गांधी की अशुभ छाया से मुक्ति दिला सकती है। यदि सरकार इनके प्रति सहिष्णु बनी रही, तो इन दोनों की ताकत बढ़ती जायेगी, जिसके अशुभ परिणाम पूरे राष्ट्र को भोगने पड़ेंगे।